समृद्ध ऐतिहासिक पृष्ठभूमि वाला हमारा शहर मेरठ, अपनी सिंचाई प्रणालियों के माध्यम से कृषि को समर्थन देने में भी, महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ऊपरी गंगा नहर और पूर्वी यमुना नहर दो ऐसे महत्वपूर्ण जल चैनल हैं, जो इस क्षेत्र की सेवा करते हैं। ये नहरें खेतों को पानी उपलब्ध कराती हैं, स्थिर सिंचाई सुनिश्चित करती हैं और किसानों को साल भर फ़सल उगाने में मदद करती हैं। अपने व्यापक नेटवर्क के साथ, उन्होंने कृषि उत्पादकता को बढ़ाया है और मेरठ एवं इसके आसपास कई लोगों की आजीविका का समर्थन किया है। आज, हम ऊपरी गंगा नहर प्रणाली का पता लगाएंगे, तथा इसकी संरचना और सिंचाई में भूमिका पर ध्यान केंद्रित करेंगे। आगे, हम पूर्वी यमुना नहर प्रणाली और इसके महत्व पर चर्चा करेंगे। फिर, हम कृषि में सिंचाई के महत्व की जांच करेंगे, व फ़सल उत्पादन और स्थिरता पर इसके प्रभाव पर प्रकाश डालेंगे।
नहरें, मानव निर्मित जलमार्ग हैं, जो अक्सर नदियों के पानी को मोड़कर बनाए जाते हैं। नदियों के विपरीत, जो प्राकृतिक हैं, नहरों का निर्माण सिंचाई और परिवहन जैसे विशिष्ट उद्देश्यों के लिए किया जाता है। उत्तर प्रदेश में, कई नदियों की उपस्थिति के कारण, कई नहरों का निर्माण हुआ है, जो कृषि और जल प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
ऊपरी गंगा नहर प्रणाली-
ऊपरी गंगा नहर प्रणाली, भारत की सबसे बड़ी बारहमासी और सबसे पुरानी सिंचाई प्रणाली है। इस प्रणाली की योजना 1838 में शुरू की गई थी और व्यवहार्यता रिपोर्ट को 1842 में, इंजीनियरों की एक समिति द्वारा अनुमोदित किया गया था। इस प्रणाली का निर्माण 1848 में गवर्नर जनरल – लॉर्ड हार्डिंग (Lord Hardinge) द्वारा परियोजना की मंज़ूरी के बाद, शुरू किया गया था और 6 साल के रिकॉर्ड समय में, 1854 में इसे पूरा किया गया था। गंगा नहर हरिद्वार में, गंगा नदी के दाहिने किनारे से निकलती है, जो वर्तमान उत्तराखंड राज्य में है। इस प्रणाली की अंतिम शाखाएं – कानपुर और इटावा शाखाएं, कानपुर ज़िले में गंगा और यमुना नदी में निकलती हैं। यह नहर उत्तराखंड राज्य के हरिद्वार ज़िले और उत्तर प्रदेश राज्य के सहारनपुर, मुज़फ्फ़रनगर, मेरठ, गाज़ियाबाद, बुलन्दशहर, गौतमबुद्ध नगर, अलीगढ़, हाथरस, मथुरा, आगरा, इटावा एवं फ़िरोज़ाबाद ज़िलों को सिंचाई सुविधा प्रदान करती है। मूल रूप से, इस नहर को 6750 क्यूसेक (192 m³/s) की मुख्य बहाव क्षमता के साथ, डिज़ाइन किया गया था, जिसे बाद में 1938 में, बढ़ाकर 8500 क्यूसेक (242 m³/s) कर दिया गया। और 1951-1952 में, इसकी क्षमता को फिर से बढ़ाकर, 10,500 क्यूसेक कर दिया गया ( 300 m³/s)। वर्तमान में, मुख्य बहाव क्षमता – 10,500 क्यूसेक है।
गंगा नहर प्रणाली की मुख्य सुंदरता यह है कि, यह नहर, जिसकी योजना लगभग 154 साल पहले बनाई गई थी, आज भी गंगा नहर कमांड क्षेत्र की आबादी की वर्तमान जरूरतों को पूरा करने में सक्षम है। जबकि, वर्तमान जनसंख्या, 1840 की जनसंख्या से कई गुना बढ़ गई है। भागीरथी नदी पर टिहरी बांध परियोजना के निर्माण के बाद, वर्ष के अधिकांश समय में, गंगा नदी में, गंगा नहर की क्षमता से अधिक पानी रहता है। गंगा नहर का पानी प्राकृतिक तत्वों (विशेषकर गाद) से भरा है। एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि, सभी कृषि क्षेत्रों में सिंचाई के लिए, गंगा नहर का पानी प्रयुक्त किया जाता है। गंगा नहर के पानी का उपयोग, मुख्य रूप से दिल्ली, नोएडा, गाज़ियाबाद, मेरठ, ग्रेटर नोएडा आदि में पीने के लिए और कई थर्मल और परमाणु ऊर्जा संयंत्रों द्वारा, औद्योगिक उद्देश्यों के लिए किया जाता है। पीने के लिए, विभिन्न ज़िलों से इस पानी की भारी मांग है।
पूर्वी यनुमा नहर प्रणाली-
