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भारत में पुलिस व्यस्था का इतिहास, जानें कौन थे हमारे देश के पहले आईपीएस अफसर?

लखनऊ

 11-01-2024 09:38 AM
उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक

किसी भी समाज को प्रगति के लिए मानसिक शांति, सुरक्षा और अनुकूल परिस्थितियों की आवश्यकता होती है। अशांत एवं अराजक वातावरण में समाज कभी भी प्रगति नहीं कर सकता है। फिर चाहे समाज के व्यक्ति कितने ही योग्य एवं क्षमतावान हो। क्योंकि ऐसी स्थिति में उनका समस्त ध्यान शान्ति स्थापित करने एवं अपनी सुरक्षा की व्यवस्था करने में ही लगा रहेगा। वहीं दूसरी ओर, यदि उनमें सुरक्षा, शांति और व्यवस्था की भावना है तो वे विकास और समृद्धि कर सकते हैं। यहीं पर समाज में पुलिस की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। प्रत्येक युग में, चाहे वह प्राचीन हो या आधुनिक, किसी न किसी रूप में, यह व्यवस्था विभिन्न कर्तव्यों के साथ सदैव विद्यमान रही है। हमारे देश भारत में भी हालांकि आधुनिक पुलिस का इतिहास 19वीं शताब्दी की शुरुआत से शुरू हुआ है, किंतु यह किसी न किसी रूप में वैदिक युग से ही विद्यमान रही है। प्रारंभिक वैदिक काल में ऋग्वेद और अथर्ववेद में वैदिक लोगों को ज्ञात कुछ प्रकार के अपराधों का उल्लेख मिलता है, जिनको रोकने के लिए विशिष्ट व्यक्तियों (सिपाहियों) की व्यवस्था भी रही होगी। वास्तव में, हड़प्पा काल में भी सुरक्षा बलों के अस्तित्व के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। वैसे तो वैदिक काल के दौरान आपराधिक न्याय संगठन का सटीक संदर्भ उपलब्ध नहीं है, लेकिन मौर्य काल में इसकी महत्वपूर्ण विशेषताएं प्रदर्शित होती हैं। 310 ईसा पुराना कौटिल्य का अर्थशास्त्र भी आपराधिक न्याय प्रणाली पर एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। यह आधुनिक समय में पुलिस के लिए एक नियम पुस्तिका के समान है। इस ग्रंथ में, प्रादेशिक (regional officer), महामात्र (head officer) , रज्जुक (district magistrate) आदि का उल्लेख मिलता है। ग्रंथ में वर्णित है कि उस समय सैनिक (पुलिस) तीन प्रकार के होते थे -दंडपाल (army officer), दुर्गपाल (fort keeper) और अंतपाल (guard)। यूनानी राजदूत मैगस्थनीज (Magasthenese) और चीनी यात्री फा हेन (Fa Hein) द्वारा भी गुप्त प्रशासन का विस्तृत विवरण देते हुए लिखा गया है कि उस समय 'दंडिका' (staff-bearer) सर्वोच्च अधिकारी थे। इसके अलावा नागर श्रेष्ठी, रबासिका जैसे न्याय प्रणाली से जुड़े अन्य अधिकारियों का भी उल्लेख मिलता है। इस अवधि के दौरान विकसित आपराधिक न्याय प्रणाली पाँच से छह सौ वर्षों तक जारी रही। मौर्य काल और गुप्तकाल दोनों के बीच एकमात्र अंतर यह था कि मौर्य प्रणाली केंद्रीकृत (centralized) थी जबकि गुप्त प्रणाली विकेंद्रीकृत (decentralized) थी। लेकिन ग्रामीण पुलिस, शहर पुलिस और महल पुलिस प्रणाली की मूल संरचना एक ही थी, जिसे समय के साथ विभिन्न राजाओं एवं शासकों द्वारा अपने राज्य की परिस्थितियों के अनुरूप बदल दिया गया। हालांकि मध्यकालीन भारत में पुलिस व्यवस्था का कोई स्पष्ट विवरण नहीं मिलता है, लेकिन सल्तनत काल के दौरान, मुहतासिब, मुकद्दम, प्रशासन के प्रभारी अधिकारी थे। प्रांतीय स्तर पर शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए आपराधिक न्याय वितरण प्रणाली का प्रमुख फौजदार था। ग्राम प्रशासन के लिए चौकीदार उत्तरदायी था। 