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हम सब जानते हैं कि, हमारे शहर मेरठ में संगीत और नृत्य को बहुत प्रशंसा और प्रोत्साहन मिला है। हम अपने शहर के लोक संगीत से भी परिचित हैं। माना जाता है कि, सितार और तबला की उत्पत्ति यहीं हुई है। लेकिन, हमारे देश भारत के अलग-अलग हिस्सों में लोक संगीत का प्रदर्शन भी अलग-अलग तरीके से किया जाता है। तो आइए आज, राजस्थानी लोक संगीत के बारे में जानते हैं, जो हमारे शहर में खूब पसंद किया जाता है। साथ ही, यह भी जानें कि, इन आधुनिक गीतों के युग में, लोक संगीत की विरासत को सहेजने की क्यों जरूरत है?
क्या आप जानते हैं कि, भारतीय लोक संगीत के शुरुआती अभिलेख वैदिक साहित्य में मिलते हैं, जो 1500 ईसा पूर्व के हैं। कुछ विद्वान और विशेषज्ञ तो यह भी सुझाव देते हैं कि, भारतीय लोक संगीत उतना ही पुराना हो सकता है, जितना कि यह देश है। उदाहरण के लिए, मध्य भारत के अधिकांश हिस्सों में लोकप्रिय लोक संगीत पांडवानी, महाभारत जितना पुराना माना जाता है। पांडवानी का विषय महाभारत के पात्र भीम की वीरता से संबंधित है। बाद में, लोक गीतों का उपयोग बड़े पैमाने पर मनोरंजक उद्देश्यों और शादियों, बच्चों के जन्म, त्योहारों आदि सहित विशेष कार्यक्रमों का जश्न मनाने के लिए किया जाने लगा। लोकगीतों का उपयोग प्रमुख सूचनाओं को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए भी किया जाता था।
इससे पता चलता है कि, भारत में कागज के आगमन से पहले इन गीतों ने एक प्रमुख भूमिका निभाई होगी। चूंकि, तब लोगों के पास प्राचीन जानकारी को संरक्षित करने के लिए कोई ठोस सामग्री नहीं थी, इसलिए, महत्वपूर्ण जानकारी को गीतों के रूप में प्रसारित करना अत्यंत महत्वपूर्ण था।
राजस्थान का लोक संगीत, अपनी सुंदर लय और शब्दों से किसी को भी मंत्रमुग्ध कर सकता है। यह लोक संगीत राजस्थानी लोगों की भावनाओं, कहानियों और दैनिक गतिविधियों से उत्पन्न हुआ है। इसका संगीत अंत तक श्रोताओं को अपनी मधुरता से बांधे रखता है। राजस्थानी संगीत में कई गतिविधियां भी शामिल हैं, जैसे नृत्य और गीतों के माध्यम से कहानी सुनाना, आदि। प्रसिद्ध राजस्थानी लोक संगीत में- पणिहारी, पाबूजी की फाच और मांड सर्वश्रेष्ठ हैं। आइए, अब इनके बारे में जानते हैं।
मांड: राजस्थान में गायन की एक लोकप्रिय शैली है। इसे न तो पूर्ण राग के रूप में स्वीकार किया जाता है, और न ही इसे स्वतंत्र रूप से गाये जाने वाले लोकगीतों में गिना जाता है। परंतु, यह ठुमरी या ग़ज़ल के समान शांत होता है। मांड गायक अपने राजस्थानी लोकगीत के साथ भारत के शास्त्रीय संगीत में बहुत योगदान देते हैं। यह राजस्थान के लोक संगीत की सबसे परिष्कृत शैली है, और भारत के शास्त्रीय संगीत में इसका सबसे विशिष्ट योगदान है।
संगीत की पणिहारी शैली का विकास राजस्थान की महिलाओं द्वारा किया गया था। चूंकि, राजस्थान की सूखी रेगिस्तानी भूमि में पानी एक दुर्लभ वस्तु है, जो महिलाएं दूर से पानी लाती हैं, उन्हें पणिहारी कहा जाता है। अतः अधिक काम करने वाली महिलाओं ने मधुर गाने बनाए, जो बहती नदियों और उछलती लहरों का बखान करते थे। जल्द ही, ऐसे कई पणिहारी गीत प्रसिद्ध और आम हो गये। यह शैली धीरे-धीरे इस राज्य की समृद्ध लोक नृत्य और संगीत संस्कृति का हिस्सा बन गई। साथ ही, इन गीतों की विषयवस्तु भी महिलाओं के दैनिक मामलों और उनके घरेलू कामों को शामिल करने के लिए बढ़ने लगी।
