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पुदुच्चेरी की सड़के व बस्तियां आज भी गाती है, फ्रांसीसी अनुभूति के गीत

मेरठ

 22-06-2024 10:05 AM
उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक

आइए, आज हम तमिलनाडु राज्य के पुदुच्चेरी(प्राचीन पॉन्डिचेरी) शहर के ऐतिहासिक फ्रांसीसी संबंध पर नज़र डालेंगे। 18वीं शताब्दी तक, पुदुच्चेरी जो कि मछुआरों का एक छोटा सा गांव था, एक भव्य बंदरगाह शहर में बदल गया था। फ्रांसीसियों (The French) ने पहली बार १६७० में पुदुच्चेरी में कदम रखा था। १६७४ में, फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया (French East India) कंपनी ने यहां एक व्यापारिक केंद्र स्थापित किया। आज भी, इस शहर में कला, संस्कृति और वास्तुकला में फ्रांसीसी प्रभाव बरकरार है। इसके अतिरिक्त, पुदुच्चेरी में ऑरोविले नामक एक कॉलोनी है, जिसकी स्थापना १९६८ में फ्रांस की मीरा अल्फासा(Mirra Alfassa) ने की थी। ऑरोविल (Auroville) का उद्देश्य विविधता में मानवीय एकता को संयोजित करना है। वह श्री अरबिंदो की अनुयायी थीं और बाद में भारतीय नागरिक बन गईं। पुदुच्चेरी अपनी वास्तुकला और संस्कृति की अनूठी शैली के साथ, एक खूबसूरत जगह है। इस शहर को आधिकारिक तौर पर १९६४ में फ्रांसीसियों से आजादी मिली। लेकिन, आप आज भी यहां फ्रांसीसी संस्कृति के प्रभाव को देख सकते हैं। बोगनविलिया से घिरे फ्रांसीसी शैली के पुराने घर, चर्च, और कुछ नवनिर्मित फ्रांसीसी शैली की दुकानें और सुंदर कैफे(Cafe), पुदुच्चेरी को असाधारण बनाते हैं।
भारत में फ्रांसीसी उपनिवेशीकरण के आगमन के बाद पुदुच्चेरी को “पूर्व का फ्रांसीसी रिवेरा(the French Riviera of the East)” के रूप में अपना महत्व प्राप्त हुआ। पुदुच्चेरी के समृद्ध व्यापार ने फ्रांसीसियों को आकर्षित किया था। शहर में फ्रांसीसी अग्रणी फ्रेंकोइस मार्टिन(Francois Martin) द्वारा १६७४ में, एक फ्रांसीसी बस्ती की शिला रखी गई थी।
१६७४ में फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी ने पुदुच्चेरी में एक व्यापारिक केंद्र स्थापित किया, और यह चौकी अंततः भारत में प्रमुख फ्रांसीसी बस्ती बन गई। फ्रांसीसी गवर्नर मार्टिन (Governor Martin) ने शहर और उसके वाणिज्यिक संबंधों में उल्लेखनीय सुधार किए। साथ ही, उन्हें डच (Dutch) और अंग्रेजी सेना के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा। १६६८ और १६७४ के बीच, दक्षिण भारतीय तट पर पांच व्यापारिक चौकियां स्थापित की गईं। तब, शहर को एक नहर द्वारा फ्रेंच क्वार्टर (French Quarter) और भारतीय क्वार्टर में अलग किया गया था। फ्रांसीसियों ने १७२० में माहे, १७३१ में यनम और १७३८ में कराईकल पर कब्ज़ा कर लिया। फिर, अंग्रेजों ने शहर को फ्रांसीसियों से छीन लिया। लेकिन, १७६३ में पेरिस की संधि(Treaty of Paris) के बाद, इसे वापस फ्रांसीसियों को सौंप दिया। यह एंग्लो-फ्रांसीसी (Anglo-French ) युद्ध १८१४ तक जारी रहा। बाद में, १९५४ तक ब्रिटिश काल के दौरान भी, फ्रांस ने पुडुचेरी, माहे, यनम, कराईकल और चंद्रनगर की बस्तियों पर अपना नियंत्रण पाया। यह फ्रांसीसियों के अधीन १३८ वर्षों का शासनकाल था, जिन्होंने ३१ अक्टूबर १९५४ को सत्ता के वास्तविक हस्तांतरण के बाद भारतीय तटों को छोड़ दिया।
