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संपूर्ण ब्रह्मांड के निर्माण रहस्य: विज्ञान के बिग बैंग सिद्धांत व धर्मशास्त्र ऋग्वेद में

लखनऊ

 06-01-2024 09:52 AM
शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

पिछले कुछ दशकों में प्रौद्योगिकी और विज्ञान में प्रभावशाली विकास हुए हैं, जिसने हमारे जीवन को पूरी तरह से बदल दिया है। निर्बाध यात्रा के लिए रोडवेज़, रेलवे और विमान से लेकर दुनिया के किसी भी हिस्से से संचार को सहज बनाने तक प्रौद्योगिकी ने मानव जीवन के प्रत्येक कार्य को इतना आसान बना दिया है कि यदि वह किसी प्रश्न का उत्तर जानना चाहता है तो सिर्फ उसे पूछना है और उसे उस प्रश्न का उत्तर मिल जाता है! लेकिन एक प्रश्न कि हमारी पृथ्वी और सौर मंडल का निर्माण कैसे हुआ, आज भी एक जटिल एवं अनसुलझा प्रश्न बना हुआ है। सदियों से चल रहे वैज्ञानिक अध्ययन के आधार पर विज्ञान ने बिग बैंग सिद्धांत (Big Bang Theory) के ज़रिए इस रहस्य को सुलझाने की कोशिश की है। वही सदियों पूर्व ही हमारे सनातन धर्म का सबसे आरम्भिक स्रोत, ऋग्वेद में वर्णित किया गया था कि संपूर्ण ब्रह्मांड का निर्माण 'ओम' ध्वनि से हुआ है। तो आइए इस सिद्धांत और ऋग्वेद से इसके संबंध को समझने की कोशिश करते हैं।
हमारा सौर मंडल एक तारे (सूर्य), 8 ग्रहों और अनगिनत छोटे पिंडों जैसे छोटे ग्रहों, क्षुद्रग्रहों और धूमकेतुओं से बना है। लेकिन वास्तव में हमारा सौर मंडल केवल सूर्य की परिक्रमा करने वाले आठ ग्रहों से कहीं अधिक दूर तक फैला हुआ है। सौर मंडल में कुइपर बेल्ट (Kuiper Belt) भी शामिल है जो वरुण की कक्षा के दूसरी तरफ स्थित है। यह बर्फीले पिंडों का एक विरल घेरा है। कुइपर बेल्ट की सतह से परे ऊर्ट बादल (Oort Cloud) है। यह विशाल गोलाकार आवरण हमारे सौर मंडल को घेरे हुए है। इसे आज तक कभी भी प्रत्यक्ष रूप से नहीं देखा गया है, लेकिन इसके अस्तित्व की भविष्यवाणी गणितीय मॉडल और वहां उत्पन्न होने वाले धूमकेतुओं के अवलोकन के आधार पर की जाती है। ऊर्ट बादल अंतरिक्ष मलबे के बर्फीले टुकड़ों से बना है। यह हमारे सूर्य की परिक्रमा 1.6 प्रकाश वर्ष बराबर जितनी दूरी से करता है। वैज्ञानिकों के अनुसार ऊर्ट बादल सूर्य के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव की सीमा है, जहां परिक्रमा करने वाली वस्तुएं घूम सकती हैं और हमारे सूर्य के करीब लौट सकती हैं। इसके अलावा हमारे सौर मंडल के आठ में से छह ग्रहों के चंद्रमा हैं। बृहस्पति और शनि चंद्रमाओं की संख्या में अग्रणी हैं। बुध और शुक्र ही ऐसे ग्रह हैं जिनका कोई चंद्रमा नहीं है। प्लूटो जो पहले सौर मंडल का नवाँ ग्रह था, हमारे चंद्रमा से भी छोटा है, और इसकी कक्षा में पाँच चंद्रमा हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार हमारे सौर मंडल का निर्माण लगभग 4.5 अरब वर्ष पहले अंतरतारकीय गैस और धूल के घने बादल से हुआ था। ऐसा माना जाता है कि पास के ही एक 'सुपरनोवा' (supernova) नामक तारे के विस्फोट के झटके से यह बादल ढह गया था। गैस और धूल के इस बादल के ढहने पर एक घूमती हुई डिस्क के आकार की एक सौर निहारिका का निर्माण हुआ। सौर निहारिका के केंद्र में, गुरुत्वाकर्षण होने के कारण समस्त सामग्री अंदर की तरफ खिचने लगी। और अंत में केंद्र में इतना अधिक दबाव बन गया कि हाइड्रोजन परमाणुओं के संयोग से हीलियम बनना शुरू हो गया, जिससे अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा उत्सर्जित हुई, जिससे हमारे सूर्य का जन्म हुआ।
