मेरठ - लघु उद्योग 'क्रांति' का शहर












चलिए समझें कैसे, मेरठ के लोग, रोज़ाना अनजाने में, विभिन्न ब्रांडों को सफल बनाते हैं ?
आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक
Modern State: 1947 to Now
17-04-2025 09:20 AM
Meerut-Hindi

कोई भी कपड़ा या वस्त्र ब्रांड, अपने अद्वितीय मूल्य प्रस्ताव को संप्रेषित करते हुए, प्रतियोगियों से खुद को अलग करके, बाज़ार में अपनी वांछित स्थिति को स्थापित करने हेतु विज्ञापनों का लाभ उठाते हैं। यह संदेश, लक्षित अभियानों और रणनीतिक मीडिया विकल्पों के माध्यम से प्राप्त किया जाता है। यह जानना आश्चर्यजनक तथ्य नहीं होगा कि, मेरठ के कई नागरिकों ने टाटा चाय द्वारा ‘जागो रे’ और बिबा द्वारा ‘परिवर्तन (Change)’ जैसे विज्ञापन देखे होंगे। इसलिए आज हम, किसी ब्रांड की विपणन और पोज़िशनिंग के बीच, बुनियादी अंतर को समझकर लेख को शुरू करेंगे। फिर, हम इस बात पर कुछ प्रकाश डालेंगे कि, ब्रांड पोज़िशनिंग (Positioning), उपभोक्ताओं को किसी ब्रांड को चुनने में कैसे मदद करती है। अंत में, हम कुछ भारतीय ब्रांडों के बारे में बात करेंगे, जिन्होंने उद्देश्य-संचालित ब्रांड कंटेंट (Brand Content) के साथ एक छाप छोड़ी है।
मार्केटिंग और ब्रांड पोज़िशनिंग के बीच मौजूद अंतर:
ब्रांडिंग (Branding) शब्द, एक मूल ब्रांड छवि बनाने के लिए अद्वितीय लोगो, टैगलाइन या नारा बनाने को संदर्भित करता है। आप किसी भी ब्रांड के लोगो एवं नारे के बारे में सोच सकते हैं। ये दो तत्व, किसी भी कंपनी के लिए अद्वितीय होते हैं, और तुरंत पहचानने योग्य होते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य, ग्राहकों के दिमाग में ब्रांड की एक विशिष्ट छवि या विचार बनाना है। उदाहरण के लिए, इससे अपने प्रतिद्वंद्वियों की तुलना में, अपनी कंपनी के उत्पादों को अधिक व्यावहारिक रूप से स्थान देने का प्रयास किया जाता है।
ब्रांड पोज़िशनिंग, उपभोक्ताओं को एक ब्रांड को दूसरे ब्रांड पर चुनने में, कैसे मदद करती है?
1.प्रासंगिकता:
कोई उत्पाद या सेवा, जितनी अधिक विशिष्ट और प्रासंगिक होती है, उतना ही अधिक मौका है कि, उसे ग्राहक द्वारा चुना जाएगा। प्रासंगिक ब्रांड, अपने मस्तिष्क में डोपामीन या इनाम प्रणाली (Dopamine or Reward system) से बेहतर तरीके से जुड़ते है, जो हमारे व्यवहार को दृढ़ता से प्रभावित करती है।
2.सुसंगतता:
ब्रांडिंग प्रयास जितने अधिक समन्वित होते है, ब्रांड को उतना अधिक चुना जाएगा। सुसंगत ब्रांडिंग का मतलब – निरन्तर वर्षों में और सभी ग्राहकों तक एक ही संदेश को दोहराना, है। यह हमारे मस्तिष्क के लिए, ब्रांड को पुनः प्राप्त करना और प्रतिस्पर्धा में अंततः विजेता बनाता है।
3.भागीदारी:
ग्राहकों के लिए बनाया गया ब्रांडिंग वातावरण, जितना अधिक संवादात्मक है, उतनी ही अधिक संभावना है कि, ब्रांड को हमारे द्वारा चुना जाएगा। हमारा मस्तिष्क संवादात्मक वातावरण के जवाब में, नए कोशिका संयोजन बनाता है, जो किसी ब्रांड को चिरस्मरणीय बनाते हैं।
कुछ भारतीय ब्रांड, जिन्होंने उद्देश्य-चालित ब्रांड कंटेंट के साथ एक छाप छोड़ी:
1.) जागो रे (Jaago Re) – टाटा चाय (Tata Tea):
2007 में टाटा चाय ने, सुबह की चाय एवं सामाजिक परिवर्तन को ‘जागो रे’ नारे के साथ जोड़ा, और दिखाया कि वास्तव में जागने का क्या मतलब है। फिर इसके टेलीविज़न वाणिज्यिक विज्ञापन बनाए गए, जिसमें जागृत आम नागरिक बदलाव लाते हुए चित्रित किए गए। इस अभियान ने मतदान के महत्व और भ्रष्टाचार को जड़ से बाहर करने की आवश्यकता को भी छुआ।
2.) परिवर्तन (Change) – बीबा(Biba):
इस अभियान में रोज़मर्रा की जिंदगी से, विचार-उत्तेजक घटनाएं थी, जो विवाह, सौंदर्य और लिंग के संदर्भ में पारंपरिक मानदंडों में परिवर्तन को दर्शाती हैं। यह अभियान परिवर्तन के बारे में बात करता है, जो प्रगति के लिए सुंदर और पर्यायवाची है।
चित्र स्रोत : wikimedia
3.) अपने दोष को गर्व से दिखाओ (Flanunt Your Flaw) – टाइटन रागा (Titan Raga) :
टाइटन रागा का यह विज्ञापन पूर्णता के बारे में बात करता है। इस ब्रांड ने अपने विज्ञापन में “शारीरिक खामियों” के साथ वास्तविक महिलाओं को, ‘अपने दोष को फ्लॉन्ट करें’ के नारे के साथ प्रकट किया। यह विज्ञापन, ब्रांड की टैगलाइन – ‘खुद से नया रिश्ता’ का हिस्सा है। यह महिलाओं को उनके शरीर के हर हिस्से को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करता है, जो पारंपरिक सौंदर्य मानकों को पूरा नहीं करती हैं।
कुछ लोकप्रिय भारतीय ब्रांड, जिन्होंने खुद को स्थिर करने हेतु, लिए विज्ञापन का लाभ उठाया:
1.) अमूल का होर्डिंग अभियान (Amul's Hoarding Campaign):
अमूल, आज भी नवीनतम रुझानों पर व्यंग चित्र का उपयोग करता है, और दर्शकों का ध्यान आकर्षित करते हुए, अपने उत्पादों के साथ उन्हें सहजता से संबंधित करता है। यह न केवल, इस कंपनी द्वारा पेश किए गए उत्पादों की विस्तृत श्रृंखला को उजागर करता है, बल्कि दर्शकों के दिमाग में भी छाया रहता है।
2.) तनिष्क का ‘एक नई सुबह’ अभियान (Tanishq’s ‘Ek Nayi Subah’ Campaign):
तनिष्क का यह अभियान, कामकाजी महिलाओं पर केंद्रित था, तथा इसने आत्म-प्रेम और आत्म-देखभाल की आवश्यकता का स्पष्ट संदेश भेजा। इस अभियान ने उनके पेशे और निजी जीवन के संयोजन में, महिलाओं की वास्तविक कहानियों पर ध्यान केंद्रित किया।
3.) सर्फ़ एक्सेल के ‘दाग अच्छे हैं’ अभियान (Surf Excel’s ‘Daag Acche Hain’ Campaign):
इस अभियान ने यह दिखाने पर ध्यान केंद्रित किया कि कि कैसे, बच्चों ने दूसरों की मदद करते हुए, अपने कपड़े गंदे कर दिए । इस अभियान में दागों को एक नकारात्मक संकेत के बजाय, अच्छे कामों के प्रतीक के रूप में चित्रित किया गया।
4.) टाइड का ‘लोड करा डाला’ अभियान (Tide’s ‘Load Kara Dala’ Campaign):
यह अभियान, एक ऐसी रणनीति थी, जिसमें हास्य और सापेक्षता का उपयोग किया गया था। इस अभियान के विज्ञापनों ने, कपड़े धोने की कठिनाई को प्रदर्शित किया। फिर, टाइड को उस ब्रांड के रूप में प्रदर्शित किया गया, जो कपड़े धोने की दैनिक खिन्नता को दूर कर सकता है।
संदर्भ
मुख्य चित्र स्रोत : प्रारंग चित्र संग्रह
फ़र्नीचर के लिए उपयुक्त सागौन की खेती करके देश में इसकी कमी की पूर्ति कर सकते हैं मेरठवासी
घर- आन्तरिक साज सज्जा, कुर्सियाँ तथा दरियाँ
Homes-Interiors/Chairs/Carpets
16-04-2025 09:29 AM
Meerut-Hindi

