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भारत को मुद्रण का केंद्र बनाने में लखनऊ की क्या भूमिका रही है?

लखनऊ

 23-11-2023 10:09 AM
वास्तुकला 2 कार्यालय व कार्यप्रणाली

भारत में मुद्रण की तकनीक दुनिया के अन्य हिस्सों की तुलना में बहुत बाद में पेश की गई। भारतीय मुद्रण के इतिहास में हमारे लखनऊ ने भी अहम् योगदान दिया है। हम 20वीं सदी तक भी हस्तलिखित पांडुलिपियों पर ही निर्भर थे। हालांकि आज भारत में मुद्रण क्रांति को घटित हुए दो सौ साल से भी अधिक का समय हो चुका है। लेकिन इसके बावजूद भी, हमारे पास अपनी मुद्रण विरासत को संरक्षित करने और उसे प्रदर्शित करने के लिए पर्याप्त संख्या में "प्रिंट संग्रहालय" नहीं हैं। प्रिंट या मुद्रण संग्रहालय ऐसे स्थान होते हैं, जहां मुद्रण के इतिहास और प्रभाव को प्रदर्शित किया जाता है। मुद्रण संग्रहालय में हमारे द्वारा पढ़ी जाने वाली किताबों से लेकर हमारे द्वारा दैनिक रूप से उपयोग किए जाने वाले उत्पादों की पैकेजिंग पर छपाई के उदाहरण, दीवारों पर लगने वाले पोस्टर, ऐसी सब वस्तुएं देखने को मिल सकती है। मुद्रण की कहानी जोहान्स गुटेनबर्ग (Johannes Gutenberg) नामक एक सुनार से शुरू होती है, जिन्होंने 1450 के दशक में जर्मनी के मेंनज़ (Mainz) शहर में मुद्रण का आविष्कार किया था। लेकिन एशिया में मुद्रण का इतिहास इससे भी अधिक पुराना माना जाता है। क्या आप जानते हैं कि चीन में कागज और मुद्रण का इतिहास 2,000 वर्षों से अधिक पुराना माना जाता है। चीन से मुद्रण कला जापान और कोरिया तक फैल गई। यहां से मुद्रण की एक समृद्ध परंपरा भी विकसित हुई। जापानी लोग छपाई के लिए लकड़ी, मिट्टी या धातु से बने ब्लॉक और टाइप का उपयोग करते थे। 14 वीं शताब्दी तक, यह तकनीक संभवतः पश्चिम एशिया से होते हुए यूरोप तक पहुंच गई थी। यहाँ, 1440 के दशक में गुटेनबर्ग और उनके समकालीनों द्वारा इसे और अधिक परिष्कृत किया गया जिसे अब हम यांत्रिक लेटरप्रेस प्रिंटिंग (Mechanical Letterpress Printing) के रूप में जानते हैं। मुद्रण का यह रूप तेजी से पूरे यूरोप में फैल गया और लोगों के जीवन का अभिन्न अंग बन गया।
भारत में मुद्रण की शुरुआत 1556 में गोवा में स्थापित प्रिंटिंग प्रेस के साथ हुई। अगली दो शताब्दियों तक, मुद्रण धीरे-धीरे पूरे भारत में स्थापित होने लगा। बम्बई, कलकत्ता और मद्रास शहर, धीरे-धीरे भारत की मुद्रण राजधानी बन गए। 1850 के दशक तक, पुणे, दिल्ली, लखनऊ और अहमदाबाद जैसे अन्य शहर भी मुद्रण के केंद्र बन गए थे। उन्नीसवीं सदी के अंत तक, भारत दुनिया के सबसे बड़े प्रिंट बाजारों में से एक बन गया था। इस प्रकार 200 से अधिक वर्षों से, प्रिंट भारत में जीवन के हर पहलू का हिस्सा रहा है। हालांकि मुद्रण विरासत को संजो के रखने में भारत अभी भी बहुत पीछे है। भारत में मुद्रण के लिए समर्पित कुछ संग्रहालयों में कटक में मौजूद ओडिशा मुद्रण संग्रहालय भी है। इसमें मशीनरी का एक संग्रह है जो लेटरप्रेस (Letterpress) युग से लेकर फोटो टाइपसेटिंग (Phototypesetting) के युग तक के मुद्रण इतिहास को दर्शाता है। इस संग्रहालय की स्थापना तब की गई जब प्रेस का आधुनिकीकरण किया जा रहा था। संग्रहालय के अधीक्षक ने पुरानी मशीनों को कूड़े