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'महिलाएं न केवल घर की रोशनी हैं, बल्कि इस रोशनी की लौ भी हैं।' भारत के पहले नोबेल पुरस्कार विजेता रबींद्रनाथ टैगोर के ये शब्द महिलाओं की जीवन की सभी चुनौतियों का सामना करने की क्षमता को दर्शाते हैं। ऊर्जा, दूरदर्शिता और प्रतिबद्धता से भरपूर महिलाओं ने प्राचीन काल से लेकर आज तक हर क्षेत्र में कामयाबी हासिल की है। हालाँकि, विभिन्न मुद्दों के कारण महिलाओं को अपने घर से ही कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। तो आइए आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर हम इन चुनौतियों को समझने का प्रयास करते हैं, और महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता एवं महत्व के विषय में जानते हैं। इसके साथ भारतीय समाज में महिलाओं की भूमिका का भी मूल्यांकन करने का प्रयास करेंगे।
हमारे देश भारत में संविधान के द्वारा महिलाओं को समान अधिकार दिए गए हैं, इसके बावजूद, अभी भी ऐसे कई मुद्दे हैं जिनका महिलाओं को अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में सामना करना पड़ता है। इसके साथ ही इतिहास में कहीं भी हमें ऐसे उदाहरण नहीं मिलते हैं जहां पुरुषों और महिलाओं के साथ बिना किसी भेदभाव के समान व्यवहार किया गया हो या उन्हें समान दर्जा दिया गया हो। प्राचीन काल से लेकर आज तक महिलाएं परंपरागत रूप से समाज में अपने अधिकारों और स्थिति के लिए लड़ती आई हैं। पुरुषों के समान अधिकार एवं समानता प्राप्त करने के लिए उन्हें बार-बार संघर्ष करना पड़ा है। आज भी कई महिलाओं को लिंग भेदभाव, यौन शोषण और उत्पीड़न, शिक्षा, बाल विवाह जैसी अनेकों समस्याओं का सामना करना पड़ता है। भारत में महिलाओं को देवी का दर्जा दिया जाता है। हालाँकि, जिन कठिनाइयों का उन्हें सामना करना पड़ता है वे इस विचार के अर्थ को पूरी तरह पलट देती हैं। एक ओर जहां लोग कन्या को देवी के रूप में पूजते हैं, वहीं दूसरी ओर उनके साथ निर्दयतापूर्वक दुर्व्यवहार करते हैं। जब लैंगिक समानता की बात आती है, तो कई माता-पिता बेटी के बजाय बेटे की इच्छा रखते हैं, क्योंकि उनकी तथाकथित "मानसिकता" के अनुसार, बेटा ही उनकी पीढ़ी को आगे बढ़ा सकता है। कानून के विरुद्ध होने पर भी कई बार लोग गर्भ में ही बच्चे का लिंग निर्धारित करने का प्रयास करते रहते हैं। और अवैध रूप से पता चलने पर, कि गर्भ में पुत्री है, वे गर्भपात भी करा देते हैं।
इसके अलावा महिलाओं को यौन शोषण और उत्पीड़न जैसे अपराधों का सामना भी करना पड़ता है। देश में अपराधों पर सरकारी रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 2021 में औसतन प्रति दिन 86 बलात्कार की दर से बलात्कार के 31,677 मामले दर्ज किए गए, जबकि महिलाओं के खिलाफ हिंसा की प्रति घंटे की दर से लगभग 49 घटनाएं दर्ज की गईं। कई बार तो महिलाओं को परिवार के सदस्यों या रिश्तेदारों से ही दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है। दिल्ली का निर्भया केस आज भी हम सभी के रोंगटे खड़े कर देता है। महिलाओं की शिक्षा के क्षेत्र में आज भी भारतीय परिवारों में रूढ़िवादिता देखी जा सकती है। गरीब एवं मध्यम वर्गीय परिवारों में जहां लड़के और लड़की की शिक्षा की बात आती है तो प्राथमिकता लड़के की शिक्षा को दी जाती है। फिर चाहे लड़की कितनी भी योग्य क्यों न हो। आज भी लोगों के मन में यह मानसिकता बसी हुई है कि लड़की तो पराया धन है और उसकी शिक्षा पर धन खर्च करना व्यर्थ है। अपने ही माता-पिता से यह सुनकर, कि वह पराया धन है, एक लड़की को कितना दुख होता होगा, इसका अंदाजा भी लगाना मुश्किल है। कई बार तो उन महिलाओं को भी, जिन्हें अपने क्षेत्र में सफल माना जाता है, लैंगिक भेदभाव एवं उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। कार्यालयों में कार्यरत महिलाओं को तरक्की के अवसर प्राप्त करने के लिए पुरुषों से ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। उद्यमी महिलाओं को महिला होने के कारण अपने व्यवसाय को बढ़ाने के लिए बहुत ही कम अवसर प्राप्त होते हैं।
अतः महिलाओं की इन समस्याओं को दूर करने एवं लैंगिक समानता हासिल करने के लिए महिला सशक्तिकरण अत्यंत आवश्यक है। महिला सशक्तिकरण के द्वारा महिलाओं को अपनी पूरी क्षमता उजागर करने का अवसर तो प्राप्त होगा ही, साथ ही यह भारत की प्रगति और विकास के लिए भी उत्प्रेरक है। इससे एक अधिक समावेशी और समृद्ध समाज को बढ़ावा मिलेगा। महिलाओं को सशक्त बनाने, उन्हें आवश्यक सहायता, संसाधन और आगे बढ़ने के अवसर प्रदान करने के लिए महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देकर सभी के लिए एक अधिक न्यायसंगत समाज बनाने की दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है। सामुदायिक विकास के लिए महिला सशक्तिकरण अत्यंत आवश्यक है क्योंकि इसके कई लाभ एवं सकारात्मक परिणाम हैं जो निम्न प्रकार हैं:
आर्थिक विकास: महिला सशक्तिकरण से समाज को आर्थिक विकास और समृद्धि की राह दिखाई जा सकती है। महिलाओं को शिक्षा, कौशल प्रशिक्षण और आर्थिक अवसरों तक पहुंच प्राप्त होने पर वे कार्यबल में भाग ले सकती हैं, व्यवसाय शुरू कर सकती हैं और स्थानीय अर्थव्यवस्था में योगदान कर सकती हैं। सशक्त महिलाएँ नवाचार, उत्पादकता और उद्यमशीलता को बढ़ावा देती हैं, जिससे आर्थिक विकास होता है और गरीबी में कमी आती है।
सामाजिक प्रगति: महिला सशक्तिकरण से महिलाओं के अधिकारों और अवसरों को सीमित करने वाले सामाजिक मानदंडों, दृष्टिकोण और प्रथाओं को चुनौती देकर और बदलकर सामाजिक प्रगति को बढ़ावा दिया जा सकता है। इसमें लैंगिक समानता को बढ़ावा देना, लिंग आधारित हिंसा को संबोधित करना, महिलाओं के अधिकारों को बढ़ावा देना और महिलाओं के मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाना शामिल है। जब महिलाएं सशक्त होती हैं, तो वे एक अधिक समावेशी और न्यायसंगत समाज बनाने में सक्रिय रूप से योगदान दे सकती हैं जहां सभी के अधिकारों का सम्मान किया जाता है।
शिक्षा और कौशल विकास: शिक्षा और कौशल विकास कार्यक्रमों के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाकर सामुदायिक विकास पर प्रत्यक्ष प्रभाव डाला जा सकता है। जब महिलाएं शिक्षित होती हैं, तो वे उचित निर्णय लेने में सक्षम होती हैं जिससे वे अपने परिवारों और समुदायों की भलाई में योगदान कर सकती हैं।
स्वास्थ्य और कल्याण: महिला सशक्तिकरण व्यक्तियों और समुदायों के स्वास्थ्य और कल्याण पर सकारात्मक प्रभाव डालता है। जब महिलाओं को स्वास्थ्य सेवाओं, प्रजनन अधिकारों और स्वास्थ्य संबंधी ज्ञान प्राप्त होता है, तो वे अपने और अपने परिवार के स्वास्थ्य के बारे में आवश्यक निर्णय ले सकती हैं। महिलाओं के स्वास्थ्य और कल्याण को सुनिश्चित करने से सार्वजनिक स्वास्थ्य परिणामों में सुधार होता है, मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी आती है और स्वस्थ समुदायों का निर्माण होता है।
नेतृत्व और शासन: नेतृत्व और शासन के क्षेत्र में महिलाओं को सशक्त बनाने से बेहतर शासन और प्रतिनिधित्व प्राप्त होता है। जब महिलाओं को अपने दृष्टिकोण, ज्ञान और कौशल का योगदान करने के समान अवसर मिलते हैं, तो सामुदायिक निर्णय अधिक समावेशी और विविध आवश्यकताओं तथा प्राथमिकताओं को प्रतिबिंबित करते हैं। स्थानीय शासन में महिलाओं की भागीदारी, जवाबदेही, पारदर्शिता और प्रभावी सामुदायिक विकास रणनीतियों को बढ़ावा देती है।
हालांकि अब महिला सशक्तिकरण के सफल प्रयासों के परिणामस्वरूप महिलाओं की सामाजिक भूमिका में बदलाव आया है। आजकल, महिलाओं की सामाजिक भूमिका घर की दहलीज से बाहर निकलकर पेशा अपनाने की दिशा में विकसित हो रही है। 20वीं सदी के मध्य से श्रम बाज़ार में महिलाओं की बढ़ती संख्या देखी जा सकती है। इसके अलावा, महिलाओं को राजनीति एवं नेतृत्व जैसी पुरुष-प्रधान भूमिकाओं में भी प्रमुख स्थानों पर देखा जा सकता है। 1965 के बाद से, व्यवसाय, चिकित्सा और कानून में विशेषज्ञता हासिल करने वाली महिलाओं का अनुपात काफी बढ़ गया है। लिंग आधारित सामाजिक परिवर्तन की प्रवृत्ति टेलीविजन, समाचार पत्र, और विज्ञापन जैसे मीडिया साधनों में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है। आधुनिक दुनिया में, महिलाओं ने अपने लिए पारंपरिक सामाजिक भूमिकाओं के अलावा, एक नई भूमिका बनाई है: जो खुद पर केंद्रित है, आत्मविश्वासी है, कामकाजी, पेशेवर या एक व्यवसायी महिला है।
संदर्भ
https://shorturl.at/HKP25
https://shorturl.at/cpHTV
https://shorturl.at/cmLP6
चित्र संदर्भ
1. विदेश में हवाई युद्ध खेल में भाग लेने वाली भारतीय वायु सेना की पहली महिला फाइटर पायलट बनीं अवनी चतुवेर्दी को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. बाल विवाह को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. महिला के खिलाफ हिंसा को संदर्भित करता एक चित्रण (Needpix)
4. प्रताड़ित महिला को संदर्भित करता एक चित्रण (pexels)
5. एक चुनावी रैली को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. एक महिला किसान को दर्शाता एक चित्रण (rawpixel)
7. देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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