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इस वर्ष, चैत्र नवरात्रि 9 अप्रैल, 2024 से शुरू हो चुकी है और 17 अप्रैल, 2024 के दिन राम नवमी का भव्य उत्सव मनाया जाएगा। हिंदू परंपरा में, राम नवमी और नवरात्रि दोनों का ही विशेष महत्व है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि रामनवमी और चैत्र नवरात्रि के बीच में क्या संबंध है? और चैत्र नवरात्रि, शरद नवरात्रि से किस प्रकार भिन्न है? चलिए आज, रामनवमी के अवसर पर, इन्हीं सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करते हैं और नवरात्रि के दौरान आदिशक्ति के नौ रूपों की पूजा करने की परंपरा के बारे में भी जानते हैं।
नवरात्रि, एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार, जिसे साल में दो बार मनाया जाता है। दोनों पर्वों का अपना अनूठा महत्व होता है। पहला, पर्व जिसे चैत्र नवरात्रि के रूप में जाना जाता है, हिंदू नव वर्ष की शुरुआत का प्रतीक है। दूसरी, शारदीय नवरात्रि, आश्विन माह में होती है। बंगाल में शारदीय नवरात्रि को दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है। इसके अतिरिक्त, आश्विन माह की नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि के नाम से जाना जाता है। वही पौष और आषाढ़ माह में नवरात्रि का त्यौहार आता हैं। जिसे गुप्त नवरात्रि कहा जाता है, लेकिन उस नवरात्रि में तंत्र साधना की जाती है, गृहस्थों और पारिवारिक सदस्यों के लिए केवल चैत्र और शारदीय नवरात्रि ही सर्वोत्तम मानी जाती है।
चैत्र नवरात्रि:
चैत्र नवरात्रि नौ दिवसीय हिंदू त्योहार होता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है।
महत्व: हिंदू संस्कृति में चैत्र नवरात्रि का बड़ा ही महत्व है। यह अवधि नवीनीकृत ऊर्जा, सकारात्मकता और आध्यात्मिक जागृति का प्रतीक मानी जाती है। इस दौरान सभी भक्त देवी दुर्गा से आशीर्वाद मांगते हैं, जिनकी दिव्य शक्तियाँ सुरक्षा, शक्ति और समृद्धि का प्रतिनिधित्व करती हैं।
उपवास: नवरात्रि के दौरान उपवास करना आम बात है। इस दौरान भक्त अपने शरीर और मन को शुद्ध करने के लिए कुछ खाद्य पदार्थों (विशेषतौर पर मांसाहार) से परहेज करते हैं।
पूजा: चैत्र नवरात्रि के दैनिक अनुष्ठानों में देवी की मूर्ति या छवि के सामने फूल, फल, धूप चढ़ाना और दीपक जलाना शामिल है। साथ ही इस दौरान देवी दुर्गा के नौ रूपों का प्रतिनिधित्व करने वाली युवा बालिकाओं को भी भोग लगाया जाता है। इस दौरान उनके पैर धोए जाते हैं और उनसे आशीर्वाद मांगा जाता है। गरबा और डांडिया रास भी इस अवधि के प्रमुख आकर्षण रहते हैं। नवरात्रि का प्रत्येक दिन एक विशिष्ट रंग से मेल खाता है
शारदीय नवरात्रि:
शारदीय नवरात्रि, नौ दिनों तक चलने वाला एक भव्य उत्सव है। शारदीय नवरात्रि, आश्विन-शुक्ल पक्ष के बीच पड़ती है और इसे पूरे भारत में मनाया जाता है।
महत्व: यह त्यौहार माँ दुर्गा और महिषासुर के बीच नौ दिनों तक चली लड़ाई का प्रतीक है, जिसकी परिणति दसवें दिन महिषासुर का सिर काटने के साथ हुई। इसी घटना के बाद माँ दुर्गा को 'महिषासुरमर्दिनी' की उपाधि मिली। इस दौरान भक्त भी माँ के नौ रूपों की पूजा करते हैं, जिनमें दुर्गा, भद्रकाली, जगदंबा और अन्य देवियाँ शामिल हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार, स्वयं भगवान राम ने भी रावण को हराने के लिए देवी दुर्गा के सभी नौ रूपों की पूजा की थी। दसवें दिन (विजयादशमी) भगवान राम ने रावण पर विजय प्राप्त की थी।
चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि, दोनों ही अलग-अलग रीति-रिवाजों और अनुष्ठानों के साथ मनाए जाते हैं। चैत्र नवरात्रि के दौरान कठोर ध्यान और उपवास पर ज़ोर दिया जाता है, और इसे मुख्य रूप से महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में मनाया जाता है। यह त्यौहार भगवान राम के जन्म के उपलक्ष्य में राम नवमी के साथ समाप्त होता है।
