Post Viewership from Post Date to 29-Jul-2024 (31st Day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
2828 108 2936

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

लोमड़ी के आकार की व्हेल, आज इतनी विशालकाय, कैंसर प्रतिरोधी और बेशकीमती कैसे हो गई?

मेरठ

 28-06-2024 09:41 AM
डीएनए

कई विद्वान मानते हैं कि ‘पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत समुद्र से हुई थी।’ माना जाता है कि जीवन कीशुरुआत एकल-कोशिका वाले जीवों (Single-Celled Organisms) से हुई थी, लेकिन आधुनिक जीवों के भीतर इतनी कोशिकाएं होती हैं, कि इनकी गिनती करना मुश्किल पड़ जाता है। एक कोशिका से बहुकोशिकीय जीव बनने का यह सफर वाकई में रोमांचक है। इस सफर को समझने के लिए नीले समुद्र के सबसे विशालकाय जीव व्हेल (Whale) का अध्ययन करेंगे। साथ ही हम यह भी जानेंगे कि बहुकोशिकीय जीव होने के बावजूद व्हेल को कैंसर क्यों नहीं होता? इस पृथ्वी पर मौजूद सभी जीवित जीवों के आनुवंशिक मेकअप (Genetic Makeup) में परिवर्तन होता रहता है, और वे समय के साथ बदलते रहते हैं, या यूँ कहें कि विकसित होते रहते हैं। इस प्रक्रिया को जीनोमिक्स (Genomics) कहा जाता है।
ये परिवर्तन आनुवंशिक उत्परिवर्तन (Genetic Mutation) के कारण होते हैं, जो जीनोम में भिन्नताएँ पैदा करते हैं। इन भिन्नताओं के कारण परिवर्तित जैविक कार्य या पहले के बजाय अलग शारीरिक लक्षण वाले जीव बनते हैं। एक प्रजाति कई पीढ़ियों का समय लेकर अलग-अलग कार्य करने या अलग-अलग शारीरिक विशेषताएं विकसित करने के लिए विकसित हो सकती है, या यहाँ तक कि वह एक अलग प्रजाति में भी विकसित हो सकती है। उदाहरण के तौर पर आपके लिए यकीन करना मुश्किल होगा कि दरियाई घोड़े और व्हेल सबसे करीबी जीवित रिश्तेदार हैं, लेकिन वे व्हेल के पूर्वज नहीं हैं।
जलीय जीव होने के बावजूद दरियाई घोड़े और व्हेल दोनों ने ही अपनी विशेषताओं को स्वतंत्र रूप से विकसित किया। हम यह इसलिए जानते हैं क्योंकि दरियाई घोड़ों के प्राचीन रिश्तेदार, जिन्हें एंथ्राकोथेरेस (Anthracotheres) कहा जाता है, इतने बड़े या जलीय जीव नहीं थे। वहीं व्हेल के भी शुरुआती रिश्तेदार (जैसे कि पाकीसेटस (Pakicetus)), भी बड़े या जलीय जीव नहीं थे। दरियाई घोड़े या हिप्पो संभवतः लगभग 15 मिलियन वर्ष पहले एंथ्राकोथेरेस (Anthracotheres) से विकसित हुए थे, जबकि पहली व्हेल 50 मिलियन वर्ष पहले दिखाई दी थीं। दोनों समूह मूल रूप से भूमि पर रहने वाले जानवरों से ही विकसित हुए हैं।
पाकीसेकस जैसी प्रारंभिक व्हेल अपनी लंबी खोपड़ी और मांस खाने के लिए बड़े दांतों के कारण भूमि पर रहने वाले सामान्य जानवरों की तरह ही दिखती थी। वे बाहर से भी आधुनिक व्हेल से बहुत अधिक मिलती जुलती नहीं थी। हालांकि, उनकी खोपड़ी, विशेष रूप से हड्डी की दीवार से घिरा आंतरिक कान का क्षेत्र, आधुनिक व्हेल के समान ही था।
एम्बुलोसेटस (Ambulocetus) नामक एक अन्य प्रारंभिक व्हेल में अधिक जलीय विशेषताएं थीं। इसकी हड्डियों में ऑक्सीजन आइसोटोप (Oxygen Isotopes) मौजूद थे, जिससे पता चलता है कि यह खारा पानी और मीठा पानी दोनों पीती थी। बाद में कुचिसेटस (Kutchicetus) जैसी व्हेलों में खारे पानी में ऑक्सीजन आइसोटोप का स्तर उच्च दिखने लगा, जिसके बाद वे निकटवर्ती समुद्री आवासों में रह सकती थी और खारा पानी पी सकती थी। समय के साथ, व्हेल के नथुने, थूथन के साथ पीछे चले गए, अंततः आधुनिक व्हेल में सिर के