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1857 के प्रसिद्ध भारतीय विद्रोह के दौरान, लखनऊ शहर के भीतर हुई घेराबंदी को अंग्रेजों के नजरिये से एक काला दौर माना जाता है। 1857 में कई ब्रिटिश सैनिक और भारतीय नागरिक, कई महीनों तक लखनऊ की रेजीडेंसी इमारत (Residency Building) के अंदर छुपे रहे और भारत के विद्रोही सिपाहियों से लड़ते रहे। इस दौरान दो ब्रिटिश बचाव दल लखनऊ पहुंचने में कामयाब रहे, लेकिन कई फंसे हुए लोगों को अंत तक नहीं निकाला जा सका।
इस विद्रोह की स्थिति को बेहतर ढंग से समझने के लिए, हमारे लिए इस घटना के कुछ वर्षों पूर्व की स्थिति को समझना जरूरी है। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (British East India Company) द्वारा अवध राज्य पर कब्जा करने और विद्रोह से एक साल पहले, ब्रिटिश सेना ने यहां के शासक, नवाब वाजिद अली शाह को कलकत्ता में निर्वासित कर दिया था। ब्रिटिश सेना के इस कदम से न केवल अवध में बल्कि पूरे भारत में आक्रोश फैल गया। निर्वासन के बाद नये अधिग्रहीत क्षेत्र में नियुक्त प्रथम ब्रिटिश आयुक्त (गवर्नर) कवरली जैक्सन (Coverley Jackson) ने अपने बेवकूफी भरे व्यवहार से इस घाव पर नमक छिड़कने का काम किया। हालांकि विद्रोह भड़कने से ठीक छह सप्ताह पहले सर हेनरी लॉरेंस (Sir Henry Lawrence) जो कि एक अनुभवी प्रशासक थे, ने गवर्नर का पद संभाला था।
विद्रोह से पहले के वर्षों में, ईस्ट इंडिया कंपनी की बंगाल प्रेसीडेंसी (Bengal Presidency Of The East India Company) सेना के सिपाही, कंपनी की प्रचार गतिविधियों से उनके धार्मिक विश्वासों और रीति-रिवाजों पर उत्पन्न होने वाले संभावित खतरे को लेकर काफी असहज हो गए थे। लॉरेंस, पहले ही भारतीय सैनिकों के बीच बढ़ते असंतोष को भांप गए थे। उन्होंने 18 अप्रैल को ही तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड कैनिंग (Governor General Lord Canning) को भारतीय सैनिकों में बढ़ती अशांति के प्रति सचेत कर दिया था! इसके अलावा उन्होंने कुछ विद्रोही कोर को दूसरे प्रांत में स्थानांतरित करने की अनुमति देने का भी अनुरोध किया।
आखिरकार इस पूरे घटनाक्रम में निर्णायक मोड़ तब आया जब सेना में एनफील्ड राइफल (Enfield Rifle) को पेश किया गया। इस दौरान यह अफवाह फ़ैल गई थी कि इस नए हथियार के कारतूसों पर गोमांस और सूअर की चर्बी का मिश्रण लगाया जा रहा है! यह हिंदू और मुस्लिम दोनों सैनिकों के लिए घृणास्पद और धर्म के खिलाफ माना जाता था। 1 मई के दिन 7वीं अवध अनियमित इन्फैंट्री ने नए कारतूसों का उपयोग करने से इनकार कर दिया, जिसके कारण अन्य रेजिमेंटों द्वारा भी इन हथियारों का निरस्त्रीकरण कर दिया गया।
10 मई 1857 के दिन मेरठ में तैनात अधिकांश भारतीय सैनिकों ने ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ खुला विद्रोह कर दिया और दिल्ली पर चढ़ाई कर दी। विद्रोह की खबर मिलने पर, लॉरेंस ने स्थिति की गंभीरता को समझा और पेंशनभोगियों के दो समूहों (एक सिपाही का और दूसरा तोपची) को उनके घरों से वापस बुला लिया। उन्होंने लखनऊ रेजीडेंसी की किलेबंदी का भी आदेश दे दिया। लखनऊ रेजीडेंसी इमारतों का एक परिसर था, जो शहर में ब्रिटिश मुख्यालय के रूप में काम करता था। उन्होंने लंबी घेराबंदी की तैयारी करते हुए भोजन और हथियारों की पर्याप्त आपूर्ति भी जमा कर ली थी। इस दौरान सिख और कुछ हिंदू सिपाहियों की वफादारी ने रेजीडेंसी की सफल रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
23 मई के दिन लॉरेंस, लखनऊ रेजीडेंसी को सुरक्षित करने और घेराबंदी के लिए आपूर्ति जमा करने में व्यस्त हो गए। इस दौरान वहां पर दूरदराज के जिलों से बड़ी संख्या में भागकर आये ब्रिटिश नागरिकों ने भी शरण मांगी। 30 मई को, ईद-उल-फितर के मुस्लिम त्योहार के साथ, लखनऊ में तैनात अधिकांश अवध और बंगाल सैनिकों ने भी खुले तौर पर विद्रोह कर दिया। उन्होंने 30 जून, 1857 को रेजीडेंसी पर हमला कर दिया और घेराबंदी शुरू हो गई।
