मेरठ - लघु उद्योग 'क्रांति' का शहर
आइए, अवगत होते हैं, भारत में अनाज भंडारण की वर्त्तमान स्थिति से
वास्तुकला 2 कार्यालय व कार्यप्रणाली
Architecture II - Office/Work-Tools
17-01-2025 09:44 AM
Meerut-Hindi
उत्तर प्रदेश, भारत में सबसे बड़ा गेहूँ उत्पादक है। हमारा राज्य, देश के कुल गेहूँ उत्पादन का 25% से अधिक हिस्सा उत्पादित करता है। गेहूँ को लंबे समय तक अच्छी स्थिति में बनाए रखने के लिए इसका उचित रूप से भंडारण करना बहुत ज़रूरी है। भारत में गेहूँ और अन्य खाद्यान्नों का भंडारण कई एजेंसियों द्वारा किया जाता है। इनमें भारतीय खाद्य निगम ( एफ़ सी आई (Food Corporation of India)), केंद्रीय भंडारण निगम (Central Warehousing Corporation (CWC)), , राज्य भंडारण निगम और निजी गोदाम मालिक शामिल हैं।
2022 में, एफ़ सी आई द्वारा पूरे देश में 2,199 गोदाम संचालित किए गए। इनमें से कुछ गोदाम एफ़ सी आई के अपने थे, जबकि कुछ किराए पर लिए गए थे। उत्तर प्रदेश में कुल 248 गोदाम थे, जिनमें मेरठ जैसे शहरों के गोदाम भी शामिल हैं।
आज के इस लेख में हम भारत की खाद्यान्न भंडारण प्रणाली को विस्तार से समझेंगे। सबसे पहले, जानेंगे कि एफ़ सी आई गोदामों का चयन कैसे करता है और राज्य में इनका वितरण कैसे होता है। इसके बाद, चर्चा करेंगे कि यूपी के गोदामों में गेहूँ की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए क्या-क्या प्रक्रियाएँ अपनाई जाती हैं। अंत में, खाद्यान्न भंडारण से जुड़े मुख्य मुद्दों और चुनौतियों पर बात करेंगे।
भारत में लगभग 60-70% खाद्यान्न छोटे किसान, अनाज को अपने घरों में ही संग्रहित करते हैं। इसके लिए वे मोराई, मिट्टी कोठी आदि जैसे पारंपरिक भंडारण तरीकों का उपयोग करते हैं।
२. इसके अलावा भारत में सरकारी एजेंसियाँ भी कार्यरत हैं जो अनाज भंडारण की सुविधा प्रदान करती हैं!
इन भंडारण एजेंसियों में शामिल हैं:
a. भारतीय खाद्य निगम: भारतीय खाद्य निगम या एफ़ सी आई की शुरुआत 1965 में एक संसद अधिनियम के तहत हुई। यह भारत में खाद्यान्न भंडारण की प्रमुख संस्था है। एफ़ सी आई पूरे देश में गोदाम, साइलो और कवर और प्लिंथ संरचनाएँ संचालित करती है।
b. केंद्रीय भंडारण निगम: केंद्रीय भंडारण निगम की स्थापना 1962 में भंडारण निगम अधिनियम के तहत हुई। इसका काम कृषि उपज और अन्य विशेष वस्तुओं को संग्रहीत करना है।
c. राज्य भंडारण निगम: राज्य भंडारण निगम, राज्य कानूनों के तहत बनाए जाते हैं। ये हर राज्य में कुछ खास वस्तुओं के भंडारण को नियंत्रित करते हैं।
3. एफ़ सी आई निजी मालिकों से गोदाम किराए पर भी लेता है। इससे भंडारण के लिए अधिक विकल्प और लचीलापन मिलता है।
4. अन्य हितधारक: खाद्यान्न प्रबंधन में अन्य समूह भी शामिल हैं। इनमें वेयरहाउस डेवलपमेंट रेगुलेटरी अथॉरिटी (Warehouse Development Regulatory Authority (WDRA)), रेलवे और राज्यों के नागरिक आपूर्ति विभाग शामिल हैं। ये समूह मिलकर खाद्यान्न के भंडारण और वितरण को बेहतर बनाने का काम करते हैं।
आइए अब जानते हैं कि एफ़ सी आई भारत में खाद्य भंडारण गोदामों का चयन कैसे करता है?
भारतीय खाद्य निगम सबसे पहले अपनी भंडारण क्षमता का मूल्यांकन करता है। ज़रुरत के हिसाब से यह खाली स्थानों की पहचान करता है। इसके बाद एफ़ सी आई या तो नए गोदाम बनाता है या किराए पर लेता है।
एफ़ सी आई भंडारण क्षमता बढ़ाने के लिए कई योजनाएँ अपनाता है! इनमें शामिल है:
- निजी उद्यमी गारंटी (PEG) योजना।
- केंद्रीय क्षेत्र योजना।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के तहत साइलो का निर्माण।
- केंद्रीय भंडारण निगम और राज्य भंडारण निगम से गोदाम किराए पर लेना।
- निजी भंडारण योजना के तहत गोदाम किराए पर लेना।
2022 में, एफ़ सी आई पूरे भारत में 2,199 गोदामों का प्रबंधन कर रहा था। इनमें से कुछ गोदाम एफ़ सी आई के स्वामित्व में थे, जबकि बाकी किराए पर लिए गए थे।
भारत के शीर्ष तीन राज्यों में अनाज भंडारण गोदामों की संख्या:
1. पंजाब: 611 गोदाम
2. हरियाणा: 297 गोदाम
3. उत्तर प्रदेश: 248 गोदाम
1 जनवरी 2022 तक, पूरे देश में एफ़ सी आई के गोदामों की संख्या इस प्रकार थी:
बिहार: 80
झारखंड: 48
ओडिशा: 46
पश्चिम बंगाल: 30
सिक्किम: 2
अरुणाचल प्रदेश: 15
असम: 40
मणिपुर: 9
नागालैंड: 6
त्रिपुरा: 7
मिजोरम: 6
मेघालय: 6
दिल्ली: 6
हरियाणा: 297
हिमाचल प्रदेश: 18
जम्मू और कश्मीर: 26
लद्दाख: 6
पंजाब: 611
चंडीगढ़: 1
राजस्थान: 173
उत्तर प्रदेश: 248
उत्तराखंड: 20
आंध्र प्रदेश: 40
अंडमान और निकोबार: 1
कर्नाटक: 62
लक्षद्वीप: 1
केरल: 25
तमिलनाडु: 68
पुडुचेरी: 3
तेलंगाना: 72
छत्तीसगढ़: 63
गुजरात: 36
दादरा और नगर हवेली, दमन और दीव: 0
मध्य प्रदेश: 36
गोवा: 2
महाराष्ट्र: 89
इस प्रकार एफ़ सी आई पूरे भारत में कुल 2,199 गोदाम प्रबंधित करता है।
गोदामों में रखे गेहूँ की गुणवत्ता की लगातार निगरानी की जाती है। इसे बनाए रखने के लिए कई महत्वपूर्ण उपाय किए जाते हैं।
1. नमी की जाँच: गेहूँ को रखने से पहले उसकी नमी मापी जाती है। हर दो सप्ताह में ढेर के बाहर से नमूने लेकर नमी की फिर से जाँच होती है। गेहूँ निकालने से पहले भी नमी की एक बार और जाँच की जाती है।
2. गुणवत्ता के मानदंड: हर दो सप्ताह में गेहूँ की गुणवत्ता की जाँच की जाती है। इस दौरान फीके, खराब या घुन लगे अनाज की पहचान होती है। नमूने हमेशा ढेर के बाहरी हिस्से से लिए जाते हैं।
3. संक्रमण की जाँच: हर महीने कीट संक्रमण की जाँच की जाती है। इसके लिए ढेर के किनारों से नमूने लेकर स्थिति का आकलन किया जाता है।
4. अनाज का वजन: हर महीने 1,000 गेहूँ के दानों का वजन मापा जाता है। नमूने, ढेर के बाहरी हिस्से से लिए जाते हैं।
5. कृंतक और कीट नियंत्रण: गोदाम के कर्मचारी मासिक निरीक्षण करते हैं। इस दौरान कृंतकों, पक्षियों, बंदरों और घुन के संकेतों की जाँच की जाती है।
6. स्प्रे और धूम्रीकरण: स्प्रे और धूम्रीकरण का रिकॉर्ड, नियमित रूप से रखा जाता है। ढेर के बाहरी हिस्सों पर हर दो सप्ताह में मैलाथियान का स्प्रे किया जाता है।
7. छलकने वाले अनाज का प्रबंधन: गिरा हुआ अनाज हर 15 दिन में इकट्ठा किया जाता है। इसे पल्ला बैग नामक एक बैग में सुरक्षित रखा जाता है।
8. चोरी की घटनाएं: चोरी जैसी किसी भी स्थिति में डिपो अधिकारी तुरंत अधिकृत एजेंसी को सूचना देते हैं।
9. माइक्रोबियल लोड की जाँच: ज़रुरत पड़ने पर गेहूँ के नमूनों में माइक्रोबियल लोड की जाँच तिमाही आधार पर की जाती है।
10. माइकोटॉक्सिन की जाँच: माइकोटॉक्सिन की जाँच तभी की जाती है जब इस पर विशेष संदेह हो।
इन सभी उपायों से सुनिश्चित किया जाता है कि भंडारण के दौरान गेहूँ की गुणवत्ता बनी रहे। यह प्रक्रिया अनाज को सुरक्षित रखने और नुकसान से बचाने में मदद करती है। हालांकि इन सभी भंडारण सुविधाओं के बावजूद भारत में गेहूं भंडारण से जुड़ी कई समस्याएं और चुनौतियां अक्सर देखी जाती हैं! इनमें शामिल हैं:
1. खराब कृषि भंडारण सुविधाएं: भारत में कृषि भंडारण की सुविधाएं अक्सर अच्छी या
उन्नत नहीं होतीं। इनकी वजह से अनाज को कीट और कीड़ों से नुकसान पहुचंता है। ऐसे भंडारण केंद्र लंबे समय तक अनाज को सुरक्षित नहीं रख पाते।
2. भंडारण क्षमता का असंतुलन: भारतीय खाद्य निगम ने अपनी भंडारण क्षमता बढ़ाई है। लेकिन, फिर भी भंडारण में असंतुलन बना हुआ है। 2013 की सी ए जी रिपोर्ट बताती है कि उपभोक्ता राज्यों में भंडारण स्थान की कमी है। कुल भंडारण का 64% पंजाब, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे खरीद राज्यों में केंद्रित है।
3. खुले स्थानों पर अनाज का भंडारण: खरीद के समय, पर्याप्त भंडारण स्थान न होने से अनाज को खुले में रखा जाता है। इससे अनाज खराब होने का खतरा बना रहता है। बारिश, बाढ़ और ज़मीन से पानी रिसने की वजह से अनाज की गुणवत्ता पर असर पड़ता है।
4. भंडारण सुविधाओं का कमज़ोर ढांचा: कई गोदामों में भंडारण के लिए ज़रूरी सुविधाएं नहीं होतीं। इनमें तापमान और नमी नियंत्रण का अभाव होता है। इससे अनाज की गुणवत्ता खराब हो जाती है। खराब भंडारण की वजह से फ़फ़ूंद और कीड़ों का खतरा बढ़ जाता है। 2013 की सी ए जी रिपोर्ट के अनुसार, पंजाब और हरियाणा में खराब भंडारण के कारण केंद्रीय पूल में रखे अनाज को बड़ा नुकसान हुआ।
इन सभी समस्याओं से साफ़ नज़र आता है कि भारत में गेहूं और अन्य अनाज को सुरक्षित रखने के लिए बेहतर और आधुनिक भंडारण सुविधाओं की सख्त ज़रुरत है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/23pqjeg5
https://tinyurl.com/2xhvet7a
https://tinyurl.com/yc2sny6e
https://tinyurl.com/225hr7ku
चित्र संदर्भ
1. एक विशाल अनाज भंडार इकाई को संदर्भित करता एक चित्रण (Pexels)
2. भारतीय खाद्य निगम के लोगो को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. सी डब्ल्यू सी के गोदाम को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. गेहूं की बालियों को संदर्भित करता एक चित्रण (Pexels)
5. अनाज रखने के लिए एक साइलो टावर (Silo Tower) को संदर्भित करता एक चित्रण (Pexels)
ए आई के युग में, एन एल पी है, मानव भाषा को समझने, व्याख्या करने व जवाब देने में माहिर
संचार एवं संचार यन्त्र
Communication and IT Gadgets
16-01-2025 09:29 AM
Meerut-Hindi
हमारा मेरठ, एक ऐसा शहर है, जहां परंपरा आधुनिकता से मिलती है। आज हमारा यह शहर, नवाचार और प्रगति को आगे बढ़ाने के लिए, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (ए आई) की शक्ति को अपना रहा है। स्थानीय व्यवसायों को बढ़ाने और सार्वजनिक सेवाओं में सुधार से लेकर, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा में बदलाव तक, ए आई, मेरठ में दैनिक जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन रहा है। चाहे वह स्मार्ट उपकरणों का उपयोग करना हो, परिवहन को सुव्यवस्थित करना हो, या ग्राहक अनुभवों में सुधार करना हो, ए आई, मेरठ में जीवन को अधिक कुशल और संयुक्त बनाने में मदद कर रहा है। चूंकि, ए आई दुनिया भर में उद्योगों को आकार दे रहा है, प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण(एन एल पी – Natural Language Processing) मशीनों को समझने, उनकी व्याख्या करने और मानव भाषा का जवाब देकर, अपनी पहचान बना रहा है। क्षेत्रीय भाषाओं को समझने वाले वॉइस असिस्टेंट(Voice assistant) से लेकर, ए आई-संचालित ग्राहक सेवा समाधान तक, एन एल पी हमारे दैनिक जीवन में प्रौद्योगिकी के साथ बातचीत करने के तरीके को बदल रहा है। आज, हम प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण (एन एल पी) के विकास व इतिहास पर चर्चा करेंगे। आगे, हम विभिन्न उद्योगों पर इसके प्रभाव पर विचार करते हुए, एन एल पी के लाभों पर गौर करेंगे। फिर, हम इसके वास्तविक अनुप्रयोगों को प्रदर्शित करते हुए, एन एल पी के प्रमुख उदाहरणों की जांच करेंगे। अंत में, हम इसके मूल सिद्धांतों और तकनीकों का अवलोकन प्रदान करते हुए समझाएंगे कि, एन एल पी क्या है।
प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण का संक्षिप्त इतिहास –
प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण, कंप्यूटर को मानव भाषाओं को समझने और उपयोग करने में मदद करता है। 1900 के दशक की शुरुआत में, फ़र्डिनेंड डी सॉसर(Ferdinand de Saussure) नामक एक भाषाविज्ञान प्रोफ़ेसर की मृत्यु हुई। इस कारण, दुनिया “एक विज्ञान के रूप में” भाषा की अवधारणा से लगभग वंचित रह गई। अंततः प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण की ओर, विश्व अग्रसर हुआ।
1906 से 1911 तक, प्रोफ़ेसर सॉसर ने, जिनेवा विश्वविद्यालय(University of Geneva) में तीन पाठ्यक्रमों की पेशकश की थी। वहां उन्होंने भाषाओं को “सिस्टम” के रूप में वर्णित करने वाला, एक दृष्टिकोण विकसित किया। भाषा के भीतर, ध्वनि, एक अवधारणा का प्रतिनिधित्व करती है – एक अवधारणा जो संदर्भ बदलने पर अर्थ बदल देती है। सॉसर ने तर्क दिया कि, अर्थ, भाषा के अंदर, उसके भागों के बीच संबंधों और अंतरों में निर्मित होता है। उन्होंने प्रस्तावित किया कि, “अर्थ” भाषा के रिश्तों और विरोधाभासों के भीतर निर्मित होता है। एक साझा भाषा प्रणाली, संचार को संभव बनाती है। सॉसर ने समाज को “साझा” सामाजिक मानदंडों की एक प्रणाली के रूप में देखा, जो उचित, “विस्तारित” सोच के लिए स्थितियां प्रदान करता है। इसके परिणामस्वरूप, व्यक्तियों द्वारा निर्णय और कार्य किए जाते हैं। यही दृष्टिकोण आधुनिक कंप्यूटर भाषाओं पर भी लागू किया जा सकता है।
अपने सिद्धांतों को प्रकाशित करने से पहले, सॉसर की मृत्यु (1913 में) हो गई। हालांकि, उनके दो सहयोगी – अल्बर्ट सेचेहे(Albert Sechehaye) और चार्ल्स बैली(Charles Bally) ने उनकी अवधारणाओं के महत्व को पहचाना। दोनों ने, उनके पाठ्यक्रमों से, नोट्स एकत्र करने हेतु, असामान्य कदम उठाए। इनमें से, उन्होंने 1916 में प्रकाशित – कौर्स डी लिंगुइस्टिक जेनेराले(Cours de Linguistique Générale) लिखा। इस पुस्तक ने उस चीज़ की नींव रखी, जिसे संरचनावादी दृष्टिकोण कहा जाता है, जो भाषाविज्ञान से शुरू हुई और बाद में कंप्यूटर सहित, अन्य क्षेत्रों में भी विस्तारित हुई।
1950 में, एलन ट्यूरिंग(Alan Turing) ने “सोच” मशीन के परीक्षण का वर्णन करते हुए, एक पेपर लिखा था। इसमें उन्होंने कहा कि, यदि कोई मशीन टेलीप्रिंटर(Teleprinter) के उपयोग के माध्यम से बातचीत का हिस्सा हो सकती है, और यह पूरी तरह से मानव की नकल करती है, तो कोई ध्यान देने योग्य अंतर नहीं है, तो मशीन को सोचने में सक्षम माना जा सकता है। इसके तुरंत बाद, 1952 में, हॉजकिन-हक्सले मॉडल(Hodgkin-Huxley model) ने दिखाया कि, मस्तिष्क विद्युत नेटवर्क बनाने में न्यूरॉन्स(Neurons) का उपयोग कैसे करता है। इन घटनाओं ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता (ए आई), प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण (एन एल पी) और कंप्यूटर के विकास के विचार को प्रेरित करने में मदद की।
