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प्रथम विश्व युद्ध के बाद, ‘एका आंदोलन’ हमारे औपनिवेशिक भारत में भड़के कुछ किसान विद्रोहों की श्रृंखला का एक हिस्सा था। हमारे राज्य उत्तर प्रदेश में यह विद्रोह, गिरमिटिया मजदूर– बाबा रामचन्द्र के नेतृत्व में शुरू हुआ था। स्वतंत्रता आंदोलन के समय, रामचन्द्र देश के असहयोग और खिलाफत आंदोलन की पृष्ठभूमि में काम कर रहे थे।
इस विद्रोह के कारण, अवध क्षेत्र की अत्यधिक शोषणकारी कृषि संरचना में अंतर्निहित थे। इसमें तालुकदारों (जमीन और गांवों के बड़े भूभाग के कुलीन वंशानुगत मालिक) और जमींदारों का वर्चस्व था, जो आमतौर पर ‘उच्च’ जाति के हिंदू या मुस्लिम लोग थे। उन्होंने किराएदार कृषकों को पट्टे पर ज़मीन दी थी, और औपनिवेशिक राज्य के लिए भू-राजस्व इकट्ठा करने हेतु, उनसे भारी लगान और कई अतिरिक्त शुल्क वसूला था। एक तरफ, किरायेदारों ने खेतों पर काम करने के लिए, खेतिहर मजदूरों को नियुक्त किया था।लेकिन, जिस ज़मीन पर वे खेती करते थे, उस पर उनका खुद का कोई मालिकाना अधिकार नहीं था।और, अगर वे किराया देने में विफल रहते थे, तो जमींदारों द्वारा उन्हें बाहर निकाल दिया जाता था। छोटे जमींदार जो भारी भू-राजस्व की मांग के कारण, ब्रिटिश सरकार से निराश थे, वे भी इस आंदोलन का हिस्सा थे।
प्रथम विश्व युद्ध, स्पैनिश फ्लू(Spanish flu), छह साल के सूखे, मूल्य वृद्धि और खाद्यान्न और ईंधन की कमी की वजह से, 1910 के दशक के अंत में, इस कृषि संरचना से उत्पन्न कृषि और आर्थिक संकट चरम सीमा पर पहुंच गया था। ये सभी कारक, संस्थागत तथा अनौपचारिक शोषण प्रथाओं के विभिन्न रूपों के साथ संयुक्त भी थे।परिणामस्वरुप, अवध के किसानों और मज़दूरों में व्यापक आक्रोश फैल गया, जिनमें से अधिकांश मज़दूर एवं किसान पिछड़े और दलित थे।
बाबा रामचन्द्र के नेतृत्व में, किसान सभा आंदोलन मूलतः बड़े जमींदारों और तालुकदारों के विरुद्ध, काश्तकार और छोटे जमींदारों का आंदोलन था।इस आंदोलन में, एक 14 मांग-सह-शपथ घोषणापत्र विकसित किया गया था, जिसे ‘किसान प्रतिज्ञा’ के नाम से जाना जाता है। इसमें प्रत्येक भागीदार से शपथ लेने की अपेक्षा की जाती थी। हालांकि, इस आंदोलन की तीव्रता बाबा रामचन्द्र की गिरफ्तारी के साथ, कम हो गई। परंतु, बाद में,या एका आंदोलन के रूप में पुनर्जीवित हुआ।
एका आंदोलन की बैठकों को, एक धार्मिक अनुष्ठान द्वारा चिह्नित किया गया था, जिसमें, गंगा नदी का प्रतिनिधित्व करने वाला एक गड्ढा ज़मीन में खोदा गया था, और इसे पानी से भर दिया गया था। एक पुजारी को इसकी अध्यक्षता करने हेतु, लाया गया था और इकट्ठे हुए किसानों ने विभिन्न प्रतिज्ञा ली थी।
‘एका या एकता आंदोलन’ मदारी पासी, ख्वाजा अहमद और अन्य लोगों द्वारा, 1921 के अंत में हमारे राज्य के हरदोई ज़िले में शुरू किया गया था, जहां से यह बहराईच, उन्नाव,कानपुर और हमारे ज़िले लखनऊ जैसे अन्य ज़िलों में फैल गया। एका आयोजकों ने किसान सभा की प्रतिज्ञा को अपनाया।लेकिन, इसमें बहुत महत्वपूर्ण बदलाव हुए थे। जिसने इसे अधिक कट्टरपंथी स्वर दिया।
