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महावीर जयंती, जैन धर्म का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है, जिसे जैन समुदाय के 24वें तीर्थंकर के रूप में प्रतिष्ठित "भगवान महावीर" के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। हमारे मेरठ शहर में, भी इस दिन को पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दौरान मेरठ के श्री दिगंबर जैन शांतिनाथ मंदिर तीरगरान से शारदा रोड तक एक भव्य रथ यात्रा भी निकाली जाती है। संसार में दया और क्षमा का संदेश देने वाले महापुरुषों में महावीर को अग्रणी माना जाता है। उनके द्वारा दिए गए संदेश, आज भी दुनिया भर के समुदायों में सार्वभौमिक रूप से गूंजते है। आइए आज इस महावीर जयंती के शुभ अवसर पर, क्षमा के संदर्भ में दी गई उनकी गहन शिक्षाओं पर ग़ौर करें। साथ ही आज हम जैन धर्म और बौद्ध धर्म के बीच के प्रमुख अंतरों को समझने का भी प्रयास करेंगे।
जैन धर्म के अंतिम और चौबीसवें तीर्थंकर, भगवान महावीर का जन्म भले ही एक मनुष्य के रूप में हुआ था, लेकिन अंततः उन्होंने ध्यान और आत्म-साक्षात्कार के माध्यम से परम ज्ञान “केवल्य” प्राप्त कर लिया था, और परमात्मा के साथ एक हो गए थे। जैन समुदाय में उन्हें देवता के रूप में पूजा जाता है, और उन्हें अरिहंत या जिन के नाम से भी जाना जाता है।
तीर्थंकर एक धार्मिक शिक्षक की भांति होते हैं। जैन समुदाय में अरिहंत, आध्यात्मिकता के शिखर पर पहुंच चुके व्यक्ति को कहा जाता है, जिसने क्रोध और अहंकार जैसी आंतरिक जटिलताओं पर काबू पा लिया है।
599 ईसा पूर्व भारत के बिहार में एक राजकुमार के रूप में जन्मे महावीर ने 30 साल की उम्र में, भिक्षु बनने के लिए अपना शाही जीवन और सांसारिक संपत्ति त्याग दी। अगले बारह साल उन्होंने अपनी इच्छाओं और भावनाओं पर काबू पाते हुए गहन ध्यान में बिताए। उन्होंने कठोर तपस्या की, अक्सर लंबे समय तक उपवास किया, और इस बात को लेकर सजग रहे कि किसी भी जीवित प्राणी को नुकसान न पहुंचे। उनकी आध्यात्मिक यात्रा पूर्ण धारणा, ज्ञान, शक्ति और आनंद की प्राप्ति में परिणत हुई, जिसे केवल-ज्ञान (कैवल्य) के रूप में जाना जाता है।
अगले तीस वर्षों तक, महावीर ने पूरे भारत में नंगे पैर यात्रा की और उन शाश्वत सत्यों का प्रचार किया, जिनकी अनुभूति उन्होंने स्वयं की थी। उन्होंने राजाओं से लेकर आम लोगों, पुरुषों और महिलाओं, स्पृश्यों और अस्पृश्यों तक समाज के सभी वर्गों के लोगों को आकर्षित किया।
उन्होंने अपने अनुयायियों को चार भागों में संगठित किया:
1. भिक्षु (साधु),
2. नन (साध्वी),
3. आम आदमी (श्रावक),
4. आम महिला (श्राविका)
बाद में यही अनुयायी "जैन" कहलाये।
महावीर स्वामी के जीवन की कई कहानियाँ हमें सच्ची खुशी और सफलता प्राप्त करने का मार्ग प्रदर्शित करती हैं। उनके जीवन से जुड़ी एक ऐसी ही घटना "क्षमा के महत्व" पर भी प्रकाश डालती है।
किवदंती के अनुसार एक बार महावीर स्वामी एक गाँव के पास जंगल में ध्यान कर रहे थे। वहीँ पर कुछ ग्रामीण भी अपनी गायों को चराने के लिए आये हुए थे। उन्होंने महावीर को गहरे ध्यान में देखा। लेकिन वे लोग तपस्या और ध्यान की अवधारणाओं से अपरिचित थे और महावीर स्वामी को पहचानने में असफल रहे। उन्होंने महावीर को भी एक साधारण मनुष्य समझ लिया, और महावीर का मज़ाक उड़ाना और उन्हें परेशान करना शुरू कर दिया।
