Post Viewership from Post Date to 11-Oct-2024 (31st) Day
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
2381 104 2485

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

जानें तांबे से लेकर वूट्ज़ स्टील तक, मध्यकालीन भारत में धातु विज्ञान का रोमाचक सफ़र

मेरठ

 10-09-2024 09:25 AM
मध्यकाल 1450 ईस्वी से 1780 ईस्वी तक
मध्यकालीन भारत में तांबा, ज़स्ता , लोहा, पीतल, चांदी और सोने जैसे धातुओं का उपयोग बड़े पैमाने पर किया जाता था। उस समय के प्रमुख ग्रंथों में से एक, 'रसरत्नाकर' में मध्यकालीन युग के दौरान, भारत में धातु विज्ञान और कीमिया (Alchemy) के बारे में विस्तार से बताया गया है। इसे प्रसिद्ध धातुविज्ञानी और कीमियागर नागार्जुन ने लिखा था। इसमें चांदी, सोना, टिन और तांबे जैसी धातुओं को उनके अयस्कों से अलग और शुद्ध करने की प्रक्रिया के बारे में भी बताया गया है। रस रत्नसमुच्चय नामक एक अन्य कृति में भी विशेष रूप से तांबे के निष्कर्षण और अनुप्रयोगों पर चर्चा की गई है। आइए, आज हम, मध्यकालीन भारत में, धातु विज्ञान की आकर्षक दुनिया में गोता लगाएँ। हम उस अवधि के चांदी के सिक्कों के उत्पादन और संरचना के बारे में भी जानेंगे। इसके बाद, हम राजस्थान के ज़ावर के बारे में जानेंगे, जहाँ 13वीं और 18वीं शताब्दी के बीच एक लाख टन ज़िंक का आसवन किया गया । अंत में, हम 17वीं शताब्दी के दौरान भारत में वूट्ज़ स्टील (Wootz Steel) के निर्माण पर चर्चा करेंगे।
मध्यकालीन भारत में सिक्के बनाने के लिए, चांदी की एक पतली परत को, आधार धातु के ऊपर लेपित किया जाता था, जिसे ‘प्लेटिंग (plating)’ कहा जाता था। आधार धातु में तांबा और सीसा मिलाकर इसे मिश्र धातु बनाया जाता था। हालाँकि, ये धातुएं अच्छी तरह से मिश्रित नहीं होते थे , जिससे सिक्के भंगुर हो जाते और आसानी से टूट जाते थे। कुछ सिक्के त्रिगुण मिश्र धातु (तीन धातुओं का मिश्रण) से बनाए जाते थे, जिसमें तांबा, चांदी और सीसे (Lead) का मिश्रण होता था। कुछ सिक्कों पर ज़स्ता (Zinc) और टिन के निशान भी पाए गए हैं, जो बताते हैं कि इन धातुओं को चांदी में मिलाया गया था। इन सिक्कों को एक्स-रे विश्लेषण (WD-XRF) के माध्यम से जांचा गया, जिससे इनकी संरचना का पता चला। सिक्कों में चांदी और तांबे का अनुपात दर्शाता है कि उन्हें एक से अधिक टकसालों में बनाया गया था। सिक्कों की सतह पर खनिजों की एक पतली परत भी पाई गई, जिसमें सीसा, तांबा, चांदी, मैग्नीशियम और सिलिका के ऑक्साइड शामिल हैं।
राजस्थान के ज़ावर क्षेत्र में ज़स्ता उत्पादन की एक लंबी और समृद्ध परंपरा थी। कार्बन डेटिंग से पता चला है कि यहां कुछ खदानें चौथी या तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से ही सक्रिय थीं। ज़ावर में ज़स्ता आसवन तकनीक का विकास लगभग 900 ई. में हुआ था। 13वीं से 18वीं शताब्दी के बीच, यहां एक लाख टन ज़स्ते का उत्पादन किया गया। इस उत्पादन के लिए, रिटॉर्ट तकनीक का उपयोग किया जाता था, जिसमें 1,150-1,200 डिग्री सेल्सियस तापमान पर ज़स्ते का आसवन होता था। यह तकनीक उस समय के औद्योगिक उत्पादन की उत्कृष्टता को दर्शाती है।
भारत में तांबा उत्पादन की परंपरा भी मौजूद थी। तांबे के अयस्क को पीसकर, गाय के गोबर के साथ गोले बनाए जाते थे। इन गोलों को भूनकर बंद भट्टी में गलाया जाता था। अंत में तांबे को कोयले की आग में परिष्कृत किया जाता था। उच्च कार्बन वाले लौह मिश्र धातु, यूरोप में लोकप्रिय होने से पहले एशिया के कुछ हिस्सों में विकसित किए गए थे। भारत का उच्च कार्बन स्टील और चीन का कच्चा लोहा इस संदर्भ में एक उल्लेखनीय उदाहरण हैं। इन दोनों सामग्रियों को ब्लूमरी आयरन प्रक्रिया (Bloomery Iron Process) की तुलना में उच्च भट्ठी तापमान और अधिक अपचयन स्थितियों की आवश्यकता होती थी।
दुनिया के अन्य हिस्सों में बनने से पहले चीन में कच्चा लोहा बनाया जाता था। प्रारंभिक ईसाई युग तक, चीन में औज़ारों, हथियारों, जहाज़ों और बर्तनों के उत्पादन के लिए, बड़े पैमाने पर कच्चा लोहा इस्तेमाल किया जाता था। 14वीं शताब्दी ईस्वी तक भी, यूरोप में कच्चे लोहे के उपयोग की वरीयता नहीं दी गई थी। उस समय इसका उपयोग तोप बनाने के लिए किया जाता था। 18वीं शताब्दी के अंत तक, इंग्लैंड में भवन निर्माण के लिए कच्चे लोहे का व्यापक उपयोग शुरू हो गया था। इस सदी के अंत में वोडेयर (Wodeyar) द्वारा, बैंगलोर के पास मैसूर में प्रसिद्ध मैसूर पैलेस (Mysore Palace) का निर्माण किया गया था। यह भारत का पहला शाही महल था, जिसके वास्तुशिल्प निर्माण में कच्चे लोहे का उपयोग किया गया था।
वूट्ज़ स्टील, एक प्रमुख स्टील मिश्र धातु, पहली सहस्राब्दी ईसा पूर्व के मध्य में दक्षिणी भारत में विकसित हुआ था । इसकी गुणवत्ता इतनी शानदार थी कि यह मध्य पूर्व और अन्य देशों में निर्यात किया जाता था । "वूट्ज़" शब्द ‘उक्कू’ से आया है, जो कन्नड़ में स्टील के लिए उपयोग किया जाता है। इस स्टील का उत्पादन क्रूसिबल प्रक्रियाओं द्वारा किया जाता था, लेकिन इसकी तकनीक एक रहस्य बनी रही। यहाँ तक कि प्रसिद्ध वैज्ञानिक, माइकल फैराडे ने भी इसकी रचना को समझने का प्रयास किया, लेकिन सफल नहीं हो सके।
1857 के विद्रोह के बाद, ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) ने कई वूट्ज़ स्टील तलवारों को नष्ट करने का आदेश दिया। इसके बाद ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय धातु उद्योग में गिरावट आई। लेकिन जमशेदजी टाटा के प्रयासों से भारत में इस्पात उत्पादन को पुनर्जीवित किया गया। अरब यात्री इद्रिसी (Edrisi) ने भारतीय इस्पात की प्रशंसा करते हुए कहा था, "हिंदुओं ने लोहे के निर्माण में उत्कृष्टता हासिल की और हिंदुवानी या भारतीय इस्पात से बेहतर कुछ भी पाना असंभव है।"

