मेरठ - लघु उद्योग 'क्रांति' का शहर
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आइए जानें, वेस्टर्न यू पी चेंबर ऑफ़ कॉमर्स, मेरठ के व्यापारों को कैसे बढ़ावा देता है
आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक
Modern State: 1947 to Now
20-02-2025 09:31 AM
Meerut-Hindi
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यह तो हर कोई जानता है कि, किसी भी देश अथवा शहर की अर्थव्यवस्था, वहां के व्यवसायों पर निर्भर करती है और व्यवसायों के फलने-फूलने के लिए प्रोत्साहन के साथ-साथ, विज्ञापन और प्रचार की आवश्यकता होती है। इसमें मुख्य भूमिका आती है शहर से संबंधित येलो पेज और ई-कार्ड्स की। आपको यह जानकर गर्व होगा कि भारत की पहली हिंदी येलो पेज और ई-कार्ड्स पहल की शुरुआत प्रारंग द्वारा की गई है। हमारे मेरठ के पोर्टल पर इनके उपयोग बारे में भी बताया गया है। यहां निःशुल्क खाता खोलने और शहर में अपने उत्पादों को साझा करने के लिए आपको बस एक मोबाइल नंबर की आवश्यकता है। हमारे मेरठ शहर के लिए आप इस लिंक पर क्लिक करके पूरी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं:
https://www.prarang.in/yellow-pages/meerut
क्या आप जानते हैं कि, वेस्टर्न यूपी चेंबर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज़ (Western U.P. Chamber of Commerce and Industry) का मुख्यालय हमारे शहर मेरठ में है। इसके साथ ही, क्या आप जानते हैं कि 'फेडरेशन ऑफ़ इंडियन चेंबर्स चेंबर्स ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री' (Federation of Indian Chambers of Commerce & Industry (FICCI)) भारत में एक गैर-सरकारी व्यापार संघ और वकालत समूह है। इसकी स्थापना 1927 में भारतीय व्यवसायी जी.डी. बिड़ला और पुरूषोत्तमदास ठाकुरदास ने की थी। इमामी लिमिटेड के हर्षवर्द्धन अग्रवाल फिक्की के वर्तमान अध्यक्ष हैं। तो आइए, इस लेख में, आंतरिक व्यापार को बढ़ावा देने में भारतीय चेंबर ऑफ़ कॉमर्स की भूमिका को समझते हैं और फ़िक्की के बारे में जानते हुए भारत में व्यापार विकास में इसकी भूमिका पर प्रकाश डालते हैं। इसके साथ ही, हम वेस्टर्न यूपी चेंबर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज़ के इतिहास, प्रमुख उद्देश्यों और इसके द्वारा दी जाने वाली सेवाओं के बारे में जानेंगे।
|Source : Wikimedia
आंतरिक व्यापार को बढ़ावा देने में 'भारतीय चेंबर्स ऑफ़ कॉमर्स' की भूमिका:
1.पारगमन या अंतरराज्यीय यानांतरण: 'चेंबर्स ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री' माल के अंतरराज्यीय' संचार से संबंधित कई योजनाओं का समर्थन करते हैं, जैसे कि वाहन पंजीकरण, जन परिवहन प्रणाली नियम और सड़क निर्माण।
2. कृषि का विपणन: कृषकों और अन्य संघों के संगठन कृषि माल के प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
3. मापदंड और मूल्यांकन: ब्रांडों की सुरक्षा और ब्रांड दोहराव के प्रबंधन हेतु और उपभोक्ताओं और व्यवसाय मालिकों दोनों के हितों की सुरक्षा के लिए इसका अस्तित्व आवश्यक है।
4. बुनियादी ढांचे को प्रोत्साहित करना: यह संगठन, मज़बूत बुनियादी ढांचे, जैसे सड़क, बंदरगाह, ट्रेनें और विद्युत को बढ़ावा देने में एक उत्प्रेरक के रूप में कार्य करता है।
5. कार्यस्थल विनियम: उद्योगों के प्रबंधन, उत्पादकता बढ़ाने और नौकरियों का निर्माण करने के लिए सरल और अनुकूलनीय श्रम कानूनों की उपयोगिता के कारण, ये संगठन, अक्सर श्रम कानूनों, छंटनी आदि विषयों पर सरकार के साथ संपर्क में रहते हैं।
6. चुंगी और अन्य नगरपालिका शुल्कों की निगरानी: राज्य या नगरपालिकाओं द्वारा व्यक्तियों और वस्तुओं पर चुंगी और अन्य नगरपालिका शुल्क लगाए जाते हैं। सरकार और वाणिज्य मंडल यह सुनिश्चित करते हैं कि उनके दबाव से स्थानीय व्यापार और कुशल पारगमन ख़तरे में न पड़े।
7. मूल्यांकन कर और बिक्री कर संरचनाओं का सामंजस्य: विभिन्न राज्यों में बिक्री कर संरचनाओं के बीच सामंजस्य स्थापित करने के लिए सरकार के साथ काम करने के लिए चेंबर्स ऑफ़ कॉमर्स महत्वपूर्ण हैं।
8. उत्पाद शुल्क: केंद्रीय उत्पाद शुल्क प्राथमिक साधन है जिसके माध्यम से संघीय सरकार राज्यों से धन एकत्र करती है। चूंकि कर नीति कीमत में काफ़ी प्रभाव डालते हैं, इसलिए ये समूहों यह सुनिश्चित के लिए कार्यरत रहते हैं कि उत्पाद शुल्क सरल हों।
फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडियन चेंबर्स ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज़:
फ़िक्की की स्थापना 1927 में हुई थी और यह भारत का सबसे बड़ा और सबसे पुराना शीर्ष व्यापारिक संगठन है। फ़िक्की एक गैर-सरकारी, गैर-लाभकारी संगठन है, जो भारत के व्यापार और उद्योग की आवाज़ है। नीति को प्रभावित करने से लेकर बहस को प्रोत्साहित करने, नीति निर्माताओं और नागरिक समाज के साथ जुड़ने तक, फिक्की उद्योगों के विचारों और चिंताओं को स्पष्ट करता है। फ़िक्की की पहुंच 2,50,000 से अधिक भारतीय निजी और सार्वजनिक कॉर्पोरेट क्षेत्रों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों तक है, जिनमें यह अपने सदस्यों को सेवा प्रदान करता है। फ़िक्की को अपने अधिकार राज्यों के विभिन्न क्षेत्रीय चेंबर्स ऑफ़ कॉमर्स से प्राप्त होते हैं। फ़िक्की विभिन्न क्षेत्रों में नेटवर्किंग और सर्वसम्मति निर्माण के लिए एक मंच प्रदान करता है और भारतीय उद्योग, नीति निर्माताओं और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समुदायों के लिए पहला मंच है।
भारत में व्यापार को बढ़ावा देने के लिए फ़िक्की द्वारा की गई पहल:
मिलेनियम एलायन्स (Millennium Alliance): फ़िक्की के मिलेनियम एलायंस का उद्देश्य कम लागत, अभिनव समाधानों का समर्थन और मूल्यांकन करना है। यह फ़िक्की, 'विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार' और 'अंतर्राष्ट्रीय विकास के लिए संयुक्त राज्य एजेंसी' की एक संयुक्त पहल है। इसे जुलाई 2012 के दौरान भारत और दुनिया भर में पिरामिड आबादी के आधार के लिए, अभिनव समाधानों का समर्थन करने और मूल्यांकन करने के लिए सामाजिक प्रभाव वित्तपोषण, उद्यम पूंजीपतियों, कॉर्पोरेट फ़ाउंडेशन, शुरुआती निवेशकों और दाताओं के लिए एक समावेशी मंच के रूप में लॉन्च किया गया था।
इन्वेस्ट इंडिया (Invest India): 'इन्वेस्ट इंडिया' सरकार और फ़िक्की के बीच एक सार्वजनिक-निज़ी सहभागी पहल है, जिसमें फिक्की का हिस्सा 51%, औद्योगिक नीति और संवर्धन विभाग (भारत) का 34% और भारत की राज्य सरकारों का प्रत्येक में 0.5% है। इन्वेस्ट इंडिया को भारतीय कैबिनेट द्वारा कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 25 के तहत सितंबर 2009 में मंज़ूरी दी गई थी।इस पहल का उद्देश्य भारत में विदेशी निवेश परियोजनाओं का त्वरित कार्यान्वयन और घरेलू निवेश के लिए वातावरण में सुधार करना है।
फिक्की द्वारा प्रदत्त सेवाएं:
ए टी ए कारनेट (ATA Carnet): फ़िक्की भारत का एकमात्र राष्ट्रीय ए टी ए कार्नेट ज़ारीकर्ता है, जो ए टी ए कार्नेट्स के लिए एसोसिएशन की गारंटी देता है। ए टी ए कार्नेट का उपयोग टी वी/ फ़िल्म क्रू, पत्रकारों, इंजीनियरों, संगीतकारों और उद्योग द्वारा सीमाओं पर अस्थायी उपकरणों के संचार के लिए किया जाता है।
'वेस्टर्न यूपी चेंबर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज़:
वेस्टर्न यू.पी. चेंबर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज़ की स्थापना 1945 में महान उद्योगपति आर.बी. सेठ गुज़र मल मोदी द्वारा की गई थी, जिसका प्राथमिक उद्देश्य पश्चिमी उत्तर प्रदेश के व्यापार, वाणिज्य और उद्योग को संरक्षित करना और बढ़ावा देना था। इस चेंबर को राज्य और केंद्र सरकार दोनों द्वारा विधिवत मान्यता प्राप्त है। यह चेंबर, पूरी तरह से गैर-राजनीतिक है और यह राज्य के साथ-साथ केंद्र सरकार, व्यापार, वाणिज्य और उद्योग के अन्य प्रतिनिधि निकायों और उद्योग और आर्थिक विकास की समस्याओं का समाधान खोजने में शामिल अन्य सभी निकायों के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखने के लिए प्रयत्नशील रहता है। यह राज्यों और केंद्र सरकार को एकज़ुट करने के लिए निरंतर प्रयत्नशील भी रहता है। इस चेंबर का उद्देश्य, सरकार पर घरेलू निवेश के लिए अनुकूल स्थितियां बनाने के लिए ज़ोर डालना है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश चेंबर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री का मुख्यालय, मेरठ में स्थित है। यह व्यापार और उद्योग में स्थापित और नए उद्यमियों दोनों को वास्तविक लाभ प्रदान करने के लिए संरचित है। इसके सदस्यों को विभिन्न विषयों पर विभिन्न विशेषज्ञ उप-समितियों द्वारा सहायता प्रदान की जाती है।
वेस्टर्न यूपी चेंबर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज़ द्वारा दी जाने वाली सेवाएं:
1.निर्यातकों को मूल प्रमाण पत्र ज़ारी करना।
2. वीज़ा से संबंधित समस्याओं के लिए सिफ़ारिश पत्र ज़ारी करना।
3. विभाग के विभिन्न प्रमुखों के साथ पारस्परिक बैठकें आयोजित करना।
4. संबंधित विभाग के साथ सदस्य की समस्याओं का विश्लेषण करना।
5. व्यापार और उद्योग एवं इसकी भविष्य की संभावनाओं को प्रभावित करने वाली सरकार की नीतियों एवं कार्यक्रमों का आलोचनात्मक विश्लेषण करना।
6. इसका उद्देश्य, यह सुनिश्चित करना है कि व्यापारिक और औद्योगिक समुदाय के विचारों को सरकार द्वारा अच्छी तरह से सुना और विचार किया जाए।
7. यह मंडल, सदस्यों और अतिथि गणमान्य सरकारी अधिकारियों के बीच विचारों के आदान-प्रदान के लिए एक मंच के रूप में कार्य करता है।
8. चेंबर में विभिन्न विषयों पर कार्यशालाएं और सेमिनार आयोजित किए जाते हैं।
9. मासिक पत्रिका के माध्यम से व्यापार, वाणिज्य और उद्योग से संबंधित उपयोगी जानकारी एकत्र और सदस्यों तक प्रसारित की जाती है।
संदर्भ
मुख्य चित्र: वाराणसी में आयोजित इंडो-अमेरिकन चेंबर ऑफ़ कॉमर्स (Indo American Chamber of Commerce (IACC)) की एक बैठक (flickr)
चलिए जानते हैं, जामदानी बुनाई में इस्तेमाल होने वाले धागों और डिज़ाइनों के बारे में
स्पर्शः रचना व कपड़े
Touch - Textures/Textiles
19-02-2025 09:30 AM
Meerut-Hindi
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मेरठ के नागरिकों, क्या आप जानते हैं कि, जामदानी बुनाई, एक पारंपरिक हस्तशिल्प है, जिससे एक हल्का और खूबसूरत डिज़ाइन वाला कपड़ा बनता है। यह कपड़ा अपने खूबसूरत रूपांकनों और डिज़ाइनों के लिए जाना जाता है और आमतौर पर साड़ी बनाने में इस्तेमाल होता है। हमें सबसे अच्छे जामदानी बुनकर आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में मिलते हैं। उत्तर प्रदेश में, इस तरह की बुनाई के प्रमुख केंद्र तांडा (अम्बेडकर नगर ज़िला) और वाराणसी हैं।
तो आज, हम इस बुनाई तकनीक की शुरुआत के बारे में जानेंगे। फिर हम, जामदानी की बुनाई प्रक्रिया के बारे में जानेंगे। इसके बाद, हम तांडा की जामदानी उद्योग पर चर्चा करेंगे। इस संदर्भ में, हम यह जानेंगे कि यहां किस तरह के कपड़े इस्तेमाल होते हैं और कौन-कौन सी चीज़ें बनाई जाती हैं। अंत में, हम तांडा जामदानी उद्योग में इस्तेमाल होने वाले कुछ प्रमुख डिज़ाइनों के बारे में भी जानेंगे।
जामदानी बुनाई का इतिहास और उत्पत्ति
जामदानी बुनाई, एक पुरानी और खास कारीगरी तकनीक है, जिसकी शुरुआत बंगाल क्षेत्र में हुई थी। 9वीं शताब्दी के अरबी यात्री सुलैमान ने, अपनी यात्रा के दौरान लिखा था कि बंगाल के रह्मी राज्य में जो सूती कपड़े बनते थे, वे इतने महीन होते थे कि वे एक मुहर के छल्ले से भी निकल सकते थे। इस समय बुनाई की यह तकनीक बहुत प्रसिद्ध थी और इसका इस्तेमाल शानदार कपड़े बनाने के लिए किया जाता था।
12वीं शताब्दी के आसपास, इस्लामिक संस्कृति का प्रभाव इन कपड़ों पर पड़ा और बुनाई में कई रंग और डिज़ाइन जोड़े गए। जामदानी बुनाई में एक खास तरीका अपनाया जाता था, जिसमें बुनाई के दौरान एक विशेष धागे को डाला जाता था। यह धागा कपड़े पर बिना किसी टूट-फूट के आकर्षक पैटर्न और डिज़ाइन बनाता था। इस तकनीक की वजह से कपड़े पर बहुत ही खूबसूरत और जटिल मोटिफ्स (डिज़ाइन) बनते थे। इनमें से कुछ प्रसिद्ध नाम थे जैसे शबनम (सुबह की ओस), अब-ए-रवान (बहता पानी), और ब्फ़तनामा (हवा की बुनाई)।
मुग़ल सम्राट अकबर के शासनकाल के दौरान, जामदानी बुनाई को और भी बेहतरीन रूप में विकसित किया गया। इस समय, जामदानी बुनाई में फूलों के डिज़ाइन को प्रमुखता दी गई और इसे सबसे सुंदर रूप में पेश किया गया। इस बुनाई के कपड़े, बेहद मुलायम, हल्के और आकर्षक होते थे, और इन्हें खासतौर पर शाही दरबारों और उच्च वर्ग के लोगों द्वारा पहना जाता था।
आज भी जामदानी बुनाई, भारत के कुछ हिस्सों में प्रचलित है, जैसे बंगाल, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में, और यह इन क्षेत्रों की कला की एक अहम पहचान बन चुकी है।
जामदानी बुनाई की प्रक्रिया
