मेरठ के निकट हस्तिनापुर वन्यजीव अभयारण्य (Hastinapur Wildlife Sanctuary) का खोला क्षेत्र, घने जंगलों से घिरा हुआ है। इसके विपरीत, खादर क्षेत्र में मुख्य रूप से बिखरे हुए जंगलों के साथ विस्तृत घास के मैदान हैं। आज, हमारे मेरठ सहित पूरे देश में कई ऐसे गुमनाम चेहरे हैं, जो बिना किसी स्वार्थ के हज़ारों एकड़ में फैले जंगलों का संरक्षण कर रहे हैं। हालाँकि हमारे इतिहास में भी कई ऐसे नाम हैं, जिन्होंने हमारे जंगलों के संरक्षण में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। ऐसे ही, एक प्रशंसनीय नाम, ह्यूग क्लेगहॉर्न (Hugh Cleghorn) का भी है । आज, हम ह्यूग क्लेगहॉर्न के करियर और उपलब्धियों के बारे में विस्तार से जानेंगे। इसके अलावा, हम यह भी पता लगाएंगे कि क्लेगहॉर्न, दक्षिण भारत के स्थानीय कारीगरों से कैसे प्रेरित हुए।
ह्यूग क्लेगहॉर्न, दुनिया भर के वनस्पति विज्ञानियों और शोधकर्ताओं के बीच, एक बहुत ही सम्मानित नाम है । उनका जन्म 9 अगस्त, 1820 को मद्रास में हुआ था। क्लेगहॉर्न, एक स्कॉटिश चिकित्सक (Scottish Physician), वनस्पतिशास्त्री (Botanist), वनपाल (Forester) और ज़मींदार (Landowner) थे। उन्हें भारत में वैज्ञानिक वानिकी का जनक भी कहा जाता है। उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) के लिए काम किया और अपने आधिकारिक पद का उपयोग, भारत की विविध वनस्पतियों का अध्ययन करने के लिए किया। क्लेगहॉर्न ने भारतीय कलाकारों द्वारा बनाए गए चित्रों के माध्यम से अपने निष्कर्षों का दस्तावेज़ीकरण किया। उन्हें उपयोगी पौधों (Useful Plants) में विशेष रुचि थी, जिसके कारण उन्होंने, वन संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान दिया। क्लेगहॉर्न की मृत्यु के बाद, वानिकी और वनस्पति विज्ञान पर उनके चित्रों और पुस्तकों के प्रभावशाली संग्रह को विभाजित कर दिया गया। इनमें से कुछ सामग्रियों को एडिनबर्ग विश्वविद्यालय (University of Edinburgh) में भेज दिया गया, जबकि अन्य को स्कॉटलैंड (Scotland) के राष्ट्रीय संग्रहालय (National Museum) में स्थानांतरित कर दिया गया। 1940 में, बाद का संग्रह, रॉयल बोटेनिक गार्डन एडिनबर्ग (Royal Botanic Garden Edinburgh) में चला गया। उनके योगदान के रूप में, 1582 किताबें और लगभग 3,000 उत्कृष्ट वनस्पति चित्र शामिल थे।
ह्यूग क्लेगहॉर्न का भारतीय वानिकी में योगदान
अपनी बीमारी की छुट्टी के दौरान, ह्यूग क्लेगहॉर्न ने भारत में कृषि से जुड़ी समस्याओं के संदर्भ में कई भाषण दिए। उनकी अंतर्दृष्टि ने भारतीय प्रशासन को प्रभावित किया। इसके परिणामस्वरूप, उन्हें मद्रास वन विभाग को संगठित करने के लिए कहा गया। 1856 में, उन्हें मद्रास प्रेसीडेंसी (Madras Presidency) में वन संरक्षक नियुक्त किया गया। मद्रास वन विभाग में क्लेगहॉर्न का कार्यकाल अत्यधिक सफल रहा। इस सफलता ने उनके प्रभाव और महत्व का विस्तार किया। 1861 में, उन्हें पंजाब में परिचालन का विस्तार करने के लिए कहा गया। 1860 और 1862 के बीच, उन्होंने उत्तर-पश्चिमी हिमालय सहित कई क्षेत्रों में जंगलों से जुड़ी समस्याओं का अध्ययन किया। उन्होंने, बंगाल में जर्मन वानिकी अवधारणाओं को लागू करने में उष्णकटिबंधीय वानिकी के जनक, डिट्रीक ब्रैंडिस (Dietrich Brandis) की भी सहायता की। ब्रैंडिस के साथ इस भूमिका को साझा करते हुए, क्लेगहॉर्न को वन संरक्षण के लिए संयुक्त आयुक्त बनाया गया। 1867 में, वे वन महानिरीक्षक बने।