हर किसी का सपना होता है कि वह अपने घर को अच्छे से सजाए, फिर चाहे वह घर किराए का हो या खुद का। घर की सजावट में मुख्य भूमिका होती है फ़र्नीचर की। फ़र्नीचर घर का एक अभिन्न हिस्सा है जिसके बिना काम नहीं चल सकता। चाहे फ़र्नीचर आधुनिक हो या पारंपरिक, अपने घर को कार्यात्मक बनाने और उसमें सौंदर्य का तत्व जोड़ने के लिए फ़र्नीचर की आवश्यकता होती है। जबकि फ़र्नीचर विभिन्न सामग्रियों से बनाया जा सकता है, प्राकृतिक लकड़ी से बने फ़र्नीचर की अपनी अलग ही गरिमा होती है। आप सभी इस बात से सहमत होंगे कि भारत में सागौन (Teak) की लकड़ी फ़र्नीचर के लिए सबसे लोकप्रिय लकड़ी के प्रकारों में से एक है, जो अपनी स्थायित्व और पानी, दीमक एवं क्षय प्रतिरोधक क्षमता के लिए जानी जाती है। इस लड़की को सागवान भी कहा जाता है। सागौन में मौजूद प्राकृतिक तेल के कारण यह इनडोर और आउटडोर दोनों तरह के फ़र्नीचर के लिए उपयुक्त है। इसके खूबसूरत पैटर्न और गर्म रंग किसी भी कमरे में एक पारंपरिक तत्व जोड़ते हैं। हालांकि, हमारे देश में घरेलू स्तर पर सागौन की लकड़ी का उत्पादन इसकी मांग से काफ़ी कम है, जिसके कारण यहां सागौन का बहुतायात में आयात किया जाता है। भारत में इसका औसत वार्षिक घरेलू उत्पादन लगभग 2.4 मिलियन क्यूबिक मीटर है, जो वर्तमान मांग का केवल 5% है। तो आइए, आज सागौन की लकड़ी की कुछ महत्वपूर्ण विशेषताओं के बारे में जानते हुए यह समझते हैं कि भारत में सागौन लकड़ी का उपयोग, किन फ़र्नीचर उत्पादों को बनाने में किया जाता है। इसके साथ ही, हम भारत में सागौन का सबसे अधिक उत्पादन करने वाले राज्यों पर प्रकाश डालेंगे। अंत में, हम भारत में सागौन उत्पादन में सुधार के लिए कुछ कदमों और उपायों के बारे में जानेंगे।
सागौन की लकड़ी की कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएं:
- सौंदर्य संबंधी अपील: सागौन की लकड़ी पर विशेष पैटर्न होते हैं। यह लकड़ी, छूने में चिकनी होती है और प्लाईवुड (Plywood) या पार्टिकल बोर्ड से बने फ़र्नीचर की तुलना में पॉलिश करने के बाद इसका रंग गहरा भूरा होता है, जिसके कारण इससे बने फ़र्नीचर में एक विशेष सौंदर्य आता है।
- स्थायित्व: सागौन की लकड़ी का फ़र्नीचर कई वर्षों तक चल सकता है। इसके अलावा, पानी से भी सागौन की लकड़ी को नुकसान नहीं होता है।
- क्षयप्रतिरोधी: सागौन की लकड़ी से बना फ़र्नीचर, टिकाऊ होता है और अपने उच्च घनत्व के कारण सड़ता नहीं है।
- सिकुड़न के प्रति प्रतिरोधी: सागौन की उच्च तन्यता क्षमता और कड़ा दाना इसे मौसम प्रतिरोधी और टिकाऊ बनाता है। इसका उपयोग, आउटडोर फ़र्नीचर और नावों के निर्माण में किया जाता है।
भारत में सागौन के फ़र्नीचर के कुछ लोकप्रिय प्रकार:
- टेबल और डाइनिंग सेट: खुले स्थानों पर उपयोग किए जाने वाले टेबल और डाइनिंग सेट के लिए, सागौन की लकड़ी एक उत्कृष्ट सामग्री है, क्योंकि इस पर धूप और पानी का विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता है और यह अन्य लड़कियों की तरह आसानी से मुड़ती या टूटती नहीं है।
- बेंच: सागौन की बेंचें, अपनी मज़बूत बनावट और सड़न तथा दीमक के प्रति प्राकृतिक प्रतिरोध के कारण व्यावसायिक उपयोग के लिए आदर्श हैं, और अनगिनत प्रकार के डिजाइनों में उपलब्ध हैं।
- आर्मचेयर: आर्मचेयर, जिन्हें मस्कोका कुर्सियों के रूप में भी जाना जाता है, अपनी ऊँची पीठ, अपनी रूपरेखा वाली सीटों और अपने चौड़े आर्म-रेस्ट के साथ आरामदायक होती हैं। सागौन से बनी आर्मचेयर्स, आउटडोर कैफ़े जैसे स्थानों में अत्यंत लोकप्रिय हैं।
- छाते: सागौन बड़ी छायादार छतरियों के फ्रेम के लिए एक लोकप्रिय और पारंपरिक लकड़ी है। सागौन ऐसे अनुप्रयोग के लिए आवश्यक स्थायित्व, मौसम प्रतिरोध और हल्कापन प्रदान करता है।
भारत में सागौन उत्पादन के लिए अग्रणी राज्य:
देश में सागौन, प्राकृतिक रूप से नौ मिलियन हेक्टेयर में वितरित है जबकि 2-3 मिलियन हेक्टेयर में इसकी खेती की जाती है। वास्तव में, दुनिया में सागौन का पहला बागान 1842 में नीलांबुर, केरल, भारत में स्थापित किया गया था। बाद में, जंगलों की स्थिति को सुधारने के लिए वन विभाग द्वारा नकदी फ़सल के रूप में इसको व्यापक रूप से लगाया गया। 'वन संरक्षण अधिनियम, 1980' और 'राष्ट्रीय वन नीति, 1988' के तहत, सरकारी स्वामित्व वाले जंगलों में इस लकड़ी की कटाई पर प्रतिबंध लगा दिया गया और निज़ी भूमि से लकड़ी की मांग को पूरा करने की सिफ़ारिश की गई। इस प्रतिमान बदलाव ने सागौन की कीमतों को सामान्य से 500 प्रतिशत अधिक बढ़ा दिया। इस अवसर को भुनाने के लिए, कई नर्सरी और निज़ी बागान एजेंसियों ने सागौन रोपण योजनाएं शुरू कीं। भारत में ऐसी योजनाओं को बढ़ावा देने के लिए हजारों कंपनियां बाजार में काम कर रही थीं। इन योजनाओं ने हज़ारों किसानों को सागौन के बागान की खेती करने के लिए आकर्षित किया। महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और मध्य प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों के किसानों द्वारा बड़ी मात्रा में सागौन की खेती की जाती है। कुछ राज्य सरकारों द्वारा वृक्षारोपण सब्सिडी भी शुरू की गई, जिससे कई किसान उच्च घनत्व में सागौन लगाने लगे।
भारत में, स्थानीय जलवायु और मिट्टी की स्थितियों के प्रभाव के कारण अलग-अलग स्थान पर सागौन की लकड़ी की अलग-अलग विशेषताएं होती हैं। उदाहरण के लिए, पश्चिमी घाट में मालाबार तट पर, पर्याप्त वर्षा के कारण सागौन उगता है, जो जहाज़ और नाव निर्माण के लिए आदर्श है। मध्य प्रदेश के सिवनी की सागौन की लकड़ी हर्टवुड और सैपवुड के मिश्रण से सुनहरे पीले रंग की होती है। महाराष्ट्र के चंद्रपुर में उत्पादित असाधारण सागौन अपने विशिष्ट छल्लों के कारण अपने रंग और बनावट के लिए प्रसिद्ध है। आंध्र प्रदेश में गोदावरी घाटी में उगने वाला सागौन सजावटी फ़र्नीचर और कैबिनेट बनाने के लिए उपयुक्त होता है। इसी तरह, आंध्र प्रदेश में राजुलमडुगु का सागौन, अपने मूल्यवान गुलाबी रंग के हार्टवुड (Heartwood) के लिए मूल्यवान है।
भारत में सागौन उत्पादन में सुधार के उपाय:
- किसानों को शिक्षित करके: किसानों को यथार्थवादी अपेक्षाओं, उचित कृषि तकनीकों और सागौन वृक्षारोपण में शामिल दीर्घकालिक प्रतिबद्धता के बारे में शिक्षित करके सागौन उत्पादन के लिए प्रेरित किया जा सकता है।
- सर्वोत्तम प्रथाओं को बढ़ावा देकर: सागौन की खेती पर व्यापक दिशानिर्देश, जिसमें अंतराल, पतलापन, छंटाई और मिट्टी प्रबंधन शामिल हैं, विकसित और प्रसारित करके इसके उत्पादन को बढ़ावा मिल सकता है।
- गलत सूचनाओं को संबोधित करके: भ्रामक दावों का प्रतिकार करके और किसानों को सशक्त बनाने के लिए, विश्वसनीय सूचना स्रोतों को बढ़ावा देकर इसके उत्पादन के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण बनाया जा सकता है।
- गुणवत्तापूर्ण रोपण सामग्री सुनिश्चित करके: प्रतिष्ठित स्रोतों से प्रमाणित रोपण सामग्री के उपयोग को प्रोत्साहित करके अच्छी गुणवत्ता वाले पेड़ों का उत्पादन सुनिश्चित किया जा सकता है।
- विपणन और मूल्य निर्धारण में सुधार करके: किसानों को उनकी सागौन की लकड़ी का उचित मूल्य दिलाने के लिए, पारदर्शी और कुशल विपणन चैनलों की सुविधा प्रदान की जानी चाहिए।
- सहायता और विस्तार सेवाएँ प्रदान करके: सागौन की खेती की पूरी प्रक्रिया के दौरान, किसानों को तकनीकी सहायता और विस्तार सेवाएँ प्रदान की जानी चाहिए।
इन उपायों से देश में सागौन का उत्पादन बढ़ाकर, निरंतर भारती मांग की पूर्ति की जा सकती है।
संदर्भ
मुख्य चित्र में सागौन की खेती का स्रोत : wikimedia
मेरठ, कैसे भारत के आधुनिक संग्रहालय, डिजिटल तकनीकों से दर्शकों को आकर्षित कर रहे हैं ?
द्रिश्य 3 कला व सौन्दर्य
Sight III - Art/ Beauty
15-04-2025 09:30 AM
Meerut-Hindi

निःसंदेह, मेरठ के कई लोगों ने अपने जीवन में कम से कम एक बार सरकारी स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय, जिसे शहीद स्मारक भी कहा जाता है, ज़रूर देखा होगा। आप भी मानेंगे कि यह हमारे शहर का सबसे प्रसिद्ध संग्रहालय है।
अब जब हम संग्रहालयों की बात कर रहे हैं, तो एक सच्चाई यह भी है कि बिना तकनीक के आज के समय में संग्रहालयों का चलना बहुत मुश्किल हो गया है। तो आज हम समझेंगे कि आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) कैसे भारत में आधुनिक दर्शकों के लिए संग्रहालयों को फिर से दिलचस्प बना रहा है। इसके बाद, हम जानेंगे कि प्रधानमंत्री संग्रहालय को कला, इतिहास और तकनीक का एक बेहतरीन संगम क्यों माना जाता है। फिर हम यह देखेंगे कि, भारत के नए ज़माने के संग्रहालय किस तरह तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं ताकि लोग कुछ नया और अनोखा अनुभव कर सकें।
अंत में, हम दुनिया के कुछ सबसे प्रसिद्ध संग्रहालयों के बारे में जानेंगे, जिन्होंने ए आई और सोशल मीडिया की मदद से अपनी लोकप्रियता बढ़ाई है। इनमें राइक्सम्यूज़ियम (नीदरलैंड्स), द नेशनल गैलरी (यू के), मोंटेरे बे एक्वेरियम (यू एस ए) जैसे नाम शामिल हैं।
कैसे ए आई आधुनिक दर्शकों के लिए संग्रहालयों को फिर से दिलचस्प बना रहा है?
ए आई की मदद से संग्रहालय अब अपनी दीवारों तक सीमित नहीं रहे, बल्कि वे ऑनलाइन भी लोगों तक पहुंच बना रहे हैं। व्यक्तिगत सुझाव, इंटरएक्टिव प्रदर्शनियां और वर्चुअल टूर जैसी सुविधाओं के कारण दर्शकों के लिए संग्रहालयों का अनुभव पहले से ज्यादा रोचक हो गया है। ए आई न केवल संग्रहालयों को दर्शकों के डेटा को समझने और बेहतर सुविधाएं देने में मदद करता है, बल्कि यह ऐतिहासिक वस्तुओं के रखरखाव और अलग-अलग दर्शकों के लिए सुगम्यता बढ़ाने में भी काम आता है।
अगर संग्रहालयों ने तकनीक, खासकर आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस को नहीं अपनाया होता, तो वे समय के साथ पुराने और बोरिंग लगने लगते। लेकिन अयोध्या का राम कथा संग्रहालय और प्रधानमंत्री संग्रहालय ने ए आई, ए आर (ऑगमेंटेड रियलिटी (Augmented Reality)) और वि आर (वर्चुअल रियलिटी (Virual Reality)) जैसी तकनीकों का शानदार इस्तेमाल करके इसे और आकर्षक बना दिया है।
प्रधानमंत्री संग्रहालय: कला, इतिहास और तकनीक का एक अनोखा मेल
नई दिल्ली में स्थित प्रधानमंत्री संग्रहालय को खास बनाने में इमर्शन टेक्नोलॉजी का बहुत बड़ा योगदान है। इसकी झलक संग्रहालय के प्रवेश द्वार पर मौजूद हवा में तैरता लोगो से ही मिल जाती है। यहाँ पर बहुभाषी ऑडियो गाइड सिस्टम दर्शकों को उनकी पसंदीदा भाषा में जानकारी देता है।
सबसे दिलचस्प हिस्सा ‘टाइम्स मशीन चेंबर’ है, जो लोगों को भारत के परमाणु इतिहास से रूबरू कराता है। इस संग्रहालय में वि आर, ए आर और रोबोटिक्स तकनीकों के ज़रिए, भारत के प्रधानमंत्रियों की ज़िंदगी और उनके विचारों को जीवंत रूप दिया गया है।
यहाँ के टच वॉल्स, टच स्क्रीन, ग्राफ़िक पैनल्स, प्रोजेक्शन मैपिंग, पुरालेख (आर्काइव्स) और इंटरएक्टिव गेम्स इसे न केवल एक देखने लायक संग्रहालय बनाते हैं, बल्कि इसे हर उम्र के दर्शकों के लिए एक अनोखा और यादगार अनुभव भी बना देते हैं।

कैसे भारत के आधुनिक संग्रहालय नई तकनीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं?
आज के दौर में संग्रहालय सिर्फ देखने की जगह नहीं रह गए, बल्कि वे संस्कृति और इंटरएक्टिव अनुभवों का केंद्र बन गए हैं। खासकर युवाओं के लिए, ये तकनीक से जुड़कर उनके लिए सीखने और सांस्कृतिक विरासत को समझने का एक नया तरीका बन चुके हैं। 360-डिग्री पैनोरमिक तकनीक (360-Degree Panoramic Technology) और बेहतरीन एक्सपीरियंस (User Experience) के कारण अब संग्रहालयों का अनुभव पहले से कहीं अधिक रोमांचक और अनोखा हो गया है।
प्रधानमंत्री संग्रहालय, नई दिल्ली दर्शकों को कला, इतिहास और तकनीक का एक शानदार संगम देखने का मौका देता है। यह एक फ़्यूचरिस्टिक और हाई-टेक अनुभव प्रदान करता है, जिसमें भारत के सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों को समर्पित अनोखी झलक देखने को मिलती है। 2023 में उद्घाटन किए गए इस संग्रहालय में आपको वास्तविक वस्तुओं ( कलाकृतियों), दृश्य-श्रव्य (विज़ुअल) प्रदर्शन, होलोग्राम्स, वर्चुअल रियलिटी, ऑगमेंटेड रियलिटी, मल्टी-टच स्क्रीन, मल्टीमीडिया, कीओस्क, कंप्यूटरीकृत काइनेटिक स्कल्पचर, स्मार्टफोन ऐप्स, इंटरएक्टिव स्क्रीन और अनुभवात्मक इंस्टॉलेशंस मिलते हैं, जो इसे और भी अनोखा बनाते हैं।
विरासत-ए-खालसा (Virasat-e-Khalsa), आनंदपुर साहिब, पंजाब एक ऐसा संग्रहालय है जहाँ कोई पारंपरिक कलाकृतियाँ (आर्ट ऑब्जेक्ट्स) नहीं रखे गए हैं। बल्कि, यह पूरी तरह से अनुभव-आधारित संग्रहालय है। यहाँ ध्वनि, दृश्य और संवेदनाओं का अनूठा मेल देखने को मिलता है, जिससे यह दिखाता है कि कैसे एक शानदार क्यूरेशन, बेहतरीन डिज़ाइन और अत्याधुनिक तकनीक के साथ मिलकर एक अविस्मरणीय अनुभव बना सकता है।
कैसे दुनिया के कुछ प्रसिद्ध संग्रहालयों ने ए आई और सोशल मीडिया से अपनी लोकप्रियता बढ़ाई?
आज के डिजिटल युग में, संग्रहालय सिर्फ इमारतों तक सीमित नहीं हैं। सोशल मीडिया और की ए आई मदद से वे दुनियाभर के दर्शकों तक पहुँच बना रहे हैं। आइए जानते हैं, कैसे कुछ मशहूर संग्रहालयों ने तकनीक और सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर खुद को और भी प्रासंगिक बना लिया।
1.) राइक्सम्यूज़ियम (The Rijksmuseum (Netherlands)) – इस म्यूज़ियम ने टिकटॉक पर वायरल कैंपेन चलाए, जिनमें हास्य, कला शिक्षा और पर्दे के पीछे की झलक दिखाई गई। खासतौर पर डच कलाकृतियों को मज़ेदार तरीके से पेश करने वाले वीडियो ने लाखों दर्शकों को आकर्षित किया और युवा पीढ़ी को म्यूज़ियम से जोड़ा।
2.) ब्रिटिश म्यूज़ियम (British Museum (UK)) – यह म्यूज़ियम इंस्टाग्राम पर अपनी क्रिएटिव पोस्ट्स के लिए जाना जाता है। उन्होंने कैरोसेल पोस्ट्स के जरिए छोटी-छोटी मगर रोचक जानकारियां साझा कीं। इन पोस्ट्स में ऐतिहासिक वस्तुओं की झलक, दिलचस्प कहानियां और इंटरएक्टिव सवाल-जवाब शामिल होते हैं, जिससे दर्शकों की भागीदारी बढ़ती है।
3.) नेशनल गैलरी (National Gallery (UK)) – इस म्यूज़ियम ने यूट्यूब को अपनाया और लंबी अवधि वाले शैक्षिक वीडियो तैयार किए। इनमें कला विशेषज्ञों के टूर और प्रसिद्ध कलाकृतियों की गहन व्याख्या शामिल है। उनकी उच्च-गुणवत्ता वाली वीडियो सामग्री आम दर्शकों के साथ-साथ कला प्रेमियों को भी आकर्षित करती है।
4.) मोंटेरे बे एक्वेरियम (Monterey Bay Aquarium (USA) – यह एक्वेरियम सोशल मीडिया पर, खासकर ट्विटर पर, बेहद लोकप्रिय हुआ। उनके मज़ेदार और ज्ञानवर्धक ट्वीट्स कई बार वायरल हुए हैं। वे समुद्री जीवन से जुड़ी रोचक बातें हास्य के साथ पेश करते हैं, जिससे न केवल लोग मनोरंजन करते हैं बल्कि संरक्षण के महत्व को भी समझते हैं।
संदर्भ
मुख्य चित्र में भारतीय सिनेमा के राष्ट्रीय संग्रहालय, मुंबई के आंतरिक दृश्य का स्रोत : Wikimedia
सॉलिड स्टेट या ग्राफ़ीन बैटरियों जैसे नवाचार, हम मेरठ वासियों का जीवन सुलभ कैसे करेंगे ?
वास्तुकला 2 कार्यालय व कार्यप्रणाली
Architecture II - Office/Work-Tools
14-04-2025 09:20 AM
Meerut-Hindi

