मेरठ के सरधना को अपने गौरवपूर्ण इतिहास के साथ-साथ यहां की गंगा नहर प्रणाली के लिए भी जाना जाता है। यह नहर प्रणाली, पूरे दोआब क्षेत्र को सींचती है। गंगा नहर प्रणाली क्षेत्र, भारत में गंगा नदी और यमुना नदी के बीच में स्थित है। ऊपरी गंगा नहर, इस प्रणाली का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। मूल गंगा नहर (Ganges Canal), भीमगोड़ा बैराज से शुरू होती है। यह स्थान हरिद्वार में हर की पौड़ी के पास है। गंगा नहर कई स्थानों से होकर बहती है। इन स्थानों में रुड़की, पुरक्वाज़ी, मेरठ में सरधना, मुरादनगर, डासना, बुलंदशहर, खुर्जा और हरदुआगंज आदि क्षेत्र शामिल हैं। यह अलीगढ़ ज़िले के अकराबाद के पास नानऊ तक बहती है। यहाँ पर गंगा नहर, दो शाखाओं में विभाजित हो जाती है। एक शाखा कानपुर जाती है, और दूसरी इटावा की ओर चली जाती है। आज हम इसी महत्वपूर्ण नहर के इतिहास में गोता लगाएंगे। हम इसकी प्रमुख विशेषताओं के बारे में जानेंगे। साथ ही हम यह भी देखेंगे कि नहर के निर्माण के दौरान, इसके निर्माण से जुड़े लोगों को किन-किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा? अंत में मेरठ में स्थित एक बांध "भोले की झाल" के बारे में जानेंगे जो आज कई लोगों के लिए एक लोकप्रिय पिकनिक स्थल बन गया है।
गंगा नहर बनाने के कार्य को 1854 में शुरु किया गया था। इसके निर्माण की परियोजना को उस समय दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे महँगी मानव निर्मित जलमार्ग परियोजना बताया जाता है। यह नहर, उत्तर भारत में गंगा और यमुना नदियों के बीच के क्षेत्र को सिंचित करने के लिए बनाई गई थी। गंगा नहर, हरिद्वार से दक्षिण में 898 मील से अधिक दूरी तक फैली हुई है। हरिद्वार हिंदू धर्म के सबसे पवित्र स्थानों में से एक है।
अपने ऊपरी हिस्सों में यह नहर, अन्य कई छोटी-बड़ी नदियों और नालों के साथ मिलती है।
प्रसिद्ध डिज़ाइनर और इतिहासकार एंथनी अचवती (Anthony Acciavatti) ने अपनी पुस्तक गंगा वाटर मशीन (Ganga Water Machine) में लिखा है: “मानसून के मौसम में इन जलमार्गों का स्तर, ख़तरनाक और तीव्र गति के साथ उग्र हो सकता है। इस वजह से, नहर पर खर्च किए गए धन का बहुत बड़ा हिस्सा इसके चौराहों पर मार्ग बनाने के लिए इस्तेमाल किया गया था। ये मार्ग, पानी के एक बड़े हिस्से को दूसरे मार्ग पर बराबरी से बहने की अनुमति देते हैं। इन चैनलों या मार्गों को इंजीनियरिंग की दुनिया में एक बेजोड़ मिसाल के तौर पर पेश किया जाता है।”
गंगा नहर के पहले 20 मील में जल निकायों के साथ चार प्रमुख चौराहे हैं। इनमें से दो चौराहे सुपर-पैसेज (Super-Passage) द्वारा पार किए जाते हैं। एक सुपर-पैसेज 200 फ़ीट चौड़ा, 14 फ़ीट गहरा और 450 फ़ीट लंबा है। दूसरा सुपर-पैसेज और भी चौड़ा है, जिसकी चौड़ाई 300 फ़ीट है। पहले सुपर-पैसेज को रेनपुर सुपर-पैसेज के नाम से जाना जाता है। इसके तल पर कंक्रीट स्टॉप की एक साफ़ -सुथरी दिवार खड़ी की गई है। ये दीवार जिसे स्टॉप कहा जाता है, हिमालय से नीचे आने वाले पत्थरों को धीमा करने में मदद करते हैं। ये पत्थर, अन्यथा पुल की दीवार को तोड़ सकते हैं । हालांकि टूट-फूट के कारण स्टॉप को हर दो या तीन साल में बदलना पड़ता है