बाबा रामचन्द्र के नेतृत्व में सबसे पहले, यह आंदोलन मुख्यतः नैतिक-आर्थिक प्रकृति का था, और किसानों के पारंपरिक ग्रामीण जगत के भीतर था। किसान सभा चरण में, इस किसान आंदोलन ने एक पारंपरिक नैतिक अर्थव्यवस्था की कल्पना की थी, जहां कृषि समाज की पारंपरिक संरचना में अंतर्निहित असमानता को स्वीकार किया गया था और ज़मींदार को एक वैध प्राधिकारी के रूप में देखा गया था।हालांकि, एका आयोजकों के हाथों में यह परंपरावाद टूटने लगा,क्योंकि, तालुकदारों और ज़मींदारों पर न केवल आर्थिक बल्कि सामाजिक रूप से भी हमले होने लगे।
पूर्व आंदोलन से, दूसरा विचलन, आंदोलन का आर्थिक से राजनीतिक विस्तार था। असहयोग आंदोलन से प्रेरित होकर, एका आयोजकों ने मूल घोषणापत्र में तीन महत्वपूर्ण मांगें जोड़ीं। इनमें, स्व-शासन के लिए लड़ाई; स्वदेशी चीज़ों को अपनाना और बढ़ावा देना; तथा, ब्रिटिश न्यायिक प्रणाली से बचने और स्थानीय पंचायत स्तर पर सभी विवादों के समाधान की प्रतिज्ञा, शामिल थे।
आंदोलन के प्रारंभिक चरण में, यह काफी हद तक शांतिपूर्ण था,एवं कांग्रेस और खिलाफत प्रचारकों की भागीदारी के कारण, गांधीवादी विचारधारा के दायरे में काम करता था। एका ने अपनी मांगों को मनवाने हेतु, सामाजिक बहिष्कार (सफाई करने वालों तथा नाई और धोबियों ने जमींदारों और तालुकेदारों को अपनी सेवाएं बंद कर दीं), धरना और सामूहिक रैलियां आयोजित करने की समय-परीक्षित पद्धति को अपनाया। लेकिन, जैसे ही इस आंदोलन ने उग्र रुख अपनाया और तालुकदार और जमींदार हिंसा का आक्रामक रूप से विरोध करना शुरू कर दिया, कांग्रेस और खिलाफत नेताओं ने खुद को इससे दूर कर लिया, और आंदोलन पूरी तरह से कांग्रेस-खिलाफत के प्रभाव से अलग हो गया।
आंदोलन के हिंसक मोड़ के कारण, समर्थकों की हानि और कांग्रेस के समर्थन की वजह से, औपनिवेशिक अधिकारियों के लिए, इस आंदोलन को दबाना आसान हो गया।अतः मार्च 1922 तक, अधिकारियों द्वारा गंभीर दमन के कारण, एका आंदोलन समाप्त हो गया।
जबकि, एका आंदोलन की विफलता का कारण, उचित संगठन एवं नेतृत्व का अभाव है।फिर भी, इसने सरकार को कृषि स्थिति की गंभीरता का एहसास कराने के उद्देश्य को पूरा किया। इससे सीख लेकर, सरकार ने तुरंत ही 1921 का अवध किराया (संशोधन) अधिनियम प्रस्तुत किया, जो नवंबर 1921 में लागू हुआ। यह अधिनियम कृषि अशांति को रोकने और किसानों की कुछ तत्काल शिकायतों का निवारण करने के लिए बनाया गया था।
संदर्भ
http://tinyurl.com/y2jxujym
http://tinyurl.com/5xt45yzs
http://tinyurl.com/5yx4367h
चित्र संदर्भ
1. एका आंदोलन को संदर्भित करता एक चित्रण (DeviantArt)
2. खेत में काम करते भारतीय किसानों को संदर्भित करता एक चित्रण (Rawpixel)
3. गधे के साथ चलते किसान को संदर्भित करता एक चित्रण (Needpix)
4. महिला किसान आंदोलनकारियों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. एका आंदोलन के लेखन को संदर्भित करता एक चित्रण (prarang)