हमारे शहर मेरठ से, लगभग 200 किलोमीटर दूर स्थित, ‘शिवालिक या सुकेती जीवाश्म पार्क’, हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में, एक अधिसूचित ‘राष्ट्रीय भू-विरासत स्मारक जीवाश्म पार्क’ है। इसमें सुकेती के बलुआ पत्थरों एवं मिट्टी की ऊपरी परत और मध्य शिवालिक भूवैज्ञानिक संरचनाओं से प्राप्त, प्रागैतिहासिक कशेरुकी जीवाश्मों और कंकालों का संग्रह है। क्या आपने, कभी सेबर टूथ टाइगर (Sabre Tooth Tiger) या कृपाण दांत वाले बाघ के बारे में सुना है? तो आइए, आज के इस लेख में हम, इनके बारे में चर्चा करते हैं। हम, इन बाघों की शारीरिक विशेषताओं, इनके आवास और इनके शिकार के तरीकों के बारे में भी बात करेंगे। आगे, हम यह पता लगाएंगे कि, वे कैसे और क्यों विलुप्त हो गए। उसके बाद, हम उन जानवरों के बारे में बात करेंगे जो आज जीवित हैं, और जिनके पास कृपाण दांत हैं।
कृपाण दांत वाले बाघ, स्माइलडन (Smilodon) जीनस(Genus) से थे और कृपाण दांत वाली बिल्लियों की सबसे व्यापक रूप से ज्ञात प्रजातियों में से एक थे । इन विलुप्त जीवों का नाम, इनके ऊपरी जबड़े में मौजूद लंबे दांतों की जोड़ी के लिए रखा गया था। कृपाण दांत वाला बाघ, प्लाइस्टोसीन युग(Pleistocene Epoch) के दौरान, उत्तर और दक्षिण अमेरिका में पाया जाता था। हालांकि, ये बाघ, लगभग 10,000 वर्ष पहले विलुप्त हो गए थे।
इसके दांत संकीर्ण, घुमावदार और बेहद नुकीले किनारे वाले थे, जो इसके शिकार के मुलायम ऊतकों को काटने में सक्षम बनाते थे। हालांकि, वे काफ़ी नाज़ुक भी थे, और टूट भी सकते थे। कृपाण दांत वाले बाघ, बड़ी बिल्लियां होकर भी, छोटे और मोटे अंग वाले जीव थे। साथ ही, उनके पास शक्तिशाली मांसपेशियां और सघन हड्डियां भी थीं। वैज्ञानिकों का मानना है कि, ये बाघ, अपने आकार और रंग, दोनों में, आधुनिक अफ़्रीकी शेर (पेंथेरा लियो – Panthera Leo) के समान रहे होंगे, जबकि, इनका शेरों से कोई संबंध नहीं है।
कृपाण दांतों वाले बाघ प्रमुख शिकारी थे, जो हिरण और बाइसन जैसे बड़े शाकाहारी जानवरों का शिकार करते थे। यह भी सोचा जाता है कि, उन्होंने, कभी-कभी, छोटे वूली मैमथ(Woolly mammoth) को भी खाया होगा। (वूली मैमथ के बारे में जानने हेतु, आप आज ही प्रकाशित, हमारे ‘लखनऊ शहर’ का लेख पढ़ सकते हैं।)
ये बाघ, वसंत ऋतु में प्रजनन करते थे, और एक समय पर, कोई मादा अधिकतम तीन शावकों को जन्म देती थी।
विलुप्त बिल्लियों में से सबसे प्रसिद्ध जीव – स्माइलडन फेटलिस (Smilodon fatalis) ने, इन बाघों के साथ कुछ शारीरिक लक्षण और शिकार की विशेषताएं साझा की थीं । कृपाण दांतों वाली बिल्लियां आज के शेरों की तरह एक सामाजिक प्राणी रही होंगी। कई स्मिलोडोन नमूनों में, सैकड़ों भालू भी थे। इस तथ्य से पता चलता है कि, ये जीव, अपने शिकार का पीछा करके झपट्टा मारने वाले शिकारी थे। शिकार का यह तरीका, प्रागैतिहासिक बाइसन को गिराने के लिए शक्तिशाली था। कृपाण दांतों वाले बाघों के बड़े दांत उनके हथियार थे, लेकिन, उनके जबड़े शिकार का गला घोंटने या उनकी हड्डियों को कुचलने के लिए नहीं बनाए गए थे। अतः ये बाघ अपने दांतों का उपयोग, शिकार के गले और पेट को काटने और फाड़ने के लिए करते थे।
यहां प्रश्न यह उठता है कि, ये सेबर टूथ टाइगर्स, विलुप्त क्यों हो गए? वैज्ञानिकों का मानना है कि, पर्यावरणीय परिवर्तन, शिकार की आबादी में गिरावट और मानव गतिविधि के कारण, लगभग 10,000 साल पहले ये बाघ विलुप्त हो गए।
आइए विस्तार से जानते हैं।
