गाय को सनातन धर्म में एक पवित्र पशु माना जाता है, क्योंकि यह हमें जीवन दाई दूध प्रदान करती है। जैसे पृथ्वी को माता का दर्जा मिला है, ठीक उसी प्रकार से गाय को भी सनातन धर्म में माता का दर्जा प्राप्त है। गाय का महत्व विभिन्न पुराणों, महाकाव्यों, आदि में दिखाई देता है। धेनु गाय की कथा इसी से सम्बंधित है, विभिन्न कार्यों को भी गायों के नाम से ही जोड़ा हुआ है जैसे कि संगोष्ठी, गोष्ठी आदि। कृष्ण को भी गोपाल या गोविंदा नाम से जाना जाता है जिसका सीधा अर्थ है गौ रक्षक या गौ पालक। कृष्ण को गौ चराते और माखन प्रेमी के रूप में ही प्रदर्शित किया गया है। सनातनी परंपरा में गाय को सबसे पहले खाना खिलाया जाता है जिसका सीधा अर्थ है कि गाय माँ है और पहला निवाला माँ के मुख में जाना चाहिए।
गाय के दूध को आयुर्वेद में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। इसके दूध को कई बिमारियों के दौरान पिया जाता है। गाय के दूध से दही, घी आदि का निर्माण किया जाता है जो कि अत्यंत पौष्टिक और स्वास्थवर्धक होता है। दूध के अतिरिक्त गायों का उपयोग कई अन्य उद्देश्यों के लिए किया जाता है जैसे कि द्वादशः के समय मृतक को वैतरणी नदी गाय द्वारा ही पार कराई जाती है। खेतों में हल चलाने या अन्य कृषी कार्यों में बैल का प्रयोग किया जाता है। बैल शिव के मुख्य वाहन के रूप में भी जाना जाता है। शिव के वाहन को नंदी कहा जाता है। गाय के गोबर का प्रयोग विभिन्न अनुष्ठान व खाना बनाने के लिए उपयोगी आग जलाने के लिए किया जाता है। गावों में घरों के फर्श की लिपाई का काम भी गाय के गोबर से ही किया जाता है, घरों के दीवारों की भी लिपाई गोबर और कीचड़ का घोल बना कर किया जाता है। गोबर से खेतों के लिए खाद का भी निर्माण किया जाता है जो अत्यंत उर्वर होता है। गाय का महत्व भारतीय समाज में अध्यात्मिकता के साथ-साथ कृषि और खाद्य से भी जुड़ा हुआ है। यही कारण है कि इसे भारतीय समाज में अत्यंत उच्च स्थान (माता) प्राप्त है।
1. द मिथ ऑफ़ होली काऊ, द्विजेन्द्र नारायण झा
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