विभिन्न पक्षी प्रजातियों के लिए, एक महत्वपूर्ण आवास है हस्तिनापुर अभयारण्य की आर्द्रभूमि

मेरठ

 17-12-2024 09:29 AM
पंछीयाँ
हमारे शहर मेरठ का इतिहास अत्यंत समृद्ध रहा है | यह अपने ऐतिहासिक स्थलों के साथ-साथ, शहर के पास ही स्थित हस्तिनापुर अभयारण्य जैसे प्राकृतिक स्थलों के लिए भी जाना जाता है, जहां की आर्द्रभूमि, पक्षी देखने के लिए एक बेहतरीन जगह है। शहर के उद्यानों, खेतों, और खुले मैदानों में कई प्रकार के पक्षी देखे जा सकते हैं। सड़कों पर गौरैया से लेकर सर्दियों में आने वाले प्रवासी पक्षियों तक, मेरठ में बहुत सारे पक्षी देखे जाते हैं। कोई भी व्यक्ति, जो प्रकृति से प्यार करता है, उसके लिए मेरठ में पक्षियों को देखना शहर में रहते हुए प्रकृति का आनंद लेने का एक आसान तरीका है। तो आइए आज, मेरठ के पास स्थित हस्तिनापुर अभयारण्य की आर्द्रभूमि, जो विभिन्न प्रकार की पक्षी प्रजातियों के लिए एक महत्वपूर्ण आवास है, में पाए जाने वाले पक्षियों के बारे में जानते हैं। इसके बाद, हम मेरठ में पाए जाने वाले विविध पक्षी जीवन पर ध्यान केंद्रित करेंगे। अंत में, हम पक्षी प्रजातियों के प्रति, शहरीकरण के बढ़ते खतरे पर चर्चा करेंगे और यह जानेंगे कि क्षेत्र में तेज़ी से हो रहा विकास उनके आवास और अस्तित्व को कैसे प्रभावित कर रहा है।
हस्तिनापुर अभयारण्य की आर्द्रभूमि में पक्षी अवलोकन-
वर्ष 2020 में, हस्तिनापुर वन्यजीव अभयारण्य के हस्तिनापुर रेंज में 'एशियाई जलपक्षी जनगणना' (Asian Waterbird Census (AWC)) 2020 में निवासी और प्रवासी पक्षियों की 45 प्रजातियों की उपस्थिति दर्ज़ की गई। वहीं वर्ष 2019 में, पिछली जनगणना में, 43 प्रजातियों को दर्ज़ किया गया था। इस वर्ष कुल पक्षियों की संख्या में भी वृद्धि दर्ज़ की गई।
पिछले वर्ष की 2,705 की तुलना में 2020 में पक्षियों की कुल आबादी 3,103 थी। इन पक्षियों में ग्रेलैग गीज़, बार-हेडेड गीज़, रूडी शेल्डक और गैडवाल जैसी पक्षी प्रजातियां भी शामिल थीं। इसके साथ ही कुछ संकटग्रस्त प्रजातियाँ, जो आई यू सी एन (IUCN) की लाल सूची में शामिल हैं, जैसे वूली-नेक्ड स्टॉर्क, पेंटेड स्टॉर्क और सारस क्रेन, को भी देखा गया। जनगणना में आगे पाया गया कि वैश्विक जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के कारण शीतकाल के लिए सुदूर मध्य एशिया और उत्तरी एशिया से प्रवासी जल पक्षियों के यहां आने में देरी हुई।
आपको बता दें कि 'एशियाई जलपक्षी जनगणना' वैश्विक जलपक्षी निगरानी कार्यक्रम, 'अंतरराष्ट्रीय आर्द्रभूमि के लिए अंतर्राष्ट्रीय जल पक्षी जनगणना' (International Waterbird Census (IWC)) का एक अभिन्न अंग है। आई डब्लू सी (IWC) की शुरुआत, 1987 में, भारतीय उपमहाद्वीप में की गई थी और तब से यह अफ़ग़ानिस्तान से लेकर जापान, दक्षिण पूर्व एशिया और ऑस्ट्रेलिया तक एशिया के प्रमुख क्षेत्रों को कवर करने के लिए तेज़ी से विकसित हुआ है।
