केश कर्तन से लेकर कपड़े कागज़ आदि को काटने के लिए कैंचियों का उपयोग होता आ रहा है। कैंची के यदि आविष्कार की बात करें तो इसका इतिहास पाषाण काल तक जाता है, नवप्रस्तर युग में मानव पत्थर के बने ब्लेड का इस्तेमाल अपने बाल काटने व अन्य चीजों को काटने के लिए करता था। यह कैंची का शुरूआती दौर था जब मानव अपने सौन्दर्य को लेकर ज्यादा सजग हो रहा था। कैंचियों का अपना एक इतिहास और जीवन लीला है। किसी की जान बचाने के लिए तो किसी के लिए कपड़े बनाने के लिए ये हर जगह व्याप्त हो गयी। ऐसे में ऐसी महत्वपूर्ण वस्तु का व्यापार और इसको बनाना एक रोजगार से जुड़ गया। वर्तमान काल में विश्व भर की कैंचियों में मेरठ की कैंची सबसे ज्यादा मशहूर है, तथा यहाँ पर बड़े पैमाने पर कैंचियों का निर्माण किया जाता है।
मेरठ में बनी कैंचियाँ मात्र मेरठ या भारत में ही नहीं अपितु विश्व भर के करीब 50 से अधिक देशों में निर्यातित की जाती हैं। इनमे केन्या, कजाकिस्तान, घाना, रूस सहित कई अन्य देश भी सम्मिलित हैं। यहाँ पर कैंची उद्योग बड़े पैमाने पर रोजगार उपलब्ध कराती है परन्तु वर्तमान परिपेक्ष्य में यहाँ का व्यापार सिमट रहा है जिसका कारण है चीन का व्यापार में बढ़ता वर्चस्व। एक समय था जब मेरठ की कैंचियों का व्यापार 50 करोड़ सालाना की आय प्राप्त करता था पर वर्तमान परिपेक्ष्य में यह 15-20 करोड़ पर सिमट कर रह गया है।
यहाँ की कैंचीयाँ गुणवत्ता के अनुसार अत्यंत उत्तम होती है परन्तु विदेशी कैंचियाँ सस्ती और ज्यादा सटीक तरीके से सुन्दर बनायी जाती हैं जिसकी वजह से ग्राहकों का रुझान उनकी तरफ है। मेरठ में कैंची का व्यापार लगभग 300 वर्षों से होता आ रहा है, कहा जाता है कि बेगम सुमरू सबसे पहले विदेश से कैची की तरह ही एक हथियार लायी थी जिसको देख कर यहाँ के कारीगरों ने कैंची का निर्माण किया। मेरठ में कैंचियों का निर्माण कबाड़ को पिघला कर किया जाता है जिससे कबाड़ का पुनर्चक्रण भी हो जाता है। मेरठ की कैंचियों को ले कर एक कहावत भी मशहूर है - “दादा ले पोता बरते” । अर्थात दादा खरीदे और पोता तक उसका उपयोग करे, यह कहावत यहाँ की कैंचियों पर भी लिखी गयी होती है।
1. व्यापार डॉ रविकृष्ण
2. https://www.jagran.com/uttar-pradesh/meerut-city-13941994.html
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