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अभी, पिछले रविवार अर्थात 19 नवंबर को हमारे शहर लखनऊ के लक्ष्मण मेला मैदान में, गोमती नदी के तट पर, बेहतरीन पोशाक पहने और दउरा(फलों और सब्जियों की टोकरियां) लेकर असंख्य लोग एकत्र हुए थे।दरअसल, जैसा कि हम जानते ही हैं, वह ‘छठ पूजा’ का त्योहार था।अतः ‘जय छठी मैया’ का जाप करते हुए,लोग बड़ी संख्या में शहर भर में, गोमती नदी के तटों पर एकत्र हुए थे।
कुछ लोगों ने अपने निकट स्थित उद्यानों के तालाबों पर भी, इस उत्सव में भाग लिया था। महिलाएं अपने घुटनों तक गहरे पानी में खड़ी रहीं थी। और, सूर्य को अर्घ्य देने के बाद,वे एक-दूसरे को सिंदूर भी लगा रही थी।जबकि, बच्चों और युवाओं ने ढोल की लयबद्ध थाप पर नृत्य किया। महिलाओं ने 36 घंटों काअपना उपवास जारी रखा, जो सोमवार को उषा अर्घ्य के साथ समाप्त हुआ।लोग समूहों में बैठे थे, और पूरी शाम लोक गीत गाते रहे।युवा और वृद्ध दोनों भक्त, पूजा के लिए खुले मैदान में रात बिताने के लिए तैयार थे।
लक्ष्मण मेला मैदान में हमारे राज्य उत्तर प्रदेश से एवं राज्य के बाहर से भी, लाखों लोग जमा हुए थे। यहां बिहार से कुछ युवा माताएं अपने नवजात बच्चों को लेकर आईं थी, और उन्हें छोटी उम्र से ही सांस्कृतिक परंपराओं से परिचित कराने के महत्व पर उन्होंने जोर दिया।
प्रार्थना व पूजा करने के अलावा, भक्तों को कार्यक्रम स्थल पर बड़े उत्सव में शामिल होने का भी अवसर मिला, जिसमें एक समवर्ती संगीत कार्यक्रम शामिल था। यह कार्यक्रम, छठ घाट पर हमारे मुख्यमंत्री, श्री योगी आदित्यनाथ जी की उपस्थिति में शुरु हुआ था।यहां लगे मेले ने युवा श्रद्धालुओं के लिए बहुत जरूरी व्याकुलता प्रदान की थी।क्या आप वहां होकर आए हैं?
साज श्रृंगार किए हुए, महिलाएं ठंड से बेपरवाह होकर गोमती नदी के तट पर पूजा-अर्चना कर रही थीं। परंपरा और आधुनिक मनोरंजन के मिश्रण वाले इस मेले में, वार्षिक आगंतुकों तथा यहां पहली बार आने वाले लोगों को भी, सूर्यास्त से पहले पानी में डुबकी लगाते देखा गया। जबकि, बड़े लोगों की प्रार्थनाएं पूरी होने के बाद, बच्चे खुशी-खुशी नदी के किनारे खेलने एवं घूमने लगे।
कहा जाता है कि, छठ पूजा की रस्में प्राचीन काल से ही चली आ रही हैं। प्राचीन वेदों में भी इसका उल्लेख मिलता है, क्योंकि ऋग्वेद में भगवान सूर्य की आराधना करने वाले भजन हैं और इसी तरह के कुछ रीति-रिवाजों का उदाहरण भी दिया गया है। छठ पूजा का योग से सम्बन्ध या वैज्ञानिक इतिहास, वैदिक काल से है। उस समय ऋषि-मुनि बाहरी भोजन के बिना जीवित रहने के लिए, इस पद्धति का उपयोग करते थे और सूर्य के प्रकाश से ऊर्जा प्राप्त करने में सक्षम थे।
इस प्रथा का संदर्भ संस्कृत महाकाव्य महाभारत में भी मिलता है, जिसमें द्रौपदी को इन्हीं अनुष्ठानों का पालन करते हुए वर्णित किया गया है।संदर्भ के अनुसार, द्रौपदी और पांडवों ने महान ऋषि धौम्य की सिफारिश पर छठ पूजा की रस्में निभाईं थी। भगवान सूर्य की आराधना के साथ, द्रौपदी अपनी सभी परेशानियों से बाहर निकल पाई, बल्कि, बाद में, पांडवों को अपना खोया हुआ राज्य भी वापस मिला।
