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आज ग्लोबल वार्मिंग के कारण दुनिया भर में बाढ़, तूफान, सूखा और गर्मी की लहरें जैसी जलवायु-संबंधी प्राकृतिक आपदाएँ बढ़ रही हैं। बाढ़ प्राकृतिक आपदाओं का सबसे आम प्रकार है, और यह तब होती है, जब पानी का अतिप्रवाह सूखी भूमि को डुबो देता है। अक्सर, भारी वर्षा, बर्फ के तेजी से पिघलने या तटीय क्षेत्रों में उष्णकटिबंधीय चक्रवात या सुनामी से आने वाले तूफान के कारण बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
बाढ़ व्यापक तबाही का कारण बन सकती है, जिसके परिणामस्वरूप, निजी संपत्ति और महत्वपूर्ण सार्वजनिक बुनियादी ढांचे को नुकसान के साथ साथ जीवन की हानि तक हो सकती है। वर्ष 1998 से 2017 के बीच, दुनिया भर में बाढ़ से 2 अरब से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं। जो लोग बाढ़ प्रभावी मैदानों या गैर-प्रतिरोधी इमारतों में रहते हैं, या फिर, जहां बाढ़ के खतरे के बारे में चेतावनी प्रणालियों और जागरूकता की कमी है, वे बाढ़ के जोखिमों से सबसे अधिक असुरक्षित होते हैं।
वर्तमान समय में, जलवायु परिवर्तन के कारण अत्यधिक वर्षा की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि होने से बाढ़ की आवृत्ति और तीव्रता में निरंतर वृद्धि हो रही है। हमारा देश भारत भी बाढ़ के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। हमारे देश का 40 मिलियन हेक्टेयर से अधिक भौगोलिक क्षेत्र बाढ़ प्रवण है।
देश में बाढ़ के प्रति चिंताएं बढ़ती जा रही हैं, क्योंकि, बाढ़ से संबंधित क्षति में आज निरंतर वृद्धि देखी जा रही है। 1996 से 2005 के वर्षों की अवधि में, देश में वार्षिक बाढ़ से होने वाली औसत क्षति 4745 करोड़ रुपए थी। जबकि, इससे पहले 53 वर्षों में वार्षिक बाढ़ से होने वाली क्षति का औसत 1805 करोड़ रुपए था। दरअसल, इसके लिए कई कारण जिम्मेदार हो सकते हैं, जिनमें जनसंख्या में वृद्धि, तेजी से शहरीकरण, बाढ़ के मैदानों में बढ़ती विकासात्मक और आर्थिक गतिविधियां और ग्लोबल वार्मिंग (Global warming) शामिल हैं।
हमारे देश में, 80% वर्षा जून से सितंबर महीनों में होती है। बारिश के दौरान नदियों के जल में जलग्रहण क्षेत्रों से भारी तलछट आता है, जो नदियों की वहन क्षमता को प्रभावित करता है और जल निकासी को बाधित करता है, जिससे नदियों के तटों के कटाव के कारण बाढ़ की स्थिति उत्पन्न होती है। चक्रवात, चक्रवाती परिसंचरण और बादल फटने से भी अचानक बाढ़ आ सकती है, और भारी नुकसान होता है। बाढ़ के कारण लगातार और बड़े पैमाने पर जानमाल का नुकसान तथा सार्वजनिक और निजी संपत्ति को नुकसान यह दर्शाता है कि हमें आज भी, बाढ़ के प्रति प्रभावी प्रतिक्रिया विकसित करनी है। इसीलिए, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की स्थापना की गई है, जो देश में किसी भी आपदा पर काम करता है।
बाढ़ के प्रभाव अक्सर ही दीर्घकालिक होते हैं, और इससे प्रभावित समुदायों के लिए ये बहुत महंगे, विघटनकारी और कष्टकारी हो सकते हैं। बाढ़ का सबसे तात्कालिक खतरा उन लोगों को होता है, जो प्रभावित क्षेत्रों में पैदल या वाहनों में यात्रा कर रहे हैं। लोगों को बाढ़ के पानी से, विशेषकर, तेज बहते पानी से गंभीर या घातक खतरा होता है।
