Post Viewership from Post Date to 04-May-2024 (31st Day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
1571 218 1789

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

बंगाल के बट-ताला क्षेत्र में कैसे गढ़े गए वुडकट प्रिंटिंग के नए कीर्तिमान?

मेरठ

 03-04-2024 09:33 AM
वास्तुकला 2 कार्यालय व कार्यप्रणाली

लकड़ी से काठी और फिर काठी से घोड़ा ही नहीं बल्कि, लकड़ी से ब्लॉक और फिर ब्लॉक से प्रिंटिंग भी की जा सकती है, और प्रिंटिंग की शानदार तकनीक को “वुडकट प्रिंटिंग (Woodcut Printing)” कहा जाता है।
वुडकट को प्रिंटमेकिंग के सबसे पुराने रूपों में से एक माना जाता है, जिसके तहत लकड़ी के ब्लॉकों में जटिल डिजाइनों को तराशा जाता है। संक्षेप में वुडकट प्रिंटिंग की प्रक्रिया निम्नवत दी गई है:
डिज़ाइन को उकेरना: सबसे पहले कुशल कलाकार लकड़ी के ब्लॉक की सतह पर अपने डिज़ाइन को सीधे उकेरने के लिए चाकू और अन्य उपकरणों का उपयोग करते हैं। काटने के बाद जो क्षेत्र उभरे हुए रहते हैं, उनमें ही मुद्रण के दौरान स्याही चिपकती है। स्याही लगाना और छपाई: एक बार डिज़ाइन तैयार हो जाने के बाद, उभरे हुए क्षेत्रों पर स्याही लगाई जाती है। जब ब्लॉक को काग़ज़ पर दबाया जाता है, तो स्याही वाला डिज़ाइन काग़ज़ पर छप जाता है, और अंतिम प्रिंट बनता है। इसके बाद गहरे धंसे हुए क्षेत्र खाली रहते हैं।
वुडकट प्रिंटिंग के लिए नाशपाती (Pear) की लकड़ी का ब्लॉक आमतौर पर कलाकारों की पहली पसंद हो ती है। वुडब्लॉक (Woodblock) का आकार आपकी इच्छुक छवि पर निर्भर करता है। बड़े पैमाने पर प्रिंट के लिए, कई ब्लॉकों का उपयोग किया जाता है। उम्र बढ़ने या छपाई के दौरान दबाव पड़ने के कारण छोटे ब्लॉकों के टूटने का खतरा कम होता है। इसके अलावा लकड़ी के ब्लॉक की मोटाई भी मायने रखती है। उपयोग में आसानी और टिकाऊपन के लिए लगभग एक इंच मोटी लकड़ी को आदर्श माना जाता है।
वुडकट प्रिंटिंग के कलाकार अपने डिज़ाइन को सीधे वुडब्लॉक की सतह पर बना सकते हैं, या फिर वैकल्पिक रूप से, वे ब्लॉक पर एक स्केच (Sketch) चिपका सकते हैं। इसके अलावा शीट के पीछे चॉक या ग्रेफ़ाइट (Chalk Or Graphite) लगाकर भी डिज़ाइन को कागज़ की शीट पर स्थानांतरित किया जा सकता है। वुडकट प्रिंटमेकिंग ने पूर्वी और पश्चिमी दोनों संस्कृतियों पर एक अमिट छाप छोड़ी है। लेकिन पूर्वी और पश्चिमी वुडब्लॉक प्रिंटिंग वास्तव में कुछ हद तक एक दूसरे से अलग होती है। उदारहण के तौर पर मोकुहंगा (Mokuhanga) या जापानी वुडब्लॉक प्रिंटिंग तथा पश्चिमी वुडब्लॉक प्रिंटिंग में कुछ मूलभूत अंतर होते हैं, जिन्हें निम्नवत दिया गया हैं:
उत्पत्ति: मोकुहांगा की उत्पत्ति 9वीं शताब्दी के चीन में हुई थी। वहां पर इसे विदेशी साहित्य को फिर से लिखने की एक विधि के रूप में विकसित किया गया था।
जापानी वुडब्लॉक प्रिंटिंग
प्रक्रिया: जापान में, कलाकार लकड़ी के ब्लॉकों पर सावधानीपूर्वक जटिल डिज़ाइन उकेरते हैं। फिर ब्लॉक पर पानी आधारित स्याही, रंगद्रव्य या पेंट को ब्रश से लगाया जाता है। इसके बाद प्रेस (दबाव यंत्र) का उपयोग करने के बजाय, कलाकार 'बेरेन “Baren” (स्ट्रिंग “String” और बांस की पत्ती से बनी एक डिस्क।)' का उपयोग करके हाथ से दबाव डालता है। फलस्वरुप हमें असाधारण रूप से पतले लेकिन मजबूत काग़ज़ पर सूक्ष्म, नाजुक प्रिंट प्राप्त होता है। इस मुद्रण की विशेषता यह है, कि इसके रंग धीरे-धीरे विकसित होते हैं। पूरब में कात्सुशिका होकुसाई (Katsushika Hokusai) को अपने प्रतिष्ठित वुडब्लॉक प्रिंट "द ग्रेट वेव ऑफ कानागावा (Great Wave Off Kanagawa)" के लिए जाना जाता है।
पश्चिमी वुडकट प्रिंटिंग
प्रक्रिया: इसके तहत लकड़ी के ब्लॉक पर तेल या पानी आधारित स्याही का लेपन किया जाता है। फिर ब्लॉक को पारंपरिक प्रिंटिंग प्रेस का उपयोग करके हैवीवेट कॉटन पेपर (Heavyweight Cotton Paper) पर दबाया जाता है।
