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जब से हमारी सभ्यता में वाणिज्य अस्तित्व में है, तब से ही, व्यापारी एकजुट रहे हैं। उनके संघों का पहला उद्देश्य, दुश्मनों या प्रतिस्पर्धियों के खिलाफ सामान्य सुरक्षा प्राप्त करना था। बाद में, उन्होंने व्यापार को नियंत्रित करने के लिए , नियमसंग्रह स्थापित किए। व्यापारियों के शुरुआती संघों की आधुनिक ‘चैंबर ऑफ कॉमर्स(Chamber of Commerce)’ या वाणिज्य मंडल के साथ काफ़ी समानताएं हैं।
“चैंबर ऑफ कॉमर्स” इस शब्द का सबसे पहला ज्ञात उपयोग फ्रांस(France) के मार्सिले(Marseilles) में हुआ था। यहां 17वीं शताब्दी के अंत में, नगर परिषद द्वारा इस तरह के एक संगठन की स्थापना की गई थी। हालांकि, यूरोपीय चैंबर्स ऑफ कॉमर्स अमेरिकी संगठनों से काफी भिन्न हैं। ये व्यवसायों के संघ तो थे, लेकिन, वे अक्सर ही अर्ध-सार्वजनिक संस्थाओं के रूप में कार्य करते थे। अतः इनके पास व्यापार के संबंध में प्रशासनिक और न्यायिक शक्तियां निहित थीं।
अमेरिकी महाद्वीप पर सबसे पुराना चैंबर ऑफ कॉमर्स न्यूयॉर्क(New York) में एक राज्यव्यापी चैंबर था। इसे वर्ष 1768 में, न्यूयॉर्क के बीस व्यापारियों के एक समूह द्वारा संगठित किया गया था। प्रारंभिक अमेरिकी चैंबर्स, वाणिज्य की सुरक्षा और संवर्धन (promotion)के लिए गठित किए गए थे। व्यवसायियों के संघ के रूप में अपनी भूमिका में, प्रारंभिक वाणिज्य मंडलों ने माल बिक्री को बढ़ावा देने का कार्य किया । उन्होंने बाज़ारों को व्यवस्थित किया, व्यापार के नियमों को लागू किया और पारगमन (Transit)में वस्तुओं की रक्षा भी की। तब उनकी गतिविधियां सीधे तौर पर, वाणिज्य से जुड़े लोगों तक ही सीमित थीं। हालांकि, एक सच्चे सामुदायिक संगठन के रूप में, चैंबर ऑफ कॉमर्स का उद्भव बाद में हुआ, जब व्यापारियों को एहसास हुआ कि, उनकी अपनी समृद्धि एक समृद्ध, स्वस्थ और खुशहाल समुदाय के विकास पर निर्भर करती है। अतः एक अच्छा व्यापारिक माहौल बनाए रखने की जरुरत थी।
प्रथम विश्व युद्ध से पहले, अधिकांश स्थानीय चैंबर मुख्य रूप से अपने समुदाय में नए उद्योगों को आकर्षित करने में रुचि रखते थे। तब, नागरिक एवं वाणिज्यिक विकास द्वितीयक प्राथमिकता पर था। फिर धीरे-धीरे, चैंबर्स ने यह जान लिया कि, औद्योगिक विकास नागरिक और वाणिज्यिक, विकास पर ही निर्भर था। वास्तव में, तब नागरिक समस्याओं पर इतना अधिक जोर दिया गया कि, कई चैंबर नागरिक संघों का स्वरूप धारण करने लगे। उनकी सदस्यता सर्व-समावेशी थी, और उनका कार्यक्रम मुख्य रूप से सार्वजनिक सुविधाओं को बढ़ावा देने में से एक था। जबकि, वर्ष 1925 तक यह माना गया कि, चैंबर्स को अपने उद्देश्य के प्रति सच्चे रहने हेतु, एक व्यावसायिक संगठन ही बने रहना चाहिए। और, व्यवसाय के दृष्टिकोण को व्यक्त करना चाहिए।
इसके पश्चात, 1933 में न्यू डील(The New Deal) के आगमन के साथ, इस संरचना में एक और बड़ा बदलाव हुआ। सरकारी मामले तब सभी स्तरों पर, चैंबर ऑफ कॉमर्स के कार्यक्रमों में प्रमुख विषय बन गए। अतः चैंबर्स ऑफ कॉमर्स, सरकार से व्यवसाय तथा व्यवसाय से सरकार तक, एक व्याख्याकार बन गया।
अब प्रश्न उठता है कि, वाणिज्य मंडल पैसे कैसे जुटाते हैं? दरअसल, कई वाणिज्य मंडल अपने राजस्व के प्राथमिक स्रोत के रूप में, सदस्यता शुल्क पर निर्भर रहते हैं। अधिकांश मंडल अपने सदस्यों को, विभिन्न लाभों के साथ, अलग-अलग कीमतों पर कुछ स्तरों की सदस्यता प्रदान करते हैं। प्रत्येक सदस्य को देय (payable)राशि का भुगतान करना आवश्यक होता है, जो संगठन की समग्र परिचालन लागत को सम्मिलित करने में मदद करता है। इसके अलावा, कुछ चैंबर अतिरिक्त धन जुटाने हेतु, धन जुटाने वाले कार्यक्रम भी आयोजित कर सकते हैं। या फिर, अपने कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए, टिकटों की विशेष खरीद भी करवा सकते हैं।
