समय - सीमा 276
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मेरठ महाजनपद काल से ही राजनैतिक रूप से केंद्र बिंदु था। यही कारण है कि हस्तिनापुर व अन्य कितने ही पुरातात्विक टीले इस जिले में मिलते हैं। मेरठ का प्राचीन नाम मयराष्ट्र था जिसका विवरण रामायण और हस्तिनापुर का विवरण महाभारत से मिल जाता है। मौर्य साम्राज्य के आ जाने के बाद इस स्थान का वैभव और भी ऊँचा चला जाता है जिसका प्रमाण यहाँ के नाम के विवरणों से मिलता है। बिन्दुसार के निधन के बाद उसका बेटा अशोक राजगद्दी पर बैठा। अशोक के शासन काल में मेरठ का महत्व कई गुना बढ़ गया। अशोक ने अपने राज्यारोहण के 26वें वर्ष में मेरठ में अपना स्तम्भ लेख स्थापित करवाया। सन 1364 ईस्वी में फिरोजशाह तुगलक शिकार खेलता हुआ मेरठ आया और वह मेरठ में स्थापित शिलालेख को दिल्ली ले आया जिसे आज भी बड़ा हिन्दू राय के पास देखा जा सकता है। इस स्तम्भ को अशोक के द्वितीय स्तम्भ लेख के रूप में जाना जाता है। इस स्तम्भ लेख पर ब्राह्मी लिपि में अशोक के आदेशों को लिखा गया है। ब्राह्मी लिपि को जेम्स प्रिन्सेप की वजह से पढ़ा जाना संभव हो पाया है। इस स्तम्भ पर लिखे आदेश निम्नवत हैं-
“देवताओं के प्रिय प्रियदर्शी राजा का कहना है कि धर्म करना अच्छा है। पर धर्म क्या है? धर्म यही है कि पाप से दूर रहें, बहुत से अच्छे काम करें। दया, दान, सत्य और शौच (पवित्रता) का पालन करें। मैंने कई प्रकार से चक्षु का दान या आध्यात्मिक दृष्टि का दान भी लोगों को दिया है। दोपायों, चौपायों, पक्षियों और जलचरों पर भी मैंने कृपा की है। मैंने उन्हें प्राणदान भी दिया है और भी बहुत से कल्याण के कार्य मैंने किये हैं। यह लेख मैंने इसलिए लिखवाया है कि लोग इसके अनुसार आचरण करें और यह चिरस्थाई रहे जो मनुष्य इसके अनुसार आचरण करेगा, वह पुण्य का कार्य करेगा।"
उपरोक्त दिए अभिलेख से यह अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि अशोक ने किस प्रकार से धर्म और दर्शन के प्रचार-प्रसार का बीड़ा उठाया था। यह लेख मेरठ की महत्ता पर भी दृष्टिगोचर करता है।
1. इन्स्क्रिप्शन ऑफ़ अशोक, डी.सी. सिरकार
2. अशोक एंड द डिक्लाइन ऑफ़ द मौर्याज़, रोमिला थापर
3. फीचर लेखन, पी.के.आर्य
4. महानायक सम्राट अशोक, ऍम.ऍम.चन्द्र