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हमारे शहर मेरठ में मौजूद, सेंट जॉन चर्च को ईसाई धर्म में महत्वपूर्ण होने के साथ-साथ वास्तुशिल्प का चमत्कार भी माना जाता है। इस इमारत को आज भी 1857 के विद्रोह सहित विभिन्न ऐतिहासिक घटनाओं को बयान करने के लिए आगे किया जाता है।
जॉन चर्च, को सेंट जॉन द बैप्टिस्ट चर्च (St. John the Baptist Church) के नाम से भी जाना जाता है। सेंट जॉन द बैपटिस्ट चर्च, या जॉन चर्च का एक लंबा इतिहास रहा है। इस चर्च को सैन्य छावनी की जरूरतों को पूरा करने के लिए बनाया गया था। जॉन चर्च का निर्माण वर्ष 1819 और 1821 के बीच शुरू हुआ था, जिस कारण इसे उत्तर भारत के सबसे पुरानी चर्चों में से एक माना जाता है। इस चर्च को शुरू करने वाले व्यक्ति रेव हेनरी फिशर (Rev. Henry Fisher) थे। वह ब्रिटिश सेना के लिए एक पादरी की तरह थे। वह इंग्लैंड की चर्च के भी पादरी थे। उन्होंने ही मेरठ में इस पवित्र ईसाई स्थल की स्थापना या शुरुआत की थी।
जॉन चर्च के अंदर एक बड़ा पाइप ऑर्गन (pipe organ) भी है, जो एक प्रकार का संगीत वाद्ययंत्र है। यह पाइप ऑर्गन अब काम नहीं करता, लेकिन चर्च के इतिहास के हिस्से के रूप में यह अभी भी मौजूद है। पूर्व में, इस ऑर्गन से संगीत बजाने के लिए लोगों को मैन्युअल (manual) रूप से धौंकनी चलानी पड़ती थी, जो बड़े वायु पंप की तरह होती है।
मेरठ की व्यस्त गलियों और शोर-शराबे के बीच, जॉन चर्च एक शांतिपूर्ण जगह है जहाँ लोग शांति और सुकून की तलाश में जा सकते हैं। हालाँकि यहां लोग पूरे वर्ष आते रहते हैं, लेकिन क्रिसमस, ईस्टर और गुड फ्राइडे (Christmas, Easter and Good Friday) जैसी विशेष ईसाई छुट्टियों के दौरान यहां विशेष रूप से भीड़ हो जाती है।
बाइबिल से संबंधित पुस्तकों "गॉस्पेल (Gospel)" से हमें पता चलता है कि ईसा मसीह के समय में सैनहेड्रिन (Sanhedrin) नामक एक धार्मिक नेताओं का एक कट्टरपंथी समूह था, जिसने फसह (Passover) नामक यहूदी त्योहार के दौरान यीशु को गिरफ्तार कर लिया था। इस समूह के नेता यीशु के संदेशों से घबरा गये थे। उन्होंने यीशु पर ईशनिंदा (ईश्वर के अनादर) का आरोप लगाया। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि यीशु ने ख़ुद को यहूदियों के राजा के रूप में घोषित कर दिया है। वे यीशु को पिलातुस (Pilate) नाम के एक व्यक्ति के पास ले गए। पिलातुस एकमात्र व्यक्ति था जो किसी को मौत की सज़ा देने का निर्णय ले सकता था। सैनहेड्रिन (Sanhedrin) ने पिलातुस के ऊपर दबाव बनाया कि वे यीशु को क्रूस पर चढ़ाने का आदेश दे दें। जिसके बाद यीशु को क्रूस पर कीलें ठोककर मार देने का आदेश दे दिया गया।
बाइबिल की किताबों में से एक, गॉस्पेल ऑफ मार्क (Gospel of Mark) में कहा गया है कि पिलातुस ने वास्तव में पहले तो यीशु का बचाव किया, लेकिन फिर उसने भीड़ की इच्छा के आगे घुटने टेक दिए।
उन्होंने अपनी किताब ऐसे समय में लिखी जब यहूदी रोमन शासन के खिलाफ विद्रोह कर रहे थे और ईसाई समूह यहूदी धर्म से अलग हो रहे थे और रोमनों को अपने साथ मिलाने की कोशिश कर रहे थे। मार्क वास्तव में इतिहास लिखने की कोशिश नहीं कर रहे थे। वह यहूदी युद्ध को एक खास तरीके से दिखाने की कोशिश कर रहे थे।
बाइबिल की एक अन्य पुस्तक, गॉस्पेल ऑफ मैथ्यू (Gospel of Matthew) में, यह कहा गया है कि पीलातुस ने भीड़ के सामने ख़ुद को निर्दोष बताया और कहा कि “मैं इस आदमी के खून से निर्दोष हूं; इसे आप ही देख लें।” यहूदी लोगों ने चिल्लाकर कहा, "उसका खून हम पर और हमारे बच्चों पर हो।" कहानी के इस हिस्से का इस्तेमाल लंबे समय से यहूदी लोगों को दोषी ठहराने के लिए किया जाता रहा है।