मेरठ के निवासियों, क्या आप जानते हैं कि, सॉलिड स्टेट बैटरी (Solid state battery), एक ऐसी बैटरी है, जो तरल या जेल इलेक्ट्रोलाइट (Electrolyte) के बजाय एक ठोस इलेक्ट्रोलाइट का उपयोग करती है। ये पारंपरिक लिथियम आयन बैटरियों (Lithium ion batteries) की तुलना में अधिक ऊर्जा प्रदान करती हैं। एक तरफ़, कुछ कंपनियां, अनुसंधान के साथ, ग्राफ़ीन संवर्धित बैटरियों (Graphene-enhanced batteries) को विशेष रूप से इलेक्ट्रिक वाहनों और मोबाइल उपकरणों में प्रयुक्त कर रही हैं। इसलिए, आज हम, बैटरियों के इन प्रकारों और उनकी भविष्य की क्षमता के बारे में विस्तार से समझने की कोशिश करते हैं। फिर, हमें पता चलेगा कि ग्राफ़ीन बैटरी खास क्यों है। अंत में, हम कुछ नई बैटरी प्रौद्योगिकियों का पता लगाएंगे, जो वैश्विक स्तर पर बैटरी उद्योग के भविष्य को बदल सकते हैं।
सॉलिड स्टेट बैटरी, लिथियम आयन बैटरी से बेहतर क्यों है ?
1.) आकार:
ठोस इलेक्ट्रोलाइट, एक विभाजक की आवश्यकता को बदल देता है, जो एक तरल इलेक्ट्रोलाइट की तुलना में कम जगह ले सकता है। इसलिए, एक सॉलिड स्टेट बैटरी को पारंपरिक लिथियम आयन बैटरी की तुलना में छोटा बनाया जा सकता है। हालिया वैज्ञानिक प्रगति का मतलब है कि, इन्हें अंततः कम दूरी के विमानों (Short-haul aircrafts) और भारी ट्रकों में लागू की जा सकती है।
2.) वज़न:
लिथियम, सबसे हल्का धातु तत्व है। इसलिए, सॉलिड स्टेट बैटरियों में लिथियम धातु एनोड (Metal anode) और इस प्रकार, एक छोटे पैकेज में उच्च ऊर्जा घनत्व वाहन की क्षमता, उन्हें इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए एक हल्का विकल्प बनाती है।
3.) सुरक्षा:
लिथियम आयन बैटरियों में एक अस्थिर व ज्वलनशील तरल इलेक्ट्रोलाइट होता है, जो आग का कारण बन सकता है। इसके विपरीत, सॉलिड स्टेट बैटरियों उच्च तापमान को सहन कर सकती हैं, जो उन्हें एक सुरक्षित विकल्प बनाती है।
4.) अधिक क्षमता और सीमा:
छोटे आकार और बढ़ी हुई ऊर्जा घनत्व का मतलब है कि, अधिक ऊर्जा, छोटे पैकेज में संग्रहित की जा सकती है। यह संभावित रूप से माइलेज (Mileage) बढ़ाता है। एक इलेक्ट्रिक वाहन निर्माता ने दावा किया है कि, ऐसी बैटरी वाली गाड़ियां, एक चार्ज पर 745 मील की दूरी तय करने में सक्षम होंगी।
5.) तेज़ी से रीचार्जिंग:
इलेक्ट्रिक गाड़ियों में लिथियम आयन बैटरियां, आमतौर पर रीचार्ज करने में 20 मिनट से बारह घंटे के बीच समय लेती हैं । कम से कम 80% चार्ज प्राप्त करने के लिए, सॉलिड स्टेट बैटरी 10 या 15 मिनट तक समय लेती है। इसके अलावा, इन बैटरियों को उनके जीवनचक्र में लिथियम आयन बैटरी की तुलना में 5 गुना अधिक चार्ज किया जा सकता है।
6.) कम कार्बन पदचिह्न:
सॉलिड स्टेट बैटरी के निर्माण में कम सामग्री का उपयोग किया जाता है, जो लिथियम आयन बैटरी की तुलना में, उनके जलवायु प्रभाव को 39% तक कम कर सकता है।
ग्राफ़ीन बैटरी खास क्यों है ?
ग्राफ़ीन, एक 2 डी (2D) सामग्री है, जिसमें केवल कार्बन होता है। यह एक मधुमक्खी के छत्ते जैसी संरचना में व्यवस्थित, कार्बन परमाणुओं के साथ पतली परतों में मौजूद होता है। यद्यपि ग्राफ़ीन, लिथियम की तुलना में बैटरी में अपेक्षाकृत नई सामग्री है, इसके लाभों को जल्दी से मान्यता दी गई है। लिथियम आयन बैटरी में ग्राफ़ीन को शामिल करके, इलेक्ट्रोड पर कई बैटरी गुणों में सुधार किया जा सकता है। ग्राफ़ीन बैटरी, ऊर्जा घनत्व और चार्जिंग गति के संदर्भ में, मौजूदा लिथियम आयन बैटरी से बेहतर साबित होती है। यह बैटरी, लचीली और गैर-ज्वलंत होने जैसी नई सुविधाओं में भी उन्नत है। ग्राफ़ीन का उच्च सतह, क्षेत्र इसे उत्कृष्ट बनाती है। क्योंकि, एक बड़े सतह क्षेत्र का मतलब है कि, रेडॉक्स प्रतिक्रियाओं (Redox reactions) के लिए अधिक सक्रिय साइटें होती हैं, और उतनी ही तेज़ी से चार्जिंग होती है।

विकास के तहत विभिन्न प्रकार की बैटरियां, जो ग्राफ़ीन का उपयोग करती हैं:
1.) ग्राफ़ीन-एल्यूमिनियम हाइब्रिड बैटरी (Graphene-Aluminium Hybrid Battery):
यह बैटरी इलेक्ट्रोड सामग्री के रूप में, ग्राफ़ीन और एल्यूमिनियम का उपयोग करती है। इस बैटरी में ऊर्जा घनत्व 150-160 वॉट घंटा प्रति किलोग्राम है, और इसे 1-5 मिनट के भीतर ही बहुत तेज़ी से चार्ज किया जा सकता है।
2.) ग्राफ़ीन एन्हैंस्ड लिथियम सल्फ़र बैटरी (Graphene Enhanced Lithium-Sulfur Battery):
लाइटेन (Lyten) नामक एक कंपनी ने, सल्फ़र कैथोड (Cathode) में एक 3 डी ग्राफ़ीन झिल्ली को शामिल किया, जिसने एक प्रभावी विभाजक के रूप में काम किया, और चक्रीय क्षमता क्षय दर को कम कर दिया। इस उत्पाद को लाइटसेल ई वी (LytCell EV) नाम दिया गया है। इसे 900 वॉट घंटा प्रति किलोग्राम ऊर्जा घनत्व प्रदान करने के लिए सूचित किया गया था।
3.) ग्राफ़ीन एन्हैंस्ड पॉलिमर बैटरी (Graphene Enhanced Polymer Battery):
यह उपकरण, एक दो-इलेक्ट्रोड इलेक्ट्रोकेमिकल सेल (Two-electrode electrochemical cell) है, जिसमें कार्बन-ग्राफ़ीन हाइब्रिड और एक प्रवाहकीय पॉलिमर (Conductive polymer) होता है। ये बैटरी, 10 सेकंड से कम समय में, 1 मेगावाट तक की शक्ति का निर्वहन कर सकती है, और पांच मिनट से भी कम समय में रीचार्ज हो सकती है। इसमें 158 से 972 की वोल्टेज रेंज होती है। न्यूनतम क्षमता हानि के साथ, यह -40 डिग्री सेल्सियस से 50 डिग्री सेल्सियस तक तापमान पर लगातार काम कर सकती है।

नई बैटरी प्रौद्योगिकियां, जो हमारे भविष्य को बदल देंगी:
1.) नैनोबोल्ट लिथियम टंगस्टन बैटरी (NanoBolt lithium tungsten batteries):
इस बैटरी की एनोड (Anode) सामग्री पर काम करते हुए, कुछ शोधकर्ताओं ने इसमें टंगस्टन और कार्बन बहु–परत वाले नैनोट्यूब (Nanotube) को जोड़ा। यह तांबा एनोड सब्सट्रेट (Anode substrate) से बंधकर, एक जालीनुमा नैनो संरचना का निर्माण करते हैं। यह रीचार्ज और डिस्चार्ज चक्रों के दौरान संलग्न करने हेतु, अधिक आयन के लिए एक विशाल सतह बनाता है। इससे यह बैटरी तेज़ी से रीचार्ज होकर अधिक ऊर्जा भी संग्रहित करती है।
2.) ज़िंक मैंगनीज़ ऑक्साइड बैटरी (Zinc Manganese Oxide Batteries):
कुछ शोधकर्ताओं को जस्ता (ज़िंक)-मैंगनीज़ ऑक्साइड बैटरी में एक अप्रत्याशित रासायनिक रूपांतरण प्रतिक्रिया मिली। यदि उस प्रक्रिया को नियंत्रित किया जा सकता है, तो यह बढ़ती लागत के बिना, पारंपरिक बैटरियों में ऊर्जा घनत्व बढ़ा सकती है। यह तथ्य, इस बैटरी को लिथियम आयन (Lithium-ion) और लेड एसिड बैटरियों (Lead–acid battery) के लिए एक संभावित विकल्प बनाता है। यह विशेष रूप से देश के बिजली ग्रिड का समर्थन करने हेतु, बड़े पैमाने पर ऊर्जा भंडारण के लिए, महत्वपूर्ण साबित हो सकती है।
3.) ऑर्गैनोसिलिकॉन इलेक्ट्रोलाइट बैटरी (Organosilicon electrolyte batteries):
लिथियम आयन बैटरियों के साथ, एक बड़ी समस्या, इलेक्ट्रोलाइट आग या विस्फ़ोट का खतरा है। इन बैटरियों की कार्बोनेट आधारित विलायक (सॉल्वैंट) प्रणाली की तुलना में कुछ सुरक्षित चीज़ खोजते हुए, कुछ शोधकर्ताओं ने ऑर्गोसिलिकॉन (ओएस) आधारित तरल सॉल्वैंट्स (Liquid solvents) विकसित किए गए हैं। इन इलेक्ट्रोलाइट्स को औद्योगिक, सैन्य और उपभोक्ता लिथियम आयन बैटरी बाज़ारों के लिए आणविक स्तर पर इंजीनियर किया जा सकता है।
संदर्भ:
मुख्य चित्र: ग्राफ़ीन की आदर्श क्रिस्टलीय संरचना और सॉलिड-स्टेट बैटरियों में इलेक्ट्रोलाइट प्रेसिंग का दृश्य (Wikimedia, flickr)
आइए जानें, अलग-अलग देशों और संस्कृतियों में कैसे मनाई जाती है वैसाखी
विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)
Thought I - Religion (Myths/ Rituals )
13-04-2025 09:15 AM
Meerut-Hindi