19वीं सदी की शुरुआत तक मुगल साम्राज्य का विघटन शुरू हो गया और 19वीं सदी के मध्य तक, मुख्य रूप से देश के बारे में ज्ञान की कमी और ब्रिटिश अनुभवहीनता के कारण कोई संतोषजनक पुलिस व्यवस्था नहीं थी। जब कॉर्नवालिस (Cornwallis) को गवर्नर-जनरल के रूप में भारत भेजा गया, तो उन्होंने जमींदारी प्रथा को समाप्त कर दिया और कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए थानेदारों की नियुक्ति की। कुछ अन्य सुधार भी पेश किये गये। जबकि अंग्रेजों द्वारा प्रशासनिक कार्यप्रणाली में परिवर्तन किये गये थे, फिर भी पुलिस व्यवस्था के लिए मुगल ढाँचे को बरकरार रखा गया था। इसके साथ कोतवाल, थानेदार, परगना, दरोगा जैसे पद भी जारी रहे। हालाँकि, फ़ारसी-अरबी मॉडल में धीरे-धीरे बदलाव आए और पुलिसिंग का ब्रिटिश तरीका अपनाया गया। बाद में, नेपियर (Napier) द्वारा विकसित पुलिसिंग मॉडल पर आधारित 1861 में भारतीय पुलिस अधिनियम लागू किया गया, जिस पर हमारी वर्तमान पुलिस प्रणाली भी आधारित है।1857 के विद्रोह के बाद, अंग्रेजों को सत्ता खोने के खतरे का एहसास होने लगा और वे अपनी सत्ता के लिए सभी चुनौतियों का पूर्ण आधिपत्य (Hegemony ) और दमन (repression) सुनिश्चित करने के लिए दृढ़ थे। इस प्रकार, अपराध की रोकथाम और पता लगाने के लिए पुलिस को एक कुशल साधन बनाने के लिए 1860 में एक पुलिस आयोग नियुक्त किया गया। भारत में वर्तमान पुलिस व्यवस्था ब्रिटिश की विरासत है। वास्तव में पुलिस व्यवस्था बनाए रखने के लिए विदेशी सरकार का दृष्टिकोण जनसेवा उन्मुख नहीं था, बल्कि उनका उद्देश्य यथास्थिति बनाये रखना था। इस अधिनियम के द्वारा पूरे देश में एक समान पुलिस व्यवस्था लागू कर दी गई। इसके द्वारा जिला मजिस्ट्रेट को स्थानीय पुलिस पर निगरानी रखने के कर्तव्य से मुक्त कर दिया गया और इसे प्रकृति में अधिक पेशेवर, संगठित और अनुशासित बना दिया गया। व्यापक जांच करने और संगठन के विभिन्न पहलुओं में सुधार की सिफारिश करने के लिए 1902 में दूसरे अखिल भारतीय पुलिस आयोग का गठन किया गया। लेकिन वास्तव में आज़ादी तक सेनाओं में सुधार की सिफ़ारिशों के अनुरूप कोई भी ठोस कदम नहीं उठाए गए। हालांकि, 1920 के बाद, पुलिस सेवाओं में प्रवेश परीक्षाओं के माध्यम से भारतीयों को भी नियुक्ति का अधिकार दिया गया, लेकिन वास्तव में घोषणाओं और सिफ़ारिशों के बावजूद सेवाओं का भारतीयकरण बहुत धीमा रहा। केवल यूरोपीय लोगों की अनुपलब्धता के कारण ही, बाद में अधिक भारतीयों को सेवाओं में नियुक्त किया जाने लगा। क्या आप जानते हैं कि आजादी से पहले, 'इंपीरियल पुलिस' (Imperial Police (IP) से संबंधित वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को प्रतिस्पर्धी परीक्षा के आधार पर राज्य सचिव द्वारा नियुक्त किया जाता था। सेवा में प्रवेश के लिए पहली खुली सिविल सेवा परीक्षा जून 1893 में इंग्लैंड (England) में आयोजित की गई थी और दस शीर्ष उम्मीदवारों को भारतीय इंपीरियल पुलिस में परिवीक्षाधीन के रूप में नियुक्त किया गया था। 1907 के आसपास, राज्य सचिव के अधिकारियों को अपने स्कंधपट्ट पर "IP" अक्षर लगाने का निर्देश दिया गया था ताकि उन्हें परीक्षा के माध्यम से राज्य सचिव द्वारा भर्ती नहीं किए गए अन्य अधिकारियों से अलग किया जा सके। 1948 में, भारत को आज़ादी मिलने के एक साल बाद; इंपीरियल पुलिस की जगह भारतीय पुलिस सेवा (Indian Police Service (IPS) ने ले ली। स्वतंत्रता के बाद, भारत में बिना किसी बुनियादी परिवर्तन के 1861 की प्रणाली को अपनाया गया। भारतीय पुलिस सेवा अखिल भारतीय सेवाओं के अंतर्गत एक सिविल सेवा है। भारत के ब्रिटिश राज से स्वतंत्र होने के एक साल बाद, 1948 में भारतीय शाही पुलिस के स्थान पर इस सेवा को लाया गया। भारतीय पुलिस सेवा, भारतीय प्रशासनिक सेवा (Indian Administrative Service (IAS) और भारतीय वन सेवा (Indian Forest Service (IFS) के साथ अखिल भारतीय सेवाओं में से एक सेवा है। इसके अधिकारी केंद्र सरकार और अलग-अलग राज्यों दोनों द्वारा नियोजित किये जाते हैं। यह सेवा राज्य पुलिस बलों और केंद्र शासित