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बाघ दुनिया के सबसे शक्तिशाली और शानदार वन्य जीवों में से एक हैं। ये दुनिया की सबसे बड़ी बिल्ली प्रजाति से संबंधित होते हैं जो सुदूर पूर्व रूस (East Russia), उत्तर कोरिया (North Korea) के कुछ हिस्सों, चीन (China), भारत, दक्षिण पश्चिम एशिया (Asia) और इंडोनेशिया (Indonesia) के सुमात्रा द्वीप में पाए जाते है। ये असाधारण जीव पारिस्थितिक तंत्र के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। हालाँकि, बढ़ती मानवीय जनसंख्या के परिणाम स्वरूप, निवास स्थान के नुकसान, अवैध हत्या और घटती खाद्य आपूर्ति के दबाव के कारण बाघों की सभी प्रजातियाँ लुप्तप्राय सूची में आ गई हैं। पिछले कुछ वर्षों में वैश्विक स्तर पर बाघों की आबादी में भारी गिरावट आई है जिसका मुख्य कारण शिकार और बाघ के अंगों का अवैध व्यापार है।
बाघ के अंगों का उपयोग अनुष्ठानों में, आंतरिक अंगों के उपचार, गहने, दवाएं, कपड़े और वाइन बनाने के लिए किया जाता है। इसीलिए बाघों के संरक्षण एवं 2022 तक वैश्विक बाघ आबादी को दुगना करने के लक्ष्य के साथ, 13 बाघ रेंज वाले देशों द्वारा 2010 में 'अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस' (International Tiger Day) की स्थापना की गई, जिसे प्रत्येक वर्ष 29 जुलाई को मनाया जाता है। तो आइए, इस लेख में भारत में बाघों के शिकार और भारतीय बाघों को मारने में अंग्रेज़ों की भूमिका के विषय में जानते हैं। इसके साथ ही बाघों के अंगों का उपयोग करने वाली चर्मप्रसाधन कला के विषय में भी समझते हैं। इसके अतिरिक्त, हमारे मेरठ शहर में 1879 में शुरू हुई एक वार्षिक प्रतियोगिता के बारे में भी जानते हैं जिसमें लोग घोड़े पर सवार होकर भाले से जंगली सूअरों का शिकार करते थे।
1971 में भारत सरकार द्वारा शिकार को गैरकानूनी घोषित करने से पहले, भारतीय और ब्रिटिश कुलीनों द्वारा व्यापक रूप से शिकार किया जाता था जिसके तहत उनके द्वारा हज़ारों बाघों को मार दिया गया। इस तथ्य को इस प्रकार भी समझा जा सकता है कि जहां 19वीं सदी की शुरुआत में भारत में रॉयल बंगाल बाघों की अनुमानित संख्या 40000 थी, वहीं अगले 70 वर्षों में यह संख्या घटकर महज़ 1800 रह गई।
भारत में शिकार की परंपरा मूल रूप से मुगल सम्राट जलाल-उद-दीन मुहम्मद अकबर के खेल के प्रति जुनून के साथ शुरू हुई, जिसे मुगल शासकों ने 1857 में राजवंश के पतन तक जारी रखा। उस काल की पेंटिंग्स में मंगोल, राजपूत, तुर्क और अफ़ग़ान कुलीनों को हाथी या घोड़े पर बैठकर शिकार करते हुए दर्शाया गया है। इस क्रूरता भरे खेल को वीरतापूर्ण खेल माना जाता था और बाघ के शिकार को सबसे बड़ा इनाम। मुगलों के बाद, ब्रिटिश राज के तहतभी विस्तृत बड़े शिकार का मंचन करना एक पसंदीदा खेल था, एक ऐसी गतिविधि जो उनके शाहित्व, शक्ति और धन का प्रदर्शन करती थी। उन्होंने नाममात्र संप्रभु "रियासतों" पर शासन करने वाले अपने भारतीय समकक्षों के साथ, बड़ी संख्या में बाघों का शिकार किया। 1911 में सिंहासन पर बैठने के बाद, किंग जॉर्ज पंचम और उनके अनुचरों ने उत्तर की ओर नेपाल की यात्रा की, और 10 दिनों में 39 बाघों को मार डाला। कर्नल जेफ़्री नाइटिंगेल ने भारत में 300 से अधिक बाघों को गोली मार दी। मध्य भारत में नवगठित रीवा राजाओं ने अपने राज्याभिषेक के बाद 109 बाघों को मारना शुभ समझा। युवा भारतीय राजकुमारों के लिए बाघ को गोली मारना एक पुरानी परंपरा थी। इतिहासकार महेश रंगराजन के अनुसार, "1875 से 1925 तक 50 वर्षों में 80,000 से अधिक बाघों की हत्या कर दी गई।"
1947 में देश की स्वतंत्रता के बाद ये शिकार और भी अधिक बढ़ गए। स्वतंत्रता के बाद मानो जैसे कि सभी के लिए मुफ्त शिकार की शुरुआत हो गई थी। हाथ में बंदूक पकड़ने वाला प्रत्येक व्यक्ति शिकारी बन जाता था। महाराजाओं द्वारा शिकार के अद्भुत नए रिकॉर्ड बनाए गए। एक पत्र में, सरगुजा के महाराजा ने वन्यजीव, जीवविज्ञानी जॉर्ज स्कॉलर को बताया कि 1965 तक, उनके पास 1,150 बाघ थे। क्रूरता एवं दर्द से भरे इस काले खेल का परिणाम यह हुआ कि सबसे शानदार माने जाने वाले कुछ बाघों के जीन पूरी तरह से गायब हो गए।