जामदानी बुनाई, एक बहुत ही मेहनत और कौशल की मांग करने वाली प्रक्रिया है, जो विशेष रूप से बारीक डिज़ाइनों को कपड़े में बुने जाने की तकनीक है। इस प्रक्रिया में छोटे शटल (धागे डालने के यंत्र) का उपयोग किया जाता है, जिनमें रंगीन, सोने या चांदी के धागे होते हैं, जिन्हें मुख्य धागे (वर्प) के बीच डाला जाता है। इस तकनीक में एक बार में 100 से 300 विभिन्न प्रकार के धागे एक साथ करघा (लूम) पर होते हैं।
साड़ी या अन्य कपड़ों के डिज़ाइनों के लिए, इन शटल्स का उपयोग करके शिल्पकार अलग-अलग पैटर्न बुनते हैं। इसमें कई प्रकार के डिज़ाइन होते हैं, जैसे:
बूटीदार: पूरी साड़ी में फूलों का पैटर्न।
तेरचा: तिरछी पट्टियों में फूलों के डिज़ाइन।
झालर: फूलों का एक जाल या नेटवर्क।
जामदानी बुनाई की शुरुआत बहुत महीन मलमल/मसलिन कपड़े से हुई थी, जो बेहद हल्का और पारदर्शी होता था। यह प्रक्रिया, पहले मुख्य रूप से बनारस और बंगाल में होती थी, लेकिन बाद में यह अन्य क्षेत्रों में भी फैल गई। इस तकनीक की ख़ासियत यह है कि, इसमें एक धागा डिज़ाइन के अनुसार करघे पर बेतहाशा ढंग से डाला जाता है, जिससे एक सटीक और जटिल पैटर्न बनता है।
| Source : Wikimedia
एक कुशल जामदानी कारीगर, एक दिन में केवल एक चौथाई इंच से लेकर एक इंच तक कपड़ा बना सकता है। इसका मतलब यह है कि, एक साड़ी को पूरा करने में कई महीनों या सालों का समय लग सकता है। डिज़ाइन की जटिलता और घनत्व के आधार पर, एक साड़ी बनाने में कारीगर को तीन महीने से लेकर तीन साल तक का समय लग सकता है। इस प्रक्रिया में आमतौर पर दो कारीगरों की टीम की आवश्यकता होती है, जो 10 घंटे प्रति दिन काम करते हैं।
जामदानी बुनाई की प्रक्रिया में जो धागे उपयोग किए जाते हैं, वो भी खास होते हैं। शुरुआत में, मलमल, जो कि सबसे बारीक और हल्का कपड़ा था, का उपयोग किया जाता था, लेकिन अब समय और फैशन की बदलती मांगों के कारण, इसमें अन्य प्रकार के कपड़े भी शामिल किए जाने लगे हैं। जैसे कि सूती कपड़े, जिनमें ऊँचा जी एस एम/GSM (ग्राम प्रति वर्ग मीटर) होता है, ताकि आज के फैशन की मांग पूरी की जा सके।
तांडा में जामदानी बुनाई का परिचय
उत्तर प्रदेश में जामदानी बुनाई के मुख्य केंद्र, तांडा ( फ़ैज़ाबाद ज़िला) और बनारस हैं। तांडा में सफ़ेद जामदानी कपड़े बुनने की परंपरा, कम से कम 19वीं सदी से चल रही है। यहाँ के जामदानी कपड़े पर सफ़ेद रंग के डिज़ाइन होते हैं, जो पूरी तरह से सफ़ेद और पत्तेदार पैटर्न से ढंके होते हैं। इस बुनाई में सफ़ेद रंग के धागे से डिज़ाइन बनाए जाते हैं, जो कपड़े से थोड़ा मोटे होते हैं, जिससे डिज़ाइन थोड़ा धुंधला दिखता है, जबकि कपड़ा पारदर्शी होता है।
तांडा में बुनाई के लिए, बिना रंगे हुए ग्रे धागे (unbleached gray yarn) का उपयोग किया जाता है और डिज़ाइन के लिए सफ़ेद ब्लीच किए हुए धागे का । बनारस में सफ़ेद और सुनहरे धागों का भी इस्तेमाल होता है।
तांडा के कपड़े बहुत नाज़ुक होते हैं और इनकी बुनाई में सिर्फ़ सफ़ेद धागे का ही उपयोग किया जाता है। तांडा में सजावट के लिए अच्छे से ब्लीच किए हुए धागों का उपयोग किया जाता है। जो धागे सजावट के लिए होते हैं, उन्हें काटा नहीं जाता, बल्कि वे लटकते रहते हैं और फिर डिज़ाइन में जोड़े जाते हैं।
जामदानी बुनाई में इस्तेमाल होने वाले धागे और कपड़े
जामदानी बुनाई में तीन प्रमुख प्रकार के धागे इस्तेमाल होते हैं:
1. सिर्फ़ सूती: यह पूरी तरह से सूती धागों से बनाई जाती है, जिसमें रेशम का इस्तेमाल नहीं होता।
2. आधा रेशम: इसमें क्षैतिज (horizontal) धागे, रेशम के होते हैं, जबकि लंबवत (vertical) धागे, सूती के होते हैं।
3. पूरा रेशम: इसमें दोनों प्रकार के धागे (क्षैतिज और लंबवत) रेशम के होते हैं।
कपड़े का प्रकार:
1. मलमल: यह अत्यधिक महीन और पारदर्शी सूती कपड़ा है, जिसमें धागों की संख्या 150 से 300 के बीच होती है। यह पारंपरिक जामदानी बुनाई में इस्तेमाल होने वाला कपड़ा है।
2. सिल्क और सूती मिश्रण: कई जामदानी डिज़ाइनों में रेशम और सूती धागों का मिश्रण होता है, जिससे कपड़े की बनावट और गुणवत्ता बेहतर होती है।
उत्तर प्रदेश की जामदानी बुनाई में पाए जाने वाले कुछ प्रमुख मोटिफ़्स/रूपांकन
तांडा की जामदानी बुनाई में सफ़ेद रंग के डिज़ाइन के साथ कच्चे कपास या मलमल का उपयोग किया जाता था, लेकिन अब यह केवल एक किंवदंती बनकर रह गई है । इन डिज़ाइनों में कोई रंगीन धागे या ज़री का इस्तेमाल नहीं किया जाता था (जबकि बनारस में, ज़री का धागा और सफ़ेद और काले धागे का संयोजन इस्तेमाल किया जाता था, और ढाका में, सफ़ेद और सोने के साथ विभिन्न रंगों के सूती धागे का उपयोग किया जाता था)। तांडा के डिज़ाइनों में एकल-धागे के साथ बुनाई की जाती थी और आकृतियाँ बिना मोड़े हुए 2-धागे वाले धागों से बनाई जाती थीं।
इन डिज़ाइनों का रूपांकन ज़्यादातर ज्यामितीय आकारों में होता है, जिनकी रूपरेखा गोल या घुमावदार नहीं होती। इनकी बुनाई में चार से पाँच महीने का समय लगता था। पुपुल जयकर के अनुसार, यह डिज़ाइन दो या दो से ज़्यादा सफ़ेद रंगों में तैयार किए जाते थे, जिनमें विभिन्न मोटाई के धागों का उपयोग प्रकाश, छाया, पारदर्शिता और अपारदर्शिता के प्रभावों को दिखाने के लिए किया जाता था। सफ़ेद रंग के विभिन्न शेड्स, जैसे ब्राइट गोल्ड (चमकीला सुनहरा), टुथ वाइट (दांत जैसा सफ़ेद), प्योर सैंडल वाइट (चंदन जैसा सफ़ेद), ऑटम क्लाउड वाइट (बादल जैसा सफ़ेद), और ऑटम मून वाइट (चाँद जैसा सफ़ेद), में ये डिज़ाइन तैयार होते थे।
तांडा की जामदानी में इस्तेमाल होने वाले कुछ प्रमुख रूपांकन इस प्रकार हैं:
1. गुलदस्ता बूटी (फूलदान में सजाए गए फूलों का गुच्छा)
2. अनानास बूटी (अनानास फल आकृति)
3. फ़रीद बूटी ( पूरी साड़ी या कपड़े को डिज़ाइन से भरने के लिए उपयोग की जाने वाली बहुत ही सूक्ष्म बूटी पैटर्न)
4. शाही फ़र्दी बूटी (सूक्ष्म डॉट्स से भरा पैटर्न),
5. मसूर बूटी (दाल के आकार की बूटी भराव के रूप में)
6. मक्खी बूटी (मक्खी के आकार की छोटी बूटी),
7.चौफुलिया बूटी (4 पंखुड़ी वाले फूल),
8. जामेवार (पूरा कपड़ा पत्तों और फूलों से भरा हुआ),
9. इश्का पेंच (बेल के रूप में जटिल पत्तियां, भराव के रूप में उपयोग की जाती हैं)
10. खड़ी बेल (लंबाई में फूलों और पत्तियों की बेल)
संदर्भ
मुख्य चित्र: जामदानी बुनाई की कला (Wikimedia)
आज़ादी से पूर्व हुए भारतीय रेलवे के विकास ने, आज के तेज़ रेल परिवहन को दिया है आकार
य़ातायात और व्यायाम व व्यायामशाला
Locomotion and Exercise/Gyms
18-02-2025 09:33 AM
Meerut-Hindi

हमारे शहर मेरठ में रेलवे प्रणाली, लोगों के लिए एक प्रमुख जीवन रेखा है। मेरठ जंक्शन, शहर को पूरे भारत के प्रमुख क्षेत्रों से जोड़ने वाला मुख्य रेलवे स्टेशन है। यह दैनिक आवागमन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो निवासियों और यात्रियों के लिए, परिवहन का एक विश्वसनीय और किफ़ायती साधन प्रदान करता है। यहाँ का रेलवे नेटवर्क, माल और संसाधनों की आसान आवाजाही की सुविधा प्रदान करके, इस क्षेत्र में व्यापार और आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देकर, स्थानीय व्यवसायों का भी समर्थन करता है। इसके अलावा, रेलवे प्रणाली की पहुंच ने, मेरठ को आसपास के गंतव्यों की यात्रा करने वाले पर्यटकों और तीर्थयात्रियों के लिए, एक महत्वपूर्ण पड़ाव बना दिया है। इससे क्षेत्रीय पर्यटन में इसकी भूमिका बढ़ गई है। कुल मिलाकर, रेलवे, मेरठ की वृद्धि और विकास का एक अभिन्न अंग बना हुआ है।
आज, हम भारतीय रेलवे पर चर्चा करेंगे, तथा भारत में परिवहन को आकार देने में इसकी भूमिका की खोज करेंगे। फिर हम भारतीय रेलवे के इतिहास पर नज़र डालेंगे, एवं पिछले कुछ वर्षों में इसकी उत्पत्ति और विकास का पता लगाएंगे। इसके बाद हम, आज़ादी से पूर्व, भारतीय रेलवे के विकास की जांच करेंगे, जिसमें, उस समय, भारतीय परिवहन व्यवस्था में आए कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तनों और सुधारों पर प्रकाश डाला जाएगा। अंत में, हम भारत के सबसे व्यस्त रेलवे स्टेशनों का पता लगाएंगे, और उन प्रमुख स्टेशनों की पहचान करेंगे, जो सबसे अधिक यात्री यातायात संभालते हैं।
भारतीय रेलवे-
रेलवे, भारत में यात्री और माल परिवहन का एक प्रमुख साधन है। रेलवे विस्तार ने न केवल भारत को एकजुट करने का काम किया है, बल्कि, इसने कृषि और अर्थव्यवस्था के विकास में भी सहायता की है। भारतीय रेलवे नेटवर्क 63,221 रूट किलोमीटर तक फ़ैला है, और देश भर में 7,031 रेलवे स्टेशनों को जोड़ता है, जो 16 रेलवे क्षेत्रों में स्थित हैं।
रेलवे का विकास स्थानीय भू-भाग के साथ-साथ आर्थिक और प्रशासनिक कारणों से भी काफ़ी प्रभावित होता है। उत्तरी मैदानों का विस्तृत स्तर, उनकी विशाल आबादी और धन के साथ, रेलवे विस्तार के लिए सबसे अनुकूल था। पर्वतीय प्रायद्वीपीय क्षेत्र में पहाड़ियों, घाटियों और सुरंगों के माध्यम से रेलवे लाइनें बनाई गईं। जबकि, हिमालयी क्षेत्रों के ऊंचे पहाड़, जिनमें कम लोग और आर्थिक संभावनाएं हैं, रेलवे निर्माण के लिए अनुकूल नहीं हैं।
भारतीय रेलवे का इतिहास-
भारतीय रेलवे, दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है। भारतीय रेलवे द्वारा जनता को मुख्य रूप से तीन प्रकार की सेवाएं प्रदान की जाती हैं, जिनमें द्रुतगामी या एक्सप्रेस ट्रेनें, मेल एक्सप्रेस और यात्री ट्रेनें शामिल हैं। अगर किराये की बात करें, तो यात्री ट्रेनों का किराया सबसे कम और मेल एक्सप्रेस ट्रेनों का किराया सबसे ज़्यादा है। दूसरी ओर, एक्सप्रेस ट्रेनों का किराया मध्यम होता है।
1832 में, ब्रिटिश भारत में रेलवे प्रणाली स्थापित करने का विचार पहली बार प्रस्तावित किया गया था। उस समय, ब्रिटेन में रेल यात्रा अपनी प्रारंभिक अवस्था में थी। लेकिन, ईस्ट इंडिया कंपनी, एक व्यापक रेल नेटवर्क विकसित करने के लाभों को जानती थी। एक लंबे दशक की निष्क्रियता के बाद, 1844 में, भारत के गवर्नर-जनरल लॉर्ड हार्डिंग (Governor-General Lord Hardinge) द्वारा निजी उद्यमियों को रेल प्रणाली स्थापित करने की अनुमति दी गई। वर्ष 1845 तक, दो कंपनियों – “ईस्ट इंडियन रेलवे कंपनी” और “ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेलवे”, का गठन किया गया।
16 अप्रैल 1853 को, भारत में पहली ट्रेन – बोरी बंदर, बॉम्बे (वर्तमान मुंबई) और ठाणे के बीच, लगभग 34 किलोमीटर की दूरी पर चली थी। 1880 में तीन प्रमुख बंदरगाह शहरों – बॉम्बे, मद्रास और कलकत्ता के आसपास, लगभग 14,500 किलोमीटर तक का रेल नेटवर्क विकसित किया गया था। फिर 1901 में वाणिज्य एवं उद्योग विभाग के मार्गदर्शन में, रेलवे बोर्ड का गठन किया गया। लेकिन फिर भी, इसकी शक्तियां वायसराय (Viceroy) के पास निहित थीं।
ब्रिटिश राज में भारतीय रेलवे का विकास-
ब्रिटिश राज के दौरान, रेलवे की विकास दर बहुत ऊंची थी। 1853 में, भाप इंजनों के भारत आने के बाद, 20 साल से भी कम समय में, इसके सभी प्रमुख महानगरीय केंद्र एक व्यापक रेलवे नेटवर्क से जुड़ गए। अगले 50 वर्षों में, देश की पहाड़ी रेलवे बिछाई गई। भारत में रेलवे के उद्घाटन के एक सदी से भी कम समय में, 600 किलोमीटर की वार्षिक दर से, 54,000 किलोमीटर ट्रैक भारत के नेटवर्क में जोड़े गए। हालांकि, देश की आज़ादी के बाद 69 वर्षों में, सरकारें केवल 10,000 किलोमीटर ट्रैक ही बिछा पाईं थी। लेकिन, तब से आज तक, देश में रेलवे का विकास चल ही रहा है।
भारत के कुछ सबसे व्यस्त रेलवे स्टेशन-
भारतीय रेलवे, हर दिन, 20,000 से अधिक ट्रेनों के माध्यम से, 23 मिलियन से अधिक लोगों को सेवा प्रदान करती है। अंग्रेज़ों द्वारा देश में रेल प्रणाली की शुरुआत के बाद से, विभिन्न लाभों के कारण, भारतीय लोगों ने परिवहन के अन्य साधनों की तुलना में ट्रेनों को चुना है। आज भी, लोगों का एक बड़ा वर्ग, अपनी दैनिक परिवहन आवश्यकताओं और लंबी दूरी की यात्राओं के लिए, रेलवे को चुनता है।
- हावड़ा जंक्शन रेलवे स्टेशन
हावड़ा जंक्शन, भारत में सबसे व्यस्त स्टेशन, और सबसे अधिक प्लेटफ़ार्मों तथा यात्री संख्या वाला स्टेशन होने का रिकॉर्ड रखता है। विक्टोरियन काल (Victorian times) से ही, यह स्टेशन एक महत्वपूर्ण और व्यस्त रेल जंक्शन रहा है। यह उन प्राचीन स्टेशनों में से एक है, जो 19वीं शताब्दी से अभी भी उपयोग में हैं।
- नई दिल्ली स्टेशन
इसमें कोई शक नहीं है कि, देश की राजधानी का रेलवे स्टेशन व्यस्त होगा। दिल्ली में सबसे व्यस्त अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, कई व्यावसायिक मुख्यालय, पर्यटन स्थल और अन्य जगहें हैं। इस प्रकार, नई दिल्ली में रेलवे स्टेशन का उपयोग करने वाले लोगों की संख्या भी काफ़ी अधिक है। यह स्टेशन, भारत में हर दिन, स्टेशन के अंदर और बाहर चलने वाली सबसे अधिक संख्या में अनोखी ट्रेनों का रिकॉर्ड रखता है।
- छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस
छत्रपति शिवाजी टर्मिनस या विक्टोरिया टर्मिनस, महाराष्ट्र के मुंबई में स्थित एक विरासत स्थल है। 19वीं सदी में विक्टोरियन गोथिक शैली (Victorian Gothic style) में निर्मित यह संरचना, पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र भी है। यह स्टेशन, सजावटी लोहे की रेलिंग, ग्रिल, बेलस्ट्रेड, लकड़ी की नक्काशी और उभरते कलाकारों की कलाकृतियों के लिए प्रसिद्ध है। आप इस स्टेशन के बाहर, विज्ञान, कृषि, वाणिज्य और इंजीनियरिंग का प्रतिनिधित्व करने वाली कुछ मूर्तियां भी देख सकते हैं।