प्रदेशों के पुलिस बलों, केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (BSF, SSB, CRPF, CISF, और ITBP), राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG), राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) इंटेलिजेंस ब्यूरो (Intelligence Bureau (IB), रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (Research & Analysis Wing (R & AW), विशेष सुरक्षा समूह (Special Protection Group (SPG), राष्ट्रीय जांच एजेंसी (National Investigative Agency (NIA) और केंद्रीय जांच ब्यूरो ( Central Bureau of Investigation (CBI) को आदेश देती है और नेतृत्व प्रदान करती है। आईपीएस अधिकारियों की भर्ती यूपीएससी (UPSC) द्वारा आयोजित सिविल सेवा परीक्षा से की जाती है। उन्हें राज्य पुलिस सेवा और DANIPS (Delhi, Andaman and Nicobar Islands, Lakshadweep, Dadra and Nagar Haveli and Daman and Diu Police Service) से भी पदोन्नत किया जाता है। आईपीएस अधिकारियों का प्रशिक्षण हैदराबाद में सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस अकादमी (Sardar Vallabhbhai Patel National Police Academy) में आयोजित किया जाता है। आईपीएस अधिकारियों की सिविल सूची भारत सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा पोषित एक वार्षिक सूची है जिसमें भारत में सभी आईपीएस अधिकारियों का विवरण सूचीबद्ध है। इस सिविल सूची को गृह मंत्रालय की वेबसाइट से प्राप्त किया जा सकता है। आईपीएस अधिकारियों के लिए पुलिस अधीक्षक (Superintendent of police(SP) रैंक के लिए दो स्तर के ग्रेडेशन हैं। ये सातवें वेतन आयोग के अनुसार स्तर 11 और 12 हैं।परिणामस्वरूप, आईपीएस अधिकारी 13वें वर्ष तक SP पद पर बने रहते हैं जिसके बाद वे वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (SSP) के रूप में पदोन्नत होने के पात्र होते हैं। ASP रैंक आईपीएस राज्य कैडर में सबसे जूनियर रैंक है। नतीजतन, आईपीएस में नए भर्ती होने वाले अधिकारियों को अतिरिक्त क्षमता में सहायक पुलिस अधीक्षक के रूप में केवल दो साल के लिए प्रशिक्षण उद्देश्य के लिए और उसके बाद 1 वर्ष के लिए तैनात किया जाता है जब तक कि उन्हें औपचारिक रूप से किसी क्षेत्र के पुलिस अधीक्षक प्रभारी और जिला प्रभारी के रूप में नियुक्त नहीं किया जाता है। जब अधिकारियों को एसएसपी के पद पर पदोन्नत किया जाता है, तो उनमें से कुछ को महानगरीय जिलों के जिला प्रभारी के रूप में नियुक्त किया जाता है। आइपीएस अधिकारियों के श्रेणीवार पदों को निम्न प्रकार समझा जा सकता है:
क्रम संख्या पद
1. पुलिस महानिदेशक (DGP)
2. अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (ADGP)
3. पुलिस महानिरीक्षक (IGP)
4. उप महानिरीक्षक (DIG)
5. पुलिस वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (SSP)
6. पुलिस अधीक्षक (SP)
7. अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक अतिरिक्त (ASP)
8. सहायक पुलिस अधीक्षक (ASP)
9. सहायक पुलिस अधीक्षक (दो वर्ष के लिए परिवीक्षाधीन) (ASP)
10. सहायक पुलिस अधीक्षक (एक वर्ष के लिए परिवीक्षाधीन) (ASP)
आइए अब हम आपको भारत के पहले आईपीएस अधिकारी के बारे में बताते हैं। चक्रवर्ती विजयराघव नरसिम्हन, जिन्हें सी.वी. नरसिम्हन के नाम से जाना जाता है । भारत के पहले आईपीएस अधिकारी के रूप में सी.वी. नरसिम्हन, भारत के इतिहास में एक उच्च स्थान पर विराजित हैं। सी.वी. नरसिम्हन भारत में पहली भारतीय पुलिस सेवा (IPS) के प्रणेता के रूप में अति सम्माननीय हैं। नरसिम्हन की यात्रा समाज और संस्कृति दोनों में उनके बहुमुखी और महत्वपूर्ण योगदान को भी उजागर करती है। सीवी नरसिम्हन का जन्म तमिलनाडु राज्य की राजधानी मद्रास में में 21 मई 1915 को हुआ था। नरसिम्हन की शैक्षिक यात्रा तिरुचि के सेंट जोसेफ कॉलेज से शुरू हुई जिसके बाद उन्होंने प्रतिष्ठित मद्रास विश्वविद्यालय और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय (Oxford University)से उच्च शिक्षा प्राप्त की। 