हमारे शहर मेरठ में भी एक वार्षिक प्रतियोगिता 'कादिर कप' का आयोजन किया जाता था जिसकी शुरुआत 1879 में हुई थी। यह एक व्यक्तिगत प्रतियोगिता थी जो चार दिनों तक आयोजित की जाती थी और जिसमें प्रत्येक व्यक्ति अपने नाम से प्रविष्टि करता था और दो घोड़ों को नामांकित करता था। घोड़े पर सवार प्रत्येक शिकारी के पास एक ' भाला होता था।
एक सूअर को छोड़ा जाता था जिसके पीछे लोग उसे भाला मारने के लिए दौड़ पड़ते थे और अंपायर द्वारा इस शिकार की निगरानी की जाती थी। यह प्रतियोगिता कई चरणों में आयोजित होती थी। प्रत्येक प्रतियोगी को प्रवेश शुल्क का भुगतान भी करना होता था, हालांकि, विजेता को प्रवेश शुल्क वापस मिल जाता था, जिसके साथ उसने मूल ट्रॉफी की प्रतिकृति भी मिलती थी, जिस पर उसका नाम अंकित होता था। कादिर कप सुअर के शिकार के खेल के लिए सर्वोच्च सम्मान माना जाता था और प्रत्येक खिलाड़ी की अंतिम महत्वाकांक्षा इसे जीतना था। कप के सबसे प्रसिद्ध विजेता 1883 में सर रॉबर्ट बैडेन-पॉवेल थे।
क्या आप जानते हैं कि इन जंगली जानवरों, विशेष तौर पर बाघों का शिकार उनके अंगों के लिए किया जाता है जो बहुत बड़े स्तर का अवैध व्यापार है। बाघ के अंगों का उपयोग अनुष्ठानों में, आंतरिक अंगों के उपचार, गहने, दवाएं, कपड़े और वाइन बनाने के लिए किया जाता है। साथ ही, बाघ के अंगों का उपयोग चर्मप्रसाधन के लिए भी किया जाता है। चर्मप्रसाधन कशेरुक जानवरों के अवशेषों को संरक्षित करने की एक मौलिक तकनीक है। मूलतः यह किसी जानवर के मरने के बाद उसके तत्वों को अध्ययन या प्रदर्शन के लिए संरक्षित करने की एक विधि है। आपने भी शायद यदि किसी प्राकृतिक ऐतिहासिक संग्रहालय का दौरा किया होगा, तो अवश्य ही चर्मप्रसाधन के उदाहरण देखे होंगे।
चर्मप्रसाधन का उपयोग प्रदर्शनी के अतिरिक्त, वैज्ञानिक अध्ययन के लिए 'त्वचा' के उत्पादन में भी किया जाता है। चर्मप्रसाधन का अंग्रेजी शब्द 'टैक्सिडेरमी' (Taxidermy) ग्रीक शब्द 'टैक्सी' (व्यवस्था) और 'डर्मा' (त्वचा) से बना है। सीधे शब्दों में कहें तो, चर्मप्रसाधन में किसी जानवर की त्वचा को साफ और संरक्षित किया जाता है और फिर उसे 'शरीर के आकार' के फ्रेम पर खींचा जाता है, जो आमतौर पर जानवर पर ही बनाया जाता है। चर्मप्रसाधन किसी जानवर को प्रदर्शन या अध्ययन के लिए तैयार करने, भरने और/या रखने का एक तरीका है। इसमें आमतौर पर जानवर को जीवित दिखाने के लिए नकली शरीर के ऊपर जानवर की असली त्वचा को व्यवस्थित करना शामिल होता है| यह शरीर को संरक्षित करने का एक तरीका है ताकि वैज्ञानिक या संग्रहालय के आगंतुक देख सकें कि जब जानवर जीवित था तो वह कैसा था। चर्मप्रसाधन नमूनों के लिए बाघ के लगभग हर हिस्से का उपयोग किया जाता था।
आइए अब जानते हैं कि बाघ के शरीर के प्रति अंग का उपयोग किन वस्तुओं के लिए किया जाता है:
- बाघ की खाल और चर्मप्रसाधन नमूनों का उपयोग घर की सजावट के लिए गलीचे के रूप में किया जाता है।
- पारंपरिक चीनी चिकित्सा में बाघ की हड्डियों का उपयोग किया जाता है, बंदी बाघ की हड्डी की तुलना में जंगली बाघ की हड्डी को प्राथमिकता दी जाती है।
- बाघ की हड्डियों या यहां तक कि पूरे मृत शावकों का उपयोग करके एक प्रकार का 'टॉनिक' बनाया जाता है जिसे एक पौरुष उत्पाद के रूप में बेचा जाता है।
- बाघ के दांत और पंजे, चीन और दक्षिण-पूर्व एशिया में व्यापक रूप से उपलब्ध होते हैं, जो अक्सर चांदी और सोने में जड़े होते हैं, और आकर्षण के रूप में पहने जाते हैं।
-बाघ का मांस एक विदेशी व्यंजन के रूप में खाया जाता है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/24uzjk7p
https://tinyurl.com/4pnp29wh
https://tinyurl.com/yhtsy89f
https://tinyurl.com/27ypzfjz
चित्र संदर्भ
1. शिकारियों द्वारा मारे गए बाघ को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
2. सुखाई जा रही बाघ की खाल को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. दीवार पर सजाई गई बाघ की खाल को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. 1911 में, नीलगिरी में, बाघ के शिकार को संदर्भित करता एक चित्रण (GetArchive)
5. बाघ के चर्मप्रसाधन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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