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600 ईसा पूर्व से 300 ईसवी तक का युग था शानदार वास्तुशिल्प चमत्कारों और इमारतों का गवाह

मेरठ

 12-08-2024 09:30 AM
धर्म का उदयः 600 ईसापूर्व से 300 ईस्वी तक

माना जाता है कि 600 ईसा पूर्व से 300 ईसवी तक का युग, कुछ शानदार वास्तुशिल्प चमत्कारों, मंदिरों और इमारतों का गवाह रहा है जैसे रोम में शनि का मंदिर, चीन की महान दीवार, प्राचीन ग्रीक पार्थेनन और भी बहुत कुछ। इसके अलावा, पांचवीं से चौथी शताब्दी ईसा पूर्व की अवधि, ग्रीक मिट्टी के बर्तनों के शास्त्रीय काल और हेलेनिस्टिक काल के रूप में प्रसिद्ध थी। 322 ईसा पूर्व से 185 ईसा पूर्व तक हमारा शहर मेरठ मौर्य साम्राज्य का गढ़ था। दिल्ली के फ़िरोज़शाह कोटला में स्थित, अशोक स्तंभ का उत्खनन हमारे मेरठ में ही हुआ था। तो आइए, आज इस लेख में 600 ईसा पूर्व से 300 ईसवी के बीच की कला और वास्तुकला से जुड़े वास्तुशिल्प चमत्कारों के बारे में जानते हैं। इसके साथ ही, ग्रीक मिट्टी के बर्तनों के उपर्युक्त कालखंडों के बारे में विस्तार से चर्चा करते हैं। इसके बाद, हम 600 ईसा पूर्व से 300 ईसवी के बीच की कुछ सबसे प्रसिद्ध भारतीय मूर्तियों और संरचनाओं के बारे में भी जानेंगे।
आज से हज़ारों साल पहले बनी दुनिया की कुछ सबसे प्रभावशाली इमारतें आज भी मौजूद हैं और अपनी भव्यता और विशिष्टता के लिए जानी जाती हैं। आइए ऐसी ही कुछ भव्य इमारतों के विषय में जानते हैं:
शनि मंदिर (Saturnus Aedes): रोम में शनि का मंदिर, कैपिटोलिन हिल के दक्षिणपूर्वी ढलान पर, क्लिवस कैपिटोलिनस और विकस इउगेरियस के बीच स्थित है। इसका मुख उत्तर-पूर्व की ओर है। यह पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व का एक सर्वोत्कृष्ट रिपब्लिकन-युग का मंदिर है, जो अपनी स्थापना की अवधि के दौरान बेहद भव्य था। यह मंदिर कृषि देव शनि को समर्पित था, जिनको ग्रीक देवता क्रोनस से जुड़ा माना जाता था। शनि को सम्मानित करने के लिए 17-23 दिसंबर के बीच सैटर्नेलिया (Saturnalia) नामक एक उत्सव भी मनाया जाता था। 17 दिसंबर को मंदिर में सार्वजनिक उत्सव का आयोजन किया जाता था। मुनाटियस प्लांकस द्वारा ऑगस्टान युग में और अंतिम बार चौथी शताब्दी के अंत में, संभवतः जूलियन के शासनकाल के दौरान, मंदिर का पुनर्निर्माण कराया गया।
चीन की महान दीवार (The Great Wall of China): चीनी सम्राट, किन शी हुआंग ने तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में चीन की महान दीवार का निर्माण शुरू करवाया, ताकि उत्तर से बर्बर लोग उनकी भूमि में प्रवेश न कर सकें। यह दीवार लगभग 4,000 मील लंबी है जो कई खंडों में बनी है। पूर्व-पश्चिम दिशा की दीवार को भौतिक और मनोवैज्ञानिक बाधा पैदा करने के लिए पत्थर, ईंट, लकड़ी और मिट्टी का उपयोग करके बनाया गया है। मूल दीवार का अधिकांश भाग, समय के साथ नष्ट हो गया, लेकिन 1300 ईसवी में, मिंग राजवंश द्वारा इसका पुनर्निर्माण कार्य शुरू किया गया जिसके बाद यह महान दीवार दुनिया के लिए एक आश्चर्य बन गई।
