आज, रामपुर के किसानों के लिए, जैविक खेती, कोई दूर की कौड़ी नहीं है। आजकल, कई किसान, अपनी वार्षिक उपज उगाने के लिए, जैविक बीजों का उपयोग कर रहे हैं। क्या आप जानते हैं कि, जैविक बीज, मिट्टी और पौधों के स्वास्थ्य पर ध्यान देते हुए, प्राकृतिक उर्वरकों और कीट नियंत्रण के साथ, जैविक प्रणालियों में उगाए जाते हैं। जबकि, दूसरी ओर, अकार्बनिक या पारंपरिक बीज, कृत्रिम उर्वरक और कीटनाशकों का प्रयोग करके, पारंपरिक प्रणालियों में उगाए जाते हैं। इसलिए, इस लेख में, हम जैविक और पारंपरिक बीजों के बीच अंतर के बारे में चर्चा करेंगे। आगे, हम जैविक बीजों के फ़ायदों के बारे में जानेंगे। फिर, हम यह समझने की कोशिश करेंगे कि, खेती के लिए, अकार्बनिक बीजों का दोबारा उपयोग क्यों नहीं किया जा सकता है? इसके बाद, हम बिहार में लड़खड़ाते जैविक खेती मॉडल पर प्रकाश डालेंगे | इसी संदर्भ में हम, जैविक खेती में अधिक निवेश के बावजूद, कम उत्पादन की समस्या के बारे में बात करेंगे।
जैविक बीज, जैविक रूप से उगाए गए होते हैं। उन्हें शुरू से अंत तक, टिकाऊ तरीकों का उपयोग करके उगाया जाता हैं। किसी भी कीटनाशक या रासायनिक उर्वरक के उपयोग के बिना, इन्हें उस भूमि पर उगाया जाता है, जिस पर, प्रमाणित जैविक खेती के लिए स्थापित, मानकों का उपयोग करके कम से कम 3 वर्षों से खेती की जा रही है। किसान, इस तरह से, फूल और सब्ज़ियां उगाते हैं, और फिर पौधों को “बीज बनने” के लिए छोड़ देते हैं। फिर इन बीजों को, पैक किया जाता हैं।
दूसरी ओर, नियमित या अकार्बनिक बीज, उन पौधों से उगाए जाते हैं, जिन्हें ज़मीन पर कीटनाशकों और उर्वरकों के साथ उपचारित किया गया हो । ज़रूरी नहीं कि, इनकी कृषि टिकाऊ तरीके से की गई हो, और इसलिए, इनका पर्यावरणीय प्रभाव पड़ता है।
इस कारण, जैविक बीजों के उपयोग के निम्नलिखित लाभ हैं:
1.) जैविक बीज, जैविक पौधों से आते हैं: बीज पैदा करने के लिए, एक पौधे को अपने जीवन में एक पूरा चक्र पूरा करना होता है | इस दौरान, ये काफ़ी समय तक ज़मीन में रहता है। बीज बनने की प्रतीक्षा करते समय, एक पारंपरिक पौधे को, इतने लंबे समय तक कृत्रिम कीटनाशकों के अधीन रखा जाता है । एक जैविक पौधे पर, कृत्रिम कीटनाशकों का छिड़काव नहीं किया जाता है, जिसका अर्थ है कि, भले ही यह अतिरिक्त हफ़्तों तक ज़मीन में रहे, यह ज़हरीले रसायनों से मुक्त रहता है।
2.) जैविक बीजों को कठोर परिस्थितियों का सामना करने के लिए उगाया जाता है: चूंकि, जैविक उत्पादकों को अपने पौधों पर, कृत्रिम कीटनाशकों का उपयोग करने की अनुमति नहीं है, ये पौधे, स्वाभाविक रूप से ही, कीटों और अन्य प्राकृतिक परिस्थितियों का सामना करने के लिए, अनुकूलित हो जाते हैं। जब जैविक बीज का उपयोग किया जाता है, तो उन पौधों में अधिक आंतरिक शक्ति होती है।
3.) जैविक बीजों में ‘इष्टतम आनुवंशिकी’ होती है, जो जैविक किसान और उपभोक्ता चाहते हैं: स्वाद, रंग, पोषण और प्राकृतिक सुरक्षा, इन बीजों में पैदा होती है। प्राकृतिक टमाटर, जिन्हें आनुवंशिक रूप से संशोधित नहीं किया गया होता है, और जो सहेजे गए बीज के साथ उगाए गए होते हैं, वे पारंपरिक टमाटरों की तुलना में, अधिक स्वादिष्ट फल देते हैं।
4.) जैविक बीज, पौधों की आनुवंशिक विविधता को संरक्षित करने में मदद करते हैं: जैविक खेती करने वाले किसान, साल-दर-साल, एक ही बीज लगा सकते हैं, जबकि, पारंपरिक किसान ऐसा नहीं कर सकते। इसका मतलब यह है कि, जैविक किसान सबसे मज़बूत व सर्वोत्तम बीजों का चयन कर सकते हैं। उपरोक्त बात पढ़कर, आपको प्रश्न सूझा होगा कि, अकार्बनिक बीजों का दोबारा उपयोग क्यों नहीं किया जा सकता?