पाबूजी की फाच: राजस्थान का एक सुंदर लोक संगीत है, जो लगभग 14वीं शताब्दी के लोक नायक की स्मृति में प्रस्तुत किया जाता है। वह भोपा समुदाय का सबसे सम्मानित नायक है। यह प्रदर्शन कला पाबूजी के जीवन और वीरतापूर्ण गतिविधियों से जुड़ी है। पाबूजी की फाच लोक संगीत, महान पाबूजी के संघर्ष काल, वीरता और निडर रवैये को संगीतमय शैली में व्यक्त करता है। यह मूल रूप से भोपा लोगों द्वारा गाया जाने वाला एक काव्यात्मक गीत है।
दूसरी ओर, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गांवों में, सदियों से लोग अपनी बेटियों की शादी का जश्न मनाने के लिए ‘लाडली दो दो चीके डालन’ (हमारी लड़की के पास अब दो घर हैं) गाते हैं। लेकिन आज, नई पीढ़ी गैजेट्स(Gadgets), तकनीक और त्वरित मनोरंजन की दुनिया में व्यस्त है। इसलिए, आज ऐसे गाने हमेशा के लिए लुप्त होने की कगार पर हैं।
इस सांस्कृतिक विरासत के नुकसान को रोकने के लिए, स्कूल ऑफ नेचुरल साइंसेज(School of Natural Sciences), शिव नादर विश्वविद्यालय, ग्रेटर नोएडा के तीन विशेषज्ञों का एक समूह एक अनोखे मिशन पर निकला है। वे गौतमबुद्ध नगर जिले की दादरी तहसील के चितहरा ग्राम पंचायत के लोक गीतों का डिजिटल रिकॉर्ड बना रहे हैं।
हाल के वर्षों में, लोक गीतों के आधुनिक संगीत और मीडिया के प्रभाव से नष्ट होने के बावजूद भी, चितहरा गांव और इसके आसपास के क्षेत्र, आज भी इस परंपरा को जीवित रखने में कामयाब रहे हैं। इस क्षेत्र के लोग कृष्ण जन्माष्टमी, दशहरा, कथा, कीर्तन, जागरण, होली, विवाह, जन्म आदि अवसरों के दौरान लोक संगीत और नृत्य को बढ़ावा देने में सक्रिय भाग लेते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि, लोक गायन और श्रवण से उन्हें आंतरिक खुशी मिलती है। साथ ही, बुजुर्गों का कहना है कि, वे चाहते हैं कि, ग्रामीण समाज अपनी लोक परंपराओं को कायम रखे।
इसके अलावा, इसी परंपरा को बचाए रखने के लिए, सेंटर फॉर आर्म्ड फोर्सेस हिस्टोरिकल रिसर्च (Centre for Armed Forces Historical Research) ने एकल कलाकार की आवाज़ में, 33 कहानियों का दस्तावेजीकरण किया है। इसके साथ, राष्ट्रीय संग्रहालय संस्थान, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश की अमूर्त सांस्कृतिक संपत्ति के दस्तावेजीकरण का काम कर रहा है।
लोक गीतों और लोक भाषाओं को संरक्षित करने के कई तरीकें हो सकते हैं। हम सुनिश्चित कर सकते हैं कि, दूसरे लोग उन्हें सीखें और गायें। लोक गीतों और लोक भाषाओं को अनुकूलित किया जा सकता है। अधिक आधुनिक घटनाओं को प्रतिबिंबित करने के लिए लोक गीतों को अपडेट(Update) करने से, गीत के भीतर धुनों और सामान्य संदेश को जीवित रखने में मदद की जा सकती है। सामान्य संगीत संकेतन और आसानी से पढ़ें जाने वाले विषय इस प्रकार से लिखे या उपलब्ध होने चाहिए, जिनका उपयोग भविष्य की पीढ़ियों द्वारा आसानी से किया जा सके। साथ ही, परिणामी पुस्तक को यह सुनिश्चित करते हुए प्रकाशित किया जाना चाहिए कि, इसकी कुछ प्रतियां आसपास मौजूद या उपलब्ध हों।
संदर्भ
http://tinyurl.com/mr49r23v
http://tinyurl.com/yvarsdz7
http://tinyurl.com/y8eceb3x
http://tinyurl.com/rmn535x3
चित्र संदर्भ
1. राजस्थानी संगीत का प्रदर्शन करते गायकों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. भारत भवन भोपाल में पांडवानी का प्रदर्शन करती हुई तीजन बाई को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. राजस्थानी लोक कलाकारों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. अपने परिवार के साथ गायन करते एक राजस्थानी लोक कलाकार को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)