डिज़ाइन और आध्यात्मिकता के उत्कृष्ट मिश्रण को प्रदर्शित करने वाले भारत के मंदिरों को सांस्कृतिक वास्तुकला की दुनिया के सम्मोहक उदाहरणों के रूप में पहचाना जाता है। सदियों से, ये मंदिर, देवत्व और शिक्षा के केंद्रों से कहीं अधिक काम करते रहे हैं। वे अपनी तरह के बेहतरीन वास्तुशिल्प चमत्कार हैं, जिन्हें देखकर भक्तों और आश्चर्यचकित आगंतुकों के हृदय, प्रशंसा और श्रद्धा से भर जाते हैं। तंजावुर में 11वीं शताब्दी का बृहदीश्वर मंदिर और ओडिशा में कोणार्क सूर्य मंदिर, जो कलिंग मंदिर वास्तुकला शैली का प्रतीक है, अपनी बलुआ पत्थर की सुंदरता दर्शाते हैं | नागर वास्तुकला विशेषताओं के साथ खजुराहो में मध्ययुगीन काल का कंदरिया महादेव मंदिर, बोधगया में महाबोधि मंदिर परिसर और हम्पी में विरुपाक्ष मंदिर, जो विजयनगर काल की कलात्मक और सांस्कृतिक उपलब्धियों के शिखर का प्रतिनिधित्व करते हैं, भारतीय सभ्यता की अद्वितीय रचनात्मकता का प्रमाण देते हैं। हमारे मेरठ शहर में भी, पारंपरिक हिंदू मंदिर स्थापत्य शैली में निर्मित औघड़नाथ मंदिर, शहर के छावनी क्षेत्र में स्थित है और भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर वास्तुकला की एक ऐसी ही पारंपरिक शैली 'वेसर शैली', जिसकी उत्पत्ति 10 वीं शताब्दी के अंत में पश्चिमी चालुक्यों से हुई थी, में द्रविड़ और नागर दोनों शैलियों के तत्वों का मिश्रण है। विशेष रूप से मंदिरों के गर्भगृह के ऊपर अधिरचना का आकार, आमतौर पर पिरामिडनुमा होता है, और उत्तरी शिखर मुख्य संरचना से छोटा होता है। तो आइए, आज मंदिर वास्तुकला की इस शैली के बारे में विस्तार से जानते हैं। आगे हम, इन मंदिरों की विशेषताओं के बारे में बात करेंगे और वेसर मंदिरों पर वास्तुकला की नागर और द्रविड़ शैली के प्रभाव पर चर्चा करेंगे। अंत में, हम भारत के कुछ सबसे महत्वपूर्ण वेसर शैली में निर्मित मंदिरों पर प्रकाश डालेंगे।
मंदिर वास्तुकला की वेसर शैली:
मंदिर वास्तुकला की वेसर शैली, नागर और द्रविड़ शैलियों का एक संयोजन है। ऐसा माना जाता है कि वेसरा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत शब्द 'विश्रा' से हुई है जिसका अर्थ है लंबी सैर करने वाला क्षेत्र। कई इतिहासकार इस बात से सहमत हैं कि मंदिर वास्तुकला की वेसर शैली मुख्य रूप से कर्नाटक क्षेत्र में उभरी और फली-फूली। इस शैली की शुरुआत, बादामी के चालुक्यों (500-753 ईसवी) द्वारा की गई थी, जिन्होंने अनिवार्य रूप से नागर और द्रविड़ शैलियों के मिश्रण से उत्पन्न एक ऐसी शैली में मंदिरों का निर्माण किया, जिसे बाद में एलोरा के मान्यखेता (750- 983 ईसवी) के राष्ट्रकूटों, चालुक्यों द्वारा और परिष्कृत किया गया | लक्कुंडी, दम्बल, गडग आदि में कल्याणी (983-1195 ईसवी) और होयसला (1000-1330 ईसवी) द्वारा इसका प्रतीकीकरण किया गया। बेलूर, हलेबिदु और सोमनाथपुरा के होयसला मंदिर, इस शैली के प्रमुख उदाहरण हैं। इस शैली में दक्षिणी भारत के मंदिरों की योजना और आकार का उपयोग किया गया है, जबकि इनका विवरण, उत्तरी भारतीय मंदिरों के समान हैं।
मंदिर वास्तुकला की वेसर शैली की उत्पत्ति और विकास:
वेसर शैली की जड़ें, कृष्णा और तुंगभद्रा नदियों के बीच धारवाड़ क्षेत्र में प्रचलित शैलियों में देखी जा सकती हैं।
