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प्राचीन काल से ही लोगों का मानना रहा है कि रंगों का मनुष्यों के मन और शरीर पर गहरा प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए, मिस्रवासियों के अनुसार कुछ रंगों का उपयोग स्वास्थ्य समस्याओं के इलाज के लिए किया जा सकता है। इसलिए वे चिकित्सा कक्ष में थकान कम करने के लिए नारंगी, त्वचा में गर्माहट के एहसास के लिए बैंगनी और दर्द से राहत के लिए नीले रंग के उपयोग को महत्त्व देते हैं। भारत में भी आयुर्वेद में, जो चिकित्सा की एक प्राचीन विकसित प्रणाली है, रंगों का उपयोग बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता था।
शोधकर्ताओं द्वारा रंगों के प्रति लोगों के दृष्टिकोण को निर्धारित करने के लिए कई मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का उपयोग करके रंग के भावनात्मक प्रभावों को मापने की भी कोशिश की गई है। इस क्षेत्र में अध्ययनों में पाया गया है कि रंगों के प्रति लोगों की भावनात्मक और व्यवहारिक प्रतिक्रियाएँ संदर्भ के आधार पर भिन्न होती हैं। यद्यपि लोग हज़ारों वर्षों से अपनी संस्कृति में रंगों की शक्ति में विश्वास करते रहे हैं, ‘रंग मनोविज्ञान’ का क्षेत्र स्वयं अपेक्षाकृत नया है। और बीसवीं शताब्दी में ही मनोवैज्ञानिकों द्वारा मानव व्यवहार और भावनाओं पर रंगों के प्रभावों के औपचारिक अध्ययन के बाद यह पुष्टि की गई कि रंग स्वास्थ्य समस्याओं का इलाज कर सकते हैं, रक्तचाप को कम कर सकते हैं, मानव व्यवहार और भावनाओं को प्रभावित कर सकते हैं, भूख को प्रभावित कर सकते हैं, रचनात्मकता को बढ़ा सकते हैं और भी बहुत कुछ सकारात्मक तौर पर कर सकते हैं।
रंग मनोविज्ञान की शुरुआत 1810 में, जर्मन कवि और कलाकार जोहान वोल्फगैंग वॉन गेथे (Johann Wolfgang von Goethe) के द्वारा मानी जाती है जब उन्होंने रंग मनोविज्ञान पर अपनी पहली पुस्तकों में से एक ‘थ्योरी ऑफ कलर्स’ (Theory of Colours) प्रकाशित की। उनका मानना था कि रंग कुछ भावनाएं उत्पन्न कर सकते हैं। उन्होंने अपनी पुस्तक में विभिन्न रंगों के अर्थों के बारे में भी बात की है। उदाहरण के लिए, उन्होंने पीले रंग को प्रसन्नता और शान्ति का और नीले रंग को उदासी का सूचक बताया।
इस पुस्तक में, उन्होंने बताया कि रंग, प्रकाश और अंधेरे की गतिशील परस्पर क्रिया से उत्पन्न होता है, हालांकि यह विचार काफी विवादास्पद रहा। जब उनकी यह पुस्तक सामने आई, तो वैज्ञानिक समुदाय ने इसे अस्वीकार कर दिया क्योंकि यह वैज्ञानिक अनुसंधान पर आधारित नहीं थी और मुख्य रूप से गेथे की अपनी राय पर आधारित थी। वहीं दूसरी तरफ इस विचार ने कुछ लोगों को काफी प्रभावित किया। 1816 में शोपेनहावर (Schopenhauer) ने गेथे की पुस्तक में दी गई टिप्पणियों के आधार पर ‘ऑन विझन एंड कलर्स’ (On Vision and Colours) नामक अपनी पुस्तक में अपना सिद्धांत विकसित किया। 1840 में चार्ल्स ईस्टलेक (Charles Eastlake) द्वारा अंग्रेजी में अनुवाद किए जाने के बाद, उनके सिद्धांत को कला जगत ने, विशेष रूप से जे.एम.डब्ल्यू. टर्नर (J. M. W. Turner) ने, व्यापक रूप से अपनाया। गेथे न्यूटन (Newton) के रंग के विश्लेषणात्मक उपचार के सख्त विरोधी थे। यद्यपि गेथे का सौंदर्यवादी दृष्टिकोण आधुनिक विज्ञान में सर्वव्यापी रूप से उपयोग किए जाने वाले विश्लेषणात्मक और गणितीय विश्लेषण की मांगों के अनुरूप नहीं है, तथापि, वह रंगों का मानवीय व्यवहार एवं भावनाओं पर अध्ययन करने वाले पहले व्यक्ति थे।
आगे चल कर रंग मनोविज्ञान के क्षेत्र में वैज्ञानिक अनुसंधान करने वाले पहले मनोवैज्ञानिकों में से एक, कर्ट गोल्डस्टीन (Kurt Goldstein) ने गेथे के काम का विस्तार किया। गोल्डस्टीन एक प्रमुख जर्मन तंत्रिका मनोवैज्ञानिक (neuropsychologist) थे जो तंत्रिका तंत्र विकारों के रोगियों का इलाज किया करते थे। 1942 में, उन्होंने यह निर्धारित करने के लिए अपने पांच रोगियों पर प्रयोगों की एक श्रृंखला आयोजित की, कि क्या कुछ रंग वास्तव में, तंत्रिका तंत्र की कार्यप्रणाली को प्रभावित कर सकते हैं अथवा नहीं।
