आधुनिक वर्गीकरण प्रणाली के पिता कार्ल लिन्नेयस ने प्रकृति को पादप और जंतुजगत में वर्गीकृत किया था। कवक उसमें से पादप में गिने जाते थे लेकिन आगे चलकर व्हिटेकर नाम के शास्त्रज्ञ ने जीव जगत को पांच जगत प्रणाली में बांटा जिसमें से एक कवक जगत भी था।
कवक अथवा फफूंद जीवों का एक विशाल समुदाय है जो ससीमकेंद्रकी (युकार्योटिक: Eukaryotic) जीव समूह में शामिल हैं। इनमें बहुतायता से परजीवी तथा मृत पदार्थों पर भोजन के लिए निर्भर होने वाले जीव शामिल हैं क्योंकि इनमें पर्णहरित नहीं होता। इनकी कोशिका भित्ति में मिलने वाले काईटीन की वजह से इन्हें अलग जगत में वर्गीकृत किया गया क्यूंकि आम तौर पर पादप जगत के जीवों की कोशिका भित्ति सेल्यूलोस की बनी होती है। इनमें ख़मीर, फफूंद एवं कुकुरमुत्ता और उनके प्रकार शामिल हैं। इनकी काय सरंचना बहुकोशिक अथवा अदृढ़ ऊतक होती है तथा इनके कोशिकाओं में केन्द्रक झिल्ली उपस्थित होती है। बहुत बार फफूंद सेहत के लिए घातक होते हैं लेकिन इनका सही इस्तेमाल करने पर ये उपयोगी भी साबित होते हैं।
ख़मीर का इस्तेमाल किण्वन प्रक्रिया में पावरोटी बनाने के लिए होता है तथा कुकुरमुत्ते के कुछ प्रकार खाने के लिए भी इस्तेमाल होते हैं। कुकुरमुत्ता विटामिन बी एवं ड का एक अच्छा स्त्रोत है तथा इसमें 92% पानी एवं सिर्फ 1% मेद होता है। कुकुरमुत्ते जागतिक स्तर पर बहुत से परम्परागत पाककला का हिस्सा है तथा उसके कुछ मनोसक्रिय प्रकार देशी धार्मिक तथा अलौकिक अनुष्ठानों में भी इस्तेमाल किये जाते हैं। कुकुरमुत्ते की जग भर में बहुत मांग होती है।
मेरठ के कृषि विज्ञानं केंद्र और मेरठ की राज्य सरकार कुकुरमुत्ते की खेती के लिए किसानों को बढ़ावा दे रही है। इसकी कृषि कोई भी कर सकता है तथा इसके लिए ना ज्यादा पैसा लगता है और ना ही ज्यादा जगह, घर के पीछे या किसी कोने में भी आप इसकी कृषि कर सकते हैं और इससे कमाई भी काफी अच्छी होती है। सरकार द्वारा कुकुरमुत्ते की खेती करने के लिए आर्थिक मदद भी मिलती है।
1. मेरठ सी डेप 2007
2. जीवजगत का वर्गीकरण, एनसीईआरटी https://biologyaipmt.files.wordpress.com/2016/06/ch-23.pdf
3. रिफ्रेशर कोर्स इन बॉटनी: सी एल सॉवह्ने
4. https://hi.wikipedia.org/wiki/फफूंद
5. http://meerut.kvk4.in/collaboration.html
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