इसके विपरीत, शारदीय नवरात्रि के अवसर पर सात्विक साधना, नृत्य और उत्सव आयोजित किये जाते हैं,और इसे गुजरात और पश्चिम बंगाल में प्रमुखता से मनाया जाता है। यह त्यौहार महानवमी के साथ समाप्त होता है, जिसके बाद विजय दशमी आती है, जो महिषासुर पर माँ दुर्गा की और रावण पर भगवान राम की विजय का प्रतीक है। इस अवधि के दौरान, बंगाल में शक्ति पूजा के रूप में दुर्गा पूजा मनाई जाती है, और गुजरात में गरबा कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
माना जाता है कि चैत्र नवरात्रि मानसिक स्थिति को मजबूत करती है और आध्यात्मिक आकांक्षाओं को पूरा करती है। वहीं शारदीय नवरात्रि सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति से जुड़ी है। हालांकि अपने मतभेदों के बावजूद, दोनों ही त्योहार दिव्य स्त्री शक्ति, का सम्मान करते हैं, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
माँ आदिशक्ति, हिंदू त्रिमूर्ति, त्रिमूर्तियों (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) के लिए मौलिक ऊर्जा स्रोत मानी जाती हैं। त्रिमूर्तियों की संयुक्त शक्ति उनके आध्यात्मिक विकास के शिखर का प्रतिनिधित्व करती है।
ईश्वर के सार के रूप में, यह ऊर्जा, देवी माँ का प्रतीक मानी जाती है। वैदिक परंपराओं के अनुसार, प्रकृति, या प्राकृतिक ऊर्जा, अहंकार चेतना के माध्यम से आत्म-जागरूकता को बढ़ावा देती है। यह अहंकार तीन गुणों से आकार लेता है:
- पवित्रता (सत्व),
- गतिविधि (रजस),
- जड़ता (तमस)
नवरात्रि को पूरे भारत में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। पूर्व में, मुख्य रूप से माँ काली की पूजा की जाती है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, भगवान विष्णु के सातवें अवतार भगवान राम का जन्म चैत्र माह के शुक्ल पक्ष के दौरान चैत्र नवरात्रि के नौवें दिन (नवमी तिथि) को हुआ था। लेकिन क्या आप जानते हैं कि चैत्र नवरात्रि, देवी माँ को समर्पित त्योहार के रूप में भगवान राम के जन्म से पहले भी मनाया जाता था। हालाँकि, जब भगवान राम का जन्म चैत्र माह में हुआ, तो देवी के साथ उनकी पूजा करने की परंपरा भी शुरू हुई। इसी कारण, दोनों त्योहारों को जोड़ते हुए, चैत्र नवरात्रि रामनवमी पर समाप्त होती है। एक तरह से चैत्र नवरात्री का यह अंतिम दिन, देवी के विभिन्न रूपों के पूजन के पश्च्यात, भगवान विष्णु के सातवें अवतार, एक उत्कृष्ट आचरण वाले सर्वश्रेष्ठ पुरुष भगवान श्री राम के जन्म को चिंहित करता है। वह प्रभु श्री राम, जिनका नाम और जीवन स्वयं में ही आध्यात्मिक विकास और देवी की परम शक्ति के शिखर को आत्मसात करता है।
सनातन धर्म में नवरात्रि को एक भव्य उत्सव के रूप में मनाया जाता है, जहां भक्त नौ दिनों तक देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करते हैं। ऐसा माना जाता है कि नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा धरती पर अवतरित होती हैं और अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करती हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/2cb6fp4c
https://tinyurl.com/3xe2hdka
https://tinyurl.com/5eepsf8b
चित्र संदर्भ
1. चैत्र और शारदीय नवरात्रि के मूल अंतर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia, snl)
2. नवरात्री उत्सव को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. माँ दुर्गा के 'महिषासुरमर्दिनी' स्वरूप को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. माँ दुर्गा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. गरबा नृत्य को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
6. राजा दशरथ के साथ प्रभु श्री राम और उनके भाइयों को दर्शाता एक चित्रण (getarchive)
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