कहानी में फसह के दौरान एक कैदी को रिहा करने की परंपरा का भी उल्लेख मिलता है। हालाँकि ऐतिहासिक साक्ष्य इसका समर्थन नहीं करते हैं। इस परंपरा में, भीड़ ने यीशु के बजाय बरअब्बा नाम के एक अपराधी को रिहा करने का फैसला किया, लेकिन विद्वानों को इस बात का सबूत नहीं मिला है कि ऐसी कोई प्रथा कभी अस्तित्व में थी।
गुड फ्राइडे को आज ईसा मसीह के सूली पर चढ़ने और पुनरुत्थान के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। इस महत्वपूर्ण घटना को ईसाई धर्म की आधारशिला माना जाता है। यह अवसर मानवता के उद्धार के लिए किए गए अथाह बलिदान के लिए प्रतिबिंब और कृतज्ञता का समय होता है। गुड फ्राइडे की घटनाएँ मानवता के लिए ईश्वर के गहन प्रेम और मानव जाति के लिए किए गए बलिदान को उजागर करती हैं।
ईसाइयों के लिए पवित्र सप्ताह भी बहुत महत्वपूर्ण समय होता है क्योंकि यह वह समय है जब वे पृथ्वी पर यीशु के जीवन के अंतिम सप्ताह को याद करते हैं।
इस सप्ताह के प्रत्येक दिन का एक विशेष अर्थ है:
1. पाम रविवार (Palm Sunday): यह पवित्र सप्ताह का पहला दिन है। इस समय यीशु यरूशलेम पहुंचे और लोगों ने ताड़ की शाखाएं लहराकर और "होसन्ना" चिल्लाकर उनका स्वागत किया।
2. पवित्र सोमवार (Holy Monday): इस दिन, यीशु मंदिर गए और वहां सामान खरीद-बेच रहे लोगों को बाहर निकाल दिया। वह चाहते थे कि मंदिर में केवल प्रार्थना की जाए।
3. पवित्र मंगलवार (Holy Tuesday): इस दिन, यीशु ने एक बड़ा भाषण दिया (जिसे ओलिवेट प्रवचन कहा जाता है) जहां उन्होंने दुनिया के अंत सहित भविष्य के बारे में बात की।
4. पवित्र बुधवार (Holy Wednesday): इस दिन यीशु के अनुयायियों में से एक, जुडास इस्करियोती, चंद पैसों के लिए यीशु को धोखा देने के लिए सहमत हो गया। इसके अलावा, इसी दिन बेथनी की मैरी नाम की एक महिला ने यीशु के पैरों पर महंगा इत्र लगाया।
5. पुण्य गुरुवार (Maundy Thursday): इस दिन, यीशु ने अपने अनुयायियों (शिष्यों) के साथ अपना अंतिम भोजन (अंतिम भोज) किया था। उन्होंने यह दिखाने के लिए अपने अनुयायियों के पैर धोए कि नेताओं को दूसरों की सेवा करनी चाहिए। उन्होंने यूचरिस्ट "eucharist" (या पवित्र भोज) की परंपरा भी शुरू की, जहां उनके शरीर और रक्त को याद करने के लिए रोटी और शराब का उपयोग किया जाता है।
6. गुड फ्राइडे (Good Friday): यह एक दुःखद दिन था जब यीशु को गिरफ्तार कर लिया गया और फिर क्रूस पर मार दिया गया।
7. पवित्र शनिवार (Holy Saturday): यह वह दिन है जब यीशु की मृत्यु हुई। फिर, पवित्र सप्ताह के बाद, ईस्टर रविवार आता है। इस दिन ईसाई लोग यीशु के पुनः जीवित होने की ख़ुशी मनाते हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/ks9r2t5f
https://tinyurl.com/4n8989ab
https://tinyurl.com/sf5b6rk8
चित्र संदर्भ
1. मेरठ की सेंट जॉन चर्च और यीशु को सूली पर चढ़ाये जाने के दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (flickr,प्रारंग चित्र संग्रह)
2. सेंट जॉन चर्च सेमिटरी को दर्शाता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
3. बाइबिल से संबंधित पुस्तक गॉस्पेल को संदर्भित करता एक चित्रण (World History Encyclopedia)
4. पिलातुस एकमात्र व्यक्ति था जो किसी को मौत की सज़ा देने का निर्णय ले सकता था। को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)
5. क्रूस पर चढ़ाए गए ईसा मसीह को संदर्भित करता एक चित्रण (Wikimedia)
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