ऊपर ब्लोहोल्स (blowholes) बन गए। जब व्हेल ने अपने पूरे शरीर को लहर जैसी गति में हिलाकर तैरना शुरू किया, तो उनके कंकाल भी बदल गए। इन परिवर्तनों ने उनके अंगों को पैडलिंग (Paddling) के बजाय स्टीयरिंग (Steering) के लिए अधिक उपयोगी बना दिया। एक नए अध्ययन से पता चलता है कि अटलांटिक महासागर में ब्लू व्हेल में हाइब्रिड डीएनए (Hybrid DNA) की संभावित मात्रा आश्चर्यजनक रूप से अधिक है। इससे पता चलता है कि हाइब्रिड व्हेल पहले की तुलना में अधिक सफलतापूर्वक प्रजनन कर सकती है। ब्लू व्हेल (Blue Whale) को दुनिया में सबसे बड़ा जानवर माना जाता है, जिनकी लंबाई 110 फीट (34 मीटर) तक होती है, जो एक स्कूल बस की लंबाई से लगभग तीन गुना है।
20वीं सदी की शुरुआत में, वाणिज्यिक व्हेलिंग (Whaling) के बाद ब्लू व्हेल की संख्या में भारी कमी देखी गई। अब उन्हें अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (International Union For Conservation Of Nature) द्वारा लुप्तप्राय (Endangered) के रूप में सूचीबद्ध कर दिया गया है। हालाँकि, आज दुनिया भर में उनकी संख्या में सुधार होने लगा है। शोधकर्ताओं ने हाल ही में अलग-अलग व्हेल से डीएनए के टुकड़ों को जोड़कर इस आबादी के लिए "डी नोवो (De Novo)" जीनोम बनाया। उन्होंने इस नए आनुवंशिक मानचित्र (Genetic Map) का उपयोग 31 व्हेलों के पूर्ण या आंशिक जीनोम (Genome) का विश्लेषण करने के लिए किया। शोधकर्ताओं ने पाया कि प्रत्येक व्हेल के जीनोम में थोड़ी बहुत मात्रा में फिन व्हेल (बैलेनोप्टेरा फिसालस) का डीएनए था। समूह में औसतन, लगभग 3.5% डीएनए फिन व्हेल से आया था।
आकार में बड़े अंतर के बावजूद वैज्ञानिक, ब्लू व्हेल और फिन व्हेल, संकर (Hybrid) पैदा कर सकते हैं, जिन्हें "फ्लू व्हेल (Flue Whale)" के रूप में जाना जाता है। ये संकर बड़े फिन व्हेल जैसे दिखते हैं, लेकिन उनमें ब्लू व्हेल की भी विशेषताएं होती हैं। शुरू में, इन संकरों को बांझ माना जाता था, लेकिन 2018 के एक अध्ययन से पता चला कि कुछ फ्लूव्हेल, ब्लू व्हेल के साथ प्रजनन कर सकते हैं। इससे मुख्य रूप से ब्लू व्हेल डीएनए और कुछ फिन व्हेल डीएनए के साथ "बैक क्रॉस्ड (Backcrossed)" संतान पैदा हुई है, जिसे इंट्रोग्रेशन (Introgression) कहा जाता है। हाल के शोध में ब्लू व्हेल और फिन व्हेल हाइब्रिड के बीच अपेक्षा से अधिक इंट्रोग्रेशन पाया गया, हालांकि फिन व्हेल को ब्लू व्हेल का डीएनए विरासत में नहीं मिला है। यह इंट्रोग्रेशन केवल उत्तरी अटलांटिक में होता है।
आपको जानकर हैरानी होगी कि आज से लगभग पाँच से दस मिलियन साल पहले व्हेल का आकार बहुत छोटा (एक भेड़िये के आकार के बराबर) हुआ करता था। समुद्र के भरपूर पोषक तत्वों और पानी की उछाल ने उन्हें इतना बड़ा बना दिए, हालांकि उनके शरीर के इस अकल्पनीय विकास के आनुवंशिक कारण स्पष्ट नहीं थे। लेकिन ब्राजील की एक जीवविज्ञानी मारियाना नेरी (Mariana Nery) और उनकी टीम ने इन आनुवंशिक परिवर्तनों की जांच की। साइंटिफिक रिपोर्ट्स (Scientific Reports) में प्रकाशित उनके अध्ययन में पाया गया कि ग्रोथ हार्मोन (Growth Hormone) और इंसुलिन मार्गों (Insulin Pathways) में शामिल कुछ जीन, व्हेल की विशालकायता में योगदान करते हैं।
