लखनऊ का नाम लेते ही विभिन्न प्रकार के खानों की महक हर किसी को मदहोश कर देती है। अन्दाज़ ही निराला है लखनऊ का यहाँ की आबोहवा में खाने की महक घूमती रहती है। यहां के खानों में कबाब और बिरियानी तो मशहूर है पर यहाँ की दालों की अपनी एक अलग ही महत्ता है। यहाँ की मांस दाल अपनी एक अलग ही पहचान लिये हुये है। शुरुआती चरण में मांस का प्रयोग मात्र घरों या मंडपों के निर्माण और गाय और भैंसों के भोजन तक ही सीमित था। फिर 19वीं शताब्दी के अंत में जब लखनऊ के लोगों ने सोचा और उन्होंने खाना पकाने और खाने के लिए बहुत मेहनत की और मांस दाल को बनाने में सफलता दर्ज की। अमीर घरानों में त्वचा रहित मांस दाल पकाया जाता था। घर में दाल की त्वचा को हटा दिया जाता था क्योंकि यह दाल पुरुषों के रसोई में नहीं पकाया गया था। सर्वप्रथम यह दाल पानी में भिगोया जाता है और कुछ घंटों के बाद जब यह पूरी तरह से फूल जाये तो हाथों के सहारे इसे रगड़ देने पर दाल के ऊपर की त्वचा आप ही हट जाती है। यह दाल नमक, मिर्च, लौंग और वेलची के साथ दूध में उबाला जाता है। यदि दाल नरम नहीं होती थी और पूरा दूध सूख जाता था तो उसमें और पानी डाल फिर से उबाला जाता था। जब दाल नरम हो जाये तो उसमें दो तोला अदरक के रस और एक पाव पतला क्रीम इसमें मिलाया जाता है। अब एक कढाई में इसे धीरे-धीरे हल्की आँच में कुछ देर तक पकाया जाता है। अब जब क्रीम का रंग बदल गया हो तो दाल में आधा पाव प्याज और एक पाव घी के साथ तला जाता है। खाना पकाने की प्रक्रिया के दौरान दाल को एक कलछी से धीरे-धीरे हिलाया जाता है और बड़ी सावधानी के साथ कढाई को घुमाया जाता है ताकी मांस दाल के दाने टूटे ना और वे एक दूसरे से चिपके भी ना। अब पके हुये मांस दाल को एक तस्तरी पर परोस कर ऊपर से अदरक, हरी मिर्च, हरे धनिया का छिड़काव किया जाता है।
1. द क्लासिक क्युज़ीन ऑफ लखनऊ, ए फूड मेमोयर बाय मिर्ज़ा ज़ाफर हुसैन
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