हमारे प्यारे मेरठ वासियों, आपमें से कई लोग इस बात से अवगत नहीं होंगे, वेसाक (Vesak), जिसे बुद्ध पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है, गौतम बुद्ध के जन्म, ज्ञान और मृत्यु (परिनिर्वाण) को स्मरण करने वाला सबसे पवित्र बौद्ध त्योहार है। यह चंद्र माह वैशाख की पूर्णिमा के दिन आमतौर पर अप्रैल या मई में मनाया जाता है। यह त्योहार भारत, नेपाल (Nepal), श्रीलंका (Sri Lanka), थाईलैंड (Thailand), म्यांमार (Myanmar), इंडोनेशिया (Indonesia), मलेशिया (Malaysia) और सिंगापुर (Singapore) जैसे देशों में अलग-अलग नामों से व्यापक रूप से मनाया जाता है। उदाहरण के लिए कंबोडिया (Cambodia) में इसे वेसाक बोचिया (Vesak Bochea) और थाईलैंड (Thailand) में विशाखा बुचा (Visakha Bucha) कहा जाता है। इस दिन भक्त प्रार्थना, ध्यान, झांकी और दान पुण्य जैसी गतिविधियों में संलग्न होते हैं। धार्मिक उत्पत्ति में भिन्न होने के बावजूद, वेसाक, वैसाखी या बैसाखी के साथ कई समानताएं साझा करता है। जैसे दोनों का समय, आध्यात्मिक प्रतिबिंब और सामुदायिक समारोह काफ़ी हद तक एक जैसे हैं, खासकर भारत और दक्षिण पूर्व एशिया (Southeast Asia) जैसे बहुसांस्कृतिक क्षेत्रों में। वेसाक के दिन बौद्ध श्रद्धालु और अनुयायी भोर से पहले अपने विभिन्न मंदिरों में बौद्ध ध्वज को औपचारिक रूप से फहराते हैं और पवित्र त्रिरत्न बुद्ध, धर्म (उनकी शिक्षाएँ) और संघ (उनके शिष्य) की स्तुति में भजन गाने के लिए एक स्थान पर एकत्रित होते हैं। भक्त अपने गुरु के चरणों में फूल, मोमबत्तियाँ और अगरबत्ती अर्पित करते हैं। ये प्रतीकात्मक प्रसाद, अनुयायियों का ध्यान इस ओर केंद्रित करता है, कि जिस तरह सुंदर फूल थोड़े समय बाद मुरझा जाते हैं, और मोमबत्तियाँ और अगरबत्ती जल्द ही जल जाती हैं, उसी तरह जीवन भी क्षय और विनाश के अधीन है। भक्तों को किसी भी तरह की हत्या से बचने के साथ-साथ, दिन भर केवल शाकाहारी भोजन खाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। तो आइए, आज हम, वैसाखी के अवसर पर कुछ चलचित्रों के ज़रिए जानेंगे, कि अलग-अलग देशों और संस्कृतियों में अलग-अलग नामों से वेसाक का त्योहार कैसे मनाया जाता है। सबसे पहले, हम एक वीडियो देखेंगे जो श्रीलंका में इस पर्व के आयोजन को दर्शाती है। फिर, हम कंबोडिया में इस त्योहार के दौरान, सिएम रीप नदी (Seam Reap) के पास से निकल रहे भक्तों के एक जुलूस को देखेंगे। उसके बाद, हम थाईलैंड में विशाखा बुचा के लिए की जाने वालीं कुछ तैयारियों पर एक नज़र डालेंगे। अंत में हम इंडोनेशिया, मलेशिया और सिंगापुर में इस त्योहार के जश्न से रूबरू कराने वाले कुछ अन्य चलचित्रों का आनंद लेंगे।
संदर्भ:
मेरठ वासियों चलिए, आज सुप्रसिद्ध बरोक कला व इसके उदाहरणों पर नज़र डालते हैं !
मध्यकाल 1450 ईस्वी से 1780 ईस्वी तक
Medieval: 1450 CE to 1780 CE
12-04-2025 09:21 AM
Meerut-Hindi

मेरठ के नागरिकों, क्या आप इस तथ्य से अवगत हैं कि, बरोक (Baroque) वास्तुकला, संगीत, नृत्य, पेंटिंग, मूर्तिकला, कविता और अन्य कलाओं की एक पश्चिमी शैली है। यह सत्रहवीं शताब्दी से 1750 के दशक तक प्रमुखता में थी। यह रकोको (Rococo) और निओक्लासिकल शैलियों (Neoclassical styles) से पहले एवं पुनर्जागरण कला (Renaissance art) और मैनरइज़म (Mannerism) के बाद प्रचलन में थी। बरोक कला में इसकी नाटकीय शैली, सजावटी अलंकार और गतिशील रचना की विशेषता है। यह आज भी अपनी विस्तृतता, विस्तार पर ध्यान देने और अपने दर्शकों को आमंत्रित करने वाले भावनात्मक प्रभाव के लिए लोकप्रिय है। तो चलिए आज, उन विशेषताओं का पता लगाते हैं, जिन्होंने बरोक कला को इतना अनोखा बनाया। उसके बाद, हम यूरोप से परे बरोक कला के प्रभाव पर कुछ प्रकाश डालेंगे। इसके अलावा, हम बरोक वास्तुकला के कुछ प्रसिद्ध उदाहरणों के बारे में बात करेंगे। अंत में, हम इस अवधि के कुछ सबसे महत्वपूर्ण चित्रों के बारे में बात करेंगे।
कौन सी विशेषताओं ने बरोक कला को अनोखा बनाया ?
1. नाटकीय यथार्थवाद:
बरोक कला की सबसे प्रमुख विशेषताओं में से एक नाटकीय यथार्थवाद के लिए इसका झुकाव है। इस अवधि के कलाकारों ने, गतिशीलता से भरे ज्वलंत दृश्यों में, विषयों को चित्रित करके दर्शकों में मज़बूत भावनात्मक प्रतिक्रियाओं को विकसित करने का लक्ष्य रखा।
2. गतिशील रंग और छाया:
बरोक कलाकारों ने आमतौर पर अपने चित्रों में नाटक की भावना को बढ़ाने के लिए, एक जीवंत रंग पैलेट का उपयोग किया। इन कलाकारों ने गहरे लाल रंग, मखमली नीले, सुंदर हरे और शानदार सुनहरे रंगों का इस्तेमाल किया, जो भावनाओं को उकसाने और शक्ति एवं विस्मय की भावना पैदा करते थे।
3. अलंकृत विवरण:
इस समय के चित्रों में अलंकृत विवरण और अस्पष्टता के साथ, बरोक अवधि को चिह्नित किया। कलाकारों और कारीगरों ने संगमरमर, लाख, सोने और कांच जैसी महंगी सामग्रियों का उपयोग किया, एवं अपने कार्यों को अलंकृत करने के लिए इसमें विस्तृत सजावट और जटिल पैटर्न जोड़े।
4. धार्मिक विषय:
प्रोटेस्टेंट सुधार (Protestant Reformation) के बाद, कैथोलिक चर्च ने अपने अनुयायियों के आध्यात्मिक उत्साह को फिर से जागृत करने हेतु, बरोक कला की ओर रुख किया। चर्चों और कैथेड्रल में विस्तृत धार्मिक चित्रों, मूर्तियों और अलंकृत सजावट के उपयोग के कारण, उपासकों से एक गहरी भक्ति भावनात्मक प्रतिक्रिया प्राप्त हुई।
यूरोप से परे बरोक कला का प्रभाव:
बरोक कला का प्रभाव, यूरोप से परे भी था। इसने अमेरिका, एशिया और अफ़्रीका में भी कलाकरों को प्रेरणा दी। लैटिन अमेरिका (Latin America) में बरोक वास्तुशास्त्र एवं कला को “अमेरिकन बरोक” के रूप में जाना जाता है। यहां स्वदेशी तत्वों के साथ यूरोपीय बरोक शैली के संलयन ने, एक अद्वितीय सौंदर्यशास्त्र बनाया, जो आज भी मेक्सिको (Mexico), पेरू (Peru) और ब्राज़ील (Brazil) जैसे देशों में मनाया जाता है। एशिया में, बरोक कला ने चीनी और जापानी कलाकारों को प्रभावित किया, तथा अपनी भव्यता के साथ शाही महलों में एक नई जगह पाई। अफ़्रीका में, बरोक शैली को स्थानीय संदर्भों के लिए अनुकूलित किया गया था। इसका उदाहरण, इथियोपिया (Ethiopia) के बरोक कला से प्रेरित चर्च हैं।
बरोक वास्तुकला के कुछ प्रसिद्ध उदाहरण:
इतालवी बरोक वास्तुकला (Italian Baroque architecture) का एक प्रसिद्ध उदाहरण, रोम (Rome) में जियान लोरेन्ज़ो बनीनी (Gian Lorenzo Bernini) द्वारा निर्मित सेंट पीटर्स स्क्वैर (St. Peter’s Square) है। एक अन्य प्रसिद्ध इतालवी उदाहरण, वेटिकन शहर(Vatican city) में सेंट पीटर्स बेसिलिका (St. Peter’s Basilica) है, जिसमें कई बरोक मूर्तियां शामिल हैं। इसमें बर्निनी द्वारा निर्मित सुंदर बाल्दाकिन वेदी (Baldachin altar) भी शामिल है।
बरोक अवधि की प्रसिद्ध मूर्ति:
सबसे प्रसिद्ध बरोक मूर्ति, शायद बर्निनी द्वारा – द एक्स्टेसी ऑफ़ सेंट टेरेसा (The Ecstasy of Saint Teresa) है। इसमें एक परी को, अविला की टेरेसा (Teresa of Ávila) के शरीर में प्रवेश करते हुए दर्शाया गया है।
बरोक अवधि के सबसे महत्वपूर्ण चित्र:
1.) कारवाजयो (Caravaggio) द्वारा द डेथ ऑफ़ वर्जिन (The Death of Virgin):
कैथोलिक चर्च का मानना है कि, वर्जिन मेरी (Virgin Mary) की मृत्यु नहीं हुई, और वह स्वर्ग में जीवित है। कारवाजो इस विश्वास के खिलाफ़ गया, तथा उसने मेरी के शव को चित्रित किया। इसके अलावा, उन्होंने जानबूझकर पवित्रता के सभी तत्वों को दृश्य से छीन लिया।
2.) रेम्ब्रांट वैन रेन (Rembrandt van Rijn) द्वारा द अनैटमी लेसन ऑफ़ डॉक्टर निकलस टल्प (The Anatomy Lesson of Doctor Nicolaes Tulp):
अभिलेखागार ने इस पेंटिंग में प्रत्येक व्यक्ति के नामों को संरक्षित किया। यहां तक कि एक मृत अपराधी को डॉक्टर टल्प द्वारा विच्छेदित किया जा रहा है। मृतक अपराधियों के शवों को मेडिकल छात्रों को सौंपने का अभ्यास तब आम था।
3.) डोमिने, क्वो वाडिस ? (Domine, quo vadis?) द्वारा एन्नि बले कराची (Annibale Carracci):
अनीबाले कर्राची को सत्रहवीं शताब्दी में अग्रणी बरोक चित्रकारों में से एक माना जाता था। उनकी शैली पुनर्जागरण और मैनरइज़म शैलियों के कुछ आदर्शवाद से मिलती-जुलती थी। लेकिन, उन्होंने स्मारकीय चित्रांकनों और गतिशील रचनाओं के माध्यम से बरोक जैसी कृतियां बनाई। डोमिने,, क्वो वाडिस?, निर्भीक इशारों के माध्यम से कहानी को बयान करने वाले दो उज्ज्वल रंगीन चित्रांकनों के साथ, कर्राची के दृष्टिकोण का उदाहरण देता है।
4.) आर्टेमीज़िया जेंटिलेस्की (Artemisia Gentileschi) द्वारा जूडिथ स्लेयिंग होलोफ़र्नीज़ (Judith Slaying Holofernes):
पुरुषों के वर्चस्व वाले कला की दुनिया में, आर्टेमीज़िया जेंटिलेस्की ने एक प्रमुख महिला चित्रकार के रूप में जगह बनाई। उनकी पेंटिंग, महिला विषयों पर ज़ोर देने के साथ, उनकी कृति में विशेष है। इसमें से सबसे प्रसिद्ध कृति, जुडिथ स्लेयिंग होलोफ़र्नीज़ है। यह चित्र एक पुराने नियम की कहानी को चित्रित करता है, जिसमें एक विधवा और उसकी नौकरानी एक कामातुर आदमी को मार देती है। आर्टेमीज़िया ऐसी रचना इसलिए करती है, ताकि सबसे बड़ा प्रभाव बनाने के लिए हिंसा, दृश्य में सबसे आगे हो।
5.) रेप ऑफ़ द डॉटर्स ऑफ़ लूसिपस (Rape of the Daughters of Leucippus):
पीटर पॉल रूबेन्स (Peter Paul Rubens) बरोक अवधि में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति थे। उन्होंने चित्र में नाटकीय आयाम जोड़ने हेतु, जीवंत रंगों और गतिशीलता को नियोजित किया। उपरोक्त चित्र में अराजकता और हिंसा की भावना को दर्शाया गया है।
संदर्भ:
मुख्य चित्र: सेंट जॉन्स को-कैथेड्रल (St John’s Co-Cathedral) माल्टा के वैलेत्ता (Valletta) शहर में स्थित एक प्रभावशाली रोमन कैथोलिक गिरजाघर है, जिसे संत जॉन द बैपटिस्ट (Saint John the Baptist) को समर्पित किया गया है। इसका निर्माण, 1573 से 1577 के बीच ग्रैंड मास्टर ला कासिएरे (Grand Master La Cassiere) द्वारा करवाया गया था। इस गिरजाघर का आंतरिक भाग मुख्य रूप से मतिया प्रेती (Mattia Preti) — जो कि कालाब्रिया के एक प्रसिद्ध कलाकार और शूरवीर थे — द्वारा बारोक काल की ऊँचाई पर सजाया गया था। (Wikimedia)
उचित कारणों को समझकर कम किया जा सकता है, उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था के खतरे को
विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा
Thought II - Philosophy/Maths/Medicine
11-04-2025 09:25 AM
Meerut-Hindi