विशेषता: पश्चिमी वुडकट्स में अक्सर रंगीन किताबों के समान बोल्ड रूपरेखा (Bold Outlines) और न्यूनतम छायांकन (Minimal Shading) होता है। ये प्रिंट अक्सर किताबों में चित्रण के रूप में उपयोग किए जाते थे। पश्चिम में एक जर्मन मास्टर अल्ब्रेक्ट ड्यूरर (Albrecht Dürer) ने "सैमसन रेंडिंग द लायन (Samson Rending The Lion)" जैसी कृतियों से वुडकट को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। पश्चिमी वुडकट का विकास 14वीं शताब्दी में जर्मनी में प्रिंटिंग प्रेस के आविष्कार के साथ हुआ था। यदि हम भारत की बात करें तो यहां पर वुडकट प्रिंटिंग ने सांस्कृतिक कला की विरासत को संजोये रखने में बड़ी भूमिका निभाई है। भारत में वुडकट प्रिंटिंग की जड़ें उत्तरी कोलकाता के बट-ताला (Butt-Tala) नामक एक क्षेत्र में खोजी जा सकती हैं।
'बट-ताला' नाम बंगाली शब्द 'बट' या 'बाउट' से लिया गया है, जहां बट का अर्थ “बरगद का पेड़”, और 'ताला' का अर्थ नीचे होता है। इससे पता चलता है कि इस क्षेत्र में कभी बरगद के पेड़ प्रचुर मात्रा में उगते थे। 19वीं सदी की शुरुआत में, बट-ताला, बंगाली प्रिंटिंग प्रेसों का केंद्र बन गया, जहां मुद्रण कला खूब फल-फूल रही थी। यहाँ के लकड़हारे, जो मुख्य रूप से चितपुर और शोभाबाज़ार क्षेत्रों में रहते थे, छपाई के लिए पत्थर और पकी हुई मिट्टी का भी उपयोग करते थे।
बट-ताला, वुडकट्स के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र होने के साथ-साथ जात्रा (लोक थिएटर), संगीत कार्यक्रमों और धर्म, पौराणिक कथाओं, रहस्य, इरोटिका (Erotica), पंचांग, इतिहास, जीवनी नाटकों जैसे विविध विषयों पर मुद्रण सहित सांस्कृतिक गतिविधियों के केंद्र के रूप में भी उभरा। भारत में लंबे समय से कपड़ों पर भी वुडब्लॉक प्रिंटिंग की जाती रही है। हालाँकि, काग़ज़ पर वुडब्लॉक प्रिंटिंग बहुत बाद में शुरू की गई। 19वीं शताब्दी में, बट-ताला में भारतीयों द्वारा संचालित लगभग 46 प्रिंटिंग प्रेस मौजूद थी। 1857 में, इन प्रेसों ने बंगाली में अकेले ही 322 शीर्षकों का उत्पादन किया, जिनमें 19 पंचांग भी शामिल थे।
हालाँकि, लिथोग्राफी (Lithography) जैसी नई तकनीक के आगमन के कारण बट-ताला प्रिंट, समय की कसौटी पर खरे नहीं उतर सके। नमी और इस्तेमाल किए गए काग़ज़ की खराब गुणवत्ता के कारण इन प्रिंटों का अस्तित्व और भी बाधित हुआ। लेकिन इन चुनौतियों के बावजूद, 19वीं सदी की शुरुआत में बट-ताला क्षेत्र को अपने प्रिंटों के लिए ख़ास पहचान मिली।
बट-ताला वुडकट प्रिंट का निर्माण एक सामूहिक प्रयास की बदौलत हुआ था जिसमें सभी जातियों के लोग शामिल थे। बंगाल की इस समृद्ध विरासत ने हमें इतिहास के कुछ उल्लेखनीय वुडकट प्रिंट दिए हैं, जिन्होंने कला प्रेमियों को हमेशा प्रभावित किया है। उदाहरण के तौर पर देवी दुर्गा को उनके उग्र रूप में दर्शाती यह एक उत्कृष्ट कलाकृति वुडकट प्रिंट की एक उल्लेखनीय कृति मानी जाती है। इस मनमोहक कृति में वह राक्षस महिषासुर का वध कर रही हैं। लक्ष्मी, गणेश, सरस्वती और कार्तिकेय के साथ, यह चित्रण बंगाल में उत्साह के साथ मनाई जाने वाली दुर्गा पूजा के सार को दर्शाता है। ऊपर दी गई बंगाल की ही इस दूसरी रहस्यमयी कृति का शीर्षक ही "शीर्षकहीन (Untitled)" है। इसके जीवंत रंग और जटिल विवरण इसे एक ऐसी पहेली बना देते हैं जो सुलझने का इंतजार कर रही है। यह दृश्य रामायण की याद दिलाते हुए रावण और हनुमान जी के बीच के युद्ध को दर्शाता प्रतीत होता है। मेट म्यूज़ियम (Met Museum) में एक ऐसी कलाकृति भी है, जिसमें डबल-इमेज प्रिंट (Double-Image Print) है। काग़ज़ की एक ही शीट पर दो धातु की प्लेटों से निर्मित इस प्रिंट को कलकत्ता के प्रिंट-निर्माण का एक अग्रणी उदाहरण माना जाता है। इन प्रिंटों को बट्टाला प्रिंट ( Battala Prints) के रूप में जाना जाता है, जिसका नाम कोलकाता के हुगली जिले के बट्टाला क्षेत्र के नाम पर रखा गया है। यह क्षेत्र 19वीं सदी की शुरुआत से लेकर मध्य तक स्थानीय प्रेस का केंद्र रहा था। प्रिंट निर्माताओं ने अपने काम के लिए धातु की चादरों और लकड़ी के ब्लॉक दोनों का उपयोग किया। बायीं ओर के प्रिंट में देवी काली को भगवान शिव पर खड़ा दिखाया गया है, जो लेटे हुए हैं। इस चित्र में माँ काली को एक हाथ में अस्त्र और दूसरे हाथ में दानव के कटे हुए सिर पकड़े हुए दिखाया गया है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/4mka5428
https://tinyurl.com/yw4a6wkd
https://tinyurl.com/368rhfca

