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जिस प्रकार मिट्टी के बर्तन अपनी प्रारंभिक अवस्था में मिट्टी ही होते हैं, उसी प्रकार हिंदी भाषा भी शुरुआती अवस्था में आधुनिक पूर्ण हिंदी नहीं थी। हिंदी की इसी बिखरी हुई या यूं कहें कि कच्ची अवस्था को ही "अपभ्रंश" कहा जाता है। "अपभ्रंश" छठी और 13वीं शताब्दी ईस्वी के बीच उत्तर भारत में बोली जाने वाली भाषाओं का एक समूह था। इसे पुरानी संस्कृत भाषा तथा हिंदी और उर्दू जैसी आधुनिक इंडो-आर्यन भाषाओं के बीच विकास का पहला चरण माना जाता है। संस्कृत में अपभ्रंश का अर्थ "भ्रष्ट" या "गैर-व्याकरणिक" होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अपभ्रंश संस्कृत के मानक व्याकरण से भटक गया था। हालांकि, इसके बावजूद भी, अपभ्रंश को भाषाओं का एक समृद्ध और विविध समूह माना जाता है, जिसने उत्तर भारतीय भाषाओं के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भाषावैज्ञानिक, अपभ्रंश को भारतीय आर्यभाषा के मध्यकाल की अंतिम अवस्था मानते हैं, जो कि प्राकृत और आधुनिक भाषाओं के बीच की स्थिति है। चौथी से आठवीं शताब्दी तक उत्तर भारत में बोली जाने वाली स्थानीय भाषाओं के एक समूह को "प्राकृत" नाम से जाना जाता था। आगे चलकर यही भाषाएँ अपभ्रंश बोलियों में विकसित हुईं, जिनका उपयोग लगभग 13वीं शताब्दी तक किया जाता है। अंततः यही अपभ्रंश बोलियाँ, हिंदी, उर्दू और मराठी जैसी आधुनिक इंडो-आर्यन भाषाओं में बदल गईं।
यानी धीरे-धीरे समय के साथ प्राकृत से अपभ्रंश और फिर अपभ्रंश से आधुनिक इंडो-आर्यन भाषाओं का विकास हुआ। हालांकि इन अवधियों के बीच की सीमाएं स्पष्ट नहीं हैं। आधुनिक उत्तर भारतीय भाषाओं को 11वीं शताब्दी के आसपास अपनी विशिष्ट पहचान मिलनी शुरू हुई थी। हालांकि अपभ्रंश बोलियाँ अभी भी उपयोग में थीं। 12वीं शताब्दी के अंत तक, आधुनिक इंडो-आर्यन भाषाएँ अपभ्रंश से पूरी तरह अलग हो गई थीं।
आज अपभ्रंश साहित्य के अभिलेखों को अधिकांशतः जैन पुस्तकालयों में ही देखा जा सकता है। हालंकि खासकर हिंदू राजाओं द्वारा शासित क्षेत्रों में कुछ कवियों ने हिंदी और उर्दू जैसी भाषाओं के उभरने के बाद भी अपभ्रंश में लिखना जारी रखा।
कालिदास द्वारा विरचित विक्रमोर्वशीयम् को अपभ्रंश के सबसे शुरुआती उदाहरणों में से एक माना जाता है। यहां तक की 18वीं शताब्दी तक भी अपभ्रंश का प्रयोग होता रहा, जिसका उदाहरण हमें भगवतीदास द्वारा रचित "मिगनकलेहा चारिउ" में मिलता है। एक मुस्लिम द्वारा लिखित अपभ्रंश की पहली ज्ञात कृति मुल्तान के अब्दुर्रहमान की “संदेसरासक” को माना जाता है, जिसे लगभग 1000 ई. में लिखा गया था। इसकी रचना के समय को लेकर अलग-अलग कवियों और लेखकों के अलग-अलग मत हैं। उदाहरण के तौर पर डॉ. सूर्य प्रसाद दीक्षित इसे 10वीं शताब्दी की रचना मानते हैं जबकि डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार, इसे 11वीं शताब्दी में रचा गया था। हालांकि अधिकांश प्रमाणों की दृष्टि से इसकी रचना 11वीं शती में ही हुई थी। इसे अपभ्रंश साहित्य का एक महत्वपूर्ण कार्य माना जाता है। इस पुस्तक की पांडुलिपियाँ जैन पुस्तकालयों में मुनि जिन विजय द्वारा खोजी गई थीं। मुनि जिन विजय के अनुसार, यह रचना 1192 में गोरी की विजय से पहले लिखी गई थी। उस दौरान मुल्तान एक प्रमुख हिन्दू तीर्थ स्थल हुआ करता था। यह महाकाव्य कालिदास की मेघदूत नामक कृति से प्रेरित है। तीन प्रक्रमों और 223 छंदों में विभाजित इस छोटी-सी रचना में स्त्री के हृदय की व्याकुलता, अभिलाषा, दर्प, समर्पण इत्यादि का पूरे रस के साथ वर्णन किया गया है।
इसमें लेखक ने एक ऐसी अभिव्यक्ति का उपयोग करके भगवान का आह्वान किया जो हिंदू और मुस्लिम दृष्टिकोण को आपस में जोड़ती है:
मानुस्सदुव्वविज्जाहरेहिं न्हमग्गि सूर ससिंबे।
अहिं जो नमिज्जै तं न्यारे नमः कतारं।
अर्थात: लोगों, उस निर्माता को नमन करो जिसको मनुष्य, देवता, विद्याधर, सूर्य और चन्द्रमा नमस्कार करते हैं।
संदेशरासक को अपभ्रंश में एक मुस्लिम द्वारा लिखी गई एकमात्र कृति माना जाता है। इसे बाबा फरीद और जायसी की पद्मावत जैसी पुस्तकों से भी पहले रचा गया है।
यह ऐसी पहली पुस्तक है जो रामायण पर आधारित किसी स्थानीय भाषा की कृति का उल्लेख करती है। 'संदेश रासक' एक विरह काव्य है। इसे प्रबंध-काव्य, खंड-काव्य, दूत-काव्य और विप्रलंभ श्रृंगार काव्य के नाम से भी जाना जाता है। कई विद्वान इसे प्रथम नाट्यकृति और गीतिनाट्य भी मानते हैं। प्रसिद्ध लेखक डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी इस कृति पर अपनी टिप्पणी देते हुए कहते हैं कि ''इस संदेश रासक में ऐसी करुणा है जो पाठक को बरबस ही आकर्षित कर लेती है।"
संदर्भ
https://tinyurl.com/svrc893e
https://tinyurl.com/ycxffckv
https://tinyurl.com/2nh6mxf9
चित्र संदर्भ
1. जैन अभिलेखों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. अपभ्रंश लेखन को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
3. अपभ्रंश व्याकरण की पुस्तक को दर्शाता एक चित्रण (Flipkart)
4. संदेसरासक नामक पुस्तक को दर्शाता एक चित्रण (amazon)
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