हाल के अध्ययनों के अनुसार, भारत में लगभग 50% गर्भधारण को उच्च जोखिम वाला (High-Risk Pregnancy) माना जाता है, जिसका अर्थ है कि गर्भावस्था के दौरान अधिकांश महिलाएं गर्भावस्था की जटिलताओं का अनुभव करती हैं; लगभग 33% गर्भवती महिलाओं में एक ही उच्च-जोखिम कारक होता है और 16% में कई उच्च-जोखिम कारक होते हैं। भारत में, सामान्य गर्भावस्था स्वास्थ्य जटिलताओं में प्रसवोत्तर गंभीर रक्तस्राव, संक्रमण, गर्भावस्था के दौरान उच्च रक्तचाप, प्रसव के दौरान जटिलताएँ, असुरक्षित गर्भपात, एनीमिया, गर्भकालीन मधुमेह और बाधित प्रसव शामिल हैं, जिनके कारण गर्भावस्था की यह स्थिति उच्च जोखिम वाली होती है, जहां माँ या बच्चे को स्वास्थ्य समस्याओं का अनुभव होने की अधिक संभावना होती है। तो आइए, आज भारत में गर्भवती महिलाओं को होने वाली कुछ गंभीर स्वास्थ्य जटिलताओं को समझने प्रयास करते हैं और उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था और उसके लक्षणों के बारे में जानते हैं। इसके साथ ही, हम उन कारकों पर कुछ प्रकाश डालेंगे, जो गर्भावस्था को उच्च जोखिम वाला बनाते हैं। अंत में, उच्च जोखिम गर्भावस्था की रोकथाम सुनिश्चित करने के लिए कुछ उपायों के बारे में भी जानेंगे।
भारत में गर्भावस्था के दौरान महिलाओं के सामने आने वाली गंभीर स्वास्थ्य जटिलताएं:
रक्तस्राव (Bleeding): गर्भावस्था के दौरान, शरीर में बड़े या छोटे बदलावों, जैसे प्रत्यारोपण से, गर्भाशय ग्रीवा से या किसी संक्रमण के कारण रक्तस्राव हो सकता है।
अस्थानिक गर्भावस्था (Ectopic Pregnancy): आम तौर पर, आगे की वृद्धि और विकास के लिए निषेचित अंडा गर्भाशय में प्रत्यारोपित होता है। कभी-कभी, यह प्रत्यारोपण फ़ैलोपियन नलिका में हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप, फ़ैलोपियन नलिका (Fallopian tube) के फटने से रक्तस्राव हो सकता है। अस्थानिक गर्भावस्था कोई सामान्य स्थिति नहीं है इसलिए इसे नज़रअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।
गर्भपात (Miscarriage): गर्भाशय के अंदर ही भ्रूण की मृत्यु होने पर गर्भपात हो जाता है। यह आमतौर पर गर्भावस्था के पहले तीन महीनों में होता है।
प्लेसेंटल अब्रप्शन (Placental Abruption): इस स्थिति में, गर्भावस्था के दौरान प्लेसेंटा गर्भाशय की दीवार से अलग हो जाता है। यह डिलीवरी के दौरान भी हो सकता है। प्लेसेंटा एक ऐसा अंग है जो अंदर बढ़ते भ्रूण को रक्त (ऑक्सीजन और पोषक तत्व) प्रदान करता है। प्लेसेंटा का अलग होना एक गंभीर जटिलता है।

प्लेसेंटा प्रीविया (Placenta Previa): यह एक ऐसी स्थिति है जहां नाल पूरी तरह या आंशिक रूप से बच्चे के गर्भाशय ग्रीवा तक जाने के रास्ते को अवरुद्ध कर देती है। ऐसा तब होता है जब प्लेसेंटा नीचे होता है। यह समस्या आम तौर पर नियत तारीख नजदीक आने के साथ विकसित होती है। इस मामले में आपको सिज़ेरियन डिलीवरी (Cesarean delivery) की आवश्यकता हो सकती है।
गंभीर संक्रमण (Major Infections): गर्भावस्था के दौरान, कुछ गंभीर संक्रमण जैसे यौन संचारित संक्रमण (क्लैमाइडिया (Chlamydia) या गोनोरिया (Gonorrhoea)), टी बी (TB), एच आई वी (HIV) या हेपेटाइटिस (Hepatitis), माँ और बच्चे के लिए खतरनाक हो सकते हैं। इसलिए, गर्भावस्था के दौरान इन संक्रमणों और टीकाकरणों की जांच और उपचार महत्वपूर्ण है।
योनि में जलन (Vaginal Irritation): गर्भावस्था के दौरान, एक महिला प्रत्येक भारी शारीरिक परिवर्तनों से गुज़रती है। ये परिवर्तन, बड़ी मात्रा में योनि स्राव के माध्यम से देखे जा सकते हैं जो योनि में जलन पैदा कर सकते हैं।
उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था की स्थिति:
गर्भवती महिला की आयु, गंभीर बीमारी और कुछ पहले से मौजूद स्वास्थ्य स्थितियों के कारण कई बार गर्भावस्था उच्च जोखिम वाली हो जाती है। भ्रूण में कुछ संरचनात्मक या आनुवंशिक असामान्यताएं होने पर, गर्भावस्था के दौरान जटिलताओं का खतरा अधिक हो सकता है। गर्भधारण और जटिलताओं का पिछला इतिहास, प्रसव पूर्व परीक्षण के परिणाम और गर्भावस्था के दौरान कुछ लक्षण, जैसे रक्तस्राव, भी गर्भावस्था को उच्च जोखिम वाला बना सकते हैं।
उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था के लक्षण:
- लगातार पेट दर्द
- छाती में दर्द
- भ्रूण की हलचल कम होना या न होना
- अत्यधिक थकान
- बेहोशी या चक्कर आना
- दिल की धड़कन तेज़ या अनियमित होना
- मतली और उल्टी
- साँस लेने में तकलीफ़
- भयंकर सरदर्द
- अंगों में सूजन, लालिमा, दर्द
- योनि से रक्तस्राव
उपरोक्त कोई भी लक्षण होने पर तुरंत डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए।
उच्च जोखिम गर्भावस्था के कारण:
- पहले से मधुमेह (Pre existing diabetes): जिन महिलाओं को पहले से मधुमेह है उनके लिए गर्भावस्था की स्थिति जोखिम भरी हो सकती है।
- अंग प्रत्यारोपण (Organ Transplant): जिन महिलाओं का पहले अंग प्रत्यारोपण हुआ है, गर्भावस्था के दौरान उन्हें प्रीक्लेम्पसिया (Preeclampsia (उच्च रक्तचाप के कारण होने वाली एक जटिलता)), उच्च रक्तचाप और भ्रूण के विकास में बाधा का खतरा अधिक होता है।
- दीर्घकालिक उच्च रक्तचाप (Chronic High Blood Pressure): यदि किसी महिला को गंभीर, दीर्घकालिक उच्च रक्तचाप है, तो गर्भावस्था के दौरान हृदय की गति रुक जाना, मस्तिष्क में रक्तस्राव और किडनी खराब होने का खतरा अधिक होता है। एक अन्य जोखिम प्रीक्लेम्पसिया के कारण भ्रूण का विकास धीमा हो सकता है, जो समय से पहले जन्म या गर्भावस्था के नुकसान का कारण बन सकता है।
- रक्त के थक्के (Blood Clots): रक्त के थक्के विकसित होने की प्रवृत्ति, गर्भावस्था में जोखिम बढ़ा सकती है।
- रूमेटोलॉजिकल रोग (Rheumatalogic diseases) : ल्यूपस (Lupus) जैसी स्थितियां, माँ में प्रीक्लेम्पसिया के खतरे को बढ़ा सकती हैं। इसके अतिरिक्त, यदि गर्भावस्था में ल्यूपस को नियंत्रित नहीं किया जाता है, तो गर्भावस्था के कारण ल्यूपस की तीव्रता बढ़ सकती है।
इसके अलावा, हृदय रोग (जन्मजात या अधिग्रहित), विभिन्न संक्रामक रोग जैसे एच आई वी, वायरल हेपेटाइटिस , पाइलोनेफ़्राइटिस (Pyelonephritis (एक संभावित गंभीर किडनी संक्रमण, कैंसर, मनोरोग)) आदि भी गर्भावस्था को उच्च जोखिम वाली स्थिति बन सकते हैं।
गर्भावस्था के दौरान उच्च जोखिम की स्थिति की रोकथाम के लिए उपाय:
- गर्भावस्था से पहले स्वस्थ वज़न बनाए रखें: गर्भावस्था के दौरान, अधिक वज़न या मोटापा होने से उच्च रक्तचाप, प्रीक्लेम्पसिया, गर्भकालीन मधुमेह और मृत प्रसव जैसी कई जटिलताओं के विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है। कम वज़न होने पर गर्भपात या भ्रूण का उचित विकास न होने का खतरा भी बढ़ जाता है। इसलिए, गर्भावस्था से पहले स्वस्थ वज़न होने से जटिलताओं का खतरा कम हो जाता है।
- अनियंत्रित पूर्व-मौजूदा स्वास्थ्य स्थितियों का उपचार: अनियंत्रित पूर्व-मौजूदा स्वास्थ्य स्थितियां गर्भावस्था को उच्च जोखिम में डाल सकती हैं। इसलिए गर्भावस्था से पहले दवा और जीवनशैली में बदलाव के साथ, स्वास्थ्य स्थितियों का प्रबंधन करने से, गर्भावस्था के दौरान, शरीर को सर्वोत्तम तरीके से काम करने में मदद मिलती है।
- प्रसव-पूर्व पूरक लें: गर्भावस्था के दौरान, बढ़ते बच्चे के विकास के लिए माँ के शरीर को कुछ पोषक तत्वों की अधिक आवश्यकता होती है। प्रसवपूर्व विटामिन या पूरक (Prenatal supplements) लेने से फ़ोलिक एसिड, आयरन, प्रोटीन और कैल्शियम की पूर्ति होती है जो सामान्य आहार से नहीं मिल पाता है।
- मादक पदार्थों से बचें: गर्भावस्था के दौरान शराब पीना, धूम्रपान करना या तंबाकू उत्पादों का उपयोग करना और नशीली दवाएं लेना बच्चे के स्वास्थ्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है। गर्भावस्था के दौरान, शराब पीने से भ्रूण में अल्कोहल स्पेक्ट्रम विकार (Fetal Alcohol Spectrum Disorder) का खतरा बढ़ जाता है, जो गंभीर जन्म दोषों का कारण बनता है। सिगरेट पीने से जन्म के समय शिशुओं का वज़न कम हो सकता है। अवैध दवाओं का दुरुपयोग, जन्म दोष का कारण बन सकता है, और यह भी संभव है कि बच्चे, गर्भावस्था के दौरान इस्तेमाल की जाने वाली दवा के आदी हों जाएं।
संदर्भ:
https://tinyurl.com/3rjr5z9v
मुख्य चित्र स्रोत : Pexels
चलिए समझते हैं, हस्तिनापुर के श्री दिगंबर जैन बड़ा मंदिर की खूबसूरती और इतिहास को
विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)
Thought I - Religion (Myths/ Rituals )
10-04-2025 09:20 AM
Meerut-Hindi

