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अयोध्या से लेकर लंका तक के मंदिरों एवं किवदंतियों में आज भी उपस्थित हैं, राम

मेरठ

 04-07-2024 09:31 AM
विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

प्रभु श्री राम की अयोध्या से लेकर लंका तक की वनवास यात्रा केवल भौतिक रूप से तय की गई दूरी नहीं है। वास्तव में उनकी यह यात्रा अपने आप में गहरे दार्शनिक अर्थ भी रखती है। इसके प्रमाण के तौर पर उस कुटिया को देखा जा सकता है, जहां पर भगवान श्री राम, बिना किसी संकोच के अपनी परम भक्त शबरी के जूठे बेरों को खा लेते हैं। दुःख एवं कष्टों से भरी अपनी इस यात्रा में प्रभु श्री राम अपने अनुज लक्ष्मण जी एवं अर्धांगिनी सीता के साथ जिन स्थानों पर भी ठहरे, वे सभी स्थान धार्मिक स्थलों में परिवर्तित हो गए। चलिए आज हमारे उत्तर प्रदेश से लेकर श्रीलंका तक के उन विभिन्न धार्मिक स्थलों के दर्शन करते हैं, जहाँ पर भगवान श्री राम अपनी यात्रा के दौरान पहुंचे या ठहरे थे। भारत में यहां की जीवंत सांस्कृतिक विरासत और गहन आध्यात्मिक परंपराओं को प्रदर्शित करते हुए कई प्रतिष्ठित राम मंदिर हैं। ये मंदिर अथवा धार्मिक स्थल हिंदू पौराणिक कथाओं में भगवान श्री राम की कीर्ति और महत्व की गवाही देते हैं। यद्यपि अयोध्या राम मंदिर भगवान राम के जन्मस्थान के रूप में एक विशेष स्थान रखता है, लेकिन इसके अलावा भी प्रभु श्री राम को समर्पित कई अन्य मंदिर पूरे भारतीय परिदृश्य में बिखरे हुए हैं। ये मंदिर, महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल और स्थापत्य चमत्कार के रूप में पर्यटकों और भक्तों दोनों को आकर्षित करते हैं।
चलिए अब भगवान् श्री राम एवं रामायण से जुड़े ऐसे ही गहरे आध्यात्मिक महत्व वाले भव्य राम मंदिरों एवं धार्मिक स्थलों के बारे में जानते हैं: बनारस: महाकाव्य रामायण के अनुसार भगवान राम अपने वनवास के दौरान बनारस अथवा काशी में पहुचे थे। यहाँ आकर वह काशी विश्वनाथ मंदिर में भगवान शिव की पूजा करते हैं और अपनी पत्नी सीता को राक्षस राजा रावण से बचाने हेतु अपनी यात्रा शुरू करने से पहले उनका आशीर्वाद लेते हैं। राम राजा मंदिर, ओरछा: मध्य प्रदेश के ओरछा में बेतवा नदी के किनारे स्थित राम राजा मंदिर से जुड़ी एक अनोखी किंवदंती प्रचलित है। माना जाता है कि ओरछा की रानी ​​भगवान राम की परम भक्त थी। एक बार वह अयोध्या गई, जहाँ से वह भगवान् राम को उनके बाल रूप के साथ वापस ओरछा लाने पर पर अड़ गई। भगवान राम इस शर्त पर उनके साथ ओरछा जाने के लिए सहमत हो गए कि वह उसी मंदिर में रहेंगे, जहाँ वह शुरू में उनके लिए आवास उपलब्ध कराएंगी। इसके बाद भगवान राम के सम्मान में एक मंदिर बनाया गया था। जब मंदिर बनकर तैयार हो गया, तो भगवान राम ने रानी के साथ अपने समझौते के अनुसार मंदिर से हटने से इनकार कर दिया। नतीजतन, आज भी राम राजा मंदिर उस जगह पर स्थित है जहाँ मूल रूप से रानी का निवास था। थिरुपुल्ला भूतंगुडी मंदिर: तमिलनाडु के कुंभकोणम के पास पुल्लभूतंगुडी में भगवान विष्णु को समर्पित थिरुपुल्लाभूतंगुडी नामक एक प्रसिद्ध मंदिर है। इसे भगवान् विष्णु को समर्पित 108 दिव्य देशमों में गिना जाता है। यहाँ पर भगवान् विष्णु की पूजा वाल्विल रामर के रूप में, और उनकी पत्नी लक्ष्मी की पूजा सीता के