19वीं सदी का मेरठ आज के मेरठ से बिलकुल अलग था। यहाँ पर विभिन्न मिशनरियों का बसाव बढ़ रहा था। सरधना से लेकर मेरठ शहर व पूरे उत्तर भारत में चर्चों का निर्माण हो रहा था। आस-पास के क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर धर्म परिवर्तन भी किया जा रहा था, इन सभी हालातों के चलते मेरठ में आर्य समाज का आगमन हुआ।
आर्य समाज के निर्माता स्वामी दयानंद सरस्वती थे जिनका जन्म काठियावाड़ में सन 1824 में हुआ था। आर्य समाज के प्रमुख 5 विश्वास थे-
1- ईश्वर एक है तथा उसकी पूजा आध्यामिकता के साथ करनी चाहिए न कि मूर्तियों के जरिये।
2- चारों वेद ईश्वरीय ज्ञान हैं तथा ये सत्यता, विज्ञान आदि पर आधारित हैं।
3- वेद कर्म पर विश्वास करते हैं।
4- क्षमा सदैव के लिए असंभव है।
5- मुक्ति पारगमन से मुक्ति है।
आर्य समाज की स्थापना 1875 में हुयी थी। यह समाज हिन्दू अस्मिता को बचाने व हिन्दुओं को साथ लाने का एक आन्दोलन था। आर्य समाज पंजाब के क्षेत्र में बड़ी मात्रा में प्रभावशाली रहा। आर्य समाज ने कई स्कूलों और महाविद्यालयों की श्रृंखला की शुरुआत की। उन्ही में से एक था दयानंद एंग्लो-वैदिक कॉलेज, लाहौर। इनके आलावा आर्य समाज ने देश भर में विभिन्न स्थानों पर अपनी शाखाएं खोली जो प्राचीन भारतीय पद्धति पर लोगों को जागरूक करने का कार्य कर रही थी और धर्म के प्रति एकजुट होने के लिए प्रेरित कर रही थी। जैसा कि मेरठ में क्रिस्चियन समुदाय की संख्या बढ़ रही थी तो इसका प्रतिफल यह हुआ कि मेरठ में आर्य समाज की स्थापना सन 1878 में हुयी। सन 1900 के बाद आर्य समाज ने एक आन्दोलन शुरू किया जिसमे क्रिस्चियन धर्म अपना चुके लोगों को पुनः हिन्दू धर्म अपनाने की प्रेरणा दी गयी। शुद्धि आन्दोलन उसी का हिस्सा था। इसका प्रभाव यह रहा की 1911 में आर्य समाज के मानने वालों की संख्या में 131% की बढ़ोतरी हुयी। आज भी मेरठ में आर्य समाज के विभिन्न चिह्नों को देखा जा सकता है। चित्र में दिखाया गया स्तम्भ आर्य समाज से ही प्रेरित है।
1. इन द दोआब एंड रोहिलखंड, नार्थ इंडियन क्रिस्चियनिटी 1815-1915, जेम्स पी अल्टर
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