मेरठ के लोग यह मानते हैं कि महावीर जयंती जैन समुदाय के लिए सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह त्योहार जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर ( जैन धर्म के 24 प्रबुद्ध शिक्षक या संत जिन्होंने जन्म और मृत्यु के अंतहीन चक्र से मुक्ति प्राप्त की है, जिसे मोक्ष भी कहा जाता है।) की जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को जैन लोग पूरे दुनिया में पूजा, शोभायात्रा और दान कार्यों के साथ मनाते हैं। तो, आज हम महावीर जयंती के इतिहास और महत्व को समझने की कोशिश करेंगे। इसके बाद, हम जानेंगे कि उत्तर प्रदेश में यह त्योहार कैसे मनाया जाता है।
फिर, हम एक महत्वपूर्ण जैन स्थल, श्री दिगंबर जैन बड़ा मंदिर, हस्तिनापुर के बारे में बात करेंगे। यहाँ हम इसके वास्तुकला के बारे में विस्तार से जानेंगे। अंत में हम, इस मंदिर परिसर के कुछ प्रमुख स्मारकों और मंदिरों के बारे में चर्चा करेंगे।
महावीर जयंती का इतिहास और महत्व:
भगवान महावीर का जन्म प्राचीन वैशाली के राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के घर हुआ था। श्वेतांबर जैन मानते हैं कि उनका जन्म 599 ईसा पूर्व हुआ था, जबकि दिगंबर जैन उनका जन्म 615 ईसा पूर्व मानते हैं। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, भगवान महावीर का जन्म चैत्र माह की 13वीं तिथि को हुआ था।
30 साल की उम्र में भगवान महावीर ने अपने सारे सांसारिक सामान को त्याग दिया और एक साधू बन गए, जो आत्मज्ञान की खोज में भटकते थे। कहते हैं कि 12 साल का समय जंगलों में बिताने के बाद उन्होंने ‘केवल ज्ञान’ (अज्ञान से मुक्ति) प्राप्त किया।
भगवान महावीर ने अपने जीवन को अहिंसा, सत्य, चोरी से बचने, ब्रह्मचर्य और अपवित्रता से दूर रहने के उपदेशों के लिए समर्पित किया। उन्होंने बताया कि सभी जीवों में आत्मा होती है, इसलिए हमें सभी जीवों के साथ प्रेम, दया और सम्मान से व्यवहार करना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि हमें एक सरल, शांति और नैतिक जीवन जीना चाहिए।
उत्तर प्रदेश में महावीर जयंती कैसे मनाई जाती है ?
महावीर जयंती का पर्व, जैन धर्म के अनुयायियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, और इसे बहुत श्रद्धा और समर्पण के साथ मनाया जाता है। उत्तर प्रदेश में इस दिन की विशेष पूजा और उत्सवों में कोई ज़्यादा धूमधाम नहीं होती, बल्कि यह एक शांतिपूर्ण और ध्यानपूर्ण अवसर होता है।
सुबह जल्दी, भक्त जैन मंदिरों में जाते हैं, जहाँ वे भगवान महावीर की पूजा करते हैं। यहाँ वे भगवान से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करते हैं। इस दिन विशेष रूप से जैन धर्म के ग्रंथों, जैसे कि कल्प सूत्र का पाठ किया जाता है। इन ग्रंथों में भगवान महावीर के उपदेश होते हैं, जो जैन धर्म के सिद्धांतों का पालन करने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।
महावीर जयंती के दिन दान और सेवा का बहुत महत्व होता है। भक्त गरीबों को भोजन, कपड़े, पैसे और अन्य ज़रूरी सामान दान करते हैं। दान देना, जैन धर्म का एक अहम हिस्सा है, क्योंकि यह दया, करुणा और दूसरों की मदद करने का प्रतीक है। जैन धर्म में विश्वास है कि दान देने से इंसान को पुण्य मिलता है और यह व्यक्ति की आत्मा को शुद्ध करता है।
इसके अलावा, इस दिन महावीर स्वामी के उपदेशों का पालन करने की प्रेरणा दी जाती है, जैसे अहिंसा (बिना किसी को नुकसान पहुंचाए जीना), सत्य बोलना, चोरी न करना, ब्रह्मचर्य (लवलीनता) और सांसारिक चीजों से अटूट लगाव न रखना। यह सब भगवान महावीर की शिक्षा है, जो उनके अनुयायी अपनाने का प्रयास करते हैं।
महावीर जयंती के दिन जैन समाज के लोग इस पर्व को अपने परिवार और दोस्तों के साथ सादगी से मनाते हैं और साथ ही अपने आचार-व्यवहार में सुधार करने का संकल्प लेते हैं।
श्री दिगंबर जैन बड़ा मंदिर, हस्तिनापुर का परिचय
हस्तिनापुर में ये विशाल मंदिर, 40 फ़ीट ऊँटी एक पहाड़ी पर स्थित है। यह मंदिर बहुत ही सुंदर, भव्य और कलात्मक है, जिसमें एक विशाल और कलात्मक शिखर है। शिखर में एक कक्ष बनाया गया है और कक्ष के ऊपर फिर से एक कला से सुसज्जित शिखर स्थापित किया गया है। इस तरह के डिज़ाइन किए गए शिखर दुनिया में बहुत कम देखने को मिलते हैं।
इस मंदिर को चार फ़ीट ऊँची एक मंच पर बनाया गया है और इसमें केवल एक हिस्सा है, जिसे हम गर्भगृह कहा जाता है। यह गर्भगृह बहुत बड़ा है और इसमें तीन दरवाज़े हैं। गर्भगृह में एक बड़ा वेदी है। इस वेदी में भगवान शांतिनाथ की सफ़ेद रंग की प्रतिमा पाद्मासन मुद्रा में 1½ फ़ीट ऊँची स्थापित की गई है। यह प्रतिमा . 1548 में भट्टारक जिन चंद्र द्वारा जीवराज पापड़िवाल के लिए प्रतिष्ठित की गई थी। मुख्य देवता के दोनों ओर आकर्षक प्रतिमाएँ हैं - बाएँ ओर भगवान कुंथुनाथ और दाएँ ओर भगवान अराह्नाथ की प्रतिमाएँ स्थापित हैं।
गर्भगृह में एक प्राचीन कला का उदाहरण है, जो एक समतल पत्थर पर उकेरी गई है, जिस पर पाँच बल यति (ब्रह्मचारी) भगवानों की प्रतिमाएँ (भगवान वासुपूज्य, मल्लिनाथ, नेमिनाथ, परश्वनाथ और महावीर) कलात्मक रूप से उकेरी गई हैं। यह माना जाता है कि यह कला का टुकड़ा 10-11वीं शताब्दी का है।
श्री दिगंबर जैन बड़ा मंदिर परिसर के कुछ प्रमुख स्मारक और मंदिर
- मानस्तंभ: यह 1955 में निर्मित एक 31 फ़ीट ऊँची संरचना है, जो मुख्य मंदिर परिसर के प्रवेश द्वार के बाहर स्थित है।
- त्रिमूर्ति मंदिर: बाएँ वेदी पर 12वीं शताब्दी की पुरानी शांतिनाथ की प्रतिमा कयोत्सर्ग मुद्रा में, केंद्र में पार्श्वनाथ की प्रतिमा और दाएँ वेदी पर सफ़ेद रंग की महावीर की प्रतिमा स्थापित है।
- नंदीश्वरदीप: यह जैन ब्रह्मांडविज्ञान के एक पहलू को दर्शाता है और 1980 के दशक में निर्मित हुआ था। शांतिनाथ और अरनाथ की प्रतिमाएँ प्रवेश द्वार के दोनों ओर स्थापित की गई हैं।
- समावसरण रचना: यह एक भव्य संरचना है, जिसमें 111 छोटे चैत्यालय, 4 मानस्तंभ हैं, जो 19वें तीर्थंकर मल्लिनाथ के समावसरण का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- अंबिका देवी मंदिर: यह प्राचीन अंबिका देवी की प्रतिमा है, जिसे पास की नहर से प्राप्त किया गया था, जिसमें देवी के सिर पर नेमिनाथ की प्रतिमा उकेरी गई है।
संदर्भ:
मुख्य चित्र: बाईं तरफ़, हस्तिनापुर के श्री दिगंबर जैन बड़ा मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार और दाईं तरफ़, मंदिर का केंद्रीय शिखर (Shikhara) (Wikimedia)
लघु उद्योग चलाने वाले मेरठवासियों को क्या ‘ब्लू पॉटरी’ के बारे में पता है ?
म्रिदभाण्ड से काँच व आभूषण
Pottery to Glass to Jewellery
09-04-2025 09:22 AM
Meerut-Hindi

गर्मियों में तापमान बढ़ने के साथ ही, न केवल मेरठ के लोग, बल्कि यहाँ के जानवर भी भीषण गर्मी से बेहाल नज़र आते हैं। लेकिन क्या आपको एक मज़े की बात पता है कि राजस्थान के जोधपुर शहर में गर्मी से बचने के लिए घरों को नीले रंग में रंगा जाता है? दरअसल, नीला रंग, सूरज की किरणों को परावर्तित करता है, जिससे घर अंदर से ठंडे बने रहते हैं। इसी वजह से जोधपुर को "ब्लू सिटी" यानी "नीला शहर" भी कहा जाता है। ठीक इसी तरह, ब्लू पॉटरी (Blue Pottery) भी राजस्थान की एक और खास पहचान है, जो कि जयपुर की पारंपरिक और बेहद खूबसूरत कला है। इसकी सबसे खास बात यह है कि इसमें इस्तेमाल होने वाला नीला रंग, कोबाल्ट ऑक्साइड (Cobalt Oxide) से बनता है। जयपुर की ब्लू पॉटरी, पर फ़ारसी और तुर्की डिज़ाइनों का गहरा प्रभाव नज़र आता है। हालाँकि, समय के साथ इसमें नए रूपांकन और स्थानीय डिज़ाइन भी जुड़ गए हैं। आमतौर पर, इस कला का उपयोग फूलदान, प्लेट, कटोरे, टाइल और अन्य सजावटी वस्तुएँ बनाने में किया जाता है। आज के इस लेख में हम इस उद्योग की मौजूदा स्थिति पर नज़र डालेंगे। इसमें काम करने वाले कारीगरों, उत्पादन इकाइयों और इनसे बनने वाले उत्पादों की संख्या पर चर्चा करेंगे। साथ ही, हम इस कला में उपयोग किए जाने वाले विभिन्न रंगों और डिज़ाइनों को भी समझेंगे। इसके बाद, हम जानेंगे कि इन वस्तुओं को बनाने की पूरी प्रक्रिया कैसी होती है। आगे बढ़ते हुए, हम इस उद्योग के सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा करेंगे और समझेंगे कि यह विलुप्त होने के कगार पर क्यों है। अंत में, हम उन महत्वपूर्ण क़दमों पर बात करेंगे जो इस अनमोल शिल्प को बचाने के लिए उठाए जाने चाहिए।
आइए सबसे पहले यह जानते हैं कि राजस्थान की ब्लू पॉटरी क्यों खास है ?
राजस्थान की प्रसिद्ध ब्लू पॉटरी को अपने चमकीले नीले और सफ़ेद रंगों के प्रयोग के लिए पहचाना जाता है। इस खूबसूरत कला में कोबाल्ट ऑक्साइड नामक खनिज का उपयोग किया जाता है, जो इसे इसकी खास नीली चमक देता है। मिट्टी के बर्तनों को भट्टी में पकाने से पहले इन पर हाथ से डिज़ाइन बनाए जाते हैं, जिससे इनका आकर्षण और बढ़ जाता है। ब्लू पॉटरी के डिज़ाइनों में हाथ से बनाए गए जटिल रूपांकन देखने को मिलते हैं। इनमें फूलों, पक्षियों और जानवरों की आकृतियाँ शामिल होती हैं। कमल, गुलाब, मोर और हाथी जैसे पारंपरिक डिज़ाइन इसे और भी खास बनाते हैं। इसके अलावा, ज्यामितीय और अमूर्त पैटर्न भी इस कला में अहम भूमिका निभाते हैं। केवल सुंदरता ही नहीं, ब्लू पॉटरी अपनी मज़बूती और टिकाऊपन के लिए भी मशहूर है। यह न सिर्फ़ खरोंच-रोधी होती है, बल्कि इसकी टूटने की संभावना भी कम होती है। यही वजह है कि यह कला सदियों से लोगों को आकर्षित करती आ रही है।
ब्लू पॉटरी की वर्तमान स्थिति क्या है ?
जयपुर की मशहूर ब्लू पॉटरी की कला, आज भी कुछ शिल्पकारों द्वारा जीवित रखी जा रही है। शहर और इसके आसपास क़रीब 25-30 इकाइयाँ इस पारंपरिक कला को संजोए हुए हैं। इनमें से 10-11 इकाइयाँ कोट जेबर गाँव में स्थित हैं, जबकि बाक़ी जयपुर के मुख्य शहर में फैली हुई हैं। पहले इस उद्योग से बड़ी संख्या में लोग जुड़े हुए थे, लेकिन समय के साथ स्थिति बदल गई। दरअसल, इन बर्तनों को बनाने की प्रक्रिया लंबी और श्रमसाध्य होती है। इस कारण कई कारीगरों ने दूसरे व्यवसायों की ओर रुख कर लिया। इस शिल्प का काम मुख्य रूप से खारवाल, कुंभार, बहैरवा और नट जातियों द्वारा किया जाता है, जिनमें खारवाल और कुंभार सबसे प्रमुख उत्पादक हैं।
इस मिट्टी के बर्तन बनाने की शैली के अंतर्गत कौन से उत्पाद बनाए जाते हैं ?
इस कला के अंतर्गत कई खूबसूरत और उपयोगी वस्तुएँ बनाई जाती हैं। इनमें शामिल हैं:
- प्लेटें और ट्रे
- फूलदान और सुराही (छोटे घड़े)
- साबुन के बर्तन और कोस्टर (coasters)
- दरवाज़े के हैंडल और नैपकिन रिंग्स
- फलों के कटोरे और ऐशट्रे
- हाथ से पेंट की गई टाइलें
समय के साथ इसकी डिज़ाइनों में भी बदलाव आया है। अब पारंपरिक मर्तबानों, बर्तनों और फूलदानों के साथ-साथ चाय के सेट, कप-तश्तरियाँ, गिलास, जग और अन्य आधुनिक वस्तुएँ भी बनाई जा रही हैं।
ब्लू पॉटरी बनाने की प्रक्रिया क्या है ?
जयपुर की ब्लू पॉटरी, अपनी खूबसूरत डिज़ाइनों और चमकदार रंगों के लिए मशहूर है। लेकिन इसे बनाने की प्रक्रिया बहुत जटिल होती है! इसे तैयार करने में कई चरण होते हैं, जिनमें धैर्य, विशेषज्ञता और बारीकियों की समझ ज़रूरी होती है। खास बात यह है कि इसे बहुत कम तापमान पर पकाया जाता है, जिससे यह पारंपरिक मिट्टी के बर्तनों से अलग हो जाती है। यही कारण है कि ब्लू पॉटरी नाज़ुक होती है और इसे बनाना जोखिम भरा भी होता है। ब्लू पॉटरी बनाने के लिए मिट्टी का इस्तेमाल नहीं किया जाता, बल्कि इसमें क्वार्ट्ज़ स्टोन पाउडर (quartz stone powder), पाउडर ग्लास (powder glass), बोरेक्स (borax), गोंद और मुल्तानी मिट्टी ( Fuller's earth ) जैसी सामग्रियों का मिश्रण होता है। इन सभी को पानी के साथ मिलाकर आटे की तरह गूंथ लिया जाता है। इसके बाद, इस मिश्रण को बेलकर 4-5 मिलीमीटर मोटी चपाती (पैनकेक जैसे) बनाई जाती है। फिर इसे एक खास सांचे में डाला जाता है, जिसमें कंकड़ और राख का मिश्रण होता है। ये सांचे प्लास्टर ऑफ़ पेरिस (POP) से बने होते हैं और कई बार इस्तेमाल किए जा सकते हैं। एक बार सांचे में डालने के बाद, इन्हें 1-2 दिन तक सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है। जब यह सूख जाता है, तब इसकी सफ़ाई और आकार ठीक किया जाता है। फिर सैंडपेपर से इसकी सतह को पॉलिश किया जाता है, ताकि यह पूरी तरह चिकनी हो जाए और पेंटिंग के लिए तैयार हो सके। इसके बाद, कारीगर इस पर हाथ से खूबसूरत डिज़ाइन पेंट करते हैं और फिर ग्लेज़ का फ़ाइनल कोट लगाया जाता है। अंत में, पूरी तरह सूखने के बाद, इसे भट्टी में पकाया जाता है। यह अंतिम चरण बेहद महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यही तय करता है कि ब्लू पॉटरी का रंग और चमक कैसी होगी।
जयपुर की ब्लू पॉटरी ख़त्म होने की कगार पर क्यों है ?
जयपुर की पारंपरिक ब्लू पॉटरी, अपनी पहचान खोती जा रही है। इसकी घटती माँग ने कारीगरों को दूसरा रोज़गार तलाशने पर मजबूर कर दिया है। यही वजह है कि नई पीढ़ी इसे अपनाने में दिलचस्पी नहीं दिखा रही। पिछले 15 सालों में, इस शिल्प से जुड़े कारीगरों की संख्या 500 से घटकर सिर्फ़ 50 रह गई है। बाज़ार में फ़ैक्ट्रियों में बने सस्ते सिरेमिक उत्पादों ने इसे कड़ी टक्कर दी है। ब्लू पॉटरी बनाने में कारीगरों को क़रीब दो हफ़्ते लगते हैं, जिससे उत्पादन लागत बढ़ जाती है। ऊपर से 12% जी एस टी (GST) इसे और महंगा बना देता है, जिससे ग्राहक सस्ते विकल्पों की ओर रुख कर रहे हैं।
इस कला को बचाने के लिए क्या किया जाए ?
कारीगरों का मानना है कि जीएसटी में छूट मिलने से बिक्री बढ़ सकती है। सरकार को भी इस कला को बढ़ावा देने के लिए प्रदर्शनियों और जागरूकता अभियान चलाने चाहिए। अगर इसे कला विद्यालयों में सिखाया जाए, तो युवा इसे अपनाने के लिए प्रेरित हो सकते हैं। लुप्त हो रहे शिल्प को नई पीढ़ियों से नवाचार की सख़्त जरूरत है। राजस्थान कौशल और आजीविका विकास निगम (Rajasthan Skill and Livelihoods Development Corporation (RSLDC)) को ब्लू पॉटरी सहित पारंपरिक कला रूपों को बढ़ावा देने और प्रोत्साहित करने के लिए ईमानदारी से प्रयास करना चाहिए।
संदर्भ:
https://tinyurl.com/24vnavpx
https://tinyurl.com/27hqgrn8
https://tinyurl.com/22jwa2o3
https://tinyurl.com/29htqcvx
मुख्य चित्र: जयपुर की एक दूकान में बिक रहे ब्लू पॉटरी के बर्तन (Wikimedia)
चलिए समझते हैं मेरठ षड्यंत्र केस और भारत के स्वतंत्रता संघर्ष में इसकी भूमिका को
उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक
Colonization And World Wars : 1780 CE to 1947 CE
08-04-2025 09:26 AM
Meerut-Hindi