सौर निहारिका में दूर स्थित सभी पदार्थ घूमने के कारण आपस में टकराकर जुड़ने लगे, जिससे बड़ी चट्टानों का निर्माण होने लगा। उनमें से कुछ चट्टानों का आकार अत्यधिक बड़ा हो गया जो आकार में दसियों से सैकड़ों मील तक फैली हुई थी। वैज्ञानिकों द्वारा इन चट्टानों को ग्रहाणु (planetesimals) का नाम दिया गया। और गुरुत्वाकर्षण के कारण उनका आकार गोल हो गया, जिससे वे ग्रह, बौने ग्रह और बड़े चंद्रमा बन गए। प्रारंभिक सौर मंडल के टुकड़ों से क्षुद्रग्रह बेल्ट का निर्माण हुआ। अन्य छोटे बचे हुए टुकड़े क्षुद्रग्रह, धूमकेतु, उल्कापिंड और छोटे अनियमित चंद्रमा बन गए। इस प्रकार ब्रह्मांड का जन्म एक महाविस्फोट के परिणामस्वरूप होने के कारण इसको महाविस्फोट सिद्धान्त या बिग बैंग सिद्धान्त कहते हैं। सौर मंडल के अन्य सभी ग्रहों की तरह हमारी पृथ्वी का निर्माण भी 4.6 अरब वर्ष पहले नव निर्मित सूर्य के चारों ओर धूल और गैस के मिश्रण से हुआ था। वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी ने अपना अंतिम आकार मंगल ग्रह के आकार के एक अन्य पिंड के साथ एक आखिरी बड़ी टक्कर के माध्यम प्राप्त किया। यह आखिरी टक्कर इतनी बड़ी थी कि इससे पृथ्वी पर बहुत सारे पदार्थ एक साथ जुड़ गए और इतनी अधिक ऊर्जा उत्सर्जित हुई कि चट्टानें और धातुएं वाष्पित हो गई। इस वाष्प के कारण पृथ्वी के चारों ओर एक डिस्क बन गई, जिसके ठंडा होने पर चंद्रमा का निर्माण हुआ। क्या आप जानते हैं कि पृथ्वी ग्रह के गठन से लेकर वर्तमान तक के विकास के बड़े अंतराल के विषय में ‘भूवैज्ञानिक समय पैमाने’ (Geological Time Scale (GTS) द्वारा जाना जा सकता है। और इसके विभिन्न संभाग पृथ्वी के इतिहास की कुछ निश्चित घटनाओं को दर्शाते हैं। पृथ्वी की आंतरिक संरचना के निर्माण के विषय में भूवैज्ञानिक समय पैमाने के अनुसार, पृथ्वी पर ज्वालामुखी विस्फोट से संभवतः आदिकालीन वातावरण और फिर महासागर का निर्माण हुआ, लेकिन प्रारंभिक वातावरण में लगभग कोई ऑक्सीजन नहीं थी। अन्य पिंडों के साथ लगातार टकराव के कारण पृथ्वी का अधिकांश भाग पिघल गया था। समय के साथ, पृथ्वी ठंडी हो गई, जिससे एक ठोस परत का निर्माण हुआ और सतह पर तरल पानी आ गया। जून 2023 में, वैज्ञानिकों ने इस बात के भी सबूत दिए कि पृथ्वी ग्रह का निर्माण केवल तीन मिलियन वर्षों में हुआ होगा, जो कि पहले सोचे गए 10−100 मिलियन वर्षों की तुलना में बहुत तेज़ है।
पृथ्वी के निर्माण के साथ हेडियन (Hadean) युग की शुरुआत हुई और 4.0 अरब वर्ष पहले ही यह युग समाप्त हो गया, जिसके बाद आर्कियन (Archean) और प्रोटेरोज़ोइक (Proterozoic) युगों ने पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत और इसका प्रारंभिक विकास किया। इनके बाद अगला युग फ़ैनरोज़ोइक (Phanerozoic) है, जिसे तीन युगों में विभाजित किया गया है: पैलियोज़ोइक(Palaeozoic), जिसे मछलियों का युग कहा जाता है और इसी युग में जीवन का उदय हुआ , मेसोज़ोइक (Mesozoic), जिसमे डायनासोर का उदय, शासन और चरम विलुप्ति हुई और सेनोज़ोइक (Cenozoic), जिसमें स्तनधारियों का उदय हुआ। भूवैज्ञानिक पैमाने के अनुसार पृथ्वी पर मानव जैसी संरचना का उदय अधिकतम 2 मिलियन वर्ष पहले ही हुआ। पृथ्वी पर जीवन के समान ही भू पर्पटी (crust) भी अपने गठन के बाद से लगातार बदलती रही है। प्रजातियाँ लगातार विकसित होती रही हैं, नए रूप लेती रही हैं, उपप्रजातियों में विभाजित हो रही हैं, या लगातार बदलते भौतिक वातावरण के कारण विलुप्त होती रही हैं। पृथ्वी के महाद्वीपों, महासागरों का आकार और उनमें मौजूद जीवन सतह विवर्तन (tectonic plates) की प्रक्रिया के कारण बदलता रहता है।