- कानपुर सेंट्रल रेलवे स्टेशन
कानपुर सेंट्रल, भारत के शीर्ष केंद्रीय रेलवे स्टेशनों में से एक है। इस स्टेशन के नाम दुनिया का सबसे बड़ा इंटरलॉकिंग रेल मार्ग (Interlocking rail route) होने का रिकॉर्ड है। यह स्टेशन, 11 प्रमुख लाइनों को कवर करता है।
- कल्याण जंक्शन
कल्याण जंक्शन, महाराष्ट्र का सबसे व्यस्त और महत्वपूर्ण स्टेशन है। यह स्टेशन, मुंबई में स्थित है और छह प्रमुख लाइनें रखता और मुंबई को देश के लगभग सभी प्रमुख शहरों से जोड़ता है। यह जंक्शन, लंबी दूरी की ट्रेनों और उप-शहरी ट्रेनों दोनों की सेवा प्रदान करता है।
संदर्भ
मुख्य चित्रं: खड़गपुर रेलवे वर्कशॉप का स्रोत : Wikimedia
अश्वगंधा व गिलोय का उचित सेवन, आपको कई तरह से दे सकता है, ठंड से राहत
पेड़, झाड़ियाँ, बेल व लतायें
Trees, Shrubs, Creepers
17-02-2025 09:29 AM
Meerut-Hindi
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जैसे ही सर्दियां आती है, हमारे क्षेत्र में कड़कड़ाती ठंडी बढ़ने लगती है। इस कारण, हम मेरठ वासियों का मज़बूत और स्वस्थ रहना महत्वपूर्ण है। अश्वगंधा और गिलोय, दो ऐसे आयुर्वेदिक पौधे हैं, जो आपको ठंड के महीनों के दौरान फ़िट रहने में मदद कर सकते हैं। अश्वगंधा आपकी ऊर्जा को बढ़ाता है, तनाव को कम करता है और आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली को मज़बूत बनाता है। जबकि, गिलोय सर्दी और बुखार जैसी सामान्य सर्दियों की बीमारियों से लड़ने में मदद करता है।
आज, हम अश्वगंधा पर चर्चा करेंगे, जो एक एडाप्टोजेनिक जड़ी बूटी (Adaptogenic herb) है, जो तनाव कम करने और ऊर्जा बढ़ाने वाले गुणों के लिए जानी जाती है। हम अश्वगंधा के स्वास्थ्य लाभों का भी पता लगाएंगे। इसमें हमारी सहनशक्ति में सुधार, मानसिक स्पष्टता को बढ़ावा देना, और समग्र कल्याण का समर्थन करना शामिल है। इसके बाद, हम गिलोय पर चर्चा करेंगे, जो एक अन्य शक्तिशाली जड़ी-बूटी है। यह प्रतिरक्षा-बढ़ाने और विषहरण गुणों के लिए प्रसिद्ध है। फिर, हम गिलोय के स्वास्थ्य लाभों पर नज़र डालेंगे, जिसमें, संक्रमण से लड़ना और समग्र स्वास्थ्य को बढ़ावा देना शामिल है।
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अश्वगंधा-
अश्वगंधा या विथानिया सोम्नीफ़ेरा (Withania somnifera), एशिया और अफ़्रीका की मूल जड़ी-बूटी है। इसे “भारतीय जिनसेंग (Indian ginseng)” भी कहा जाता है। हज़ारों वर्षों से पारंपरिक भारतीय आयुर्वेदिक चिकित्सा में, दर्द और सूजन को कम करने, पोषण को बढ़ावा देने और अनिद्रा के इलाज के साथ-साथ, अन्य स्थितियों के इलाज के लिए, इसका उपयोग किया जाता रहा है।
अश्वगंधा को एडाप्टोजेन माना जाता है। इसका मतलब है कि, यह आपके शरीर को, तनाव को बेहतर ढंग से प्रबंधित करने में मदद करता है। हालांकि, यह पुष्टि करने के लिए कि, यह कितनी अच्छी तरह काम करता है, अश्वगंधा के लाभों पर अधिक शोध की आवश्यकता है। लेकिन अगर आपको तनाव और चिंता है, या नींद में परेशानी है, तो यह मददगार हो सकता है। इसमें ऐसे रसायन होते हैं, जो मस्तिष्क को शांत करने, सूजन को कम करने, रक्तचाप को कम करने और प्रतिरक्षा प्रणाली को बदलने में मदद कर सकते हैं।
जिन स्थितियों के लिए, एडाप्टोजेन के रूप में अश्वगंधा का उपयोग किया जाता है, उनमें अनिद्रा, उम्र बढ़ना, चिंता और कई अन्य समस्याएं शामिल हैं। लेकिन, इनमें से अधिकांश उपयोगों का समर्थन करने के लिए, कोई अच्छा वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।
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अश्वगंधा के स्वास्थ्य लाभ-
अश्वगंधा को आयुर्वेद में “जड़ी-बूटियों का राजकुमार” कहा जाता है, क्योंकि इसमें चिकित्सीय प्रभावों की एक प्रभावशाली विस्तृत श्रृंखला है। शायद चूंकि, अश्वगंधा अधिक जटिल जड़ी-बूटियों में से एक है, जिसमें कई फ़ाइटोकेमिकल घटक (Phytochemical constituents) होते हैं, इसलिए, इसमें प्रभावों की इतनी विस्तृत श्रृंखला उत्पन्न होती है। आइए, अब अश्वगंधा के फ़ायदों की सूची पर नज़र डालें।
1. तनाव और चिंता–
अश्वगंधा सूजन और संक्रमण को कम करके, तथा एड्रिनल हार्मोन (Adrenal hormones) और न्यूरोट्रांसमीटर (Neurotransmitters) को संशोधित करके, शरीर को तनाव उत्पन्न करने वाली स्थितियों के अनुकूलन में मदद करता है।
2. मांसपेशियों की ताकत–
अश्वगंधा माइटोकॉन्ड्रियल फ़ंक्शन (Mitochondrial function) को बढ़ाकर, मांसपेशियों में ऊर्जा उत्पादन बढ़ाता है। अश्वगंधा को मांसपेशियों के द्रव्यमान व ताकत को बढ़ाने, और प्रतिरोध प्रशिक्षण के साथ, शरीर में वसा को कम करने के लिए भी जाना जाता है। अश्वगंधा शरीर की क्षति को कम करने और ठीक करने, एवं व्यायाम के दौरान मांसपेशियों की आरोग्य प्राप्ति को बढ़ावा देने में भी मदद करता है।
3. हृदय तथा श्वास संबंधी सहनशक्ति–
अध्ययनों से पता चलता है कि, अश्वगंधा की जड़ों में ऊर्जा को बढ़ावा देने की क्षमता होती है। स्वस्थ पुरुषों और महिलाओं में हृदय सहनशक्ति और ताकत में सुधार करके, यह पुष्ट प्रदर्शन पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
4. थायरॉइड स्वास्थ्य–
तनाव, थायरॉइड डिस्फ़ंक्शन (Thyroid dysfunction) का प्रमुख कारण है। अश्वगंधा में एक विशिष्ट लचीलापन होता है, और यह शरीर को तनाव से निपटने में मदद करता है एवं हार्मोन संतुलन को नियंत्रित करता है।
5. नींद–
नींद किसी भी व्यक्ति के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है, और गुणवत्तापूर्ण नींद, हमारे मानसिक और शारीरिक प्रदर्शन का समर्थन करती है। सदियों से, नींद लाने की क्षमता के कारण, इस हेतु अश्वगंधा की सिफ़ारिश की जाती रही है।
6. रोग प्रतिरोधक क्षमता
आधुनिक साक्ष्यों के साथ पारंपरिक उपयोग से पता चलता है कि, अश्वगंधा प्रतिरक्षा को बढ़ाने में सहायता कर सकता है। अश्वगंधा कोशिका-मध्यस्थ प्रतिरक्षा में सुधार करके, बीमारी के खिलाफ़ शरीर की सुरक्षा में सुधार करता है।
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गिलोय क्या है?
गिलोय (टाइनोस्पोरा कॉर्डिफ़ोलिया – Tinospora cordifolia) एक चढ़ाई करने या आरोहण वाली झाड़ी है, जो वानस्पतिक परिवार मेनिस्पर्मेसी (Menispermaceae) के अन्य पेड़ों पर उगती है। यह पौधा, भारत का मूल है, लेकिन, चीन (China), ऑस्ट्रेलिया (Australia) एवं अफ़्रीका (Africa) के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में भी पाया जाता है।
इसे आयुर्वेदिक और लोक चिकित्सा में एक आवश्यक जड़ी–बूटी पौधा माना जाता है, जहां लोग कई प्रकार की स्वास्थ्य स्थितियों के इलाज के रूप में, इसका उपयोग करते हैं।
गिलोय (Giloy) के पौधे के सभी भागों का उपयोग, आयुर्वेदिक चिकित्सा में किया जाता है। हालांकि, माना जाता है कि, इसके तने में सबसे अधिक लाभकारी यौगिक होते हैं। भारतीय आयुर्वेदिक औषधकोश ने, दवा में उपयोग के लिए, गिलोय पौधे के तने को मंज़ूरी दे दी है।
गिलोय को अन्य नामों के अलावा – गिलोय, गुडुची और अमृता भी कहा जाता है। “गिलोय” शब्द एक हिंदू पौराणिक शब्द है। यह एक पौराणिक स्वर्गीय अमृत को संदर्भित करता है, जो दिव्य प्राणियों को हमेशा युवा रखता है। जबकि, संस्कृत में, “गुडुची” का अर्थ – पूरे शरीर की रक्षा करने वाला पदार्थ है। साथ ही, “अमृत” का अर्थ – अमरता है।
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गिलोय के फ़ायदे-
1.रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना–
इसमें एंटीऑक्सिडेंट (Antioxidant) गुण होते हैं, जो कोशिकाओं को ऑक्सीडेटिव क्षति से बचा सकते हैं। इससे शरीर को फिर से तरोताज़ा होने में मदद मिलती है। मुक्त कणों को बाहर निकालकर और यकृत एवं गुर्दे से विषाक्त पदार्थों को निकालकर, यह हमारे स्वास्थ्य में सुधार कर सकता है। यह यकृत रोगों, मूत्र पथ रोग संक्रमण करने वाले बैक्टीरिया, खुजली जैसे त्वचा संबंधी विकार और अन्य रोगजनकों से लड़ता है।
2.पुराने बुखार का इलाज–
गिलोय एक प्राकृतिक सूजन-रोधी और ज्वरनाशक जड़ी-बूटी है, जो रक्त में प्लेटलेट (Platelets) की गिनती बढ़ा सकती है, और डेंगू बुखार तथा मलेरिया जैसी कई जीवन-घातक स्थितियों के लक्षणों को कम कर सकती है। संक्रमण से लड़ने और पुनर्प्राप्ति प्रक्रिया को तेज़ करने के लिए, प्रतिरक्षा को बढ़ावा देने में भी गिलोय मदद करता है।
3.पाचन में सुधार-
आंवले के साथ, आधा ग्राम गिलोय पाउडर का नियमित रूप से सेवन करने से, दस्त, कोलाइटिस (Colitis), मतली और हाइपरएसिडिटी (Hyperacidity) जैसी पाचन संबंधी समस्याएं दूर रहती हैं।
4.रक्त शर्करा स्तर को नियंत्रित करना-
गिलोय में बेर्बेरिन (Berberine) नामक एक घटक होता है, जो मधुमेह की दवा – मेटफ़ॉर्मिन (Metformin) के समान काम करता है। रक्त शर्करा विनियमन के अलावा, बेर्बेरिन कम घनत्व वाले लिपोप्रोटीन कोलेस्ट्रॉल (Lipoprotein cholesterol) और रक्तचाप के स्तर को कम करने में मदद करता है।
5.कई बीमारियों का इलाज व रोकथाम-
इस जड़ी बूटी का उपयोग, अस्थमा, गठिया और नेत्र विकारों जैसी विभिन्न बीमारियों के इलाज के लिए किया जा सकता है। यह आंखों की ध्यान अवधि में सुधार करने में भी मदद करता है, और मानसिक तनाव तथा चिंता को रोकता है।
6.त्वचा स्वास्थ्य-
गिलोय के तने, त्वचा की एलर्जी को प्रबंधित करने और त्वचा की गुणवत्ता बढ़ाने में बेहद सहायक होते हैं। गिलोय में मौजूद एंटीऑक्सिडेंट, शरीर में मुक्त कणों से लड़ते हैं, त्वचा कोशिकाओं के स्वास्थ्य में सुधार करते हैं और त्वचा कोशिकाओं को पुनर्जीवित करते हैं।
इसमें एंटी-एजिंग गुण (Anti-aging properties) भी होते हैं, और यह महीन रेखाओं, झुर्रियों और रूखी त्वचा को कम करता है।
संदर्भ
मुख्य चित्र: बाएं में अश्वगंधा के बीज और दाएं में गिलोय का पौधा (Wikimedia)
चलिए आज, मेरठ की वास्तुकला, संस्कृति और खान पान को दर्शाते कुछ चलचित्रों का आनंद लें
द्रिश्य 3 कला व सौन्दर्य
Sight III - Art/ Beauty
16-02-2025 09:16 AM
Meerut-Hindi
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हमारे प्यारे मेरठ वासियों, आप इस बात से सहमत होंगे कि हमारा शहर एक सुंदर, आकर्षक और प्राचीन शहर है, जिसमें अनंत संभावनाएँ हैं। इसकी खूबसूरत गलियाँ, सिंधु घाटी युग की इमारतों से सजी हैं। इसके अलावा, आपको यहाँ संस्कृति, कला, परंपराओं और त्योहारों का एक अनोखा मिश्रण मिलता है जो इस शहर की प्राचीन जड़ों और आधुनिक जीवंतता को दर्शाता है। यहां मौजूद परीक्षितगढ़ किला, यहां के प्रमुख पर्यटक आकर्षणों में से एक है। इसके अलावा, यहां के विक्टोरिया पार्क और गांधी बाग जैसे कुछ अविश्वसनीय उद्यान, न केवल उत्तर प्रदेश के इस पर्यटन स्थल की सुंदरता को बढ़ाते हैं, बल्कि पर्यटकों और स्थानीय लोगों, दोनों को परिवार और प्रियजनों के साथ घूमने के लिए आकर्षक जगहें भी प्रदान करते हैं। सरधना के निकट कई ईसाई तीर्थ स्थल भी यहां घूमने के लिए एक लोकप्रिय स्थान हैं। महाभारत के प्रसिद्ध कौरवों का राज्य हस्तिनापुर भी मेरठ के नज़दीक है। हस्तिनापुर में घूमने के लिए कई आकर्षण केंद्र हैं, जैसे पुराना पांडेश्वर मंदिर, कर्ण मंदिर, दिगंबर जैन मंदिर और लोटस मंदिर। मेरठ में कई मॉल भी हैं, जहाँ आप खरीदारी करने जा सकते हैं। हालाँकि, एक प्रामाणिक खरीदारी के अनुभव के लिए, आपको मेरठ में अबुलैन और सदर मार्केट जाना चाहिए। तो आइए, आज कुछ चलचित्रों के माध्यम से हम, अपने शहर की संस्कृति और प्रसिद्ध पर्यटक आकर्षणों के बारे में जानें। हमारे शहर में और इसके आसपास घूमने के लिए कुछ सबसे प्रसिद्ध स्थानों में शहीद स्मारक, परीक्षितगढ़ किला, बाबा औघड़नाथ मंदिर आदि शामिल हैं। उसके बाद हम, मेरठ के बेहतरीन स्ट्रीट फ़ूड पर नज़र डालेंगे, जिसमें यहाँ के प्रसिद्ध हलवा परांठा, कुल्हड़ वाली दाल, गजक, बेड़मी पूरी, पापड़ी चाट आदि व्यंजन शामिल हैं।
संदर्भ:
चलिए जानते हैं, गोवर्धन पर्वत घूमने के लिए सबसे अच्छे समय और प्रमुख आकर्षणों को
पर्वत, चोटी व पठार
Mountains, Hills and Plateau
15-02-2025 09:27 AM
Meerut-Hindi
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यह बात, ज़्यादा चौंकाने वाली नहीं है कि, मेरठ के कुछ लोग, अपने जीवन में कम से कम एक बार, गोवर्धन पर्वत की यात्रा पर
गए होंगे।गोवर्धन पर्वत, जिसे माउंट गोवर्धन और गिरिराज भी कहा जाता है, उत्तर प्रदेश के मथुरा ज़िले में स्थित एक पवित्र हिंदू स्थल है। यह पर्वत, गोवर्धन और राधा कुंड इलाके में 8 किलोमीटर लंबी पहाड़ी के रूप में फैला है, जो वृंदावन से लगभग 21 किलोमीटर (13 मील) की दूरी पर है। यह वर्षों से एक मशहूर पर्यटन स्थल रहा है।
आज, आइए समझने की कोशिश करते हैं कि इस पहाड़ी को पवित्र स्थल क्यों माना जाता है। इसके बाद, हम गोवर्धन पर्वत और इसके आस-पास के कुछ प्रमुख पर्यटन स्थलों और खास आकर्षणों के बारे में जानेंगे। फिर हम, इस जगह पर यात्रा करने से पहले ध्यान रखने वाली ज़रूरी बातों और जानकारियों पर नज़र डालेंगे। अंत में, हम जानेंगे कि, यहां हवाई मार्ग, रेल और सड़क के ज़रिए, कैसे पहुंचा जा सकता है।
गोवर्धन पर्वत को पवित्र स्थल क्यों माना जाता है ?