गोल्डस्टीन ने अपने मरीज़ों को लाल और हरे रंग की अलग-अलग वस्तुओं को देखने को कहा और देखा कि इसका उनके लक्षणों, जैसे संतुलन की समस्या और कपकपी, आदि पर क्या प्रभाव पड़ता है। अपने इस परीक्षण में उन्होंने पाया कि लाल रंग उनके लक्षणों को बढ़ाता हुआ प्रतीत हुआ, जबकि हरे रंग ने उनके लक्षणों को कम किया और उनके समग्र तंत्रिका तंत्र की कार्यप्रणाली में सुधार किया।
गोल्डस्टीन ने अनुमान लगाया कि लाल रंग एक उत्तेजक होने के कारण तंत्रिका तंत्र प्रणाली को उत्तेजित करता है, जबकि हरा रंग एक शांत रंग होने के कारण इसमें सुधार कर सकता है। हालांकि गोल्डस्टीन की रंग परिकल्पना को अन्य शोधकर्ताओं द्वारा मान्य नहीं किया जा सका। फिर भी, गोल्डस्टीन के अध्ययनों का आधुनिक रंग मनोविज्ञान पर गहरा प्रभाव पड़ा। इसने इस विचार को लोकप्रिय बनाया कि रंग शारीरिक प्रतिक्रियाएँ पैदा कर सकते हैं, जो आज भी शोध का विषय है।
क्या आप जानते हैं कि जिस विषय पर आज के वैज्ञानिक शोध कर रहे हैं और अभी भी भ्रमित है उस विषय पर हमारे भारतीय दर्शन में, लगभग 500 ईसा पूर्व - 200 ईसा पूर्व में ही सिद्धांत व्यक्त किए जा चुके थे जब मुनि भरत ने अपने नाट्यशास्त्र में रस-भाव सिद्धांत को व्यक्त किया था।
भरत मुनि द्वारा संस्कृत भाषा में रचित ‘नाट्य शास्त्र’, प्रदर्शन कलाओं पर प्राचीन विश्वकोश ग्रंथ के रूप में आज भी एक उल्लेखनीय ग्रंथ माना जाता है। यह ग्रंथ अपने सौंदर्यवादी "रस" सिद्धांत के लिए विशेष रूप से उल्लेखनीय है, जिसके अनुसार मनोरंजन प्रदर्शन कलाओं का केवल एक वांछित प्रभाव है, लेकिन प्राथमिक लक्ष्य नहीं है। प्राथमिक लक्ष्य दर्शकों में आश्चर्य से भरी एक और समानांतर वास्तविकता में ले जाना है जहां वे अपनी चेतना के सार का अनुभव करते हैं, और आध्यात्मिक और नैतिक प्रश्नों पर विचार करते हैं। भारत में नृत्य, संगीत और साहित्यिक परंपराओं पर इस ग्रंथ में निहित विचारों का प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से देखा जा सकता है।
कला और साहित्य की दुनिया में नाट्यशास्त्र में प्रतिपादित नवरस, जो नौ भावनाओं के प्रतीक हैं, की अवधारणा भारतीय संस्कृति का एक उत्कृष्ट योगदान है। नवरस के इस विचार ने भारतीय संस्कृति में शास्त्रीय कला के सभी रूपों को अत्यधिक प्रभावित किया है। सामान्यतः रस नौ प्रकार के होते हैं और इन्हें सामूहिक रूप से नवरस कहा जाता है। नाट्यशास्त्र में भरत मुनि बताते हैं कि, मनुष्य परिस्थितियों के अनुरूप प्रतिक्रिया के रूप में नौ भावनाएँ व्यक्त करता है। नाट्यशास्त्र के अनुसार, प्रत्येक रस का एक इष्टदेव और एक विशिष्ट रंग होता है। ये नौ भावनाएँ हैं: श्रृंगार (प्रेम), भय (आतंक), हास्य (हँसी), करुणा (दयालुता और करुणा), रौद्र (क्रोध), वीर (साहस), भीभत्स्य (घृणा), अदबुथा (आश्चर्य), और शांता (शांति )। नाट्यशास्त्र में प्रत्येक रस की पहचान उसके अनुरूप भाव या मनोदशा से की जाती है।
नाट्यशास्त्र में, इन सभी नौ भावनाओं को रंगों से जोड़ा गया है जो सभी भावनाओं या रसों को दर्शाते हैं। नाट्यशास्त्र में बताए गए प्रत्येक भावना को दर्शाने वाले नौ रंग निम्नलिखित हैं:
➼ हरा - श्रृंगार रस,
➼ सफेद - हास्य रस,
➼ सलेटी (Gray) - करुणा रस,
➼ लाल - रौद्र रस,
➼ नारंगी - वीर रस,
➼ काला - भय रस,
➼ नीला - भीभत्स्य रस,
➼ पीला - अद्बुथा रस और
➼ सफेद - शांत रस
नाट्यशास्त्र के अनुसार, डरे हुए व्यक्ति की आभा काली होती है और क्रोधित व्यक्ति की आभा लाल होती है।
संदर्भ
https://shorturl.at/bDKRU
https://shorturl.at/duBDT
https://shorturl.at/cnEF6
https://shorturl.at/dqyzG
https://shorturl.at/iMVY7
चित्र संदर्भ
1. रचनात्मक दिमाग़ को संदर्भित करता एक चित्रण (Wallpaper Flare)
2. दिमाग़ में घूम रहे रंगों को संदर्भित करता एक चित्रण (Needpix)
3. रंगों के मानसिक प्रभाव को संदर्भित करता एक चित्रण (Blanca Lanaspa)
4. नाट्य शास्त्र के नौ भावों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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