वाहे गुरु जी का खालसा, वाहे गुरु जी की फ़तेह
भावार्थ: "ईश्वर की संपदा! ईश्वर की विजय!"
गुरु नानक देव जी के जीवन का वर्णन करती किंवदंतियों को जन्मसाखियाँ कहा जाता है। विद्वान इन किवदंतियों को अर्ध-पौराणिक जीवनियों के रूप में देखते हैं। ये जन्मसाखियाँ, सिख मौखिक परंपराओं पर आधारित हैं। इनमें इतिहास, शिक्षाओं और किंवदंतियों का अनोखा संगम देखने को मिलता है। शुरुआती जन्म साखियां, गुरु नानक देव जी की मृत्यु के 50 से 80 साल बाद लिखी गई थीं। इसके अलावा, 17वीं और 18वीं शताब्दी में भी कई अन्य जन्म साखियाँ रची गईं थी। सबसे बड़ी जन्मसाखियों (जिसे गुरु नानक प्रकाश कहा जाता है।) में, लगभग 9,700 छंद हैं। इन्हें कवि संतोख सिंह (Santokh Singh) ने 19वीं शताब्दी की शुरुआत में लिखा था। आइए, आज गुरु नानक गुरुपर्व के इस पावन अवसर पर जन्म साखियों के बारे में विस्तार से जानते हैं। साथ ही आज हम इन जन्मसाखियों में वर्णित गुरु नानक देव जी के जीवन की कुछ लोकप्रिय कहानियों पर नज़र डालेंगे।
जन्मसाखी, सिख साहित्य का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है। ये ग्रंथ गुरु नानक से जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण घटनाओं का उल्लेख करते हैं। आधुनिक सिख अनुयाई जन्म सखियों को गुरु नानक देव जी की जीवनी, छद्म जीवनी और पवित्र जीवनी के रूप में देखते हैं। जन्मसाखियों में मिथक, किंवदंती और इतिहास का मिश्रण देखने को मिलता है, जिससे हमें गुरु नानक देव जी के जीवन दर्शन को समझने में मदद मिलती है।
समय के साथ, इनमें भक्तों, संतों और फ़कीरों आदि दिव्य पुरुषों की कहानियां भी शामिल की गई हैं। ये कहानियाँ, शबद या श्लोक के द्वारा लिखी गई कविताओं से जुड़ी होती हैं। यह साहित्य, गद्य और कविता को मिलाता है, और इसमें पौराणिक, ऐतिहासिक और किंवदंती के तत्व भी होते हैं।
आइए, अब गुरु नानक की प्रमुख जन्मसाखियों पर एक नज़र डालते हैं:
बाला जन्मसाखी: बाला जन्मसाखी को गोरख दास द्वारा 1658 में लिखा गया था। वर्तमान में, इसे दिल्ली में प्यारे लाल कपूर के स्वामित्व वाले एक निजी संग्रह में संजोया गया है। यह पुस्तक, कई वर्षों से सिख समुदाय के लोगों के बीच लोकप्रिय रही है। इसकी लोकप्रियता आज भी ज्यों की त्यों बनी हुई है। गुरु नानक से जुड़ी चमत्कारी किवदंतियों के कारण, इसे बहुमूल्य माना जाता है। कई लोग, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में, इन कहानियों पर गहरा विश्वास रखते हैं।
पुरातन जन्मसाखी: पुरातन जन्म साखी को "पुरानी" जन्मसाखी के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि इसे बाला जन्मसाखी से पहले लिखा गया था। हालांकि इसे कब लिखा गया, यह अभी भी पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है। कृपाल सिंह का दावा है कि इसे 1634 में लिखा गया था, जबकि खान सिंह नाभा, खुशवंत सिंह और गोपाल सिंह जैसे कुछ प्रमुख लेखकों और इतिहासकारों का तर्क है कि इसका लेखन, 16वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में, लगभग 1588 में किया गया था। इसके लेखन का श्रेय, सेवा दास को दिया जाता है। मैकलियोड (Roy MacLeod) भी इसकी रचना की कोई विशिष्ट तिथि नहीं देते, लेकिन उनके द्वारा यह सुझाव दिया जाता है कि इसे गुरु अर्जन के समय में लिखा गया था।