एन एल पी के लाभ-
•एन एल पी, मनुष्यों के लिए मशीनों के साथ संचार और सहयोग करना आसान बनाता है। यह कई उद्योगों और अनुप्रयोगों में लाभ प्रदान करता है। इससे उन्हें प्राकृतिक मानव भाषा में निम्नलिखित कार्य करने की अनुमति मिलती है, जिसका वे हर दिन उपयोग करते हैं।
•दोहराए जाने वाले कार्यों का स्वचालन–
एन एल पी विशेष रूप से ग्राहक सहायता, डेटा प्रविष्टि और दस्तावेज़ प्रबंधन जैसे कार्यों को पूर्ण या आंशिक रूप से स्वचालित करने में उपयोगी है। उदाहरण के लिए, एन एल पी-संचालित चैटबॉट(Chatbots) नियमित ग्राहक प्रश्नों को संभाल सकते हैं और अधिक जटिल मुद्दों के लिए, मानव एजेंटों को मुक्त कर सकते हैं। एन एल पी, भाषा अनुवाद की सुविधा देता है, तथा अर्थ, संदर्भ और बारीकियों को संरक्षित करते हुए, पाठ को एक भाषा से दूसरी भाषा में परिवर्तित करता है।
•बेहतर डेटा विश्लेषण और अंतर्दृष्टि–
एन एल पी, ग्राहक समीक्षा, सोशल मीडिया पोस्ट और समाचार लेखों जैसे असंरचित पाठ डेटा से अंतर्दृष्टि के निष्कर्षण को सक्षम करके, डेटा विश्लेषण को बढ़ाता है। भावना विश्लेषण, पाठ से व्यक्तिपरक गुणों – दृष्टिकोण, भावनाओं, व्यंग्य, भ्रम या संदेह के निष्कर्षण को सक्षम बनाता है। इसका उपयोग अक्सर सिस्टम या अगली प्रतिक्रिया देने वाले व्यक्ति तक, संचार को व्यवस्थित करने के लिए किया जाता है।
•उन्नत खोज–
एन एल पी, उपयोगकर्ता प्रश्नों के इरादे को समझने के लिए, सिस्टम को सक्षम करके, अधिक सटीक और प्रासंगिक रूप से उन्नत परिणाम प्रदान करके, खोज को उत्कृष्ट बनाता है। केवल कीवर्ड मिलान पर निर्भर रहने के बजाय, एन एल पी-संचालित खोज, इंजन शब्दों और वाक्यांशों के अर्थ का विश्लेषण करते हैं। इससे प्रश्न अस्पष्ट या जटिल होने पर भी, जानकारी ढूंढना आसान हो जाता है। यह वेब खोजों में, दस्तावेज़ पुनर्प्राप्ति में या एंटरप्राइज़ डेटा सिस्टम(Enterprise data systems) आदि में, उपयोगकर्ता अनुभव को बेहतर बनाता है।
•कंटेंट या पाठ निर्माण–
एन एल पी, विभिन्न उद्देश्यों के लिए मानव-जैसा पाठ बनाने के लिए उन्नत भाषा मॉडल को शक्ति प्रदान करता है। जी पी टी–4(GPT-4) जैसे पूर्व-प्रशिक्षित मॉडल, उपयोगकर्ताओं द्वारा दिए गए संकेतों के आधार पर – लेख, रिपोर्ट, मार्केटिंग कॉपी, उत्पाद विवरण और यहां तक कि, रचनात्मक लेखन भी उत्पन्न कर सकते हैं। एन एल पी-संचालित उपकरण, ईमेल का मसौदा तैयार करने, सोशल मीडिया पोस्ट लिखने या कानूनी दस्तावेज़ीकरण जैसे कार्यों को स्वचालित करने में भी सहायता कर सकते हैं। संदर्भ, स्वर और शैली को समझकर, एन एल पी यह देखता है कि, उत्पन्न पाठ सुसंगत, प्रासंगिक और इच्छित संदेश के साथ संरेखित है, जिससे गुणवत्ता बनाए रखते हुए, कंटेंट निर्माण में समय और प्रयास की बचत होती है।
प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण के उदाहरण-
जबकि ए आई और एन एल पी शब्द भविष्य के रोबोटों की छवियां उत्पन्न कर सकते हैं, हमारे दैनिक जीवन में एन एल पी के बुनियादी उदाहरण पहले से ही मौजूद हैं। यहां ऐसे कुछ प्रमुख उदाहरण दिए गए हैं।
•ईमेल फ़िल्टर(Email filters)-
ईमेल फ़िल्टर, एन एल पी ऑनलाइन के सबसे बुनियादी और प्रारंभिक अनुप्रयोगों में से एक है। इसकी शुरुआत, स्पैम फ़िल्टर(Spam filters) के साथ हुई, जिसमें कुछ ऐसे शब्दों या वाक्यांशों को उजागर किया गया, जो स्पैम संदेश का संकेत देते हैं। लेकिन एन एल पी के शुरुआती अनुकूलन की तरह, फ़िल्टरिंग को भी उन्नत किया गया है।
•स्मार्ट असिस्टेंट(Smart assistants)-
ऐप्पल(Apple) के सिरी(Siri) और अमेज़न (Amazon) के एलेक्सा(Alexa) जैसे, स्मार्ट सहायक, आवाज़ पहचान के माध्यम से भाषण में पैटर्न को पहचानते हैं, फिर उसके अर्थ का अनुमान लगाते हैं और एक उपयोगी प्रतिक्रिया प्रदान करते हैं। हम इस तथ्य के आदी हो गए हैं कि, हम “अरे सिरी” कह सकते हैं, एक प्रश्न पूछ सकते हैं और वह समझती है कि, हमने क्या कहा है और संदर्भ के आधार पर प्रासंगिक उत्तरों के साथ जवाब देती है।
•खोज के परिणाम-
खोज इंजन, समान खोज व्यवहार या उपयोगकर्ता के इरादे के आधार पर, प्रासंगिक परिणाम सामने लाने के लिए एन एल पी का उपयोग करते हैं। इससे सामान्य व्यक्ति को खोज-शब्द विज़ार्ड(Search-term wizard) के बिना ही, वह प्रतिक्रिया मिल जाती है, जो उन्हें चाहिए होती है। उदाहरण के लिए, जब आप टाइप करना शुरू करते हैं, तो गूगल न केवल यह अनुमान लगाता है कि, आपके प्रश्न पर कौन सी लोकप्रिय खोजें लागू हो सकती हैं, बल्कि, यह पूरी तस्वीर को देखता है और सटीक खोज शब्दों के बजाय यह पहचानता है कि, आप क्या कहना चाह रहे हैं।
•भविष्यसूचक पाठ-
ऑटो सुधार(Auto correct), ऑटो कंप्लीट(Auto complete) एवं पूर्वानुमानित पाठ(Predictive text) जैसी चीज़ें, हमारे स्मार्टफ़ोन पर इतनी आम हैं कि, हम उन्हें नज़रंदाज़ कर देते हैं। ऑटो सुधार और पूर्वानुमानित पाठ, खोज इंजन के समान हैं, जिसमें वे आपके द्वारा टाइप किए जाने वाले शब्द, शब्द को समाप्त करने या किसी प्रासंगिक शब्द का सुझाव देने के आधार पर कहने वाली चीज़ों की, भविष्यवाणी करते हैं।
•भाषा का अनुवाद-
कई भाषाएं सीधे अनुवाद की अनुमति नहीं देती हैं और उनमें वाक्य संरचना के लिए अलग-अलग आदेश होते हैं, जिन्हें अनुवाद सेवाएं अनदेखा कर देती हैं। लेकिन, फिर भी, अनुवाद उपकरण बहुत आगे बढ़ चुके हैं।
•डेटा विश्लेषण-
प्राकृतिक भाषा क्षमताओं को डेटा विश्लेषण वर्कफ़्लो(Data analysis workflows) में एकीकृत किया जा रहा है, क्योंकि, अधिक बी आई(BI) विक्रेता डेटा विज़ुअलाइज़ेशन(Data visualizations) के लिए एक प्राकृतिक भाषा इंटरफ़ेस प्रदान करते हैं। इसका एक उदाहरण – स्मार्टर विज़ुअल एन्कोडिंग(Smarter visual encoding) है, जो डेटा के शब्दार्थ के आधार पर सही कार्य के लिए, सर्वोत्तम विज़ुअलाइज़ेशन प्रदान करता है।
प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण (एन एल पी) क्या है?
प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण (एन एल पी) मशीनों के निर्माण का विषय है, जो मानव भाषा – या मानव भाषा जैसा डेटा – जिस तरह से लिखा, बोला और व्यवस्थित किया जाता है, में हेरफ़ेर कर सकता है। यह कम्प्यूटेशनल भाषाविज्ञान से विकसित हुआ है, जो भाषा के सिद्धांतों को समझने के लिए कंप्यूटर विज्ञान का उपयोग करता है। लेकिन, सैद्धांतिक रूपरेखा विकसित करने के बजाय, एन एल पी एक इंजीनियरिंग विषय है, जो उपयोगी कार्यों को पूरा करने के लिए प्रौद्योगिकी का निर्माण करना चाहता है। एन एल पी को दो अतिव्यापी उपक्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है: प्राकृतिक भाषा समझ (एन एल यू – Natural language understanding), जो शब्दार्थ विश्लेषण या पाठ के इच्छित अर्थ को निर्धारित करने पर केंद्रित है और प्राकृतिक भाषा पीढ़ी (एन एल जी – Natural language generation), जो एक मशीन द्वारा पाठ निर्माण पर केंद्रित है। एन एल पी को अक्सर वाक् पहचान के साथ, संयोजन में उपयोग किया जाता है, जो बोली जाने वाली भाषा की शब्दों में पदव्याख्या करना, ध्वनि को पाठ में बदलना और इसके विपरीत करना चाहता है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/ybpx5c94
https://tinyurl.com/ymv7c5a4
https://tinyurl.com/yck97wbu
https://tinyurl.com/5dp7d69e
चित्र संदर्भ
1. एक महिला और ए आई को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. संकीर्ण ए आई प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण सॉफ़्टवेयर (Narrow-AI NLP Software) के प्रदर्शन को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
3. एक महिला पर प्रक्षेपित हो रहे कोड को संदर्भित करता एक चित्रण (Pexels)
4. ईमेल फ़िल्टर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. रोबोट और गणितीय सूत्रों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
चलिए अवगत होते हैं, भारत में ड्रॉपशिपिंग शुरू करने के लिए लागत और ज़रूरी प्रक्रियाओं से
संचार एवं संचार यन्त्र
Communication and IT Gadgets
15-01-2025 09:30 AM
Meerut-Hindi
तो आज हम यह जानेंगे कि ड्रॉपशिपिंग क्या है और यह कैसे काम करता है। इसके बाद, हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि भारत में ड्रॉपशिपिंग व्यवसाय कैसे शुरू किया जा सकता है। फिर हम इस प्रकार के ऑनलाइन व्यवसाय को शुरू करने में लगने वाली लागतों पर चर्चा करेंगे। आगे बढ़ते हुए, हम भारत में कुछ बेहतरीन ड्रॉपशिपिंग प्लेटफ़ॉर्म्स के बारे में बात करेंगे। अंत में, हम कुछ लोकप्रिय और लाभकारी उत्पादों के बारे में जानेंगे, जिन्हें ड्रॉपशीप किया जा सकता है।
ड्रॉपशिपिंग कैसे काम करता है?
ड्रॉपशिपिंग एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें उत्पादों को निर्माताओं और थोक विक्रेताओं से खरीदा जाता है और फिर ग्राहकों को बेचा जाता है। इस प्रक्रिया में, हर उत्पाद पर मुनाफ़े का एक प्रतिशत कमा सकते हैं। आइए जानें, यह कैसे काम करता है:
1.) व्यवसायी, थोक विक्रेताओं से संपर्क करता है और उन उत्पादों के लिए साझेदारी करता है, जिन्हें वह अपनी वेबसाइट पर बेचना चाहता है।
2.) फिर वह एक ई-कॉमर्स वेबसाइट बनाता है और उन सभी उत्पादों को सूचीबद्ध करता है।
3.) जैसे ही कोई ग्राहक उत्पाद खरीदता है, व्यवसायी वही उत्पाद थोक विक्रेता से मंगवाता है।
4.) हर उत्पाद पर वह मुनाफ़े का एक प्रतिशत रखता है, जिससे उसे पैसा मिलता है।
5.) उत्पादों के रखरखाव और भंडारण की ज़िम्मेदारी नहीं होती, लेकिन उसे न्यूनतम शिपिंग शुल्क और विपणन शुल्क का ध्यान रखना होता है।
भारत में ड्रॉपशिपिंग व्यवसाय कैसे शुरू करें?
चरण 1: एक आपूर्तिकर्ता चुनें: अपना आपूर्तिकर्ता चुनने के लिए, सावधानी के इन संकेतों को देखें:
A.) आपूर्तिकर्ता को उत्पादों का निर्माण भी करना चाहिए। ऐसा नहीं होना चाहिए कि आपूर्तिकर्ता स्वयं किसी तृतीय पक्ष निर्माता की सेवाओं का उपयोग करे।
B.) आपूर्तिकर्ता के साथ मुनाफे के मार्जिन का अध्ययन करें। चूंकि आप अभी शुरुआत कर रहे हैं या अपने रिटेल ऑनलाइन स्टोर को नए ड्रॉपशिपिंग मॉडल में बदलने जा रहे हैं, आपको पहले मुनाफ़े पर ध्यान देना होगा।
C.) यह जांचें कि आपूर्तिकर्ता सामान पहुचाने के लिए कितनी समय सीमा वादा करता है। अन्य समान स्टोर्स से अलग दिखने के लिए, आपको ग्राहकों को तेज़ शिपिंग सेवा प्रदान करनी होगी।
चरण 2: बेचने के लिए अपने उत्पाद तय करें: इसलिए, एक बार जब आप अपना आपूर्तिकर्ता तय कर लें, तो उनके उत्पादों को ब्राउज़ करें और उनके सबसे अधिक बिकने वाले उत्पादों के बारे में जानने के लिए उनसे बात करें। उनके सुझावों और अपनी रुचि के अनुसार, अमेज़ॅन और फ्लिपकार्ट जैसे अन्य ऑनलाइन स्टोर पर समान उत्पादों की जांच करें। उपलब्ध किस्में, मूल्य निर्धारण, विवरण और उत्पाद चित्र देखें। आपको इस बारे में बहुत अच्छा विचार होगा कि किस उत्पाद से शुरुआत करनी है।
चरण 3: अपना जी एस टी आई एन (GSTIN) नंबर प्राप्त करें: यदि आप एक पंजीकृत कंपनी हैं, तो सभी लेनदेन के लिए, आपूर्तिकर्ता को अपना जी एस टी आई एन प्रदान करें ताकि आप बाद में इनपुट क्रेडिट का दावा कर सकें। लेकिन, यदि आप एक कंपनी नहीं हैं, तो आप एक व्यक्ति के रूप में भारत में ड्रॉपशिपिंग व्यवसाय आसानी से कर सकते हैं। किसी भी आपूर्तिकर्ता के साथ शुरुआत करने से पहले, भविष्य में होने वाले किसी भी कानूनी मुद्दे से सुरक्षित रहने के लिए उनके साथ जीएसटी आवश्यकताओं को स्पष्ट कर लें।
चरण 4: अपनी वेबसाइट डिज़ाइन करें: आपको स्टोर के लिए वेबसाइट डिज़ाइन करनी होगी, क्योंकि आपके पास भंडारण का कोई ज़िम्मा नहीं है, लेकिन आपको ऑनलाइन बेचे जाने वाले उत्पादों का पूरा नियंत्रण होता है। एक डोमेन नाम खरीदें और अपनी वेबसाइट बनाएं (आप शॉपिफ़ाई शॉपिफ़ाई तथा वू कॉमर्स जैसे प्लेटफ़ॉर्मों का उपयोग करके एक अच्छी तरह डिज़ाइन की गई और प्रतिक्रियाशील ई-कॉमर्स वेबसाइट बना सकते हैं)। याद रखें कि आपकी वेबसाइट का रूप और डिज़ाइन आकर्षक और व्यवस्थित होना चाहिए। पहली बार आपकी वेबसाइट पर आने वाले ग्राहक को यह महसूस होना चाहिए कि आप उच्च गुणवत्ता वाले उत्पाद बेचते हैं। आपकी वेबसाइट का डिज़ाइन और सभी कंटेंट आपकी प्रामाणिकता और विश्वसनीयता को दर्शाना चाहिए, लेकिन इसे ज्यादा न करें।
चरण 5: अपने उत्पादों और बाज़ार को सूचीबद्ध करें: अब, अपने स्टोर पर उत्पादों को सूचीबद्ध करने के लिए, ग्राहकों के साथ उत्पादों के सभी प्रासंगिक विवरण साझा करने का प्रयास करें। विकल्पों और बिक्री की संभावनाओं को बढ़ाने के लिए विविधता के लिए अपने विक्रेता से उत्पाद की छवियाँ माँगें। एक बार जब आप अपने उत्पादों को सूचीबद्ध कर लेते हैं, तो अपने ब्रांड का विपणन करने के लिए आगे बढ़ें और इसे परिवर्तन के रूप में लें। जब तक लोगों को आपकी उपस्थिति के बारे में पता नहीं चलेगा, तब तक आप उनसे कैसे उम्मीद करेंगे कि वे आपसे खरीदारी करेंगे! इसलिए, अपने उत्पादों के लिए खरीदार पाने के लिए सोशल मीडिया मार्केटिंग (Social Media Marketing) करें और सोशल मीडिया तथा गूगल ऐड्स (Google Ads) पर सशुल्क अभियान चलाएं।
ड्रॉपशिपिंग व्यवसाय शुरू करने में क्या लागत शामिल है?