विद्रोहियों का सामना करने के लिए लॉरेंस ने 300 ब्रिटिश सैनिकों, 230 वफादार भारतीय सिपाहियों, 100 सिखों तथा मुट्ठी भर नागरिक घुड़सवार स्वयंसेवकों की एक छोटी सेना का नेतृत्व किया। हालांकि उनका अग्रिम प्रबंधन ही बहुत ख़राब था, क्यों कि उनके सैनिक पर्याप्त भोजन या पानी के बिना चिलचिलाती धूप में मार्च कर रहे थे। वहीँ उनके विरोध में खड़ी और तोपखाने से सुसज्जित, 5,000 सैनिकों की भारतीय विद्रोही सेना ने लॉरेंस की छोटी सी सेना के लिए बहुत बड़ी मुसीबत खड़ी कर दी।
हालांकि लॉरेंस के सामने जल्द ही इससे भी बड़ी एक और मुसीबत खड़ी हो गई, जब अचानक ही लॉरेंस की सेना में शामिल एक भारतीय तोपची और एक स्थानीय पुलिस इकाई, भारतीय विद्रोहियों के गुट में शामिल हो गए, और उन्होंने लॉरेंस की सेना के खिलाफ ही बंदूकें तान दीं। गर्मी, प्यास और विश्वासघात के संयुक्त हमले के कारण ब्रिटिश खेमा पूरी तरह से लड़खड़ा गया था। लॉरेंस की यह छोटी सी सेना और साम्राज्य पूरी तरह से अस्त-व्यस्त हो गया। और इसके बाद लॉरेंस लगभग हार मान चुके थे। इस हार से लॉरेंस भावनात्मक रूप से भी टूट गए थे। वह अपने लोगों को ऐसी विनाशकारी स्थिति में लाने के लिए खुद को जिम्मेदार मान रहे थे।
जून के पहले सप्ताह में पूरे अवध प्रांत में विद्रोह भड़क उठे, जिससे ब्रिटिश सत्ता, रेजीडेंसी के चारों ओर जमीन के छोटे से हिस्से तक ही सीमित रह गई। हालांकि इस दौरान भी हैदराबाद, मैसूर, त्रावणकोर और कश्मीर की महत्वपूर्ण रियासतें अंग्रेजों के प्रति वफादार रहीं, वहाँ राजपूताना के छोटे राज्य तटस्थ रहे। पंजाब के सिखों ने, सक्रिय रूप से अंग्रेजों की सहायता की, उनकी योद्धा परंपरा और असाधारण सैनिक कौशल अमूल्य साबित हुए। इन घटनाक्रमों के बावजूद भी लखनऊ की घेराबंदी जारी रही।
लेकिन इसके बावजूद ब्रिटिश सैनिकों और उनके वफादार भारतीय सिपाहियों तथा नागरिक स्वयंसेवकों सहित 1,720 सशस्त्र रक्षकों ने विद्रोहियों के इस शक्तिशाली समूह का बहादुरी से सामना किया। 4 जुलाई, 1857 के दिन अंग्रेजों के लिहाज से एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना तब घटी जब लॉरेंस के कमरे में विद्रोहियों द्वारा फेंका गया एक गोला फट गया, जिससे उनकी तुरंत मौत हो गई। इसके बाद रेजीडेंसी की कमान 32वीं रेजिमेंट के कर्नल जॉन इंगलिस (Colonel John Inglis) को सौंपी गई। इस दौरान भी विद्रोही लगातार रेजीडेंसी पर हमला कर रहे थे, और भोजन और आपूर्ति कम हो रही थी। लेकिन इंगलिस एक दृढनिश्चयी नेता थे। सितंबर 1857 में, मेजर-जनरल सर हेनरी हैवलॉक (Major-General Sir Henry Havelock) के नेतृत्व में एक राहत बल लखनऊ पहुंचा। हैवलॉक की सेना ने रेजीडेंसी में अपनी लड़ाई लड़ी, लेकिन उन्हें अपना संघर्ष जारी रखने के लिए इंगलिस और उनकी सेना को छोड़कर पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा। अंततः, सर कॉलिन कैंपबेल (Sir Colin Campbell) की कमान के तहत नवंबर 1857 में, एक दूसरा राहत बल लखनऊ पहुंचा। कैंपबेल की सेना हैवलॉक की तुलना में बहुत बड़ी थी, और दोनों सेनाएं मिलकर घेराबंदी को तोड़ने में सफल रही। अंततः अंग्रेज रेजीडेंसी पर उनकी फ़तेह हुई । लखनऊ की घेराबंदी एक लंबा और खूनी संघर्ष रहा था, लेकिन अंततः भारतीय विद्रोही हार गए और अंग्रेजों ने यहां पर फिर से अपनी सत्ता काबिज कर ली थी।
संदर्भ
https://tinyurl.com/yc6daas9
https://tinyurl.com/mpkrrvts
https://tinyurl.com/4sujcvet
चित्र संदर्भ
1. विद्रोह के दौरान किले की छत पर खड़े अंग्रेजी और भारतीय सैनिकों को दर्शाता एक चित्रण (PICRYL)
2. नवाब वाजिद अली शाह को दर्शाता एक चित्रण (GetArchive)
3. ब्रिटिश सेना की बंदूकों को दर्शाता एक चित्रण (PICRYL)
4. अवध में विद्रोह और लखनऊ रेजीडेंसी की घेराबंदी के बाद के दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (picryl)
5. लखनऊ में सिपाहियों के समूह, को दर्शाता एक चित्रण (PICRYL)
6. एक किले की घेराबंदी को दर्शाता एक चित्रण (PICRYL)
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