रूप में की जाती है। थिरुपुल्लाभूतंगुडी मंदिर में भगवान राम को कोलावल्ली रामर के रूप में पूजा जाता है। इसके अलावा यह भी मान्यता है कि भगवान् राम ने गिद्धराज जटायु का अंतिम संस्कार भी यहीं पर किया था। रामायण में, राक्षस राजा रावण ने अपने वनवास के दौरान भगवान् राम की पत्नी सीता का अपहरण कर लिया था। गिद्ध राज जटायु ने रावण के साथ वीरता पूर्वक युद्ध किया, और स्वर्ग सिधारे थे। यहाँ पर सुबह 7:30 बजे से शाम 8 बजे तक दिनभर में विभिन्न समय पर छह दैनिक अनुष्ठान किए जाते हैं। मंदिर के स्थल पुराण का विस्तृत विवरण ब्रह्माण्ड पुराण और पद्म पुराण में मिलता है। त्रिप्रायर श्री रामास्वामी मंदिर: त्रिप्रायर श्री रामस्वामी मंदिर, केरल के त्रिशूर जिले के त्रिप्रायर नामक स्थान में स्थित है। यह एक हिंदू मंदिर है जो भगवान विष्णु के सातवें अवतार राम को समर्पित है। यहाँ पर भगवान् राम को चार भुजाओं के साथ दर्शाया गया है, जिनमें वे शंख, चक्र, धनुष और माला धारण किए हुए हैं। यह मंदिर कोझिकोड और कोडुंगल्लूर को जोड़ने वाली कैनोली नहर का हिस्सा है। मंदिर के देवता अरट्टुपुझा पूरम के पीठासीन देवता हैं। राम के साथ-साथ, मंदिर में शिव के दक्षिणामूर्ति, गणेश, शास्ता और कृष्ण के साथ-साथ हनुमान और चतन की पूजा भी की जाती है। सीता अम्मन मंदिर (श्रीलंका): सीता अम्मन मंदिर श्रीलंका के हकगला से सिर्फ़ 1 किमी दूर सीता अम्मन कोविल स्थित है। यह दुनिया में अपनी तरह का एकमात्र मंदिर है और इसे दक्षिण भारतीय वास्तुकला के अनुसार बनाया गया है। महाकाव्य रामायण के अनुसार, भगवान् राम ने माता सीता को राक्षस राज रावण से बचाने के लिए इसी स्थान पर छुपाया था। माना जाता है कि पास बहने वाली धारा में माता सीता स्नान किया करती थीं। इसके बगल में एक चट्टान भी है, जिसके बारे में माना जाता है कि यहाँ पर उन्होंने प्रार्थना की थी।
माना जाता है कि धारा के पार चट्टान पर गोलाकार गड्ढे रावण के हाथी के पैरों के निशान भी हैं। किंवदंती यह भी है कि सीता ने धारा में एक विशिष्ट स्थान को श्राप दिया था, जिसके परिणामस्वरूप इसका स्वाद खराब हो गया। हालांकि इसके बावजूद, पानी बहुत साफ है। इस मंदिर को कई नामों से जाना जाता है, जिसमें सीता अम्मन कोविल, सीता अम्मन मंदिर, हनुमान कोविल, हनुमान मंदिर और श्री भक्त हनुमा कोविल शामिल हैं।

संदर्भ
https://tinyurl.com/22rbtfta
https://tinyurl.com/4u3zzjn5
https://tinyurl.com/3ttshyky
https://tinyurl.com/hdtmn74a
https://tinyurl.com/ymczdfme
https://tinyurl.com/mrxt9ute


चित्र संदर्भ
1. थिरुपुल्ला भूतंगुडी मंदिर और जटायु वध के दृश्य को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
2. अयोध्या के राम मंदिर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. बनारस के घाट को संदर्भित करता एक चित्रण (wikipedia)
4. राम राजा मंदिर, ओरछा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. थिरुपुल्ला भूतंगुडी मंदिर को दर्शाता चित्रण (wikipedia)
6. त्रिप्रायर श्री रामास्वामी मंदिर को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
7. सीता अम्मन मंदिर (श्रीलंका) को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)

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