लखनऊ एक महत्वपूर्ण मध्यकालीन शहर है। इसे बड़े नाज़ों के साथ सजाया गया था जिसका प्रमाण यहाँ के प्रमुख भवनों को देखकर प्राप्त हो जाता है। यहाँ के प्रमुख भवनों में से एक है छोटा इमामबाड़ा। लखनऊ के पुराने शहर में हुसैनाबाद का इमामबाड़ा सबसे सुंदर और आकर्षक इमारतों में से एक है। इस इमामबाड़े को मोहम्मद अली शाह ने अपने शासन के दूसरे वर्ष में 1839 में बनवाया था। मोहम्मद अली शाह ने अपने विश्वास के प्रति निष्ठा की एक निशानी के रूप में और भाग्य के लिए आभार के रूप में यह इमामबाड़ा बनाया होगा। मोहम्मद अली शाह अपनी उम्र के 60वें पड़ाव को पार करने के बाद अवध के तीसरे राजा या नवाब के रूप में उभरा था। उसे अंग्रेजों ने ताज पहनाया था। अज़ीम-उल खान राजा के अध्यादेश और निर्माण विभाग के अधीक्षक थे और हुसैनाबाद इमामबाड़े की निगरानी करते थे। उनका योगदान, मुख्य त्रिपोलिया गेटवे के खंभे पर रखे गए दो फारसी शिलालेखों में दर्ज है।
यह इमामबाड़ा बड़े व छोटे गुम्बदों के शानदार तालमेल को दर्शाता है। मुख्य गुम्बद सबसे बड़ा है तथा आसपास के गुम्बद आकार में छोटे हैं तथा यदि इनपर ध्यान दिया जाये तो यह पता चलता है कि इनकी बनावट प्याज की तरह है जो उस काल की प्रमुखता थी। इस इमामबाड़े का प्रवेश द्वार त्रिकोणीय या धनुषाकार है।
चबूतरा (मंच) के साथ कदम अज़खाना – मुख्य सभामण्डप है जहां हजैन के शोक के लिए मज़लिसी सभा आयोजित की जाती है। आज़ाखाना के बड़े हरे और सफेद बार्डर वाले हॉल चंडेली से सजाए गए हैं और क्रिस्टल ग्लास लैंप की यहाँ एक अच्छी संख्या है। वास्तव में, यह इस अत्याधुनिक सजावट के लिए था। इमामबाड़े को यूरोपीय आगंतुकों और लेखकों द्वारा लाइट्स का पैलेस कहा जाता था।
सभामंडप के दक्षिण में शाहनाशिन, मेहराब वाला एक मंच है। शाहनाशिन पर रजत, हाथीदांत और सुगंधित चंदन का बना ताज़िया (हुसैन की कब्र के अनुमानतः पोर्टेबल प्रतिकृति) बनाए गए हैं। यहां एक बड़ा ताज़िया भी है जो मोम और टिनसेल पेपर से बना है। एक चांदी का मणिब (पल्पपीट) भी उस हॉल में रखा जाता है, जिस पर जाजिर (वक्तावादी) बैठे हैं।
इस इमामबाड़े पर कुरान के कलमे लिखे गये हैं तथा इसको विशिष्ट रूप से सजाया गया है। इसकी सजावट अपने समयकाल की सर्वोत्तम कलाकारी को प्रदर्शित करती है। छोटा इमामबाड़ा लखनऊ की प्रमुख वास्तुकला में प्रमुखता से आता है। इसके अन्दर की सुन्दरता देखते ही बनती है तथा यह दर्शाती है कि किस नज़ाकत के साथ इसको बनवाया गया होगा।
नवाब, मोहम्मद अली शाह और उनकी रानी मल्लिका अफैक जहान ने ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ पच्चीस लाख रूपये जमा करने और उन धार्मिक इमारतों की देखभाल और रखरखाव करने के लिए एक ट्रस्ट बनाने की दूरदर्शिता रखी थी। यह अब हुसैनबाद एंडॉमेंट ट्रस्ट के रूप में जाना जाता है, यह छोटा इमामबाड़े का ख्याल रखता है। हम यह भी कह सकते हैं कि लखनऊ में यह पहला कदम था जिसमें किसी इमारत के रख-रखाव के लिये कोई ठोस कदम उठाया गया था।
1. इनक्रेडिबल लखनऊः ए विज़िटर्स गाइड, सैयद अनवर अब्बास
2. टाइम्स ऑफ इंडिया, हेरिटेज़, मन्डे 6.6.1994, छोटा इमामबाड़ाः ए टोकन ऑफ डिवोशन
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