निस्संदेह ही, मेरठ और उर्दू शायरी का रिश्ता कई सदियों पुराना है। उर्दू शायरी की बात करें, तो गज़ल इसकी कई प्रसिद्ध शैलियों में से एक है। जैसा कि इस्माइल मेरठी(1844-1917) के नाम से ही पता चलता है, वे हमारे शहर के एक प्रसिद्ध उर्दू कवि, स्कूल शिक्षक और शिक्षाविद् थे। उनके लोकप्रिय कार्यों में से एक में, कुल्लियात-ए-इस्माइल शामिल है – जो 1910 में प्रकाशित, कविताओं और गज़लों का एक संग्रह है। तो आइए, आज गज़ल के बारे में सीखें। आगे, हम इस्माइल मेरठी, उनकी शायरी की शैली और कुछ प्रसिद्ध रचनाओं के बारे में विस्तार से बात करेंगे। फिर, हम भारत में गज़ल शैली के विकास को समझने का प्रयास करेंगे। इस संदर्भ में, हम भारत में शायरी की इस शैली की यात्रा को, 12वीं शताब्दी में इसकी उत्पत्ति से लेकर, इसकी वर्तमान स्थिति तक जानेंगे।
गज़ल क्या है?
गज़ल की संरचना के अनुसार, यह छंदबद्ध दोहों का एक क्रम है। इसमें, एक खंडन या दोहराया गया वाक्यांश होता है, जो दोहे की दूसरी पंक्ति के अंत में आता है। गज़ल की तुकबंदी योजना, इस प्रकार बहती है – ए ए (AA), बी ए(BA), सी ए (CA), सी ए (CA), डी ए (DA), ई ए (EA) ।
जैसा कि ऊपर बताया गया है, प्रेम-युक्त छंद, लयबद्ध संरचना में पिरोए जाते हैं। इस शैली की सुंदरता, एक न्यूनतम लेकिन भावनात्मक रूप से गूंजने वाली शैली के साथ, गहन भावनाओं को व्यक्त करने की क्षमता में निहित है। यह विशेषता इसे मानव अनुभव के सबसे जटिल पहलुओं को व्यक्त करने का माध्यम बनाती है।
इस्माइल मेरठी कौन थे?
इस्माइल मेरठी का जन्म, 12 नवंबर 1844 को हमारे शहर मेरठ में हुआ था। उनके पिता, शेख पीर बख्श ने उन्हें घर पर ही शिक्षा दी थी। बाद में, उन्होंने एक औपचारिक स्कूल में दाखिला लिया। उन्होंने मिर्ज़ा ग़ालिब के समकालीन – मिर्ज़ा रहीम बेग से, फ़ारसी में उच्च शिक्षा प्राप्त की।
1868 में, उन्हें सहारनपुर ज़िले के एक पब्लिक स्कूल में, फ़ारसी शिक्षक के रूप में नियुक्त किया गया। बाद में, उन्हें 1888 में आगरा स्थानांतरित कर दिया गया। 1899 में, वह शिक्षण कार्य से सेवानिवृत्त हो गए, और अपने गृह नगर मेरठ लौट आए।
इस्माइल मेरठी की शैली और कविता के विषय:
मेरठी, बच्चों के लिए अपनी कविताओं में, सरल और आसानी से समझ आने वाले शब्दों का उपयोग करते हैं। वह नैतिक विचारों को सरल भाषा और यथार्थवादी लहजे में व्यक्त करते हैं। वह अपनी कविताओं में, एक नैतिक संदेश देते हुए, प्रकृति और पालतू जानवरों का उल्लेख करते हैं। सच्चाई, मेहनती, आज्ञाकारिता, सकारात्मक आदतें और मज़बूत चरित्र, उनकी कविताओं में जोर दिए गए केंद्रीय मूल्य हैं।
इस्माइल मेरठी की कुछ लोकप्रिय रचनाएं:
रेज़ा-ए-जवाहर – 1885 में प्रकाशित कविताओं का संग्रह।
कुल्लियात-ए-इस्माइल – 1910 में प्रकाशित कविताओं और ग़ज़लों का संग्रह।
उर्दू ज़ुबान का कायदा – उर्दू भाषा की नियम पुस्तिका।
उर्दू की पहली किताब – उर्दू की पहली कक्षा की पाठ्यपुस्तक।
उर्दू की दूसरी किताब – उर्दू की दूसरी कक्षा की पाठ्यपुस्तक।
उर्दू की तीसरी किताब – उर्दू की तीसरी कक्षा की पाठ्यपुस्तक।
उर्दू की चौथी किताब – उर्दू की चौथी कक्षा की पाठ्यपुस्तक।
उर्दू की पांचवीं किताब – उर्दू की पांचवीं कक्षा की पाठ्यपुस्तक।
भारत में गज़ल का विकास:
दिल्ली सल्तनत की शासन अवधि के दौरान, अमीर खुसरो, भारत में गज़ल संगीत में सबसे उल्लेखनीय योगदानकर्ता बन गए। उन्होंने, फ़ारसी और हिंदी दोनों भाषाओं में कविताएं लिखीं। मुगलों के आगमन के साथ, सूफ़ी फ़कीरों के प्रभाव के कारण, 12वीं से 18वीं शताब्दी तक गज़ल पूरे भारत में फली-फूली।
यह प्रभाव बढ़ता गया, फिर स्थानीय लोगों के बीच तेज़ी से लोकप्रिय हो गया, और सदियों से ऐसा ही बना हुआ है। जब गज़ल पहली बार, उत्तर भारत में पेश की गई, तो राजाओं को फ़ारसी गज़लों में अधिक रुचि थी। हालांकि, जब इसने दक्षिण भारत की यात्रा की, तो इसमें उर्दू स्वाद आ गया। इसका विकास, गोलकुंडा और बीजापुर के दरबारों में, मुगल शासकों के संरक्षण में हुआ, जिन्होंने उर्दू परंपरा का समर्थन किया था। नुसरती, वाझी, हाशमी, मोहम्मद कुली कुतुब शाह और वली दखिनी, अपने समय के कुछ प्रसिद्ध गज़ल लेखक थे।
18वीं और 19वीं शताब्दी को, ग़जल का स्वर्ण युग माना जाता था। इस अवधि में, गज़लें साहित्यिक से संगीतमय रूप में परिवर्तित हो गईं और दरबारी प्रदर्शनों से जुड़ गईं । उनके प्रमुख केंद्र, लखनऊ और दिल्ली माने जाते थे। जैसे-जैसे गज़लों ने भारतीय कवियों के बीच लोकप्रियता हासिल की, उनकी रचना उर्दू, हिंदी, तेलुगु, गुजराती, पंजाबी और बंगाली सहित विभिन्न भारतीय भाषाओं में की गई। बेगम अख़्तर और उस्ताद मेहदी हसन, भारतीय जनता को संगीत कला से परिचित कराने, और उसे फिर से, प्रस्तुत करने वाले पहले लोगों में से थे।
गज़लें, एक समय, केवल उच्च वर्ग के लोगों के लिए ही मानी जाती थीं। 1970-80 में, जगजीत सिंह ने पश्चिमी और भारतीय शास्त्रीय वाद्ययंत्रों को मिलाकर, गज़ल रचना की एक समकालीन शैली पेश करके, इस शैली को लोकप्रिय बनाया। उनकी सबसे उल्लेखनीय कृतियों में अर्थ, प्रेम गीत और खुशियां हैं।
भारत में कुछ लोकप्रिय गज़ल कलाकार:
•बेगम अख़्तर (1914-1974):
अख़्तरी बाई फ़ैज़ाबादी, जिन्हें बेगम अख़्तर के नाम से भी जाना जाता है, एक भारतीय गायिका और अभिनेत्री थीं। “मल्लिका-ए-गज़ल” के रूप में प्रख्यात, उन्हें भारत की सर्वकालिक बेहतरीन गज़ल गायिका माना जाता है। बेगम अख़्तर ने, ठुमरी-दादरा की अपनी विशिष्ट शैली विकसित की, जिसमें, उन्होंने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की पूरब और पंजाब शैलियों को जोड़ा। उनकी गायन शैली, अद्वितीय है और केवल कुछ लोग ही उनकी शैली से मेल खा सकते हैं। इसके अलावा, उनके अधिकांश गीत, स्व-रचित है और रागों पर आधारित हैं। उनकी सबसे यादगार गज़लें निम्नलिखित हैं –
- वो जो हममें तुममें क़रार था
- हमरी अटरिया पे
- कुछ तो दुनिया की
• अनूप जलोटा (जन्म 1953):
अनूप जलोटा, एक भारतीय गायक और संगीतकार हैं, जो भारतीय संगीत शैली – भजन और उर्दू शायरी की शैली – गज़ल में, अपने प्रदर्शन के लिए जाने जाते हैं। जलोटा ने, अपने संगीत पेशे की शुरुआत, ऑल इंडिया रेडियो पर कोरस गायक के रूप में की थी। उन्होंने 1,500 से अधिक भजन, गज़ल और फ़िल्मी गाने रिकॉर्ड किए हैं। उन्होंने पांच महाद्वीपों के, 400 शहरों में फैले 5,000 से अधिक लाइव संगीत कार्यक्रम प्रस्तुत किए हैं। अनूप जलोटा, एकमात्र ऐसे आधुनिक भारतीय गायक हैं, जो गज़ल को वाकई शानदार अंदाज़ में गाते हैं। निस्संदेह ही, उनकी आवाज़ और स्वर, अधिक अनुभवी गायकों की तुलना में जटिल और सटीक हैं। कला-भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में, योगदान के लिए अनूप जलोटा को 2012 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया था।