के रूप में बेचने के बजाय उन्हें बचाने का फैसला किया। हालाँकि, वर्तमान में कोई भी मशीन चालू नहीं है। अगर उल्लेखनीय मिशन प्रेस की बात की जाए तो इनमें मुंबई में अमेरिकन मिशन प्रेस (American Mission Press), कटक मिशन प्रेस (Cuttack Mission Press) और मैंगलोर में बेसल मिशन प्रेस (Basel Mission Press) शामिल हैं। हाल के वर्षों में इन मिशन प्रेसों की मुद्रण विरासत को संरक्षित करने के लिए कई प्रयास भी किए गए हैं। इन प्रयासों के बावजूद, भारत की अधिकांश मुद्रण विरासत खो रही है। हालांकि भारत में कुछ संग्रहालय हैं, जिनमें प्रिंट से संबंधित प्रदर्शनियां मौजूद हैं, लेकिन प्रिंट विरासत और प्रौद्योगिकी का प्रदर्शन अभी भी अपनी पूरी क्षमता तक नहीं पहुंच पाया है। हमारे लखनऊ के हज़रतगंज क्षेत्र में नवल किशोर प्रेस (Naval Kishore Press), को शहर की सांस्कृतिक पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। इस प्रेस को 1858 में मुंशी नवल किशोर द्वारा खोला गया था, जिन्हें "प्रिंट के राजकुमार (Prince Of Print)" के रूप में जाना जाता है। इस प्रेस ने 1857 के विद्रोह के बाद कई लोगों को आय का स्रोत प्रदान किया। किशोर परिवार के वंशजों द्वारा एक बार फिर से दो दशकों से अधिक समय से बंद पड़ी इस प्रेस को पुनर्स्थापित किया गया है। इसके ऐतिहासिक सार को संरक्षित करते हुए इसे आज की दुनिया के लिए आधुनिक बनाया जा रहा है। इस प्रेस, को अब "ले प्रेस (Le Press)" नाम दिया गया है।
साथ ही इस स्थान को वन-स्टॉप गंतव्य (One-Stop Destination) बनाने की कोशिश की जा रही है, जहां लोग आधुनिक तौर तरीकों से भोजन कर सकेंगे, खरीदारी कर सकेंगे और इतिहास का अनुभव कर सकेंगे। यहां पर पुरानी पांडुलिपियों, प्रिंटिंग मशीनों, लिथोस्टोन, टाइपकास्ट और प्रेस में प्रकाशित पुस्तकों को प्रदर्शित करने के लिए एक संग्रहालय भी स्थापित किया जाएगा। क्या आप जानते हैं कि लखनऊ की अमीर-उद-दौला लाइब्रेरी में मुंशी नवल किशोर को समर्पित एक कमरा भी है, जिसमें उनके काम और व्यक्तिगत वस्तुओं का प्रदर्शन किया गया है। इस पुस्तकालय में उनके कपड़े, किताबें और पुराने कागज़ात प्रदर्शित हैं, जिनमें उनके एक मित्र द्वारा उपहार में दी गई चीनी पोशाक भी शामिल है। इसमें प्रिंटिंग ब्लॉक (Printing Block) और 19वीं सदी के प्रेस में इस्तेमाल होने वाले अन्य उपकरण भी हैं। यह कमरा कई लोगों, विशेषकर छात्रों और पुस्तकालय में रूचि रखने वालों के बीच खूब प्रसिद्ध हो गया है।

संदर्भ
Https://Tinyurl.Com/Yfdxub44
Https://Tinyurl.Com/5n8wpde5
Https://Tinyurl.Com/99nwu5ma
Https://Tinyurl.Com/Bdesaaa8

चित्र संदर्भ

1. लखनऊ के इमामबाड़े को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
2. यूरोप के एक राष्ट्रीय मुद्रण संग्रहालय को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. लेटरप्रेस प्रिंटिंग के निरीक्षक को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. लखनऊ में स्थित एशिया के सबसे पुराने मुद्रणालय को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
5. एक पुराने एल्बम के एक पृष्ठ को दर्शाता एक चित्रण (prarang)



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