मुख्य नहर, 340 किलोमीटर लंबी है, जबकि इसकी शाखाएँ लगभग 5,640 किलोमीटर लंबी हैं। इस नहर के किनारे पर कई जल विद्युत उत्पादन स्टेशन भी बने हुए हैं। ये स्टेशन, अपने आसपास के क्षेत्र के लिए बिजली उत्पादन में मदद करती है। नहर के निर्माण के बाद इसके आस-पास रहने वाले लोगों के लिए मछली पकड़ने जैसी गतिविधियों को भी बढ़ावा मिला है।
गंगा नदी के पानी का बेहतर उपयोग करने के लिए, इस नहर को राष्ट्रीय जलमार्ग परियोजना के रूप में घोषित किया गया है। इस परियोजना का उद्देश्य, जल प्रबंधन में सुधार करना और स्थानीय समुदायों का समर्थन करना है। हालांकि गंगा नहर परियोजना को पूरा कर देना कोई आसान काम नहीं था। आज भले यह नहर लाखों लोगों के लिए लाभकारी साबित हो रही है, लेकिन इसके निर्माण में संलग्न लोगों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा था। उदाहरण के तौर पर, शुरू में, हिंदू पुजारियों के द्वारा इस नहर के निर्माण का कड़ा विरोध किया गया था। उन्हें चिंता थी कि इस पवित्र नदी गंगा का पानी नहर में ही बंध जाएगा।।
लेकिन स्थानीय पुजारियों के साथ बैठक के बाद, परियोजना के डिज़ाइनर प्रोबी थॉमस कॉटली (Proby Thomas Cautley) ने बांध में एक गैप छोड़ने पर सहमति जताई। इस गैप से पानी स्वतंत्र रूप से बह सकता था । उन्होंने नदी के किनारे स्नान घाटों की मरम्मत करके धार्मिक नेताओं से और अधिक समर्थन प्राप्त किया।
1842 में मजदूरों ने नहर की खुदाई शुरू की। संलग्न परियोजना दल को निर्माण के लिए अपनी ईंटें, ईंट भट्टे और गारा खुद बनाना पड़ा। गंगा नहर का निर्माण करते समय, इंजीनियरों को कई पहाड़ी धाराओं का सामना करना पड़ा। ये धाराएँ, समस्याएँ पैदा कर सकती थीं क्योंकि वे नहर में पानी के प्रवाह को उग्र कर सकती थीं। पहाड़ी धाराओं की समस्या को हल करने के लिए, इंजीनियरों ने 25 मीटर ऊँचा एक जलसेतु बनाया।’ यह आधे किलोमीटर ( लगभग 0.3 मील ) तक फैला हुआ है। इस जलसेतु ने नहर को नीचे की पहाड़ी धाराओं से प्रभावित हुए बिना खड़ी क्षेत्र पर सुचारू रूप से बहने की अनुमति दी।
यदि आप मेरठ में रहते हैं तो संभव है कि आपके घर में जो बिजली आ रही है, वह भी इसी नहर की देन हो। दरअसल मेरठ के एक बड़े हिस्से के लिए, अधिकांश बिजली भोले की झाल नामक एक महत्वपूर्ण बांध से सृजित होती है। भोले की झाल गंगा, नहर से जुड़ा एक महत्वपूर्ण बाँध है। इस बांध को सलावा की झाल के नाम से भी जाना जाता है। आज इस बांध के आसपास का क्षेत्र, एक लोकप्रिय पिकनिक स्थल बन गया है। स्थानीय लोग और पर्यटक, प्राकृतिक सुंदरता और शांति का आनंद लेने के लिए इसी स्थान पर आते हैं। यह घूमने-फिरने के लिए एक शानदार जगह है। लोग बिना किसी प्रवेश शुल्क के यहाँ आराम कर सकते हैं। इस बांध के पास एक शिव मंदिर भी है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/26t3s837
https://tinyurl.com/ysuhgmr5
https://tinyurl.com/2xwebl5y
https://tinyurl.com/23arge6e
चित्र संदर्भ
1. मेरठ में सरधना में ऐतिहासिक गंगा नहर प्रणाली को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
2. गंगा नहर के किनारे उगे पेड़ों को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
3. खेतों के बीचो बीच बहती नहर को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
4. सोनाली नदी के ऊपर गंगा नहर वाहिनी पुल (duct bridge) को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. उत्तर प्रदेश के नागला कबीर गाँव में गंगा नहर पर लघु जलविद्युत बांध को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)