उनकी सबसे यादगार गज़लें निम्नलिखित हैं –
- ऐसी लागी लगन
- चांद अंगड़ाइयां ले रहा है
- तुम्हारे शहर का मौसम
•जगजीत सिंह:
जगजीत सिंह को, किसी परिचय की ज़रुरत नहीं है। ‘गज़लों के बादशाह’ के नाम से मशहूर – जगजीत सिंह, भारत के सबसे प्रशंसित गज़ल गायकों में से एक रहे हैं। उनके गाने, हर श्रोता के दिल में जगह रखते हैं। उनकी उर्दू भाषा अविश्वसनीय थी, और उनकी आवाज़ की सीमा और गहराई अतुलनीय है। उन्होंने सरलता और स्पष्टता पर बहुत जोर दिया है। परिणामस्वरूप, उनकी मधुर आवाज़ हर किसी के सुख और दुख का हिस्सा बन गई। आलोचकों की प्रशंसा, और व्यावसायिक सफ़लता दोनों के मामले में, इस महान कलाकार को अब तक के सबसे सफ़ल गज़ल गायकों में से एक माना जाता है। 2003 में, उन्हें भारत सरकार द्वारा, पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
उनकी सबसे यादगार गज़लें निम्नलिखित हैं –
तुमको देखा तो ये ख्याल है
तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो
बात निकलेगी तो बहुत दूर तलक जाएगी
•साहिर लुधियानवी (1921-1980):
1943 में, लुधियानवी, लाहौर में बस गए, जहां उन्होंने उर्दू में अपनी पहली किताब – तल्खियां प्रकाशित की। 1949 में, वह भारत चले आए, जहां उन्होंने पहले दो महीने दिल्ली में बिताए और फिर मुंबई चले गए। हिंदी फ़िल्म उद्योग में, एक गीतकार के रूप में उनके काम ने, उन्हें ‘ताज महल (1963)’ और ‘कभी-कभी (1976)’ के लिए, दो फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार दिलाए। उनकी प्रसिद्ध गज़लों की कुछ लोकप्रिय पंक्तियों में, “कभी खुद पे कभी हालात पे रोना आया” और “चेहरे पे ख़ुशी छा जाती है” शामिल हैं।
• दुष्यंत कुमार:
1 सितंबर 1931 को जन्मे, दुष्यंत कुमार को 20वीं सदी के अग्रणी हिंदी कवियों में से एक माना जाता है। उनके कुछ उल्लेखनीय कार्यों में – साये में धूप, मान के कोण, और एक कंठ विषपायी, शामिल हैं। उनकी गज़लों की पंक्तियां, लोकप्रिय हिंदी फ़िल्मों, शो और गानों में इस्तेमाल की गई हैं। 27 सितंबर 2009 को, भारतीय डाक विभाग ने, उनके सम्मान में उनकी छवि के साथ एक स्मारक टिकट जारी किया था।
उनकी कृति – ‘साये में धूप’ की एक प्रसिद्ध पंक्ति इस प्रकार है –
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
संदर्भ
https://tinyurl.com/2mn8hrrj
https://tinyurl.com/244ap5dd
https://tinyurl.com/ms47e6dx
https://tinyurl.com/3vy8nf4u
https://tinyurl.com/263rz87b
चित्र संदर्भ
1. मंच पर ग़ज़ल गायकों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. अपने शिष्यों को शिक्षा देते हुए अमीर खुसरो को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. इस्माइल मेरठी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. बेगम अख़्तर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. अनूप जलोटा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. जगजीत सिंह को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)