देशभर में विविध मान्यताओं किंतु समान भावना के साथ मनाया जाता है, बैसाखी का पर्व

विचार I - धर्म (मिथक/अनुष्ठान)
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देशभर में विविध मान्यताओं किंतु समान भावना के साथ मनाया जाता है, बैसाखी का पर्व

हमारे शहर मेरठ में हर साल बैसाखी का महोत्सव, पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस अवसर पर सभी धर्मों, संस्कृतियों और समुदायों के लोग एकजुट होते हैं और बड़ी ही धूमधाम के साथ इस त्योहार को मनाते हैं। यद्दपि बैसाखी मूलतः सिखों को समर्पित पर्व है, लेकिन भारत में इस त्योहार को बंगाली, असमिया, तमिल और केरलवासियों के बीच भी अलग-अलग मान्यताओं किंतु समान भावना के साथ मनाया जाता है। बैसाखी का त्योहार मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है, तथा सिख परंपराओं की जीवंतता को दर्शाता है। इस अवसर पर सिख समुदाय के लोग “नगर कीर्तन” में भाग लेते हैं। इस दौरान वे कीर्तन (शबद) गाते हैं, और खालसा पंथ की “मार्शल कला” का भी प्रदर्शन करते हैं। इस अवसर पर गुरु ग्रंथ साहिब की “गुरबानियों” का पाठ भी किया जाता है। ऊपर से पंजाब और हरियाणा में भांगड़ा और गिद्दा जैसे स्थानीय नृत्य, इस उत्सव की रौनक में चार चाँद लगा देते हैं।
यह अवसर, रबी फसल की कटाई का भी प्रतीक होता है, जिसमें किसान अपनी फसलों के भविष्य की समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं। हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में भी इस त्योहार को पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है। यहाँ पर फसल की कटाई के बाद, लोग एक स्थान पर एकत्रित होते हैं, स्थानीय व्यंजनों को आपस में साझा करते हैं तथा कई धार्मिक अनुष्ठान भी आयोजित करते हैं। इस अवसर पर कई शहरों में भव्य मेले भी आयोजित किये जाते हैं। इस दिन हमारे उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में, स्थानीय देवताओं को ताजी फसल भी अर्पित की जाती है।
हालांकि यह त्योहार पंजाब से शुरू हुआ है, लेकिन आज इसे पूरे भारत में मनाया जाता है जो कि सिख समुदाय के सांस्कृतिक प्रभाव को दर्शाता है। इस पर्व के प्रमुख रीति-रिवाजों में से एक, आवत पौनी के दौरान विविध समुदायों के लोग सौहार्द की भावना से गेहूं की कटाई करने के लिए एक साथ आते हैं। सिख समुदाय में बैसाखी की उत्पत्ति की किवदंती अत्यंत साहसिक है। किवदंती के अनुसार 1606 में, सम्राट जहांगीर के शासन के दौरान, पांचवें सिख गुरु, गुरु अर्जन देव जी को शहीद कर दिया गया था। इसी तरह की एक घटना 1675 में घटी, जब सिखों के नौवें गुरु (गुरु तेग बहादुर जी) को भारत के छठे मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश के बाद दिल्ली में फांसी दे दी गई।
एक प्रसिद्ध किवदंती के अनुसार सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी ने औरंगजेब का सामना करने और अन्य समस्याओं से निपटने के लिए, अपने अनुयायियों को वैसाखी के दिन आनंदपुर में इकट्ठा होने के लिए कहा। फिर उन्होंने एक अनोखा समारोह आयोजित किया, जहां उन्होंने समारोह में एकत्रित हुए सभी स्वयंसेवकों से आह्वान किया कि “जो भी समुदाय के प्रति अपनी निष्ठा दिखाना चाहता है, उसे आगे आना होगा और यहीं पर अपने जीवन का बलिदान देना होगा।” यह एक बहुत ही दुविधाजनक और जोखिम भरा आह्वान था, किंतु इसके बावजूद भीड़ से पाँच लोग अपनी निष्ठा प्रदर्शित करते हुए आगे बढ़े। एक-एक करके पांचों लोग गुरु गोबिंद सिंह जी के तंबू के भीतर चले गए। इस दौरान हर बार गुरु गोबिंद सिंह जी खून से लथपथ अपनी तलवार के साथ अकेले ही बाहर निकलते थे। जब तंबू में सभी पांच लोगों ने प्रवेश कर लिया तो, वहां मौजूद सभी लोगों ने यह मान लिया कि अपनी निष्ठा प्रदर्शित करते हुए उन पांचों लोगों ने अपना सिर कलम करवा दिया। लेकिन जल्द ही सभी लोग जीवित और पगड़ी पहने हुए एक साथ तंबू से बाहर निकले। इन लोगों को, पंज प्यारों की संज्ञा दी गई और गुरु द्वारा खालसा में बपतिस्मा दिया गया। बैसाखी को मनाने का प्रमुख कारण इसी घटना को माना जाता है। यह घटना बैसाखी के दिन घटित हुई थी, इसलिए आज का दिन पंजाबियों के लिए केवल फसल उत्सव समारोह ही नहीं, बल्कि सिख इतिहास का भी एक महत्वपूर्ण दिन माना जाता है।
बैसाखी की भांति ही हमारे देश में फसलों को समर्पित कई अन्य त्योहार भी मनाये जाते हैं।
इनमें से कुछ लोकप्रिय वसंत फसल उत्सवों की सूची निम्नवत दी गई हैं: बोहाग बिहू: बोहाग बिहू को रोंगाली बिहू के नाम से भी जाना जाता है। यह त्योहार असमिया नव वर्ष का प्रतीक है और इसे पूरे असम में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस त्योहार का इतिहास लगभग 3500 ईसा पूर्व का माना जाता है। इस दौरान पारंपरिक व्यंजन तैयार करना और संगीत और नृत्य का आनंद लेने जैसी गतिविधियां आयोजित की जाती हैं। पोइला बैसाख: यह त्योहार बंगाली नव वर्ष के प्रतीक के रूप में पूरे बंगाली समुदाय द्वारा पूरे विश्व स्तर पर मनाया जाता है। इसके प्रमुख उत्सवों में नए कपड़े पहनना, मंदिरों में जाना और मिठाइयों का आदान-प्रदान करना शामिल है। विशु: विशु पर्व, मलयालम नव वर्ष की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। इसे पूरे कर्नाटक और केरल में धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्योहार , जो मलयालम महीने मेडम के पहले दिन पड़ता है, भगवान कृष्ण द्वारा राक्षस नरकासुर पर विजय से भी जुड़ा है। पुथंडु: दुनिया भर में तमिल समुदाय द्वारा मनाया जाने वाला, पुथंडू पर्व भी तमिल नव वर्ष की शुरुआत का प्रतीक है। यह त्योहार तमिल महीने चिथिराई के पहले दिन पड़ता है, और इसे आमतौर पर अप्रैल के दूसरे सप्ताह में मनाया जाता है।

संदर्भ

https://tinyurl.com/yc5ss7eu
https://tinyurl.com/2s39w832
https://tinyurl.com/2s39w832
https://tinyurl.com/47z8kevx

चित्र संदर्भ
1. निहंगों द्वारा गटका के प्रदर्शन और बोहाग बिहू को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. नगर कीर्तन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. गुरु गोबिंद सिंह जी के आह्वान को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
4. पांच प्यारों के साथ खालसा की स्थापना करते गुरु गोबिंद सिंह जी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. बोहाग बिहू को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. पोइला बैसाख हेतु तैयार हुई एक छोटी बच्ची को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
7. विशु पर्व को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
8. पुथंडु को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)