आमतौर पर, वाणिज्य मंडलों को संघीय कर उद्देश्यों के लिए, 501(C)(6) निगमों के रूप में नामित किया जाता है। यह वर्गीकरण वाणिज्य मंडलों को गैर-लाभकारी संस्थाओं के रूप में काम करने की अनुमति देता है। साथ ही, उन्हें नीतिगत मामलों में अपने सदस्यों का प्रतिनिधित्व करने का भी अधिकार देता है।
क्या आप हमारे देश भारत के चैंबर्स ऑफ कॉमर्स के बारे में जानते हैं? फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री(Federation of Indian Chambers of Commerce & Industry) हमारे देश भारत में स्थित, एक गैर-सरकारी व्यापार और वकालत समूह है। यह संगठन वर्ष 1927 में महात्मा गांधी जी की सलाह पर, एक व्यवसायी जी.डी.बिरला एवं पुरषोत्तमदास ठाकुरदास द्वारा स्थापित है। यह भारत का सबसे बड़ा, सबसे पुराना और शीर्ष व्यापारिक संगठन है। फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री, छोटे और मध्यम उद्यमों तथा बहुराष्ट्रीय कंपनियों सहित, निजी और सार्वजनिक दोनों निगमित क्षेत्र से अपनी सदस्यता पाता है। इस चैंबर में विभिन्न क्षेत्रीय वाणिज्य मंडलों की 2,50,000 से अधिक कंपनियों की अप्रत्यक्ष सदस्यता है। यह क्षेत्र-विशिष्ट व्यवसाय निर्माण, व्यवसाय प्रचार और नेटवर्किंग(Networking) में शामिल है। देश के 12 राज्यों और दुनिया के 8 देशों में इसकी उपस्थिति है।
इसकी पहलो में निम्नलिखित शामिल हैं।
1. मिलेनियम एलायंस (Millennium Alliance):
इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स के मिलेनियम गठबंधन का लक्ष्य कम लागत वाले, नवीन समाधानों का समर्थन करना और उन्हें बढ़ाना है। यह चैंबर, भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग एवं यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट(United States Agency for International Development) की एक संयुक्त पहल है। इसे जुलाई 2012 के दौरान, भारत और दुनिया भर में जनसंख्या के आधार के लिए, अभिनव समाधानों का समर्थन करने और उन्हें मापने के लिए एक समावेशी मंच के रूप में शुरु किया गया था।
2. इन्वेस्ट इंडिया (Invest India):
इन्वेस्ट इंडिया हमारी सरकार और इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स के बीच एक सार्वजनिक-निजी साझेदारी है। यह इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स, भारतीय औद्योगिक नीति और संवर्धन विभाग एवं भारत की राज्य सरकारों के बीच एक संयुक्त उद्यम है। इसे कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत सितंबर 2009 में स्थापित किया गया। इस पहल का उद्देश्य, भारत में विदेशी निवेश परियोजनाओं का त्वरित कार्यान्वयन (quick implementation)और देशज निवेश (indigenous investment)के लिए माहौल में सुधार करना है।
संदर्भ
http://tinyurl.com/fs65vwfx
http://tinyurl.com/45z62cjb
http://tinyurl.com/yc4aup65
चित्र संदर्भ
1. चैंबर ऑफ कॉमर्स को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. यूएस में चैंबर ऑफ कॉमर्स बिल्डिंग को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. कोलकाता, भारत में इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स के मुख्यालय को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. एक बिज़नस मीटिंग को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के लोगो को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. उद्यमी समूह की बैठक को संदर्भित करता एक चित्रण (picryl)
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