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क्या प्रेस को जनता के हित के लिए कार्य करना चाहिए या सत्ता के लिए?

मेरठ

 03-05-2024 09:50 AM
सिद्धान्त 2 व्यक्ति की पहचान

फ़्रान्स की क्रान्ति में सेनापति रहे नेपोलियन बोनापार्ट ने कहा था कि चार विरोधी अख़बारों की मारक क्षमता के आगे हज़ारों बंदूकों की ताकत बेकार हो जाती है। तब से लेकर आज तक पत्रकारिता की ताकत बरकरार है, हालांकि आज इसके मायने बदल गये हैं। आज यह एक अहम मुद्दा बन गया है कि क्या प्रेस को नागरिकों के हित के लिए कार्य करना चाहिए या सरकार के लिए? वहीं ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस’ प्रत्येक वर्ष 3 मई को मनाया जाता है। तो आइए आज विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर जानते हैं कि आधुनिक युग में भारत में सत्ता और जनता के बीच प्रेस की क्या भूमिका है। और इसके साथ रेडियो रवांडा के उदाहरण से समझें कि यदि प्रेस नागरिकों हित को मद्देनज़र रखते हुए कार्य न करे तो इसके क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं। किसी भी देश में मीडिया और सरकार के बीच संबंधों का जनता तक पहुंचने वाली जानकारी पर गहरा प्रभाव पड़ता है। ऐतिहासिक रूप से, दुनिया भर में सरकारों द्वारा नागरिकों और हितधारकों के साथ संवाद करने के लिए मीडिया पर भरोसा किया जाता है। अधिकांश देशों में सरकारों द्वारा यह सुनिश्चित किया जाता है कि मीडिया द्वारा जनता को जो जानकारी प्रदान की जाए वह उनके दिन-प्रतिदिन के उनके स्वास्थ्य, सुरक्षा और राजनीतिक विचारों को लेकर निर्णयों को आकार दे, जैसे कि क्या खरीदना है, कहाँ रहना है, किस स्कूल में जाना है, जैसे मुद्दे। बदले में, एक मजबूत मीडिया इस जानकारी का मूल्यांकन करता है, विश्लेषण करता है और प्रेरक चर्चाएँ शुरू करता है जिससे यह सुनिश्चित होता है कि किसी राष्ट्र की पहचान हमेशा सकारात्मक और व्यावहारिक तरीके से विकसित हो, और कभी भी प्रभावित न हो। इसके साथ ही मीडिया के द्वारा वस्तुनिष्ठ ज्ञान और सटीक जानकारी के प्रसार के माध्यम से बाजार में विश्वास उत्पन्न करके अर्थव्यवस्था को बढ़ने में भी सहायता की जाती है, जो निवेश निर्णयों के लिए एक महत्वपूर्ण आधार होता है। वास्तव में किसी भी देश और राष्ट्र के विकास के लिए एक मज़बूत और ज़िम्मेदार मीडिया का होना अत्यंत आवश्यक है। लेकिन आज पत्रकारिता के इस क्षेत्र को उद्योग में परिवर्तित कर दिया गया है जहां तकनीक के विकास के साथ-साथ डिजिटल परिवर्तन देखा जा रहा है। इस परिवर्तन के साथ-साथ नई तकनीक और रुझानों के माध्यम से पारंपरिक व्यवसाय मॉडल को भी निरंतर चुनौती मिल रही है। आज मीडिया के द्वारा 'उपभोक्ता किस सामग्री का उपभोग करें और कैसे करें', इसके बारे में अपनी राय बनाई जाती है। इसके अलावा फ़र्ज़ी ख़बरों को प्रसारित करके मीडिया द्वारा लोगों के विश्वास को एक झटके में तोड़ दिया जाता है। इसके परिणामस्वरूप हम जो देख रहे हैं वह गुणवत्ता के स्थान पर मात्रा की ओर बदलाव है, जिसमें मीडिया की भूमिका लोकतंत्र के प्रहरी से दूर से कथा-संचालित दृष्टिकोण की ओर बदल रही है।
क्या आप जानते हैं कि हमारे देश भारत का, जहां प्रेस और न्यायपालिका पूर्णतया स्वतंत्र हैं, मीडिया की स्वतंत्रता को मापने वाले वैश्विक सूचकांकों पर प्रदर्शन दिन-ब-दिन गिरता जा रहा है। 2019 में, ‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ (Reporters Without Borders) द्वारा संकलित 'विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक' (World Press Freedom index) में हमारे देश की मीडिया को पिछले वर्षों की तुलना में दो अंक कम प्राप्त हुए और यह दो अंक नीचे गिरकर 180 में से 140 पर आ गया। अब प्रश्न उठता है कि भारत में, जहां संविधान द्वारा प्रेस की स्वतंत्रता की गारंटी देने वाले कानून निश्चित किए गए हैं, अपनी गिरती रैंक के साथ मीडिया अपना कार्य उचित प्रकार से कर रहा है अथवा नहीं? मीडिया द्वारा आधिकारिक आदेशों का पालन करने के लिए औपचारिक रूप से सेंसर किए बिना सूचनाएं प्रसारित की जाती हैं। मीडिया द्वारा सरकार और उसकी नीतियों के बारे में कठिन सवाल पूछना बंद कर दिया है। मीडिया का एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो मुख्य रूप से अपने व्यावसायिक हितों को लेकर चिंतित है। केंद्र और राज्य स्तर पर सरकारों द्वारा मीडिया पर प्रभाव के रूप में आधिकारिक विज्ञापन का उपयोग करना आम बात है। इसके साथ ही मीडिया कर्मियों को इस बात का भी डर होता है कि यदि उनके द्वारा सत्ता के विरुद्ध कार्य किया जाए तो वे उनके प्रतिशोध का निशाना बन सकते हैं। जबकि भारत में मीडिया को अतीत में हमेशा राजनेताओं से संघर्ष करना पड़ा है, 1975-1977 के आपातकाल को छोड़कर, कठिन परिस्थितियों में मीडिया द्वारा केवल देश के न्यायाधीशों पर ही भरोसा किया गया है।