भारत में ड्रॉपशिपिंग व्यवसाय शुरू करने की लागत पारंपरिक व्यवसायों की तुलना में अपेक्षाकृत कम है। यहां बुनियादी खर्चों का विवरण दिया गया है:
1.) डोमेन नाम और होस्टिंग: ₹1,000 से ₹3,000 प्रति वर्ष।
2.) ई-कॉमर्स प्लेटफ़ॉर्म शुल्क: शॉपिफ़ाई शॉपिफ़ाई का खर्च लगभग ₹2,000 प्रति माह होता है, जबकि वू कॉमर्स मुफ़्त है, लेकिन आपको होस्टिंग के लिए भुगतान करना होगा, जो ₹3,000 से ₹5,000 प्रति वर्ष तक हो सकता है।
3.) मार्केटिंग खर्च: गूगल या फ़ेसबुक पर पे-पर-क्लिक विज्ञापन, अक्सर ₹5,000 रूपए से शुरू होते हैं और अपने बजट के अनुसार जाते हैं ।
4.) पेमेंट गेटवे शुल्क: प्रत्येक लेन-देन पर एक छोटा प्रतिशत (साधारणतः 2-3%) लिया जाता है।
औसतन, आप भारत में, ₹ 30,000 से ₹50,000 में ड्रॉपशिपिंग व्यवसाय शुरू कर सकते हैं, जो आपके संचालन के पैमाने और आपने जो मार्केटिंग रणनीतियां अपनाई हैं, उनके आधार पर बदल सकता है।
भारत में सर्वश्रेष्ठ ड्रॉपशिपिंग प्लेटफ़ॉर्म
1.) शॉपिफ़ाई द्वारा ओबेरो: शॉपिफ़ाई सबसे लोकप्रिय ई कॉमर्स मार्केटप्लेस में से एक है और आपके ऑनलाइन स्टोर को होस्ट करने और किफायती दरों पर उत्पादों को फिर से बेचने के लिए एक अनूठा मंच प्रदान करता है।शॉपिफ़ाई की ड्रॉपशिपिंग सुविधा ओबेरो द्वारा समर्थित है। यह किसी भी अग्रिम इन्वेंट्री लागत को समाप्त कर देता है। उनके पास स्पष्ट संचालन, लाभ क्षमता और मजबूत समर्थन है। ड्रॉपशिपिंग के लिए शॉपिफ़ाई एक पसंदीदा विकल्प है। यह 14-दिन का निःशुल्क परीक्षण प्रदान करता है और इसकी योजनाएँ $29 प्रति माह से शुरू होती हैं।
2.) बापस्टोर: बापस्टोर थोक दरों पर उपलब्ध 70,000 से अधिक उत्पादों के विशाल संग्रह के साथ ड्रॉपशिपिंग को सरल बनाता है। उल्लेखनीय सुविधाओं में मुफ़्त डिलीवरी और शिपमेंट ट्रैकिंग, ग्राहक अनुभव को बढ़ाना शामिल है। बापस्टोर कई कूरियर भागीदारों के साथ सहयोग करता है और बिना प्लेटफ़ॉर्म शुल्क के विभिन्न चैनलों पर बिक्री की अनुमति देता है।
3.) होलसेलबॉक्स: होलसेल ड्रॉपशिपिंग में विशेषज्ञता, होलसेलबॉक्स लगभग थोक कीमतों पर उत्पाद पेश करता है। यह महिलाओं के कपड़े और परिधान जैसे विशिष्ट बाज़ार क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करता है। पंजीकरण निःशुल्क है, आरंभ करने के लिए केवल बुनियादी संपर्क विवरण की आवश्यकता है।
4.) सीज़न्स वे: सीज़न्स वे ने ड्रॉपशिपिंग के लिए किफायती उत्पाद पेश करने के लिए प्रमुख ब्रांडों के साथ साझेदारी की है। यह भंडारण से लेकर शिपिंग तक शुरू से अंत तक सहायता प्रदान करता है, जिससे विक्रेताओं को इन्वेंट्री प्रबंधन तनाव से राहत मिलती है।
5.) सेल हू: सेल हू ड्रॉप-शिपिंग के लिए एक और प्रसिद्ध ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म है जो ऑनलाइन विक्रेताओं की आवश्यकताओं को सफलतापूर्वक पूरा कर रहा है। उनके पास 8,000 से अधिक सत्यापित थोक और ड्रॉपशिप आपूर्तिकर्ता हैं। यह 24/7 सहायता और निःशुल्क प्रशिक्षण संसाधनों के साथ-साथ प्रतिस्पर्धी कीमतों पर उत्पादों की एक श्रृंखला प्रदान करता है।
भारत में ड्रॉपशिप के लिए सर्वोत्तम उत्पाद स्थान
1.) कपड़े और सहायक उपकरण: यह कोई आश्चर्य की बात नहीं हो सकती है कि फैशन और कपड़े शॉपिफ़ाई की सबसे लोकप्रिय खरीदारी श्रेणी के रूप में रैंक करते हैं। अच्छी खबर यह है कि कपड़ों की मांग हमेशा अधिक रहेगी। इसे उपश्रेणियों में विभाजित करना भी आसान है, जैसे महिलाओं के आरामदायक कपड़े, एथलेटिक महिलाओं के कपड़े, आदि। इस श्रेणी के तहत बेचे जाने वाले सबसे लोकप्रिय उत्पादों में शामिल हैं: टी-शर्ट, लेगिंग्स, बॉडीसूट, लंबी आस्तीन शर्ट, एथलेटिक शॉर्ट्स आदि।
2.) शिशु उत्पाद: हाल ही में, दुनिया भर में माता-पिता के बीच उच्च गुणवत्ता वाले, प्रीमियम शिशु उत्पादों की ओर बदलाव आया है। शिशुओं के लिए जैविक या पर्यावरण-अनुकूल ड्रॉपशिपिंग उत्पाद पेश करना खुद को अलग दिखाने का एक शानदार तरीका है। यहां शिशु उत्पादों की श्रेणी में कुछ बेहतरीन ड्रॉपशिपिंग आइटम हैं: डायपर, बेबी वाइप्स, बेबी टी-शर्ट, बेबी बोतलें, बूस्टर सीटें और शुरुआती खिलौने।
3.) कार्यालय आपूर्ति: कार्यालय आपूर्ति में कम लागत वाली वस्तुएं होती हैं जिनमें सबसे अधिक बिकने वाले ड्रॉपशिपिंग उत्पाद शामिल होते हैं। वे हल्के, शिपिंग के लिए सस्ते और उपभोज्य हैं, इसलिए ग्राहकों को हमेशा अधिक की आवश्यकता होगी। यहां कार्यालय आपूर्ति श्रेणी में कुछ बेहतरीन ड्रॉपशिपिंग उत्पाद हैं: लेटरहेड्स, नोटबुक, बाइंडर्स, फ़्लायर्स, प्लानर्स, लिफ़ाफ़े, फ़ोल्डर्स और स्टोरेज डिब्बे।
4.) व्यक्तिगत देखभाल और सौंदर्य उत्पाद: व्यक्तिगत देखभाल और सौंदर्य उत्पाद सही ड्रॉपशिपिंग व्यवसायों के लिए उच्च मांग में वृद्धि कर सकते हैं। लेकिन जबकि व्यक्तिगत देखभाल की वस्तुएं और सौंदर्य उत्पाद कभी भी फैशन से बाहर नहीं जाएंगे, यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि आपके ड्रॉपशिपिंग स्टोर में आपके द्वारा पेश किए जाने वाले उत्पाद प्रासंगिक सुरक्षा और गुणवत्ता नियमों को पूरा करते हैं। इन उत्पादों में काफ़ी संभावनाएं हैं: बॉडी वॉश, फेस वॉश, फेशियल ऑयल और मॉइस्चराइज़र, मुँहासे पैच, लूफ़ाह, सनस्क्रीन, बाथ बम और परफ्यूम।
5.) इलेक्ट्रॉनिक्स: एक शोध का अनुमान है कि 2024 में 33.5% से अधिक उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स राजस्व ईकॉमर्स के माध्यम से उत्पन्न होगा। इलेक्ट्रॉनिक्स कई कारणों से ड्रॉपशिपिंग व्यवसायों में एक बड़ा योगदान दे सकता है। वे न केवल व्यक्तिगत और व्यावसायिक उपयोग के लिए महत्वपूर्ण हैं, बल्कि अपेक्षाकृत हल्के और शिपमेंट में आसान हैं, जो आपके लाभ मार्जिन को बढ़ाने में मदद कर सकते हैं। कुछ लोकप्रिय उत्पादों में शामिल हैं: फ़ोन केस, वायरलेस ईयरबड, रिंग लाइट, स्मार्ट होम डिवाइस, ब्लूटूथ स्पीकर, यू एस बी एडाप्टर और केबल और पोर्टेबल चार्जर।
संदर्भ
https://tinyurl.com/ybpfhz2h
https://tinyurl.com/2dkfwfbh
https://tinyurl.com/2pcnz5xd
https://tinyurl.com/mrytj2x3
https://tinyurl.com/j4ka9xyc
चित्र संदर्भ
1. त्वरित खरीदारी को संदर्भित करता एक चित्रण (pxhere, wikimedia)
2. बक्से पर रस्सी बांध रहे व्यक्ति को संदर्भित करता एक चित्रण (Pexels)
3. दस्तावेज़ीकरण को संदर्भित करता एक चित्रण (Pexels)
4. सामान की डिलीवरी को संदर्भित करता एक चित्रण (Pexels)
5. शॉपिफ़ाई के लोगो को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia
6. सामान पर पता लिखते व्यक्ति को संदर्भित करता एक चित्रण (Pexels)
आध्यात्मिकता, भक्ति और परंपरा का संगम है, कुंभ मेला
विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)
Thought I - Religion (Myths/ Rituals )
14-01-2025 09:26 AM
Meerut-Hindi
कुंभ मेले का परिचय:
कुंभ मेला, पृथ्वी पर तीर्थयात्रियों की सबसे बड़ी शांतिपूर्ण धार्मिक सभा है, जिसके दौरान, भक्तजन पवित्र नदी में स्नान करते हैं या डुबकी लगाते हैं। भक्तों का मानना है कि, गंगा में स्नान करने से कोई भी व्यक्ति, पापों से मुक्त हो जाता है और उसे जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। कुंभ का यह उत्सव हर चार साल में बारी-बारी से चार शहरों इलाहाबाद, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में आयोजित किया जाता है। यह आयोजन, खगोल विज्ञान, ज्योतिष विज्ञान, आध्यात्मिकता, अनुष्ठानिक परंपराओं, सामाजिक और सांस्कृतिक रीति-रिवाजों और प्रथाओं के विज्ञान को समाहित करता है। चूँकि यह भारत के चार अलग-अलग शहरों में आयोजित किया जाता है, यह आयोजन, विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधिओं को अपने आप में समाहित करते हुए सांस्कृतिक रूप से -एक विविध आयोजन बन जाता है।
कुंभ मेले की शुरुआत की कथा:
कुंभ मेले की उत्पत्ति की कथा, हिंदू धर्मग्रंथों में वर्णित समुद्र मंथनकी एक प्राचीन कथा से जुड़ी हुई है। कहानी के अनुसार, देवताओं और राक्षसों ने जब समुद्र मंथन किया तो उसमें से 14 रत्न निकले, जिनमें से एक अमृत था। देवताओं और राक्षसों के बीच अमृत प्राप्त करने के लिए खींचतान होने लगी जिसके कारण अमृत की कुछ बूँदें चार स्थानों पर गिर गईं: प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक। तब से माना जाता है कि इन चार स्थानों पर रहस्यमय शक्तियां व्याप्त होती हैं। देवताओं और राक्षसों के बीच, कुंभ यानी पवित्र घड़े के लिए, 12 दिव्य दिनों तक लड़ाई चलती रही | इन 12 दिनों की अवधि, मनुष्य के लिए 12 वर्ष जितनी लंबी मानी जाती है। इसीलिए कुंभ मेला, 12 वर्षों में एक बार मनाया जाता है और उपरोक्त पवित्र स्थानों या तीर्थों पर सभा होती थी। ऐसा कहा जाता है कि, इस अवधि के दौरान, नदियों का जल अमृत में परिवर्तित हो जाता है और इसलिए, दुनिया भर से तीर्थयात्री पवित्रता और अमृत्व के सार में स्नान करने के लिए कुंभ मेले में आते हैं।
कुंभ मेला, दो शब्दों, 'कुंभ' और 'मेला' से मिलकर बना है। कुंभ नाम अमृत के अमर कलश से लिया गया है जिसे लेकर देवताओं और राक्षसों के बीच लड़ाई हुई थी। मेला, जैसा कि हम सभी परिचित हैं, एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है, 'एकत्र होना' या 'मिलना'। अति प्राचीन काल से ही कुंभ मेले के ऐतिहासिक रिकॉर्ड भी मिलते हैं। इस त्यौहार का उल्लेख, पुराणों के साथ-साथ, सातवीं शताब्दी में भारत का दौरा करने वाले चीनी यात्री जुआनज़ांग के इतिहास में भी मिलता है। उन्होंने प्रयागराज में आयोजित एक भव्य धार्मिक सभा का वर्णन किया है, जो आधुनिक कुंभ मेले जैसा था। सदियों से, कुंभ मेला, एक संरचित और बड़े पैमाने के आयोजन के रूप में विकसित हुआ है। इसे 7वीं शताब्दी में राजा हर्षवर्द्धन के शासनकाल के दौरान प्रमुखता मिली, जिनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने इस आयोजन के लिए, उदारतापूर्वक दान दिया और भव्य सभाओं का आयोजन किया। समय के साथ, विभिन्न संप्रदायों के संतों और साधुओं ने इसमें भाग लेना शुरू कर दिया और अपनी शिक्षाओं और दर्शन को साझा किया, जिससे यह आयोजन आध्यात्मिक प्रवचन के लिए एक खुला मंच बन गया। मध्ययुग के दौरान, अखाड़े मेले का एक अभिन्न अंग बन गए। शाही स्नान के दौरान, अखाड़ों के जुलूसों ने इस आयोजन में एक शाही आयाम जोड़ा।
कुंभ मेलों के प्रकार:
- महाकुंभ मेला: महाकुंभ, केवल प्रयागराज में आयोजित किया जाता है। यह प्रत्येक 144 वर्ष या 12 पूर्ण कुंभ मेले के बाद आता है।
- पूर्ण कुंभ मेला: पूर्ण कुंभ मेला, हर 12 साल में आयोजित किया जाता है। यह मुख्य रूप से 4 स्थानों अर्थात प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में आयोजित किया जाता है। यह हर 12 साल में बारी-बारी से 4 स्थानों पर आयोजित होता है।
- अर्ध कुंभ मेला: इसका अर्थ है आधा कुंभ मेला, अर्थात यह मेला, भारत में हर 6 साल में केवल दो स्थानों - हरिद्वार और प्रयागराज में आयोजित किया जाता है।
- कुंभ मेला: चार अलग-अलग स्थानों पर राज्य सरकारों द्वारा आयोजित किया जाता है। लाखों लोग, आध्यात्मिक उत्साह के साथ इसमें भाग लेते हैं।
- माघ कुंभ मेला: इसे छोटा कुंभ मेला भी कहा जाता है जो प्रतिवर्ष केवल प्रयागराज में आयोजित होता है। इसका आयोजन, हिंदू वर्ष के अनुसार, माघ महीने में किया जाता है।
कुंभ मेले के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य:
कुंभ मेले का स्थान, विभिन्न राशियों में सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति की स्थिति के अनुसार तय किया जाता है। वर्तमान में, प्रयागराज में आयोजित हो रहा महाकुंभ मेला, सिर्फ़ एक धार्मिक आयोजन से कहीं अधिक है; यह एक वैश्विक घटना है जो जीवन के सभी क्षेत्रों से लाखों लोगों को आकर्षित करती है। दुनिया में सबसे बड़े मानव जमावड़े के रूप में जाना जाने वाला कुंभ मेला आध्यात्मिकता, भक्ति और परंपरा का संगम है। यहां, इस प्रतिष्ठित आयोजन के बारे में शीर्ष दस आकर्षक तथ्य दिए गए हैं:
1. पृथ्वी पर सबसे बड़ी मानव सभा: कुंभ मेला, दुनिया भर में आयोजित लोगों की सबसे बड़ी शांतिपूर्ण सभा है। 2019 में, प्रयागराज कुंभ मेले में उत्सव के दौरान 150 मिलियन से अधिक तीर्थ यात्रियों ने भाग लिया। अनुमान लगाया गया है कि, इस वर्ष, महाकुंभ मेले में तीर्थ यात्रियों की संख्या, पिछली संख्या को भी पार कर देगी।
2. चार पवित्र शहरों का एक चक्र: कुंभ मेला, चार पवित्र शहरों के बीच घूमता है: प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक। यह आयोजन ग्रहों की स्थिति के आधार पर प्रत्येक शहर में आयोजित किया जाता है, जिसमें गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती नदियों के पवित्र संगम त्रिवेणी संगम पर स्थित होने के कारण प्रयागराज कुंभ मेला सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है।
3. प्राचीन जड़ों वाला एक आयोजन: कुंभ मेले की उत्पत्ति का उल्लेख, पुराणों जैसे धर्मग्रंथों में मिलता है। पौराणिक कथा के अनुसार, यह आयोजन, देवताओं और राक्षसों के बीच अमृत के कुंभ को लेकर हुए दैवीय युद्ध का प्रतिनिधित्व करता है, जिसमें से गिरी अमृत की चार बूंदें, कुंभ मेले की शुरुआत का प्रतीक हैं।
4. त्रिवेणी संगम - सबसे पवित्र स्थल: प्रयागराज में त्रिवेणी संगम, वह स्थान है, जहाँ गंगा, यमुना और सरस्वती नदियाँ मिलती हैं। यह स्थान, हिंदू तीर्थयात्रियों के लिए सबसे पवित्र स्थलों में से एक माना जाता है | कहा जाता है कि, कुंभ मेले के दौरान, यहां के पवित्र जल में डुबकी लगाने से पाप धुल जाते हैं और आध्यात्मिक मुक्ति या मोक्ष मिलता है।
