मेरठ मुगलों के काल में

मेरठ

 28-03-2018 11:16 AM
मध्यकाल 1450 ईस्वी से 1780 ईस्वी तक

मेरठ अपने स्वर्णिम इतिहास के कारण भारत के शिखर के जिलों में से एक है। यहाँ का इतिहास रामायण और महाभारत दोनों से जुड़ा हुआ है। यहाँ के इतिहास का ज्ञान यहाँ के विभिन्न टीलों की खुदाइयों से मिल जाता है। यह स्थान महकाव्य काल से लेकर वर्तमान काल तक अनवरत चले आ रहा है। महाजनपद काल में इस स्थान की महत्ता व अशोक के काल में इसका महत्व अद्वितीय था, यही कारण है कि अशोक ने यहाँ पर एक स्तम्भ का निर्माण करवाया था।

मध्यकाल आने के बाद भी मेरठ का महत्व बरकरार रहा, तराइन के युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की हार के बाद 1192 ईस्वी में मुहम्मद गोरी के सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक ने मेरठ की ओर प्रस्थान किया था और मेरठ पर हमला कर के विजय प्राप्त की थी। मेरठ में विजय प्राप्त करने के बाद यहाँ पर क़ुतुबुद्दीन ने कई निर्माण कराये जिनको तबकाते नासिरी में पढ़ा व देखा जा सकता है।

1193 ईस्वी में मेरठ-दिल्ली मार्ग पर स्थित ईदगाह आज भी मेरठ की प्राचीन धरोहरों में से एक है। सल्तनत काल के समाप्ति के बाद मेरठ मुगलों के अधिकार क्षेत्र में आया, अकबर के शासन काल में पूरा मेरठ दिल्ली सूबे का हिस्सा था। गजेटियर ऑफ़ इंडिया में वर्णित तथ्य के अनुसार सरधना तहसील को छोड़ समस्त तहसीलें दिल्ली सूबे से ही सम्बंधित थीं। 1803 में मुगलों के पतन के काल में सुर्जीअर्जन गावं की संधि के अंतर्गत दौलत राव सिंधिया ने मेरठ जिले को ईस्ट इंडिया के सुपुर्द कर दिया था। मुगलों ने यहाँ पर कई निर्माण करवाए थे उन्ही में से एक शाह पीर का मकबरा आज भी मेरठ शहर में उपस्थित है।

1. फीचर लेखन, पी.के.आर्य

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