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क्या आप जानते हैं, हमारे शहर का नाम “लखनऊ” पड़ने से पहले इसे “लखनपुरी (लक्ष्मण की नगरी)” कहकर संबोधित किया जाता था। मान्यताओं के अनुसार इस क्षेत्र को भगवान श्री राम ने, अपने अनुज और शेषावतार, लक्ष्मण जी को उपहार स्वरूप भेंट किया था। चूंकि लक्ष्मण जी स्वयं भी शेषनाग के अवतार माने जाते हैं, इसलिए लखनऊ शहर का भी नागों यानी साँपों के साथ, प्राचीन काल से ही गहरा संबंध रहा है।
हिंदू पौराणिक कथाओं में "शेषनाग" को "शेष" या "आदिशेष" के नाम से भी जाना जाता है। इन्हें एक सर्प देवता (नाग) और सभी सांपों के राजा (नागराज) के रूप में सम्मानित किया जाता है। शेषनाग को ब्रह्मांड की चक्रीय प्रकृति का प्रतीक माना जाता है।
पुराणों के अनुसार, शेषनाग अपने हजारों फनों के ऊपर संपूर्ण ब्रह्मांड का भार संभालते हैं, जबकि उनके अनगिनत मुख लगातार भगवान विष्णु की स्तुति करते रहते हैं।
शेष नाम का अर्थ "वह जो रहता है," होता है, जो उनके शाश्वत अस्तित्व को दर्शाता है। शेषनाग सृजन, संरक्षण और विनाश के चक्रों से भी परे माने जाते हैं। यहां तक की वह ब्रह्मांड के ब्रह्मांडीय नृत्य या विध्वंस के बावजूद भी अपरिवर्तित रहते हैं।
हिंदू संस्कृति में शेष केवल एक देवता या दिव्य प्राणी ही नहीं है, बल्कि वह मानव रूप में भी पृथ्वी पर प्रकट हुए थे। हिंदू मान्यताओं के अनुसार सतयुग के दौरान “शेष”, भगवान विष्णु के अवतार प्रभु श्री राम के आज्ञाकारी भाई लक्ष्मण के रूप में अवतरित हुए। कुछ परंपराओं के अनुसार, वह द्वापर युग के दौरान भगवान विष्णु के अवतार कृष्ण के बड़े भाई बलराम के रूप में भी प्रकट हुए थे। यदि राम, विष्णु के दिव्य सार का प्रतीक हैं, तो उनके आज्ञाकारी अनुज लक्ष्मण को “कोबरा” के अवतार के रूप में सम्मानित किया जाता है। आज के समय यानी कलयुग में किंग कोबरा (King Cobra) या ओफियोफैगस हन्ना (Ophiophagus Hannah) एक ज़हरीला और अनोखा सांप माना जाता है। इसे ओसोफैगस जीनस (Ophiophagus Genus) की एकमात्र जीवित प्रजाति माना जाता है।
आपको जानकर हैरानी होगी कि किंग कोबरा, दूसरे सांपों को खाना पसंद करते हैं। वे मुख्य रूप से सांपों की जहरीली प्रजातियों और यहां तक कि अपनी तरह के सांपों का भी शिकार करते हैं। रैट स्नेक (Rat Snake) उनका पसंदीदा व्यंजन होता है।
किंग कोबरा का ज़हर, विषाक्त पदार्थों के एक शक्तिशाली घोल की तरह होता है, जो हाथियों जैसे बड़े जानवरों को अक्षम करने और यहां तक कि उन्हें मारने में भी सक्षम होता है। एक बार काटने पर उसका जहर 500 मिलीग्राम तक फैल सकता है, जो कुछ ही मिनटों में श्वसन विफलता और पक्षाघात का कारण बन सकता है।
ये दुर्जेय सरीसृप व्यापक रूप से दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया (नेपाल और भारत से लेकर दक्षिणी चीन, फिलीपींस, इंडोनेशिया और मलेशिया तक) में पाए जाते हैं। ये सांप उनकी भौगोलिक स्थिति के आधार पर अलग-अलग रंगो (भूरे, काले, गहरे जैतून हरे और पीले-भूरे) के हो सकते हैं। एक हालिया अध्ययन में किंग कोबरा की चार अलग-अलग वंशावली की पहचान की गई है, इनमें पश्चिमी घाट (Western Ghats), इंडो-चाइनीज (Indo-Chinese), इंडो-मलायन (Indo-Malayan) और लूजॉन द्वीप (Luzon Island) शामिल हैं।