1. बादामी के चालुक्यों की वेसर वास्तुकला: उत्तर भारतीय मंदिर के तत्वों को दक्षिणी भारत के मंदिरों के साथ मिलाने का प्रयोग, 7वीं शताब्दी में शुरू हुआ, विशेष रूप से बादामी के चालुक्यों (500-753 ईसवी) के तहत। कई शैलियों का संकरण और समावेश चालुक्य इमारतों की पहचान थी।
चालुक्यों के अधीन कुछ उल्लेखनीय मंदिर:
•● रावण फाड़ी गुफ़ा, ऐहोल, कर्नाटक: यह प्रारंभिक चालुक्य शैली का एक उदाहरण है, जो अपनी विशिष्ट मूर्तिकला शैली के लिए जाना जाता है। इस स्थल की सबसे महत्वपूर्ण मूर्तियों में से एक नटराज की मूर्ति सप्तमातृकाओं के एक बड़े चित्रण से घिरी हुई है: तीन शिव के बाईं ओर और चार उनके दाईं ओर।
•● लाड खान मंदिर, ऐहोल, कर्नाटक: सबसे पुराने हिंदू मंदिरों में से एक, यह मंदिर शिव को समर्पित है। चालुक्य वंश के राजाओं ने इसे 5वीं शताब्दी में बनवाया था। इस मंदिर की संरचना, पहाड़ियों पर बनने वाले लकड़ी की छतों वाले मंदिरों से प्रेरित प्रतीत होती है, हालाँकि, यह पत्थर से बना है। इस मंदिर का नाम, मंदिर में रहने वाले लाड खान नाम के एक व्यक्ति के नाम पर रखा गया था।
•● दुर्गा मंदिर, ऐहोल, कर्नाटक: इस मंदिर का निर्माण, सातवीं और आठवीं शताब्दी के बीच किया गया था। इस मंदिर की वास्तुकला, मुख्य रूप से द्रविड़ है, लेकिन कुछ क्षेत्रों में नागर प्रभाव भी देखने को मिलता है। इस मंदिर को अद्वितीय और भव्य चालुक्य मंदिर माना जाता है।
•● पट्टडक्कल मंदिर, कर्नाटक: पट्टडक्कल एक जैन मंदिर सहित दस मंदिरों वाला यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है। यहां विभिन्न स्थापत्य शैलियों का मिश्रण देखा जा सकता है। दस मंदिरों में से चार द्रविड़ शैली में, चार नागर शैली में और एक जैन शैली में बनाया गया है | पापनाथ मंदिर दो शैलियों के मिश्रण से बनाया गया है। राष्ट्रकूटों ने नौवीं शताब्दी में यहां जैन नारायण मंदिर का निर्माण कराया था। चालुक्य राजा विक्रमादित्य द्वितीय की रानी, लोका महादेवी ने पट्टडक्कल में विरुपाक्ष मंदिर का निर्माण कराया, जिसे श्री-लोकेश्वर-महा-सिला-प्रसाद (733-44) के नाम से भी जाना जाता है। संभवतः इसका निर्माण, कांचीपुरम के पल्लवों पर उनके पति की जीत की स्मृति में, 740 ईसवी के आसपास किया गया था। योजना और ऊंचाई के आधार पर, यह कांचीपुरम के कैलाशनाथ मंदिर जैसा दिखता है। यह मंदिर द्रविड़ वास्तुकला के सबसे विकसित और उत्तम चरण को दर्शाता है।
2. मान्यखेता राष्ट्रकूटों की वास्तुकला: यह शैली, मान्यखेता के राष्ट्रकूटों (750-983 ईसवी) के अधीन और अधिक विकसित हुई। राष्ट्रकूटों द्वारा निर्मित वेसर शैली के मंदिर का उदाहरण एलोरा में कैलाशनाथ मंदिर है। राष्ट्रकूटों ने प्रारंभिक पश्चिमी चालुक्यों से, लगभग 750 ईसवी में, दक्कन पर कब्ज़ा कर लिया। उनके अधिकांश मंदिर, चालुक्य शैली में बने थे। कृष्ण द्वितीय के शासनकाल के दौरान, एलोरा में कैलाशनाथ मंदिर का निर्माण कार्य पूरा हुआ, जिसमें साम्राज्य की विशिष्ट स्थापत्य शैली देखने को मिलती है। राष्ट्रकूटों ने पट्टडक्कल में जैन मंदिर भी बनवाया। इस समय के दौरान बनाया गया एक और मंदिर, कुक्कनूर के पास नवलिंग मंदिर है।
3. कल्याणी चालुक्यों की वास्तुकला: वेसर शैली ने कल्याणी के बाद के पश्चिमी चालुक्यों (983-1195 ईसवी) के तहत, अपनी अलग पहचान बनाई। इस समय तक, यह केवल दो शैलियों का एक साधारण मिश्रण नहीं रह गई, बल्कि उनके रचनात्मक संश्लेषण द्वारा गठित एक वास्तुशिल्प आविष्कार बन गई।
