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                                            रोटी कपड़ा और मकान यह तीन इंसान के जीवन की ऐसी चाबी है जिसके बिना जिंदगी की गाडी चलाना बेहद मुश्किल हो जाता है। हम एक बार कपड़े और मकान के बिना रह सकते हैं लेकिन खाने की बिना जिन्दा रेहना नामुमकिन है। इतिहास गवाह है की खाने के लिए ही प्रागैतिहासिक काल में मनुष्य घूमते रहता था, एक जगह से दुसरे जगह शिकार करके, फल पत्ते जमा करके अपना गुजारा करता था। उसके इस खानाबदोश जिंदगी का अंत तब हुआ जब उसने एक जगह पर अन्न उगाने का तंत्र सिख लिया और साथ में जानवरों को उनके उपयोग हेतु पालने लगा। जैसे हम इंसान तरक्की करते गए हमारे जीवन में कई बदलाव आये, हमारे तौर तरीकों, रेहन-सेहन में कई बदलाव आये मात्र खाना एक मात्र ऐसी चीज़ रही जो कायम है, सालों से कुछ व्यंजन हम बनाते आये हैं जो हमारे पूर्वज बनाते थे, हाँ उनके बनाने के तरीकों में, पकाने के तरीकों में बदलाव जरुर आया है।
भारत एक ऐसा देश है जहाँ पर आपको दुनिया के बहुतसे जगहों की एक छोटी झांकी जरुर मिलेगी, थोडासा प्रभाव जरुर दिखेगा और इसका कारण है हमारा इतिहास। इस का उत्तम उदहारण है हमारी खाद्यसंस्कृति। हमारे यहाँ जो राज करके गए उनकी वजह से, हमारे यहाँ के लोग जब बहार गए तब उनकी वजह से और बरसो से चले आ रहे बाहरी तथा अंदरूनी व्यापार-उद्दयम की वजह से हमारी खाद्यासंस्कृति में असल भारतीय खाने के साथ-साथ बाहरी प्रभाव भी दिखते हैं। हमारे यहाँ पर खाने पर बहुतसे प्रयोग भी किये गए हैं और नए नए पकवान निर्माण किये गए हैं। भारत की खाद्यासंस्कृति जितनी संपन्न है शायद ही कही होगी। इस देश के मसाले ही तो थे जिसकी वजह से इतने विदेशी यहाँ पर खिचे चले आये व्यापार के लिए और आगे चल यहीं के राजा बन बैठे।
हमारे खाद्यासंस्कृति की विविधता एक अभ्यास का विषय है क्यूंकि ये भाषा की तरह हर मील पर बदलती है। हर घर की अपनी ऐसी एक व्यंजनों की विशेषता रहती है। भारत के हर हिस्से की, हर राज्य की अपनी खाद्यासंकृति की विरासत है। जैसे आंध्रा की बिरयानी, महाराष्ट्र की पुरनपोली, गुजरात का ढोकला और उत्तर प्रदेश का मुघलाई खाना। यह तो सिर्फ इन जगह के कुछ प्रतिनिधिक व्यंजन हैं; यहाँ और भी बहुत कुछ बनता है। अब उत्तर प्रदेश के मुघलाई खाने को ही लेलें तो उसमे भी हर ज़िले के मुताबिक परिवर्तन आता है। इस मुग़ल खाने के अलावा भी उस वक़्त के रियासतों की अपने एक अलग खाद्य शैली थी, उन में से एक है रामपुर।
रामपुर के निर्माण काल से ही वह कला और शिक्षा का केंद्र माना गया है लेकिन उसकी अपनी भी बेहद स्वादिष्ट ऐसी खाद्यसंस्कृति भी है जो यहाँ के नवाबों के काल में विकसित हुई। रामपुर में बनता हब्शी हलवा तो आज भी काफी मशहूर है। इस हलवे को रामपुर में लाने का श्रेय रामपुर नवाब मुहम्मद कल्ब-ए-अली खान को जाता हैं जो दक्षिण अफ्रीका में इस हलवे को चखने के बाद इसे बनाने की कृति जानने वाले एक इंसान को लेकर भारत में आये। मटन को पकाने लायक और नरम बनाने के लिए पपीता तथा लौकी का इस्तेमाल करने की प्रक्रिया रामपुर से ही शुरू हुई। इनके खानी की विशेषता जो मुघलाई और अवधी खाने से इसे अलग करता है वह थी चाँदी के वर्क का इस्तेमाल, मसालों का कम उपयोग, केसर के जड़ का इस्तेमाल, प्याज़ का बहुतसे व्यजनो के लिए आधार की तरह उपयोग करना, और सबसे बड़ी बात, इस में केवडा अथवा गुलाब के जल का बिलकुल भी इस्तेमाल नहीं होता है। रामपुर का अपना एक चंगेजी मसाला भी है! यह मसाला 20 से ज्यादा जड़ी-बूटियों से बनता है। मुघलाई खाने के साथ-साथ नवाबों के खानसामे कश्मीरी, अफगानी और लकनवी खाद्यासंस्कृति से भी वाकिफ और प्रेरित थे। रामपुरी खाने में उन्होंने इसका इस्तेमाल भी किया है मात्र वो आगे चल इस तरह से समा गए हैं की रामपुर की अपनी एक खासियत बनके सामने उभर आया।
धुधिया बिरयानी, मीठे चावल, अदरक का हलवा, गोश्त की टिक्की, समर बेहिस्त, कमल ककड़ी कबाब, मटन तार कोरमा, मिर्ची का हलवा, गुलाठी और मोतिया ये रामपुर के कुछ मशहूर और अनूठे व्यंजन हैं। जैसे की इस फेहरिस्त से पता चलता है मांसाहारी पदार्थों के साथ-साथ यहाँ पर शाकाहारी पदार्थों की भी कमी ना थी खास कर यहाँ के हलवे जो तीखी चीज़ इस्तेमाल कर बनाए जाते हैं।
रामपुर की यह खाद्यासंस्कृति को सहेजना बहुतही महत्वपूर्ण हो गया है क्यूंकि वक़्त के साथ-साथ और इन्हें बनानेवालों की इन पदार्थों को कैसे बनाया जाए इसकी गुप्तता रखने की वजह से यह समय के घने अँधेरे में लुप्त होते जा रही है। आज रामपुर व्यंजन की यह समृद्ध परंपरा को पुनर्जीवित और संचय करने के लिए बहुतसे लोग आगे आ रहे हैं। जैसे धर्म, ऐतिहासिक वास्तु और वास्तु हमारी धरोहर हैं उसी प्रकार हमारी खाद्यसंस्कृति भी महतवपूर्ण धरोहर है और इसका जतन करना हमारा स्वादिष्ट कार्य है आखिर हमारे पूर्वज हमे बताके गए हैं- अन्न यह पूर्णब्रह्म है।
प्रस्तुत चित्र रामपुरी के प्रसिद्ध व्यंजनों का है। 
1. http://indianexpress.com/article/lifestyle/food-wine/the-rise-and-revival-of-the-ancient-rampuri-cuisine/
2. https://eattreat.in/rampuri-cuisine
3. http://www.mydigitalfc.com/fc-supplements/elan/rampur-and-mahaseer