5. कुंभ मेले का ज्योतिषीय महत्व: कुंभ मेले का समय, आकाशीय पिंडों के संरेखण द्वारा निर्धारित किया जाता है। प्रयागराज में यह कार्यक्रम, तब आयोजित किया जाता है जब बृहस्पति कुंभ राशि में होता है और सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। इस संरेखण को बेहद शुभ माना जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि, यह पवित्र स्नान की आध्यात्मिक शक्ति को बढ़ाता है, जिसे शाही स्नान के रूप में जाना जाता है।
6. अखाड़ों के शाही जुलूस: शाही स्नान का नेतृत्व, विभिन्न अखाड़ों के नागा साधुओं के एक भव्य जुलूस द्वारा किया जाता है। भगवा वस्त्र पहने या अक्सर नग्न, ये साधु, जो अपनी तपस्वी जीवन शैली के लिए जाने जाते हैं, बड़े धूमधाम और श्रद्धा के साथ औपचारिक स्नान करते हैं। शाही जुलूस का नज़ारा कुंभ मेले का मुख्य आकर्षण है, जो भक्तों और पर्यटकों को समान रूप से आकर्षित करता है।
7. एक शहर के भीतर एक अस्थायी शहर: लाखों तीर्थयात्रियों को समायोजित करने के लिए, कुंभ मेले के दौरान, शहर को टेंट, अस्पतालों, पुलिस स्टेशनों और सड़कों से युक्त एक अस्थायी शहर में बदल दिया जाता है। यह विशाल बुनियादी ढांचा, नदी के किनारे बनाया जाता है, जो कई वर्ग किलोमीटर में फैला होता है।
8. यूनेस्को मान्यता: कुंभ मेले को 2017 में यूनेस्को (UNESCO) की मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची (UNESCO's List of Intangible Cultural Heritage) में शामिल किया गया था। यह मान्यता, कुंभ मेले के, न केवल एक धार्मिक सभा के रूप में बल्कि, एक सांस्कृतिक और ऐतिहासिक घटना के रूप में वैश्विक महत्व को उजागर करती है, जिसने सहस्राब्दियों से, मानव सभ्यता को आकार दिया है।
9. आध्यात्मिक प्रवचन और सांस्कृतिक कार्यक्रम: कुंभ मेला, केवल पवित्र स्नान स्थल के रूप में ही नहीं; बल्कि एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक मंच के रूप में भी कार्य करता है। पूरे उत्सव के दौरान,तीर्थयात्री, धार्मिक प्रवचनों में भाग ले सकते हैं, श्रद्धेय गुरुओं से आध्यात्मिक वार्ता सुन सकते हैं | साथ ही, वे भक्ति गीतों, प्रार्थनाओं और यज्ञों में भाग ले सकते हैं। ये गतिविधियाँ, आध्यात्मिक यात्रा में एक समृद्ध आयाम लाती हैं, सभी आगंतुकों के लिए एक गहन अनुभव प्रदान करती हैं।
10. सभी के लिए एक वैश्विक सभा: हालाँकि, कुंभ मेला, हिंदू परंपराओं में निहित है, यह दुनिया भर से लोगों को आकर्षित करता है, चाहे उनकी आस्था कुछ भी हो। पर्यटक, आध्यात्मिक साधक, फ़ोटोग्राफ़र और विद्वान, इस पवित्र आयोजन की भव्यता को देखने के लिए एक साथ आते हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/dcehxhtn
https://tinyurl.com/y39x37ff
https://tinyurl.com/27uscknd
https://tinyurl.com/5f5d9x4s
चित्र संदर्भ
1. प्रयागराज में आयोजित कुंभ मेले को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. समुद्र मंथन के दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. नासिक, महाराष्ट्र में गोदावरी नदी के घाटों पर आयोजित कुंभ मेले को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. प्रयागराज में आयोजित कुंभ मेले में एकत्र भीड़ संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लचीलेपन का श्रेय जाता है, इसके मज़बूत डेयरी क्षेत्र को
आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक
Modern State: 1947 to Now
13-01-2025 09:26 AM
Meerut-Hindi
दूध उत्पादन-
भारत, दुनिया में दूध का सबसे बड़ा उत्पादक है। पशुधन की उत्पादकता बढ़ाने के लिए, सरकार द्वारा कई उपाय शुरू किए गए हैं, जिसके परिणामस्वरूप दूध उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के प्रकाशन प्रभाग Publications Division of the Ministry of Information and Broadcasting) द्वारा प्रकाशित भारत 2024: एक संदर्भ वार्षिक (India 2024: A Reference Annual) नमक एक पुस्तक के अनुसार, 2020-21 और 2021-22 के दौरान, दूध उत्पादन क्रमशः 209.96 मिलियन टन और 221.06 मिलियन टन था, जो 5.29% की वार्षिक वृद्धि दर्शाता है। 2021-22 में प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता, लगभग 444 ग्राम प्रति दिन थी।
गरीबी उन्मूलन और ग्रामीण विकास में भारत के डेयरी क्षेत्र की भूमिका-
भारत, अपनी ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लचीलेपन का श्रेय, अपने मज़बूत डेयरी क्षेत्र को देता है। 100 मिलियन से अधिक लोगों के लिए, डेयरी केवल एक कृषि गतिविधि न होकर, एक जीवन रेखा है। दूध की मांग बढ़ने के कारण, जो निकट भविष्य में दोगुनी से अधिक होने का अनुमान है, यह क्षेत्र सतत ग्रामीण विकास को आगे बढ़ाते हुए, गरीबी और बेरोज़गारी को दूर करने का एक शक्तिशाली अवसर प्रस्तुत करता है।
डेयरी कृषि: गरीबी उन्मूलन का मार्ग-
डेयरी कृषि में, भारत के खासकर सूखाग्रस्त और वर्षा आधारित क्षेत्रों में ग्रामीण गरीबों के उत्थान की, अपार संभावनाएं हैं। भूमिहीन और सीमांत किसानों के लिए, पारिवारिक उपविभाजनों के कारण घटती भूमि जोत के बीच, पशुधन आय और स्थिरता का एक महत्वपूर्ण स्रोत प्रदान करता है।
इस क्षेत्र की गरीब-समर्थक प्रकृति का मतलब है कि, दूध उत्पादन में सुधार सीधे तौर पर लाखों छोटे पैमाने के पशुपालकों की आय में वृद्धि करता है। दूध उत्पादन न केवल घरेलू पोषण और खाद्य सुरक्षा का समर्थन करता है बल्कि, शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य आवश्यकताओं में पुनर्निवेश के लिए अतिरिक्त आय भी उत्पन्न करता है।
इसके अलावा, डेयरी क्षेत्र, लगभग 27.6 मिलियन लोगों को रोज़गार देता है, जिनमें से 65-70% छोटे, सीमांत या भूमिहीन किसान हैं। ग्रामीण रोज़गार में इसकी भूमिका को बढ़ा-चढ़ाकर नहीं बताया जा सकता है। जैसे-जैसे दूध की मांग बढ़ती है, उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि गरीबी उन्मूलन के लिए, उत्प्रेरक के रूप में काम कर सकती है।
भारत का डेयरी उद्योग, ग्रामीण कृषि प्रणाली से गहराई से जुड़ा हुआ है। फ़सल उपोत्पादों का उपयोग आमतौर पर चारे के रूप में किया जाता है, जबकि जानवरों का गोबर उर्वरक के रूप में कार्य करता है। यह एक स्थायी चक्र बनाता है, जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मज़बूत करता है।
इस क्षेत्र का योगदान बहुत बड़ा है। 2015-16 में, कुल कृषि उत्पादन में पशुधन की हिस्सेदारी 28.5% थी, जिसके मूल में डेयरी थी। 1951 और 2019 के बीच, भारत का दूध उत्पादन 17 मिलियन टन से बढ़कर 187.7 मिलियन टन हो गया, जो इसकी गतिशील वृद्धि और निरंतर विस्तार की क्षमता को दर्शाता है। यह निरंतर वृद्धि, न केवल एक कृषि गतिविधि के रूप में, बल्कि भारत के ग्रामीण सामाजिक-आर्थिक ताने-बाने के एक महत्वपूर्ण स्तंभ के रूप में डेयरी के महत्व को रेखांकित करती है।
चुनौतियां और भविष्य की रणनीतियां-
अपनी सफ़लता के बावजूद, भारत के डेयरी क्षेत्र को वैश्विक मानकों की तुलना में, प्रति पशु कम औसत दूध उपज जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इन मुद्दों के समाधान के लिए बहु-आयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है:
१.नस्ल और पोषण प्रबंधन: जीनोमिक चयन(Genomic selection) और बेहतर पोषण प्रथाओं जैसी उन्नत प्रजनन तकनीकें, दूध उत्पादकता को काफ़ी हद तक बढ़ा सकती हैं।
२.प्रौद्योगिकी को अपनाना: सार्वजनिक- निजी भागीदारी, डेयरी उत्पादन, प्रसंस्करण और विपणन में उन्नत प्रौद्योगिकियों को बढ़ाने में मदद कर सकती है।
३.मूल्यवर्धित उत्पाद: ए2 दूध जैसे उच्च मूल्य वाले उत्पादों में विशेषज्ञता, छोटे पैमाने के किसानों के लिए अंतरराष्ट्रीय बाज़ार तक पहुंच बढ़ा सकती है।
४.लागत दक्षता: बेहतर पशु स्वास्थ्य देखभाल और प्रबंधन प्रथाओं से उत्पादन लागत कम हो सकती है, जिससे छोटे किसानों को लाभ होगा।
५.बुनियादी ढांचे का विकास: उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादन और विपणन बुनियादी ढांचे में निवेश, भारतीय डेयरी उत्पादों को वैश्विक मानकों के अनुरूप बना सकता है।
भारत सरकार द्वारा विकास कार्यक्रम –
१.राष्ट्रीय गोकुल मिशन
राष्ट्रीय गोकुल मिशन, विशेष रूप से वैज्ञानिक और समग्र तरीके से, स्वदेशी गोजातीय नस्लों के विकास और संरक्षण के लिए 2019 में शुरू किया गया था। यह योजना ग्रामीण गरीबों के उत्थान के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि 80% से अधिक कम उत्पादक देशी जानवर, छोटे और सीमांत किसानों और भूमिहीन मज़दूरों के पास हैं। यह योजना दूध की बढ़ती मांग को पूरा करने और देश के ग्रामीण किसानों के लिए, डेयरी को अधिक लाभकारी बनाने के लिए दूध उत्पादन और गोवंश की उत्पादकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। इस योजना से स्वदेशी नस्लों के विशिष्ट पशुओं की संख्या में वृद्धि हो रही है, और स्वदेशी स्टॉक (Stock) की उपलब्धता बढ़ रही है।
योजना के कार्यान्वयन और सरकार द्वारा उठाए गए अन्य उपायों के कारण, 2014-15 से 2021-22 के दौरान, देश में दूध उत्पादन की वार्षिक वृद्धि दर 6.38% थी। 2014-15 और 2021-22 के बीच वर्णित तथा गैर-वर्णित मवेशी, भैंस और क्रॉसब्रेड मवेशियों सहित, सभी श्रेणी के जानवरों की उत्पादकता में 16.74% की वृद्धि हुई है। इसी प्रकार भैंसों की उत्पादकता 2014-15 में 1792 किलोग्राम प्रति पशु प्रति वर्ष से बढ़कर, 2021-22 में 2022.1 किलोग्राम प्रति पशु प्रति वर्ष हो गई। स्वदेशी मवेशियों से दूध उत्पादन 2014-15 में 29.48 मिलियन टन से बढ़कर, 2020-2021 में 42.02 मिलियन टन हो गया।
२.गोपाल रत्न पुरस्कार-
गोपाल रत्न पुरस्कार, 2022 में विभाग द्वारा शुरू किया गया था | यह पशुधन और डेयरी क्षेत्र के सर्वोच्च राष्ट्रीय पुरस्कारों में से एक है। इस पुरस्कार का उद्देश्य, इस क्षेत्र में काम करने वाले सभी व्यक्तिगत किसानों, कृत्रिम गर्भाधान तकनीशियनों और डेयरी सहकारी समितियों को प्रोत्साहित करना है। यह पुरस्कार तीन श्रेणियों में प्रदान किए जाते हैं, अर्थात् (i) स्वदेशी मवेशी/भैंस नस्ल का पालन करने वाले सर्वश्रेष्ठ डेयरी किसान; (ii) सर्वोत्तम कृत्रिम गर्भाधान तकनीशियन (ए आई टी) और (iii) सर्वोत्तम डेयरी सहकारी।
संदर्भ
https://tinyurl.com/4rhzfcr2
India 2024: A Reference Annual
चित्र संदर्भ
1. गाय का दूध दुहती युवती को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. प्रजातियों के अनुसार, 2017–18 के दौरान, दूध के अनुपात को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. रेनीगुंटा जंक्शन पर ऑपरेशन फ़्लड लिखा दूध ले जा रही रेल गाड़ी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. आनंद, गुजरात में अमूल के एक प्लांट को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
आइए, आज देखें, भारत में पोंगल से संबंधित कुछ चलचित्र
विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)
Thought I - Religion (Myths/ Rituals )
12-01-2025 09:30 AM
Meerut-Hindi
पोंगल, दक्षिण भारत में मनाया जाने वाला एक फ़सल उत्सव है, जिसमें सूर्य देवता, प्रकृति और कृषि में सहायक लोगों और जानवरों का आभार व्यक्त किया जाता है। उदाहरण के लिए, मट्टू पोंगल पर, लोग कृषि में गायों की भूमिका को उजागर करते हुए अपने प्रवेश द्वारों को विशेष कोलम (kolams) से सजाते हैं। इस उत्सव के दौरान बनाए और खाए जाने वाले पकवान का नाम भी ‘पोंगल’ होता है, जिसे उबले हुए मीठे चावल से बनाया जाता है। पोंगल, तमिल शब्द ‘पोंगु’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है "उबलना"। इस उत्सव की शुरुआत, ‘भोगी पोंगल’ से होती है, जो पहले दिन मनाया जाता है। इस दिन, पुरानी चीज़ों को साफ़ करना और उन्हें सही करना आदि क्रियाकलाप किए जाते हैं। लोग इकट्ठा होकर ‘आग’ या अलाव जलाते हैं, और उसमें अप्रयुक्त वस्तुओं को फेंक देते हैं। साथ ही वे, आनंदमय संगीत और नृत्य द्वारा इस कार्यक्रम को मनाते हैं। दूसरा दिन, जिसे ‘सूर्य पोंगल’ के नाम से जाना जाता है, इस त्योहार का सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है। इसी दिन, पोंगल पकवान तैयार किया जाता है, जिसे बनाने के लिए ताज़े कटे चावल, दाल, गुड़ और काजू का उपयोग किया जाता है। इस पकवान को मिट्टी के बर्तन में पकाया जाता है। जैसे ही मिश्रण उबलता है, लोग खुशी से "पोंगालो पोंगल" का उच्चारण करते हैं। यह उस प्रचुरता का प्रतीक है, जो उन्हें प्राप्त हुई है। फिर इस स्वादिष्ट पकवान को कृतज्ञता के भाव के रूप में सूर्य देवता को अर्पित किया जाता है, जिसके बाद, परिवार एक साथ भोजन का आनंद लेते हैं। मट्टू पोंगल, इस त्योहार का तीसरा दिन है, जो मनुष्यों और मवेशियों के बीच के सम्बंध का प्रतिनिधित्व करता है। गायों और बैलों को पवित्र माना जाता है, उन्हें माला, घंटियाँ और रंगीन पेंट से खूबसूरती से सजाया जाता है। उन्हें सड़कों पर घुमाया जाता है और उनके मालिक, उन्हें विशेष व्यंजन खिलाकर अपनी प्रशंसा व्यक्त करते हैं। इस दिन ‘जल्लीकट्टू’ जैसे पारंपरिक खेल भी खेले जाते हैं, जो बैलों को काबू करने का एक खेल है। इस खेल के द्वारा प्रतिभागियों की वीरता का प्रदर्शन होता है। पोंगल का अंतिम दिन, जिसे ‘कानुम पोंगल’ या ‘तिरुवल्लुवर दिवस’ कहा जाता है, पारिवारिक समारोहों और सैर-सपाटे का उत्सव होता है। लोग रिश्तेदारों और दोस्तों से मिलने जाते हैं, उपहारों का आदान-प्रदान करते हैं और बाहरी गतिविधियों में भाग लेते हैं। परिवार, प्रकृति की शांत सुंदरता का आनंद लेने के लिए आस-पास की नदियों या पार्कों में भी घूमने जाते हैं। तो आइए, आज हम, पोंगल के विभिन्न दिवसों के महत्व के बारे में जानेंगे तथा इस उत्वस से संबंधित कुछ चलचित्र देखेंगे। साथ ही, हम देखेंगे कि, तमिलनाडु के किसान, मट्टू पोंगल कैसे मनाते हैं। हम यह भी देखेंगे कि, इस उत्सव में क्या अनुष्ठान किए जाते हैं। इसके अलावा, हम जानेंगे कि, इस उत्सव के दौरान, कौन से व्यंजन बनाए जाते हैं और उनमें कौन सी सामग्री का उपयोग किया जाता है।