मथुरा से पश्चिम दिशा में लगभग 23 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गोवर्धन पर्वत भगवान कृष्ण से जुड़ा हुआ है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान कृष्ण ने ब्रजवासियों को मूसलाधार बारिश से बचाने के लिए इस पर्वत को अपनी उंगली
पर सात दिनों और सात रातों तक छत्र की तरह उठा लिया था।ऐसा उन्होंने देवराज इंद्र के घमंड को तोड़ने के लिए किया था।
साल 1520 में, सेठ वल्लभाचार्य ने इस घटना की स्मृति में, इस पर्वत के शिखर पर एक मंदिर बनवाया। यह स्थान, 21 किलोमीटर लंबी गोवर्धन पर्वत परिक्रमा के लिए प्रसिद्ध है, जिसे करने से भक्तों को आशीर्वाद और आत्मिक शांति मिलती है। भगवान कृष्ण ने ब्रजवासियों को आदेश दिया था कि वे इस पवित्र पर्वत की पूजा करें।
गोवर्धन का सबसे महत्वपूर्ण दिन गुरु पूर्णिमा होता है। इस दिन लाखों भक्त यहां आकर परिक्रमा करते हैं, जिसे आत्म-शुद्धि का प्रतीक माना जाता है। इसके अलावा, गोवर्धन के प्रमुख आकर्षणों में 400 साल पुराना हर देव जी मंदिर, लाल पत्थरों से बना हरिदेव मंदिर और राजा सूरजमल के सुंदर नक्काशी वाली छतरियों से
सजा हुआ कुसुम सरोवर शामिल हैं।
गोवर्धन पर्वत, गिरिराज के नाम से भी प्रसिद्ध है। यह स्थान, भगवान कृष्ण के बाल्यकाल की अनगिनत कथाओं से भरा हुआ है। वेदों के अनुसार, यह पर्वत स्वर्ग से धरती पर गिरा हुआ है। कथा यह भी कहती है कि जब गोवर्धन के लोग भारी बारिश से परेशान थे, तो भगवान कृष्ण ने इस पर्वत को सात दिनों तक
उठाकर उनकी रक्षा की थी।यही वजह है कि यह पर्वत हिंदू धर्म में असीम श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है।
गोवर्धन पर्वत और इसके आस पास के प्रमुख आकर्षण
कुसुम सरोवर –फूलों का सरोवर: कुसुम सरोवर, एक सुंदर और शांत झील है, जो सुगंधित फूलों से घिरी हुई है।यह जगह बहुत ख़ास मानी जाती है क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि यहाँ राधा और कृष्ण मिला करते थे।झील के चारों सुंदर छतरियां बनी हुई हैं, जिन पर उनकी कहानियां चित्रित हैं।
समय: सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक
गिरिराज मंदिर: गिरिराज मंदिर, भगवान कृष्ण का पवित्र घर है।यह जगह भक्तों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यहाँ लोग भगवान की पूजा और प्रार्थना करने आते हैं।
राधा कुंड और श्याम कुंड: ये दो पवित्र तालाब हैं।कहा जाता है कि, श्याम कुंड भगवान कृष्ण ने बनाया था और राधा कुंड देवी राधा ने।यहाँ स्नान करने से आत्मा शुद्ध होती है और भगवान से जुड़ाव बढ़ता है।
मानसी गंगा झील: गोवर्धन पर्वत पर स्थित यह झील, इस क्षेत्र की सबसे बड़ी झील है।इसे बहुत पवित्र माना जाता है। कहा जाता है कि इसका पानी, शरीर और मन को शुद्ध करता है।यह झील, परिक्रमा शुरू करने और ख़त्म करने का मुख्य स्थान भी है।
दांगहटी मंदिर: यह मंदिर, भगवान कृष्ण के गोवर्धन पर्वत उठाने की कहानी से जुड़ा है।यहाँ भगवान कृष्ण की मूर्ति है, जो पर्वत उठाते हुए दिखाई गई है।यह मंदिर, उनकी शक्ति और प्रेम का प्रतीक है।
गोवर्धन पर्वत के ये सभी स्थान, भक्तों और पर्यटकों के लिए बहुत ख़ास हैं।यहाँ आकर हर कोई भगवान की कहानियों से अवगत हो सकता है।
गोवर्धन पर्वत की यात्रा से पहले जानने योग्य कुछ महत्वपूर्ण बातें
यात्रा का सबसे अच्छा समय: गोवर्धन पर्वत घूमने का सबसे अच्छा समय, सर्दियों में होता है, जो अक्टूबर से मार्च तक रहता है।इस समय मौसम सुहावना होता है, जिससे आप आराम से दर्शनीय स्थलों का आनंद ले सकते हैं।
क्या करें यहाँ: परिक्रमा के अलावा, पर्यटक, यहाँ योग, ध्यान और भजन-कीर्तन जैसे आध्यात्मिक गतिविधियों में भी भाग ले सकते हैं।गोवर्धन पर्वत की शांत और पवित्र हवा, इसे आत्मिक शांति पाने के लिए एक आदर्श स्थान बनाती है।
प्रवेश शुल्क और समय: गोवर्धन पर्वत, सुबह 7 बजे से शाम 7 बजे तक आम लोगों के लिए खुला रहता है। यहाँ प्रवेश के लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाता।
गोवर्धन पर्वत कैसे पहुँचें?
हवाई मार्ग से: गोवर्धन का अपना कोई हवाई अड्डा नहीं है। इसका सबसे नज़दीकी घरेलू हवाई अड्डा, आगरा में है।लेकिन आगरा एयरपोर्ट से देश के प्रमुख शहरों तक कम उड़ानें होने के कारण, दिल्ली का इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा,
एक बेहतर विकल्प माना जाता है।यह भारत के प्रमुख शहरों और अंतरराष्ट्रीय गंतव्यों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।दिल्ली से आप टैक्सी बुक करके गोवर्धन पहुँच सकते हैं।
रेल मार्ग से: गोवर्धन से सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन, मथुरा में है, जो यहाँ से लगभग 22 किलोमीटर दूर है।मथुरा रेलवे स्टेशन, दिल्ली, लखनऊ और कानपुर जैसे उत्तर भारत के प्रमुख शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। इस रेलवे स्टेशन से आप टैक्सी बुक करके गोवर्धन पहुँच सकते हैं।
सड़क मार्ग से: गोवर्धन, सड़क मार्गों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम द्वारा मथुरा से गोवर्धन के लिए कई बसें संचालित होती हैं।मथुरा से आप, टैक्सी या स्थानीय बसों के ज़रिए गोवर्धन पहुँच सकते हैं।
संदर्भ
मुख्य चित्र: गोवर्धन पर्वत और कुसुम सरोवर (Wikimedia)
सर्दियों में, अपने दिल का अधिक खयाल रखना है आवश्यक !
विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा
Thought II - Philosophy/Maths/Medicine
14-02-2025 09:22 AM
Meerut-Hindi
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मेरठ में कैलाश सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल, मैक्स मेडसेंटर और आनंद अस्पताल जैसे कई प्रसिद्ध हृदय उपचार संस्थान हैं। हमारे शहर में अचानक दिल के दौरे से मौतें होना, आम बात है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि, सर्दियों में यह समस्या और बढ़ जाती है। इसलिए आज विश्व जन्मजात हृदय दोष जागरूकता दिवस (World Congenital Heart Defect Awareness Day) पर, हम भारत में मौजूद अलग-अलग प्रकार के हृदय रोगों पर बात करेंगे| इनमें कोरोनरी हार्ट या धमनी डिज़ीज़ ( Coronary Artery Disease (CAD)), हृदय अतालता (Arrhythmia) और कार्डियोमायोपैथी (Cardiomyopathy) जैसे गंभीर रोग भी शामिल हैं। साथ ही, हम यह समझने की कोशिश करेंगे कि हार्ट अटैक और हार्ट फ़ेलियर में क्या अंतर है और इनके कारण क्या हैं। इसके बाद, हम हार्ट अटैक के सामान्य लक्षणों पर चर्चा करेंगे। इसके साथ ही, कुछ ऐसी जीवनशैली की आदतों को जानेंगे, जो सर्दियों में हार्ट अटैक (heart attack) के जोखिम को कम कर सकतीहैं।
अंत में, यह भी जानेंगे कि अचानक होने वाले हार्ट अटैक की आपातकालीन की स्थिति में प्राथमिक उपचार कैसे दिया जाए।
चलिए शुरुआत भारत में प्रचलित हृदय रोगों के विभिन्न प्रकारों को समझने के साथ करते हैं
1. कोरोनरी धमनी रोग (सी ए डी): यह हृदय की सबसे आम और गंभीर समस्या है। इसमें कोरोनरी धमनियों में रुकावटें होती हैं, जो हृदय को रक्त और ऑक्सीजन की आपूर्ति करती हैं। इससे हृदय की मांसपेशियों तक रक्त प्रवाह कम हो जाता है। यह समस्या आमतौर पर एथेरोस्क्लेरोसिस के कारण होती है, जिसे धमनियों का सख्त होना भी कहा जाता है। इस स्थिति में धमनियों में प्लाक नामक पदार्थ जम जाता है, जो वर्षों तक बना रह सकता है!
2. हृदय अतालता (दिल की अनियमित धड़कन): जब दिल बहुत तेज़, बहुत धीमा, या अनियमित रूप से धड़कता है, तो इसे अतालता कहा जाता है। कुछ अतालताएँ सामान्य होती हैं, लेकिन गंभीर अतालताएँ, कार्डियक अरेस्ट (cardiac arrest) और स्ट्रोक (stroke) जैसे जोखिम बढ़ा सकती हैं। इसके लक्षणों में चक्कर आना और बेहोशी शामिल हो सकते हैं। यह स्थिति अन्य हृदय रोगों से विकसित हो सकती है या अपने आप भी हो सकती है। धूम्रपान, शराब, मोटापा, उच्च रक्त शर्करा, और स्लीप एपनिया जैसे कारण इस बीमारी का जोखिम बढ़ाते हैं।
3. हृदय वाल्व रोग: हृदय में चार वाल्व होते हैं, जो रक्त के प्रवाह को नियंत्रित करते हैं। किसी असामान्यता के कारण ये वाल्व सही से खुल और बंद नहीं हो पाते। इससे रक्त प्रवाह अवरुद्ध हो सकता है या रक्त लीक हो सकता है। इसके कारणों में आमवाती बुखार, जन्मजात हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, कोरोनरी धमनी रोग, और दिल के दौरे से होने वाला नुकसान शामिल हैं।
4. कार्डियोमायोपैथी (हृदय की मांसपेशियों का रोग): इस बीमारी में हृदय की मांसपेशियां खिंच जाती हैं, मोटी हो जाती हैं, या सख्त हो जाती हैं। इससे हृदय कमजोर हो जाता है और सही से पंप नहीं कर पाता। इसके कारण आनुवंशिक हृदय रोग, दवाओं या विषाक्त पदार्थों की प्रतिक्रिया, वायरल संक्रमण, और कैंसर की कीमोथेरेपी हो सकते हैं। कई बार इसका सही कारण पता नहीं चल पाता।
5. हार्ट अटैक (मायोकार्डियल इंफार्क्शन (myocardial infarction) ): हार्ट अटैक तब होता है जब हृदय के किसी हिस्से में रक्त प्रवाह अचानक कम हो जाता है। यह आमतौर पर रक्त प्रवाह को रोकने वाली रुकावट के कारण होता है! इन कारणों में कोरोनरी धमनी में प्लाक का जमाव भी शामिल है। कभी-कभी यह रक्त की आपूर्ति और मांग में असंतुलन के कारण भी हो सकता है। यदि हृदय के उस हिस्से में पर्याप्त रक्त नहीं पहुंचता, तो वहां की मांसपेशियां ख़त्म होने लगती हैं। हार्ट अटैक का सबसे सामान्य कारण कोरोनरी धमनी रोग होता है। इसमें कोरोनरी धमनियां, जो हृदय तक ऑक्सीजन युक्त रक्त पहुंचाती हैं, प्लाक के जमने के कारण संकरी या अवरुद्ध हो जाती हैं। इससे रक्त का प्रवाह मुश्किल हो जाता है। इसके अलावा, कोरोनरी धमनी में अचानक ऐंठन भी हार्ट अटैक का कारण बन सकती है।
6. हार्ट फ़ेलियर (कंजेस्टिव हार्ट फ़ेलियर (congestive heart failure) ): हार्ट फ़ेलियर इस बात का संकेत है कि हृदय शरीर के विभिन्न हिस्सों में पर्याप्त रक्त पंप नहीं कर पा रहा है। यह समस्या तब होती है जब हृदय में सही मात्रा में रक्त नहीं भरता या वह ठीक से पंप नहीं कर पाता। हालांकि इसके नाम से यह लगता है कि हृदय रुक गया है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं होता। हार्ट फ़ेलियर अक्सर ऐसी बीमारियों के कारण होता है जो हृदय को अत्यधिक काम करने के लिए मजबूर करती हैं। यह हृदय को चोट या संक्रमण के कारण भी हो सकता है।
सिस्टोलिक हार्ट फ़ेलियर: इसे कम इजेक्शन अंश भी कहा जाता है। यह तब होता है जब हृदय प्रभावी रूप से सिकुड़ नहीं पाता।
आइए, अब जानते हैं कि सर्दियों में हार्ट अटैक का खतरा क्यों बढ़ जाता है?
