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श्री कृष्ण के पार्थसारथी एवं विट्ठल देव जैसे नाम, भक्ति की पराकाष्ठा को दर्शाते हैं

मेरठ

 26-08-2024 09:17 AM
विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)
महाभारत में उल्लेख मिलता है कि "भगवान श्री कृष्ण एवं पांडवों के बीच बहुत गहरा संबंध था।" हमारे मेरठ ज़िले का एक प्राचीन शहर हस्तिनापुर भी इस संदर्भ में महत्वपूर्ण है। कृष्ण की कथा का वर्णन हमें महाभारत, हरिवंश, श्रीमद्भागवतम (भागवत पुराण) और विष्णु पुराण में मिलता है। इन ग्रंथों में कृष्ण के जीवन के उपाख्यानों और आख्यानों को आम तौर पर "कृष्ण लीला" के रूप में जाना जाता है। इनमें वर्णित किवदंतियां ,भगवान् श्री कृष्ण को एक देवपुत्र, एक मसखरा, एक आदर्श प्रेमी, एक दिव्य नायक और सार्वभौमिक सर्वोच्च व्यक्ति जैसे विभिन्न दृष्टिकोणों से चित्रित करती हैं। आज के इस महत्वपूर्ण लेख में, हम भगवान श्री कृष्ण के कुछ दिलचस्प एवं प्रचलित नामों एवं इनके पीछे की किवदंतियों को समझने का प्रयास करेंगे।
महाराष्ट्र में भगवान श्री कृष्ण को प्रचलित रूप से “विट्ठल” नाम से जाना जाता है। इससे जुड़ी कहानी अत्यंत रोचक है। इसके पीछे निहित एक लोकप्रिय किवदंती के अनुसार, एक बार भगवान् श्री कृष्ण स्वयं अपने प्रिय भक्त, “पुंडलीक” से मिलने पहुंचे। पुंडलीक उस समय अपने माता-पिता की सेवा में व्यस्त थे। उन्होंने भगवान श्री कृष्ण से अनुरोध किया कि “जब तक उनका सेवा कार्य पूरा न हो जाए, तब तक वे (श्री कृष्ण) प्रतीक्षा करें।” हालाँकि पुंडलीक ने श्री कृष्ण को पहचान लिया था, लेकिन, वे, उस समय, अपने माता-पिता को छोड़कर नहीं जा सकते थे। भगवान श्री कृष्ण, पुंडलीक़ की अपने माता-पिता के प्रति भक्ति देखकर अति प्रसन्न हुए।
भक्ति के इसी क्षण में, पुंडलीक ने एक ईंट बाहर फेंकी और श्री कृष्ण से, उस पर खड़े होने का आग्रह किया। वे ईंट पर खड़े हो गए। मराठी में "विट" शब्द का अर्थ "ईंट" और "थल" शब्द का अर्थ "ज़मीन" होता है। इसलिए, महाराष्ट्र में उन्हें ईंट पर खड़े भगवान या “विट्ठल देव” के रूप में भी पूजा जाता है।
विट्ठल की भांति, भगवान श्री कृष्ण का एक प्रचलित नाम गिरिधर भी है। "गिरिधर" शब्द का अर्थ "पहाड़ को उठाने वाला " होता है। हम सभी जानते हैं कि एक बार श्री कृष्ण ने अपनी उंगली पर गोवर्धन नामक एक पर्वत को उठा लिया था। दरअसल, श्री कृष्ण के द्वारा गोवर्धन पर्वत को उठाने की किवदंती, देवराज इंद्र के झूठे अभिमान से जुड़ी हुई है।
देवराज इंद्र को बारिश के देवता के रूप में पूजा जाता है। श्री कृष्ण के पालक पिता नंद के नेतृत्व में गोकुल के ग्रामीण, देवराज इंद्र की खूब पूजा करते थे। इंद्र बहुत शक्तिशाली थे, इसलिए कई लोग डर के मारे भी उनकी पूजा करते थे। लोगों से अपनी पूजा करवाने के लिए, इंद्र आकाशीय बिजली और बारिश की शक्ति का प्रयोग करते थे।
हालांकि नंद पुत्र श्री कृष्ण को यह अनुभूति हो गई थी, कि देवराज इंद्र, शक्ति-लोलुप हो गए हैं। इसलिए उन्होंने ग्रामीणों से कहा कि उन्हें देवराज इंद्र की पूजा करने के बजाय, गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि वह पर्वत उन्हें प्राकृतिक आपदाओं से बचा रहा था । वह बादलों को भी रोक रहा था । लोगों को यह तर्क उचित लगा और उन्होंने गोवर्धन की पूजा करना शुरू कर दिया। लेकिन यह सब देखकर देवराज इंद्र क्रोधित हो गए और उन्होंने बृज क्षेत्र में मूसलाधार बारिश करनी शुरू कर दी।
ग्रामीणों ने देवराज इंद्र के इस क्रोध के लिए श्री कृष्ण को दोषी ठहराना शुरू कर दिया। श्री कृष्ण ने ग्रामीणों से गोवर्धन की शरण लेने को कहा, क्योंकि उन्होंने गोवर्धन की पूजा की थी। उन्होंने कहा कि वही पवित्र पर्वत उनकी रक्षा करेगा । पर्वत के पास पहुँचकर, श्री कृष्ण ने इसे अपनी छोटी उंगली से उठा लिया और पर्वत के नीचे मनुष्यों सहित ब्रज के सभी जीवों को शरण दी। इसी दृश्य के पश्चात्, श्री कृष्ण का एक नाम 'गिरिधर' पड़ गया । यह लोकप्रिय किवदंती, प्रतीकात्मक रूप से मनुष्यों को विपत्तियों के आगे आत्मसमर्पण न करने की प्रेरणा देती है।