हेरा का मंदिर (Temple of Hera): हेरा मंदिर, मूल रूप से 40 पत्थर के स्तंभों से घिरा है। मंदिर के डोरिक शैली का बाहरी भाग, क्रोनोस पहाड़ी के दक्षिणी ढलानों पर बनाया गया था, जो तीन अलग-अलग आंतरिक कक्षों से परिपूर्ण था। मंदिर का आधार, चूना पत्थर से बना है जो पूर्व से पश्चिम की ओर फैला है। मिट्टी की ईंटों, लकड़ी और टेराकोटा के साथ मंदिर के आंतरिक भाग का निर्माण किया गया है। दुर्भाग्यवश, इसका अधिकांश भाग चौथी शताब्दी में आए भूकंप के दौरान नष्ट हो गया था।
एक्रोपोलिस पर प्राचीन यूनानी पार्थेनन (Ancient Greek Parthenon on the Acropolis): एथेंस के एक्रोपोलिस के चट्टानी इलाके में बनी पहली इमारतों को 480 ईसा पूर्व के आसपास फ़ारसियों द्वारा नष्ट कर दिया गया था, लेकिन 432 ईसा पूर्व के आसपास, उनके पुनर्निर्माण का कार्य कराया गया। एक्रोपोलिस का मुख्य आकर्षण पार्थेनन और इसकी एथेना की सोने और हाथीदांत की मूर्ति थी, इसके अलावा यहां देखने के लिए बहुत सी अन्य वस्तुएं थीं, जिनमें चूना पत्थर की नींव और पेंटेलिक संगमरमर से बने स्तंभ शामिल थे।
गोबेकली टेपे (Gobekli Tepe): दुनिया का पहला मंदिर माने जाने वाले गोबेकली टेपे में कम से कम, 20 गोलाकार स्थापनाएं हैं, जिनमें से प्रत्येक में दीवारों से घिरे कई स्तंभ हैं | पूरे मंदिर में लगभग 200 स्तंभ हैं। यह स्थल लोमड़ियों, सांपों, जंगली सूअरों, सारस और जंगली बत्तखों सहित जानवरों की लगभग 10,000 ईसा पूर्व की नक्काशी वाली चट्टानी मूर्तियों का भी घर है।सबसे दिलचस्प बात यह है कि कुछ निर्माणों में ऐसे खंभे हैं जो टी-आकार के हैं और उनका वज़न 60 टन से अधिक है, जिससे विशेषज्ञ इस बात को लेकर अनिश्चित हैं कि आदिम मनुष्यों ने इतना जटिल कार्य कैसे पूरा किया।
बौगोन का तुमुलस (Tumulus of Bougon): बौगोन नदी के पास, चूना पत्थर के पठार पर एक आयताकार कक्ष के साथ एक सीढ़ीदार टीला है, बौगोन का तुमुलस। प्राचीन टीले के अंदर सीधे पत्थरों द्वारा निर्मित मार्गों और कक्ष की दीवारों की एक श्रृंखला है। जब इस स्थान को खोजा गया था, तो यह कंकालों की कई ऊर्ध्वाधर परतों और बहुत सारे मिट्टी के बर्तनों से भरा हुआ था, जिससे पुरातत्वविदों को निर्माण की समयरेखा की पहचान करने और यह पता लगाने में मदद मिली कि यह संरचना कितनी प्रारंभिक और प्रभावशाली है।
मिस्र के पिरामिड (The Egyptian Pyramids): मिस्र के पुराने साम्राज्य की ताकत को तीसरे राजवंश के उत्तरार्ध के पिरामिडों, विशेष रूप से गीज़ा के राजसी ग्रेट स्फिंक्स, जो लगभग 2530 ईसा पूर्व में बनाया गया था, के शक्तिशाली निर्माण प्रयास से बेहतर किसी और वस्तु द्वारा प्रदर्शित नहीं किया जा सकता। पिरामिडों का निर्माण वास्तव में 2600 ईसा पूर्व में तेज़ी से हुआ। उस समय, ये पिरामिड, तीर्थस्थलों और प्रांगणों, यहाँ तक कि मंदिरों से भी घिरे होते थे। जहां अधिकांश पिरामिड लगभग 204 फ़ीट ऊंचे थे, खुफू का महान पिरामिड 481 फ़ीट से अधिक ऊंचा था | इसे लगभग ढाई टन के पत्थर के लाखों ब्लॉकों से बनाया गया। आश्चर्य की बात यह थी कि प्रत्येक पत्थर को हाथ से काटा गया था।