संदर्भ

https://tinyurl.com/y7tghdfj
https://tinyurl.com/y7tghdfj
https://tinyurl.com/26kpfdba
https://tinyurl.com/2bcdex3f
https://tinyurl.com/289qjc8z

चित्र संदर्भ

1. तांबे और वूट्ज़ स्टील की तलवार को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. मध्ययुगीन सिक्कों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. तांबे की खदान को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. पिघलते हुए कच्चे लोहे को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. वूट्ज़ स्टील से निर्मित तलवार को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • आइए देखें, विभिन्न खेलों के कुछ नाटकीय अंतिम क्षणों को
    य़ातायात और व्यायाम व व्यायामशाला

     29-12-2024 09:21 AM


  • आधुनिक हिंदी और उर्दू की आधार भाषा है खड़ी बोली
    ध्वनि 2- भाषायें

     28-12-2024 09:28 AM


  • नीली अर्थव्यवस्था क्या है और कैसे ये, भारत की प्रगति में योगदान दे रही है ?
    समुद्री संसाधन

     27-12-2024 09:29 AM


  • काइज़ेन को अपनाकर सफलता के शिखर पर पहुंची हैं, दुनिया की ये कुछ सबसे बड़ी कंपनियां
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     26-12-2024 09:33 AM


  • क्रिसमस पर लगाएं, यीशु मसीह के जीवन विवरणों व यूरोप में ईसाई धर्म की लोकप्रियता का पता
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     25-12-2024 09:31 AM


  • अपने परिसर में गौरवपूर्ण इतिहास को संजोए हुए हैं, मेरठ के धार्मिक स्थल
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     24-12-2024 09:26 AM


  • आइए जानें, क्या है ज़ीरो टिलेज खेती और क्यों है यह, पारंपरिक खेती से बेहतर
    भूमि प्रकार (खेतिहर व बंजर)

     23-12-2024 09:30 AM


  • आइए देखें, गोल्फ़ से जुड़े कुछ मज़ेदार और हास्यपूर्ण चलचित्र
    य़ातायात और व्यायाम व व्यायामशाला

     22-12-2024 09:25 AM


  • मेरठ के निकट शिवालिक वन क्षेत्र में खोजा गया, 50 लाख वर्ष पुराना हाथी का जीवाश्म
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     21-12-2024 09:33 AM


  • चलिए डालते हैं, फूलों के माध्यम से, मेरठ की संस्कृति और परंपराओं पर एक झलक
    गंध- ख़ुशबू व इत्र

     20-12-2024 09:22 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id