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पूरी दुनियां में फैले अज्ञान, दुःख और पीड़ा ने सिखों के प्रथम गुरु, “नानक देव जी” के हृदय को द्रवित कर दिया। दुनियां में फैले इस संताप एवं अज्ञानता के अंधकार को दूर करने के लिए उन्होंने लोगों में "ईश्वर के वास्तविक संदेश" को प्रचारित करने की ठान ली। उनके समय में पादरियों, पंडितों, काज़ियों और मौलानाओं आदि धर्म गुरुओं ने आम लोगों के बीच ईश्वर का बंटवारा करके, लोगों को भ्रमित कर दिया था। वह लोगों के इसी भ्रम को दूर करने और जनता तक अपना संदेश पहुँचाने के लिए दृढ़ निश्चय ले चुके थे। इसी उद्देश्य से उन्होंने 1499 में संपूर्ण मानव जाति में शांति और करुणा का पवित्र संदेश फैलाने के लिए एक पवित्र यात्रा शुरू की।
आपको जानकर हैरानी होगी कि "गुरु नानक को दुनिया में दूसरा सबसे अधिक यात्रा करने वाला व्यक्ति माना जाता है।" सबसे अधिक यात्रा करने वाले व्यक्ति का रिकॉर्ड, मोरक्को के इब्न बतूता के नाम है। गुरु नानक ने अपनी अधिकांश यात्राएँ अपने जिगरी मुस्लिम साथी “मरदाना” के साथ पैदल ही तय की थीं। मरदाना उनके साथ संगीत की धुनें बजाते हुए चलते थे। गुरु नानक के मित्र और साथी भाई मर्दाना 'रबाब ' नामक संगीत वाद्ययंत्र बजाते थे। गुरबानी के संगीत में उनकी गहरी छाप नजर आती है। उन्होंने 1500 से 1524 की अवधि के दौरान पूरब, पश्चिम और उत्तर से लेकर दक्षिण तक, चारों दिशाओं की यात्रा की। माना जाता है कि उन्होंने दुनिया की यात्रा करते हुए “28,000 किलोमीटर” की दूरी तय कर ली थी।
अपनी यात्रा में उन्होंने सभी धर्मों तथा पृष्ठभूमि के लोगों से मुलाकात की। उन्होंने मानव जाति के लिए सत्य, प्रेम, शांति और आनंद की मशाल जलाई। 1 वर्ष तक उन्होंने अपने घर और आसपास के लोगों के बीच शांति, करुणा, धार्मिकता और सच्चाई का संदेश फैलाया। मुख्य रूप से वह भारत, श्रीलंका, मक्का, बगदाद और चीन सहित दुनियां के कई अलग-अलग स्थानों पर, पांच लंबी यात्राओं पर गए। इन यात्राओं को करने का एक प्रमुख लक्ष्य “परम सत्य का ज्ञान प्राप्त करना भी था।” समाज के उत्थान के लिए की गई गुरु नानक की इन यात्राओं को “उदासी” के नाम से जाना जाता है। उदासी शब्द का अर्थ “छुट्टी लेना या चले जाना” होता है। इसके अतिरिक्त यह शब्द “निराशा” को भी संदर्भित कर सकता है।
चलिए अब उन प्रमुख यात्राओं (उदासियों) के क्षेत्रों और समय अवधि के बारे में जानते हैं:
1. गुरु नानक देव जी की पहली उदासी (1500-1506 ई.): अपनी पहली उदासी (यात्रा) में, गुरु नानक ने भारत के पूर्व की ओर यात्रा की और लगभग छह साल बिताने के बाद वापस घर लौट आए। 1500 में अपनी यात्रा पर निकलने से पहले, वह अपने माता-पिता को अपनी योजनाओं के बारे में बताने के लिए अपने गृहनगर तलवंडी गए। उनके माता-पिता बूढ़े हो चुके थे, इसलिए वे चाहते थे कि उनका बेटा उनके साथ ही रहे। उनके माता-पिता बुढ़ापे में उनसे सहारे और देखभाल की अपेक्षा कर रहे थे। लेकिन गुरु नानक ने अपने उद्देश्य को ही सर्वोपरि रखा। उनका मानना था कि “दुनियां में ऐसे लाखों लोग हैं, जिन्हें उनकी सहायता, उनके प्रेम और उनके आध्यात्मिक मार्गदर्शन की आवश्यकता है।” गुरु नानक जी ने अपने माता-पिता को आश्वस्त किया और कहा कि “दुनियां में ऐसे हजारों लोग हैं जो शांति, प्रेम और मोक्ष के लिए एक सच्चे गुरु की प्रतीक्षा कर रहे हैं। गुरु नानक ने अपने माता-पिता से कहा कि " उच्च शक्तियों से एक बुलावा है, मुझे अवश्य जाना होगा और मैं आपका आशीर्वाद चाहता हूँ।" अंततः उनके माता पिता भी सहमत हो गए और गुरु नानक देव जी अपनी पांच यात्राओं में से पहली यात्रा पर निकल पड़े। उनकी पहली यात्रा (1500-1506 ई.) लगभग 7 वर्षों तक चली। 31-37 वर्ष की आयु में गुरु नानक ने सुल्तानपुर, तुलम्बा, पानीपत, दिल्ली, बनारस (वाराणसी), नानकमत्ता, टांडा वंजारा, कामरूप, सैदपुर (अब एमिनाबाद, पाकिस्तान), पसरूर (पाकिस्तान), और सियालकोट (पाकिस्तान) आदि स्थलों का दौरा किया।