1.) मौसम में बदलाव: पृथ्वी पर हुई विलुप्ति की चतुर्थ घटना के समय, महाद्वीपों में हिमनद घटने लगे। इससे मौसम बदल गए, और वर्षा में परिवर्तन के कारण स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र की स्थिति बदल गई। परिणामस्वरूप, 5,000 वर्ष की अवधि में, तापमान छह डिग्री से भी अधिक बढ़ गया, जिससे बड़े जानवर प्रभावित हुए।
2.) खाद्य आपूर्ति की कमी: स्माइलडन जीवों के आहार में बाइसन, हिरण और ज़मीनी स्लॉथ(Ground sloths) शामिल थे, जिनमें से कई या तो विलुप्त हो गए, या उनकी भी जनसंख्या में गिरावट आई। इससे बाघों की प्रजाति को विलुप्ति का सामना करना पड़ा। साथ ही, जैसे ही घास के मैदान जंगलों में बदल गए, बाइसन की संख्या में नाटकीय रूप से गिरावट आई, जिसके परिणामस्वरूप, आए पर्यावरणीय बदलावों ने बाइसन की आबादी को सीमित कर दिया है। साथ ही, जब मनुष्य अंततः उत्तरी अमेरिका में बसने लगे, तो उन्होंने भोजन के लिए, इन बाघों के साथ अधिक प्रतिस्पर्धा की।
3.) शिकारी का खुद शिकार बनना: कृपाण दांत वाले बाघ का विलुप्त होना भी, उस अवधि के साथ जुड़ा हुआ है, जब मनुष्यों ने शिकार तकनीक में प्रगति करना शुरू कर दिया था। यह क्लोविस जनजातियों(Clovis tribes) के समय की बात है, जो प्रारंभिक मनुष्यों का एक समूह था। ये लोग, अपने सरल एवं फेंकने योग्य हथियारों के लिए जाने जाते थे। वास्तव में, मनुष्यों ने, अपने भोजन के लिए इन बाघों ज़मीनी शिकार नहीं किया होगा, बल्कि, सुरक्षा या खेल के लिए उन्हें मारा होगा।जबकि, कुछ शोधकर्ता कहते हैं कि, उस समय, मनुष्यों के पास, अन्य जानवरों को विलुप्ति की कगार पर डालने के साधन या इच्छा नहीं थी।
हालांकि, ये बाघ विलुप्त हुए हैं, कृपाण दांत वाले कुछ जानवर वर्तमान में भी जीवित हैं। आइए जानते हैं।
1.) कस्तूरी मृग: कस्तूरी मृग (मॉस्कस मॉस्चिफेरस – Moschus moschiferus), आज जीवित कुछ कृपाण दांतों वाले जानवरों में से एक है। लेकिन, यह मांसल शिकार के लिए अपने दांतों का उपयोग नहीं करता है, क्योंकि यह वास्तव में एक शाकाहारी जीव है। दरअसल, नरों के पास उनके प्रजनन के मौसम में एक-दूसरे से लड़ने व मादाओं को आकर्षित करने के लिए, ये कृपाण दांत होते हैं।
2.) वॉलरस: वॉलरस (ओडोबेनस रोस्मारस – Odobenus rosmarus) के पास शायद सबसे लंबे कृपाण दांत है। कुछ नरों के दांत, एक फ़ुट से भी अधिक लंबे होते हैं। नर वालरस अपने कृपाणों का इस्तेमाल प्रदर्शन और हथियार दोनों के रूप में करते हैं। उनके कृपाण दांत विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं, ये उन्हें “दांतों से शरीर को आधार देने” या उनके बड़े शरीर को पानी से बाहर निकालने में भी मदद कर सकते हैं। साथ ही, नीचे पानी में तैरते समय, बर्फ़ में सांस लेने के लिए उसे तोड़ने और अपने क्षेत्र की रक्षा करने हेतु भी उन्हें इन दांतों की आवश्यकता होती हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/5xwdvwx4
https://tinyurl.com/53696y3x
https://tinyurl.com/53uthmx2
https://tinyurl.com/45njz932
चित्र संदर्भ
1. बाघ की कृपाण दांत वाली प्रजाति के कंकाल को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. सेबर टूथ बाघ की खोपड़ी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. कृपाण दांतों वाले जीवों के संग्रह को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. कस्तूरी मृग को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. वॉलरस को संदर्भित करता एक चित्रण (pexels)