चित्र संदर्भ

1. देवी दुर्गा को उनके उग्र रूप में दर्शाती यह एक उत्कृष्ट वुडकट प्रिंट कलाकृति को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. वुडकट प्रिंट के लिए लकड़ी की नक्काशी को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
3. कपड़े पर लकड़ी के ब्लॉक से प्रिंटिंग करते व्यक्ति को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. प्रतिष्ठित वुडब्लॉक प्रिंट "द ग्रेट वेव ऑफ कानागावा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. प्रतिष्ठित वुडब्लॉक प्रिंट सैमसन रेंडिंग द लायन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. वुडब्लॉक प्रिंटिंग के लिए लकड़ी के ब्लॉक बेच रहे दुकानदार को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
7. देवी दुर्गा को उनके उग्र रूप में दर्शाती यह एक उत्कृष्ट कलाकृति वुडकट प्रिंट की एक उल्लेखनीय कृति मानी जाती है। को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
8. रामायण की याद दिलाते हुए रावण और हनुमान जी के बीच के युद्ध को दर्शाते वुडब्लॉक प्रिंट को संदर्भित करता एक चित्रण (caleidoscope)
9. मेट म्यूज़ियम में एक ऐसी कलाकृति भी है, जिसमें डबल-इमेज प्रिंट है। को दर्शाते वुडब्लॉक प्रिंट को संदर्भित करता एक चित्रण (caleidoscope)

***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • अपने युग से कहीं आगे थी विंध्य नवपाषाण संस्कृति
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:28 AM


  • चोपता में देखने को मिलती है प्राकृतिक सुंदरता एवं आध्यात्मिकता का अनोखा समावेश
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:29 AM


  • आइए जानें, क़ुतुब मीनार में पाए जाने वाले विभिन्न भाषाओं के शिलालेखों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:22 AM


  • जानें, बेतवा और यमुना नदियों के संगम पर स्थित, हमीरपुर शहर के बारे में
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:31 AM


  • आइए, अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस के मौके पर दौरा करें, हार्वर्ड विश्वविद्यालय का
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:30 AM


  • जानिए, कौन से जानवर, अपने बच्चों के लिए, बनते हैं बेहतरीन शिक्षक
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:17 AM


  • आइए जानें, उदासियों के ज़रिए, कैसे फैलाया, गुरु नानक ने प्रेम, करुणा और सच्चाई का संदेश
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:27 AM


  • जानें कैसे, शहरी व ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं के बीच अंतर को पाटने का प्रयास चल रहा है
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:20 AM


  • जानिए क्यों, मेरठ में गन्ने से निकला बगास, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के लिए है अहम
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:22 AM


  • हमारे सौर मंडल में, एक बौने ग्रह के रूप में, प्लूटो का क्या है महत्त्व ?
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:29 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id