थोड़ी देर के लिए, मनुष्यों की संख्या पक्षियों से अधिक हो गई। 2 फ़रवरी 2019 की सुबह, जब दुनिया ने वेटलैंड्स दिवस मनाया, तब सैकड़ों पक्षी प्रेमी, इस पक्षी महोत्सव में भाग लेने के लिए, यूपी के मेरठ और बिजनौर ज़िलों में पड़ने वाले हस्तिनापुर वन्यजीव अभयारण्य के हरे-भरे वेटलैंड्स में एकत्र हुए। उन्हें सुखद आश्चर्य हुआ जब उन्होंने खुद को हज़ारो पक्षियों से घिरा हुआ पाया जो दुनिया भर से वहां आए थे।
हस्तिनापुर वन्यजीव अभयारण्य की हरी-भरी आर्द्रभूमि में 'विश्व वन्यजीव कोष' (World Wildlife Fund (WWF)) के सहयोग से वन विभाग द्वारा पक्षी महोत्सव आयोजित किया जाता है जिसमें भाग लेने के लिए दिल्ली और देश के अन्य हिस्सों से पक्षी प्रेमी भीकुंड आर्द्रभूमि पहुंचते हैं। इस महोत्सव को चिह्नित करने के लिए कई कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। महोत्सव में सभी आयु वर्ग के पक्षी प्रेमियों द्वारा भाग लिया जाता है। यहां कुल मिलाकर, 58 प्रजातियों के 1,673 पक्षी देखे गए, जिनमें बार हेडेड गीज़, लिटिल कॉर्मोरेंट, क्रेन आदि शामिल हैं।
मेरठ में पाए जाने वाले पक्षी-
किंगफ़िशर ( वाइट ब्रेस्टेड) {मंच रंगा} (White Breasted) {Manch Ranga}: व्हाइट थ्रोटेड किंगफ़िशर को हिंदी में सफ़ेद -चाटी किलकिला और कौरिला के नाम से भी जाना जाता है, जो पेड़ पर रहने वाला एक पक्षी है और संपूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप में व्यापक रूप से पाया जाता है। हमारे अपने मेरठ में इन्हें पार्कों और बगीचों के पास शाखाओं और तारों पर बैठे देखा जा सकता है। इनकी पीठ, पंख और पूंछ चमकीली नीली होती है, जबकि इनका सिर, कंधे और पेट का निचला हिस्सा भूरे रंग का होता है। इनके गले और छाती का रंग सफ़ेद होता है। इसकी चोंच बड़ी और लाल रंग की तथा पैर छोटे लाल रंग के होते हैं। यह पक्षी पश्चिम बंगाल का राज्य पक्षी है और छोटी मछलियों, कीड़ों, कृंतकों, सरीसृपों और कभी-कभी छोटे पक्षियों को खाता है।
करलव (Curlew (Indian Stone)): इस ज़मीनी पक्षी को 'इंडियन थिक नी' भी कहा जाता है और यह दक्षिणी और पूर्वी एशिया में पाया जाता है। ये पक्षी खुले घास के मैदानों, जंगलों और नदियों के किनारे निवास करते हैं। मेरठ में इन्हें सोफ़ीपुर और दबथुआ के आसपास देखा जा सकता है। यह पक्षी आकार में मज़बूत होता है, इसकी बड़ी-बड़ी चुभने वाली पीली आंखें और बड़ा सिर होता है। इसके पैर मज़बूत और घुटने मोटे होते हैं और इसका शरीर गहरे भूरे रंग की धारियों वाला रेतीला भूरा होता है। ये पक्षी रात में सबसे अधिक सक्रिय होते हैं और आमतौर पर दिन के दौरान झाड़ियों के नीचे खड़े देखे जाते हैं। ये अपने आहार में बीज, कीड़े और छोटे सरीसृप भी खाते हैं।
श्रीक (लंबी पूंछ वाली) कोशाई पाखी (Shrike (Long Tailed) Koshai pakhi): लंबी पूंछ वाले श्रीक एशिया के अधिकांश भाग में पाए जाते हैं और अक्सर खुले घास के मैदानों और कृषि क्षेत्रों में देखे जाते हैं। इनका वजन लगभग 50 ग्राम होता है और एक लंबी संकीर्ण काली पूंछ, एक काला मुखौटा, एक काली छोटी घुमावदार चोंच और भूरे रंग की दुम और पार्श्व होते हैं। इन्हें आमतौर पर झाड़ियों, निचली शाखाओं या तार पर अकेले बैठे अपने शिकार की तलाश में देखा जा सकता है जिसमें कीड़े, छिपकली, कृंतक या छोटे पक्षी होते हैं।