लेकिन उन लोगों के कई प्रयासों के बावजूद भी महावीर स्वामी अविचलित रहे और अपने ध्यान में गहराई से डूबे रहे। इस अपमानजनक व्यवहार को देखकर वहां के कुछ अन्य शिक्षित ग्रामीण, महावीर स्वामी को बचाने के लिए दौड़ पड़े।
उन्होंने स्वामी को पहचान लिया था और तुरंत ही अज्ञानी ग्रामीणों के कृत्य के लिए माफ़ी मांगी। महावीर स्वामी ने शांति से अपनी आँखें खोलीं और ध्यान से उनकी बातें सुनीं। बाद में उन्हें परेशान करने वाले ग्रामीणों ने भी अपनी गलती को स्वीकार करते हुए, महावीर स्वामी से माफ़ी मांगी और उनके लिए शांति से ध्यान करने के लिए एक कमरा बनाने की पेशकश की, और वादा किया कि उनकी साधना में कोई और बाधा नहीं आएगी।
इसके जवाब में, महावीर स्वामी ने कहा कि वे चरवाहों को अपने बच्चों के रूप में देखते हैं। जिस प्रकार माता-पिता अपने बच्चों द्वारा अनजाने में उन्हें नुकसान पहुँचाने पर क्रोधित नहीं होते, उसी प्रकार उनके मन में भी गाँव वालों के प्रति कोई क्रोध नहीं था। उन्होंने एक कमरे की पेशकश को अस्वीकार कर दिया, और सुझाव दिया कि धन का उपयोग गरीबों के कल्याण के लिए किया जाए।
महावीर के जीवन से जुड़ी यह अहम् किवदंती हमें "क्षमा का महत्व" सिखाती है। महावीर स्वामी हमें सिखाते हैं कि दूसरों की गलतियों पर क्रोध नहीं करना चाहिए। इसके बजाय, हमें शांति से उन्हें सुनना चाहिए, उनकी गलतियों को माफ़ करना चाहिए और आगे बढ़ना चाहिए।
महावीर की शिक्षाओं का मूल उद्देश्य लोगों को मुक्ति (मोक्ष) की ओर मार्गदर्शित करना तथा शाश्वत आनंद की स्थिति की ओर ले जाना और जन्म, जीवन तथा मृत्यु के चक्र से मुक्ति दिलाना है। उन्होंने सिखाया कि प्रत्येक आत्मा अपने अच्छे या बुरे कर्मों से संचित कर्म परमाणुओं के कारण जटिल बंधनों में उलझी हुई है। यह बंधन आत्मा को भौतिक संपत्तियों की ओर खींचता है, जिसके परिणामस्वरूप आत्म-केंद्रित विचार, कर्म, क्रोध, घृणा, लालच और अन्य बुराइयां उत्पन्न होती हैं। और इस तरह एक व्यक्ति कर्मों में ही उलझ कर रह जाता है।
महावीर ने उपदेश दिया कि मुक्ति सही विश्वास (सम्यक-दर्शन), सही ज्ञान (सम्यक-ज्ञान), और सही आचरण (सम्यक-चरित्र) के माध्यम से प्राप्त की जा सकती है।
सही आचरण के केंद्र में पांच महान व्रत हैं:
1. अहिंसा - किसी भी जीवित प्राणी को नुकसान नहीं पहुँचाना।
2. सत्यवादिता (सत्य) - केवल हानिरहित सत्य बोलना।
3. चोरी न करना (अस्तेय)
4. शुद्धता (ब्रह्मचर्य) - कामुक सुख से बचना।
5. अपरिग्रह - लोगों, स्थानों और भौतिक चीजों से पूर्ण अलगाव की स्थिति में रहना।
जैन समुदाय के लोग इन प्रतिज्ञाओं के अनुसार जीने का प्रयास करते हैं। जैन भिक्षु और भिक्षुणियाँ इनका सख्ती से पालन करते हैं, जबकि आम लोग भी अपनी जीवनशैली के अनुसार इनका पालन करते हैं।
527 ईसा पूर्व में 72 वर्ष की आयु में भगवान महावीर ने पूर्ण मुक्ति की प्राप्ति कर ली थी। वह एक सिद्ध, एक शुद्ध चेतना, एक मुक्त आत्मा बन गए, और पूर्ण आनंद की स्थिति में हमेशा के लिए अमर हो गए। बहुत कम लोग इस बात को जानते हैं कि दीपावली के दिन ही उन्होंने भी आत्मज्ञान प्राप्त किया था।
महावीर ने धर्म को सरल बनाया, इसे प्राकृतिक और जटिल अनुष्ठानों से बचाया, और भौतिक संसार के बजाय आत्मा की आंतरिक सुंदरता और सद्भाव पर ज़ोर दिया।
उन्होंने सिखाया कि एक जीवित शरीर केवल अंगों और मांस के संयोजन से कहीं अधिक है। यह आत्मा का निवास स्थान है, जिसमें पूर्ण धारणा (अनंत-दर्शन), पूर्ण ज्ञान (अनंत-ज्ञान), पूर्ण शक्ति (अनंत-वीर्य), और पूर्ण आनंद (अनंत-सुखा) की क्षमता है।
