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हमारे मोबाइल फोन से लेकर हमारे घर में किताबों की अल्मारी तक, और हमारे स्थानीय कार्यालय पार्क (business parks / business center buildings) की ग्लास बॉक्स वास्तुकला (glass box architecture), अर्थात अधिकतर ऑफिस बिल्डिंग में बहुतयात में कांच का उपयोग, इन सभी की वास्तुकला में एक वस्तु समान है - वो है एक शताब्दी पुरानी बॉहॉस (Bauhaus) डिज़ाइन विचारधारा। इस विचारधारा की उत्पत्ति जर्मनी में हुई थी । बॉहॉस एक कला विद्यालय है जिसने आधुनिक युग में वास्तुकला और डिजाइन के क्षेत्र में क्रांति ला दी। बॉहॉस विचारधारा ने ललित कलाओं के साथ शिल्प को जोड़कर दुनिया की कायापलट करने का कार्य किया। हमारे देश भारत में भी कई इमारतों से लेकर वस्तुओं तक की डिजाइन में बॉहॉस शैली को देखा जा सकता है। लेकिन बॉहॉस विचारधारा भारत कैसे पहुंची और भारत में इसका प्रभाव क्या रहा? आइए आज ऐसे ही कुछ प्रश्नों के उत्तर ज्ञात करने का प्रयास करते हैं।
स्वतंत्रता से पूर्व जहाँ एक तरफ भारत औपनिवेशिक शासन से बाहर निकलने के लिए जद्दोजहद कर रहा था, वही भारत में शिक्षा के क्षेत्र में पश्चिमी विचारधाराओं और यूरोपीय सौंदर्यशास्त्र के साथ तकनीक का दबदबा भी कायम था। जिसके कारण युवा छात्र उच्च शिक्षा के लिए या तो ब्रिटिश विद्यालयों में दाखिला लेते थे या विदेश चले जाते थे। ऐसे में देश को विकास और प्रगति की दिशा में आगे बढ़ाने के लिए, टैगोर और नेहरू जैसे प्रभावशाली लोगो ने प्रगतिशील और प्रभावी संस्थानों तथा उद्योग के साथ भारतीय सौंदर्य और अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने की दिशा में कार्य करना प्रारंभ किया।
1913 में, महान कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर ने साहित्य में अपने नोबेल पुरस्कार (Nobel Prize) की पुरस्कार राशि से, शांतिनिकेतन, कलकत्ता में एक कला विद्यालय 'विश्वभारती विश्वविद्यालय' (Visva-Bharati University) की स्थापना की। 'विश्व भारती विश्वविद्यालय' की स्थापना न केवल ललित और व्यावहारिक कलाओं को एकीकृत करने, बल्कि दर्शन और कृषि के अध्ययन को भी ध्यान में रखकर की गई थी। जल्द ही विश्व भारती में बॉहॉस विद्यालय द्वारा प्रचारित विचारधाराओं की गूंज प्रतिध्वनित होने लगी। 1921-1923 तक शांतिनिकेतन में भारतीय और यूरोपीय कला के शिक्षक रहे ऑस्ट्रियाई कला इतिहासकार स्टेला क्रामरिश (Stella Kramrisch), ने बॉहॉस विद्यालय को बंगाल स्कूल के प्रमुख भारतीय कलाकारों के साथ एक संयुक्त प्रदर्शनी के लिए आमंत्रित किया। दिसंबर 1922 में कलकत्ता में ‘द इंडियन सोसाइटी ऑफ ओरिएंटल आर्ट’ (The Indian Society of Oriental Art) की 14वीं वार्षिक प्रदर्शनी में 'बॉहॉस' के प्रतिनिधियों द्वारा चित्रकलाओं एवं ग्राफिक्स का प्रदर्शन किया गया, जिसे भारत में आधुनिकतावाद के प्रवेश बिंदु के रूप में जाना जाता है। इस बीच, 1920 के दशक में बॉम्बे में ‘इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ आर्किटेक्ट्स’ (Indian Institute of Architects), की स्थापना हुई, जो वास्तुकला पाठ्यक्रम के लिए एकमात्र प्रशिक्षण संस्थान था। इसके बाद बॉम्बे में ही क्लॉड बैटली (Claude Batley) के निर्देशन में सर जेजे स्कूल (Sir JJ School) की स्थापना की गई। इन दोनों स्कूलों ने वास्तुकला के क्षेत्र में एक आयामी शिक्षा निर्धारित की। 1947 तक, भारत में लगभग 300 प्रशिक्षित वास्तुशिल्पकार थे।