व्हेल की एक और खूबी उन्हें सभी पृथ्वी पर मौजूद सभी जीवों में सबसे विशिष्ट बना देती है। आपको जानकर हैरानी होगी कि अपने विशालकाय आकार के बावजूद, व्हेल में कैंसर होने का जोखिम बहुत कम होता है। ऐसा संभवतः उन्हीं जीन के कारण होता है जो उनके आकार को बड़ा बनाते हैं। इन जीनों का अध्ययन करने से मनुष्यों के लिए कैंसर अनुसंधान में क्रांति आ सकती है। व्हेल में कैंसर होने की दर बहुत कम होती है, जबकि कुत्तों, बिल्लियों, लोमड़ियों और तेंदुओं में कैंसर होना आम बात है। कैंसर के कारण हर साल लगभग 1 करोड लोगों की मौत हो जाती है। लेकिन हैरानी की बात है कि वैज्ञानिकों के अनुसार “किसी जानवर में जितनी अधिक कोशिकाएँ होती हैं, उसके कैंसरग्रस्त होने की संभावना भी उतनी ही अधिक होती है।” इसलिए, बड़ी संख्या में कोशिकाओं वाली प्रजातियों में कैंसर का जोखिम भी अधिक होना चाहिए, लेकिन व्हेल के मामले में यह नियम काम ही नहीं करता है।
उदाहरण के लिए, व्हेल में इंसानों की तुलना में अधिक कोशिकाएँ होती हैं, फिर भी वे मनुष्यों की तुलना में अधिक समय तक जीवित रहती हैं। बोहेड व्हेल 200 साल तक जीवित रह सकती है, और हाथी लगभग 70 साल तक जीवित रहते हैं, लेकिन दोनों में ही मनुष्यों की तुलना में कैंसर की दर बहुत कम होती है। इस संदर्भ में वैज्ञानिकों ने पाया कि लंबे समय तक जीवित रहने वाली प्रजातियों में अल्पकालिक प्रजातियों की तुलना में उत्परिवर्तन (Mutations) अधिक धीरे-धीरे जमा होते हैं। उदाहरण के लिए, मनुष्यों में प्रति वर्ष लगभग 47 उत्परिवर्तन होते हैं और वे औसतन 83.6 वर्ष जीते हैं, जबकि चूहों में प्रति वर्ष लगभग 800 उत्परिवर्तन होते हैं और वे लगभग 4 वर्ष जीते हैं। हालाँकि, यह स्पष्ट नहीं है कि वास्तव में उत्परिवर्तन ही उम्र बढ़ने का कारण बनता है।
कैंसर के प्रति विरोधी होने सहित अन्य खूबियाँ कभी-कभी इस शानदार जीव को परेशानी में भी डाल सकती हैं। उदाहरण के तौर पर व्हेल के पाचन तंत्र में एम्बरग्रीस स्पर्म (Ambergris Sperm) नामक एक पदार्थ का निर्माण होता है। इसका उत्पादन व्हेल की आंतों को स्क्विड की चोंच जैसी नुकीली वस्तुओं से बचाने के लिए एक स्राव के रूप में होता है, जो उनके आहार का हिस्सा हैं।
एम्बरग्रीस को व्हेल द्वारा मल के माध्यम से समुद्र में निष्कासित कर दिया जाता है। कुछ लोग इसे व्हेल की उल्टी भी कहते हैं। यह पानी की सतह पर तैर सकता है या समुद्र तटों पर बह सकता है। लेकिन समय के साथ, तत्वों और सूर्य के प्रकाश के संपर्क में आने से इस पदार्थ में रासायनिक परिवर्तन होते हैं, जिससे इसकी गंध बढ़ती है और इसके साथ ही इसका मूल्य भी बढ़ जाता है। एम्बरग्रीस का उपयोग सदियों से इत्र उद्योग में एक फिक्सेटिव (Fixative) के रूप में किया जाता रहा है, जो अन्य सुगंधों की गंध को स्थिर और लंबे समय तक बनाए रखने में मदद करता है। इसकी अनूठी सुगंध अन्य सामग्रियों के साथ अच्छी तरह से मिश्रित हो जाती है, जिससे सुगंध बढ़ती है और यह त्वचा पर लंबे समय तक टिकी रहती है। हालाँकि, नैतिक चिंताओं के कारण इसका उपयोग करना आज विवादास्पद हो गया है। स्पर्म व्हेल एक संरक्षित प्रजाति है, और एम्बरग्रीस एक ऐसा पदार्थ है जिसे वे प्राकृतिक रूप से बाहर निकालते हैं। एम्बरग्रीस की मांग की आपूर्ति करने के लिए कई इत्र कंपनियां सिंथेटिक विकल्प (synthetic substitutes) या वैकल्पिक प्राकृतिक सामग्री का उपयोग भी करने लगी हैं। कुछ देशों में, एम्बरग्रीस के व्यापार और बिक्री को विनियमित किया जाता है या प्रतिबंधित भी किया गया है। हालांकि न्यूजीलैंड जैसे अन्य देशों में, समुद्र तटों पर पाए जाने वाले एम्बरग्रीस का व्यापार करना अभी भी कानूनी तौर पर मान्य है।

