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श्री वेंकटेश्वर को समर्पित दिव्य प्रसादम,श्रीवारी या तिरुपति लड्डू की सदियों पुरानी परंपरा

मेरठ

 13-06-2024 09:44 AM
विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

‘प्रसाद’, जिसे अक्सर प्रसादम के रूप में भी जाना जाता है, हिंदू धर्म और अन्य धार्मिक परंपराओं में एक पवित्र ईश्‍वरीय भेंट मानी जाती है। इसे भक्तों के लिए देवता का दिव्य उपहार या आशीर्वाद माना जाता है। प्रसाद विभिन्न रूपों में हो सकता है, जिसमें भोजन, फूल, फल, मिठाई या अन्य वस्तुएं शामिल हैं, जो विभिन्‍न धार्मिक संदर्भ और रीति-रिवाज़ों पर निर्भर करती हैं। आज हम श्री वेंकटेश्वर मंदिर के दिव्य प्रसादम, जिसे ‘श्रीवारी लड्डू या तिरुपति लड्डू’ के नाम से जाना जाता है, के बारे में जानेंगे। तिरुपति लड्डू का इतिहास: श्री वेंकटेश्वर मंदिर, जिसे तिरुपति बालाजी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, भगवान विष्णु के अवतार, भगवान वेंकटेश्वर को समर्पित है। यह मंदिर आंध्र प्रदेश राज्य के तिरुपति ज़िले में स्थित है। प्रसाद के रूप में, तिरुपति लड्डू की परंपरा सदियों पुरानी है, जो पौराणिक कथाओं और धार्मिक महत्व से भरी हुई है। तिरुमाला वेंकटेश्वर मंदिर में वेंकटेश्वर को लड्डू चढ़ाने की प्रथा 2 अगस्त 1715 को शुरू हुई। यह लड्डू तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर में भगवान श्री वेंकटेश्वर को नैवेद्यम के रूप में चढ़ाया जाता है।
दर्शन के बाद भक्तों को यह लड्डू प्रसाद के रूप में दिया जाता है। तिरुपति लड्डू का इतिहास बहुत ही रोचक है और यह मंदिर सदियों से भक्तों के लिए आस्था का केंद्र रहा है। इस प्रसाद की परंपरा और निर्माण की प्रक्रिया में समय के साथ कई बदलाव आए हैं, लेकिन इसकी धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता अब भी बरकरार है। तिरुमला मंदिर में प्रसादम की परंपरा का एक लंबा और समृद्ध इतिहास है, जो पल्लवों के समय से शुरू होकर विजयनगर साम्राज्य के संरक्षण के तहत और भी बढ़ी। शिलालेखों से पता चलता है कि विभिन्न प्रकार के प्रसादम भगवान वेंकटेश्वर को अर्पित किए जाते थे और तीर्थयात्रियों को मुफ्त में वितरित किए जाते थे। प्रसादम की यह परंपरा आज भी तिरुमला मंदिर में जारी है और भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक प्रतीक है।
तिरुपति लड्डू के प्रकार और उनकी पाक विधि
तिरुपति लड्डू कई प्रकार के होते हैं, जिनमें से मुख्य तीन प्रकार के लड्डू निम्नवत दिए गए हैं:
अस्थानम लड्डू: यह विशेष अवसरों पर तैयार किए जाते हैं और इनमें केसर, काजू और बादाम का उपयोग होता है।
कल्याणोत्सवम लड्डू: ये लड्डू कल्याणोत्सवम के भक्तों को दिए जाते हैं और इनका आकार अन्य लड्डुओं की तुलना में बड़ा होता है।
प्रोक्थम लड्डू: ये लड्डू आमतौर पर तीर्थयात्रियों के बीच वितरित किए जाते हैं और इन्हें बड़े पैमाने पर तैयार किया जाता है।
“डिट्टम” वह सूची है जिसमें तिरुपति लड्डू बनाने के लिए उपयोग की जाने वाली सामग्री और उनकी मात्रा का विवरण होता है। समय के साथ, भक्तों के बीच लड्डू की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए डिट्टम में छह बार बदलाव किए गए हैं। वर्तमान में, तिरुपति लड्डू बनाने के लिए जिन सामग्रियों का उपयोग किया जाता है, वे इस प्रकार हैं:
बेसन: 10 टन प्रतिदिन
काजू: 700 किलोग्राम प्रतिदिन
इलायची: 150 किलोग्राम प्रतिदिन
घी: 300 से 500 लीटर प्रतिदिन
चीनी: 10 टन प्रतिदिन
शक्कर की मिठाई: 500 किलोग्राम प्रतिदिन
किशमिश: 540 किलोग्राम प्रतिदिन