१८ अक्टूबर १९५४ को, पुदुच्चेरी नगरपालिका और कम्यून ऑफ़ पंचायत (Commune of Panchayat) में १७८ लोगों के आम चुनाव में, १७० लोग पुदुच्चेरी के भारत में विलय के पक्ष में थे। इस प्रकार, फ्रांसीसी शासन से, फ्रांसीसी भारतीय क्षेत्रों का भारतीय संघ में वास्तविक हस्तांतरण, १ नवंबर १९५४ को हुआ। तब, इसे पुदुच्चेरी के केंद्र शासित प्रदेश के रूप में स्थापित किया गया। आज पुदुच्चेरी के निवासी (मूल रूप से भारतीय और गैर-भारतीय) फ्रांसीसी नागरिक हैं। यहां की सड़कों ने अपने फ्रांसीसी नाम बरकरार रखे हैं; यहां के निवासी फ्रांसीसी भाषा बोलते हैं; फ्रांसीसी भोजन परोसने वाले रेस्तरां और कैफे भी यहां हैं तथा फ्रांसीसी वास्तुकला शैलियों के विला भी यहां लोकप्रिय हैं। पुदुच्चेरी शहर की योजना फ्रांसीसी ग्रिड संरचना (French Grid Structure) के अनुसार बनाई गई है, और इसमें लंबवत सड़कें हैं। शहर के फ्रेंच क्वार्टर में आप विरासत की सैर पर भी जा सकते है।
एक ओर, ऑरोविल , यहां की एक नगरी है, जिसकी स्थापना श्री अरबिंदो की आध्यात्मिक सहयोगी मीरा अल्फासा ने की थी। यह आश्रम बिना किसी पक्षपात के सभी क्षेत्रों के लोगों को एक साथ लाने के इरादे से बनाया गया था। ऑरोविले के केंद्र में विशाल सुनहरे गुंबद की संरचना है। यह दरअसल, ध्यान का स्थान – मातृमंदिर है। इस आश्रम का निर्माण करते समय १२४ देशों की मिट्टी लाई गई थी, और उसे मिलाकर एक कलश में रखा गया था, जो अब ध्यान केंद्र में रखा गया है।
मीरा अल्फासा (१८७८ -१९७३) का जन्म, फ्रांस में हुआ था। उनकी मां मिस्र (Egypt) की नागरिक व उनके पिता तुर्की (Turkey) के नागरिक थे। वह असाधारण रूप से प्रतिभाशाली थी। वह एक कुशल चित्रकार और संगीतकार भी बन गई, और मीरा को बचपन से ही कई आंतरिक अनुभव हुए। बीस वर्ष की आयु में उन्होंने तंत्र-मंत्र का अध्ययन किया। साथ ही, उन्होंने आध्यात्मिक साधकों के कई अलग-अलग समूहों के साथ काम किया। श्री अरबिंदो ने उन्हें विकासवादी व रचनात्मक शक्ति के साथ पहचाना था।
साथ ही, उन्हें भारत में पारंपरिक रूप से ‘सर्वोच्च मां’ के रूप में जाना जाता है। मीरा जी ने ही, नवंबर १९२६ से श्री अरबिंदो आश्रम में उनके अनुयायियों को संगठित किया। बाद में, १९५० में श्री अरबिंदो के निधन के बाद, १९५२ में उनकी इच्छा को पूरा करने के लिए, मीरा जी ने ‘श्री अरबिंदो अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा केंद्र’ की स्थापना की। जबकि, १९६८ में उन्होंने श्री अरबिंदो के व्यक्तिगत और सामूहिक जीवन के दृष्टिकोण को लागू करने के व्यावहारिक प्रयासों के लिए, एक व्यापक क्षेत्र के रूप में ऑरोविल की अंतर्राष्ट्रीय टाउनशिप परियोजना की स्थापना की। दूसरी ओर, पुदुच्चेरी के गौबर्ट एवेन्यू (Gaubert Avenue) में स्थित, फ्रांसीसी युद्ध स्मारक उन फ्रांसीसी भारतीयों को समर्पित है, जो प्रथम विश्व युद्ध के दौरान देश के लिए शहीद हो गए। कई पर्यटक इस स्थल पर आते हैं। हर १४ जुलाई को, फ्रांसीसी राष्ट्रीय दिवस के अवसर पर, इस स्मारक को रोशनी से सजाया जाता है। और, स्थानीय लोग व पर्यटक उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए, यहां इकट्ठा होते हैं।

संदर्भ
https://tinyurl.com/969rd9v6
https://tinyurl.com/2u7c33j2
https://tinyurl.com/3bvjava2
https://tinyurl.com/24p7zmb8

चित्र संदर्भ
1. 1850 में पांडिचेरी के गवर्नर के महल के दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. 18वीं सदी के अंत में पांडिचेरी के दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. 1782 में सुफ़्रेन की सहयोगी हैदर अली से मुलाक़ात को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. पांडिचेरी के विहंगम दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. पांडिचेरी समुद्र तट के पास गांधी जी की प्रतिमा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)

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