उत्तर प्रदेश की सबसे पुरानी नहर – पूर्वी यमुना नहर है। 1830 में ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के दौरान निर्मित, यह नहर एक उल्लेखनीय इंजीनियरिंग उपलब्धि है। यह नहर सहारनपुर ज़िले के हथिनीकुंड बैराज के बाएं किनारे से, बेहट तहसील के फ़ैज़ाबाद गांव से निकलती है। पूर्वी यमुना नहर का निर्माण, सिंचाई उद्देश्यों के लिए यमुना नदी के पानी का उपयोग करने के लिए किया गया था। इसे क्षेत्र में सूखे के प्रभाव को कम करने और कृषि उत्पादकता में सुधार करने में मदद करने के लिए भी डिज़ाइन किया गया था। नहर की कुल लंबाई लगभग 1,440 किलोमीटर है, जो इसे राज्य की सबसे लंबी नहरों में से एक बनाती है। पूर्वी यमुना नहर के निर्माण ने इस क्षेत्र के सिंचाई बुनियादी ढांचे में, एक महत्वपूर्ण विकास को चिह्नित किया है। इसने सिंचाई के लिए पानी का एक विश्वसनीय स्रोत प्रदान किया है, जिससे कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई और किसानों की आजीविका को समर्थन मिला। नहर ने यमुना नदी के प्रवाह को प्रबंधित करके, बाढ़ को नियंत्रित करने में भी भूमिका निभाई है।
उत्तर प्रदेश में कृषि विकास में, सिंचाई एक महत्वपूर्ण कारक कैसे है?
सबसे महत्वपूर्ण कारकों में से एक, जिसने उत्तर प्रदेश में कृषि को सकारात्मक रूप से प्रभावित किया है, वह सिंचाई है। हमारा राज्य, 80.2% सकल सिंचित क्षेत्र के साथ, समृद्ध सिंचाई प्रणाली से संपन्न है। यह अधिकांश भारतीय राज्यों की तुलना में, अपेक्षाकृत समृद्ध है और पंजाब (98.7%) और हरियाणा (89.1%) के बाद, स्थान पाता है। उत्तर प्रदेश में लगभग 74,659 किलोमीटर नहरें, 28 बड़ी और मध्यम-लिफ़्ट नहरें, 249 छोटी लिफ़्ट नहरें, 69 जलाशय हैं। यहां लगभग 32,000 चालू ट्यूबवेल सरकार द्वारा संचालित हैं। यहां सिंचाई का प्रमुख स्रोत कुएं (80.2%) हैं, इसके बाद, नहर सिंचाई का स्थान (17.9%) है। हालांकि, राज्य के भीतर सिंचाई कवरेज में व्यापक भिन्नताएं हैं। जबकि, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, मध्य और पूर्वी उत्तर प्रदेश जैसे क्षेत्रों में सिंचाई अनुपात क्रमशः 90%, 83% और 77% है। जबकि, बुन्देलखण्ड में, सिंचाई के अंतर्गत आधे से भी कम क्षेत्र (48%) है।
मार्च 2014 तक, प्रमुख, मध्यम और लघु सिंचाई परियोजनाओं के माध्यम से 33.59 मिलियन हेक्टेयर भूमि का सृजन किया गया है। कई नहर प्रणालियां पचास वर्ष से भी अधिक पुरानी हैं। इनमें ऊपरी गंगा नहर, पूर्वी यमुना नहर, आगरा नहर, निचली गंगा नहर, शारदा नहर आदि शामिल हैं। बांधों और नहरों के अवसादन ने, उनकी दक्षता को प्रभावित किया है।
दरअसल, इन प्रणालियों के मरम्मत और आउटलेट के नीचे खेत विकास कार्य भी समय पर नहीं किए गए हैं। एक तरफ़, औसत जल उपयोग दक्षता केवल 30-40% की सीमा में है। इसके अलावा, आज फ़सल पैटर्न बदल गया है और धान और गन्ना जैसी कई फ़सलों को बड़ी मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है। वितरिकाओं और छोटी नहरों का कटना भी बहुत आम बात है, जिससे नहरों के अंतिम छोर के किसानों को, पानी की कमी का सामना करना पड़ता है। हालांकि, अगर इन समस्याओं पर काम किया जाए, एवं उनको हल किया जाए, तो नहरें हमारे लिए, समृद्धि लेकर आएंगी।
संदर्भ
https://tinyurl.com/mrpp2jeh
https://tinyurl.com/3u2e5mus
https://tinyurl.com/bdhzhuny
चित्र संदर्भ
1. हस्तिनापुर में संभवतः गंगा नहर प्रणाली को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
2. गंगा नहर प्रणाली को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
3. यमुना नदी के किनारे स्थित बटेश्वर नामक गाँव के दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. यमुना नदी के बहाव को दिखाते मानचित्र को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)