छठ पूजा के महत्व को दर्शाता एक और इतिहास भगवान राम की कहानी है। माना जाता है कि, 14 साल के वनवास से अयोध्या लौटने के बाद, अपने राज्याभिषेक के दौरान भगवान राम और माता सीता ने कार्तिक महीने(अक्तूबर–दिसंबर) के शुक्ल पक्ष में, एक साथ उपवास रखा था और भगवान सूर्य की पूजा की थी। तब से, छठ पूजा हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण और पारंपरिक त्योहार बन गया है।
छठ पूजा ऐतिहासिक रूप से, भारतीय उपमहाद्वीप का मूल त्योहार है। इसे विशेष रूप से, बिहार, उत्तर प्रदेश तथा झारखंड जैसे भारतीय राज्यों एवं कोशी, मधेश तथा लुंबिनी जैसे नेपाली स्वायत्त प्रांतों में मनाया जाता हैं।यह उन क्षेत्रों में भी प्रचलित है, जहां इन क्षेत्रों के प्रवासी और मूल लोगों की उपस्थिति है। यह सभी उत्तरी क्षेत्रों और दिल्ली जैसे प्रमुख उत्तर भारतीय शहरी केंद्रों में मनाया जाता है। साथ ही, मुंबई और काठमांडू घाटी में भी लाखों लोग इसे मनाते हैं।
छठ पूजा के दौरान सूर्य को प्रार्थनाएं समर्पित की जाती हैं, ताकि पृथ्वी पर जीवन की प्रचुरता प्रदान करने के लिए, उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त की जा सके और कुछ इच्छाएं पूरी करने हेतु, अनुरोध किया जा सके।
इस त्योहार के दौरान, प्रकृति के छठे रूप एवं सूर्य की बहन– ‘छठी मैया’ की भी पूजा की जाती है।यह दीपावली, या तिहार के छह दिन बाद,कार्तिक चंद्र महीने के छठे दिन मनाया जाता है, और इसलिए इसे ‘सूर्य षष्ठी व्रत’ भी कहा जाता है। यह अनुष्ठान चार दिनों तक मनाया जाता है, जिसमें पवित्र स्नान, उपवास और पीने के पानी से परहेज करना(व्रत), पानी में खड़ा होना, और डूबते तथा उगते सूर्य को प्रसाद(प्रार्थना प्रसाद) और अर्घ्य देना शामिल है। कुछ भक्त नदी तट की ओर जाते समय, साष्टांग भी करते हैं।
छठ पूजा की मुख्य उपासक, जिन्हें ‘पर्वैतिन’ कहा जाता है, आमतौर पर महिलाएं होती हैं। हालांकि, कई पुरुष भी इस त्योहार को मनाते हैं,क्योंकि,छठ पूजा कोई लिंग-विशिष्ट त्योहार नहीं है। पर्वैतिन अपने परिवार की भलाई एवं अपने बच्चों की समृद्धि के लिए प्रार्थना करती हैं।
सभी भक्त समान प्रसाद तैयार करते हैं। प्रसाद में ठेकुआ, खजुरिया, टिकरी, कसार और फल (मुख्य रूप से गन्ना, मौसंबी, नारियल, केला और कई अन्य मौसमी फल) शामिल होते हैं, जो बांस की छोटी टोकरियों में चढ़ाए जाते हैं। भोजन पूरी तरह से शाकाहारी होता है और बिना प्याज या लहसुन और नमक के पकाया जाता है।
क्या आप जानते हैं कि, पर्यावरणविदों का दावा है कि, छठ का त्योहार दुनिया के सबसे पर्यावरण-अनुकूल धार्मिक त्योहारों में से एक है? वैदिक ज्योतिष के अनुसार, छठी मैया या छठी माता, बच्चों को बीमारियों और समस्याओं से बचाती हैं और उन्हें लंबी उम्र और अच्छा स्वास्थ्य प्रदान करती हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/yc7948y3
https://tinyurl.com/4j6ds8x5
https://tinyurl.com/27w2r3yn
https://tinyurl.com/3tas2ypb
चित्र संदर्भ
1. छट पूजा के दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
2. छट पूजा की तैयारियों को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
3. छट पूजा पर सूर्य नमन को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
4. सूर्य को पूजा की थाल भेंट करती महिला को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
5. छट पूजा के प्रसाद को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)