दरअसल, आज, अधिक से अधिक सब्ज़ियां (और फूल), एफ़ 1(F1) शंकर के रूप में उपलब्ध हैं। शंकर पौधा (Hybrid Plant), वह पौधा होता है, जो असमान आनुवंशिक संरचना वाले दो पौधों के जनन से उत्पन्न होता है। इस प्रकार प्राप्त, हाइब्रिड पौधों के फ़ायदों में, बेहतर मज़बूती, उच्च पैदावार, समय से पहले परिपक्वता, अधिक एकरूपता और कुछ लक्षणों की अभिव्यक्ति में वृद्धि शामिल है।
हालांकि, जब किसी बीज को, एफ़ 1 शंकरों से संग्रहित किया जाता है, तो परिणामी संतान(पौधा), उन पौधों के समान बन जाता हैं, जिनका उपयोग, उसके प्रजनन के लिए किया गया था। परिणामस्वरूप, निराशाजनक उत्पादन के साथ-साथ, हाइब्रिड शक्ति और इसके लाभों का नुकसान होता है। यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि, शंकर पौधे के लाभ, केवल एक ही पीढ़ी तक रहते है, और इसका परिणाम केवल तभी होता है, जब दो पैतृक रेखाएं पार हो जाती हैं। इसलिए, बीजों को शंकर किस्मों से संग्रहित करने की अनुशंसा नहीं की जाती है।
एक तरफ़, निवेश पर कम लाभ के कारण, बिहार में जैविक खेती लड़खड़ा रही है। इसके कारण, निम्नलिखित हैं:
1.) जैविक उत्पादों के लिए, वहां कोई अलग बाज़ार नहीं है। इस कारण, किसान, कम कीमत पर उपज बेचने को मजबूर हो जाते हैं। रुसुलपुर तुर्की, पटना शहर से लगभग 45 किलोमीटर दूर स्थित एक गांव है। इस गांव में, कुल 414 एकड़ भूमि पर, जैविक खेती योजना के तहत, खेती की जा रही है। इस पहल में, 351 किसान भाग ले रहे हैं। रुसुलपुर तुर्की प्रोड्यूसर्स कंपनी लिमिटेड, उन किसानों का एक संघ है, जिन्होंने यह जैविक रास्ता चुना है। लेकिन, वहां जैविक उत्पादों के लिए, कोई अलग बाज़ार नहीं है। इससे नुकसान यह होता है कि, किसानों को कम दाम पर उपज बेचनी पड़ती है, जबकि, निवेश अधिक हो जाता है।
2.) मोकामा से लेकर वैशाली के किसान, कम उपज और बड़े पैमाने पर कीट प्रकोप का सामना करते हैं। किसान बताते हैं कि, जैविक कीटनाशक अप्रभावी होने के कारण, उन्हें रासायनिक कीटनाशकों का विकल्प चुनने के लिए, मजबूर होना पड़ता है। यदि, वे रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करेंगे, तो फ़सल पूरी तरह से बर्बाद हो जाएगी।
3.) जैविक खेती के लिए, राज्य सरकार द्वारा प्रदान किया जाने वाला अनुदान भी, अपर्याप्त है। जबकि, बिहार सरकार ने वित्तीय वर्ष 2020-2021 में, 250 करोड़ रुपये आवंटित किए थे, 2021-2022 और 2022-2023 के बजट में इस आवंटन में, भारी कटौती की गई थी। राज्य द्वारा, इस दौरान, केवल 145 करोड़ रुपये ही स्वीकृत किए गए थे। किसानों का कहना है कि, प्रति एकड़, 11,500 रुपये का अनुदान अपर्याप्त है। इसके अलावा, यह अनुदान, साल में केवल एक बार ही मिलता है, जबकि, कई इलाकों में किसान साल में, अपने खेत में दो से तीन फ़सलें उगाते हैं।
4.) इसके अतिरिक्त, जैविक खेती के नाम पर अनुदान प्राप्त करने वाले कई किसान, रासायनिक उर्वरकों का उपयोग कर रहे हैं। बक्सर, पटना और वैशाली में, किसानों के क्षेत्र दौरे से यह भी पता चलता है कि, कई किसान, सरकार से अनुदान प्राप्त करने के बावजूद, जैविक खेती नहीं कर रहे हैं। बक्सर में एक अध्ययन के अनुसार, आधिकारिक तौर पर, लगभग 1000 किसान जैविक पहल का हिस्सा हैं। लेकिन, उनमें से केवल 25% ही जैविक खेती कर रहे हैं। बाकी रासायनिक साधनों का प्रयोग कर रहे हैं, और सरकार से अनुदान भी ले रहे हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/2s42tjva
https://tinyurl.com/ycyt2sm3
https://tinyurl.com/5x6mzc6c
https://tinyurl.com/3htasvn8
चित्र संदर्भ
1. दो महिला किसानों को संदर्भित करता एक चित्रण (PixaHive)
2. बाज़ार में बिक रहे जैविक बीजों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. सौंफ़ के बीजों को संदर्भित करता एक चित्रण (PixaHive)
4. शंकर भिंडी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)