क्या आप जानते हैं कि ब्रिटिश शासन के दौरान, भारत में मज़दूर आंदोलनों को दबाने के लिए एक ऐसा मुकदमा चलाया गया था, जिसने न केवल भारतीय श्रमिक संघर्ष को प्रभावित किया, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी हलचल मचा दी थी? यह मामला इतिहास में "मेरठ षड्यंत्र केस (Meerut Conspiracy Case) " के नाम से प्रसिद्ध है। इस मुकदमें ने भारत की आज़ादी की लड़ाई में आग में घी का काम किया! यह मुकदमा ब्रिटिश सरकार की उस साज़िश का सबसे बड़ा प्रमाण था, जिसका उद्देश्य भारत में ट्रेड यूनियन नेताओं और मज़दूर आंदोलनों को कमजोर करना था। ब्रिटिश हुकूमत ने इस केस के ज़रिए भारतीय मज़दूर आंदोलनों को कुचलने की योजना बनाई थी, लेकिन उनका यह दांव उलटा पड़ गया! इस मुकदमे ने भारत ही नहीं, बल्कि दुनियाभर में मज़दूरों के अधिकारों को लेकर एकजुटता और जागरूकता को बढ़ावा दिया। यह मामला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चित हुआ और दुनिया के कई हिस्सों से भारतीय श्रमिकों के समर्थन में आवाज़ें उठने लगीं। इसलिए आज के इस लेख में हम इस ऐतिहासिक मुक़दमे की गहराई में उतरेंगे। इसके तहत हम जानेंगे कि मुक़दमे के दौरान किन नेताओं को गिरफ़्तार किया गया, उन पर कौन-कौन से आरोप लगे और उन्हें किसका समर्थन मिला। साथ ही, हम उन प्रमुख हस्तियों पर भी प्रकाश डालेंगे जिन्होंने इस मामले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आगे हम देखेंगे कि इस मुक़दमे का मेरठ और देश के अन्य हिस्सों पर क्या प्रभाव पड़ा! अंत में, हम इसके ऐतिहासिक फ़ैसले पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
पिछली पंक्ति (बाएं से दाएं): के. एन. सहगल, एस. एस. जोश, एच. एल. हचिंसन, शौकत उस्मानी, बी. एफ. ब्रैडली, ए. प्रसाद, पी. स्प्रैट, जी. अधिकारी।
मध्य पंक्ति: आर. आर. मित्रा, गोपेन चक्रवर्ती, किशोरी लाल घोष, एल. आर. कदम, डी. आर. थेन्गड़ी, गौरा शंकर, एस. बनर्जी, के. एन. जोगलेकर, पी. सी. जोशी, मुजफ्फर अहमद।
सामने की पंक्ति: एम. जी. देसाई, डी. गोस्वामी, आर. एस. निम्बकर, एस. एस. मिराजकर, एस. ए. डांगे, एस. वी. घाटे, गोपाल बसाक। चित्र स्रोत : wikimedia
1929 के मेरठ षड्यंत्र केस को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सफ़र में एक महत्वपूर्ण मोड़ माना जाता है। उस समय पूरी दुनिया आर्थिक महामंदी (The Great Depression) से जूझ रही थी, लेकिन सोवियत रूस तेज़ी से प्रगति कर रहा था। इस माहौल में, भारत में भी मज़दूर आंदोलनों की लहर उठी, जिसमें साम्यवादी और क्रांतिकारी नेता सबसे आगे थे। 1921 में असहयोग आंदोलन के दौरान देशभर में मजदूरों की हड़तालें तेज़ हो गई थीं। लेकिन जब महात्मा गांधी ने यह आंदोलन वापस ले लिया, तो हड़तालों की लहर भी धीरे-धीरे थमने लगी।
हालांकि, 1920 के दशक के अंत तक मज़दूर फ़िर से संगठित होने लगे। उन्होंने ब्रिटिश सरकार की नीतियों के खिलाफ़ आवाज़ उठानी शुरू कर दी। 1929 की आर्थिक महामंदी का सबसे बड़ा प्रभाव मज़दूरों और किसानों पर ही पड़ा। इस दौरान महंगाई बढ़ गई, नौकरियां घट गईं और जीवनयापन करना बहुत मुश्किल हो गया। हालात इतने खराब हो गए कि 1930 के दशक की शुरुआत में मज़दूर आंदोलनों ने और अधिक उग्र रूप ले लिया। इस दौरान मज़दूरों में राजनीतिक जागरूकता भी बढ़ी।
भारत में कम्युनिस्ट इंटरनेशनल (Comintern (कॉमिन्टर्न)) की विचारधारा तेज़ी से फ़ैलने लगी! इसकी वजह से ब्रिटिश सरकार सतर्क हो गई और उसने वर्कर्स एंड पीज़ेंट्स पार्टी (Workers and Peasants Party (WPP)) को निशाना बनाना शुरू कर दिया। मार्च 1929 में, ब्रिटिश सरकार ने ट्रेड यूनियन और साम्यवादी नेताओं समेत 31 लोगों को गिरफ़्तार कर लिया। इन पर भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code(IPC)) की धारा 121-A के तहत ब्रिटिश शासन के खिलाफ़ साज़िश रचने का आरोप लगाया गया।
हालांकि यह मामला केवल एक मुक़दमें तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि उस समय के मज़दूर आंदोलनों और भारत में बढ़ती क्रांतिकारी चेतना का प्रतीक बन गया। इस केस ने भारत में साम्यवादी विचारधारा को गति दी। मज़दूरों और किसानों में राजनीतिक जागरूकता बढ़ी, जिससे ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ़ संघर्ष और तेज़ हो गया।
मेरठ षड्यंत्र केस, भारतीय इतिहास में न सिर्फ़ एक कानूनी घटना थी, बल्कि एक ऐसा मोड़ था, जिसने स्वतंत्रता संग्राम में मज़दूर आंदोलनों को एक नई दिशा दी। मेरठ षड्यंत्र केस की शुरुआत 29 ट्रेड यूनियन नेताओं की गिरफ़्तारी से हुई थी। इनमें तीन अंग्रेज़ भी शामिल थे। इन सभी पर आरोप था कि वे "ब्रिटिश भारत की संप्रभुता को समाप्त करने" की साज़िश कर रहे थे। इस मामले में उनके खिलाफ़ भारतीय दंड संहिता की धारा 121A के तहत मुकदमा चलाया गया।
यह केस उस समय ब्रिटिश सरकार के भीतर समाजवादी और साम्यवादी विचारधारा के बढ़ते प्रभाव के प्रति डर को दर्शाता है। अंग्रेज़ों को लगता था कि ट्रेड यूनियन और भारतीय साम्यवादी पार्टी (Communist Party of India (CPI)) के ज़रिए मज़दूरों में फ़ैलाए जा रहे मार्क्सवादी विचार उनकी सत्ता को कमज़ोर कर देंगे।
इस केस में बेंजामिन ब्रैडली (Benjamin Bradley) बड़ी ही महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे। वे भारत में एक बड़ी कार्यशाला के इंजीनियर थे। ख़राब कामकाजी हालात और कम मज़दूरी से निराश होकर, उन्होंने ग्रेट ब्रिटेन की कम्युनिस्ट पार्टी का हिस्सा बनने का फ़ैसला किया। इसके बाद वे भारतीय ट्रेड यूनियन आंदोलन में सक्रिय हो गए। 1929 में, ब्रैडली को सरकार विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में गिरफ़्तार कर लिया गया। आख़िरकार, 1932 में उन्हें सज़ा सुनाई गई।
1929 में, ब्रिटिश सरकार ने भारतीय साम्यवादी पार्टी (CPI) के कई नेताओं को गिरफ़्तार किया। इनमें एस.ए. डांगे (S.A. Dange),), मुज़फ़्फ़र अहमद (Muzaffar Ahmed) और शौक़त उस्मानी (Shaukat Usmani) शामिल थे। इन नेताओं पर ब्रिटिश शासन के खिलाफ़ युद्ध छेड़ने की साज़िश रचने का आरोप लगा। यह कार्रवाई औपनिवेशिक क़ानूनों के तहत की गई थी।
यह मुकदमा भारत में ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा का विषय बन गया। इसने ब्रिटिश सरकार द्वारा असहमति को दबाने की नीतियों की ओर सबका ध्यान खींचा। यह मामला ब्रिटिश शासन की दमनकारी नीतियों का प्रतीक बन गया। इसके अलावा, भारत और विदेशों में ट्रेड यूनियनों और मज़दूर संगठनों के बीच एकजुटता को भी मज़बूत किया।
मेरठ षड्यंत्र केस ने भारत में कम्युनिस्ट आंदोलन को एक नई दिशा दी! इस मुक़दमे के ज़रिए ब्रिटिश सरकार ने साम्यवादी विचारधारा को दबाने की कोशिश की, लेकिन इसका असर बिल्कुल उलटा हुआ। जैसे कि:
- ब्रिटिश सरकार का डर: भले ही सभी आरोपी साम्यवादी थे, लेकिन उनके खिलाफ़ लगाए गए आरोप ब्रिटिश हुकूमत के डर को दिखाते हैं। दरअसल, सरकार को भारत में इस विचारधारा के फ़ैलने का खतरा महसूस हो रहा था।
- आरोपियों की क्रांतिकारी पहचान: मुक़दमे के दौरान सभी आरोपियों को "बोल्शेविक" कहकर प्रचारित किया गया। इससे जनता के बीच उनकी पहचान एक क्रांतिकारी विचारधारा के समर्थक के रूप में बन गई।
- अदालत को मंच बनाया: आरोपियों ने अदालत को चार साल तक एक मंच की तरह इस्तेमाल किया। उन्होंने कोर्टरूम को एक सार्वजनिक प्लेटफ़ॉर्म बना दिया, जहाँ से वे अपने विचार जनता तक पहुँचाते रहे।
- कम्युनिस्ट आंदोलन को नई ऊर्जा: इस मुक़दमे ने देश में साम्यवादी आंदोलन को नई ऊर्जा दी। लोगों में कम्युनिज़्म को लेकर जागरूकता बढ़ी और विचारधारा का प्रभाव तेज़ी से फ़ैलने लगा।
- एक संगठित पार्टी का गठन: भारतीय साम्यवादी पार्टी (मार्क्सवादी) के पूर्व महासचिव हरकिशन सिंह सुरजीत ने लिखा था कि 1933 में मेरठ केस के दोषियों की रिहाई के बाद ही एक संगठित और मज़बूत कम्युनिस्ट पार्टी अस्तित्व में आई।
- ब्रिटिश सरकार का उलटा असर: दिलचस्प बात यह रही कि यह केस, भले ही साम्यवादी आंदोलन को दबाने के लिए शुरू हुआ था, लेकिन इसका परिणाम उल्टा निकला। साम्यवादियों को अपने विचार और अधिक मज़बूती से फ़ैलाने का मौक़ा मिल गया।
- अंतरराष्ट्रीय पहचान: 1934 में कम्युनिस्ट पार्टी ने अपना घोषणापत्र जारी किया और ‘कम्युनिस्ट इंटरनेशनल’ की सदस्य बन गई। इससे पार्टी को अंतरराष्ट्रीय पहचान भी मिली।
मेरठ षड्यंत्र केस का फ़ैसला: सत्र न्यायाधीश ने 27 लोगों को दोषी करार दिया। अहमद को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई, जबकि स्प्रैट, डांगे, घाटे, जोगलेकर और निंबकर को 12 साल की जेल हुई।बाकी दोषियों को 10 साल से 4 साल तक की सज़ा मिली। दोषियों ने इस फ़ैसले के खिलाफ़ उच्च न्यायालय में अपील की। इस बार उनकी ओर से प्रसिद्ध वक़ील डॉ. कैलाश नाथ काटजू ने बचाव किया। काटजू की दलीलों ने अदालत को प्रभावित किया और उन्होंने कई दोषियों को बरी करवाने में सफलता पाई। दोषियों की सज़ा भी घटा दी गई। अहमद, डांगे और उस्मानी को सिर्फ़ 3 साल जेल में रहना पड़ा। स्प्रैट (Spratt) की सज़ा घटाकर 2 साल कर दी गई।
घाटे (Ghate) , जोगलेकर (Joglekar), निंबकर (Nimbkar), ब्रैडली, मिराजकर (Mirajkar), जोश (Josh), गोस्वामी (Goswami) और माजिद (Majid) की सज़ा घटाकर 1 साल कर दी गई। इस तरह, मेरठ षड्यंत्र केस का अंत हुआ। हालांकि सरकार ने इसे एक कड़ी कार्रवाई के रूप में पेश किया था, लेकिन इसका असर उल्टा हुआ। इस केस ने कम्युनिस्ट आंदोलन की छवि को और मज़बूत कर दिया।
संदर्भ:
https://tinyurl.com/2cmpagmk
https://tinyurl.com/25auyzxv
https://tinyurl.com/23dtefvm
https://tinyurl.com/2cn39whk
https://tinyurl.com/2bnpjpae
मुख्य चित्र: मेरठ के टाउन हॉल का एक दुर्लभ दृश्य (प्रारंग चित्र संग्रह)
बड़े ग्लेशियरों को पिघलने से रोकने में, हम मेरठ वासियों का क्या योगदान होगा ?
जलवायु व ऋतु
Climate and Weather
07-04-2025 09:26 AM
Meerut-Hindi