मूर हेन (गैलिनुला क्लोरोपस) (MOOR HEN (Gallinula chloropus)): अक्सर 'जल मुर्ग़ी' या मुर्ग़ाबी' के रूप में संदर्भित, ये पक्षी मध्यम आकार के होते हैं और अफ्रीका, यूरोप और एशिया में आम हैं। मेरठ में इन्हें पर्यावरण पार्कों और मीठे जल निकायों में देखा जा सकता है। उनके पंख काले और पैर पीले होते हैं तथा एक विशिष्ट लाल ललाट पर पीले सिरे वाली लाल चोंच होती है। ये पक्षी मार्च, अप्रैल और मई के महीनों में मीठे जल निकायों के पास घनी वनस्पतियों में अपना घोंसला बनाते हैं। वे आम तौर पर पानी के खरपतवार और जलीय जीवों को खाते हैं, लेकिन उन्हें जल निकायों के आसपास कीड़े, अनाज और बीज की तलाश में भी देखा जा सकता है।
रेड नेप्ड आइबिस (RED NAPED IBIS (Pseudilus papillosa)): इस पक्षी को 'इंडियन ब्लैक आइबिस' भी कहा जाता है और यह आमतौर पर भारतीय उपमहाद्वीप के मैदानी इलाकों में पाया जाता है। मेरठ में इन्हें पर्यावरण पार्कों और शहर के बाहरी इलाकों में देखा जा सकता है। इस पक्षी का शरीर काला होता है, इसकी चोंच लंबी नीचे की ओर मुड़ी हुई काली और पैर मज़बूत होते हैं। ये पक्षी उड़ने में अत्यंत तेज़ होते हैं और अपनी गर्दन फैलाकर उड़ते हैं। आम तौर पर छोटे झुंडों में देखे जाने वाले ये पक्षी मांसाहारी होते हैं।
शहरीकरण : विश्व की 78% पक्षी प्रजातियों के लिए ख़तरा:
वैज्ञानिकों द्वारा हाल ही में किए गए एक अध्ययन के अनुसार, दुनिया की 78% पक्षी प्रजातियाँ मानव-प्रधान वातावरण में रहने और अनुकूलन जैसी स्थितियों का सामना नहीं कर सकतीं। और तो और, ये वही प्रजातियाँ हैं जिनकी आबादी दिन प्रतिदिन काम हो रही है। अध्ययन के अनुसार, खतरे में पड़ी प्रजातियाँ, और घटती आबादी वाली प्रजातियाँ, मानव-प्रधान आवासों में प्रजनन के प्रति कम सहिष्णु हैं। यह अत्यंत दुख की बात है कि दुनिया की 11,000 पक्षी प्रजातियों में से 14% वर्तमान में विलुप्त होने के कगार पर हैं। ये चिंताजनक संख्याएँ दर्शाती हैं कि हमारे कार्यों का दुनिया के पक्षियों पर वास्तविक परिणाम हो रहा है।
शहरीकरण के कारण पक्षियों के समक्ष चुनौतियाँ:
शहरीकरण को अपनाना पक्षियों के लिए एक जटिल चुनौती है। कुछ प्राणियों के विपरीत, जिनके लिए शहरी स्थानों में रहना और अनुकूलन करना आसान होता है, पक्षियों को विशिष्ट बाधाओं का सामना करना पड़ता है। इनमें प्राकृतिक आवासों के नुकसान से लेकर प्रदूषण और शोर की समस्याएं शामिल हैं। मनुष्यों द्वारा किया गया प्रत्येक परिवर्तन उनके भोजन, प्रजनन और प्रवासी पैटर्न को बाधित कर सकता है। अनिवार्य रूप से, शहरीकरण ऐसे वातावरण का निर्माण करता है जिसके लिए कई पक्षी प्रजातियाँ अनुकूल होने के लिए संघर्ष करती हैं, जिससे उनकी आबादी में गिरावट आती है। पक्षी अपने अस्तित्व