संदर्भ
जानिए, तलाक के बढ़ते मामलों को कम करने के लिए, कुछ सक्रिय उपायों को
आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक
Modern State: 1947 to Now
11-01-2025 09:26 AM
Meerut-Hindi
आज के इस लेख में हम बात करेंगे कि भारत में तलाक के मामलों में बढ़ोतरी क्यों हो रही है। फिर जानेंगे, किन राज्यों में तलाक के मामले सबसे ज़्यादा हैं। इसके बाद समझेंगे कि तलाक के मामलों में वृद्धि का अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ता है। और अंत में चर्चा करेंगे कि विवाह को मज़बूत बनाने और बेहतर रिश्तों को बढ़ावा देने के लिए कौन-कौन सी रणनीतियाँ अपनाई जा सकती हैं।
भारत में बढ़ते तलाक के कारण
भारत में तलाक के मामलों में लगातार हो रही बढ़ोतरी एक गंभीर सामाजिक मुद्दा बनता जा रहा है। इसके पीछे कई सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और व्यक्तिगत कारण छिपे हैं। आइए इस विषय को और गहराई से समझते हैं।
1. बदलते सामाजिक मानदंड
तलाक की बढ़ती स्वीकार्यता: पहले समाज में तलाक को एक बड़ा कलंक माना जाता था। इसे सामाजिक प्रतिष्ठा से जोड़कर देखा जाता था और लोग इसे किसी भी कीमत पर टालने की कोशिश करते थे। लेकिन अब समय के साथ यह धारणा बदल रही है। खासकर शहरी इलाकों में, तलाक को एक असफल रिश्ते को समाप्त करने का सामान्य तरीका माना जाने लगा है। यह बदलाव लोगों को अपने जीवन की गुणवत्ता सुधारने और ख़राब रिश्तों को छोड़ने का साहस देता है।
महिलाओं का सशक्तिकरण: महिलाओं के अधिकारों और सशक्तिकरण पर बढ़ती जागरूकता के कारण महिलाएँ अब अपने फ़ैसले स्वयं ले रही हैं। चाहे वह एक करियर चुनना हो या शोषणकारी शादी से बाहर निकलना, महिलाएँ अब अपनी आवाज़ उठा रही हैं।
2. आर्थिक स्वतंत्रता
महिलाओं की आर्थिक आत्मनिर्भरता: अब अधिक महिलाएँ कामकाजी हो रही हैं और अपना खर्च खुद उठाने में सक्षम हैं। यह आर्थिक स्वतंत्रता उन्हें यह सोचने का अवसर देती है कि वे एक खराब रिश्ते को सिर्फ वित्तीय निर्भरता के कारण क्यों जारी रखें। इसके अलावा, यह स्वतंत्रता उन्हें शादी को लेकर समझौते करने से बचने की ताकत देती है।
दोहरी आय का प्रभाव: आधुनिक परिवारों में दोहरी आय का चलन बढ़ रहा है, जिससे दोनों जीवनसाथी आर्थिक रूप से स्वतंत्र होते हैं। ऐसे में, अगर रिश्ते में तालमेल नहीं बैठता है, तो अलग होने का निर्णय लेना आसान हो जाता है।
3. बढ़ती उम्मीदें
उम्मीदों में बदलाव: आधुनिक समय में, लोग विवाह को केवल एक सामाजिक बंधन नहीं, बल्कि व्यक्तिगत ख़ुशी और संतुष्टि का ज़रिए मानने लगे हैं। आज की पीढ़ी भावनात्मक जुड़ाव, साथी का सहयोग और व्यक्तिगत सम्मान को प्राथमिकता देती है। अगर ये उम्मीदें पूरी नहीं होतीं, तो लोग तलाक को बेहतर विकल्प मानने लगे हैं।
प्रेम और ख़ुशी की तलाश: पहले के समय में विवाह को त्याग और समझौतों का प्रतीक माना जाता था। लेकिन अब लोग मानते हैं कि शादी का उद्देश्य जीवन में खुशियाँ लाना है। अगर रिश्ते से केवल तनाव और दुख मिलता है, तो लोग उसे खत्म करना बेहतर समझते हैं।
4. सांस्कृतिक बदलाव
पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव: वैश्वीकरण के चलते, भारतीय समाज पर पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव बढ़ा है। व्यक्तिगत स्वतंत्रता, आत्म-सम्मान और आधुनिक विचारधारा का असर लोगों की सोच और उनके रिश्तों पर भी पड़ा है। लोग अब खुद को शादी के बंधन में ज़बरदस्ती बाँधकर रखने के बजाय अपनी खुशी को प्राथमिकता देने लगे हैं।
पारंपरिक शादियों में कमी: पहले के समय में अधिकतर विवाह, व्यवस्था विवाह (Arranged marriage) के माध्यम से होते थे। परिवार और समाज का दबाव भी जोड़ों को शादी निभाने के लिए मजबूर करता था। लेकिन अब प्रेम विवाह और व्यक्तिगत पसंद को अधिक महत्व दिया जा रहा है। ऐसे में, अगर शादी में समस्याएँ आती हैं, तो लोग इसे खत्म करने का फैसला करने में संकोच नहीं करते।
5. संवाद में कमी
कमज़ोर संवाद कौशल: हर रिश्ते में बातचीत का महत्व सबसे ज़्यादा होता है। लेकिन जब आपसी संवाद कमज़ोर हो जाता है, तो यह गलतफहमियों को जन्म देता है। समय के साथ ये गलतफहमियाँ रिश्ते को इतना कमज़ोर कर देती हैं कि तलाक ही आखिरी उपाय बन जाता है।
विवाद सुलझाने में असमर्थता: कई जोड़ों को यह नहीं पता होता कि झगड़ों और मतभेदों को किस तरह सुलझाया जाए। बार-बार होने वाले झगड़े रिश्ते में तनाव बढ़ाते हैं और अंततः रिश्ते के टूटने का कारण बनते हैं।
6. मानसिक स्वास्थ्य और व्यक्तिगत प्राथमिकताएँ
मानसिक तनाव: आधुनिक जीवनशैली के साथ तनाव और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएँ भी बढ़ रही हैं। कामकाज का दबाव, पारिवारिक ज़िम्मेदारियाँ और व्यक्तिगत प्राथमिकताएँ अक्सर रिश्तों में दूरी का कारण बन जाती हैं।
व्यक्तिगत प्राथमिकताएँ: आजकल लोग अपनी खुशियों और प्राथमिकताओं को लेकर अधिक जागरूक हो गए हैं। वे रिश्तों में समझौता करने के बजाय, अपनी इच्छाओं और सपनों को पूरा करना चाहते हैं।
7. डिजिटल युग और सोशल मीडिया का प्रभाव
सोशल मीडिया का प्रभाव: सोशल मीडिया और ऑनलाइन डेटिंग प्लेटफ़ॉर्म्स ने रिश्तों की गतिशीलता को बदल दिया है। ये प्लेटफ़ॉर्म्स अक्सर रिश्तों में असुरक्षा और अविश्वास पैदा करते हैं, जो अंततः तलाक का कारण बनते हैं।
तकनीक का बढ़ता उपयोग: डिजिटल युग में, लोग एक-दूसरे के साथ कम समय बिताने लगे हैं। इसके कारण आपसी समझ और संबंधों की गहराई कम हो जाती है।
भारत में उच्च तलाक दर वाले राज्य
भारत में तलाक की दर हर साल बढ़ रही है। ऐसा अनुमान है कि पिछले दो दशकों में तलाक के मामलों की संख्या दोगुनी से भी अधिक हो गई है।
भारत एक अत्यधिक विविधता और संस्कृति वाला देश है, जहाँ प्रत्येक राज्य अपनी विशेष पहचान और सांस्कृतिक धरोहर लेकर आता है। भारत में एक प्रमुख चर्चा का विषय तलाक की दर है, जो राज्यों के बीच अलग-अलग है। शहरी क्षेत्रों जैसे दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु में तलाक की दर 30% से अधिक है। दिल्ली, बेंगलुरु, मुंबई, कोलकाता और लखनऊ जैसे शहरों में हाल के वर्षों में तलाक के मामलों में काफ़ी बढ़ोतरी देखी गई है, जो लगभग तीन गुना हो गए हैं। उत्तर भारत के राज्य जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा और राजस्थान, जो पितृसत्तात्मक समाज के लिए जाने जाते हैं, वहाँ तलाक और अलगाव के मामले अपेक्षाकृत कम हैं। वहीं, पूर्वोत्तर भारत में तलाक की दर अधिक है।
महाराष्ट्र भारत के राज्यों में सबसे अधिक तलाक दर वाला राज्य है, जहाँ यह 18.7% है। इसके बाद मध्य प्रदेश 17.8% के साथ है। कर्नाटक 11.7% की दर के साथ तीसरे स्थान पर है, जबकि उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में तलाक की दर क्रमशः 8.8% और 8.2% है। दिल्ली में यह दर 7.7% है, और तमिलनाडु में 7.1% है। तेलंगाना और केरल में तलाक की दर क्रमशः 6.7% और 6.3% है, जो बिहार के समान है।
ये आंकड़े उन राज्यों को दर्शाते हैं जहाँ तलाक की दर सबसे अधिक है और यह भारत में वैवाहिक स्थिरता के महत्वपूर्ण सामाजिक रुझानों को उजागर करते हैं।
तलाक दर में वृद्धि से अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
बिज़नेस न्यूज़ डेली में एक लेख के अनुसार, तलाक देश की अर्थव्यवस्था पर सरकार की नीतियों में किसी भी बदलाव से अधिक नकारात्मक प्रभाव डालता है। तलाक देश की अर्थव्यवस्था की वृद्धि में रुकावट डालता है और मंदी से उबरने की संभावनाओं को कम करता है।
अमेरिका में तलाक का दर घट रहा है। वर्तमान में, पहली शादी में तलाक की औसत दर 41 प्रतिशत है। इसके पीछे कई कारण हैं।
इस गिरावट का प्रमुख कारण यह है कि, महिलाएँ अब पहले से कहीं अधिक कार्यक्षेत्र में हैं और अपने परिवारों का समर्थन कर रही हैं। दोहरी आय वाले परिवार तलाक दर में कमी लाने में मदद कर रहे हैं। एक और कारण यह है कि नई पीढ़ी के लोग अधिक उम्र में शादी कर रहे हैं, क्योंकि वे शादी से पहले वित्तीय रूप से स्थिर होना पसंद करते हैं। आँकड़े यह दर्शाते हैं कि लोग जितनी देर से शादी करते हैं, तलाक की संभावना उतनी ही कम होती है।
हालाँकि परिवार की संरचना में बदलाव के साथ तलाक की दर धीरे-धीरे घट रही है, फिर भी तलाक देश की अर्थव्यवस्था को धीमा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। अगर परिवार की संरचनाओं में ये बदलाव जारी रहते हैं, तो समय के साथ अमेरिकी अर्थव्यवस्था को इसका लाभ मिलेगा।
विवाह को मज़बूत करने के लिए सक्रिय रणनीतियाँ
इन समस्याओं को सुलझाने और तलाक की संभावना को कम करने के लिए, दंपत्तियाँ कुछ सक्रिय रणनीतियाँ अपना सकती हैं:
1. प्रभावी संवाद: संवाद एक स्वस्थ संबंध की नींव है। दंपत्तियों को खुले, ईमानदार और सम्मानजनक संवाद की कोशिश करनी चाहिए। नियमित रूप से भावनाओं, अपेक्षाओं और चिंताओं पर चर्चा करने से जीवनसाथी एक-दूसरे को बेहतर समझ सकते हैं और संघर्षों को बढ़ने से पहले सुलझा सकते हैं।
2. प्रारंभिक विवाह परामर्श: विवाह से पहले परामर्श लेना दंपत्तियों को वास्तविक अपेक्षाएँ स्थापित करने में मदद कर सकता है और विवाह जीवन की चुनौतियों के लिए तैयार कर सकता है। यह वित्त, बच्चों, करियर लक्ष्यों और पारिवारिक ज़िम्मेदारियों जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करने का एक अवसर प्रदान करता है।
3. निरंतर सीखना और अनुकूलन: विवाह में निरंतर प्रयास और अनुकूलन की आवश्यकता होती है। दंपत्तियों को एक साथ सीखने और बढ़ने के लिए तैयार रहना चाहिए और एक-दूसरे की बदलती ज़रूरतों और परिस्थितियों के अनुसार अनुकूलित होना चाहिए। इसमें समझौते के लिए तैयार रहना और दोनों दंपत्तियों के लिए काम करने वाले समाधान ढूँढ़ना शामिल है।
4. आपसी सम्मान और समर्थन: एक-दूसरे की व्यक्तित्व का सम्मान करना और विवाह के भीतर व्यक्तिगत विकास का समर्थन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। एक-दूसरे की आकांक्षाओं को प्रोत्साहित करना और चुनौतीपूर्ण समय में समर्थन का स्रोत बनना साझेदारी और एकता की भावना को बढ़ावा देता है।
5. संघर्ष समाधान कौशल: संघर्षों को रचनात्मक रूप से संभालना सीखना आवश्यक है। इसमें आरोप लगाने से बचना, सक्रिय रूप से सुनना और मिलकर समाधान ढूँढ़ना शामिल है। मुद्दों को तुरंत संबोधित करना महत्वपूर्ण है, बजाय इसके कि उन्हें बढ़ने दिया जाए।
6. साझा जिम्मेदारियाँ: घरेलू और वित्तीय ज़िम्मेदारियों का समान रूप से वितरण तनाव को कम कर सकता है और नफ़रत की भावना को रोक सकता है। कार्यों का स्पष्ट रूप से विभाजन यह सुनिश्चित करता है कि दंपत्ति अपने विवाह में निष्पक्ष रूप से योगदान करते हैं।
7. भावनात्मक बुद्धिमत्ता और सहानुभूति: भावनात्मक बुद्धिमत्ता का विकास करने से अपने और अपने साथी की भावनाओं को समझने और प्रबंधित करने में मदद मिलती है। इससे गहरी भावनात्मक कनेक्शन बनती है और संघर्षों को बेहतर तरीके से संभाला जा सकता है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/y7xekfp8
https://tinyurl.com/msmrharp
https://tinyurl.com/y3srh95t
https://tinyurl.com/3fv523hy
चित्र संदर्भ
1. प्रेमियों के एक जोड़े को संदर्भित करता एक चित्रण (pxhere)
2. माता पिता के साथ अलग होते बच्चों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. तलाक के कागज़ात देख रहे वकील को संदर्भित करता एक चित्रण (Pexels)
4. एक दूसरे से नाराज़ हो रहे जोड़े को संदर्भित करता एक चित्रण (Pexels)
5. एक भारतीय जोड़े को संदर्भित करता एक चित्रण (Pexels)
इस विश्व हिंदी दिवस पर समझते हैं, देवनागरी लिपि के इतिहास, विकास और वर्तमान स्थिति को
ध्वनि 2- भाषायें
Sound II - Languages
10-01-2025 09:31 AM
Meerut-Hindi
तो, इस विश्व हिंदी दिवस पर, आइए हम देवनागरी लिपि और इसके उद्भव के बारे में विस्तार से जानें। इसके बाद, हम इस लिपि में प्राचीनतम मुद्रित ग्रंथों के बारे में जानेंगे। फिर, हम देवनागरी लिपि के ऐतिहासिक विकास पर ध्यान देंगे। इसके बाद, हम भारत में लिपि सुधारों के युग और 20वीं शताब्दी में देवनागरी में हुए परिवर्तनों पर चर्चा करेंगे।
देवनागरी लिपि का उद्भव
देवनागरी लिपि का मूल ब्राह्मी लिपि से है, जो तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में अस्तित्व में थी। इसका पूर्ववर्ती रूप नागरी लिपि था, जिसने नंदिनागरी को भी जन्म दिया। नागरी लिपि में मिले शुरुआती लेखों का काल, 1 से 4 शताब्दी ईस्वी के बीच माना जाता है और इन्हें गुजरात, भारत में पाया गया है।
आधुनिक मानकीकृत देवनागरी का सबसे पुराना प्रमाण, लगभग 1000 ईस्वी का माना जाता है। इसके कुछ संस्करण भारत के बाहर भी पाए गए हैं, जैसे श्रीलंका, म्यांमार, और इंडोनेशिया में।