मेहरबान जन्मसाखी: मनोहर दास मेहरबान, पृथी चंद (गुरु अर्जन देव के सबसे बड़े भाई) के पुत्र की आध्यात्मिकता में गहरी रुचि थी। गुरु अर्जन के साथ, उनका घनिष्ठ संबंध था और उन्होंने सिख परंपराओं के बारे में सीधे उन्हीं से सीखा था। मेहरबान की जन्मसाखी की कहानियाँ, पुरातन जन्म साखी की कहानियों के समान मानी जाती हैं।
आदि जन्मसाखी: आदि जन्म साखी को आदि साखियां भी कहा जाता है। इसे सबसे पहले मोहन सिंह दीवाना द्वारा लाहौर में खोजा गया था। विभाजन से पहले लाहौर, पंजाब का हिस्सा था। खोजी गई पांडुलिपि. 1701 की मानी जाती है। हरबंस सिंह का मानना है कि यह परंपरा, 17वीं शताब्दी के मध्य में शुरू हुई होगी। तब से, इस परंपरा की और भी पांडुलिपियाँ खोजी गई हैं। आदि जन्मसाखी में कुछ हद तक (विशेषकर कुछ कहानियों और शिक्षाओं में) पुरातन जन्मसाखियों का प्रभाव देखा जाता है। हालाँकि, यह गुरु नानक की यात्राओं को चार अलग-अलग यात्राओं में विभाजित न करके पुरातन जन्मसाखियों से भिन्न मानी जाती है।
जन्मसाखियों में कई प्रेरणदायक कहानियां वर्णित हैं, जिनमें से कुछ ऐतिहासिक कहानियों को हम आगे पढ़ेंगे।
1. स्कूल में बाबा नानक: जन्मसाखियों में से एक में बाबा नानक की शुरुआती शिक्षाओं का वर्णन है, जो उन्होंने एक युवा छात्र के रूप में सीखीं। उनके पिता, उन्हें बहुत छोटी सी उम्र में ही शिक्षा केंद्र ले गए। बाबा नानक, एक होशियार बच्चे थे और उन्होंने संस्कृत तथा फ़ारसी सहित कई विषयों की शिक्षा ली। उनके शिक्षक, उनकी गहरी समझ और ज्ञान से चकित थे। उन्होंने अपने सहपाठियों के साथ-साथ शिक्षकों को भी प्रेरित किया। बाबा नानक ने सिखाया कि सच्ची शिक्षा लोगों को सांसारिक मोह माया से मुक्त होने में मदद करती है।
2. सच्चा सौदा - सबसे अच्छा सौदा: सच्चा सौदा, एक अति प्रसिद्ध साखी है, जिसे कुछ लोग लंगर या सामुदायिक रसोई की परंपरा की शुरुआत के तौर पर देखते हैं। ये किवदंती कहती है कि बाबा नानक के पिता, अपने पुत्र के भविष्य को लेकर चिंतित रहते थे। एक दिन, उन्होंने बाबा नानक को 20 चांदी के सिक्के दिए और कहा कि वे निकटतम शहर में जाएँ और इस पैसे को समझदारी से खर्च करके लाभ अर्जित करें। बाबा नानक, आज्ञा पाकर निकल पड़े और रास्ते में, उन्होंने भूखे साधुओं के एक समूह को देखा। साधुओं ने कई दिनों से कुछ नहीं खाया था। बाबा नानक को उन पर तरस आ गया और उन्होंने अपना पूरा धन उन्हें खिलाने में खर्च कर दिया। हालाँकि उनके इस कदम से उनके पिता खुश नहीं थे। लेकिन बाबा नानक अपने पिता को यह समझाने में सफ़ल रहे कि इस पैसे का भूखे लोगों को खाना खिलाने से बेहतर इस्तेमाल हो ही नहीं सकता था।