2. गुरु नानक देव जी की दूसरी उदासी: (1506-1513 ई.): लगभग 7 वर्षों तक चली उनकी दूसरी यात्रा का मुख्य उद्देश्य “सभी लोगों के बीच शांति, करुणा और एकता का संदेश फैलाना था।” गुरु नानक देव जी ने उस समय के हिंदू साधकों की भांति, आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए, अपने सांसारिक जीवन का त्याग कर दिया। हालाँकि, उनका दृष्टिकोण थोड़ा अलग था। उन्होंने साधु बनकर पहाड़ों और जंगलों में जाने के बजाय, यात्रा करके, ज्ञान का प्रकाश फैलाने का विकल्प चुना। उन्होंने लोगों को यह भी सिखाया कि ईश्वर का अस्तित्व केवल अनुष्ठानों और मूर्ति पूजा तक ही सीमित नहीं है। अपनी इस दूसरी यात्रा के दौरान, गुरु नानक देव जी ने विभिन्न धर्मों (जैन, हिंदू, शैव, वैष्णव, कृष्ण भगत और मुस्लिम) के कई अध्यात्मिक गुरुओं से मुलाकात की। इस मुलाकात में उन्होंने उनकी मान्यताओं को समझा तथा अपनी मान्यताओं को उनके साथ साझा किया। उन्होंने भगत नामदेव और भगत पीपा के भजनों का संग्रह भी किया, जिससे उनका आध्यात्मिक ज्ञान और अधिक समृद्ध हुआ। गुरु नानक देव जी ने दक्षिणी भारत में, मूर्ति पूजा (विशेषकर भगवान शिव) की व्यापक प्रथा देखी। उन्होंने यहां पर प्रचलित जाति व्यवस्था का भी अवलोकन किया। यहां पर भी उन्होंने शाश्वत सत्य के मार्ग का प्रचार किया तथा सर्वशक्तिमान और निराकार की पूजा पर जोर दिया।
3. गुरु नानक देव जी की तीसरी उदासी: (1514-1518 ई.): लगभग पांच वर्षों तक चली अपनी तीसरी उदासी के तहत उन्होंने अपने साथी मरदाना के साथ उत्तर की ओर प्रस्थान किया। अपनी तीसरी यात्रा के दौरान गुरु नानक जी सबसे पहले श्रीनगर में रुके। वहां उनकी मुलाकात कमल नाम के एक मुस्लिम दरवेश और ब्रह्म दास नामक एक हिंदू पंडित से हुई। ऐसा कहा जाता है कि ब्रह्म दास बहुत अहंकारी व्यक्ति थे। उनके पास हमेशा तीन ऊँट होते थे ,जो उनके द्वारा पढ़े गए पुराने ग्रंथों को ढोते थे। उन्हें अन्य पंडितों के साथ लंबी बहस करना पसंद था। लेकिन गुरु नानक जी ने अपने ज्ञान और तर्क से ब्रह्म दास के अहंकार को भी शून्य कर दिया। जिसके बाद ब्रह्म दास भी उनके दास बन गए। श्रीनगर छोड़कर, गुरु नानक ने हिमालयी क्षेत्रों में प्रवेश किया और तिब्बत की ओर यात्रा की। तीसरी उदासी के दौरान उन्होंने मानसरोवर, उत्तराखंड, तिब्बत, चीन, लद्दाख, जम्मू और कश्मीर का भी दौरा किया।
4. गुरु नानक देव जी की चौथी उदासी: (1519 से 1521 ई.): गुरु नानक देव जी की चौथी उदासी, या आध्यात्मिक यात्रा, 1519 से 1521 तक हुई और पश्चिम की ओर चली।
जिसमें उन्होंने कई स्थानों का दौरा किया
1) मुल्तान, लखपत, कराची
2) अद्दान, जेद्दा, मक्का, मदीना
3) बगदाद, बसरा, कर्बला
4) बुशहर, खोर्रामशाहर
5) तेहरान, अश्गाबात, बुखारा, समरकंद
6) कंधार, काबुल, हसन अब्दाल, जलालाबाद
7) उनके तुर्की, अजरबैजान, अफ्रीका और रोम जाने के भी रिकॉर्ड हैं।
5. गुरु नानक देव जी की पांचवी उदासी: (1523 से 1524): इसमें गुरु नानक ने पंजाब प्रांत के भीतर यात्रा की और करतारपुर में अपने घर के पास कई स्थानों का दौरा किया। अपनी इस यात्रा में उनकी मुलाकात भाई बुद्ध नाम के एक युवा लड़के से भी हुई, जो अपनी उम्र से कहीं अधिक बुद्धिमान थे। भाई बुद्ध गुरु नानक के करीबी साथी बन गए और अंततः उन्हें उनके उत्तराधिकारियों में से एक नियुक्त किया गया। सभी उदासियों के दौरान गुरु नानक ने अपने सन्देश का प्रचार किया और बहुत से लोग उनके अनुयायी बनते गये। इन अनुयायियों ने उनके सम्मान में, सिखों के लिए पूजा स्थलों, गुरुद्वारों का निर्माण किया।
संदर्भ
https://tinyurl.com/2aba3dh7
https://tinyurl.com/2p8sefu8
https://tinyurl.com/2b752c8a
https://tinyurl.com/jnevjbdw
https://tinyurl.com/34z92azy
https://tinyurl.com/yprfan5m
चित्र संदर्भ
1. संतों को उपदेश देते गुरु नानक देव जी को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. गुरु नानक द्वारा तय की गई चार उदासियाँ और अन्य स्थानों को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
3. मरदाना और गुरु नानक को दर्शाता एक चित्रण (PICRYL)
4. गोरखनाथ के गणों और गुरु नानक को दर्शाता एक चित्रण (Collections - GetArchive)
5. मक्का में गुरु नानक की यात्रा को दर्शाता एक चित्रण (PICRY)
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