मेरठ के कई निवासी इस तथ्य से सहमत होंगे कि, पूरे इतिहास में पृथ्वी का बढ़ता तापमान, हिमनदों को पिघलाने के लिए ज़िम्मेदार है। विश्व स्तर पर प्रतिष्ठित विज्ञान जर्नल – नेचर (Nature) द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में दुनिया भर के हिमनद, ग्रीनलैंड (Greenland) या अंटार्कटिक हिम विस्तार (Antarctic ice sheets) की तुलना में अधिक द्रव्यमान खो रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि, 2000 से 2019 के बीच दुनिया के सभी हिमनदों ने, हर वर्ष लगभग 267 बिलियन टन बर्फ़ खो दिया है। तो आज, हम हिमनदों के पिघलने के पीछे मौजूद कारणों को समझने की कोशिश करेंगे। इसके अलावा, हम दुनिया भर में विभिन्न हिमनदों द्वारा खोए हुए बर्फ़ द्रव्यमान का विश्लेषण करेंगे। उसके बाद, हम पर्यावरण पर इनके पिघलने से पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों पर कुछ प्रकाश डालेंगे। अंत में, हम इस समस्या से निपटने के लिए, कुछ समाधानों और उपायों का सुझाव देंगे।
हिमनद क्यों पिघल रहे हैं ?
1900 के दशक की शुरुआत से, दुनिया भर के कई हिमनद तेज़ी से पिघल रहे हैं। मानव गतिविधियां इस घटना की जड़ हैं। विशेष रूप से, औद्योगिक क्रांति के बाद, कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैस (Greenhouse gas) उत्सर्जन ने पृथ्वी का तापमान बढ़ा दिया है। यह तापमान ध्रुवीय क्षेत्रों में अधिक बढ़ा है, और परिणामस्वरूप, हिमनद तेज़ी से पिघल रहे हैं। इससे इनका पानी समुद्र में जा रहा है, और हिमनद भूमि पर अपनी जगह से पीछे हट रहे हैं।
अगर हम आने वाले दशकों में गैस उत्सर्जन पर अंकुश भी लगाते हैं, तो भी दुनिया के शेष हिमनदों का एक तिहाई से अधिक हिस्सा, वर्ष 2100 से पहले पिघल जाएगा। जब समुद्री बर्फ़ के पिघलने की बात आती है, तो आर्कटिक (Arctic) में सबसे पुरानी और मोटी बर्फ़ का 95% पहले से ही चला गया है। वैज्ञानिकों ने कहा है कि, यदि उत्सर्जन अनियंत्रित रूप से बढ़ता रहता है, तो 2040 तक आर्कटिक गर्मियों में बर्फ़ मुक्त हो सकता है।
पिछले दो दशकों में, हिमनदों ने दुनिया भर में कितना द्रव्यमान खो दिया है ?
क्षेत्र | ग्लेशियर हानि में प्रतिशत योगदान (% में) | द्रव्यमान की हानि (गीगाटन(Gt) में) |
अलास्का(Alaska) | 25 | 68 |
ग्रीनलैंड(Greenland) के बाहरी क्षेत्र | 13 | 36 |
उत्तरी आर्कटिक कनाडा(Arctic Canada) | 10 | 31 |
दक्षिणी आर्कटिक कनाडा (Southern Arctic Ecozone) | 10 | 27 |
अंटार्कटिक(Antarctic) और उप-अंटार्कटिक क्षेत्र | 8 | 21 |
एशिया(Asia) के उच्च पर्वतीय क्षेत्र | 8 | 21 |
दक्षिणी एंडीज़ पर्वत(Andes mountains) | 8 | 21 |
मनुष्यों और समाज पर हिमनद के पिघलने के प्रभाव:
1.) समुद्र स्तर में वृद्धि और तटीय क्षेत्रों में बाढ़:
ग्लेशियरों का सबसे बड़ा और सबसे उल्लेखनीय प्रभाव, पिघलना है। 1960 के दशक के बाद से कुल समुद्र स्तर, 2.7 सेंटीमीटर बढ़ गया है। दुनिया के ग्लेशियरों में अभी भी, समुद्र स्तर को 1.5 मीटर तक बढ़ाने की क्षमता है, जो तटीय क्षेत्रों में बाढ़ का कारण बन सकता है।
2.) महासागर-आधारित उद्योगों का पतन:
इन धाराओं और जेट स्ट्रीमों (Jet streams) के भंग के माध्यम से, एक बड़े पैमाने पर महासागर को बदला जा रहा है। यह प्रभाव, मछली पकड़ने के उद्योगों के पतन जैसे परिणामों के साथ, हमारे सामने खड़ा है।
3.) प्रजातियों का नुकसान:
विभिन्न प्राणी व वनस्पति प्रजातियां भी जोखिम में हैं। कई भूमि और समुद्री जानवर, ग्लेशियरों पर अपने प्राकृतिक आवासों के रूप में निर्भर हैं, और जब वे गायब हो जाते हैं, तो समृद्ध पारिस्थितिक जीवन को खतरा होता हैं।
4.) मीठे पानी की हानि:
ग्लेशियर पिघलने का एक अन्य प्रभाव, मीठे पानी का नुकसान है। कम बर्फ़ मतलब, मीठे पानी का कम संचय है। फिर चाहे वह पानी, पीने के लिए हो, पनबिजली के लिए हो या सिंचाई के लिए हो।
ग्लेशियरों के पिघलने से बचने हेतु समाधान:
1.)जलवायु परिवर्तन को रोकें: जलवायु परिवर्तन को रोकने और ग्लेशियरों को बचाने के लिए, यह अपरिहार्य है कि, अगले दशक में वैश्विक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन (Carbon dioxide emissions) 45% कम हो जाए, और 2050 के बाद यह शून्य हो जाए।
2.)ग्लेशियरों के कटाव को धीमा करना: वैज्ञानिक पत्रिका – नेचर (Nature) ने याकबशौवेन ग्लेशियर(Jakobshavn glacier)(ग्रीनलैंड) के सामने, एक 100 मीटर लंबे बांध का निर्माण करने का सुझाव दिया। यह ग्लेशियर आर्कटिक बर्फ़ पिघलने से सबसे खराब प्रभावित है।
3.)कृत्रिम हिमखंडों को मिलाएं: इंडोनेशियाई वास्तुकार (Indonesian architect) फ़ारिस राजक कोतहातुहा (Faris Rajak Kotahatuhaha) ने एक परियोजना पर काम किया, जिसमें आर्कटिक को फिर से बनाया गया था। इसमें पिघले हुए ग्लेशियरों से पानी इकट्ठा करना शामिल है, जिसे डीसैलिनेट (Desalinating) करना और बड़े बर्फ़ ब्लॉकों को बनाने के लिए उन्हें जमाना शामिल है। इन हिमखंडों को तब, जमे हुए द्रव्यमान बनाने के लिए जोड़ा जा सकता है।
4.)ग्लेशियरों की मोटाई बढ़ाएं: एरिज़ोना विश्वविद्यालय (University of Arizona) ने एक सरल समाधान प्रस्तावित किया है: अधिक बर्फ़ का निर्माण। उनके प्रस्ताव में ग्लेशियर के नीचे से बर्फ़ इकट्ठा करना होता है। इसे ऊपरी बर्फ़ छादन पर फ़ैलाने के लिए, पवन ऊर्जा द्वारा संचालित पंपों का उपयोग किया जाता है।
संदर्भ
मुख्य चित्र: नॉर्वे में स्थित ब्रिक्सडल ग्लेशियर (Briksdal glacier) का एक दृश्य, जिसमें ग्लेशियर के पिघलने और उजागर चट्टानों के कारण जलवायु परिवर्तन के प्रभाव दिखाई दे रहे हैं (Wikimedia)
आइए आज हम, अश्विनी भिड़े-देशपांडे और हरिओम शरण द्वारा प्रस्तुत कुछ राम भजनों का आनंद लें
ध्वनि 1- स्पन्दन से ध्वनि
Sound I - Vibration to Music
06-04-2025 09:20 AM
Meerut-Hindi

हमारे प्रिय मेरठ वासियों, आप इस तथ्य से भली-भांति अवगत हैं कि ‘राम भजन’, हिंदू धर्म के मुख्य व्यक्तित्व या किरदार प्रभु श्री राम को समर्पित भक्ति गीत या भजन हैं। राम भजनों में अक्सर भगवान राम के गुणों का वर्णन और उनके कार्यों की प्रशंसा की जाती है। प्राचीन समय से ही विभिन्न देवताओं को समर्पित अनेक भक्ति गीतों की रचना की गई है। भजन, मुख्य रूप से वे भक्ति गीत हैं, जो संगीत और बोलों के माध्यम से विशेष रूप से एक देवता के प्रति श्रद्धा और प्रेम व्यक्त करते हैं। इन गीतों को श्रद्धा और प्रेम के साथ अक्सर आध्यात्मिक समारोहों या मंदिरों में गाया जाता है। भजन, सुगम संगीत की एक शैली है, जिसका आधार, शास्त्रीय संगीत या लोक संगीत हो सकता है। इसको मंच पर भी प्रस्तुत किया जा सकता है लेकिन मूल रूप से यह किसी देवी या देवता की प्रशंसा में गाया जाने वाला गीत होता है। भजन संस्कृत शब्द ‘भजनम’ से आया है, जिसका अर्थ है श्रद्धा। वर्षों से, भजन हमारी परंपराओं और संस्कृति का एक अभिन्न अंग बन गए हैं। ये पूरी तरह से पाठ-आधारित होते हैं। वे किसी विशिष्ट संगीत शैली की बजाय शब्दों पर ज़ोर देते हैं, या यूं कहें कि भजनों में मुख्यतः शब्दों की सार्थकता होती है। यह किसी मंत्र (आमतौर पर ध्यान में एकाग्रता में सहायता के लिए दोहराया गया एक शब्द या ध्वनि) का पाठ या जाप (कीर्तन) हो सकता है, या फिर उत्तर भारत के ‘ध्रुपद’ या कर्नाटक संगीत के ‘कृति’ जैसा जटिल और परिष्कृत हो सकता है, जो शुद्ध राग (मधुर संरचना) पर आधारित होता है। इसे एक विशिष्ट ताल (लयबद्ध चक्र) में निष्पादित किया जाता है। सूरदास, तुलसीदास, कबीर और मीरा के प्राचीन भजनों को अधिक आधुनिक भजनों की तुलना में बहुत उच्च साहित्यिक मूल्य का माना जाता है। तो आइए, आज राम नवमी के इस अवसर पर हम, भगवान राम को समर्पित कुछ प्रसिद्ध भजन सुनें। सबसे पहले, हम रामायण की एक बंदिश के एक प्रतिष्ठित प्रदर्शन को देखेंगे, जिसे अश्विनी भिड़े-देशपांडे (Ashwini Bhide-Deshpande) द्वारा गाया गया है। इसके बाद, हम उनके द्वारा गाए गए एक और राम भजन का आनंद लेंगे, जिसका शीर्षक है ‘बैठे हैं राम लखन और सीता’। इसी के साथ, हम हरिओम शरण (Hari Om Sharan) द्वारा गाए गए ‘तेरा रामजी करेंगे बेड़ा पार’ के लाइव प्रदर्शन पर भी नज़र डालेंगे। फिर हम वाणी जयराम (Vani Jairam) द्वारा प्रस्तुत सुनो रे सुनो रामायण गत नामक भजन का आनंद लेंगे।
अंत में, हम हिंदू धर्म में भजनों के महत्व को विस्तार से समझने की कोशिश करेंगे।
संदर्भ:
संस्कृति 1996
प्रकृति 705