4. होयसल वेसरा वास्तुकला: होयसल के अंतर्गत वेसर शैली, अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँची। उन्होंने मंदिरों के निर्माण के लिए, नरम सेलखड़ी पत्थर का उपयोग किया, जिससे उन्हें शानदार मूर्तियां बनाने में मदद मिली। उदाहरण:
•● चेन्नाकेशव मंदिर, बेलूर,
•● होयसलेश्वर मंदिर, हेलेबिड और
•● चेन्नाकेशव मंदिर, सोमनाथपुरम।
विष्णुवर्धन के शासनकाल के दौरान, चोलों के विरुद्ध विष्णुवर्धन की जीत की याद में बेलूर में केशव मंदिर बनाया गया था, जो इस काल की कला का एक उदाहरण है। इस मंदिर में एक केंद्रीय स्तंभ वाले कक्ष के चारों ओर, एक जटिल रूप से निर्मित तारे के आकार में कई मंदिर व्यवस्थित हैं। इस अवधि के दौरान, हेलेबिड, सोमनाथपुर और अन्य स्थानों के मंदिरों में इस तरह की व्यवस्थाएं देखी जा सकती थीं । इस दौरान बनाया गया एक और उल्लेखनीय मंदिर होयसलेश्वर मंदिर है, जो भगवान शिव को समर्पित है। होयसल राजा विष्णुवर्धन ने इसे 1150 में गहरे शिस्ट पत्थर से बनवाया था। इसमें, संगीत और नृत्य को समायोजित करने हेतु मंडप के लिए एक बड़ा हॉल भी है।
5. मंदिर वास्तुकला की विजयनगर वेसर शैली: यह चालुक्य, होयसल, पांड्य और चोल शैलियों का एक जीवंत संयोजन है। विजयनगर मंदिरों की विशेषता, अलंकृत स्तंभों वाले हॉल और रायगोपुरम, या देवी-देवताओं की आदमकद आकृतियों से सुसज्जित स्मारकीय मीनारें हैं जो मंदिर के प्रवेश द्वार पर मौज़ूद हैं। विजयनगर साम्राज्य (1335-1565 ईसवी) के शासक, जिनकी राजधानी हम्पी में थी, कला और वास्तुकला के महान संरक्षक थे। उन्होंने अपनी वास्तुकला में चोल, होयसल, पांड्य और चालुक्य साम्राज्यों के वास्तुशिल्प तत्वों को संयोजित किया। उनके अधीन वास्तुकला शैली, बीजापुर की इंडो-इस्लामिक शैली से प्रभावित होने लगी, जो इस काल के दौरान बने मंदिरों में परिलक्षित होती है। इस काल के दौरान, मंदिर की दीवारों को नक्काशी और ज्यामितीय पैटर्न से बड़े पैमाने पर सजाया गया था। गौपुरम, जो पहले केवल सामने की तरफ़ पाए जाते थे, अब चारों तरफ़ बनाए जाने लगे। इस काल के मंदिरों के खंभों पर, याली नामक एक पौराणिक प्राणी को उकेरा हुआ देखा जा सकता है।
मंदिर के आसपास की दीवारें ऊंची होती थीं। प्रत्येक मंदिर में अनेक मंडपों का निर्माण किया जाता था और केंद्रीय मंडप को कल्याण मंडप के नाम से जाना जाता था। इस समय के कुछ बड़े मंदिरों में, पुरुष देवता के महिला समकक्ष की पूजा के लिए समर्पित एक अलग मंदिर होता था। इस समय के दौरान, मंदिर के मैदानों के भीतर, धर्मनिरपेक्ष इमारतों की अवधारणा भी पेश की गई थी। हम्पी में विरुपाक्ष मंदिर और देव राय प्रथम के हज़ारा राम मंदिर, दो प्रमुख मंदिर हैं जो विजयनगर शैली का प्रतिनिधित्व करते हैं। ऐतिहासिक शहर हम्पी में स्थित, विरुपाक्ष मंदिर, भगवान शिव को समर्पित है। यह विजयनगर साम्राज्य से भी पहले का है लेकिन कृष्णदेवराय के शासनकाल के दौरान, इसमें महत्वपूर्ण विस्तार देखा गया। यह मंदिर अपने विशाल गोपुरम जटिल नक्काशी और यूनेस्को विरासत स्थल के हिस्से के रूप में ऐतिहासिक महत्व के लिए जाना जाता है। हम्पी यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट का हिस्सा, विट्टला मंदिर अपनी असाधारण शिल्प कौशल के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें प्रतिष्ठित पत्थर के रथ और संगीतमय खंभे शामिल हैं जो टैप करने पर संगीतमय स्वर उत्पन्न करते हैं।