जब ठंड लगती है, तो त्वचा और हाथ-पैरों की रक्त वाहिकाएँ सिकुड़ जाती हैं। इस कारण बहुत कम गर्मी हमरे शरीर से बाहर निकल पाती है। इस प्रक्रिया को 'वासोकॉन्स्ट्रिक्शन' कहा जाता है। लेकिन, वाहिकाओं के संकुचन के कारण बाकी रक्त प्रवाह में दबाव बढ़ जाता है। इसका मतलब है कि हृदय को रक्त पंप करने के लिए अधिक मेहनत करनी पड़ती है। इससे हृदय गति और रक्तचाप दोनों बढ़ जाते हैं। यह शरीर की ठंड से बचाव की सामान्य प्रतिक्रिया है, लेकिन जिन लोगों को पहले से हृदय संबंधी बीमारी है, उनके लिए यह अतिरिक्त तनाव हानिकारक हो सकता है।
आइए, अब हार्ट अटैक के लक्षणों को पहचानते हैं:
छाती में दर्द या दबाव: यह दर्द छाती के बीच या बाईं ओर महसूस हो सकता है। यह कुछ मिनटों तक रहता है या बार-बार लौट सकता है।
शरीर के अन्य हिस्सों में दर्द: गर्दन, पीठ, कंधों, या एक/दोनों हाथों में दर्द या बेचैनी हो सकती है।
मतली और पसीना: चक्कर आना, ठंडा पसीना आना, मतली या उल्टी महसूस होना।
सांस लेने में तक्लीफ़: यह लक्षण अक्सर सीने में दर्द के साथ शुरू होता है, लेकिन कभी-कभी सीने में दर्द से पहले भी हो सकता है।
अचानक थकान: बिना किसी स्पष्ट कारण के असामान्य थकान महसूस होना।
सर्दियों में हार्ट अटैक के अधिक जोखिम को कैसे रोकें?
स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं: दिल के लिए लाभकारी साबित होने वाले आहार का सेवन करें। नियमित एरोबिक व्यायाम करें और तनाव को कम करें।
जोखिम कारकों का प्रबंधन करें: उच्च रक्तचाप, मधुमेह, कोलेस्ट्रॉल की समस्या और तंबाकू के उपयोग को नियंत्रित करें।
ठंड से बचाव करें: परतों में कपड़े पहनें और ठंड से बचने के लिए सही कपड़े पहनें।
भारी काम से बचें: यदि पहले से हृदय रोग है, तो भारी गतिविधियों से बचें।
लक्षणों पर ध्यान दें: यदि सांस लेने में कठिनाई या सीने में दर्द महसूस हो, तो तुरंत चिकित्सा सहायता लें।
हार्ट अटैक के मरीज को आपातकालीन प्राथमिक चिकित्सा कैसे दें?
शांत करवाएं: व्यक्ति को बैठने, आराम करने और शांत रहने के लिए कहें।
कपड़े ढीले करें: किसी भी तंग कपड़े को तुरंत ढीला करें।
दवा लेने में मदद करें: अगर व्यक्ति नाइट्रोग्लिसरीन जैसी कोई दवा लेता है, तो उसे दवा लेने में सहायता करें।
आपातकालीन सहायता बुलाएं: यदि दर्द, आराम या दवा लेने के 3 मिनट बाद भी बना रहता है, तो तुरंत चिकित्सा सहायता के लिए कॉल करें।
सी पी आर शुरू करें: यदि व्यक्ति बेहोश है, प्रतिक्रिया नहीं दे रहा है, और उसकी नाड़ी नहीं चल रही है, तो 102 या स्थानीय आपातकालीन नंबर पर कॉल करें और सी पी आर शुरू करें।
बच्चों के लिए सी पी आर: यदि बच्चा बेहोश है और नाड़ी नहीं चल रही है, तो पहले 1 मिनट तक सी पी आर करें और फिर 102 पर कॉल करें।
ए ई डी का उपयोग करें: अगर स्वचालित बाहरी डिफ़िब्रिलेटर (Automated external defibrillator (ए ई डी)) उपलब्ध है, तो डिवाइस पर दिए गए निर्देशों का पालन करें।
कुल मिलाकर सर्दियों में हृदय का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है। समय पर कदम उठाकर आप जोखिम को कम कर सकते हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/2xsmyvqg
https://tinyurl.com/247yuy6b
https://tinyurl.com/2ca4g23d
https://tinyurl.com/2cqgnuju
https://tinyurl.com/y3qnsjrw
मुख्य चित्र स्रोत: pexels
अंतरिक्ष अनुसंधान के माध्यम से, बड़ा बदलाव आ सकता है, भारत की स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में
आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक
Modern State: 1947 to Now
13-02-2025 09:36 AM
Meerut-Hindi
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लगभग 3.2 मिलियन (32 लाख) वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ, भारत, दुनिया का सातवां सबसे बड़ा देश है, जबकि 1.4 अरब की आबादी के साथ, भारत पहले स्थान पर है। भारत की आबादी, जो मुख्य रूप से ग्रामीण और दूर-दराज़ के इलाकों में निवास करती है, के लिए बुनियादी न्यूनतम स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करना हमेशा से स्वास्थ्य प्रशासन की प्राथमिकताओं में से एक रहा है। आज, राष्ट्रीय अंतरिक्ष प्रणालियों द्वारा उन्नत संचार और रिमोट सेंसिंग सैटेलाइटों के माध्यम से, संचार और प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन सहित विभिन्न राष्ट्रीय आवश्यकताओं को पूरा किया जाता है। विशेष रूप से जमीनी स्तर की आबादी को लाभ पहुंचाने के संदर्भ में, ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’ (Indian Space Research Organisation (ISRO)) द्वारा पेयजल मिशन, वाटरशेड प्रबंधन, टेली-शिक्षा और अधिक महत्वपूर्ण रूप से टेलीमेडिसिन/टेली-स्वास्थ्य (Telemedicine) के क्षेत्रों में कई परियोजनाओं को सफलतापूर्वक कार्यान्वित किया जा रहा है, जिनके द्वारा सुदूर, ग्रामीण और वंचित आबादी के लिए विशेष स्वास्थ्य देखभाल को सक्षम बनाने का कार्य किया जाता है। क्या आप जानते हैं कि, टेलीमेडिसिन, दूरसंचार प्रौद्योगिकी के माध्यम से रोगियों के दूरस्थ निदान और उपचार करने की प्रक्रिया है। तो आइए, आज भारत के चिकित्सा क्षेत्र के विकास में अंतरिक्ष अन्वेषण की भूमिका के बारे में जानते हैं और टेलीमेडिसिन के बारे में समझते हुए देखते हैं कि यह तकनीक, कैसे काम करती है। आगे, हम इस तकनीक के लाभों पर कुछ प्रकाश डालेंगे। इसके साथ ही, हम वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य देखभाल और स्वस्थता में सुधार लाने वाली नासा की कुछ तकनीकों के बारे में जानेंगे। अंत में, हम भारत की स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में क्रांति लाने में अंतरिक्ष अनुसंधान की भविष्य की संभावनाओं के बारे में बात करेंगे।
भारत में चिकित्सा क्षेत्र के विकास में अंतरिक्ष अन्वेषण की भूमिका:
चिकित्सा प्रतिबिम्बन और निदानिकी (Medical Imaging and Diagnostics): अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी ने चिकित्सा प्रतिबिम्बन और निदानिकी में प्रगति को बढ़ावा दिया है। अंतरिक्ष अभियानों के लिए विकसित विभिन्न प्रौद्योगिकियों, जैसे उच्च-रिज़ॉल्यूशन इमेजिंग उपकरणों को चिकित्सा उपयोग के लिए अनुकूलित करके उपयोग किया गया है। अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में नवाचारों के कारण ही मैग्नेटिक रेज़ोनेंस इमेजिंग (Magnetic Resonance Imaging (MRI)) और कंप्यूटेड टोमोग्राफ़ी ( Computed Tomography (CT)) जैसी इमेजिंग तकनीकों की प्रगति संभव हुई है।
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स्वास्थ्य परिवीक्षण उपकरण: अंतरिक्ष अभियानों में उपयोग किए जाने वाले सेंसर और इलेक्ट्रॉनिक्स के लघुकरण ने स्वास्थ्य परिवीक्षण उपकरणों का मार्ग प्रशस्त किया है। ये उपकरण महत्वपूर्ण संकेतों, गतिविधि स्तरों और अन्य स्वास्थ्य मापदंडों को ट्रैक कर सकते हैं, जिससे व्यक्तियों को अपने स्वास्थ्य का प्रबंधन करने में मदद मिलती है और स्वास्थ्य सेवा प्रदाता दूर से मरीज़ों की जांच कर सकते हैं।
वैक्सीन विकास और औषधि परीक्षण: अंतरिक्ष में मौजूद सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण का वातावरण आणविक संरचना और जैविक प्रक्रियाओं में अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकता है। अंतरिक्ष प्रयोगों ने शोधकर्ताओं को यह समझने में मदद की है कि सूक्ष्मजीव कैसे व्यवहार करते हैं और मानव कोशिकाएं कैसे प्रतिक्रिया करती हैं, जिससे अधिक प्रभावी दवा का विकास हो सका है।
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टेलीमेडिसिन क्या है:
टेलीमेडिसिन, दूर-दराज़ एवं ग्रामीण इलाकों में, जहां प्रत्यक्ष रूप से स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर या तो अनुपलब्ध हैं या उनका पहुंचना संभव नहीं है, स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों द्वारा स्वास्थ्य सेवाओं को पहुंचाने की प्रक्रिया है, जिसके द्वारा बीमारी और चोटों के निदान, उपचार और रोकथाम, अनुसंधान और मूल्यांकन, और सतत शिक्षा के लिए वैध जानकारी के आदान-प्रदान के लिए सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों का उपयोग किया जाता है, जिससे सभी व्यक्तियों और उनके समुदायों का स्वास्थ्य संभव हो सके।
यह तकनीक कैसे काम करती है:
टेलीमेडिसिन संचार, प्रौद्योगिकी, सूचना प्रौद्योगिकी, बायोमेडिकल इंजीनियरिंग और चिकित्सा विज्ञान का संगम है। इस प्रणाली में रोगी और विशेषज्ञ डॉक्टर, दोनों के लिए अनुकूलित हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर का उपयोग किया जाता है, साथ ही रोगी के लिए ई सी जी (ECG), एक्स-रे (X-ray) और पैथोलॉजी माइक्रोस्कोप/कैमरा (Pathology Microscope) जैसे कुछ नैदानिक उपकरण भी प्रदान किए जाते हैं, जो एक बहुत छोटे एपर्चर टर्मिनल (Very Small Aperture Terminal (VSAT)) प्रणाली के माध्यम से जुड़े होते हैं और इसरो के नेटवर्क हब स्टेशन द्वारा नियंत्रित किए जाते हैं।
संचार प्रणालियों के साथ, सरल कंप्यूटर से युक्त एक टेलीमेडिसिन प्रणाली के माध्यम से, मरीज़ों से संबंधित चिकित्सा छवियां और अन्य जानकारी, विशेषज्ञ डॉक्टरों को डिजिटल डेटा पैकेट के रूप में, उपग्रह लिंक के माध्यम से अग्रिम या वास्तविक समय के आधार पर भेजी जा सकती है। ये पैकेट, विशेषज्ञ केंद्र में प्राप्त किए जाते हैं। छवियों और अन्य सूचनाओं का पुनर्निर्माण किया जाता है ताकि, विशेषज्ञ डॉक्टर, डेटा का अध्ययन कर सकें, निदान कर सकें, रोगी के साथ बातचीत कर सकें। टेलीमेडिसिन सुविधा इस प्रकार विशेषज्ञ डॉक्टर और हजारों किलोमीटर दूर स्थित रोगी को एक-दूसरे से बात करने में सक्षम बनाती है। विशेष रूप से शल्य चिकित्सा के बाद, फ़ॉलोअप के मामले में, यह दूरस्थ टेली परामर्श और उपचार बहुत अधिक मूल्यवान है क्योंकि रोगी को अनावश्यक रूप से यात्रा करने की आवश्यकता नहीं होती है और इससे पैसे और समय की बचत होती है। इस तरह, स्वास्थ्य देखभाल के अभ्यास में सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों का व्यवस्थित अनुप्रयोग स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली की पहुंच सुनिश्चित करता है।
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टेलीमेडिसिन के लाभ:
आराम और सुविधा: टेलीमेडिसिन के साथ, बीमार होने पर आपको डॉक्टर के कार्यालय या क्लिनिक तक जाने की ज़रूरत नहीं है। आप अपने समय के आधार पर, काम से छुट्टी लिए बिना, डॉक्टर से अपने घर पर परामर्श कर सकते हैं।
संक्रामक बीमारियों का नियंत्रण: कोविड -19, फ़्लू और अन्य संक्रामक रोगों के प्रसार को रोकने के लिए, संभावित संक्रामक रोग के रोगियों की पूर्व-स्क्रीनिंग करने के लिए डॉक्टर टेलीस्वास्थ्य अपॉइंटमेंट का उपयोग कर सकते हैं। इससे संक्रमित लोग, अपने घर से ही स्वास्थ्य परामर्श ले लेते हैं, जिससे अन्य लोगों के कीटाणुओं के संपर्क में आने से बचने में मदद मिलती है।
बेहतर मूल्यांकन: टेलीमेडिसिन, कुछ विशेष चिकित्सकों के लिए लाभदायक है, क्योंकि, इसकी सहायता से डॉक्टर, आपके घरेलू वातावरण में देख सकते हैं। उदाहरण के लिए, एलर्जी विशेषज्ञ आपके परिवेश में उन चीज़ों की पहचान करने में सक्षम हो सकते हैं जो एलर्जी का कारण बनते हैं।
प्राथमिक देखभाल और दीर्घकालिक स्थिति प्रबंधन: नियमित स्वास्थ्य देखभाल के लिए पारिवारिक , आंतरिक चिकित्सा और बाल रोग विशेषज्ञ जैसे प्राथमिक देखभाल चिकित्सकों से नियमित परामर्श आवश्यक है। टेलीमेडिसिन से नियमित रूप से किसी डॉक्टर से जुड़ना आसान हो जाता है।
नासा प्रौद्योगिकियां, जो वैश्विक स्वास्थ्य देखभाल में सुधार कर सकती हैं:
1. चिकित्सीय निदान के लिए, नैनोसेंसर उपकरण (Nanosensor Array for Medical Diagnoses): नासा के नैनोसेंसर उपकरण से सिर्फ़ सांस का उपयोग करके बीमारियों का निदान किया जा सकता है, क्योंकि कई बीमारियाँ विशिष्ट गंधों के साथ होती हैं। उदाहरण के लिए, किसी व्यक्ति द्वारा छोड़ी गई सांस में एसीटोन टाइप I (Acetone Type 1) का मौजूद होना, मधुमेह का संकेत हो सकता है।
2.) मेटाबोलिक विश्लेषण के लिए पोर्टेबल यूनिट (Portable Unit for Metabolic Analysis (PUMA)): बैटरी चालित यह मास्क, ऑक्सीज़न स्तर, तापमान, हृदय गति और गैस के दबाव सहित महत्वपूर्ण जानकारी पर नज़र रखता है। यह उपकरण, वास्तविक समय विश्लेषण के लिए कंप्यूटर पर वायरलेस तरीके से डेटा रिले करता है। इस प्रौद्योगिकी का उपयोग फेफड़ों से संबंधित रोगियों की निगरानी या सैनिकों और एथलीटों के फिटनेस स्तर का मूल्यांकन करने के लिए भी किया जा सकता है।
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3.) नैनोट्यूब प्रौद्योगिकी के साथ अणु फ़िल्टर (Filtering Molecules with Nanotube Technology) : अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर पुन: उपयोग के लिए अपशिष्ट जल को शुद्ध करने हेतु, नासा के इंजीनियरों ने एक उच्च शक्ति वाला निस्पंदन उपकरण बनाया है, जो पानी से दूषित पदार्थों को साफ़ करता है। फ़िल्टर किया गया पानी, न केवल पीने के लिए सुरक्षित होता है, बल्कि यह चिकित्सा प्रक्रियाओं में उपयोग करने के लिए भी पर्याप्त स्वच्छ होता है। इस कारण से यह उपकर,ण विश्व के सीमित स्वच्छ जल आपूर्ति वाले क्षेत्रों के लिए अत्यंत उपयुक्त है।
4.) पूर्ण स्पेक्ट्रम इन्फ्रासोनिक स्टेथोस्कोप : (Full Spectrum Infrasonic Stethoscope (LAR-TOPS-278)): "स्विस आर्मी चाकू" के आकार वाला यह उन्नत उपकरण, घातक हृदय और फेफड़ों की समस्याओं का पता लगा सकता है जिनके बारे में आमतौर पर सीटी स्कैन या इकोकार्डियोग्राम जैसे अधिक महंगे और समय लेने वाले तरीकों का उपयोग करके ही जानकारी प्राप्त की जा सकती है। इसके अलावा, इसका उपयोग, भ्रूण हृदय की जांच के लिए भी किया जा सकता है।
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भविष्य में भारत की स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में क्रांति लाने हेतु अंतरिक्ष अनुसंधान की संभावनाएँ:
- अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (International Space Station) के लिए डिज़ाइन किए गए रोबोटिक्स की चिकित्सा प्रौद्योगिकी का उपयोग, सटीकता और निपुणता सुनिश्चित करते हुए, स्तन कैंसर के प्रारंभिक निदान और उपचार में उपयोग के लिए, नैदानिक परीक्षणो के लिए किया जा सकता है।
- अंतरिक्ष यात्री, एक विशेष रूप से विकसित, हल्के, उपयोग में आसान और सटीक उपकरण में सांस लेते हैं, जो नाइट्रिक ऑक्साइड के स्तर को मापता है। इसका उपयोग, अब अस्थमा रोगियों की भी मदद के लिए भी किया जा रहा है।
- अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर, 2001 से जटिल प्लाज़्मा पर अनुसंधान हो रहा है, जिसका उपयोग, संभावित रूप से घावों को कीटाणुरहित करने, उन्हें तेज़ी से ठीक में मदद करने और यहां तक कि कैंसर से लड़ने के लिए किया जा सकता है। कई नैदानिक परीक्षणों में, 3,500 से अधिक उदाहरणों में, चिकित्सकों ने पाया कि यह प्लाज़्मा पुराने घावों को कीटाणुरहित कर सकता है और घावों को तेज़ी से ठीक करने में मदद कर सकता है।
- संक्रामक रोग मॉडलिंग के लिए, भू-स्थानिक डेटा और सैटेलाइट छवियां, महत्वपूर्ण उपकरण बन रहे हैं। भविष्य में, सैटेलाइट का उपयोग, यह अनुमान लगाने के लिए किया जा सकता है कि वायरस कहां उभरने की संभावना है, विभिन्न क्षेत्रों पर उनके प्रभाव को माप सकते हैं और इमारतों और सड़कों की स्वचालित रूप से पहचान करके उन समुदायों का पता लगा सकते हैं जो अज्ञात क्षेत्रों में संक्रमण के प्रति संवेदनशील हो सकते हैं।
- अलगाव से निपटने के लिए, अंतरिक्ष यात्रियों द्वारा उपयोग की जाने वाली अलगाव और विकासशील तकनीकें, सामाजिक दूरी और अलगाव की स्थिति से गुज़र रहे व्यक्तियों के मानसिक स्वास्थ्य को संरक्षित करने में मदद कर सकती हैं, खासकर महामारी के दौरान।
स्वास्थ्य देखभाल के साथ, अंतरिक्ष-तकनीक के समामेलन से व्यापक पहुंच, निपुणता और सटीकता के साथ, अत्याधुनिक सुविधाएं प्रदान करने की उम्मीद है जिसके परिणामस्वरूप भारतीय और वैश्विक चिकित्सा पारिस्थितिकी तंत्र में भारी बदलाव आ सकता है।
संदर्भ
मुख्य चित्र: रिसोर्ससैट-2A (Resourcesat-2A) नामक एक सैटेलाइट : (Wikimedia)
कैंसर के उपचार के लिए, विकिरण चिकित्सा तक, सभी की पहुंच, कैसे की जा सकती है सुनिश्चित ?
विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा
Thought II - Philosophy/Maths/Medicine
12-02-2025 09:29 AM
Meerut-Hindi
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विकिरण चिकित्सा, जिसे रेडियोथेरेपी (Radiotherapy) भी कहा जाता है, एक प्रकार का कैंसर उपचार है। इस उपचार में, कैंसर कोशिकाओं को मारने और ट्यूमर को सिकोड़ने के लिए विकिरण का उपयोग किया जाता है। इस चिकित्सा का उपयोग, कैंसर के प्रारंभिक चरण में या उसके फैलने के बाद भी इलाज के लिए किया जा सकता है। विकिरण चिकित्सा दो प्रकार से दी जा सकती है आपके शरीर के अंदर या बाहर। बाहरी विकिरण थेरेपी में उच्च-ऊर्जा किरणों को एक मशीन से शरीर पर एक सटीक बिंदु तक लक्षित किया जाता है। विकिरण चिकित्सा में कैंसर कोशिकाओं की आनुवंशिक सामग्री को नष्ट किया जाता है। हालांकि, विकिरण चिकित्सा के दौरान, कैंसर कोशिकाओं के साथ-साथ, स्वस्थ कोशिकाएं भी क्षतिग्रस्त हो सकती हैं। फिर भी, विकिरण चिकित्सा का लक्ष्य, यथासंभव कम स्वस्थ कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाते हुए कैंसर का इलाज करना है। तो आइए, आज कैंसर के इस इलाज के बारे में विस्तार से जानते हैं। इसके साथ ही, हम भारत में विकिरण उपचार की पहुंच में, असमानताओं के लिए ज़िम्मेदार कारकों पर कुछ प्रकाश डालेंगे और अपने देश में रेडियोथेरेपी की औसत लागत का पता लगाएंगे। अंत में, हम कुछ तरीकों और पहलों पर चर्चा करेंगे जिनके माध्यम से भारत में विकिरण चिकित्सा में सुधार किया जा सकता है।
टेल विकिरण चिकित्सा क्यों दी जाती है:
विकिरण चिकित्सा का उपयोग, लगभग हर प्रकार के कैंसर के इलाज के लिए किया जाता है। वास्तव में, कैंसर से पीड़ित आधे से अधिक लोगों को उनके उपचार के हिस्से के रूप में विकिरण चिकित्सा प्राप्त होती ही है। विकिरण चिकित्सा का उपयोग कुछ ऐसी स्थितियों के इलाज के लिए भी किया जा सकता है जो कैंसरकारक नहीं हैं। इसमें ऐसे ट्यूमर शामिल हो सकते हैं, जो कैंसरग्रस्त नहीं हैं, जिन्हें सौम्य ट्यूमर कहा जाता है।
कैंसर से पीड़ित लोगों में विकिरण चिकित्सा का उपयोग कैसे किया जाता है:
- कैंसर के एकमात्र इलाज के रूप में, इसे प्राथमिक उपचार कहा जाता है।
- सर्जरी से पहले, कैंसर को छोटा करने के लिए, इसे नियोएजुवेंट (neoadjuvant) थेरेपी कहा जाता है।
- सर्जरी के बाद, किसी भी शेष कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि को रोकने के लिए, इसे सहायक चिकित्सा कहा जाता है।
- कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने के लिए, कीमोथेरेपी जैसे अन्य उपचारों के साथ।
- उन्नत कैंसर के कारण होने वाले लक्षणों से राहत पाने के लिए।
भारत में विकिरण उपचार तक पहुंच में असमानताओं के लिए ज़िम्मेदार कारक:
भारत में विकिरण उपचार तक पहुंच में असमानताओं के लिए ज़िम्मेदार सबसे आम कारकों में सीमित बुनियादी ढांचा, भौगोलिक और वित्तीय बाधाएं शामिल हैं। दुनिया भर में कार्यरत 14,875 मेगावोल्टेज विकिरण उपकरणों (Megavoltage Radiation Apparatuses) की कुल संख्या में से 63%, उच्च आय वाले देशों में स्थित हैं, 28% उच्च और मध्यम आय वाले देशों में, जबकि केवल 9% निम्न और मध्यम आय वाले देशों में । यह असमानता, उल्लेखनीय रूप से तब और अधिक स्पष्ट हो जाती है जब वहां की आबादी पर विचार किया जाता है, यह देखते हुए कि उच्च आय वाले देशों में वैश्विक आबादी का केवल पांचवां हिस्सा ही निवास करता है।
1.4 अरब की वर्तमान आबादी वाले भारत में, केवल 779 टेलीथेरेपी मशीनें (जो अनुशंसित 2040 से 62% कम), 175 सिमुलेटर (अनुशंसित 520 से 66% कम), और 413 ब्रैकीथेरेपी मशीनें (अनुशंसित 650 से 36% कम) हैं। इंडिया रेडियोथेरेपी मार्केट रिपोर्ट 2022 से 2030 (India Radiotherapy Market Report 2022 to 2030) के अनुसार, लगभग, भारत में हर साल, 40 नई रेडियोथेरेपी की मशीनें आती हैं और 15 पुरानी मशीनें हटाई जाती हैं, जिससे कुल नई मशीनों की संख्या, 25 हो जाती है। ये 25 अतिरिक्त मशीनें, भारत की 25 मिलियन लोगों की वार्षिक जनसंख्या वृद्धि दर को पूरा करने के लिए अपर्याप्त हैं, जहाँ कैंसर के लगभग दो-तिहाई रोगियों को विकिरण उपचार की आवश्यकता होती है। भारत में महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर दूसरा सबसे आम कैंसर बना हुआ है। निष्कर्षों से पता चलता है कि, सर्वाइकल कैंसर के उपचार की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए, 109 बाहरी रेडियोथेरेपी (external radiotherapy) और 127 ब्रैकीथेरेपी (brachytherapy) मशीनों की आवश्यकता होगी। वर्तमान संसाधनों को देखते हुए, प्रति वर्ष सर्वाइकल कैंसर से पीड़ित लगभग 14,000 महिलाओं को उपचार प्राप्त करने में देरी होगी।
भारत में विकिरण चिकित्सा तक पहुंच में, भौगोलिक बाधाएं बड़ी असमानताएं उत्पन्न करती हैं। उपलब्ध आंकड़ों से पता चलता है कि, भारत की 50% से अधिक आबादी, मध्य और पूर्वी क्षेत्रों में रहने के बावजूद, लगभग 60% विकिरण उपचार सुविधाएं, भारत के दक्षिणी और पश्चिमी क्षेत्रों में स्थित हैं। इसके अलावा, भारत के पूर्वी क्षेत्र में रहने वाली मात्र 26% आबादी के पास उस क्षेत्र में स्थित 11% रेडियोथेरेपी सुविधाओं तक सीधी पहुंच है।भले ही ग्रामीण भारत में कैंसर की घटनाएं शहरी भारत की तुलना में लगभग आधी हैं, लेकिन ग्रामीण भारत में कैंसर से मृत्यु दर दोगुनी है। वहीं माध्यमिक और तृतीयक अस्पताल बड़े पैमाने पर शहरी क्षेत्रों में केंद्रित हैं।
भारत के आठ मेट्रो शहरों में, जिनमें राष्ट्रीय जनसंख्या का लगभग 10.9% हिस्सा रहता है, भारत की 38% रेडियोथेरेपी सुविधाएं उपलब्ध हैं। राज्यों और क्षेत्रों के बीच निजी क्षेत्र की सुविधाओं का वितरण सार्वजनिक क्षेत्र की तुलना में और भी अधिक विषम है। इसलिए, भारत के अधिकांश ग्रामीण और साथ ही कई शहरी क्षेत्रों में विकिरण उपचार सेवाओं तक पहुंच लगभग न के बराबर है, जिससे विकिरण चिकित्सा के उपयोग में असमानताएं पैदा होती हैं। परिणामस्वरूप, जब तक मरीज देखभाल की तलाश करते हैं, तब तक वे उन्नत चरणों में पहुंच जाते हैं।
भारत में विकिरण उपचार तक पहुंच को सीमित करने वाला एक अन्य प्रमुख कारक, वित्तीय बाधाएं हैं। भारत जैसे देश में, विकिरण उपचार सहित कैंसर उपचार की लागत किसी भी अन्य बीमारी से सबसे अधिक है और यह किसी भी बीमारी के लिए अस्पताल में भर्ती होने के कुल औसत खर्च का लगभग 2.5 गुना है। कैंसर के इलाज में व्यय का बड़ा हिस्सा विकिरण चिकित्सा से आता है। भारत में 75% से अधिक कैंसर उपचार का खर्चा रोगियों और उनके परिवारों द्वारा वहन किया जाता है। इसके अलावा, नैदानिक उपकरण, दवा आपूर्ति, डे-केयर सुविधाओं, ऑपरेशन थिएटर, रेडियोथेरेपी मशीन इत्यादि से संबंधित बुनियादी ढांचा भी सीमित है, जो बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है, जिससे प्रतीक्षा अवधि अधिक होती है और निदान एवं इलाज में देरी होती है। निजी स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं के उपयोग के परिणामस्वरूप, अधिकांश सुविधाओं में उपचार की लागत बढ़ जाती है।
भारत में विकिरण चिकित्सा की औसत लागत:
विकिरण से पहले उपचार की लागत:
- परामर्श शुल्क: अस्पताल के प्रकार और विशेषज्ञों के आधार पर परामर्श शुल्क, 500 रुपये से 5000 रुपये तक हो सकता है।
- इमेजिंग और प्रयोगशाला परीक्षण: विकिरण चिकित्सा शुरू होने से पहले, ट्यूमर के चरण की जांच करने और उपचार योजना बनाने के लिए कई परीक्षण किए जाते हैं, जैसे रक्त परीक्षण, सी टी स्कैन (CT Scan), एम आर आई (MRI) और पी ई टी स्कैन (PET Scan)। इन परीक्षणों की कीमत, 5,000 रुपये से 20,000 रुपये के बीच हो सकती है।
- मानचित्रण: विकिरण टीम उन्नत इमेजिंग की मदद से इलाज किए जाने वाले क्षेत्र का मानचित्रण करती है। मानचित्रण सत्र की लागत, 3,000 रुपये से 10,000 रुपये के बीच हो सकती है।
- अन्य खर्चे: अन्य अतिरिक्त लागतों में, बायोप्सी, किसी भी पुरानी स्वास्थ्य स्थिति का प्रबंधन करने के लिए दवाएं आदि शामिल हैं।
विकिरण के बाद उपचार की लागत:
- अनुवर्ती दौरे: उपचार के बाद, शारीरिक जांच और मूल्यांकन सहित आपकी स्थिति की निगरानी के लिए, ऑन्कोलॉजिस्ट के साथ अनुवर्ती परामर्श महत्वपूर्ण है। कुछ रोगियों को बार-बार जांच की आवश्यकता हो सकती है, जिससे लागत और बढ़ सकती है।
- अनुवर्ती परीक्षण: विकिरण चिकित्सा प्रभावी रही है या नहीं, यह जानने के लिए, नियमित निदान और इमेजिंग परीक्षण किए जाते हैं।
- दुष्प्रभावों का प्रबंधन: विकिरण चिकित्सा के बाद, रोगी को थकान, दर्द, त्वचा में जलन आदि का अनुभव हो सकता है। इसलिए, दुष्प्रभावों को प्रबंधित करने के लिए दवाएं दी जाती हैं। यदि जटिलताओं के कारण अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता होती है, तो उपचार की लागत काफ़ी बढ़ सकती है।
- सहायक देखभाल: कुछ रोगियों को दैनिक गतिविधियों में मदद के लिए देखभाल करने वालों की आवश्यकता हो सकती है, जिससे कुल लागत बढ़ जाती है।
भारत में विकिरण चिकित्सा के क्षेत्र में कैसे सुधार किया जा सकता है:
- विकिरण चिकित्सा तक पहुंच में सुधार के लिए सार्वजनिक क्षेत्र में मशीन खरीद और मानव संसाधन विकास के लिए दीर्घकालिक सरकारी प्रतिबद्धता की आवश्यकता है।
- कैंसर के उपचार और पहुंच में सुधार के लिए कई नवीन पहल सामने आई हैं, जो इस तरह के निवेश का समर्थन कर सकती हैं।
- इनमें उपकरणों का स्थानीय उत्पादन, ज्ञान और विशेषज्ञता के आदान-प्रदान के लिए उच्च और निम्न-आय वाले देशों में संस्थानों के बीच कार्यक्रम, और रोगियों को उनकी कैंसर यात्रा में प्रायोजित और समर्थन करने के लिए गैर-सरकारी और राज्य-प्रायोजित योजनाएं शामिल हैं।
- देखभाल में सुधार के लिए न्यूनतम मानकों को लागू करने के अधिकार के साथ, कैंसर रजिस्ट्रियों और नियामक निकायों को मज़बूत करना भी आवश्यक है।
- उच्च गुणवत्ता वाली रेडियोथेरेपी की अधिक समान और लगातार उपलब्धता से कैंसर के परिणामों में सुधार हो सकता है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/5fbuyscm
मुख्य चित्र: पोज़िशनिंग वेरिफ़िकेशन रेडियोथेरेपी (Positioning Verification Radiotherapy) (Wikimedia)
नौटंकी के प्रदर्शन को जीवंत बना देते हैं, वाद्ययंत्र और वेशभूषा
द्रिश्य 2- अभिनय कला
Sight II - Performing Arts
11-02-2025 09:31 AM
Meerut-Hindi
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मेरठ के नागरिकों में लोकप्रिय नौटंकी, उत्तर भारत के पारंपरिक रंगमंच का एक अनोखा और जीवंत रूप है। इसे अपनी अनूठी कलात्मक शैली और तकनीकों के अनूठे मिश्रण के लिए जाना जाता है। दर्शकों को प्रभावित करने के लिए, नौटंकी में संगीत, नृत्य, और नाटकीय कहानी का प्रयोग किया जाता है। चमकीले परिधान, भावपूर्ण अभिनय और आकर्षक संवाद नौटंकी के मुख्य आकर्षण होते हैं। कहानी को रोचक और जीवंत बनाने के लिए, हारमोनियम और ढोलक जैसे वाद्ययंत्रों का उपयोग किया जाता है। ये वाद्ययंत्र, प्रदर्शन में लय और ऊर्जा का संचार करते हैं। नौटंकी केवल मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक कहानियों और परंपराओं को संजोने का भी
महत्वपूर्ण माध्यम है। यह कला, परंपरा के ज़रिए समुदायों को एक साथ जोड़ने का काम करती है। इसलिए, आज के इस लेख में हम नौटंकी में संगीत की भूमिका पर ध्यान देंगे। संगीत, नौटंकी की आत्मा है और इसका कहानी कहने और दर्शकों को जोड़ने में अहम योगदान है। अंत में, हम नौटंकी के विषयों और वेशभूषाओं पर चर्चा करेंगे। इसके जीवंत रंग, आकर्षक परिधान, और अद्भुत कहानियाँ क्षेत्रीय सांस्कृतिक पहचान को बखूबी दर्शाते हैं।
