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गाँधी जी से प्रेरित होकर,ईसाई मिशनरी वेरियर एल्विन बन गए थे, ‘भारतीय आदिवासियों के रक्षक’

मेरठ

 01-03-2024 09:26 AM
सिद्धान्त 2 व्यक्ति की पहचान

मध्यकालीन युग से लेकर आज तक हमारे देश भारत में ऐसे मामले कई बार देखे गए हैं जिनमें अलग अलग धर्मों के लोगों द्वारा अन्य धर्म के लोगों पर धर्म परिवर्तन के लिए दबाव डाला गया है। लेकिन 1927 में भारत आए एक ईसाई मिशनरी वेरियर एल्विन (Verrier Elwin) ने गांधी जी के शिष्य बनने के बाद अपना मिशनरी कार्य त्याग दिया। आज भारतीय जनजातियों पर शोध करने वाले मानवविज्ञानियों के बीच वेरियर एल्विन का विशेष स्थान है। तो आइए वेरियर एल्विन के विषय में विस्तार से जानते हैं। इसके साथ ही हमारे राज्य उत्तर प्रदेश के जनजातीय संग्रहालय के विषय में भी जानते हैं। वेरियर एल्विन का जन्म 1902 में डोवेर, ब्रिटेन (Dover, Britain) में हुआ था और इनकी शिक्षा ऑक्सफोर्ड (Oxford) में हुई थी। वे 1927 में ईसाई धर्म का स्वदेशीकरण करने के लिए भारत आए थे। लेकिन महात्मा गाँधी के विचारों से प्रेरित होकर, उन्होंने चर्च छोड़ दिया और मध्य भारत के आदिवासियों के बीच काम करना शुरू कर दिया। 1930 से 1940 के दशक के दौरान, उन्होंने आदिवासी जीवन, लोककथाओं और कला पर अपने लेखों में विस्तार से लिखा। इसके साथ ही एल्विन ने व्यक्तिगत जनजातियों पर पुस्तकों की एक श्रृंखला प्रकाशित की।
आज़ादी के बाद एल्विन ने भारतीय नागरिकता ग्रहण कर ली। 1954 में, उन्हें नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी (North East Frontier Agency (NEFA) का मानवविज्ञान सलाहकार नियुक्त किया गया। यह क्षेत्र भारत और चीन के बीच की सीमा पर स्थित था। यहाँ एल्विन और उनके सहयोगियों ने भूमि और जंगलों में आदिवासी अधिकारों की रक्षा करने, विभिन्न जनजातियों के बीच संपर्क भाषा के रूप में हिंदी को बढ़ावा देने तथा हिंदू और ईसाई मिशनरियों दोनों को बाहर रखने के लिए कड़ी मेहनत की। उनके प्रयासों के, परिणामस्वरूप ही जनजातीय समुदायों द्वारा अरुणाचल प्रदेश में कभी कोई बड़ा विद्रोह नहीं हुआ। भारतीय इतिहासकार रामचन्द्र गुहा द्वारा अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'मेकर्स ऑफ मॉडर्न इंडिया' (Makers of Modern India) में वेरियर एल्विन को ‘भारतीय आदिवासियों का रक्षक’ बताया गया है। भारत के चौथे गृह मंत्री गोविंद बल्लभ पंत भी ऐसे ही विचार व्यक्त करते हुए लिखते हैं - ''पिछले 20 वर्षों में डॉ. एल्विन की महान उपलब्धि यह है कि पूरे भारत में लोग आदिवासियों को सम्मान की दृष्टि से देखें। पहले हम उन्हें जंगली जानवरों के रूप में देखते थे। लेकिन उन्होंने हमें दिखाया है कि उनकी अपनी संस्कृति और कलाएं हैं।” एल्विन ने NEFA के प्रशासनिक कर्मचारियों के लिए नीति तैयार करने और इसके क्षेत्र के लोगों के बारे में तथ्यों से नए या अनभिज्ञ NEFA कर्मियों को परिचित कराने के लिए 'ए फिलॉसफी फॉर नेफा' (A Philosophy for NEFA) नामक लेख लिखा। उस वक़्त के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने नीति निर्माताओं को एल्विन द्वारा सुझाए गए तथ्यों को ध्यान में रखकर नीति निर्माण का आदेश दिया। 'ए फिलॉसफी फॉर नेफा' में सुझाई गई एल्विन की सलाह का पालन करते हुए, नेहरू ने नेफा के लिए पंचशील सिद्धांत तैयार किए:
1. लोगों को अपनी प्रतिभा के अनुरूप विकास करना चाहिए और हमें उन पर कुछ भी थोपने से बचना चाहिए। हमें उनकी अपनी पारंपरिक कला और संस्कृति को हर तरह से प्रोत्साहित करने का प्रयास करना चाहिए।
2. भूमि और वनों में आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए।
3. हमें प्रशासन और विकास का कार्य करने के लिए अपने लोगों को प्रशिक्षित करने और उनकी एक टीम बनाने का प्रयास करना चाहिए। निस्संदेह, बाहर से कुछ तकनीकी कर्मियों की आवश्यकता होगी, विशेषकर शुरुआत में। लेकिन हमें जनजातीय क्षेत्र में बहुत अधिक बाहरी लोगों को लाने से बचना चाहिए।
4. हमें इन क्षेत्रों का अत्यधिक प्रशासन नहीं करना चाहिए या उन पर अनेक योजनाओं का बोझ नहीं डालना चाहिए। हमें उनकी सामाजिक और सांस्कृतिक संस्थाओं के प्रति प्रतिद्वंद्विता के बजाय उनके माध्यम से काम करना चाहिए।
5. हमें परिणामों का आकलन आँकड़ों या खर्च की गई धनराशि से नहीं, बल्कि विकसित हुए मानव चरित्र की गुणवत्ता से करना चाहिए। 'ए फिलॉसफी फॉर नेफा' में प्रकट विचारों की कई महत्वपूर्ण लोगों, जैसे कि भारत के उपराष्ट्रपति सर सर्वपल्ली राधाकृष्णन, बिहार के राज्यपाल डॉ जाकिर हुसैन, गृह मंत्री गोविंद बल्लभ पंत, यूनाइटेड किंगडम की उच्चायुक्त विजयलक्ष्मी पंडित, और उद्योगपति जे.आर.डी. टाटा, ने सराहना और प्रशंसा की। क्या आप जानते हैं कि हमारे राज्य उत्तर प्रदेश में भी जनजातियों के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए जल्द ही पहला जनजातीय संग्रहालय खुलने वाला है। यह संग्रहालय बलरामपुर जिले के थारू आबादी वाले क्षेत्र इमिलिया कोडर गांव में 5.5 एकड़ में बनाया जा रहा है और इसका नाम थारू जनजाति संग्रहालय रखा गया है। थारू जनजाति की जीवंत और विविध संस्कृति तथा जीवनशैली पर केंद्रित इस संग्रहालय से राज्य की पर्यटन क्षमता को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। उत्तर प्रदेश की सबसे उन्नत जनजाति मानी जाने वाली थारू जनजाति बदलते समय के साथ विकसित होने के साथ साथ आज भी अपनी जड़ों से अच्छी तरह से जुड़ी हुई है। इस जनजाति ने आज भी अपनी परंपराओं और संस्कृति को बरकरार रखा है। इस संग्रहालय के माध्यम से थारू जनजाति के लोगों के विषय में और भी तथ्यों को उजागर किया जाएगा।
बलरामपुर के जनजातीय संग्रहालय की तर्ज पर लखनऊ, सोनभद्र और लखीमपुर खीरी में भी ऐसे ही जनजातीय संग्रहालय स्थापित किए जाएंगे। और कन्नौज जिले में बच्चों के लिए एक संग्रहालय भी बनाया जाएगा। इसके अलावा संस्कृति विभाग द्वारा राजकीय अभिलेखागार, लखनऊ में स्वतंत्रता की गाथा पर आधारित एक गैलरी 'आज़ादी की गौरवगाथा' के निर्माण का भी प्रस्ताव दिया है। इसके साथ ही मेरठ और गोरखपुर में प्राकृतिक विज्ञान संग्रहालय भी स्थापित किए जाएंगे।

संदर्भ
https://shorturl.at/tuMP3
https://shorturl.at/hnrTU
https://shorturl.at/PUX14

चित्र संदर्भ

1. एक आदिवासी लड़की और ईसाई मिशनरी वेरियर एल्विन की पुस्तक को दर्शाता एक चित्रण (Wallpaper Flare, amazon)
2. वेरियर एल्विन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. "वेरियर एल्विन की जनजातीय दुनिया" नामक चित्र को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. ए फिलॉसफी फॉर नेफा' को संदर्भित करता एक चित्रण (amazon)
5. अपने बच्चे के साथ एक आदिवासी महिला को दर्शाता एक चित्रण (wallpaperflare)

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