3. बाबा नानक ने नरभक्षी कौड़ा को सुधारा: एक और कहानी, गुरु नानक की कौड़ा नामक नरभक्षी से मुलाकात का वर्णन करती है। एक दिन जब बाबा नानक और भाई मर्दाना घने जंगल से गुज़र रहे थे, तो उन्होंने एक भयानक दृश्य देखा। उन्होंने देखा कि कौड़ा भील (Kauda Bheel) नामक नरभक्षी निर्दोष लोगों को पकड़कर खा रहा है। कौड़ा उबलते तेल का एक बड़ा बर्तन तैयार कर रहा था। जब कौड़ा ने गुरु नानक जी को देखा, तो वह उन्हें कड़ाहे के पास खींच ले गया। बाबा नानक ने शांति से अपनी उंगली गर्म तेल में डुबोई, और वह तेल तुरंत ठंडा हो गया। कौड़ा यह देखकर हैरान रह गया। उसे अपनी भूल का अहसास हो गया और वह बाबा नानक के पैरों में गिर गया।
4. बाबा नानक और विशाल मछली: जन्मसाखियों में उल्लेखित एक कम प्रसिद्ध लेकिन सुंदर कहानी, एक विशाल मछली के बारे में है, जिसने गुरु नानक देव जी और उनके साथियों, भाई बाला और भाई मरदाना को समुद्र पार कराने में मदद की। इस किवदंती के अनुसार, जब भाई मरदाना ने विशाल मछली को देखा, तो वह डर गए। लेकिन मछली ने उन्हें आश्वस्त किया कि वह गुरु नानक की सेवा करने और मुक्ति के लिए आशीर्वाद मांगने आई है। उस मछली को याद आया कि गुरु नानक ने पिछले जन्म में उसके साथ कितनी दयालुता दिखाई थी और वह अपनी कृतज्ञता दिखाना चाहती थी।
5. बाबा नानक और भक्त प्रह्लाद: कुछ पेंटिंग, गुरु नानक और भक्त प्रह्लाद के बीच एक काल्पनिक मुलाकात को भी दर्शाती हैं। सिख परंपरा में, भक्त प्रह्लाद को ईश्वर के प्रति अपनी गहरी भक्ति के लिए जाना जाता है। उनके पिता हिरण्यकश्यप ने उन्हें मारने की कोशिश की। लेकिन भगवान् विष्णु ने प्रह्लाद की दृढ़ आस्था के कारण उनकी रक्षा की। यह कहानी गुरु नानक की इक ओंकार के प्रति अटूट भक्ति और हर जगह दिव्य उपस्थिति में विश्वास के बारे में मूल शिक्षाओं को दर्शाती है। गुरु नानक के जीवन की ये सभी कहानियाँ, आज भी प्रासंगिक हैं और दया, विश्वास और भक्ति के महत्वपूर्ण सबक सिखाती हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/2y6mcwfk
https://tinyurl.com/2ao5wcfa
https://tinyurl.com/22c6s6g6
https://tinyurl.com/26et79bx
चित्र संदर्भ
1. अमृतसर में, भाई मर्दाना और भाई बाला के साथ गुरु नानक के चित्र को संदर्भित करता एक चित्रण (rawpixel)
2. 19वीं सदी की जन्मसाखी में मक्का की एक मस्जिद के अंदर, काबा की ओर पैर किए हुए गुरु नानक को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. 1733 ई. में बनाई गई सचित्र सिख धर्म पांडुलिपि को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. 19वीं शताब्दी की जन्मसाखी में गुरु नानक पेड़ के नीचे और साँप की छाया में सो रहे हैं और गायें उन्हें देख रही हैं। इस दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. भाई बाला की जन्मसाखी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)