बाढ़ के सबसे महत्वपूर्ण प्रभावों में से एक, घरों और व्यक्तिगत सामानों की क्षति और विनाश है। इसके परिणामस्वरूप, अक्सर अपनी संपत्ति का नुकसान होने सेलोगों को दुःख, तनाव और उदासी जैसी मानसिक परेशानियों का सामना भी करना पड़ता है। कई बार लोगों को बीमा का दावा करने और बाढ़ के बाद मरम्मत, पुनर्निर्माण या उन्हें स्थानांतरित करने के लिए अतिरिक्त दीर्घकालिक कठिनाइयां झेलनी पड़ती हैं। बाढ़ के कारण अक्सर बुनियादी ढांचे को नुकसान होता है। इसमें अपशिष्ट जल प्रणाली, बिजली, मल वाहन प्रणाली और दूरसंचार जैसी महत्वपूर्ण सेवाओं और बुनियादी ढांचे को नुकसान हो सकता है। गंभीर बाढ़ में सड़कें, रेलवे, ट्रैमलाइन (Tramlines) और बस सेवाएं प्रभावित हो सकती हैं, या पूरी तरह से बंद हो सकती हैं। साथ ही, अक्सर सड़क के कुछ हिस्से और सहायक बुनियादी ढांचे, जैसे कि, ट्रैफिक लाइट और साइनेज (Signage) बह सकते हैं या क्षतिग्रस्त हो सकते हैं। दरअसल, बुनियादी ढांचे की मरम्मत में काफी समय लगता है, जिससे, सार्वजनिक असुविधा और खर्च बढ़ सकता है।
बाढ़ का एक द्वितीयक प्रभाव, बाढ़ के पानी का रसायनों और सीवेज से प्रदूषित होना हो सकता है। इससे लोगों और जानवरों के स्वास्थ्य को खतरा हो सकता है, और जलजनित बीमारियों के होने का खतरा बढ़ सकता है। कृषि क्षेत्र में, बाढ़ से फसलें बर्बाद हो सकती हैं, मूल्यवान ऊपरी मिट्टी नष्ट या दूषित हो सकती है, और पशुधन का नुकसान हो सकता है। इन सभी प्रभावों से किसानों को वित्तीय नुकसान होने के साथ साथ भावनात्मक क्षति भी पहुंचती हैं। जबकि, फसलों की बर्बादी होने एवं उपज की लागत उच्च होने के कारण आम जनता के लिए, भोजन की कमी और उच्च कीमतें हो सकती हैं।
अंततः बाढ़ का सामाजिक जीवन पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। बाढ़ के कारण सार्वजनिक आयोजन, खेल आयोजन और उत्सव रद्द हो सकते हैं। इससे सामाजिक मनोबल पर असर पड़ने के साथ-साथ, प्रभावित क्षेत्रों के लिए पर्यटन जैसे आय के स्रोत भी बंद हो सकते हैं।।
अब आइए जानते हैं कि, बाढ़ की रोकथाम कैसे की जा सकती है। बांधों के निर्माण से नदियों में पानी के प्रवाह को नियंत्रित किया जा सकता है। जब बारिश होती है, तो बांधों में अतिरिक्त वर्षा जल को संग्रहित करके पानी को विनियमित तरीके से छोड़ा जा सकता है। इससे बांधों में भारी प्रवाह होने पर बाढ़ को रोका जा सकता है।
अतिरिक्त पानी को नहरों या बाढ़ मार्गों पर पुनर्निर्देशित करके भी बाढ़ को नियंत्रित किया जा सकता है। बदले में यह, पानी को अस्थायी तौर पर जमा करने वाले तालाबों या पानी के अन्य निकायों में मोड़ देता है, जहां बाढ़ का जोखिम या प्रभाव कम होता है।
भारी बारिश के दौरान, पेड़ बाढ़ के खतरे को कम करते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि, पेड़ बाढ़ के पानी के बहाव में बाधा के रूप में कार्य करते है। जबकि, पेड़ मिट्टी के कटाव को भी रोकते हैं, नदियों में जाने वाली तलछट को कम करते हैं और जमीन में पानी के अवशोषण को बढ़ाते हैं।
पानी को संग्रहित करने, इसके बहाव को कम करने और हानिकारक कृषि अपवाह को पुनर्चक्रित करने की क्षमता के लिए बाढ़ क्षेत्र के महत्व को समझकर, उचित उपाय करने से भी फरक पड़ सकता है।
संदर्भ
http://tinyurl.com/mr3xz7p5
http://tinyurl.com/55rxmnxe
http://tinyurl.com/2azr88h5
http://tinyurl.com/yr8ppf5j
चित्र संदर्भ
1. बाढ़ के बीच में साइकिल चलाते बच्चों को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. बाढ़ के बीच में खड़े लोगों को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
3. बचाव कार्य करती NDRF की टीम को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. 2011 में बिहार में आई बाढ़ के दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. बाढ़ का जायज़ा लेते हेलीकॉप्टर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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