महावीर ने मोक्ष के मार्ग के रूप में देवी-देवताओं की पूजा को अस्वीकार कर दिया, इसके बजाय मानव जीवन की सर्वोच्चता और सकारात्मक जीवन दृष्टिकोण के महत्व को बढ़ावा दिया।
बुद्ध के विपरीत, महावीर एक नई धार्मिक व्यवस्था के संस्थापक की तुलना में मौजूदा धार्मिक व्यवस्था के सुधारक और प्रचारक अधिक थे। उन्होंने अपने पूर्ववर्ती तीर्थंकर पार्श्वनाथ के सुस्थापित पंथ का पालन किया, लेकिन अपने समय के अनुरूप जैन धर्म के दार्शनिक सिद्धांतों को पुनर्गठित किया।
भारत से उत्पन्न दो महत्वपूर्ण दर्शन (बौद्ध धर्म और जैन धर्म), दोनों ही यह बात को स्वीकार करते हैं कि कर्म (हमारे कार्य) और अस्वास्थ्यकर मानसिक स्थिति, विशेष रूप से अज्ञानता ही हमें पीड़ा के चक्र में बांधती है।
हालांकि इनमें से जैन और बौद्ध धर्म काफी हद तक समान नजर आते हैं, किंतु दोनों में ही कुछ मूलभूत अंतर भी हैं। जैसे कि जैन धर्म का प्रमुख लक्ष्य अहिंसा और अकर्म के माध्यम से आत्मा की मुक्ति यानी मोक्ष प्राप्त करना होता है। दूसरी ओर, बौद्ध धर्म का प्राथमिक लक्ष्य "मन को मुक्त करना" माना जाता है।
बौद्ध धर्म में ऐसा तीन उच्च प्रशिक्षणों के माध्यम से पूरा किया जा सकता है:
1. सिला (नैतिक आचरण),
2. समाधि (ध्यान की एकाग्रता),
3. पन्ना (बुद्धि)
इसलिए, एक ओर जहां जैन धर्म का प्राथमिक लक्ष्य कर्म (क्रियाओं) से मुक्ति पाना है, तो वहीं बौद्ध धर्म का मुख्य उद्देश्य अज्ञानता पर विशेष ज़ोर देने के साथ अस्वास्थ्यकर मानसिक स्थितियों (अज्ञानता) को खत्म करना है।
दार्शनिक मान्यताओं के संदर्भ में, जैन धर्म आत्मा या जीव के अस्तित्व को स्वीकार करता है। इसके बिल्कुल विपरीत, बौद्ध धर्म आत्मा की अवधारणा को मान्यता नहीं देता है। बौद्ध धर्म में आत्मा की जन्मजात और अर्जित दोनों धारणाओं को अज्ञानता का रूप माना जाता है, जो आत्मज्ञान प्राप्त करने में बाधा उत्पन्न करता है।
बौद्ध धर्म और जैन धर्म कई अन्य भारतीय दर्शनों के साथ, श्रमण परंपराओं का हिस्सा रहे हैं। ये गैर-ब्राह्मणवादी सन्यासी आंदोलन थे जो भारत के हिंदू धर्म जैसे वैदिक धर्मों के समानांतर, लेकिन अलग मार्ग पर चल रहे थे। श्रमण परंपरा में मुख्य रूप से जैन धर्म, बौद्ध धर्म और आजीविका जैसे अन्य धर्म शामिल हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/4nt4uv3p
https://tinyurl.com/9zfxzzzb
https://tinyurl.com/4vbvkuzh
https://tinyurl.com/2s38zd32
चित्र संदर्भ
1. एक ब्राह्मण को अपना आधा वस्त्र भिक्षा में देते हुए, तीर्थंकर महावीर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. अहिंसा स्थल, महरौली, नई दिल्ली में महावीर की 16 फुट, 2 इंच की पत्थर की मूर्ति को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. ध्यानस्थ मुद्रा में महावीर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. महावीर के कैवल्य या सर्वज्ञता प्राप्त करने के दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. जैन पाण्डुलिपि कल्पसूत्र को दर्शाता एक चित्रण (look&learn)
6. जैन धर्म में आत्मा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
7. जैन दर्शन के अनुसार छः शाश्वत द्रव्यों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
8. जैन धर्म में अहिंसा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)