वनस्पति विज्ञान में क्लेगहॉर्न के अध्ययन अति व्यावहारिक माने जाते थे। उन्होंने जंगलों से जुड़ी विभिन्न चिंताओं को संबोधित किया। इनमें रेलवे का विकास और जलवायु पर वनों का प्रभाव भी शामिल था। उन्होंने भारत में अपने समय के दौरान बड़े पैमाने पर प्रकाशन किया। उनके कार्यों में हेज प्लांट्स (Hedge Plants) और हॉर्टस मद्रासपेटेंसिस (Hortus Madraspatensis) पर शोध शामिल था, जो मद्रास में एग्री-हॉर्टिकल्चरल सोसाइटी (Agri-Horticultural Society) द्वारा उगाए गए पौधों की एक सूची थी । उनके शोध और वकालत ने महत्वपूर्ण नीतिगत बदलावों को जन्म दिया, जिसमें 1860 में, मद्रास प्रेसीडेंसी में कुमरी पर प्रतिबंध शामिल था, जो एक प्रकार की शिफ़्टिंग खेती (Shifting Cultivation) थी । 1869 में, ह्यूग क्लेगहॉर्न, भारत से चले गए | लेकिन ,उन्होंने भारत के सचिव के सलाहकार के रूप में काम करना जारी रखा। उन्होंने भारतीय वानिकी सेवा के लिए उम्मीदवारों का चयन करने में मदद की। स्कॉटलैंड लौटने के बाद, उन्हें 1868 में, एडिनबर्ग बॉटनिकल सोसाइटी (Edinburgh Botanical Society) और 1872 में स्कॉटिश आर्बोरिकल्चरल सोसाइटी (Scottish Arboricultural Society) का अध्यक्ष चुना गया। उन्होंने, विश्वविद्यालय में, वानिकी में एक व्याख्याता की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 16 मई, 1895 को, स्ट्राविथी कैसल (Stravithie Castle), फ़िफ़, (Fife), स्कॉटलैंड में , क्लेग़हॉर्न का निधन हो गया!
भारत के स्थानीय कारीगरों ने ह्यूग क्लेग़हॉर्न को पौधों के अध्ययन और शोध के बारे में कैसे प्रेरित किया?
क्लेग़हॉर्न का मुख्य काम, लकड़ी के लिए, जंगल के पेड़ों की पहचान करना था। अंग्रेज़ों को अपने सभी उपनिवेशों में बिछाई जा रही रेल के लिए स्लीपर की आवश्यकता थी। क्लेगहॉर्न, दक्षिण भारत की वनस्पति विरासत का दस्तावेज़ीकरण करने में अधिक रुचि रखते थे। इस रुचि ने उन्हें कई कलाकारों और कारीगरों से जुड़ने के लिए प्रेरित किया। लेकिन, इन कलाकारों और कारीगरों के नाम दर्ज नहीं किए गए हैं। क्लेगहॉर्न भारतीय जंगलों पर भारतीय रेलवे के प्रभाव को लेकर बेहद चिंतित थे। वह रेलवे के विकास को, जंगल के लिए, एक बड़ा ख़तरा मानते थे। उन्होंने गणना की थी कि एक मील रेलवे ट्रैक, 1,800 स्लीपर खा जाएगा। प्रत्येक स्लीपर का वज़न 75 से 100 किलोग्राम के बीच था। क्लेगहॉर्न ने भाप इंजन में जलाने के लिए, लकड़ी के निष्कर्षण पर भी अपनी चिंता व्यक्त की।
ह्यूग क्लेगहॉर्न ने भारतीय वनों के संरक्षण में कैसे योगदान दिया?
मद्रास लौटने पर, क्लेगहॉर्न ने मद्रास मेडिकल कॉलेज में दाख़िला लिया। उन्होंने यहाँ रहते हुए मटेरिया मेडिका (Materia Medica) पढ़ाया। क्लेगहॉर्न ने तंजौर चित्रकला विद्यालय के एक कलाकार गोविंदू को कुछ पेंटिंग्स बनाने के लिए नियुक्त किया। उनहोंने, मैसूर क्षेत्र में, कुमरी खेती (स्थानांतरित खेती) पर एक रिपोर्ट भी लिखी। इसके अतिरिक्त, उन्होंने वनों की कटाई के हानिकारक प्रभावों पर अंग्रेज़ों को ज़रूरी सलाह भी दी।
संदर्भ
https://tinyurl.com/2xsrws3e
https://tinyurl.com/2da8w3ek
https://tinyurl.com/2c3kcdfp
चित्र संदर्भ
1. ह्यूग क्लेगहॉर्न और भारतीय जंगलों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. ह्यूग क्लेगहॉर्न को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. जंगल में जगंली हिरन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. खेतों से घर की ओर जाती महिलाओं को संदर्भित करता एक चित्रण (Rawpixel)