शुरुआत में, देवनागरी का उपयोग, धार्मिक रूप से शिक्षित व्यक्तियों द्वारा जानकारी रिकॉर्ड करने और आदान-प्रदान करने के लिए किया जाता था।
संयुक्ताक्षर बनाने वाली क्षैतिज पट्टी की उपस्थिति, 992 ई.पू. में मानी जाती है, जिसका प्रमाण, बरेली के कुटिला शिलालेख में पाया गया है। कुटिला लिपि में देवनागरी का प्रारंभिक संस्करण शामिल है।
देवनागरी लिपि के शुरुआती मुद्रित उदाहरण
देवनागरी लिपि का सबसे पुराना मुद्रित उदाहरण 1667 में प्रकाशित ‘चाइना इलस्ट्रेटा’ (China Illustrata) नामक ग्रंथ में है, जिसे जर्मन मिशनरी अथानासियस किर्चर ने संकलित किया था। इस ग्रंथ में देवनागरी लिपि के उदाहरण मिलते हैं, जिनमें व्यक्तिगत अक्षर, अक्षरों के साथ जोड़ने वाली मात्राएँ, और छोटे उदाहरणात्मक पाठ शामिल हैं।
एक और महत्वपूर्ण शुरुआती मुद्रित उदाहरण 1678 के ‘हॉर्टस इंडिकस मलाबरिकस’ नामक ग्रंथ में है, जो एम्स्टर्डम में मुद्रित हुआ था और इसमें देवनागरी लिपि में लिखी हुई कोंकणी भाषा की एक धारा शामिल है।
देवनागरी लिपि का पहला धातु प्रकार 1740 में भारत से हजारों मील दूर रोम में कैथोलिक धर्म स्वीकार करने वाले भारतीयों द्वारा ढाला गया था। इसे 1771 में ‘ अल्फ़ाबेटम ब्राह्मणिकम’ नामक ग्रंथ में मुद्रित किया गया, जो देवनागरी फ़ॉन्ट में छपा हुआ हमारा सबसे पुराना प्रमाणित पाठ है। इस ग्रंथ में जो स्थानीय उदाहरण हैं, वे उस भाषाई विविधता को दर्शाते हैं, जिसे ब्रिटिश ‘हिंदुस्तानी’ के रूप में संदर्भित करते थे।
देवनागरी लिपि का ऐतिहासिक विकास
जो देवनागरी लिपि आज के रूप में है (जो 7वीं सदी ईस्वी तक उभरने लगी थी), उसे संस्कृत से गहरे जुड़ाव के कारण विशेष प्रतिष्ठा प्राप्त हुई। यह स्पष्ट नहीं है कि, यदि मुद्रित और आधुनिक समाज के लिए आवश्यक मानकीकरण प्रक्रिया न होती, तो भारतीय लिपियों का विकास, नए रूपों में कभी रुकता या नहीं। उदाहरण के लिए, हाल ही में, देवनागरी ने नए, क्षेत्रीय रूपों को जन्म दिया, जैसे कि गुजराती लिपि, जो यह संकेत करता है कि भारतीय लेखन में अक्षरों के आकार के विकास में कोई “अंतिम रूप” नहीं था। यह स्थिति, तब भी बनी रही, जब भारतीय लिपि उपयोगकर्ताओं को रोमन और अरबी वर्णमालाओं से परिचित कराया गया था, जो अपेक्षाकृत स्थिर थीं।
अक्षर रूपों में बदलाव, जो नई लिपियों की ओर बढ़ा, जो इतना धीमा था कि, पीढ़ी दर पीढ़ी, यह प्रक्रिया, एक लिपि से दूसरी लिपि में जानबूझकर परिवर्तन के रूप में नहीं, बल्कि अक्षरों के निर्माण में धीरे-धीरे अंतर के रूप में दिखाई देती थी, जैसा कि समय के साथ, ग्रंथों की प्रतियां बनाई जाती थीं। इसी प्रकार का विकास मध्यकालीन यूरोप में लैटिन लिपि में हुआ था, लेकिन मुद्रण प्रेस के आविष्कार और पुनर्जागरण के विचारों ने यह सुनिश्चित किया कि लैटिन लिपि को कैसे दिखना चाहिए, जिससे टाइपोग्राफ़िक समरूपता आई।
ब्रिटिश भारत में लिपि सुधार और देवनागरी में बदलाव
भारत में जो मैकेनिकल प्रेस शुरू की गईं, उन्हें लैटिन लिपि को ध्यान में रखकर डिजाइन किया गया था, जिसमें बहुत छोटा वर्ण सेट है। सेट के आकार के अलावा, देवनागरी बहुत अधिक जटिल लिपि है। टाइपोग्राफ़रों को पूर्ण अक्षरों और संयुक्ताक्षरों के निर्माण के लिए आवश्यक सभी ग्रैफेम्स और संयोजनों को तैयार करने में एक चुनौती का सामना करना पड़ा। वे देवनागरी के डिज़ाइन और कार्यक्षमता के प्रति सच्चे बने रहने की कोशिश करते हुए, न्यूनतम संख्या में मैट्रिक्स के साथ काम कर रहे थे।
समस्याएँ तब बढ़ गईं जब मशीने, जैसे मोनोटाइप, लिनोटाइप और टाइपराइटर, सामने आईं। अब वे सीमित संख्या में मैट्रिक्स या टाइपराइटर के कीबोर्ड पर उपलब्ध सीमित संख्या में वर्णों से चुनौती का सामना कर रहे थे। असल में, देवनागरी लिपि के लिए, इस तकनीक के पास बहुत अधिक वर्ण थे। परिणामस्वरूप, मुद्रण, हस्तलेखन और टाइपिंग के लिए लिपि को मानकीकरण करने का दबाव बढ़ा। और इसी तरह देश में ‘लिपि सुधारों का युग’ की शुरुआत हुई।
लिपि सुधारकों ने सम्मेलनों और समितियों के माध्यम से कई विचारों और प्रणालियों का प्रस्ताव किया। वे थे:
1.) उन भाषाओं के लिए रोमन या लैटिन लिपि को अपनाना, जो वर्तमान में देवनागरी का उपयोग करती हैं।
2.) यांत्रिक प्रेसों पर काम करने के लिए देवनागरी लिपि में संशोधन और सरलीकरण।
3.) मशीनों को इस लिपि के अनुरूप बनाने और देवनागरी अक्षरों की विशेषताओं को समायोजित करने के लिए बदलाव।
संदर्भ
https://tinyurl.com/ct8u243t
https://tinyurl.com/3p5tekvh
https://tinyurl.com/ykdvvat4
https://tinyurl.com/5tnpph3e
चित्र संदर्भ
1. देवनागरी लेखन और एक उपनिषद को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह, wikimedia)
2. देवनागरी लिपि के अक्षरों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. हिंदी साहित्य की एक हस्तलिपि को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. हिंदी में टाइप करने के लिए एक कीबोर्ड को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
फ़िनलैंड के सालाना उपयोग से अधिक विद्युत खपत होती है, क्रिप्टोकरेंसी की माइनिंग में
सिद्धान्त I-अवधारणा माप उपकरण (कागज/घड़ी)
Concept I - Measurement Tools (Paper/Watch)
09-01-2025 09:27 AM
Meerut-Hindi
क्रिप्टोकरेंसी माइनिंग क्या है?
क्रिप्टो माइनिंग, एक प्रक्रिया है जिसका उपयोग बिटकॉइन और अन्य क्रिप्टोकरेंसी जैसे ब्लॉकचेन नेटवर्क द्वारा लेनदेन को अंतिम रूप देने के लिए किया जाता है। इसे माइनिंग इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस प्रक्रिया से नए सिक्के भी प्रचलन में आते हैं। सरल शब्दों में हम इसे इस प्रकार समझ सकते हैं कि जिस तरह जब हम किसी को पैसे भेजने को लिए कोई ट्रांज़ैक्शन करते हैं तो यह जानकारी पहले बैंक के पास जाती है और फिर बैंक उसे सत्यापित करके आगे भेजता है। हालांकि, क्रिप्टोकरेंसी के मामले में सिक्के भेजने वाले और उन्हें प्राप्त करने वाले के बीच में बैंक जैसा कोई केंद्रीय प्राधिकरण नहीं होता है, बल्कि सिर्फ कंप्यूटर होते हैं। इन कंप्यूटर को कुछ लोग चलाते हैं, जिसके ज़रिए प्रत्येक लेनदेन सत्यापित होता है। उनकी इस मेहनत के बदले उन्हें सिक्के मिलते हैं। इसे ही क्रिप्टोकरेंसी माइनिंग कहते हैं। अधिकांश लोग क्रिप्टो माइनिंग को केवल नए सिक्के बनाने का एक तरीका मानते हैं। हालाँकि, क्रिप्टो माइनिंग में ब्लॉकचेन नेटवर्क (Blockchain Network) पर क्रिप्टोकरेंसी लेनदेन को मान्य करना और उन्हें वितरित बहीखाते में जोड़ना भी शामिल है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि क्रिप्टो माइनिंग वितरित नेटवर्क पर डिजिटल मुद्रा के दोहरे खर्च को रोकता है।
भौतिक मुद्राओं की तरह, जब एक सदस्य क्रिप्टोकरेंसी खर्च करता है, तो डिजिटल बहीखाते को एक खाते से डेबिट और दूसरे खाते में क्रेडिट करके अद्यतन किया जाना चाहिए। हालाँकि, डिजिटल मुद्रा के मामले में चुनौती यह है कि, किसी भी डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म में आसानी से हेरफ़ेर किया जा सकता है। इसलिए, बिटकॉइन के वितरित खाते में केवल सत्यापित खनिकों को ही डिजिटल खाता बही पर लेनदेन अद्यतन करने की अनुमति है। इससे खनिकों पर नेटवर्क को दोहरे खर्च से बचाने की अतिरिक्त ज़िम्मेदारी भी आ जाती है। हालाँकि, नेटवर्क को सुरक्षित रखने के लिए, खनिकों को उनके काम के लिए पुरस्कृत करने के लिए नए सिक्के भी दिए जाते हैं। चूँकि, वितरित बहीखातों में एक केंद्रीकृत प्राधिकरण का अभाव है, इसलिए लेनदेन को मान्य करने के लिए, खनन प्रक्रिया महत्वपूर्ण है। इसलिए, खनिकों को लेनदेन सत्यापन प्रक्रिया में भाग लेकर नेटवर्क को सुरक्षित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि केवल सत्यापित क्रिप्टो खनिक ही लेनदेन को खनन और मान्य कर सकते हैं, एक 'कार्य का प्रमाण' या प्रूफ़- ऑफ़ -वर्क (Proof-of-Work (PoW)) सर्वसम्मति प्रोटोकॉल लागू किया गया है। पी ओ वी नेटवर्क को किसी भी बाहरी हमले से भी सुरक्षित रखता है।
बिटकॉइन माइनिंग कैसे काम करती है:
किसी ब्लॉक को सफलतापूर्वक जोड़ने के लिए, बिटकॉइन खनिक अत्यंत जटिल गणित समस्याओं को हल करने के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं, जिसके लिए महंगे कंप्यूटर और भारी मात्रा में विद्युत की आवश्यकता होती है। खनन प्रक्रिया को पूरा करने के लिए, खनिकों को सबसे पहले प्रश्न का सही या निकटतम सही उत्तर देना होता है। सही संख्या का अनुमान लगाने की प्रक्रिया को 'प्रूफ ऑफ वर्क' कहा जाता है। खनिक बेतरतीब ढंग से जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी लक्ष्य संख्या का अनुमान लगाते हैं, इस कार्य के लिए उच्च क्षमता वाले कंप्यूटरों की आवश्यकता आवश्यकता होती है। जैसे-जैसे अधिक खनिक नेटवर्क में शामिल होते जाते हैं, चुनौती बढ़ती जाती है।
इसके लिए आवश्यक कंप्यूटर हार्डवेयर को एप्लिकेशन-विशिष्ट एकीकृत सर्किट या ए इस आई सी (ASIC) के रूप में जाना जाता है, और इसकी लागत $10,000 तक हो सकती है। ये कंप्यूटर भारी मात्रा में विद्युत की खपत करते हैं, जिसकी पर्यावरण समूहों द्वारा अक्सर आलोचना भी की जाती है। यदि कोई खनिक सफलतापूर्वक ब्लॉकचेन में एक ब्लॉक जोड़ देता है, तो उसे इनाम के रूप में 3.125 बिटकॉइन प्राप्त होते हैं। इनाम की राशि लगभग हर चार साल में आधी या हर 210,000 ब्लॉक पर कर दी जाती है। अक्टूबर 2024 की शुरुआत में, बिटकॉइन की कीमत लगभग $62,000 थी, जिससे 3.125 बिटकॉइन की कीमत $193,750 हुई।
बिटकॉइन माइनिंग के लिए ऊर्जा की खपत:
बिटकॉइन माइनिंग के लिए, बड़ी मात्रा में ऊर्जा की आवश्यकता होती है, अनुमान है कि इसमें सालाना लगभग 91 टेरावाट/घंटे (TWh) विद्युत की खपत होती है, जो फिनलैंड जैसे देश के सालाना उपयोग से अधिक है। एक अन्य अनुमान से पता चलता है कि बिटकॉइन द्वारा वर्तमान में सालाना लगभग 150 TWh विद्युत की खपत की जाती है।
'कैम्ब्रिज सेंटर फ़ॉर अल्टरनेटिव फाइनेंस' (Cambridge Centre for Alternative Finance) की एक रिपोर्ट के अनुसार, बिटकॉइन प्रति वर्ष लगभग 87 TWh की खपत करता है। वास्तव में, बिटकॉइन खनन के लिए ऊर्जा खपत क्रिप्टोकरेंसी बनाने में शामिल जटिल प्रक्रिया का परिणाम है, जिसके लिए विशेष मशीनों और महत्वपूर्ण मात्रा में कम्प्यूटेशनल शक्ति की आवश्यकता होती है।
बिटकॉइन खनन के लिए इतनी विद्युत की आवश्यकता क्यों है:
बिटकॉइन की प्रूफ़ ऑफ़ वर्क प्रक्रिया में लेनदेन को मान्य करने और उन्हें ब्लॉकचेन में जोड़ने के लिए जटिल गणितीय समस्याओं को हल करना शामिल है। इसके लिए महत्वपूर्ण मात्रा में कम्प्यूटरीकृत शक्ति की आवश्यकता होती है, जिसके लिए पर्याप्त मात्रा में विद्युत की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त, बिटकॉइन माइनिंग एक विकेंद्रीकृत प्रक्रिया है जिसका अर्थ है कि कई खनिक इन समस्याओं को हल करने के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं, जिससे ऊर्जा की खपत बढ़ जाती है। जैसे-जैसे अधिक खनिक नेटवर्क से जुड़ते हैं और समस्याओं की कठिनाई और चुनौती बढ़ती है, बिटकॉइन की ऊर्जा खपत भी बढ़ जाती है।
क्रिप्टोकरेंसी माइनिंग के नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभाव:
बढ़ते कार्बन पद-चिन्ह: क्रिप्टोकरेंसी खनन से उत्पन्न कार्बन प्रभाव, अधिक चिंता का विषय है। इसके लिए, प्रयुक्त ऊर्जा जीवाश्म ईंधन से प्राप्त होती है; इसलिए, चीन और कज़ाकिस्तान जैसे देशों में, इसे वैश्विक कार्बन उत्सर्जन का एक बड़ा हिस्सा माना जाता है। अनुमान है कि केवल एक बिटकॉइन के खनन में कुल वैश्विक विद्युत उपयोग का लगभग 0.5% खर्च होता है, जिसके परिणामस्वरूप, बड़े पैमाने पर CO2 का उत्सर्जन होता है। इसका अधिकांश खनन सस्ती विद्युत शक्ति वाले क्षेत्रों में किया जाता है जहां आमतौर पर कोयले या किसी अन्य प्रकार के गैर-नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत से विद्युत उत्पादन होता है। लेकिन आर्थिक रूप से लाभदायक, खनन गतिविधियाँ पर्यावरण को व्यापक क्षति पहुंचाती हैं। यद्यपि अब कुछ खनन कार्य नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों द्वारा संचालित होने लगे हैं, लेकिन अधिकांश अभी भी जीवाश्म ईंधन पर निर्भर हैं। यहां तक कि उन जगहों पर भी, जहां ऊर्जा स्रोत स्वच्छ एवं नवीकरणीय हैं, खनन की भयावहता स्थानीय विद्युत ग्रिडों पर अतिरिक्त दबाव डालती है और बुनियादी ढांचे के विकास को अवरुद्ध कर सकती है।
इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट और हार्डवेयर से जुड़ी समस्याएं: अत्यधिक ऊर्जा की खपत के अलावा, खनन के दौरान, इसमें प्रयुक्त हार्डवेयर से एक और पर्यावरणीय समस्या उत्पन्न होती है। जिस तीव्र गति से यह प्रौद्योगिकी प्रगति कर रही है, ए इस आई सी का जीवनकाल, अपेक्षाकृत कम होता जा रहा है, जिससे इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट की मात्रा भी दिन प्रतिदिन बढ़ रही है है।
अत्यधिक ऊष्मा का उत्पादन: खनन उपकरणों द्वारा उच्च मात्रा में ऊष्मा उत्पन्न की जाती है, विशेष कर उन स्थानों पर, जहां कई खनन हार्डवेयर एक सीमित स्थान पर काम कर रहे हों।
संदर्भ
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https://tinyurl.com/2jyeuwws
https://tinyurl.com/bdf9dewa
https://tinyurl.com/yktwffm6
https://tinyurl.com/32svyx22