किसी भी देश में मीडिया के सत्ता के अधीन होने के क्या परिणाम हो सकते हैं यह 1994 के रवांडा नरसंहार (Rwanda Genocide) में मीडिया की भूमिका से भली भांति समझा जा सकता है। रवांडा नरसंहार में मीडिया की भूमिका अत्यधिक प्रभावशाली और विनाशकारी थी। रवांडा के रेडियो स्टेशनों, विशेष रूप से रेडियो टेलीविज़न लिब्रे डेस मिल कोलिन्स (Radio Télévision Libre des Mille Collines (RTLM) ने जातीय तनाव को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई और तुत्सी अल्पसंख्यकों के खिलाफ घृणा प्रचार फैलाया। प्रसारण के माध्यम से, मीडिया के खिलाफ हिंसा को प्रोत्साहित किया और तुत्सियों को निशाना बनाने के निर्देश दिए। इस प्रचार ने हुतु चरमपंथियों को सामूहिक हत्याएं करने के लिए उकसाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे 1994 के नरसंहार के दौरान हिंसा में तेज़ी से वृद्धि हुई। एक तरफ जहां स्थानीय मीडिया ने हत्याओं को बढ़ावा दिया, वहीं दूसरी तरफ अंतर्राष्ट्रीय मीडिया ने जो कुछ भी हो रहा था उसे या तो नज़रअंदाज़ कर दिया या पूरी तरह से ग़लत समझा। स्थानीय रेडियो और प्रिंट मीडिया को नफरत के साधन के रूप में इस्तेमाल किया गया, जिससे पड़ोसियों को एक-दूसरे के ख़िलाफ़ होने के लिए प्रोत्साहित किया गया।
वास्तव में किसी भी समुदाय को अपने मूल्यों, अपनी संस्कृति और अपने इतिहास के बारे में शिक्षा एवं जागरूकता लाने के साथ-साथ यदि अधिक गुणवत्ता वाली सामग्री तैयार करनी है, तो इसके लिए एक टिकाऊ मीडिया क्षेत्र की आवश्यकता है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने में सरकारों की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। उदाहरण के लिए, सरकारों को एक ऐसे वातावरण का निर्माण करना होगा जो मीडिया को पनपने की अनुमति दे। अपनी ओर से, मीडिया फर्मों को ऐसे मूल्यों को बनाए रखने के लिए अपने स्वयं के स्व-नियमन का पालन करना चाहिए। और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे जो उत्पादन करते हैं वह सटीक, सहनशील और कानूनी रूप से वैद्य है। इसके साथ ही इसमें शिक्षा भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है जिसके लिए सरकारों द्वारा महत्वपूर्ण कदम उठाए जा सकते हैं। सरकारों द्वारा प्रासंगिक और व्यावसायिक शिक्षा के माध्यम से रचनात्मकता और उद्यमशीलता से लेकर नैतिकता और तथ्य-जांच के महत्व तक एक मज़बूत मीडिया के लिए आवश्यक कौशल को बढ़ावा देने में सहायता की जा सकती है। शिक्षा के माध्यम से इस क्षेत्र में नवाचार को भी प्रोत्साहन प्राप्त होता है। देश के युवा देश का भविष्य होते हैं, इसलिए सरकारों द्वारा उन्हें सहयोग, नवाचार और सृजन के लिए सशक्त बनाया जाना चाहिए। एक कैरियर के रूप में मीडिया के द्वारा इन युवाओं को अपने जुनून का पालन करने और अपनी क्षमता को पूरा करने की अनुमति प्राप्त होती है। सरकार और मीडिया के बीच मज़बूत संबंध के बिना, सार्वजनिक संवाद, सामाजिक समावेश और राजनीतिक भागीदारी सभी प्रभावित होते हैं। हालांकि, पारदर्शिता महत्वपूर्ण है लेकिन मीडिया में सरकार की भागीदारी को ग़लत समझा जा सकता है, इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि जनता समर्थन और पर्यवेक्षण के बीच के अंतर को स्पष्ट रूप से समझे।

संदर्भ
https://rb.gy/gbn2fl
https://rb.gy/f0sxmd
https://shorturl.at/mDNQY

चित्र संदर्भ
1. अख़बार पढ़ते लोगों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. पत्रकारों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. नियंत्रित पत्रकारिता को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. अभिव्यक्ति की आजादी पर प्रतिबन्ध को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. धरने पर बैठे मीडिया कर्मियों को संदर्भित करता एक चित्रण (pixabay)

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