1937 में, नरसिम्हन ने भारतीय सिविल सेवा (ICS) में पदभार ग्रहण किया। मद्रास सरकार के विकास विभाग में उप सचिव के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने अपने प्रशासनिक कौशल के लिये 1946 में 'ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर के प्रतिष्ठित सदस्य’ (Member of the Order of the British Empire (MBE) का पद प्राप्त किया। 1948 में स्वतंत्रता के बाद सिविल सेवा परीक्षा के पहले बैच में सीवी नरसिम्हन ने शीर्ष स्थान प्राप्त किया और आज़ाद भारत के पहले आईपीएस अधिकारी बने।
नरसिम्हन का कार्यकौशल केवल पुलिस सेवाओं तक सीमित नहीं है। उनकी प्रशासनिक कौशलता के कारण उन्हें तमिलनाडु पुलिस बल में वरिष्ठ पद और भारत सरकार में महत्वपूर्ण भूमिकाएँ प्रदान की गई। केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) के निदेशक के रूप में उनके कार्यकाल से लेकर राष्ट्रीय पुलिस आयोग के सदस्य सचिव के रूप में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका तक, नरसिम्हन का योगदान देश के सुरक्षा परिदृश्य को आकार देने में अत्यधिक महत्वपूर्ण रहा है। नरसिम्हन ने न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र आर्थिक आयोग (United Nations Economic Commission) में एशिया और सुदूर पूर्व के कार्यकारी सचिव के रूप में भी कार्यभार सम्भाला और आर्थिक विकास में अपनी विशेषज्ञता और राष्ट्रों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने की अपनी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित किया। इसके अलावा उन्होंने पीएस चैरिटीज़ (PS Charities) के अध्यक्ष और विवेकानन्द एजुकेशनल सोसाइटी (Vivekananda Educational Society) के अध्यक्ष के रूप में शिक्षा और सामाजिक कल्याण के क्षेत्र में इन संगठनों के माध्यम से, खासकर चेन्नई के पास 24 स्कूलों के संचालन के माध्यम से, अनगिनत व्यक्तियों के जीवन को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । नरसिम्हन को 1962 में सराहनीय सेवा के लिए पुलिस पदक और 1971 में उत्कृष्ट सेवा के लिए राष्ट्रपति पदक भी प्राप्त हुआ है। ये पुरस्कार कानून प्रवर्तन और उनके राष्ट्र पर उनके स्थायी प्रभाव के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं।

संदर्भ
https://rb.gy/6atr9z
https://rb.gy/5ymymm
https://rb.gy/yh51vy
https://rb.gy/yn4j8p

चित्र संदर्भ
1. सीवी नरसिम्हन और राष्ट्रीय पुलिस स्मारक और संग्रहालय, नई दिल्ली में भारतीय पुलिस रैंकों और वर्दी की प्रदर्शनी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. 1910 के दशक में बॉम्बे सिटी पुलिस के सशस्त्र कांस्टेबल को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. एक राजशाही यात्रा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. भारत के मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय को ईस्ट इंडिया कंपनी के सैनिकों की समीक्षा करते हुए दर्शाता एक चित्रण (picryl)
5. एक ब्राह्मण पर नजर रखते पुलिस अधिकारीयों को दर्शाता एक चित्रण (picryl)
6. आईपीएस लोगो को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
7. पुस्तकालय को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
8. विभिन्न सेवा पदों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
9. सीवी नरसिम्हन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)



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