साँची का स्तूप: भारत में सांची स्तूप, शायद प्राचीन उदाहरणों में सबसे प्रसिद्ध है। भारत की सबसे पुरानी पत्थर संरचनाओं में से एक, इस स्तूप का आवरण बुद्ध के अवशेषों को आश्रय देने के लिए बनाया गया था। 300 ईसा पूर्व में, स्मारक के प्रारंभिक निर्माण के बाद से इसमें सैकड़ों वर्षों में नक्काशीदार प्रवेश द्वार, दरवाज़े, अतिरिक्त सीढ़ियाँ और एक शीर्ष-स्तरीय मंच जोड़ा गया है।
शास्त्रीय काल: पांचवीं और चौथी शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास के काल को शास्त्रीय काल माना जाता है जिसमें काले मिट्टी के बर्तनों का विकास हुआ। इसके साथ ही, लाल मिट्टी के बर्तनों की शुरूआत भी हुई। इस समय के मिट्टी के बर्तन, जीवन की जीवंतता को व्यक्त करते हैं। इन बर्तनों पर अधिक यथार्थवादी दिखने वाले लोग और जानवरों के चित्र उकेरे गए हैं, कुछ चित्र तो गतिशील भी प्रतीत होते हैं। आश्चर्य की बात यह है कि इन मिट्टी के बर्तनों पर चित्रित लोगों के चेहरों पर गंभीर भाव थे, जो इस काल के मिट्टी के बर्तनों और मूर्तियों दोनों में मौजूद थे।
हेलेनिस्टिक काल: चौथी शताब्दी ईसा पूर्व के काल को हेलेनिस्टिक काल माना जाता है। इस काल के दौरान, एथेंस मिट्टी के बर्तनों का प्रमुख केंद्र था। हालाँकि चौथी शताब्दी के मध्य में, महान रेड- फ़िगर आंदोलन के कारण इनकी लोकप्रियता समाप्त हो गई। यह मैग्ना ग्रेशिया, या ग्रेट ग्रीस का समय था | इस समय, अलंकृत शैली के मिट्टी के बर्तनों की प्रसिद्धी बढ़ी । कलाकारों ने विभिन्न सफ़ेद, नीले और सुनहरे रंगों का उपयोग करके मिट्टी के बर्तनों में रंग भी शामिल किए। हेलेनिस्टिक कलाकारों ने अपने डिज़ाइनों को अपनी इच्छानुसार प्रदर्शित करने के लिए बर्तनों पर मौजूद क्षेत्र का भरपूर उपयोग किया।
600 ईसा पूर्व से 300 ईसवी तक की पांच प्रसिद्ध भारतीय मूर्तियाँ और संरचनाएँ: 1.) दीदारगंज यक्षी: इस विशाल मूर्ति को 'दीदारगंज यक्षी' के नाम से जाना जाता है, जो एक महिला प्रकृति आत्मा है, जो अपने एक रहस्यमय मुस्कान के साथ प्रजनन क्षमता और समृद्धि का प्रतीक है। इस मूर्ती को पूर्वोत्तर भारत के दीदारगंज कदम बसुल में खोजा गया था। इसका समय तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व का बताया जाता है।
2.) बोधगया: इस स्थान को 'बुद्ध की ज्ञान प्राप्ति स्थल' के रूप में भी जाना जाता है। बोधगया, प्राचीन, मध्यकालीन और आधुनिक मंदिरों, मठों, और मंदिरों से भरपूर एक विशाल तीर्थ शहर है। इस पवित्र बौद्ध केंद्र का ऐतिहासिक और पुरातात्विक रिकॉर्ड कम से कम तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व का है।
3.) सारनाथ का अशोक स्तंभ: इस स्तंभ के शीर्ष में तीन भाग हैं। सबसे पहले, कमल के फूल का आधार, जो बौद्ध धर्म का सबसे सर्वव्यापी प्रतीक है। फिर, एक बेलनाकार आकृति है जिस पर चार जानवरों की नक्काशी की गई है, जो चार प्रमुख दिशाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं: एक घोड़ा (पश्चिम), एक बैल (पूर्व), एक हाथी (दक्षिण), और एक शेर (उत्तर)। वे उन चार नदियों का भी प्रतिनिधित्व करते हैं जो अनावतप्ता झील से निकलती हैं और चार प्रमुख नदियों के रूप में दुनिया में प्रवेश करती हैं। यह स्तंभ 250 ईसा पूर्व का बताया जाता है।