संदर्भ

https://tinyurl.com/ytrtx6sp
https://tinyurl.com/ytrtx6sp
https://tinyurl.com/y5ppkj8m
https://tinyurl.com/ynmsj65r
https://tinyurl.com/y7mrbh3z
https://tinyurl.com/mr43s67m

चित्र संदर्भ

1. लोमड़ी और व्हेल को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
2. डीएनए की संरचना को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. दरियाई घोड़ों के प्राचीन रिश्तेदार, जिन्हें एंथ्राकोथेरेस कहा जाता है को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. व्हेल बड़े पैमाने पर स्थलीय स्तनधारी क्लेड लॉरासियाथेरिया का हिस्सा हैं । को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. स्पर्म व्हेल को दर्शाता चित्रण (Animalia)
6. एम्बरग्रीस स्पर्म को दर्शाता चित्रण (Animalia)

***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • मेरठ की ऐतिहासिक गंगा नहर प्रणाली, शहर को रौशन और पोषित कर रही है!
    नदियाँ

     18-09-2024 09:18 AM


  • क्यों होती हैं एक ही पौधे में विविध रंगों या पैटर्नों की पत्तियां ?
    कोशिका के आधार पर

     17-09-2024 09:16 AM


  • आइए जानें, स्थलीय ग्रहों एवं इनके और हमारी पृथ्वी के बीच की समानताओं के बारे में
    पर्वत, चोटी व पठार

     16-09-2024 09:34 AM


  • आइए, जानें महासागरों से जुड़े कुछ सबसे बड़े रहस्यों को
    समुद्र

     15-09-2024 09:27 AM


  • हिंदी दिवस विशेष: प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण पर आधारित, ज्ञानी.ए आई है, अत्यंत उपयुक्त
    संचार एवं संचार यन्त्र

     14-09-2024 09:21 AM


  • एस आई जैसी मानक प्रणाली के बिना, मेरठ की दुकानों के तराज़ू, किसी काम के नहीं रहते!
    सिद्धान्त I-अवधारणा माप उपकरण (कागज/घड़ी)

     13-09-2024 09:10 AM


  • वर्षामापी से होता है, मेरठ में होने वाली, 795 मिलीमीटर वार्षिक वर्षा का मापन
    जलवायु व ऋतु

     12-09-2024 09:25 AM


  • परफ़्यूमों में इस्तेमाल होने वाले हानिकारक रसायन डाल सकते हैं मानव शरीर पर दुष्प्रभाव
    गंध- ख़ुशबू व इत्र

     11-09-2024 09:17 AM


  • मध्यकालीन युग से लेकर आधुनिक युग तक, कैसा रहा भूमि पर फ़सल उगाने का सफ़र ?
    मध्यकाल 1450 ईस्वी से 1780 ईस्वी तक

     10-09-2024 09:32 AM


  • पेट्रोलियम के महत्वपूर्ण स्रोत हैं नमक के गुंबद
    खनिज

     09-09-2024 09:43 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id