हमारे ब्रह्मांड एवं पृथ्वी के विषय में हमें यह जानकारी केवल कुछ दशकों पूर्व ही विज्ञान की अभूतपूर्व प्रगति के बाद प्राप्त हुई है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि पृथ्वी एवं ब्रह्मांड की उत्पत्ति की जो व्याख्या आज विज्ञान द्वारा दी जाती है वह सदियों पूर्व ही हमारे वेदों में वर्णित की जा चुकी है? हिंदू धर्मशास्त्र ऋग्वेद के अनुसार, ‘ॐ’ (ओम) एक ऐसी आदि ध्वनि है जिससे संपूर्ण ब्रह्मांड का निर्माण हुआ है। दरअसल ओम शब्द परम ब्रह्मा को दर्शाता है। ईश्वर की त्रिगुणात्मक प्रकृति के समान ही ओम शब्द की प्रकृति भी त्रिगुणात्मक है। यह शब्द तीन अलग-अलग ध्वनियों अ-ओ-म से मिलकर बना है,जो अन्य सभी ध्वनियों के मूल हैं। अ-ओ-म को ब्रह्मा, विष्णु और शिव या सृजन, संरक्षण और विनाश या सत्व (अच्छाई), रजस (जुनून) और तमस (अज्ञान) के रूप में भी दर्शाया जा सकता है। मांडूक्य उपनिषद, तैत्तिर्य उपनिषद, भगवद गीता और कई अन्य हिंदू ग्रंथों में भी ‘ओम’ शब्द के महत्त्व के विषय में बताया गया है। बिग बैंग सिद्धांत के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि हमारा ब्रह्मांड एक असीम रूप से छोटे, असीम रूप से गर्म, असीम रूप से घने, अर्थात एक विलक्षणता के रूप में शुरू हुआ था। अपनी प्रारंभिक स्थिति के बाद, यह स्पष्ट रूप से विस्तारित हुआ और ठंडा होकर हमारे वर्तमान ब्रह्मांड के आकार और तापमान तक पहुंच गया। इसी तथ्य में बिग बैंग सिद्धांत और ओम शब्द की समानता छिपी हुई है। बिग बैंग सिद्धांत में उल्लिखित विलक्षणता और कुछ नहीं बल्कि परम ब्रह्मा है जिन्होंने , ‘ॐ’ (ओम) शब्द की ध्वनि का उच्चारण करके ब्रह्मांड का निर्माण किया । बिग बैंग सिद्धांत और ओम ध्वनि सिद्धांत में सिर्फ एक ही अंतर है कि बिग बैंग सिद्धांत के अनुसार बिग बैंग के क्षण से पहले कुछ भी नहीं था किंतु हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार उस पल के दौरान और उसके पहले और बाद में परम ब्रह्म सदैव विद्यमान थे, हैं और रहेंगे। परम ब्रह्मा पूरे ब्रह्मांड और सभी प्राणियों के निर्माता हैं। वह सबका अतीत, वर्तमान और भविष्य हैं। वह सनातन हैं, वह शाश्वत हैं। इस प्रकार, बिग बैंग से पहले सर्वोच्च निर्माता का अस्तित्व हिंदू धर्म में सिद्ध है।

संदर्भ
https://shorturl.at/AIO37
https://shorturl.at/oPSW3
https://shorturl.at/tGX28
https://shorturl.at/CMOZ3

चित्र संदर्भ
1. बिग बैंग सिद्धांत व ऋग्वेद को संदर्भित करता एक चित्रण (Wallpaper Flare)
2. ब्रह्मांडीय विस्फोट को संदर्भित करता एक चित्रण (Needpix)
3. 'सुपरनोवा' को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. पृथ्वी के निर्माण की प्रक्रिया को संदर्भित करता एक चित्रण (Wallpaper Flare)
5. ॐ चिन्ह को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)



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