4.) अजंता गुफ़ाएं : अजंता गुफ़ाओं की उत्पत्ति, 200 ईसा पूर्व की मानी जाती है। पहाड़ को काटकर बनाई गईं ये गुफ़ाएं वांगोराह नदी के चारों ओर घोड़े की नाल की आकृति बनाती हैं। ये गुफ़ाएं, भारत की अनूठी कलात्मक परंपराओं में से एक का उदाहरण हैं जिन्हें रॉक-कट मंदिरों के रूप में जाना जाता है। अजंता में तीस गुफ़ाएं हैं, जिनमें से प्रत्येक, बुद्ध के जीवन को समर्पित है। प्रत्येक गुफ़ा, मूर्तियों, दीवार भित्तिचित्रों और छत चित्रों से भरी हुई है। हालाँकि इस स्थल का अधिकांश भाग नष्ट हो गया है, लेकिन आज भी अजंता में जो कुछ बचा है उससे प्राचीन भारत की कलात्मक परंपराओं की झलक मिलती है।
5.) एलीफेंटा में शिव गुफ़ा: भारत के पश्चिमी तट पर घारापुरी द्वीप पर, मुंबई शहर के पास चट्टानों को काटकर बनाई गईं ये गुफ़ाएं, एलिफेंटा के नाम से मशहूर है। यहां तक पहुंचने के लिए पर्यटक मुंबई से नाव से यात्रा करते हैं और फिर एलिफेंटा की गुफ़ाओं तक पहुंचने के लिए सौ से अधिक सीढ़ियों से पहाड़ी पर चढ़ते हैं। एलीफेंटा में शिव गुफ़ा में शिव की कम से कम दस विशिष्ट छवियां हैं; इनमें से दो 'अर्धनारीश्वर' के रूप में हैं, जिसमें शिव और देवी पार्वती के रूप जुड़े हुए हैं, और एक अन्य में शिव को गंगाधर के रूप में दिखाया गया है, जिसमें शिव देवी गंगा को पृथ्वी पर अवतरण के समय अपनी जटाओं में धारण कर रहे हैं।

संदर्भ
https://tinyurl.com/3t89wpd2
https://tinyurl.com/mtp73tvw
https://tinyurl.com/3dcs4wek
https://tinyurl.com/yc7a3v2t

चित्र संदर्भ
1. भारत में सांची स्तूप को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. शनि मंदिर को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. चीन की महान दीवार को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. हेरा के मंदिर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. एक्रोपोलिस पर प्राचीन यूनानी पार्थेनन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. गोबेकली टेपे को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
7. बौगोन के तुमुलस को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
8. मिस्र के पिरामिड को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
9. साँची के स्तूप को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
10. दीदारगंज यक्षी को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
11. बोधगया में बुद्ध की प्रतिमा को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
12. सारनाथ के अशोक स्तंभ को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
13. अजंता गुफ़ा को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
14. एलीफेंटा में शिव को दर्शाता चित्रण (wikimedia)


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