तिरुपति लड्डू की तैयारी: तिरुपति लड्डू को मंदिर की रसोई, जिसे 'पोटु' कहा जाता है, में तैयार किया जाता है। इस रसोई का संचालन तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) द्वारा किया जाता है। लड्डू की तैयारी में उच्च गुणवत्ता वाली सामग्री का उपयोग किया जाता है ताकि इसका स्वाद और महक अद्वितीय हो। तिरुपति लड्डू को तैयार करने की रसोई "लड्डू पोटु", मंदिर के ‘सम्पंगी प्रदक्षिणम’ के अंदर स्थित होती है। पोटु में लड्डू की सामग्री लाने और तैयार लड्डू को विक्रय काउंटर तक पहुंचाने के लिए तीन कन्वेयर बेल्ट (conveyor belt) लगाए गए हैं। इन कन्वेयर बेल्ट्स के माध्यम से लड्डू की सामग्री और तैयार लड्डू को एक स्थान से दूसरे स्थान तक आसानी से पहुंचाया जा सकता है।
कन्वेयर बेल्ट्स की व्यवस्था
पहली कन्वेयर बेल्ट (2007): यह केवल लड्डू को स्थानांतरित कर सकती है।
दूसरी कन्वेयर बेल्ट (2010): यह लड्डू और बूंदी दोनों को स्थानांतरित कर सकती है।
तीसरी कन्वेयर बेल्ट (2014): यह बैकअप के रूप में काम करती है ताकि अगर कोई बेल्ट खराब हो जाए तो उत्पादन में कोई बाधा न आए।
रसोई में परिवर्तन: पहले लड्डूओं को पकाने के लिए केवल लकड़ी का उपयोग किया जाता था, जिसे 1984 में एलपीजी द्वारा बदल दिया गया था। इससे लड्डू बनाने की प्रक्रिया में तेज़ी आई और इस प्रक्रिया को अधिक सुरक्षित और प्रभावी बनाया गया।
उत्पादन क्षमता तिरुमला तिरुपति देवस्थानम् (टीटीडी) में औसतन प्रतिदिन 2.8 लाख लड्डू तैयार किए जाते हैं। वर्तमान में, पोटु की क्षमता प्रतिदिन 8,00,000 लड्डू बनाने की है। इस प्रकार की विशाल उत्पादन क्षमता सुनिश्चित करती है कि सभी भक्तों को लड्डू प्रसाद के रूप में प्राप्त हो सके।
तिरुपति लड्डू के लिए जीआई टैग (GI Tag): मार्च 2008 में, तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी (TTD)) ने प्रसिद्ध तिरुपति लड्डू के लिए भौगोलिक संकेतक (जीआई) टैग के लिए चेन्नई में जीआई पंजीकरण कार्यालय में आवेदन किया। जीआई टैग एक ऐसा टैग है जो किसी विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र के उत्पाद को उसकी गुणवत्ता, प्रतिष्ठा और अन्य विशिष्टताओं के आधार पर दिया जाता है। टीटीडी ने अपनी जीआई आवेदन में लड्डू की विशेषताओं का उल्लेख किया और कहा कि इसके उत्पादन के लिए उच्चतम गुणवत्ता वाली कच्ची सामग्री का उपयोग किया जाता है और प्रत्येक चरण में अद्वितीय कौशल की आवश्यकता होती है। तिरुपति लड्डू की धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता: तिरुपति लड्डू न केवल एक मिठाई है, बल्कि यह एक धार्मिक और सांस्कृतिक प्रतीक भी है। यह प्रसादम भक्तों के लिए भगवान वेंकटेश्वर का आशीर्वाद माना जाता है। इसे प्राप्त करना एक पवित्र अनुभव माना जाता है और इसे मंदिर में आने वाले सभी भक्तों को वितरित किया जाता है। लड्डू पोटु में इसकी तैयारी और वितरण की जटिल प्रक्रिया इस प्रसाद की विशेषता को और अधिक महत्वपूर्ण बनाती है। आधुनिक तकनीक और परंपरागत विधियों का सम्मिश्रण तिरुपति लड्डू को एक अद्वितीय और पवित्र प्रसाद बनाता है, जो हर भक्त के दिल में आस्था और श्रद्धा को जीवित रखता है।

संदर्भ 
https://tinyurl.com/yc8exr6z
https://tinyurl.com/35swt37m
https://tinyurl.com/238peut8
https://tinyurl.com/4nwvm2hx

चित्र संदर्भ
1. तिरुपति मंदिर और लड्डू को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. तिरुपति लड्डू को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. स्टाम्प में तिरुपति लड्डू को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)

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