चित्र संदर्भ
1. इकारस बिटकॉइन माइनिंग रिग को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. क्रिप्टोकरेंसी माइनिंग फ़ार्म को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. क्रिप्टोकरेंसी को संदर्भित करता एक चित्रण (pexels)
4. रास्पबेरी पाई बिटकॉइन माइनिंग को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
आइए जानें, भारत और अमेरिका की न्यायिक प्रणाली के बीच के अंतरों को
आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक
Modern State: 1947 to Now
08-01-2025 09:26 AM
Meerut-Hindi
भारतीय और अमेरिकी न्यायपालिका के बीच अंतर:
भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका की न्यायपालिकाएँ, हालांकि, दोनों अपनी-अपनी लोकतांत्रिक प्रणालियों के अभिन्न अंग हैं, उनकी संरचना, अधिकार क्षेत्र और कार्य में महत्वपूर्ण अंतर हैं। इस अंतर को निम्न तालिका के माध्यम से समझा जा सकता है:
मापदण्ड | भारतीय | अमेरिकी |
---|---|---|
न्यायिक प्रणाली | अदालतों की एकल और एकीकृत प्रणाली: अदालतों की एकल और एकीकृत प्रणाली: यह प्रणाली 1935 के भारत सरकार अधिनियम से अपनाई गई है। यह केंद्रीय और राज्य दोनों कानूनों को लागू करती है। | न्यायालयों की दोहरी प्रणाली: संघीय कानूनों को संघीय न्यायपालिका द्वारा लागू किया जाता है और राज्य के कानूनों को राज्य न्यायपालिका द्वारा लागू किया जाता है। |
मूल क्षेत्राधिकार | संघीय मामलों तक ही सीमित है। | इसमें न केवल संघीय मामले बल्कि नौसेना बलों, समुद्री गतिविधियों, राजदूतों आदि से संबंधित मामले भी शामिल हैं। |
अपीलीय क्षेत्राधिकार | संवैधानिक, नागरिक, आपराधिक मामले | केवल संवैधानिक मामले |
सलाहकारी क्षेत्राधिकार | न्यायपालिका को सलाह संबंधी क्षेत्राधिकार प्राप्त है। | न्यायपालिका को सलाह संबंधी कोई क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं है। |
विवेकाधिकार | किसी भी मामले में किसी भी अदालत या न्यायाधिकरण (सैन्य को छोड़कर) के फ़ैसले के खिलाफ़ अपील करने के लिए, विशेष अनुमति प्रदान की जा सकती है। | ऐसी कोई पूर्ण शक्ति नहीं है। |
न्यायिक समीक्षा | दायरा सीमित है। | दायरा बहुत व्यापक है। |
क्षेत्राधिकार और शक्तियाँ | संसद द्वारा अधिकार क्षेत्र और शक्तियों का विस्तार किया जा सकता है। | संविधान द्वारा प्रदत्त शक्तियों तक सीमित। |
नागरिक के अधिकारों की रक्षा | 'कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया' के अनुसार | 'कानून की उचित प्रक्रिया' के अनुसार। |
भारत की न्यायिक समीक्षा प्रणाली, अमेरिकी न्यायिक समीक्षा प्रणाली से किस प्रकार भिन्न है:
संयुक्त राज्य अमेरिका में सर्वोच्च न्यायालय के पास, कानूनी प्रक्रिया का पालन न करने के आधार पर किसी भी कानून को असंवैधानिक घोषित करने की शक्ति है। संसद और राज्य विधायिका को अपने-अपने विधायी क्षेत्रों में सर्वोच्चता प्राप्त है, वहीं न्यायालयों को उपयुक्त विधायिका द्वारा बनाए गए कानून की बुद्धिमत्ता या नीति पर सवाल उठाने का कोई अधिकार नहीं है, लेकिन वे किसी कानून को केवल असंवैधानिक होने के आधार पर खारिज कर सकते हैं।
जबकि भारत में, सर्वोच्च न्यायालय ने कई बार, संसद की विधायी कार्रवाइयों को इस आधार पर अमान्य घोषित करने से इनकार कर दिया है कि, जब तक यह साबित नहीं हो जाता कि नागरिकों के प्राकृतिक, सामाजिक या राजनीतिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है | इस तरह के अन्याय को संविधान द्वारा स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित किया गया है, तब तक न्यायपालिका द्वारा विधायी कामकाज में हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए।
भारत में, भारतीय संविधान में न्यायिक समीक्षा के विशिष्ट और व्यापक प्रावधान हैं जैसे कि अनुच्छेद 13, 32, 131-136, 143, 226, 227, 246, 372। जबकि न्यायिक समीक्षा शब्द का स्पष्ट रूप से किसी में भी उल्लेख नहीं किया गया है। जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान में न्यायिक समीक्षा के लिए कोई विशिष्ट प्रावधान नहीं है, अनुच्छेद III, IV, V में न्यायालय की न्यायिक शक्ति और संवैधानिक सर्वोच्चता शामिल है और सभी कानून संविधान के अधीन हैं, इसलिए, यह प्रकृति में अंतर्निहित है। संयुक्त राज्य अमेरिका में न्यायिक समीक्षा न्यायालय द्वारा तैयार की जाती है।
संयुक्त राज्य अमेरिका की न्यायिक प्रणाली में जूरी की भूमिका:
संयुक्त राज्य अमेरिका में, अमेरिकी संविधान का छठा संशोधन कम से कम छह महीने के कारावास की संभावित सजा का सामना करने वाले किसी भी व्यक्ति को जूरी ट्रायल की गारंटी देता है। इसके अलावा, अधिकांश राज्यों में, किशोर अपराध कार्यवाही में नाबालिगों को जूरी द्वारा सुनवाई का अधिकार नहीं दिया जाता है।
यहां ग्रैंड जूरी और ट्रायल जूरी के बीच अंतर पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है। ग्रैंड जूरी यह तय करती है कि किसी मामले की शुरुआत में किसी संदिग्ध के खिलाफ़ आरोप लगाए जाने चाहिए या नहीं। यदि ग्रैंड जूरी को पता चलता है कि इन आरोपों का समर्थन करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं, तो आक्षेप होगा। ट्रायल जूरी खुली अदालत में प्रतिवादी के खिलाफ़ आरोपों की सुनवाई करती है और निर्णय लेती है कि प्रतिवादी दोषी है या नहीं।
अमेरिका में जूरी सेवा एक नागरिक अधिकार है। चाहे मामला आपराधिक हो या दीवानी का, जूरी चयन "वॉयर डायर" नामक प्रक्रिया में पूर्व-परीक्षण होता है। यह तब होता है जब वकील और न्यायाधीश किसी दिए गए मामले में सेवा करने और निष्पक्ष रहने की उनकी क्षमता सुनिश्चित करने के लिए संभावित जूरी सदस्यों से प्रश्न पूछ सकते हैं। हालाँकि वकीलों को अनिवार्य चुनौतियों का उपयोग करके संभावित जूरी सदस्यों को अस्वीकार करने की अनुमति है, लेकिन उन्हें जूरी पैनल को इस तरह से आकार देने की अनुमति नहीं है जो एक निश्चित जाति, उम्र या लिंग के प्रति पक्षपाती प्रतीत हो। यदि कोई चयनित जूरी सदस्य बीमार पड़ जाता है या किसी अन्य कारण से सुनवाई नहीं कर पाता है तो वकील वैकल्पिक जूरी सदस्यों को भी अलग कर देंगे।
मुकदमे के दौरान, जूरी प्रत्येक पक्ष के शुरुआती बयान, मामले के तथ्य, अभियोजन पक्ष के साक्ष्य और प्रतिवादी के संभावित बचाव को सुनती है। किसी मुकदमे के सबसे प्रभावशाली हिस्सों में से एक है जिरह। ऐसा तब होता है जब अभियोजन और बचाव पक्ष प्रत्येक पक्ष के गवाहों की विश्वसनीयता को कम करने का प्रयास करते हैं। जूरी, विचार-विमर्श के दौरान सबूतों का तुलनात्मक अध्ययन करती है। यह निर्धारित करना जूरी की ज़िम्मेदारी है कि सबूत उचित, संदेह से परे आरोपित आपराधिक अपराधों को संतुष्ट करते हैं या नहीं। मुकदमे के अंत में, वकीलों की समापन दलीलों और न्यायाधीश के जूरी निर्देशों के बाद, जूरी कक्ष में विचार-विमर्श होता है। एक बार आवश्यक सहमति बन जाने के बाद, जूरी किसी दिए गए मामले में फ़ैसला सुनाती है।
जूरी सुनवाई के लाभ:
जूरी मुकदमे का प्राथमिक लाभ यह है कि यह निरंकुश अभियोजन शक्ति पर प्रतिबन्ध के रूप में कार्य करती है। किसी प्रतिवादी पर अपराध का आरोप लगाया जाए या नहीं, यह तय करते समय अभियोजकों के पास निरंकुश शक्ति होती है। हालाँकि, अभियोजक आमतौर पर अपने मामले का मूल्यांकन करने वाली जूरी के सामने अनुचित आरोपों पर समय और संसाधन बर्बाद नहीं करना चाहते हैं।
जूरी का एक अन्य लाभ यह है कि यदि न्यायाधीश हर मामले का फैसला करते हैं, तो इससे न्यायिक प्रक्रिया में निष्पक्षता के बारे में चिंताएँ पैदा हो सकती हैं। उदाहरण के लिए, नियुक्त न्यायाधीश राजनीति और उन्हें नियुक्त करने वाले लोगों के प्रति आभारी हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त, निर्वाचित न्यायाधीशों को जनता की राय से प्रभावित किया जा सकता है। दूसरी ओर, जूरी सदस्यों को नियुक्त नहीं किया जाता है और वे अपने नागरिक कर्तव्यों के हिस्से के रूप में काम करते हैं।
जूरी सुनवाई की सीमाएँ:
जूरी सदस्य आम लोग होते हैं जिन्हें कभी-कभी जटिल कानूनी अवधारणाओं को समझने और उन अवधारणाओं को मौजूदा मामले में लागू करने के लिए कहा जाता है। यह कोई आसान काम नहीं है और इसमें बहुत समय लग सकता है। कुछ मामलों के समय और जटिलता दोनों के कारण, सुनवाई के दौरान जूरी सदस्यों के सो जाने या ध्यान न दे पाने के मामले अक्सर सामने आते हैं। यदि जूरी सर्वसम्मति से प्रतिवादी के अपराध पर सहमत होती है, तो मामला आमतौर पर सजा के लिए न्यायाधीश के पास वापस कर दिया जाता है। यदि जूरी सहमत नहीं हो पाती है, तो उन्हें फिर से प्रयास करने के लिए कहा जाता है। इस स्थिति में कोई मामला ग़लत मुक़दमे में भी समाप्त हो सकता है। यदि कोई पक्ष जूरी के फ़ैसले से संतुष्ट नहीं है और उसे लगता है कि जूरी ने अपना निर्णय लेने के लिए साक्ष्य के नियमों पर भरोसा नहीं किया है, तो वह अपीलीय अदालत और उससे आगे के फ़ैसले के खिलाफ़ अपील कर सकता है, शायद उच्चतम न्यायालय तक भी पहुंच सकता है।
दुनिया के 5 सबसे शक्तिशाली सर्वोच्च न्यायालय:
यह निश्चित रूप से निर्धारित करना चुनौतीपूर्ण है कि दुनिया में कौन सा सर्वोच्च न्यायालय सबसे शक्तिशाली है, क्योंकि सर्वोच्च न्यायालयों की शक्ति और अधिकार किसी देश की कानूनी और राजनीतिक व्यवस्था के आधार पर भिन्न हो सकते हैं। हालाँकि, कुछ सर्वोच्च न्यायालयों को अक्सर उनकी संवैधानिक भूमिकाओं, कानूनों की व्याख्या करने की क्षमता और शासन पर प्रभाव के कारण विशेष रूप से शक्तिशाली या प्रभावशाली के रूप में उद्धृत किया जाता है।
संयुक्त राज्य अमेरिका का सर्वोच्च न्यायालय: अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय को अक्सर दुनिया के सबसे शक्तिशाली सर्वोच्च न्यायालयों में से एक माना जाता है। इसके पास अमेरिकी संविधान की व्याख्या करने, कानूनों की संवैधानिकता की समीक्षा करने और संयुक्त राज्य अमेरिका में कानूनी और सामाजिक मुद्दों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालने वाले निर्णय लेने का अधिकार है।
जर्मन संघीय संवैधानिक न्यायालय: जर्मन संघीय संवैधानिक न्यायालय, जर्मन मूल कानून (संविधान) की व्याख्या और सुरक्षा में केंद्रीय भूमिका रखता है। इसके पास बुनियादी कानून के साथ संगतता के लिए कानूनों और सरकारी कार्यों की समीक्षा करने का अधिकार है, और इसके निर्णय जर्मनी के कानूनी और राजनीतिक परिदृश्य में पर्याप्त महत्व रखते हैं।
यूरोपीय न्यायालय: यद्यपि यूरोपीय न्यायालय राष्ट्रीय सर्वोच्च न्यायालय नहीं है, फिर भी यूरोपीय न्यायालय यूरोपीय संघ के कानून के मामलों में सर्वोच्च न्यायालय है। इसके पास यूरोपीय संघ की संधियों की व्याख्या करने और सदस्य देशों में यूरोपीय संघ कानून की समान व्याख्या और अनुप्रयोग सुनिश्चित करने का अधिकार है।
भारत का सर्वोच्च न्यायालय: भारत के सर्वोच्च न्यायालय की, अक्सर उसकी व्यापक शक्तियों के लिए सराहना की जाती है, जिसमें कानूनों को रद्द करने, कार्यकारी कार्यों को रद्द करने और भारतीय संविधान की व्याख्या करने की क्षमता शामिल है। इसके निर्णयों का शासन और समाज पर दूरगामी प्रभाव पड़ता है।
इज़राइली सर्वोच्च न्यायालय: इज़राइली सर्वोच्च न्यायालय, व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करने और सरकार की विभिन्न शाखाओं के हितों को संतुलित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा, मानवाधिकार और सरकारी नीतियों जैसे मुद्दों पर प्रभावशाली निर्णय दिए गए हैं।
ये केवल कुछ उदाहरण हैं, और सर्वोच्च न्यायालय की शक्ति का आकलन विभिन्न कारकों पर निर्भर हो सकता है, जिनमें उसका अधिकार क्षेत्र, उसके अधिकारों का दायरा, सरकार की अन्य शाखाओं की जाँच करने की उसकी क्षमता और व्यापक कानूनी और राजनीतिक संदर्भ शामिल हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/ytss4nrz
https://tinyurl.com/46a3xjwv
https://tinyurl.com/bdzcaast
https://tinyurl.com/yrw7c4hs
चित्र संदर्भ
1. अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट भवन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. भारतीय न्यायिक प्रणाली के प्रतीक चिन्ह को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. जूरी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. भारत के उच्च न्यायालय को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
आइए जानें, हमारी प्रगति की एक प्रमुख चालक, बिजली के व्यापार के बारे में
नगरीकरण- शहर व शक्ति
Urbanization - Towns/Energy
07-01-2025 09:43 AM
Meerut-Hindi
बिजली व्यापार क्या है?
बिजली व्यापार, बिजली जनरेटरों(Power generators) द्वारा उत्पादित बिजली को, बिजली आपूर्तिकर्ताओं को बेचने की प्रक्रिया है, जो बाद में इस बिजली को उपभोक्ताओं को बेच सकते हैं। बिजली बाज़ार में तीन मुख्य पार्टियां – जनरेटर (ताप विद्युत संयंत्र और ऊर्जा भंडारण स्थल, बिजली पैदा करने वाले पवन टरबाइन और सौर पैनल जैसे स्रोत); उपभोक्ता (अस्पताल, परिवहन क्षेत्र, बिजली का उपयोग करने वाले घर और कारखाने, आदि) एवं बीच में आपूर्तिकर्ता (जिनसे हम बिजली खरीदते हैं) – शामिल हैं। बिजली, बिजली स्टेशनों पर उत्पन्न होती है, फिर आपूर्तिकर्ताओं द्वारा खरीदी जाती है, जो फिर उपभोक्ता की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए इसे बेचते हैं।
बिजली व्यापार क्यों महत्वपूर्ण है?