किंग कोबरा के नाम पृथ्वी पर सबसे लंबे ज़हरीले सांप होने का खिताब दर्ज है। इनकी लंबाई औसतन, 3 से 4 मीटर (10 से 13 फीट) के बीच होती है, लेकिन कुछ सांप 5 मीटर (16 फीट) से अधिक लंबाई को भी छू सकते हैं। अब तक का रिकॉर्ड किया गया सबसे लंबा किंग कोबरा मलेशिया के नेगेरी सेम्बिलान (Negeri Sembilan) में पोर्ट डिक्सन (Port Dickson) के पास पाया गया था, जिसकी लंबाई 5.54 मीटर (18.2 फीट) थी। इस सांप को 1937 में पकड़ा गया था और बाद में लंदन चिड़ियाघर में प्रदर्शित किया गया था, जहां द्वितीय विश्व युद्ध से पहले अपनी मृत्यु से पूर्व यह आश्चर्यजनक रूप से 5.71 मीटर (18.7 फीट) तक बढ़ गया था। किंग कोबरा अपनी लंबी उम्र के लिए भी उल्लेखनीय हैं। जंगल में उनका औसत जीवनकाल 20 वर्षों का होता है।
किंग कोबरा उत्कृष्ट रूप से अपने पर्यावरण के अनुसार अनुकूलित हो सकते हैं, जिन्हें जंगलों, घास के मैदानों और दलदलों सहित विभिन्न प्रकार के आवासों में देखा जा सकता है। किंग कोबरा हमारी प्रकृति के संतुलन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। शीर्ष शिकारियों के रूप में, वे अन्य सांपों और सरीसृपों का शिकार करते हैं, जिससे उनकी आबादी को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। उनकी गंध की अत्यधिक तीव्र भावना (Acute Sense Of Smell) उन्हें शिकार का सटीकता के साथ पता लगाने की अनुमति देती है, और उनकी अविश्वसनीय गति और चपलता उनके अधिकांश हमलों को सफल बना देती है। अपने घोंसला बनाने के व्यवहार के कारण भी किंग कोबरा सभी सांपों के बीच में सबसे अलग दिखते हैं। सापों की अंडे देने वाली अन्य प्रजातियों के विपरीत, किंग कोबरा परिश्रमपूर्वक पत्तियों और शाखाओं का उपयोग करके घोंसले का निर्माण करते हैं। अण्डों से बच्चे निकलने तक, मादा 90 दिनों तक घोंसले की रखवाली करती है। हालांकि अपनी डरावनी छवि होने के बावजूद, किंग कोबरा आमतौर पर शर्मीले माने जाते हैं और इंसानों के संपर्क में आने से बचते हैं। लेकिन मानव विस्तार के कारण इनके निवास स्थान की हानि और अतिक्रमण के कारण मानव-पशु संघर्ष बढ़ गया है। वनों की कटाई और कृषि विस्तार के कारण इनके आवास की हानि एक प्रमुख चिंता बनकर उभरी है, क्योंकि इससे उनके प्रजनन स्थल नष्ट हो रहे हैं और आज वे न चाहते हुए भी मनुष्यों के करीब आने पर मजबूर हैं। सीमित शोध और घटती संख्या के साथ ही किंग कोबरा का संरक्षण करना भी बहुत जरूरी हो गया है। अपने प्रभावशाली आकार, शक्तिशाली जहर और विशेष आहार के कारण किंग कोबरा प्रकृति के संतुलन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसलिए उनके महत्व को पहचान कर और उनके सामने आने वाले खतरों को संबोधित करके, हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि ये शानदार सरीसृप आने वाली पीढ़ियों तक जंगल में पनपते रहें।
संदर्भ
https://tinyurl.com/5cpr8khe
https://tinyurl.com/c5tzb6nt
https://tinyurl.com/4cykuawr
https://tinyurl.com/5n83ydwr
चित्र संदर्भ
1. किंग कोबरा, शेषनाग और वैकुण्ठ लोक को दर्शाता एक चित्रण (lookandlearn, wikimedia, Peakpx)
2. सरकारी संग्रहालय मथुरा में शेष नाग की प्राचीन कांस्य कलाकृति के साथ भगवान् विष्णु को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. किंग कोबरा को दर्शाता एक चित्रण (Rawpixel)
4. अपना फन उठाये किंग कोबरा को दर्शाता एक चित्रण (NARA)
5. झाड़ी से झांकते किंग कोबरा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. किंग कोबरा के साथ एक व्यक्ति को दर्शाता एक चित्रण (Pexels)
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