स्वतंत्रता के बाद भारत के नए लोकतंत्र में औद्योगिक उत्पादन में सहायता प्रदान करने और विकास योजनाओं को सुविधाजनक बनाने के लिए एक डिजाइन स्कूल और अनुसंधान संस्थान की आवश्यकता महसूस की गई। इसके लिए समाजवाद के एक उपकरण के रूप में डिजाइन की बॉहॉस अवधारणा को उपयुक्त माना गया। और इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए, भारत का पहला डिज़ाइन संस्थान, ‘नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ डिज़ाइन’ (National Institute of Design), 1961 में अहमदाबाद में स्थापित किया गया जो काफी हद तक बॉहॉस विचारधारा से प्रेरित था। इस संस्थान के माध्यम से अहमदाबाद में कुछ ऐतिहासिक इमारतों के रूप में बॉहॉस शैली ने अपना छायांकन प्राप्त किया। साथ ही दिल्ली, कलकत्ता और मुंबई में भी बॉहॉस शैली में इमारतों का निर्माण हुआ।
अहमदाबाद टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज़ रिसर्च एसोसिएशन बिल्डिंग (Ahmedabad Textile Industry's Research Association Building (ATIRA):
1949-1953 के बीच निर्मित इस भवन में बॉहॉस प्रभाव की स्पष्ट छाप दिखाई देती है। इस इमारत को कविंदे (Kavinde) द्वारा डिजाइन किया गया था। इस इमारत के साथ उन्होंने भारत में लचीले कंक्रीट कॉलम और बीम ग्रिड पेश किए।
मेहसाणा डेयरी, गुजरात:
गुजरात में अहमदाबाद से 75 किलोमीटर दूर स्थित, मेहसाणा डेयरी भारतीय वास्तुकला में बॉहॉस प्रभाव की एक मौलिक व्याख्या है। इस इमारत के निर्माण में पहली बार वफ़ल स्लैब (waffle slab) संरचना का उपयोग किया गया। यह डिजाइन 1961 में अहमदाबाद में बैंक ऑफ इंडिया की इमारत के निर्माण में उपयोग की गई।
गांधी घाट स्मारक, बैरकपुर:
सभी धर्मों के प्रति महात्मा गांधी के प्रेम और सहिष्णुता को दर्शाने के लिए इसके वास्तुकार रहमान ने एक ऐसी संरचना की कल्पना की जो सामंजस्यपूर्ण और सौंदर्यपूर्ण रूप से भारत में प्रचलित धर्मों - हिंदू धर्म, इस्लाम और ईसाई धर्म का प्रतीक हो। इसके परिणामस्वरूप एक ऐसी इमारत का निर्माण हुआ, जिसमे एक मंदिर, मस्जिद और चर्च तीनों की विशेषताओं को मिश्रित किया गया था। इस संरचना को देखकर तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने हबीब रहमान को दिल्ली में CPWD में एक पद नियुक्त कर दिया।
नया सचिवालय (The New Secretariat):
सचिवालय बॉहॉस शैली में निर्मित एक पंद्रह मंजिला इमारत है जो ज्यामितीय आकृतियों, ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज रेखाओं के संयोजन को स्पष्टता के साथ दर्शाती है। इमारत में तीन ब्लॉक हैं जिन्हें इस तरह से व्यवस्थित किया गया है कि इमारत में अधिकतम हवा और प्राकृतिक प्रकाश का आवागमन बना रहे।
नेहरू विज्ञान केंद्र (Nehru Science Centre):
1978-1980 के बीच मुंबई में निर्मित ‘नेहरू विज्ञान केंद्र’ को कविंदे द्वारा डिजाइन किया गया था। उस समय यह इमारत शहर की सबसे प्रतिष्ठित सार्वजनिक इमारतों में से एक थी।
संदर्भ
https://rb.gy/4l193n
https://shorturl.at/hrBK2
https://shorturl.at/byAP0
चित्र संदर्भ
1. बैंगलोर में नए सचिवालय को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. कथरीना गेन्स्लर, बॉहॉस सीढ़ी, फोटोइंस्टॉलेशन को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. शांति निकेतन में कला भवन को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. बॉहॉस कला के मुख्य तत्वों को दर्शाता चित्रण (Store norske leksikon)
5. अहमदाबाद टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज़ रिसर्च एसोसिएशन बिल्डिंग को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
6. मेहसाणा डेयरी, गुजरात को संदर्भित करता एक चित्रण (wallpaperflare)
7. गांधी घाट स्मारक, बैरकपुर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
8. बैंगलोर में नए सचिवालय को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
9. नेहरू विज्ञान केंद्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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