पॉवर स्टेशन चलाना, एक महंगी प्रक्रिया है और बिजली की मांग कभी नहीं रुकती हैं। इस प्रकार, बिजली बाज़ार यह सुनिश्चित करता है कि, जनता की बिजली की मांग पूरी हो। साथ ही, कच्चे माल की खरीद की कीमत को, बिजली बेचने की कीमत के साथ संतुलित करके, बिजली कारोबार को टिकाऊ बनाए रखने का भी लक्ष्य हो सकता है।
यह सुनिश्चित करने के लिए कि, ग्रिड संतुलित रहे और मांग पूरी हो, सिस्टम ऑपरेटर(Systems operator) सहायक सेवाओं के लिए जनरेटर के साथ, या तो बहुत पहले या आखिरी मिनट में सौदा करता है। यह सुनिश्चित करता है कि, आवृत्ति, वोल्टेज(Voltage) और आरक्षित शक्ति जैसे तत्वों को पूरे देश में, स्थिर रखा जाए और ग्रिड सुरक्षित और कुशल बना रहे।
आपूर्ति श्रृंखला में बिजली का उत्पादन-
बिजली का उत्पादन कृत्रिम रूप से किया जाता है। जबकि, बिजली के प्राकृतिक स्रोत हैं, लेकिन, आसमान से गिरने वाली बिजली जैसे स्त्रोतों से, बिजली की उत्पति सरल नहीं है। क्योंकि, यह बहुत उच्च वोल्टेज के साथ, ज़मीन से टकराती है। इस कारण, कुछ निम्नलिखित स्रोत हैं, जिनसे बिजली का उत्पादन किया जा सकता है–
१.ताप विद्युत संयंत्र (Thermal power plants):
इन संयंत्रों में मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधन जैसे कि – गैस, कोयला और तेल का उपयोग किया जाता है। इनसे तापित पानी की विशिष्ट भाप, टरबाइनों को सक्रिय करती है, जो बिजली उत्पन्न करते हैं। हालांकि ताप विद्युत संयंत्र, जो बिजली उत्पादन के लिए सबसे अधिक उपयोग किए जाते हैं, ज़हरीले उत्सर्जन के कारण पर्यावरण पर भारी प्रभाव डालते हैं। यही कारण है कि, पिछले कुछ समय से, बिजली उत्पादकों का ध्यान उत्पादन के अन्य रूपों की ओर जा रहा है।
२.पनबिजली संयंत्र(Hydroelectric power plants):
ये संयंत्र पानी की शक्ति का शोषण करके, बिजली का उत्पादन करने की अनुमति देते हैं। इसलिए, वे किसी नदी या बांध से बहते पानी के स्रोत द्वारा संचालित होते हैं। जल प्रवाह का बल, जल टरबाइनों को गति देता है जो घूमते हैं और यांत्रिक ऊर्जा उत्पन्न करते हैं। इसे बाद में घूर्णन विद्युत जनरेटर द्वारा, बिजली में परिवर्तित किया जाता है। जहां तक पर्यावरण पर इसके प्रभाव का सवाल है, पनबिजली या जलविद्युत संयंत्र, निश्चित रूप से ताप विद्युत संयंत्रों की तुलना में एक कदम आगे हैं। क्योंकि, वे प्रदूषणकारी उत्सर्जन उत्पन्न नहीं करते हैं। हालांकि, बांध जैसी संरचनाओं की आक्रामकता काफ़ी महत्वपूर्ण है और पिछले कुछ समय से ध्यान का कारण बनी हुई है।
३. परमाणु ऊर्जा संयंत्र(Thermonuclear power plants):
परमाणु ऊर्जा स्टेशनों की विशेषता एक या अधिक रिएक्टरों(Reactors) की उपस्थिति होती है, जो परमाणु प्रतिक्रियाओं द्वारा जारी ऊर्जा के माध्यम से, ताप हस्तांतरण से तरल पदार्थ को गर्म करते हैं। इस प्रारंभिक प्रक्रिया के बाद, रिएक्टर से निकलने वाले गर्म तरल पदार्थ को एक संयंत्र में भेजा जाता है, जो थर्मोडायनामिक चक्र(Thermodynamic cycle) के माध्यम से बिजली के उत्पादन को सक्षम बनाता है। 1987 में, चेरनोबिल आपदा(Chernobyl disaster) के बाद, इटली(Italy) ने परमाणु ऊर्जा से एक कदम, पीछे ले लिया। साथ ही, अन्य देशों में भी, इसकी सुरक्षितता पर सवाल उठाए जा रहे हैं।
विद्युत संचरण-
उच्च वोल्टेज बिजली लाइनों का उपयोग लंबी दूरी पर, बिजली के संचरण के लिए किया जाता है। विद्युत ट्रांसमिशन(Electrical transmission) या संचरण, उत्पन्न बिजली को आमतौर पर लंबी दूरी पर, आबादी वाले क्षेत्रों में स्थित वितरण ग्रिड तक पहुंचाने की प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा, ट्रांसफ़ॉर्मर(Transformers) है, जिनका उपयोग लंबी दूरी के संचरण को संभव बनाने के लिए वोल्टेज स्तर को बढ़ाने के लिए किया जाता है।
विद्युत पारेषण प्रणाली को बिजली संयंत्रों, वितरण प्रणालियों और उप-स्टेशनों के साथ मिलाकर विद्युत ग्रिड के रूप में जाना जाता है। ग्रिड समाज की बिजली की जरूरतों को पूरा करता है, और इसके उत्पादन से लेकर अंतिम उपयोग तक विद्युत शक्ति मिलती है। चूंकि, बिजली संयंत्र अक्सर घनी आबादी वाले क्षेत्रों के बाहर स्थित होते हैं, इसलिए ट्रांसमिशन प्रणाली बड़ी होनी चाहिए।
बिजली की लाइनें–
विद्युत लाइनें या ट्रांसमिशन लाइनें, बिजली को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाती हैं। आमतौर पर, यह बिजली प्रत्यावर्ती धारा होती है, इसलिए स्टेप-अप ट्रांसफ़ॉर्मर वोल्टेज बढ़ा सकते हैं। यह बढ़ा हुआ वोल्टेज, 500 किलोमीटर या उससे कम दूरी तक कुशल ट्रांसमिशन की अनुमति देता है। बिजली की लाइनें निम्नलिखित 3 प्रकार की होती हैं:
1. ओवरहेड लाइनें(Overhead lines)
ये लाइनें, 100 केवी(kV – किलो वोल्ट) और 800 के वी के बीच, बहुत उच्च वोल्टेज वाली होती हैं और लंबी दूरी का अधिकांश ट्रांसमिशन करती हैं। प्रतिरोध के लिए, बिजली की हानि को कम करने के लिए उन्हें उच्च वोल्टेज होना चाहिए।
2. भूमिगत लाइन
इनका उपयोग आबादी वाले क्षेत्रों, पानी के नीचे, या लगभग हर जगह, जहां ओवरहेड लाइनों का उपयोग नहीं किया जा सकता है, में बिजली परिवहन के लिए किया जाता है। गर्मी से संबंधित नुकसान और उच्च लागत के कारण, वे ओवरहेड लाइनों की तुलना में कम आम हैं।
3. सबट्रांसमिशन लाइनें(Subtransmission lines)
ये लाइनें, कम वोल्टेज (26 केवी – 69 केवी) को वितरण स्टेशनों तक ले जाती हैं, और ओवरहेड या भूमिगत हो सकती हैं।
विद्युत वितरण कैसे कार्य करता है ?
एक बिजली वितरण नेटवर्क सर्किट(Circuits), केबल, ट्रांसफ़ॉर्मर, खंभे, जंक्शन बक्से(Junction boxes) और अन्य उपकरणों के एक जटिल नेटवर्क से बना होता है, जो सबस्टेशनों से घरों और व्यवसायों तक बिजली पहुंचाता है।
विद्युत शक्ति को सबस्टेशनों, ट्रांसमिशन लाइनों और ट्रांसफ़ॉर्मर के एक जटिल नेटवर्क के माध्यम से, व्यक्तियों, वाणिज्यिक व्यवसाय और औद्योगिक परिसरों में वितरित किया जाता है। यह प्रक्रिया बिजली को एक प्रमुख ग्रिड या स्टेशन के, उच्च वोल्टेज स्तर से स्थानीय वितरण सबस्टेशनों में स्थानांतरित करने के साथ शुरू होती है। यहां यह ट्रांसफ़ॉर्मर नामक विशेष उपकरण के माध्यम से, 2-35 के वी के बीच, मध्यम स्तर में परिवर्तन से गुज़रती है। वहां से प्राथमिक वितरण शुरू होता है, और निर्दिष्ट मार्गों के साथ ऊर्जा भेजना तब तक जारी रहता है, जब तक कि, बिजली अनुभागीय बिंदुओं तक नहीं पहुंच जाती है। घरों और व्यवसायों में उपयोग के लिए, ट्रांसफ़ॉर्मर इकाइयों द्वारा इसे और कम कर दिया जाता है। घरेलू उपकरणों के लिए उपयुक्त वोल्टेज को, उपयोगिता वोल्टेज के रूप में जाना जाता है।
ग्राहकों को कभी-कभी द्वितीयक वितरण प्रणाली के माध्यम से, बिजली की आपूर्ति की जा सकती है, जिससे वे सर्विस ड्रॉप्स(Service drops) के माध्यम से जुड़े होते हैं। उन लोगों या व्यवसायों के लिए जिनकी बिजली की बड़ी मांग है, उच्च वोल्टेज सबट्रांसमिशन पर, सीधा कनेक्शन बनाया जा सकता है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/e6z4z3v3
https://tinyurl.com/59h56zdb
https://tinyurl.com/3j7janfb
https://tinyurl.com/msepwrua
चित्र संदर्भ
1. बिजली के मीटरों के आगे खड़े बच्चे को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. बिजली जनरेटर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. ताप विद्युत संयंत्र को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. एक बांध को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. बिजली के एक टावर से गुज़रती लाइनों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज की हाई वोल्टेज लैब में 1.6 मिलियन वोल्ट के इम्पल्स जनरेटर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
भारत में परमाणु ऊर्जा का विस्तार: स्वच्छ ऊर्जा की ओर एक सशक्त कदम
नगरीकरण- शहर व शक्ति
Urbanization - Towns/Energy
06-01-2025 09:30 AM
Meerut-Hindi
भारत ने परमाणु ऊर्जा के विकास के लिए एक तीन-चरणीय कार्यक्रम तैयार किया है। यह कार्यक्रम दर्शाता है कि भारत किस तरह से परमाणु ऊर्जा को बढ़ावा देना चाहता है। आज के इस लेख में हम भारत में मौजूद परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की सूची देखेंगे और जानेंगे कि वे देश की ऊर्जा आपूर्ति में किस तरह योगदान दे रहे हैं। अंत में, हम नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन यानी एन टी पी सी (NTPC) के बारे में बात करेंगे, जो भारत के ऊर्जा क्षेत्र में एक भरोसेमंद नाम है।
परमाणु ऊर्जा आधुनिक समाज के विकास और अस्तित्व के लिए बहुत जरूरी है। 1950 के दशक में डॉ. होमी भाभा ने भारत के तीन-चरणीय परमाणु कार्यक्रम की योजना शुरू की थी। इस योजना का मुख्य उद्देश्य भारत के बड़े थोरियम (Thorium) भंडार का सही उपयोग करना है।
भारत के पास, यूरेनियम (Uranium) कम मात्रा में है, जबकि कई देशों में, यह बड़ी मात्रा में उपलब्ध है। इस कारण भारत ने थोरियम-आधारित परमाणु ईंधन चक्र विकसित करने की योजना बनाई। इसका मकसद तीन चरणों में ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनना है।
संयुक्त राष्ट्र के मानव विकास सूचकांक के अनुसार, भारत का यह कार्यक्रम ऊर्जा खपत बढ़ाने और जीवन की गुणवत्ता सुधारने के लिए बेहद ज़रूरी है।
भारत के तीन-चरणीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम को तीन मुख्य हिस्सों में बांटा गया है:
- दबावयुक्त भारी जल रिएक्टर (PHWR)
- फ़ास्ट ब्रीडर रिएक्टर (FBR)
- उन्नत भारी जल रिएक्टर (AHWR)
अब हम इन चरणों को आसान भाषा में समझते हैं:
चरण 1: दबावयुक्त भारी जल रिएक्टर (PHWR): इस चरण में प्राकृतिक यूरेनियम का उपयोग किया जाता है। इससे बिजली बनाई जाती है और साथ में प्लूटोनियम-239 का उत्पादन होता है। 1960 के दशक में भारत ने इस पद्धति को अपनाया क्योंकि इसके तहत यूरेनियम का कुशलता से उपयोग होता है।
चरण 2: फ़ास्ट ब्रीडर रिएक्टर (FBR): दूसरे चरण में प्लूटोनियम-239 (Plutonium-239) का इस्तेमाल किया जाता है। इससे ऊर्जा पैदा होती है और साथ ही थोरियम का उपयोग करके यूरेनियम-233 (Uranium-233) बनाया जाता है। यह तीसरे चरण के लिए ज़रूरी है।
चरण 3: उन्नत भारी जल रिएक्टर (AHWR): इस चरण का लक्ष्य एक स्थायी परमाणु ईंधन चक्र बनाना है। इसमें थोरियम और यूरेनियम-233 का मिश्रण इस्तेमाल किया जाएगा।
थोरियम का उपयोग करना आसान नहीं है, क्योंकि यह सीधे ऊर्जा पैदा नहीं कर सकता। इसे काम में लाने के लिए यूरेनियम-233 या प्लूटोनियम जैसे तत्वों की जरूरत होती है। थोरियम न्यूट्रॉन को अवशोषित करता है और इससे फास्ट ब्रीडर रिएक्टर में प्लूटोनियम बनता है।
थोरियम का ज़्यादा उपयोग जल्द करने से ऊर्जा उत्पादन धीमा हो सकता है। इसलिए इसे सही समय पर दूसरे चरण के दौरान शामिल किया जाना चाहिए।
तीसरे चरण में थोरियम का पूरा उपयोग किया जाता है। भारत का यह कार्यक्रम ऊर्जा उत्पादन में आत्मनिर्भरता लाने और थोरियम जैसे संसाधनों को सही तरीके से इस्तेमाल करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
आइए, अब एक नज़र भारत में चल रहे परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की सूची पर डालते हैं:
परमाणु ऊर्जा संयंत्र के संचालन का चरण उसकी कुल उम्र का सबसे लंबा हिस्सा होता है। भारत में फ़िलहाल कुल 6,780 मेगावाट की क्षमता वाले कई परमाणु रिएक्टर काम कर रहे हैं। इनमें 18 प्रेशराइज़्ड हैवी वाटर रिएक्टर (PHWR) और 4 लाइट वाटर रिएक्टर (LWR) शामिल हैं।
भारत के कुछ प्रमुख परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की सूची नीचे दी गई है:
- तारापुर परमाणु ऊर्जा संयंत्र
- राजस्थान परमाणु ऊर्जा संयंत्र
- मद्रास परमाणु ऊर्जा संयंत्र
- नरौरा परमाणु ऊर्जा संयंत्र
- काकरापार परमाणु ऊर्जा संयंत्र
- कैगा जनरेटिंग स्टेशन
- कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा स्टेशन
भारत अपनी परमाणु ऊर्जा क्षमता को लगातार बढ़ा रहा है। देश की योजना है कि 2031-32 तक परमाणु ऊर्जा की क्षमता को 8,180 मेगावाट (MW) से बढ़ाकर 22,480 मेगावाट किया जाए। इसके बाद, 2047 तक इसे 30,000 मेगावाट तक ले जाने का लक्ष्य है। यह विकास भारत की स्वच्छ ऊर्जा और कार्बन उत्सर्जन को कम करने की योजना का हिस्सा है।
इस बदलाव में एन टी पी सी (NTPC) यानी नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन एक प्रमुख भूमिका निभा रही है। एन टी पी सी, भारत की सबसे बड़ी और सबसे भरोसेमंद बिजली उत्पादन कंपनी है। यह अब परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में भी कदम रख रही है, जिससे देश के ऊर्जा क्षेत्र में इसकी भागीदारी और मज़बूत हो रही है।
1975 में स्थापित एन टी पी सी, विद्युत मंत्रालय के अंतर्गत काम करती है। इसकी कुल स्थापित क्षमता 76.47 गीगावाट (GW) है, जिसमें इसके संयुक्त उपक्रम भी शामिल हैं। यह 94 बिजली संयंत्रों का प्रबंधन करती है। कंपनी राज्य बिजली बोर्डों और अन्य उपयोगिताओं को थोक बिजली बेचती है।
एन टी पी सी पारंपरिक रूप से कोयला और तापीय बिजली उत्पादन के लिए जानी जाती है। लेकिन अब इसका लक्ष्य भारत की सबसे बड़ी एकीकृत बिजली कंपनी बनना है। कंपनी 2032 तक 130 गीगावाट की उत्पादन क्षमता हासिल करना चाहती है। यह लक्ष्य भारत के स्वच्छ ऊर्जा समाधानों पर बढ़ते फोकस के साथ मेल खाता है।
एन टी पी सी ने अपना पोर्टफ़ोलियो बिजली उत्पादन से आगे बढ़ाकर परामर्श सेवाओं, परियोजना प्रबंधन, ऊर्जा व्यापार, तेल और गैस अन्वेषण और कोयला खनन तक विस्तारित किया है।
अब, एन टी पी सी परमाणु ऊर्जा को अपनाकर एक कार्बन-मुक्त भविष्य की ओर कदम बढ़ा रही है। यह फैसला एन टी पी सी की स्वच्छ ऊर्जा और स्थायी विकास के प्रति प्रतिबद्धता को दिखाता है। इससे भारत के ऊर्जा परिदृश्य में एन टी पी सी की भूमिका और मज़बूत होगी।
संदर्भ
https://tinyurl.com/24bemrl9
https://tinyurl.com/2xofe878
https://tinyurl.com/25r4egll
चित्र संदर्भ
1. निर्माणाधीन कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. परमाणु ऊर्जा संयंत्र के एक मॉडल को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. भीतर से परमाणु ऊर्जा संयंत्र को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
4. गुजरात के काकरापार में निर्माणाधीन परमाणु ऊर्जा स्टेशन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. हरियाणा में स्थित झज्जर पावर स्टेशन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
संस्कृति 1927
प्रकृति 683