मंदिर वास्तुकला की वेसर शैली की विशेषताएं:
•● वेसर शैली में सेलखड़ी का उपयोग, निर्माण सामग्री के रूप में किया जाता है, जिससे इन मंदिरों में देवताओं और उनके आभूषणों पर भरपूर सजावटी नक्काशी की जा सकती है।
•● सभी वेसर मंदिरों में प्रवेश द्वार नहीं पाया जाता है।
•● पानी की टंकी मौजूद हो भी सकती है और नहीं भी।
•●इन मंदिरों में स्तंभ आवश्यक रूप से होते हैं।
•● एक नियम के रूप में, परिसर की दीवारें नहीं होती हैं।
•● मंडप आम तौर पर गर्भगृह और उसके विमान से बड़ा होता है। खुले मंडप सबसे बड़े होते हैं।
•● एक मंदिर के अंदर ही एक से अधिक मंदिर होते हैं, आमतौर पर तीन
वेसर शैली पर मंदिर वास्तुकला की नागर और द्रविड़ शैली का प्रभाव: जबकि कुछ वेसरा वास्तुकला मंदिरों में तारकीय (एक तारे के रूप में) लेआउट हैं, अन्य में वर्गाकार योजनाएं हैं। दीवार बनाने में, वेसर शैली मुख्य रूप से द्रविड़ शैली पर आधारित है, लेकिन यह संरचना में नागर लक्षणों को अपनाती है, जो भारतीय मंदिर वास्तुकला के सबसे विशिष्ट पहलुओं में से एक है। वेसर शैली के मंदिरों में दीवार निर्माण और संरचना मिलकर नागर और द्रविड़ दोनों का संकेत देती हैं। उदाहरण के लिए, सोमनाथपुरा में चेन्ना-केशव मंदिर, जो 1258 ईसवी में निर्मित विष्णु मंदिर है, का डिज़ाइन तीनों मंदिरों में एक तारे के रूप में किया गया है। इसकी दीवारें, नागर मंदिर की स्तंभ-निर्मित दीवारों से मिलती जुलती हैं, जो कई मूर्तियों से अलंकृत हैं। अपनी दीवारों की तारकीय व्यवस्था के कारण, यह संरचना, तारे के आकार की है। इसके अन्य उदाहरणों में, मंदिर का डिज़ाइन चौकोर है, इसकी दीवारें अलंकृत हैं, और इसके स्तंभ द्रविड़ शैली के समान ही उन्मुख हैं। लगभग 1100 ईसवी में, रानी शांतला देवी ने शांतिग्राम में भोग-नरसिम्हा मंदिर का निर्माण कराया, जिसमें द्रविड़ मंदिरों के समान स्तंभ दोहे हैं। वेसर संरचना, द्रविड़ और नागर आकृतियों से ली गई है। इसके शीर्ष पर, नागर के समान एक अमलाका संरचना है, लेकिन अधिरचना को बनाने वाले शेष घटक द्रविड़ हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/mry9yvds
https://tinyurl.com/bdftxbd4
https://tinyurl.com/34cf77ts
https://tinyurl.com/mspjhwe6
https://tinyurl.com/2wsr7m5f
https://tinyurl.com/2tavjba4
चित्र संदर्भ
1. चेन्नाकेशव मंदिर, बेलूर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. कर्नाटक में स्थित केदारेश्वर मंदिर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. ऐहोल, कर्नाटक में रावण फाड़ी गुफ़ा मंदिर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. लाड खान मंदिर, ऐहोल, कर्नाटक को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. दुर्गा मंदिर, ऐहोल, कर्नाटक को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. पट्टडक्कल मंदिर, कर्नाटक को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
7. चेन्नाकेशव मंदिर के पिछले हिस्से को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
8. चेन्नाकेशव मंदिर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)