नौटंकी, उत्तर भारत की एक लोकप्रिय और पारंपरिक रंगमंच शैली है। इसका मुख्य उद्देश्य, लोगों का मनोरंजन करना है। इसकी कहानियाँ और विषय धर्मनिरपेक्ष स्रोतों से ली जाती हैं। इन कहानियों में उत्तर भारत की लोक कथाएँ, अरबी-फ़ारसी प्रेम गाथाएँ, राजस्थान, पंजाब और उत्तर प्रदेश के लोक महाकाव्य, संतों, राजाओं और नायकों की कहानियाँ शामिल हैं। साथ ही, इसमें सामाजिक असमानता और लैंगिक हिंसा जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी प्रकाश डाला जाता है।
उन्नीसवीं सदी के अंत में, हाथरस और कानपुर नौटंकी के प्रमुख केंद्र बनकर उभरे। हाथरस में नौटंकी की शुरुआत 1890 के दशक में कवि इंदरमन द्वारा स्थापित एक अखाड़े से हुई। यह शैली संगीत पर अधिक केंद्रित थी और इसमें ध्रुपद जैसे शास्त्रीय हिंदुस्तानी संगीत का समावेश किया गया। 1910 के दशक में, कानपुर ने एक नई शैली विकसित की, जो पारसी रंगमंच से प्रभावित थी। इसमें प्रोसेनियम मंच, पर्दे, संवाद, अभिनय और मंच डिज़ाइन को प्रमुखता दी गई।
संगीत, नौटंकी की आत्मा होता है! नौटंकी एक प्रकार से संगीतमय नाटक ही है, जिसमें कविता और गद्य के साथ नृत्य और संवाद
का सम्मिश्रण होता है। संगीत, इसका सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। नौटंकी का संगीत शास्त्रीय रागों पर आधारित होता है, लेकिन समय के साथ यह लोकगीतों की ओर विकसित हुआ। प्रत्येक धुन का विशेष चक्रीय मीटर और ताल होता है, जिससे इसे बिना देखे भी पहचाना जा सकता है।
नीचे नौटंकी संगीत की विशेषताएँ दी गई हैं:
- मज़बूत लय और भावपूर्ण गायन।
- ऊँचे स्वरों और त्वरित सजावट का प्रयोग।
- मधुर आरोहण-अवरोहण और अलंकृत ध्वनि रेखाएँ।
नौटंकी में वाद्ययंत्रों का भी अहम स्थान है। इससे संबंधित प्रमुख वाद्ययंत्र नक़्क़ारा है, जो प्रदर्शन की घोषणा और ताल बनाए रखने में मदद करता है। इसकी ध्वनि दूर तक सुनाई देती है। अन्य वाद्ययंत्रों में हारमोनियम, शहनाई, बांसुरी और ढोलक शामिल हैं।
नौटंकी में वार्ताएँ छंदबद्ध पंक्तियों में प्रस्तुत की जाती हैं। इसका प्रमुख छंद दोहा है। अन्य छंदों में चौबोला, चट्टी, और बेहेरे-तवील शामिल हैं। इनमें, चौबोला, चार पंक्तियों का छंद होता है, जिसे स्वतंत्रता से गाया जाता है।
स्वांग या नौटंकी की प्रस्तुति को संगीतमय स्क्रिप्ट कहा जाता है, जिसका अर्थ “संगीत" या “संगीतमय नाटक" होता है। इसमें हिंदी काव्य परंपराएं, जैसे दोहा और चौबोला, तथा उर्दू गद्य की शैलियां, जैसे शेर, कव्वाली और ग़ज़ल का उपयोग किया
जाता है। इनका संयोजन क्षेत्रीय संगीत शैलियों, जैसे दादरा, ठुमरी, सावन, मांड और लावणी के साथ किया जाता है।
संगीत में तीन चक्र और लयबद्ध विभाजन का पालन किया जाता है, जिसे तिहाई कहा जाता है। नौटंकी के एक प्रदर्शन में, गाए गए छंदों और वाद्य संगीत के खंडों का बारी-बारी से उपयोग होता है। इसमें नगाड़ा, शहनाई और हारमोनियम जैसे वाद्य यंत्रों का प्रमुख रूप से प्रयोग किया जाता है।
नौटंकी की प्रस्तुति की शुरुआत प्रार्थना से होती है। नाटक के दौरान, बीच-बीच में एक “जोकर” हास्यपूर्ण दृश्य प्रस्तुत करता है। यह शब्द सर्कस से लिया गया है, और इसका उद्देश्य दर्शकों को हंसाना और मनोरंजन करना होता है।
नौटंकी में संगीत वाद्ययंत्रों का बहुत महत्वपूर्ण स्थान होता है। अन्य पारंपरिक थिएटरों की तरह, इसमें भी तीखे सुर वाले वाद्ययंत्रों का उपयोग किया जाता था। पुराने ज़माने में, नौटंकी के मुख्य वाद्ययंत्रों में, ऊँची आवाज़ वाले रीड के उपकरण शामिल होते थे। इनमें देशी शहनाई, जो ओबो का एक रूप है, और बाद में आयातित शहनाई प्रमुख थी। ताल बनाए रखने के लिए, तेज़ आवाज़ वाले नगाड़े का उपयोग किया जाता था। नगाड़ा, डंडियों से बजाया जाने वाला एक केटलड्रम (
Kettledrum) होता है। इसे अक्सर ढोलक या दूसरे ऊँचे स्वर वाले नगाड़े का सहारा मिलता था।
शहनाई और नगाड़ा, परंपरागत रूप से नौबत नामक पेशेवर समूह का हिस्सा थे। इनका उपयोग सैन्य परेड में नेतृत्व करने और शाही महलों में पहरों की घोषणा के लिए होता था। नौटंकी में, नौबत का एक नया रूप विकसित हुआ। इसे पहले शहर या गांव में जुलूस के दौरान बजाया जाता था। शाम के मनोरंजन की शुरुआत में, जब दर्शक इकट्ठा होते थे, तब इसका प्रयोग शो की घोषणा के लिए होता था।
एक विशिष्ट नौटंकी प्रदर्शन में नगाड़ा, शहनाई और हारमोनियम का बारी-बारी से उपयोग होता है। ये वाद्ययंत्र, गायकों के साथ ऑर्केस्ट्रा (Orchestra) के रूप में काम करते हैं। नगाड़े की तेज़ आवाज़, नौटंकी के वीर और मार्शल चरित्र को दर्शाती है। इसके विपरीत, शहनाई की मधुर और पतली आवाज़ दर्शकों को रोमांटिक और कोमल भावनाओं से जोड़ती है। यह विशेष रूप से नर्तक-अभिनेत्री के चुलबुले अभिनय और नखरों को संकेतित करती है।
नौटंकी में संगीत नाटक प्रायः पद्य रूप में प्रस्तुत किए जाते हैं। इनके साथ इकतारा, हारमोनियम, सारंगी, ढोलक और खड़ताल जैसे पारंपरिक वाद्ययंत्रों का उपयोग होता है। इन प्रस्तुतियों में अभिनय और वार्तालाप भी शामिल होते हैं, जो इसे और भी आकर्षक बनाते हैं।
नौटंकी रंगमंच में स्थानीय मिथकों, पात्रों, स्थितियों और धुनों को ध्यान में रखते हुए, विभिन्न मंडलियों ने अपनी प्रस्तुति में बदलाव
किए। इंद्रसभा जैसे साहित्यिक और लोक नाटकों के मेल ने इस विधा को नई ऊँचाई दी। इसकी लोकप्रियता ने लेखकों को प्रेरित किया, जिन्होंने परियों, शैतानों, देवताओं, राजकुमारों, जादूगरों और नर्तकियों के अद्भुत
और काल्पनिक संसार को अपने नाटकों में शामिल किया।
नौटंकी की कहानियाँ बहादुरी, कुलीनता और सच्चे प्रेम को दर्शाती हैं। इसमें घटनाएँ तेज़ गति से चलती हैं। यहाँ राजाओं, रानियों, महल की दासियों, लुटेरों और जमींदारों के साथ देवताओं, जादूगरों और अप्सराओं का मेलजोल एक
अनोखी काल्पनिक दुनिया बनाता है।पृथ्वीराज चौहान, अमर सिंह राठौर, रानी दुर्गावती और पन्ना दाई जैसे ऐतिहासिक पात्रों परआधारित नाटकों ने भी दर्शकों का
दिल जीता।
रामायण, महाभारत, पुराणों, जातक कथाओं, पंचतंत्र और लोककथाओं के अनेक मिथक और किंवदंतियाँ नौटंकी का हिस्सा रहे
हैं। लैला- मजनूं, शीरीं- फ़रहाद, और हीर-रांझा जैसी प्रेम कहानियाँ, जलियाँवाला बाग, सत्य हरिश्चंद्र, और भक्त मोरध्वज जैसे ऐतिहासिक विषय, तथा इंदल हरण और
पूरनमल जैसी लोककथाएँ दर्शकों को लुभाती हैं। वीरतापूर्ण कहानियों में सुल्ताना डाकू और अंधी दुल्हन का नाम प्रमुख है। इसके अलावा, भिखारिन, बहू बेगम, बेटी का सौदा, और भारत दुर्दशा जैसे नाटकों में सामाजिक मुद्दों को भी उठाया गया है।
नौटंकी में वेशभूषा किसी एक निश्चित काल से नहीं ली जाती। राजा हरिश्चंद्र, 17वीं शताब्दी का सुनहरा अंगरखा पहनते हैं, जबकि रानी तारामती आधुनिक साड़ी में दिखाई देती हैं। रोमांटिक नायक, मखमली कोट पहनता है और नायिका साड़ी या रेशमी लहंगा धारण करती है। महिला पात्रों की भूमिकाएँ निभाने वाले पुरुष चमकीला मेकअप करते हैं। उनके चेहरे पर पाउडर, गालों पर लाल बिंदियाँ और चाँद की सजावट होती है। आँखें भेड़ की कालिख से सजाई जाती हैं। नाक की बालियाँ, कान की झुमकियाँ, कंगन और पायल उनकी वेशभूषा में चमक बढ़ाते हैं।
मुंशीजी और जोकर पात्र, अपनी अनोखी वेशभूषा और हास्यप्रद संवादों के लिए प्रसिद्ध हैं। वे बहुरंगी शर्ट, पैच लगी पतलून और फटे बांस के साथ मंच पर आते हैं। उनकी उपस्थिति, दर्शकों को हँसी से भर देती है। कभी-कभी वे टोपी या तुर्की टोपी पहनते हैं। उनकी बेतुकी पोशाक और टिप्पणियाँ नाटक की देरी को मनोरंजक बना देती हैं। इस प्रकार नौटंकी अपने विषय, कहानियों और वेशभूषा के कारण दर्शकों के बीच अनोखी और लोकप्रिय बनी हुई है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/2bf288ze
https://tinyurl.com/24mm5pff
https://tinyurl.com/2akuccpv
मुख्य चित्र स्रोत: Wikipedia
उत्तर प्रदेश के वार्षिक लौकी उत्पादन में, हमारा मेरठ देता है, एक महत्वपूर्ण योगदान
साग-सब्जियाँ
Vegetables and Fruits
10-02-2025 09:18 AM
Meerut-Hindi

लौकी एक ऐसी सब्ज़ी है, जो अपने हल्के स्वाद और प्रभावशाली स्वास्थ्य लाभों के लिए जानी जाती है। लौकी को विभिन्न भारतीय भाषाओं में लौकी, सोरकाया, दूधी और घिया के नाम से भी जाना जाता है। भारत की गर्म जलवायु और मिट्टी की स्थिति, लौकी उगाने के लिए अत्यंत उपयुक्त है। भारत, दुनिया में लौकी उत्पादकों में अग्रणी है। वर्ष 2023-24 में, भारत में 3.77 मेगाटन लौकी का कुल उत्पादन हुआ था, जिसमें हमारे राज्य, उत्तर प्रदेश ने 176.9 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 545.29 किलोटन लौकी का उत्पादन करके, 14.42% का योगदान दिया। लौकी उत्पादन में, उत्तर प्रदेश, भारत में तीसरे स्थान पर है। राज्य में वाराणसी, इलाहाबाद, गोरखपुर, मेरठ और लखनऊ प्रमुख लौकी उत्पादक क्षेत्र हैं। हमारे शहर मेरठ में भी लौकी उगाई जाने वाली सबसे महत्वपूर्ण सब्ज़ियों में से एक है। तो आइए, आज भारत में लौकी की खेती के बारे में विस्तार से जानते हैं और इसके लिए उपयुक्त मिट्टी, बुआई का समय, बीज दर, सिंचाई आवश्यकताओं आदि के बारे में समझते हैं। इसके साथ ही, हम यह सीखेंगे कि लौकी को कैसे लगाएं और खेती के दौरान इसकी सुरक्षा कैसे करें। अंत में, हम भारत के कुछ सबसे बड़े लौकी उत्पादक राज्यों के बारे में जानेंगे।
मिट्टी:
लौकी को विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है। हालांकि, इसे बलुई दोमट (Sandy Loam Soil) से दोमट मिट्टी में उगाने पर सर्वोत्तम परिणाम मिलता है।
भूमि की तैयारी:
लौकी की खेती के लिए, अच्छी तरह से तैयार भूमि का उपयोग किया जाता है। मिट्टी को अच्छी तरह भुरभुरा बनाने के लिए जुताई के बाद हैरो से खेती की जाती है।
बुआई का समय एवं तरीका:
लौकी की बुआई का उपयुक्त समय, फ़रवरी-मार्च, जून-जुलाई तथा नवम्बर-दिसम्बर माह है। दो पंक्तियां के बीच की दूरी, 2.0-2.5 मीटर और पौधे की दूरी 45-60 सेंटीमीटर होनी चाहिए। इसके बीज 1-2 सेंटीमीटर गहराई में बोये जाते हैं।
बीज दर एवं बीज उपचार:
एक एकड़ भूमि के लिए, 2 किलोग्राम बीज पर्याप्त होते हैं। बीज को मिट्टी जनित फफूंद से बचाने के लिए प्रति किलोग्राम बीज को 3 ग्राम बाविस्टिन (Bavistin) से उपचारित करना चाहिए।
उर्वरक:
लौकी की अच्छी उपज के लिए, प्रति एकड़ भूमि में, 20-25 टन की दर से फ़ार्म यार्ड खाद (Farm Yard Manure (FYM)) डालें। 60 किलोग्राम प्रति एकड़ यूरिया के रूप में 28 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से नाइट्रोजन की उर्वरक खुराक का प्रयोग करना चाहिए। 14 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से, नाइट्रोजन की पहली खुराक, बुआई के समय दी जाती है इसी दर से, नाइट्रोजन की दूसरी खुराक पहली तुड़ाई के समय दी जाती है।
सिंचाई:
फ़सल को बुआई के तुरंत बाद तत्काल सिंचाई की आवश्यकता होती है। ग्रीष्म ऋतु में 6-7 बार सिंचाई की आवश्यकता होती है तथा वर्षा ऋतु में यदि आवश्यक हो, तो सिंचाई की जाती है। कुल मिलाकर 9 बार सिंचाई की आवश्यकता होती है।
खरपतवार नियंत्रण:
खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए पौधे की वृद्धि की प्रारंभिक अवस्था में 2-3 बार गुड़ाई की आवश्यकता होती है। उर्वरक प्रयोग के समय निराई-गुड़ाई का कार्य किया जाता है।
रोपण प्रक्रिया:
- शीघ्र अंकुरण के लिए लौकी के बीजों को सीधे छोटे गड्ढों में बोया जाता है या 12-24 घंटों के लिए पानी या स्यूसिनिक अम्ल (succinic acid) में भिगोया जाता है।
- आमतौर पर, रोपण के बाद अंकुरण में 6-7 दिन लगते हैं।
- बड़े फल उगाने के लिए, विकास और नमी बनाए रखने के लिए गमले की मिट्टी, वर्मीकम्पोस्ट (Vermicompost) और कोको पीट को समान रूप से मिलाएं।
- पौधे के अधिकतम विकास के लिए मजबूत जालीदार समर्थन बनाएं। पौधे को सूरज की रोशनी में रखें।
- परागण के तुरंत बाद, मादा फूलों के चारों ओर छोटी-छोटी लौकी विकसित हो जाती हैं।
- मिट्टी को नम और दोमट बनाए रखने के लिए, लौकी के बीजों को साप्ताह में एक बार 1 इंच पानी की आवश्यकता होती है। शुरुआती चरण में सीधे दबाव से बचने के लिए छिड़काव या नाली बनाकर ही पानी देना चाहिए।
पौधे का संरक्षण:
कीटों से:
फल मक्खियां (बैक्टोसेरा कुकुर्बाइटे (Fruit flies (Bactocera cucurbitae)): फल मक्खियां फल के आंतरिक ऊतकों को खातीं हैं, जिससे फल समय से पहले गिर जाते हैं और प्रभावित फल पीले पड़ जाते हैं और सड़ जाते हैं। इस मक्खी को नियंत्रित करना कठिन है क्योंकि इसके कीड़े फल के अंदर होने के कारण कीटनाशकों के सीधे संपर्क में नहीं आते हैं।
नियंत्रण: इनके प्यूपा को नष्ट करने के लिए, बीज बोने से पहले गड्ढों में कार्बेरिल 10% डीपी डालें। प्यूपा को बाहर निकालने के लिए मिट्टी को तोड़ना और सूखी पत्तियों द्वारा गड्ढे में मिट्टी को जलाना भी प्रभावशाली उपाय है। फल मक्खी को बढ़ने से रोकने के लिए किसी भी संक्रमित फल को हटा दें। फलों को पॉलिथीन/कागज़ के कवर में ढकने से मक्खियों को फलों के अंदर अंडे देने से रोकने में मदद मिलती है।
एपिलाचना बीटल (Epilachna beetle (Epilachna spp.)): पीले रंग के ये कीट, पत्तियों और कोमल पौधों के हिस्सों को बड़े चाव से खाते हैं, जिससे पत्तियों में केवल शिराओं का जाल रह जाता है। इनकी अधिक संख्या होने पर, यह कीट गंभीर रूप से पत्तियों को नष्ट कर देता है और उपज को कम कर देता है।
नियंत्रण: पत्तियों पर लगने वाले अंडे और कीटों को हटा दें और नष्ट कर दें। कार्बारिल 0.2 प्रतिशत का छिड़काव करें।
रोगों से:
डाउनी मिलड्यू (स्यूडोपेरोनोस्पोरा क्यूबेंसिस (Downy mildew (Pseudoperonospora cubensis)): यह रोग होने पर पत्तों की सतह पर रुई जैसी सफ़ेद फ़फ़ूंद दिखाई देती है। बरसात के मौसम में यह रोग गंभीर हो जाता है।
नियंत्रण: प्रभावित पत्तियों को पूरी तरह से हटा दें और नष्ट कर दें। नीम या किरियथ 10% घोल का छिड़काव करें। यदि रोग का प्रकोप अधिक हो, तो मैंकोज़ेब के 0.2% के घोल का छिड़काव करना उपयोगी रहेगा।
पाउडरी मिलड्यू (एरीसिपे सिकोरेसीरम (Powdery mildew (Erysiphe cichoracearum): यह रोग होने पर पत्तियों और तनों पर छोटे, गोल, सफेद धब्बे दिखाई देते हैं। धब्बे तेज़ी से बड़े होते जाते हैं और आपस में जुड़ जाते हैं, जिससे पत्ती की ऊपरी सतह पर सफ़ेद पाउडर जैसा द्रव्यमान दिखाई देने लगता है। अत्यधिक संक्रमित पत्तियां पीली हो जाती हैं और बाद में सूखी और भूरी हो जाती हैं। पुरानी पत्तियों के बड़े पैमाने पर समय से पहले झड़ने से उपज में कमी आती है।
नियंत्रण: डिनोकैप के 0.05% घोल का छिड़काव करके रोग पर नियंत्रण रखें।
मोज़ेक (Mosaic): मोज़ेक रोग होने पर पत्तियां हरितहीन एवं शिराएँ पीली और मोटी हो जाती हैं। प्रारंभिक अवस्था में संक्रमित पौधे बौने रह जाते हैं और उपज बहुत कम हो जाती है। यह वायरस, वाइटफ़्लाई (Whitefly) नामक एक कीट से फैलता है।
नियंत्रण: डाइमेथोएट के 0.05% घोल का छिड़काव करके रोगवाहकों को नियंत्रित करें। प्रभावित पौधों और सहायक मेज़बानों को उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिए। कीटनाशक/कवकनाशी के प्रयोग के कम से कम 10 दिन बाद ही कटाई की जानी चाहिए। पकाने से पहले फलों को पानी से अच्छी तरह धोना चाहिए।
भारत में शीर्ष 10 लौकी उत्पादक राज्य:
बिहार: लौकी उत्पादन में, बिहार भारत में प्रथम स्थान पर है। 2023-24 में, बिहार ने 4,44.5 वर्ग किलोमीटर के कृषि क्षेत्र में, 654.09 किलोटन लौकी का उत्पादन किया। भारत में उत्पादित कुल लौकी में बिहार का योगदान 17.30% है। बिहार में प्रमुख लौकी उत्पादक ज़िले नालंदा, वैशाली, पटना और मुज़फ़्फ़रपुर हैं।
मध्य प्रदेश: भारत के लौकी उत्पादन में, मध्य प्रदेश दूसरे स्थान पर है। 2023-24 में, मध्य प्रदेश में 303 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में, 549.19 किलोटन लौकी का उत्पादन किया गया, जो भारत के कुल लौकी उत्पादन का 14.53% है। लौकी की खेती के लिए प्रसिद्ध प्रमुख ज़िलों में इंदौर, भोपाल, जबलपुर और धार शामिल हैं।
उत्तर प्रदेश: भारत के लौकी उत्पादन में, उत्तर प्रदेश तीसरे स्थान पर है। उत्तर प्रदेश में, 2023-24 में, 176.9 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में, 545.29 किलोटन लौकी का उत्पादन किया, जो भारत के कुल लौकी उत्पादन में 14.42% का योगदान है। वाराणसी, इलाहाबाद, गोरखपुर, मेरठ और लखनऊ, यहाँ के प्रमुख लौकी उत्पादक क्षेत्र हैं।
पंजाब: पंजाब, भारत का चौथा प्रमुख लौकी उत्पादक राज्य है। पंजाब ने, 2023-24 में 155.9 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में, 317.68 किलोटन लौकी का उत्पादन किया, जो भारत के कुल लौकी उत्पादन में 8.40% का योगदान है। यहाँ, लौकी के मुख्य उत्पादक क्षेत्र, लुधियाना, अमृतसर, जालंधर और होशियारपुर हैं।
गुजरात: भारत के लौकी उत्पादन में, गुजरात पांचवें स्थान पर है। गुजरात ने 2023-24 में, 205.7 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में, 316.55 किलोटन लौकी का उत्पादन किया। भारत के कुल लौकी उत्पादन में, गुजरात का योगदान 8.37% है। यहाँ, के मुख्य लौकी उत्पादक क्षेत्र, आनंद, सूरत और राजकोट हैं।
हरियाणा: भारत के लौकी उत्पादन में हरियाणा छठे स्थान पर है। हरियाणा में, 2023-24 में 202.3 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में, 309.09 किलोटन लौकी का उत्पादन किया गया। भारत के कुल लौकी उत्पादन में हरियाणा का योगदान 8.17% है। मुख्य लौकी उत्पादक क्षेत्र सोनीपत, करनाल और हिसार हैं।
पश्चिम बंगाल: भारत के लौकी उत्पादन में पश्चिम बंगाल सातवें स्थान पर है। पश्चिम बंगाल में, 2023-24 में, 219 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में, 237.69 किलोटन लौकी का उत्पादन किया गया। भारत के कुल लौकी उत्पादन में, पश्चिम बंगाल का योगदान 6.28% है। पश्चिम बंगाल में मुख्य लौकी उत्पादक क्षेत्र, नादिया, मुर्शिदाबाद और हुगली हैं।
छत्तीसगढ: भारत के लौकी उत्पादन में, छत्तीसगढ़ आठवें स्थान पर है। छत्तीसगढ़ में 2023-24 में 132.4 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में कुल 234.15 किलोटन लौकी का उत्पादन हुआ। भारत के कुल लौकी उत्पादन में, छत्तीसगढ़ का योगदान 6.19% है। मुख्य लौकी उत्पादक क्षेत्र, रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग हैं।
ओडिशा: भारत के लौकी उत्पादन में, ओडिशा नौवें स्थान पर है। राज्य में 2023-24 में 108.5 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 149.42 किलोटन लौकी का उत्पादन हुआ। भारत के कुल लौकी उत्पादन में ओडिशा का योगदान 3.95% है। ओडिशा में मुख्य लौकी उत्पादक क्षेत्र गंजम, खुर्दा, कटक और संबलपुर हैं।
असम: भारत के लौकी उत्पादन में, असम दसवें स्थान पर है। इस राज्य में, 2023-24 में 38.2 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 65.57 किलोटन लौकी का उत्पादन हुआ। भारत के कुल लौकी उत्पादन में असम का योगदान 1.73% है। मुख्य लौकी उत्पादक क्षेत्र कामरूप, नागांव, डिब्रूगढ़, कछार और जोरहाट हैं।
इसके अलावा, भारत के अन्य राज्यों जैसे झारखंड, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, त्रिपुरा आदि में भी लौकी की खेती की जाती है।
संदर्भ
मुख्य चित्र स्रोत : Pexels
चलिए आज, ग्रैमी विजेता चंद्रिका टंडन की मनोहारी रचना त्रिवेणी का लुफ़्त उठाते हैं
ध्वनि 1- स्पन्दन से ध्वनि
Sound I - Vibration to Music
09-02-2025 09:23 AM
Meerut-Hindi
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आदमी को भावुक होने के लिए कारणों की आवश्यकता होती है। आमतौर पर ऐसा देखा जाता है कि, इंसान कभी भी अकारण ही दुखी या प्रसन्न नहीं होता। लेकिन यहाँ पर संगीत एक बहुत बड़ा अपवाद है। हमने देखा है कि, अच्छे संगीत में ऐसी शक्ति होती है कि वह हँसते हुए आदमी की पलकों को नम कर सकता है। इसके विपरीत, संगीत, दुखी और हार मान चुके व्यक्ति की आत्मा में प्रसन्नता का संचार कर देता है। भारतीय-अमेरिकी संगीत कलाकार चंद्रिका टंडन का संगीत भी अपने श्रोताओं की भावनाओं के साथ कुछ ऐसा ही करता है। यही कारण है कि 2 फ़रवरी 2025 को, भारतीय-अमेरिकी व्यवसायी, परोपकारी और संगीत कलाकार चंद्रिका टंडन (Chandrika Tandon) को अपनी एल्बम ‘त्रिवेणी’ (Triveni) के लिए ग्रैमी पुरस्कार भी प्राप्त हुआ था। उन्हें यह पुरस्कार बेस्ट न्यू एज, एम्बिएंट या चैंट एल्बम (Best New Age, Ambient or Chant Album) श्रेणी में दिया गया।
त्रिवेणी में क्या खास है?
त्रिवेणी एल्बम, अपने नाम के अर्थ को सजीव है। यह भारत की तीन पवित्र नदियों—गंगा, यमुना और सरस्वती—के संगम का प्रतीक है। इसमें तीन विश्व प्रसिद्ध कलाकारों का संगम भी देखने को मिलता है। भारतीय गायक-संगीतकार सोनू टंडन (Sonu Tandon), ग्रैमी विजेता फ़्लूट वादक वाउटर केलरमैन (Wouter Kellerman) और जापानी गिटारिस्ट मात्सुमोतो (Matsumoto) ने इसे मिलकर बनाया है।इस एल्बम में प्राचीन वैदिक मंत्रों को मधुर बांसुरी और गूंजती सेलो के साथ पिरोया गया है। इसमें एक ऐसा संगीतमय वातावरण रचा गया है जो मनन, आत्म-खोज और आंतरिक शांति को बढ़ावा देता है। भारतीय शास्त्रीय संगीत, न्यू एज म्यूज़िक और वैश्विक परंपराओं का यह अनूठा मिश्रण सांस्कृतिक गहराई के साथ-साथ व्यापक श्रोताओं को भी आकर्षित करता है।
त्रिवेणी, 30 अगस्त 2024 में रिलीज़ हुई थी । इसमें कुल सात ट्रैक शामिल हैं। हर गीत, अपनी एक अनोखी कहानी कहता है। इन गानों का उद्देश्य संगीत के माध्यम से सकारात्मक ऊर्जा और उपचार की भावना को जगाना है। इस एल्बम में सात ट्रैक (पाथवे टू लाइट, चैंट इन ए, जर्नी विदिन, एथर्स सेरेनेड, एंशिएंट मून, ओपन स्काई और सीकिंग शक्ति) हैं।
आइए अब त्रिवेणी एल्बम के कुछ प्रमुख गीतों का आनंद लेते हैं:
🎶 पाथवे टु लाइट (Pathway to Light) : यह संस्कृत के चर्चित श्लोकों की एक मनोहारी संगीतमय रचना है और इसकी वीडियो ऊपर दी गई है।
कलाकार: वाउटर केलरमैन, एरु मात्सुमोतो, चंद्रिका टंडन
निर्माता: वेसल वैन रेंसबर्ग, वाउटर केलरमैन, मॉरिट्ज़ लोट्ज़
🎶 जर्नी विदिन (Journey Within)
कलाकार: वाउटर केलरमैन, एरु मात्सुमोतो, चंद्रिका टंडन
🎶 चैंट इन ए (Chant in A)
कलाकार: वाउटर केलरमैन, एरु मात्सुमोतो, चंद्रिका टंडन
🎶 एंशिएंट मून (Ancient Moon)
कलाकार: वाउटर केलरमैन, एरु मात्सुमोतो, चंद्रिका टंडन
विशेष प्रस्तुति
आइए, इसी क्रम में अब विश्व संस्कृति महोत्सव (World Cultural Festival) 2016 में चंद्रिका टंडन के लाइव प्रदर्शन को देखते हैं।
संदर्भ:
https://tinyurl.com/285p6d37
https://tinyurl.com/4dykvywu
https://tinyurl.com/pnvfwff7
https://tinyurl.com/2ndnfnm8
https://tinyurl.com/mrxbw7ny
https://tinyurl.com/244cokee
संस्कृति 1954
प्रकृति 690