आज बहुत से लोग, ऊपर वर्णित दो नामों के अलावा श्री कृष्ण के पार्थ-सारथी नाम से भी अपरिचित हैं।
चलिए जानते हैं, कि भगवान् श्री कृष्ण को पार्थसारथी क्यों कहा जाता है?
पृथा (कुंती) के पुत्रों के प्रति स्नेह: पृथा यानी कुंती के पुत्रों से श्री कृष्ण को विशेष स्नेह था । कुंती, श्रीकृष्ण की बुआ थीं । देवी कुंती का विवाह पांडु से हुआ था, और उनके पाँच पुत्र थे। उनके पुत्रों को पांडव के नाम से जाना जाता है। देवी कुंती, भगवान् श्री कृष्ण की परम भक्त भी थीं । "पार्थ" शब्द का अर्थ "पृथा का पुत्र" भी होता है। इस प्रकार, पार्थ-सारथी शब्द, श्री कृष्ण के पांडवों और कुंती से संबंध को संदर्भित करता है।
युद्ध के मैदान में रथ चालक: पार्थ-सारथी नाम में दूसरा शब्द "सारथी"-- “रथ चालक” को संदर्भित करता है। श्री कृष्ण को पार्थ यानी अर्जुन के सारथी के रूप में पहचाना जाता है। महाभारत की कहानी, कौरवों और पांडवों के बीच महान युद्ध पर केंद्रित है। हालांकि, भगवान् श्री कृष्ण कभी भी युद्ध को बढ़ावा नहीं देते, और वे शांतिपूर्ण विवाद समाधान को प्राथमिकता देते हैं। लेकिन, हमलावर, हमेशा उचित तर्क को नहीं मानते।
अर्जुन को दिशा-निर्देश: श्री कृष्ण, अर्जुन को दिशा-निर्देश देते हैं, और उनके शुभचिंतक प्रतीत होते हैं। हालांकि अर्जुन, श्री कृष्ण को यह निर्देश देते हैं कि रथ को कहाँ ले जाना है। लेकिन इस निर्णय को अनुमोदित श्री कृष्ण द्वारा किया जाता है। यदि अर्जुन असमंजस में पड़ते हैं, तो सर्वोच्च भगवान श्री कृष्ण अवश्य ही हस्तक्षेप करते हैं और उन्हें उचित मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। इस प्रकार, पार्थ-सारथी का अर्थ यह भी है कि श्री कृष्ण , अर्जुन के शुभचिंतक मित्र के रूप में, यह सुनिश्चित करते हैं कि उन्हें समर्पित आत्मा, धर्म के मार्ग पर बनी रहे।
गुरु के रूप में सही दिशा प्रदान करना: अर्जुन के सारथी की भूमिका में, श्री कृष्ण, अर्जुन द्वारा लिए गए सभी निर्णयों को मंज़ूरी देते हैं। हालाँकि, अर्जुन द्वारा अनुरोध किए जाने पर वह उन्हें निर्देश भी देते हैं। अर्जुन, श्री कृष्ण के अंतिम निर्णय को चुनौती नहीं देते। वे आध्यात्मिक विज्ञान में प्रस्तुत प्रत्येक सत्य का प्रमाण नहीं मांगते। इसके बजाय, अर्जुन विनम्रतापूर्वक प्रश्न करते हैं। श्री कृष्ण भी इन सवालों का खुशी से जवाब देते हैं।
भक्त द्वारा नियंत्रित ईश्वर: पार्थ-सारथी नाम से यह भी पता चलता है कि भगवान के साथ संबंध कितना गहरा हो सकता है। कृष्ण इतने दयालु हैं कि अपने भक्त के हित में एक सामान्य अधीनस्थ की भूमिका भी स्वेच्छा से स्वीकार कर लेते हैं। इससे पता चलता है कि भक्ति के उच्चतम स्तर पर, सर्वोच्च भगवान भी भक्त के नियंत्रण में आ सकते हैं। भक्त जो भी चाहता है, परमेश्वर उससे सहमत होते हैं। यह गतिशीलता, श्रीमती राधारानी के साथ संबंधों से भी स्पष्ट है, जो ईश्वर के स्त्री पहलू को दर्शाती हैं। वे कृष्ण का मज़ाक उड़ाती हैं, उन्हें डांटती हैं और उनके साथ अत्यधिक तौर पर जुड़ी हुई नज़र नहीं आती हैं। फिर भी, कृष्ण उनकी सेवा को सबसे ऊपर महत्व देते हैं। भक्तों के नियंत्रण को कृष्ण द्वारा स्वीकार किया जाता है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/2chuenem
https://tinyurl.com/2asrzcpc
https://tinyurl.com/22mldmqq

चित्र संदर्भ
1. श्री कृष्ण के पार्थसारथी एवं विट्ठल देव स्वरूप को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. अपनी पत्नी रुक्मिणी के साथ मुंबई के सायन विट्ठल मंदिर में विठोबा (बाएं) को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. गोवर्धन पर्वत उठाए श्री कृष्ण को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. पार्थसारथी के रूप में श्री कृष्ण को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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