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बारिश को उत्पन्न व उसके पश्चात गीली मिट्टी की सुगंध के लिए ज़िम्मेदार हैं, बैक्टीरिया

लखनऊ

 21-11-2023 10:00 AM
कीटाणु,एक कोशीय जीव,क्रोमिस्टा, व शैवाल

हमारा आकाश कोई जीवाणुरहित क्षेत्र नहीं है। यह असंख्य बैक्टीरिया(Bacteria) से भरा हुआ है, और वैज्ञानिकों का कहना है कि, ये जीवाणु बारिश एवं बर्फ बनाने में एक शक्तिशाली भूमिका निभाते हैं। शोधकर्ताओं को वायुमंडल में बैक्टीरिया मिले हैं, जिन्हें तकनीकी रूप से “जैविक बर्फ न्यूक्लियेटर्स (Biological ice nucleators)” के रूप में जाना जाता है।
लुइसियाना स्टेट यूनिवर्सिटी(Louisiana State University) के माइक्रोबायोलॉजिस्ट(Microbiologist) ब्रेंट क्रिस्टनर(Brent Christner) के नेतृत्व में, कुछ शोधकर्ताओं ने दुनिया भर से बर्फ के नमूनों का विश्लेषण किया हैं। इनमें उन्होंने “न्यूक्लियेटर्स(Nucleators)” को वर्गीकृत किया है, जो वे छोटे कण होते हैं, जो जल वाष्प को एकत्र होने और जमने में मदद करते हैं। दरअसल, बर्फ और अधिकांश बारिश, आकाश में बनने वाले बर्फ के कणों के रूप में ही शुरू होती है। हालांकि, पानी का हिमांक बिंदु शून्य डिग्री सेल्सियस होता है, लेकिन बादलों में वाष्प अत्यधिक ठंडे तापमान पर ही, बर्फ के कण बनाने के लिए बंधते हैं। न्यूक्लियेटर्स पृथ्वी के क्षोभमंडल के अधिकांश भाग में, मौजूद कम चरम स्थितियों में ही, क्रिस्टलीकरण(Crystallization)– कण बनने की प्रक्रिया, होने देते हैं।
वैसे तो, इस तथ्य का अध्ययन, कि बैक्टीरिया बर्फ और बारिश का कारण बन सकते हैं, 1970 के दशक में, डेविड सैंड्स(David Sands) द्वारा किया गया था। वह मोंटाना स्टेट यूनिवर्सिटी(Montana State University) से, एक पौधे रोगविज्ञानी थे, तथा तब, वे स्यूडोमोनास सिरिंज(Pseudomonas syringae) बैक्टीरिया पर शोध कर रहे थे। यह एक सूक्ष्म जीव है, जो पत्तियों पर बर्फ जमाने में मदद करता है। अधिकांश ज्ञात बर्फ-न्यूक्लिएटिंग बैक्टीरिया पादप रोगज़नक़ हैं। ये रोगज़नक़ पौधों में ठंड से होने वाली क्षति का कारण बन सकते हैं।
बर्फ न्यूक्लियेटर बैक्टीरिया की सभी किस्मों में, एक प्रोटीन(Protein) संरचना होती है, जो पानी के मुक्त अणुओं के लिए एक मचान प्रदान करती है। फिर, बैक्टीरिया एवं दूसरे अणुओं से बंधने के बाद, जल वाष्प जमने में सक्षम होते हैं। धूल एवं कालिख के कण बर्फ के नाभिक के रूप में काम कर सकते हैं, लेकिन जैविक बर्फ के नाभिक अधिक गर्म तापमान पर ठंड को उत्प्रेरित करने में सक्षम हैं। इससे वायुमंडल में, जल्द ही बर्फ जमने लगती है। इस प्रकार अंततः बारिश या बर्फ पृथ्वी पर वापस गिर जाती हैं। बायोप्रेसिपिटेशन(Bioprecipitation) इसी प्रक्रिया का नाम है, जो बारिश को प्रेरित करने वाले बैक्टीरिया की अवधारणा है। इसे डेविड सैंड्स द्वारा स्पष्ट किया गया था।
अनुमान है कि, बादलों में मौजूद बैक्टीरिया स्वयं को इधर–उधर विस्तारित करने हेतु, वर्षा का उपयोग करने के लिए, विकसित हुए होंगे। ब्रेंट क्रिस्टनर के अनुसार, यह बैक्टीरिया अंटार्कटिका(Antarctica) कनाडा(Canada) के युकोन क्षेत्र(Yukon Territory) और फ्रांस(France) के एल्प्स(Alps) जैसे स्थानों में बर्फ, मिट्टी और पौधों में पाए जाते हैं। ये बैक्टीरिया स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र और बादलों के बीच निरंतर प्रतिक्रिया का हिस्सा हैं। ये जैविक कण एवं बैक्टीरिया वर्षा चक्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, जिससे जलवायु, कृषि उत्पादकता और यहां तक कि, ग्लोबल वार्मिंग(Global warming) भी प्रभावित हो सकती है। चूंकि, ये जैविक बर्फ न्यूक्लियेटर्स बादलों में मौजूद है, तो जैविक बर्फ के नाभिक वर्षा को गति देने वाली प्रक्रियाओं को प्रभावित कर सकते हैं।