और प्रजनन के लिए कुछ पर्यावरणीय विशेषताओं पर बहुत अधिक निर्भर करते हैं। इन विशेषताओं में विशिष्ट प्रकार की वनस्पति, जल स्रोत और घोंसले बनाने के स्थान शामिल होते हैं। इनके बिना, पक्षी जीवित रहने और सफलतापूर्वक प्रजनन करने के लिए संघर्ष करते हैं। कई पक्षी प्रजातियों के लिए, विशेष रूप से जो प्राचीन जंगली क्षेत्रों में विकसित हुई हैं, न्यूनतम मानव उपस्थिति भी उनके नाज़ुक जीवन के तरीके को बाधित कर सकती है।
यहां शहरीकरण के कारण पक्षियों के सामने आने वाली कुछ प्रमुख चुनौतियों के बारे में बताया गया है:
पर्यावास हानि और विखंडन: जब हम शहरों, सड़कों और खेतों का निर्माण करते हैं, तो हम न केवल प्राकृतिक आवासों को नष्ट करते हैं बल्कि उन्हें खंडित भी करते हैं। इसका सीधा-सीधा अर्थ यह है कि उपयुक्त आवास के बड़े क्षेत्रों को छोटे, पृथक टुकड़ों में विभाजित किया जाता है। इन खंडित आवासों में अक्सर उन संसाधनों की कमी होती है जिनकी पक्षियों को आवश्यकता होती है, जैसे घोंसले के शिकार स्थल, भोजन स्रोत और आवाजाही के लिए सुरक्षित गलियारे आदि।
शोर के स्तर में वृद्धि: शहरीकरण के कारण लगातार होने वाला ध्वनि प्रदूषण पक्षियों के लिए एक बड़ा तनाव कारक हो सकता है। यह उनके संचार में बाधा डाल सकता है, जिससे उनके लिए साथियों को आकर्षित करना, क्षेत्रों की रक्षा करना और शिकारियों के बारे में एक-दूसरे को चेतावनी देना मुश्किल हो जाता है।
प्रकाश प्रदूषण: रात में कृत्रिम प्रकाश प्राकृतिक प्रकाश चक्र को बाधित करता है जिसके अनुसार पक्षी नेविगेशन, प्रजनन और चारा खोजने सहित विभिन्न कार्यों के लिए निर्भर होते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ प्रवासी पक्षी तारों का उपयोग करके यात्रा करते हैं और कृत्रिम रोशनी उन्हें भ्रमित कर सकती है। इसके अतिरिक्त, प्रकाश की विस्तारित अवधि के कारण पक्षियों को दिन के समय को लेकर भ्रम हो सकता है, जिससे संभावित रूप से हार्मोन विनियमन और प्रजनन संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।
शिकारी: दुर्भाग्य से, मानव बस्तियाँ अक्सर शिकारियों को आकर्षित करती हैं जिनका पक्षियों को अबाधित क्षेत्रों में सामना नहीं करना पड़ता। घरेलू बिल्लियाँ ज़मीन पर घोंसला बनाने वाले पक्षियों के लिए एक बड़ा खतरा हैं और कुछ पक्षियों को चूहों या रैकून जैसे जीवों की उपस्थिति के अनुकूलन करने में कठिनाई हो सकती है।
भोजन की उपलब्धता में कमी: बढ़नी मानव जनसंख्या के कारण निरंतर पेड़ पौधे काटे जा रहे हैं जिसका अर्थ उन पौधों और कीड़ों की प्रजातियों में गिरावट हो सकता है जिन पर पक्षी भोजन के लिए निर्भर रहते हैं। इसके अतिरिक्त, कीटनाशकों और शाकनाशियों का उपयोग पक्षियों की आबादी को सीधे नुकसान पहुंचा सकता है या उन कीटों के शिकार को कम कर सकता है जिन पर वे निर्भर हैं।
संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा: मानव-प्रधान वातावरण में पक्षियों को अक्सर भोजन और घोंसला स्थलों जैसे सीमित संसाधनों के लिए बढ़ती प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है। यह प्रतिस्पर्धा अन्य पक्षी प्रजातियों से हो सकती है जिन्होंने मानव वातावरण के लिए अच्छी तरह से अनुकूलन किया है।
कुछ पक्षी अधिक अनुकूलनीय होते हैं:
हालांकि, सभी पक्षी एक जैसे नहीं होते हैं और कुछ आश्चर्यजनक रूप से अनुकूलनीय हैं। किसी भी अन्य सजीव की तरह, पक्षी अनुकूलन की एक उल्लेखनीय श्रृंखला प्रदर्शित करते हैं, जिससे वे बदलते एवं विविध वातावरण में जीवित रह पाने में सक्षम होते हैं। इसका अर्थ यह है कि कुछ पक्षी प्रजातियों में अद्वितीय विशेषताएं होती हैं जो उन्हें न केवल मानव उपस्थिति को सहन करने में सक्षम बनाती हैं बल्कि हमारे संशोधित परिदृश्यों में भी पनपने में सक्षम बनाती हैं। एक अध्ययन में पाया गया कि यूरोप और उत्तरी अमेरिका में पक्षियों की अधिक प्रजातियाँ हैं जो कम से कम कुछ मानवीय उपस्थिति के अनुसार अनुकूलन कर सकती हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि सदियों के नाटकीय परिदृश्य परिवर्तन ने पहले ही इन क्षेत्रों में सबसे संवेदनशील पक्षी प्रजातियों को दूर कर दिया है।
पक्षियों को शहरीकरण से बचाना है:
यह एक तथ्य है कि प्रकृति के अनमोल उपहार, पक्षियों को बचाने के लिए निश्चित रूप से, अछूती भूमि के बड़े हिस्से को अलग रखना अर्थात मानव संपर्क से दूर रखना महत्वपूर्ण है। लेकिन केवल ऐसा करने से ही पक्षियों को नहीं बचाया जा सकता। हमें राष्ट्रीय उद्यानों से आगे जाकर इस बारे में अधिक व्यापक रूप से सोचने की ज़रूरत है कि हम विभिन्न प्रकार की पक्षी प्रजातियों के साथ ग्रह को कैसे साझा कर सकते हैं। इसके लिए क्षतिग्रस्त पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करना, देशी पौधों को पुनःरोपित करना और स्वस्थ आवास बनाना, यहां तक कि छोटे छोटे भूमि टुकड़ों में भी, संघर्षरत पक्षी प्रजातियों के लिए जीवन रेखा हो सकती है। साथ ही हमारे शहरों को बसाते समय इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि ये पूरी तरह से पक्षियों के प्रति प्रतिकूल नहीं होना चाहिए। पक्षियों के लिए सुरक्षित खिड़कियाँ, तेज़ रोशनी को कम करना और देशी वनस्पति के टुकड़े जैसी चीज़ें फर्क ला सकती हैं।

संदर्भ
https://tinyurl.com/234aeatj
https://tinyurl.com/33vz57t8
https://tinyurl.com/4ppyfv7v
https://tinyurl.com/mr3fu5fy

चित्र संदर्भ
1. पानी में सारस को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
2. हस्तिनापुर में छोटे बगुले को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
3. किंगफ़िशर (Kingfisher) पक्षी को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
4. बिजली के तार पर बैठे पक्षियों को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
5. भारतीय तालाब बगुले (Indian pond heron) को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)

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