कुछ अनुमान ऐसे भी हैं कि, बैक्टीरिया पौधों की सतह पर छोटे समूह बनाते हैं। फिर हवा के कारण, बैक्टीरिया के ये समूह वायुमंडल में चले जाते है, और उनके चारों ओर बर्फ के क्रिस्टल बन जाते हैं। पानी के अणु इन क्रिस्टलों पर चिपक जाते हैं, जिससे वे बड़े होने लगते हैं। यही बर्फ के क्रिस्टल बारिश में बदल जाते हैं और जमीन पर गिर जाते हैं। जबकि, कम तापमान वाले क्षेत्रों में, यह वर्षा बर्फ के रुप में होती है। जब वर्षा होती है, तब ये जीवाणु वापस जमीन पर आ जाते हैं। और इनमें से, यदि एक भी जीवाणु किसी पौधे पर गिरता है, तो यह गुणन करके, फिर से समूह बना सकता है, जिससे यह चक्र दोहराया जाता है।
वायुमंडल में बैक्टीरिया की भूमिका के बारे में हमारा यह ज्ञान, भविष्य में मौसम के पूर्वानुमान में भी सुधार कर सकता है। क्योंकि, सिद्धांत यह है कि, वायुमंडलीय बैक्टीरिया उस तापमान को प्रभावित करते हैं, जिस पर पानी जम जाता है।
ज्यादातर लोग सोचते हैं कि, पानी हमेशा शून्य डिग्री पर जमता है। लेकिन, शुद्ध पानी वास्तव में, लगभग शून्य से 40 डिग्री पर भी जम जाता है। यदि पानी में कुछ धूल या अन्य छोटे, अदृश्य कण हैं, तो इससे हिमांक बढ़ जाता है। और यदि, पानी में बैक्टीरिया मौजूद हैं, तो भी यही बात लागू होती है। कुछ वर्षों पहले माना जाता था कि, केवल खनिज और अन्य कण ही पानी की बूंदों को जमा सकते हैं और बारिश का कारण बन सकते हैं। लेकिन हम देख सकते हैं कि, बैक्टीरिया की मदद से भी ऐसा होता है।
दूसरी ओर, अधिकांश लोग बारिश के बाद एक विशिष्ट गंध का अनुभव करते हैं। आपने भी, इस गंध का अवश्य ही आनंद लिया होगा। इस गंध के लिए भी, दरअसल बैक्टीरिया ही ज़िम्मेदार होते हैं। बीबीसी(BBC) की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस गंध का वैज्ञानिक नाम ‘पेट्रीकोर(Petrichor)’ है। यह नाम 1960 के दशक में, ऑस्ट्रेलिया(Australia) के दो शोधकर्ताओं द्वारा दिया गया था। वास्तव में, यह पृथ्वी की नमी से आता है। वैज्ञानिकों ने बारिश की गंध और इसके लिए जिम्मेदार रासायनिक यौगिकों पर शोध किया है। तब, मिट्टी में उन्होंने दो प्रमुख यौगिकों, जियोस्मिन(Geosmin) और 2-मिथाइलिसोबोर्नियोल(2-methylisoborneol) की पहचान की थी। ये रसायन मिट्टी में पाए जाने वाले, कुछ जीवाणुओं द्वारा उत्पादित होते हैं, एवं पेट्रीकोर गंध के प्रमुख योगदानकर्ता हैं।
साथ ही, बारिश के कारण जंगलों में फैलने वाली सुगंध भी, वास्तव में बैक्टीरिया के कारण होती है। एक्टिनोमाइसेट्स(Actinomycetes) नामक एक प्रकार का बैक्टीरिया, मिट्टी में तब पनपता है, जब परिस्थितियां नम और गर्म होती हैं। हालांकि, जब मिट्टी सूख जाती है, तो यह जीवाणु मिट्टी में बीजाणु पैदा करते हैं। बारिश की नमी और ताकत, इन छोटे-छोटे बीजाणुओं को हवा में उछाल देती है, जहां बारिश के बाद की नमी एक सुगंधित गैस के रूप में कार्य करती है। तथा, नम हवा आसानी से इन बीजाणुओं को हमारे पास लाती है, इसलिए, हम उन्हें सांस के साथ अंदर लेते हैं। और इन बीजाणुओं में एक विशिष्ट गंध होती है, जिसे हम अक्सर वर्षा से जोड़ते हैं।

संदर्भ
https://tinyurl.com/56xxdm8y
https://tinyurl.com/yttnacvd
https://tinyurl.com/4mv359tn
https://tinyurl.com/4tycjuy8
https://tinyurl.com/zpzys4sd
https://tinyurl.com/3ckk6jsr

चित्र संदर्भ
1. बारिश की बूंदों को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
2. कई प्रकार के बैक्टीरिया को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
3. स्यूडोमोनास सिरिंज को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
4. घास सूंघते बच्चे को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
5. एक्टिनोमाइसेट्स को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)



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